Author Topic: Poem Written on various issues of Uttarakhand- उत्तराखंड पर ये कविताये  (Read 15525 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing some Exclusives poems written by various Poet of Uttarakhand on different public issues and on natural beauty of Uttarakhand.

We have taken these poem from various Uttarakhandi magazine and some people have also forward us to post these poem for public here.

We are sure you would like these poem.

Regards,

M S Mehta

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First Poem  - From Chitti Partri Magazine published from Dehradun

तिड़का - By Abodh Bandhu Bahuguna
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चाहे हम कुछ भी नि छा° छैं च हमारी जात
घ्यू खै छौ म्यरा बाबुन, सू°घा मेरा हाथ ।1।
बाबू च कठबाबु अर ब्वे जैकी मौस्याण
मु°डˇि उठाई नी च की उल्टा खैड़े खाण ।2।
भरै बिज्यू° सूणे जब द्वरचूˇा की बाच
ब्वलणी रै हो जनु भया! बचणै आशा क्या च !।3।
कख ल्हैगे तू मी सणी जख नी मनखी पूत
अपण्वै छैल बणी गए अफुकू ज्यू°दो भूत।4।

बैर्यों सणि भि अंग्यौंदन महापुर्ष जनु मित्र
बर्खा होन्द त खणदरा घुसदन खा°ण्या° भित्र ।5।
ऐबू की छन बुज्यड़ि जो हिटदन मु°जम°ुजि चाल
हैंकाअ दिंदन सवाल पर, अपणा नि द्यखदी हाल।6।
उच्चा ध्यौ मनख्याˇि का शासक बिसरी जा°द
लोग सोचदन वे सणी दया किलै नी आ°द! । 7।
कविता जज की जिकुड़ि मा कवि-विचार मा तर्क
कभी नि होयो आज तैं औंकै समझा फर्क । 8।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पोरू का साल/ये बसग्याˇ
आजै ब्याˇि,
रकर्याणी छै
ऽरा°! द कीडू़ की ब्वै।
भूख अर ना°ग/मˇसा कि मा°ग
काˇी कुयेड़ी/तींदी गतूड़ी/भिजीं रूझीं
कुछ बरखल/कुछ आ°सुल
आ°दि छै फजलै ब्यखुनि
ऽरा°! द कीड़ु की ब्वे।
धुरप्वˇी-पंद्यरि-पा°ड/क्वलणौ छ्वाया
उबर कमˇौ कŸार/पट तिखंडा भितर
यखुल्या यखुलि/बयाणी रैंदि छै
ऽरा°! द कीडु की ब्वै
डोर्यों कि झिंजकी/भा°डौं का खपटण
ढिकीण डिसाण अ°दड़ा/द्वी चार झुल्लौं कि ल्वतगी
अर भितर फु°ड/बक्कि बातै/हडगौं कि थुपड़ि
ऽरा°! द किडु कि ब्वै

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कीडु कि ब्वै
  कन्हैया लाल डंडरियाल 

पोरू का साल/ये बसग्याˇ
आजै ब्याˇि,
रकर्याणी छै
ऽरा°! द कीडू़ की ब्वै।
भूख अर ना°ग/मˇसा कि मा°ग
काˇी कुयेड़ी/तींदी गतूड़ी/भिजीं रूझीं
कुछ बरखल/कुछ आ°सुल
आ°दि छै फजलै ब्यखुनि
ऽरा°! द कीड़ु की ब्वे।
धुरप्वˇी-पंद्यरि-पा°ड/क्वलणौ छ्वाया
उबर कमˇौ कŸार/पट तिखंडा भितर
यखुल्या यखुलि/बयाणी रैंदि छै
ऽरा°! द कीडु की ब्वै
डोर्यों कि झिंजकी/भा°डौं का खपटण
ढिकीण डिसाण अ°दड़ा/द्वी चार झुल्लौं कि ल्वतगी
अर भितर फु°ड/बक्कि बातै/हडगौं कि थुपड़ि
ऽरा°! द किडु कि ब्वै

