Author Topic: Poem Written on various issues of Uttarakhand- उत्तराखंड पर ये कविताये  (Read 15521 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आंदोलनकारी राजधानी मा

By : Lalit Keshwan

∫य भै कन झकमरै ∫वेया, हमारी राजधानी मा।
दभै अब क्वी बि नी सुणण्यां, हमारी राजधानी मा।।
हमूं तैं रात प्वड़ि ग्याई , वूंकि राति अपणी छन।
अज्यंू तैं रात नि खूले, हमारी राजधानी मा।।
∫य रां क्वी घाम लग गेने, इने बल घाम लगणा छन
अज्यूं तैं घाम नी आए, हमारी राजधानी मा
ज्यों पर छै नजर सबकी,अब वी लोग ब्वन्ना छन।।
झणि कैकी नजर लगगे, हम पर राजधानी मा।
छ्वट-छवट् डाम धारी बड़-बड़ा डाम बणना छन।।
छिः भै कना डाम प्वड़ना छन हम पर राजधानी मा।
हमारी खैरि सूणी की,वंू बी खैरि ऐ ग्याई।।
अब त खैर नी कैकी , हमारी राजधानी मा।
हमूं तैं दाड़ि किटनी ज्योंन, वंूकि दाड़ नी खूली।।
खुल जांदी त हडगी बी नि मिल्दी राजधानी मा।
वु पेटम कुछ बि नी रखदा, वु हैंकाअ पेट जब्कौंदन।
यू जब्का जब्कयों म प्वड़ने ,धब्का राजधानी मा।।
हमन द्वी आ°खा झपकैने, वूनं एकी झपकाये।
यू झप्का झपक्यों म, झप्वडे़ग्यां हम राजधानी मा।।
मनखि मनस्वाग ह्वै गैने, यु सूणी वो बिफिर गैनंे।
वु हमक्वी बाघ बण गेने ,हमारी राजधानी मा।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गंजेल़ी गीत

By :बलवन्त सिंह रावत

जिकुड़ि कि खैरी कैम लगाण,
तिसलु़ हि रै ग्याइ तिसˇु पराण
चौछ्वड़ि ख्वाज पर वो नि मीलू,
सभि पैढ़ि दीईं वेद-पुराण।
क्वी नीच कैकू दुन्या म दगड़्या,
कैकू कजेई न कैकी कज्याण
कुछ इनु सोच कुछ इनु कैर,
रै जा दुन्यम नाम- निशाण।
किलै नि ब्वल्दू तु अपड़ि बोली,
क्यो आइ त्वे पर सितगा तिड़्याण
सी हाल राला त दिन दूर नीच,
मिटि जालि म्यारा तेरी पच्छ्याण।
अफी न मार खुट्यों कुल्हड़ी,
अज्यूं त लाटा भण्ड्य दूर जाण
आणा पुरण्योंल सुद्दी नि घाला,
घुंडु-घुंडु जैलि़ग्याइ बल कख आइ किराण।
ल्वखू कि बोली सबि सीख्यलीईं,
अपड़ी नि सीखी फुट फिटैलाण
गढ़वलि़ सीख गढ़वलि़ बोल,
मा° बोलि हून्दू मनख्यों पच्छ्याण।
‘कविराज’ कै देलि कंचन काया,
ब्वगणीच गंगा कैर स्नाण
जिकुड़ि कि खैरी कैम लगाण,
तिसˇु हि रै ग्याइ तिसल़ू पराण।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लापŸाा भई लापŸाा, लापŸाा ∫वेना बापŸा
लापŸाा भई लापŸाा, उŸाराखण्ड मा लापŸाा।
हत्यूं म डण्डा-झण्डा लेक अहा! भला क्या दिन छया
राज कना हम तमसगेर अर ÿांतिकार्याें को लापŸाा।
कर्यूं छ अनशन म्वरण तलक, टैण्ट लग्यां छन तैसील म
भैर ब्वना छैं जिन्दाबाद, भितर नेतजि लापŸाा।
पुंगड़ी पटली देकि अपणी, बणै प्राइमरी गांव की
रोज बजाणा घण्टी बच्चा अर मास्टर जी लापŸाा।
येकु उल्टू दुपरी बिल्ंिडग इण्टर कालेज की द्याख
मास्टर उंगणा छन कुर्सी म स्क्वल्यूं का लापŸाा।
ग्वतरा़चार मा ब्योली ब्योला हाथ मिलाणा आंखी बि
क्वलिणा तरफां कुतगिन पंडजी पांच मिण्ट खुणि लापŸाा।
करˇी स्यून्द टाई पैण्ट घुंघटु धर्यंू च चुफला म
पंडजि कु चु∂फा, ब्योलकि धोति, ब्योलिकΣ आंसू लापŸाा।
पटवरिकΣहैल्पर टल्लि हुयांछन पुलिस कि पावर मिलि ग्याया
चौकि कु द्वरू पर टकटक डण्डा अर पट्वरी जी लापŸाा।
सुबेर बिटीन गुरुजी-गुरुजी चरण पुजोणा छन जौंका
ब्यखुनी गुरुजी सड़कि म टुटगा अर इज्जत को लापŸाा
कम्प्यूटर को युग यै ग्याग, अल्टन्न्ासाउण्ड जगा-जगा
हर साल पैदा होण छैं नौंना, अर नौन्यूं का लापŸाा।
अब बि चितल़ा ∫वे जाव सूणा इज्जत कैरा नौन्यंू की
धरती र्वेली खून का आंसू अर मनख्यूं का लापŸाा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आंदोलनकारी राजधानी मा
 ललित केशवान


