Author Topic: Poems & Article by Dr Anil Karki- डॉ.अनिल कार्की के लेख और कवितायें  (Read 9011 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"मैं लिम्बु हूँ (नेपाल की एक आदिवासी कौम ) पर मुझे लिम्बू राज्य नहीं चाहिए !"
यह पोस्टर पकड़े यह साथी आज नेपाल के ताजा हालातों की मिसाल है ..नेपाल में जाति आधारित राज्य बनाने के लिए उकसाने वाले साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ यह आदिवासी समुदाय आगे आया है ..हालिया घटना में सुन रहा हूँ कि कैलाली में बड़ा बलवा हुआ है जिसमें एक ढेड़ साल बच्चा भी मारा गया है दुखद यह है कि पिछले तीन चार दिन से पच्छिम नेपाल के साथी लगातर इस घटना की दहला देने वाली तस्वीरें अपलोड कर रहे हैं नेपाल की प्रगतिशील शक्तियों को थुक्का फजीहत भेजता हूँ और जिन्होंने लाखों आम मजदूरों व किसानों के बलिदान की मिट्टी पलीत कर दी है ... ऐसे समय में लगातार उम्मीद के रास्ते और कठिन होते जा रहे है और घुटन फैलती जा रही है मैं इस ना उम्मीदी के दौर में एक बार लिम्बू समुदाय को हूल जोहर करता हूँ कि एक तरफ २१ वीं सदी का 22 वें साल का भारतीय युवा आरक्षण की मांग कर रहा है और दूसरे ओर संक्रमण के दौर से गुजर रहा अत्यधिक पिछड़ा वर्ग कहता है मुझे लिम्बु राज्य नहीं नेपाल चाहिए ! यह वह वर्ग है जिसके लड़ाके सैनिक भारत की सेना और फिरंगियों की सेना में अपना जीवन खटा देते हैं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जनकवि गिर्दा के इजरायल एम्बेसी और यशबैंक द्वारा मरणोपरांत लाइव टाइम अवार्ड देने पर ।
अपना पक्ष -3 देवन मेवाड़ी सर

कौतिक देखुला हिट

हिट भुला कौतिक, कौतिक देखुला हिट
धानचुली कौतिक, कौतिक देखुला हिट
ठुल-ठुल लेखक, गिट-पिट ब्वलाला हिट
कैमरा ले चमकाला, कौतिक देखुला हिट
टी वी का चैनल, खबर चलाला हिट
हिट भुला कौतिक, कौतिक देखुला हिट
हैरीटेज वाक बाट-बाटै करुला,
संग- संगियों साथ हिमालै देखूला,
तंदुरी चिकन, बिरयानि होली फिट
पीत्जा और बर्गर, घुटुक ले होली हिट
हिट भुला कौतिक, कौतिक देखुला हिट
धानचुली कौतिक, कौतिक देखुला हिट
नैं झ्वाड़ा-चांचरी, म्यूजिक सुनुला हिट
कुमाऊं कल्चर, कल्चर देख्रीलो हिट
हिट भुला कौतिक, कौतिक देखुला हिट
धानचुली कौतिक, कौतिक देखुला हिट ....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki
October 24 at 8:58am · Edited ·