उनि झैड़/ उनि तींदो खैड़
चस्स ऐड़ो/टुट्य°ू दैड़ो
एक कूणी पर/जड्डल खुकटाणी
रूणी रैंदि छै/
ऽरा°! द कीडु कि ब्वै।
पोस्ट मैन भैजिम्/यकनात कै चलि जा°दि छै
आ°दा जा°दौ मु पुछदि छै
ऽरा°! द कबि म्यारू बि
ब्वारि ल्हेकि/खुचलि पर एकाध
इनि गैणा-गा°ठा-गठ्या°णी छै
ऽरा°! द कीडु कि ब्वे।
दिल्ली का बीच/कीड़ू बड़ो आदिम चा
ब्वारि बि चीज प्वड़ी च/ निपल्टु समझा
लोक ब्वदीं/ मिल बि सूण
गगˇा°दि बाच/कीडू.... कीडू....
धै लगा°द/वै ख°द्वार
बिचरि भलि अदमेण छै
ऽरा°! द कीड़ु कि ब्वै।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bwe Kee Chitti
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ब्यटा दयाल, कृपाल
जब से तुम परदेश गया°,
तुमन इख को बाटो नी सुत्याˇो,
कथा निर्दे हुया° तुम!
जैं ब्वेका तुमन संसधरा पेछा,
जैं ब्वेना तुम नांग, भूख सैकी
अपणी छाती पर चिपकैकी रखी छा,
जैं ब्वेना ज्यू मारी की,
लाड़ प्यार से पाˇीपोशी की
अपणो मन बुथ्याई छयो-
कि म्यारा गुरबर-गरबर
बच्या° राला, गोरू चरैकी भी-
गुजर बसर कारला।
पर तुम गोरू चरौण्या° न रैकी-
मनिखी चरौण्या° ५ैग्या°
या° की मी तैं भारी खुशी छैः
अपणी कोख मिन धन्य समझी छैः
पर ब्यटा आज मेरा होणा छन कुहाल,
टक्क लगैकी सूंण्ल्या
ब्यटा दयाल-कृपाल।

Written by : Sudama Prasad Diwedi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem Composed by Veena Pani Joshi

दादी न हाथ पर उठै
बटन दबैने
पुटग-पुटग
अलासि-मलासि
हे राम .......
न सान न बाच ?
सिहे दादि ! जरा दे धौं !
अपणु सैल फोनपि
सिबुबा ! यु त टुणपुट्ट ∫वेगि
न सान न बाचपि
सिदादी प्रीपेड कार्ड
चैंद ये तैंपि
बुबा मैमू त
बस रासन कार्ड छपि
सिन दादि रूप्या खतम ∫वे गैने
सिम कार्ड चैंद सिम कार्डपि
तबर्यू° सौणु ऐगि
सिदादी रिलांयस छ न ?
सिरिम कार्ड चैंद रिमकार्डपि
लौदों रुप्या दे
रिम कार्ड लगै
फोन पर उज्यˇु
सान बाच लौटिगि
सिहैलो हैलोपि हैलू
दादी बोन्नु छौं, खूब छै बुबा ?
बुबा यु तो रुपया घुˇद
तब बच्या°द।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem By : Naveen Dimri "Bada'

Mee Dekhi Kwe Darun
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न मिन कबि क्वी ढ°ुग्याई
न मिन कबि क्वी लठ्याई
त् मीं देखी, क्वी किलै डरू!
न मेरू गिच्चू बड़ू
न मेरा हाथ लम्बा
न मि गुंडा, न बदमाश
त् मीं देखी क्वी किलै डरु!
न मिन कैकी गौड़ी पिंजाई
न क्वनकू मांडी
न कैकु वोडु सराई
न दर्वल्या अर न भ°गुल्या
त् मीं देखी, क्वी किलै डरू!
न डरौण्या-मेरू ‘पद’
न शरीरम् इथगा दम
अर न लोगंू थैं डरौण लैख रुप्या छन मैंमु
त् मी देखी, क्वी किलै डरु!
जौं लोगू° मु लोग°ू थैं डरौण लैख चीज छन
अर जौं देखी लोग डरदा छन
आज वू° थैं ही
मुण्ड अर कमर कराल़ू करि लोग
नमस्कार भि करदन
जैकी क्वी डर ही नी-
वे थैं पूछदू भी को ?
कैकु सुदी नी बोल्यू°-
काˇ देखी बल कर्ता भी डरदु।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem by : Gokulnand Kimoth 'Grameen;