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∫य भै कन झकमरै ∫वेया, हमारी राजधानी मा।
दभै अब क्वी बि नी सुणण्यां, हमारी राजधानी मा।।
हमूं तैं रात प्वड़ि ग्याई , वूंकि राति अपणी छन।
अज्यंू तैं रात नि खूले, हमारी राजधानी मा।।
∫य रां क्वी घाम लग गेने, इने बल घाम लगणा छन
अज्यूं तैं घाम नी आए, हमारी राजधानी मा
ज्यों पर छै नजर सबकी,अब वी लोग ब्वन्ना छन।।
झणि कैकी नजर लगगे, हम पर राजधानी मा।
छ्वट-छवट् डाम धारी बड़-बड़ा डाम बणना छन।।
छिः भै कना डाम प्वड़ना छन हम पर राजधानी मा।
हमारी खैरि सूणी की,वंू बी खैरि ऐ ग्याई।।
अब त खैर नी कैकी , हमारी राजधानी मा।
हमूं तैं दाड़ि किटनी ज्योंन, वंूकि दाड़ नी खूली।।
खुल जांदी त हडगी बी नि मिल्दी राजधानी मा।
वु पेटम कुछ बि नी रखदा, वु हैंकाअ पेट जब्कौंदन।
यू जब्का जब्कयों म प्वड़ने ,धब्का राजधानी मा।।
हमन द्वी आ°खा झपकैने, वूनं एकी झपकाये।
यू झप्का झपक्यों म, झप्वडे़ग्यां हम राजधानी मा।।
मनखि मनस्वाग ह्वै गैने, यु सूणी वो बिफिर गैनंे।
वु हमक्वी बाघ बण गेने ,हमारी राजधानी मा।।

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लापता
 महेन्द्र ध्यानी

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लापŸाा भई लापŸाा, लापŸाा ∫वेना बापŸा
लापŸाा भई लापŸाा, उŸाराखण्ड मा लापŸाा।
हत्यूं म डण्डा-झण्डा लेक अहा! भला क्या दिन छया
राज कना हम तमसगेर अर ÿांतिकार्याें को लापŸाा।
कर्यूं छ अनशन म्वरण तलक, टैण्ट लग्यां छन तैसील म
भैर ब्वना छैं जिन्दाबाद, भितर नेतजि लापŸाा।
पुंगड़ी पटली देकि अपणी, बणै प्राइमरी गांव की
रोज बजाणा घण्टी बच्चा अर मास्टर जी लापŸाा।
येकु उल्टू दुपरी बिल्ंिडग इण्टर कालेज की द्याख
मास्टर उंगणा छन कुर्सी म स्क्वल्यूं का लापŸाा।
ग्वतरा़चार मा ब्योली ब्योला हाथ मिलाणा आंखी बि
क्वलिणा तरफां कुतगिन पंडजी पांच मिण्ट खुणि लापŸाा।
करˇी स्यून्द टाई पैण्ट घुंघटु धर्यंू च चुफला म
पंडजि कु चु∂फा, ब्योलकि धोति, ब्योलिकΣ आंसू लापŸाा।
पटवरिकΣहैल्पर टल्लि हुयांछन पुलिस कि पावर मिलि ग्याया
चौकि कु द्वरू पर टकटक डण्डा अर पट्वरी जी लापŸाा।
सुबेर बिटीन गुरुजी-गुरुजी चरण पुजोणा छन जौंका
ब्यखुनी गुरुजी सड़कि म टुटगा अर इज्जत को लापŸाा
कम्प्यूटर को युग यै ग्याग, अल्टन्न्ासाउण्ड जगा-जगा
हर साल पैदा होण छैं नौंना, अर नौन्यूं का लापŸाा।
अब बि चितल़ा ∫वे जाव सूणा इज्जत कैरा नौन्यंू की
धरती र्वेली खून का आंसू अर मनख्यूं का लापŸाा।

