यूँली बनाम ब्रह्मकमल
- देवेश जोशी
जिस ऊँचाई पर मानव के सिर दिखाई देने बन्द हो जाते है, वहाँ ब्रह्मकमल उगने शुरू होते हैं। जिन कक्षों (मंदिरों के गर्भ गृह) के द्वार मनुष्य के लिए बन्द रहते हैं, वहां ब्रह्मकमल शोभायमान होते हैं तथा जिन बुग्यालों मे मानव के दिग्भ्रमित और मूर्छित होने का खतरा रहता है, वहाँं ब्रह्मकमल सीना ताने मुस्कराते रहते हैं।
दूसरी ओर यूँली पहाड़ की रग-रग में उगती हैय पहाड़ के प्रत्येक भीठों-पाखों, खेतों की मेड़ों और दीवार को सजाती हैय घर-घर की देहली में बिखराया जाना अपना सौभाग्य समझती है और विवाहित महिलाओं की पीड़ा से द्रवित होकर स्वयं मायके से अतिशय लगाव वाली, लोककथा की नायिका बन जाती है।
यूँली प्रतीक है उस गरीब आम आदमी की जो कहीं भी खुले में चादर तान के सो जाता है, बिना दाल सब्जी के सूखी मंडुवे की रोटी नमक के साथ खा लेता है, सरकारी नल या किसी धारे -नौले से पानी पी लेता है, जो कुत्तों के लिए कोठी और अपने जैसे इंसान के लिए नीले आसमान की छत को नियति का फैसला और कर्मो का फल मान, संतोष कर लेता है।
ब्रह्मकमल प्रतीक है उन अमीरजादों का जिनको वातानुकूलित कक्षों में ही जीने की आदत है। प्रत्यक्ष देव भास्कर का प्रताप जो झेल नहीं पाते हैं और ऊँचे पहाड़ों की तरफ ऐश करने निकल पड़ते हैय जिनके कदम गलीचों के आदी होते हैं और मन अप्सराओं केय जिनके शरीर इत्र से महकते हैं किंतु अंतस काले कर्मांे के काले बीजों से भरे रहते हैंय जिनका असली चेहरा कई परतों को उघाड़ने के बाद ही सामने आता है।
यूँली अगर मासूम बच्चों की अठखेलियां है तो ब्रह्मकमल किसी ज्ञानी पण्डित द्वारा की गयी ब्रह्म की विशद् व्याख्या। यूँली का सम्पूर्ण अस्तित्व चार पीली नाजुक पंखुडियों के बीच समाहित होता है तो ब्रह्मकमल का सात दीवारों वाले, शेष दुनिया से कटे, अभेद्य दुर्ग सरीखा।
यूँली बसंत में खिलती है तो ब्रह्मकमल बरसात में। पहाड़ों में बसंत को नव सृजन एवं वर्षा ऋतु को खौफ के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस तरह यूँली को सृजन दूतिका भी कहा जा सकता है, और ब्रह्मकमल को खौफ का रहनुमा।
यूँली के कितने ही फूलों को कदमों तले आप रौंद जाएं, दराती से घास के साथ काट जाएं, किसी के माथे पर शिकन तक नही उभरेगी और एक अदद ब्रह्मकमल को तोड़ने के लिए आपको पूूरा कर्मकाण्ड सीखना पडेगा अन्यथा आप हर लिए जाएंगे-बल।
यूँली झाडियों को भी रंगीन बना देती है। कांटांे के बीच मुस्कारते हुए साैंदर्य जगाती है और खण्डहरों, चटृानांे को भी आबाद करने का प्रयास करती है, तो ब्रह्मकमल बुग्याली गलीचों मंे दागनुमा लगते हैं। रंग-बिरंगे पुष्पों के बीच एक रंग उड़ा पुष्प जैसे शास़्त्रीय गायकों के मध्य कोई बेसुरा स्वर।
ब्रह्मकमल में देवत्व का दुराभिमान है तो यूँली में अपनत्व की अंतरंगता। ब्रह्मकमल से त्रिया हठ की पैाराणिक कहानी जुड़ी है तो यूँली से नारी के भोलेपन की लोक कथा।
यूँली पददमित है तो ब्रह्मकमल शीर्षमण्डित। यूँली दलित है तो ब्रह्मकमल पण्डित। ब्रह्मकमल दुर्लभ है तो यूँली सर्वसुलभ। यूॅली लोकगीत है तो ब्रह्मकमल गवेषणा। यूँली जनता की जरूरत है तो ब्रह्मकमल सरकारी घोषणा।
वीराने का राजपुष्प ब्रह्मकमल हो तो हो, लोक हृदय सामाज्ञी, लोक पुष्प तो सदैव रहेगी - यूँली।
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