"Kuchch Din Paili Dekhi"
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कुछ दिन पैली देखी एक कौतिग,
नहेरू स्टेडियम की छोटी पा∫िड़यों पर पा∫िड़यों को,
ढोल दमौ, गीत प्रीत, मिठै सिठै,
सब्बि,सुणी, करी, चाखी छै,
पर ५ैगी छै, बिसर्या जमाना की बात,
याद छा त नार्थ ब्लाक अर
गुलाबीबाग को बस स्टैंड,
यस सर अर यूवर्स फेथ्फुल्ली का बीच,
पहाड़ी कख हरची,
मेरा छैल तै बि पता नि लगी
कखी अन्ज्वाल ;डंडरियालद्ध पढ़ी
जग्वाल ;पारूद्ध देखी
अहरर्््ग्रामेश्वर ;धस्मानाद्ध करी
पर बिज्ल्वाण नि मिली-
कौतिग मा मिन देखी
बिकट दन्दालो
बरसों कि बिस्मृती को घास
स्यू जल्ड़ो भैर आये
तब देखणी पाअड
अफू से भैर आइक मिन देखी त हकाणै ग्यो मि,
येकुला चणा अर भड्भूजा का भाड़ कि कथा
अबारे हि सच होणी थै
पहाड़ त सब दिल्ली ऐगें फिर में यकुल वापस,
तबारे धरे कैन मेरा कान्ध ऐंच हाथ,
यु मैं हि थौं अप्पू सान्स अ∂वी बधौंणू
पाड़ त फैल जालो दुनिया मा
पाअड़ मा रै नि रै पर जुड़ियु रै रे जल्ड़ो से
मी आज भी जुड्यू° छौं पहाड़ से अपणा पहाड़ से।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem by : Shiv Raj Singh Rawat "Nisang"

Danu Shareel
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हाथ का°पद गात का°पद
छन का°पणी काया तेरी,
बोलि-बोलीक जिबड़ि का°पदि
फिर भी नि छुटदि माया तेरी।
माया कू बोदगू उठैकिन
कुबड़ि ५ेगिन कमरि तेरी,
लोथगु तेरी ढीलु पड़िग्ये
रगर्याट करदिन मुण्डˇि तेरी।
लाठि टेकिक ढोकरू ५ेगिन
पिलसि गैनी चौकि तेरी,
फिर भी लग्यू° छन देखा बाटा
जाणि क्या छन मन मां तेरी।
कोरि-कोरिकि खा°दि जिकुड़ी
याद जब ज्वानी कि आ°दी,
चखˇ-पखˇ खूब देखी
नि दिखेंदि अब क्वे आ°दि जा°दी।
ओबरि का ठुला कोणा बुढ़या
जब लुड़थुड़या ५े ढˇकि जा°द,
खा°स-खा°सिक् टुपक्या पड़दू
पर छोड़दु नी हुक्का कि जानΣ।
धरति का गण्नू च गैणा
पर डींग हा°कद लम्बि-चौड़ी,
ख्वालत छुटिग्ये लाठि तेरी
डांग पर फुटिग्ये कपाˇी,
हकाण्यू° सी बुढ़या पोड़ी
हे विधाता! सा°स भी द्वारू नि बोड़ी।

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Basant
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By : Dr Nand Kishore Daudiyal 'Arun'