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पहाड़ैΣ खातिर
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शूरवीर सिंह रावत





पहाड़Σ खातिर ईमानदार हो न हो
पर चरित्र सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
पहाड़ी नांगा-तिसाला भूखा मरू त मरू
पर बथौं-पाणी सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
चण्ट हो, चालाक हो, करमठ हो, चुप्पा हो
पर, नौकर सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
पहाड़ैΣ पिड़ा पहाड़ाΣ गीत भला लगु न लगु
पर संगीत सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
जंगल-बगीचा सलाΣ-साल हांेणा छन उजाड़
पर, फल-फूल सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
डोखरा-पुंगड़ा बेचि कॉलोनी बसौणा छन
पर, मौˇ्यार हर्यालि सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
पहाडै़Σ नौकरी, ठेकेदारी, व्यापार सब्बि ठीक छ
पर, तरास क्वी नि चान्दा पहाड़ जनो।
चोरी, घूस, बेमानी को मलाल जरूर छ
पर, रूप्यों कु ढेर सब्बि चान्दा पहाड़ जनो।
ठीक छ पहाड़ैΣ हर्यालि, बसन्त, बथौं-पाणि
पर, जीवन क्वी नि चान्दा पहाड़ जनो।


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ऐड़ाट
 हरीश जुयाल ‘कुटज’’



अपुड़ि थुथरी फर किलै लीसू लगाणी छै तू
डुंडि-डुंडि हुईं छै क्यो नि बच्याणी छै तू।
प्यार कू अट्टा बणी जब कभी त्वैफर चिबटू
मिथै चट चूंडिकि च्या° उंदु चुटाणी रै तू।
जब बि भैंसा जन आ°खों ल द्यखिदि बर्र बौड़िकि
यन लगद, कि मिथै पींडू सि बुखाणी छै तू।
वार बिटै छ्वाड़ तलक पचकयीं ट्यूब छौं मी
दाढ़ि कीटिकी मिथै क्यों फुच्चΣकराणी छै तू।
पींडा का तौला खवैं, बैलि बणिगे हमखुणै
अर वूंकु कलच्वणि देखिकि सर्र पनाणी छै तू।
म्यारा त आ°खा बुज्या° अर तु कनी मालिश
अब पता चल कि मीफर खौडु़ सराणी रै तू।
जुंवां बणिकै तेरि जुल∂यों मा ख्यन्नू ह्वल्ली ‘जुयाल’
चट्ट पखिड़िकि खट्ट नंग मा मार जाणी छै तू।

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कुटज भारती कि द्वी ग़ज़ल



(1)

नै-नै नौन्याˇ कब सुत्याला अपणा गौंथई
कब नयां सपूत ब्वे बणाला अपणा गौ थई।
लग्यूं छौ मि सार डांडा-काठा ह्वाˇा रौतेला
फूल-फल-बग्वान कब सजाला अपणा गौंथई।
जख रैंदो, खन्दो, कमांदौं, छवा तुम जखम दिदा
मिरग-चांठ जन सभी खुज्याला अपणा गाैंथई।
बुगालु को भगीरथ विकास गंगा गौं गौ≈
को भंडारी गंगा मा नवाला अपणा गौंथई।

(2)

डा°डा-का°ठा छोड़ तीरा गौं जमाणा रैं सदान
भूख-तीस-ना°ग सैकी दिन बिताणा रैं सदान।
टक लगै की अबकी दौ वैदा निभाणीन हमुन
सीधा-सादा लोगू थैं फुन्द्या बखाणा रै सदान।
अप्फु खा°दी पंचतारा होटलम मुर्गा-मटन
हम थईं चुप कना कू गु°ठा चुसाणा रैं सदान।
झगड़ामान मुंड निखोˇी-छ्वाड़ जैकी डुकरदीं
हमर बीचम बनबनी गिन्दी रˇाणा रैं सदान।
एक-एक गप्फा मिलैकी भ्वरेगे ≈°को भितर
लोग अपड़ी छा°छ थै मुल्कम रिंगाणा रैं सदान।
जगरी सृष्टा-वेद कू, बक्या बण्या° ब्रहमा जख
मोˇ मादेव थैं धुपणी सुगांणा रै सदान।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मधुसूधन थपलियाल कि द्वी ग़ज़ल