ओ गिर्दा !कहाँ हो?
आज खुश तो बहुत हुए होगे तुम !
लाइफ टाइम अचीवमेंट दे रहे है बल तुम्हें इजराइल और यश बैंक के लोग।
"न्योली चांचरी झवाड़ा छपेली बेच्या मेरा
बेचि खा अरड़ पानी ठण्डी बयार"
तुम्हीं कहते थे ना ये सब , देखो अब तुम भी बिक रहे हो गिर्दा । बधाई ठैरी तुमको भौत भौत । अब तुम भी बहुत सरल बीड़ीबाज फसकिया बुजुर्ग की जगह ग्रेजुएट साहित्यकार हो गए हो तुम्हारी ही एक कविता फेशबुक में लगा रहा रिसाओगे तो नहीं ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki आज तक हर समय में बुद्धजीवियों और समाज के शिक्षकों ने कट्टरता के खीलाफ बोला है ।
जिन लोगों को इतिहास की समझ नहीं वो इस बात को नहीं जानते कि कई बार राजा सुधरे भी है । एक बार भक्तिकाल और उससे इतर इंदिरा के शासन काल की घटनाएं ही पढ़ लीजिये समझ आ जायेगा कि विरोध क्यों होते है और कैसे होते है । विश्व साहित्य तो खैर छोड़िए भारतीय साहित्य ही काफी है । नागार्जुन की खुली कविताएँ इंद्रागांधी पर व्यक्तिगत आक्षेप करती हुयी आज पढ़ी जा सकती है ।
"इंदु जी इंदु जी क्या हुआ आपको
सत्ता की चाह में बेच गयी बाप को"
इंदिरागांधी ने कभी नागार्जुन की हत्या नहीं की न उसके चेलों ने !
यहां तक की कबीर ती मुस्लिम शासकों के दौर में लिख रहे थे वो भी खुला इस्लाम के खीलाफ थे। कुंम्भन दास को जब सीकरी बुलाया गया तो उन्होंने कहा ।
सन्तन को सीकरी सो कि काम
आवत जात पहिन्या टूटी बिस्र ग्यो हरि नाम । राजा ने या राजा के भक्तों ने कुंभन दास या कबीर कीहत्या तो नहीं की।
हजारों उदाहरण भरे पढ़े है । धूमिल है ।पास है। बंग्ला के सैकड़ों कवि है सदैव से अन्याय और शोषण के खीलाफ लिखने वाले लोग है आपात काल से हिंदी कविता में समकालीन कविता के स्वर निकले थे (यदि आपको साहित्य आंदोलन पता है तो) बोथोविन ने तो हिटलर को संगीत सुनाने से मना कर दिया था हिटलर ने तो बोथोविन की हत्या नहीं की। हजारों उदाहरण है। सारे सचेत लोग जो मनुष्यता के पक्ष में है इन्होंने जातियों और धर्मों से ऊपर उठ के राजनीती से ऊपर उठ के सोचा है स्वयं आईस्टाइन ने भी अपने लेख 'समाजवाद ही क्यों?'लिखकर हिटलर के विरुद्ध अपनी बात रखी। क् गए है । खैर फ़िलहाल गोरख की यह कविता चौरासी के सिक्ख दंगों पर है
जिसमें साफ़ साफ़ हाथ चुनाव चिन्ह पर आक्षेप है ।
ये जो मुल्क पे कहर सा बरपा है ,
ये जों शहर पे आग सा बरपा है
बोलो यह पंजा किसका है ,
यह खूनी पंजा किसका है ।
पेट्रोल छिड़कता जिस्मों पर ,
हर जिस्म से लपटें उठवाता ।
हर ओर मचाता कत्ले-आम ,
आंसू और खून में लहराता।
पगड़ी उतरता हम सबकी,
बूढ़ों का सहारा छिनवाता ,
सिंदूर पोंछता बहुओं का,
बच्चों का खिलौना लुटवाता।
बोलो यह पंजा किसका है
यह खूनी पंजा किसका है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki
October 30 at 9:19pm · Edited ·
केशव तिवारी (केशवदा) की एक कविता आप सभी साथियों के लिए।
वे जो लम्बी यत्राओं से थक के चूर हैं
उनसे कहो कि सो जाएं और सपने देखें।
वे जो अभी निकलने का
मनसूबा बाँध रहे हैं
उनसे कहो कि तुरन्त निकल जाएँ
वे जो बंजर भूमि को उपजाऊ बना रहे हैं
उनसे कहो कि खुरदुरी हथेलियाँ छुपाएँ न
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में कुछ भी नहीं।
वे जो कारखानों में कार्यरत है
उनसे कहो कि निरास न हों
इस दुनिया में जो कुछ भी अच्छा बचा है
सब उनकी बदौलत है
वे जो इस धरती पर कहीं भी
अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं
उनसे कहो कि
फन्दे सिर्फ उनका ही गला नहीं पहचानते
वे जो कवि हैं
कविता लिखते हैं
उनसे अभी और इसी दम कहो
कविता में ताप बचाएं रखें
वर्षों की जमीं बर्फ
इसी से पिघलेगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki

ए मेरे
हौंसिया मुलुक
खेत के हलिया
आँगन के हुड़किया
आँफर के ल्वार
गाड़ के मछलिया
ढोल के ढोलियार
होली के होलियार
रतैली की भौजी
फतोई के औजी
एहो
मेरेे सोकारो
खेतों के कामदारो
पहाड़ के देवदारो
हिमाल के दावेदारो
धिनाली के दुधघरो
अरे जागो तो रे इक्की बार ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अरे ओ
भुमियाल देप्ता
सीमेट लो अपने निशाण
और दो पैसे वाली
अपनी पीतल की घंटियां

उठा लो
शौकारों के चढ़ाए खिरीज
बांध लो पोटली
अपने आण-बाण-बयालों के साथ
जाओ भाग जाओ पहाड़ से.

नहीं तो तुम्हें बुरी तरह खदेड़ आयेंगे
तुम्हारे ही शौकार
घाट पार
धार पार

और उठा लायेंगे
आशाराम, शांतिकुंज, साईं
राम, हनुमान के सुन्दर फोटक
हर गली, हर चौराहे में खड़े कर देंगे
आलिशान मंदिर

बुरी तरह बेदख़ल कर दिए जाओगे
भ्यार के देप्ताओं के सामने
भुताषण गए पुरखो
क्या सह पाओगे
सदैव-सदैव के लिए मृत्य ??

