१२६ वर्ष से हो रही है उत्तराखंड में रेल सर्वे
सीमान्त पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में १८८४ में काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेशन बना था.
तब से १२६ वर्ष हो गए हैं और देश को आजाद हुए ६३ वर्ष हो गए हैं. राज्य की जनता
और कलमकार लगातार रेल के लिए पुकार लगाते रहे क्योंकि उत्तराखंड एक सीमावर्ती
राज्य होने के कारण सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. उधर चीन ने १९५९ के बाद
रेल को तिब्बत की भारत के साथ लगी सीमा के आखिरी छोर तक पहुंचा दिया है.
रेल निर्माण का महत्व सैन्य दृष्टि के साथ ही रोजगार और पलायन से भी जुडा हैं.
प्रतिवर्ष उत्तराखंड कें एक ही आवाज सुनाई देती हैं कि 'सर्वे होने वाली है.'
अंग्रेजों के ज़माने से सर्वे होते होते १२६ वर्ष में भी यह सर्वे पूरी नहीं हो सकी.
इसका मुख्य कारण था सभी विधायकों ,सांसदों ,बुद्धिजीवियों और ग्राम सभापतिओं
का एकजुट होकर आवाज बुलंद नहीं करना. जनता भी इस पुकार को आन्दोलन का
रूप नहीं दे सकी. आन्दोलन नहीं होने का मुख्य कारण पलायन से पहाड़ में युवाओं
कि रिक्तता . २०१०-११ के रेल बजट में ममताजी ने तीन परियोजनाओं --टनकपुर-
बागेश्वर , टनकपुर-जौलजीवी तथा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग के आरंभ करने कि घोषणा
कर दी है. देरी से ही सही काम आरंभ तो करो. उत्तराखंड में तो रेल सपने में ही
रह गयी . दृढ इच्छाशक्ति से कश्मीर,उधमपुर,शिमला,जोगिन्देरनगर, दार्जिलिंग, उटी,
धरमनगर, अगरतल्ला सहित कई दुर्गम स्थानों तक रेल पहुँच गयी परन्तु उत्तराखंड
अधिक महत्वपूर्ण और कम दुर्गम होने के बावजूद भी रेल के लिए तरसता रह गया.
पूरन चन्द्र कांडपाल. ०१.०३.२०१० , मोबा ९८७१३८८८१५.