हर्बि-हर्बि

तेरो रूप हेरणु छ, पराण हर्बि-हर्बि
एक नजर त् देख, मी पछ्यांण हर्बि-हर्बि।
जाण कि छं्वी न लगौ अयंू छौं मुश्किल से
आज छौं पर भौˇ मिन नि आण हर्बि-हर्बि।
कुछ न कुछ फुके छ तेरी जिकुड़ी की भौण
प्रीति का सवाद की चिलखाण हर्बि-हर्बि।
जणदु छौं मी माया कु कौथीग वीरिगे
भली नी छ मन मा या घिमसाण हर्बि-हर्बि।
आंख्यंू-आंख्यूं सानि नी छ इतगा बगत
तु बाच गाड मिन त् धै लगाण हर्बि-हर्बि।
सौण की कुएड़िम मेरी आंखी बरखली
रूंदा-रूंदीΣ त् बुथ्याण हर्बि-हर्बि।

जागर

मौत को जागर लग्यूं छ आज ब्याˇी
जिन्दगी ह्वैग्यायी दगड्या डौंर-थाˇी।
आग चुल्लों नांघी की कोठार पौंछी
पाणी धैरी की नजीकु छिल्ला बाˇी।
तीस माणी, भूख पाथी, सात जीवन
पुगंड़ी-पटˇी सेरा-सारी पांच नाˇी।
बाघ का जजमान बणगिन घ्वीड़-काखड़
मनख्या-मनखि चैरिगे सैरी हर्याˇी।
धगुला देखी रौंस नी खै कागजू मां
दस्तगत तू असली छन पर हाथ जाˇी।
बोग्दु पाणी हेरी की निरसे न गैल्या
तेरी गंगा होली त् त्वैमा ही आली।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रीतम अपछ्याण कि द्वी ग़ज़ल


हिमालैहरीं रा≈ सार, खार्यूं नाज दे होहिमालै मुंडौं मा, स्वाणू ताज दे हो।चल्दा गोठों धु°वा धूनी जागदी रौघ्यू दै बा°टू ग≈° मा, रिवाज दे हो।तरूणों की सौंजड़्या, बाˇों कि ब्वेसुबाक सबूं मयेˇ्ा, मिजाज दे हो।औंदरों को मान हो, जा°दों कि सेवाडा°डा का°ठों मनख्यˇी, समाज दे हो।परदेसूं का बाटा बूजी, खुद मिटैईगौळा मा बडूˇि, खुट पराज दे हो।घणा बण, पाणी का सोतर ठंडि हवाखौˇा, मेˇों, नथुल्यों बिराज दे हो।घाम बर्खा, जून को दगड़ो समौ परधवोड़्या देबतौं पठै, अवाज दे हो।लैंदु हो बाˇों कु, घर निरोगि कायानिपूतों कू आस, अर औलाद दे हो।ब्यखुनि बगतसार क्यार छैल छपी का°ठा रयूं घामधार पोर जा°दा सुर्ज सांझ को परणाम।गौड़ि बखरि बˇ्द लग्यां ग्वरबाटों कि पा°तघोलूं लौटी आ°दा पंछी दिनभर निफराम।खर्क छानि धु°आ लगे थोरि बाछि बुर्कणीसेˇो समौ सर्कि बथौं ब्यखूनि कू घाम।मंदिरूं मा बाजो शंख थानूं जगे दिवादेबतौं की धुया°ˇ ढोल दमौ देवस्थान।चुलौं चढ़े दाˇ काΣ भड्डु परेसरखेल्यूं थक्यां नौना अैगे चौक का दांदाम्।क्वठड़्यों बैठीगे दाना संध्या कि पूजाभग्ति का निर्लेप छोया ईष्ट को माथाम।रौल्युं बटे पसरिणी चा झुप झुप रातइगास की जोन देंद उज्याˇा को दान।अबि त रयीं छैंछ देबो गौं कि सज धजब्यखुनी की संध्या रुम्क हिया बसे ग्राम।

 

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