बनΣम बागम ताल-तड़ागम घाटुम बाटुम आयु बसंत।
गा°व गल़ी अर धूपम-कूपम् रूप अनूपम् छायु बसंत।।
पात-प्रभातम् फूलम् कूलम् धूˇम नै रस लायु बसंत।
आयु कन्, अर छायु कनू, रस लायु कनु, मन भायु बसंत।।
मौˇिगि डाˇि खिली गिन फूल, ह°सी गिन भौंरि सुहांदु बसंत।
लायु नयू उत्साह उमंग, बनि बनि रंगुम आ°दु बसंत।।
कौथिग-ढोल-दमा≈° बजीं, थकुली-चखुली संग गांदु बसंत।
आयि गै, छायि गै, गायि गै, गीत सि पोतˇि़ सू फफरांदु बसंत।।
आयु नयु त्यौहार सुहाणु सि फूल कि कंडि तैं हाथ मा लैकि।
गा°दु च गीत अनौखु बसंत कई रस भूड़ि- पकोड़ि सि खैकि।।
फूल भला संग्राद भली, अर होरिक रंग मुख लपटैकी।।
नाचदु आयि गै रूप बसंत स्वरूप सुहाणुसि जी भरमैकी।।
होरि च होरि च रंग बिरंगि रे आज सभी मिलि ख्यालदि होरी,
गीत लगावदि ढोल-बजावदि, लालि सुणावादि गा°वकि छोरी।
रंग बिरंगी स्वाणि गल्वड़ी कनि पैलि छइ आह, रूप किशोरी।।
भीगि गै अंग, रंगी नया रंग, बसंत क संग म गा°व कि गोरी।।
आयु बसंत खिली गिनि डाˇि, कखी हरियाˇि भी गीत लगांदा।
फूलिगीं साकिनि और बुरांस कि डाˇी कनि यख जी उमगांदा।।
मेˇु फुलिं झकझौर बणि अर पैंΠया सि लैΠया भि झूमि की आंदा।
आह, कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।
∂योंˇि क फूल त कंुजु फूल्यां, जख पिंगˇि पोतˇि भी फफरांदा।
भौंर्यूं क गीत कन उमरैल छीं याखुलि मानखी खुद लगांदा।।
आमु कि डाल्यू° मा कोयल गांद ता काफूकि बौलिम जी रर्क्यांदा।
आहा कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।

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Poet - Dhan Singh Rana

Title - Chaudi Sadak
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गौं पहाड़ो को अन्त एगे- सड़क तभी चौड़ी ५ेगे
खून पसीना बगाई- नौना लिखाई पढ़ाई
नौकरी लगाई अधिकारी बणाई- सबी तखी बसी ग्याई
आज सभी परदेश रेगे- सड़क तभी ...............
कैन रोजगारो कारण छोड़ी- क्वे भूखो भाजा आयी नी बौड़ी
चीज वस्तु से नाता तोड़ी- सैंतण कैन बाछी गौड़ी
हालत ही आज यना ऐगे-सड़क तभी...............
धारा मंगरा सरकारी ५ेग्या-घाट समसान अब नी रैग्या
पुंगड़ा अधिग्रहण ५ेग्या- कूड़ो पर बुलडोजर लैग्या
गौ पहाड़ो से सब बौगीगे-सड़क तभी.............
जागर झुमेला मशीन लगोण्या-बलास्ट बाजा भांेकरा बजोण्या
देशी परदेश्यो को कुम्भ कैदार-कुल अपणों बगवाˇ नचोण्या।
ऐगे सची कलजुग ऐगे-सड़क तभी ..............
डांड्यांे कांठ्यांे मा ∫यूं नी रैन- तोभी योन सुरंग बणेन
मन्त्री सन्त्री कमीसन खैगे- सड़क................
क्वेत कखी ख्याल कारा- सभी यना बोग नी मारा
बिजुली पैदा होली कने - गाड त सूखीगी सारा
यो पूछण को वक्त ऐगे सड़क किलै चौड़ी ∫वेगे
नीती नीरधारको पर करा नी आस- योन ही त करी विनाश
जमीन योन देखी नी कभी- होटलों मा खै दारू मास
खड़ उठा अब वक्त एगे- सड़क .............
मा° का लालो खड़ा ५ावा धरती की लाज बचावा
विनाश तैं दूर भगावा अपूणू भाग्य खुद बणावा
पूछण को वक्त ऐगे- सड़क किलै चौड़ी ५ैग।

 

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