(अनिल कार्की)
एक नई लिखी जा रही कविता का अंश

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki
59 mins ·
‪#‎नैनीसार‬
शासनकि बन्दूक
(बाबा नागर्जुन की कविता 'शासन की बन्दूक' का भावानुवाद )
ठाड़ी हैरे दबै भेर गौं वालनकि हूक
अगास है ठुलि है रे शासनकि बन्दूक
गोरिख्या राज गुमान में सबै थूको रे थूक
नस्स में काणि हैरे शासनकि बन्दूक ।
बड़ि गो लाटपन दस गुना यूकेडी ले मूक
धन्य धन्य हो धन्य हो शासनकि बन्दूक
सत्त ले घायल छू अहिंसा ले ग्ये चूक
जां-तां दगण लागि रे शासनकि बन्दूक
ईजमाटी बेचणा की हरु कैं लागि रे भूक
बाल न बांको कर सकलि शासनकि बन्दूक।।
------------अनिल कार्की

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By Dr Anil Karki

‪#‎नानिसार‬
बाबा नागार्जुन की कविता का कुमाऊनी भवानुवाद अनिल कार्की ।
पें मैं तुमर पत्त लगूण ही
घुमन्यूं
सार सार दिन
और सारि सारि रात
ऊनि वाल् बखतक
आजाद रणबांकुरों काँ छा रे तुम?
दबी कुचली मैसपन क तराणहारो
काँ छा रे तुम?
आ भुला मेरी सामणी
मैं तुमन कैं भुक्की दियूंल
मैं तुमरि भुक्की ल्यूंल
आओ रे
खेत क किसाण, अधिया कमूण वालो
आओ रे ज्वान-जमानो
आओ रे
खड़िया खान क ध्याड़ी मजूरों
आओ रे
सिडकुल
फैक्ट्री क कामगारों
कैम्पस और कालेज क लौंडो
न्य न्य कुशल मास्टरो।
होय पें
तुमरा भीतरत
तैयार हुन लागिरांन
उणी भखतक
लिबरेटर
पैक भड़ ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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‪#‎नैनीसार‬ पर परदेश के दलाल के नाम एक कविता
(कविता का मतलब हमेशा तालियों का बजना ही नहीं, हथियारों का उठना और दरातीयों का खनकना भी होता है)
हे महराज !
धन्य राजा
धन्य नर-नरायण
इन्द्र का इनरासन
आशन क्या प्रशासन
प्रशासन क्या शासन हुआ
तुम्हारा सिंहासन
नाच हुए जहाँ
किसम -किसम के
अमला-तुलबा लस्कर हुआ
जिले का कल्कटर
जमीन का अमीन
पट्टी का पट्वारी
गाँव के पंच-पधान
घाट के खबीश-मसाण
अतरिये चमचे जवान हुए
तुम्हारे भगत
तैंतीस कोटी
झोला छाप
मुरझाये फूल
मंगखदुए हाथ
खुली खाप वाले तुम सब
तुम्हारा रकत दुगलवा है रे।
तुम अपने ही लोगों के लिये
दरवाजों पर कुकरीबाघ
सिरहाने में साँप
और खिड़कियोें पर स्याव
की तरह दुबके हो
पालक के पत्ते सी तुम्हारी
चटवा जीब
जिन्दल, अण्डानी, अम्बानी टाटा के
पैताले साफ कर रही है।
रलकाये जबड़े तुम्हारे
ढ़ूढ़ रहे हैं हडि़क
तुम चील गिद्धों के दगडि़ये
तुम मैंसखात लोग
दूर देश से
आण-बाण
बाउंसर-फाउंसर
ले आये हो
हमारी धड़ पकड़ को
अरे सुन रे!
नियम के राजा
शक्ति के राजा
क्या तेरी ठसक
और क्या हमारी कसक रे
देखना तू भी।
जोबन के दिन चार होते हैं
और उछ्लियाट के आधे
हिमाल का बरफ
देवदार की डाल
गेंडे की खाल
कभी बूढ़ी नहीं होती
बड़ीयाठ की धार
नहीं होती कभी कुंद
देखना छटेगी
छटेगी ही धुन्द
खुलेगा अगास
खेल ले सरग पर हुच्या
बना रह स्याव
कहता रह
मंडुआ, झिंगोरा, गहत,
हूंकता रह
और बेचेते रह
ईजा-माटी
डाँडी- काँठी !
कह ही देना
उस जिन्दल से
आयेंगे जल्द ही
चीमड़ प्राणों वाले
होंसिया पहाड़ी
और उनके देश-परदेश गये
बच्चे
तेरे बाउंसर फाउंसरों को भगाने के लिये
धार के ढूंगें-पत्थर ही भौत है
पहाड़ पहाड़ है रे
केवल जमीन नी है
अमला-तुलबा लस्कर
पट्वारी और अमीन नी है
याद रख।
आँख खोल और देख
पंछी फैला रहे पाँख
दमुवे ताप रहे आँच
हिंया कि चिन्गारी से
उम्रें सुलगा रही हुक्का
घस्यारिनें ढू़ँढ रही
रस्सीयाँ और दरातियाँ
बच्चे गा रहे हैं गीत
जाड़ा जाने को है
और सरसों खिल रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जल्द फूटेगा
पहाड़ी कण्ठों से
ऋतुरैण
देखना रे
दलाल
बुरूँज के कोफे
जल्द खिलेंगे लाल।
----------------------------अनिल कार्की

 

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