Author Topic: Poems by Rajendra Singh Kunwar-युवा कवि राजेन्द्र सिह कुवर 'फरियादी' की कविताएं  (Read 8333 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' ये खेल निराला है
 
 टांग खिंच कर अपनों की,
 
 जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,
 
 दे कर धोखा अपने को ही
 
 करते चतुराई का उपयोग !
 
 खरीद पोख्त का मायावी,
 
 बढ रहा अब ये कारोबार,
 
 गाँव गरीवों से नोट चुराकर,
 
 करते खुल कर यहाँ व्यापर !
 
 देश धर्म से ऊपर उठ कर,
 
 खुद को कहते पालनहार,
 
 वोट मांगने दर पर पहुंचे,
 
 देखो इनको कितने लाचार !
 
 बन विजयी देखो इनको,
 
 लगते राणा के अवतार,
 
 लुट पाट में गजनी बन बैठे,
 
 भूल गए लोगों का उपकार !
 
 बड़े बड़े महारथी यहाँ,
 
 चोरी का तगमा पहने हैं,
 
 पूती है कालिख हर चहरे पर,
 
 अकेले अकेले ये सहमे है ! -!!!!! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 
 नोट: शव्द सारांश
 
 1. राणा - महाराणा प्रताप
 
 2. गजनी - मोहमद गजनी
 
 http://bikhareakshar.blogspot.in/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Photo height=89Timeline Photos आंसुओं का क्या है
 
 जब तन दुखी हो,
 जब मन ख़ुशी हो,
 निकल आते है ये,
 इन आंसुओं का क्या !
 
 रोकें भी तो कैंसे इनको,
 कोसें भी तो कैंसे इनको,
 
 बिन जुवान के बोलते देखो,
 हर भाव को तोलते देखो,
 तश्वीर ही बना लेते हैं,
 सुख दुःख को गौर से देखो !
 
 कारण जो भी हो आने का,
 संकेत उम्दा है दर्शाने का,
 जो न बदला कभी हवा से
 ये वो आंसू है अपना सब का ! ---- रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'मुझे खैरात में मिली ख़ुशी अच्छी नहीं लगती, मैं अपने ग़मों में भी रहता हूँ नवावों की तरह .............By: राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन किस्मत जग्गैली,

पहाड़ मा शैहरी देखिक,
नेअथ बिगड़ जांदी,
आपणो की सुध नि च,
बीराणों तै चांदी !  बीराणों तै चांदी !

हंसदा खेलदा घरबार
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पतवाडी,
शहर मा क्या पांदा !

माकन किरायाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों माँ धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !

जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन,
किस्मत जग्गैली,
चला पहाडू मेरा भाइयों,
मिन बाटु खुज्जाली ! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 फूल को तोड़ लेते
निर्जीव पत्थर को हम ,

देव मानते चले हैं अपना,

मुस्कराते फूल तोड़ कर,

रोज करते है एक गुनाह !..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 अगर मैं रूक गयी तो

सोचो मेरे बारे में भी,
मैं थकने लगी हूँ अब,
सदियों से चलते चलते,
अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !

तुमने अपने जीवन को,
सरल सहज बना लिया है,
मेरे हर कदम को,
अदृश्य सा बना दिया है !

मेरा नहीं तो कम से कम
अपना ख्याल कीजिये,
जो पौधे काट रहे हो,
उनको उगा भी दीजिये !

मेरा आँचल पौधे ही हैं,
मेरा जीवन है छाया,
लहर चले जब उसके तन की,
तब महके मेरी काया !

मैं महकूँ तो जग महकेगा,
मैं चलूँ तो जग मचलेगा,
मेरी लहर के हर पहलू में,
सब का जीवन चहकेगा .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : आज इन्सान अपने जीवन के लिए प्रकृति का हर प्रकार से दोहन कर रहा है, सब कुछ तो कृत्रिम बन रहा है .........लेकिन कभी इन्सान ने हवा और पानी के बारे में नहीं सोचा, जिन पर पूर्णरूप से जीवन निर्भर है, इस प्रस्थिति को देख कर आज हवा पर कुछ शव्द समिटे है आप सब मित्रों की प्रतिक्रिया मेरे इस शव्दों को आधार दे पायेगी 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 बापू तुम्हे आज पुकारते हैं

बापू तुम्हे आज वही पुकारते हैं,
हर चौरह पर तुम्हारे नाम से जो भागते हैं,
देते है वो दलील हिंद को बचाने की,
मगर तुम्हारे हर अंजाम को लांघते हैं !

खबर नहीं अपने क़दमों की उन्हें,
दुसरे के क़दमों को रोकते हैं,
तुम्हारी दी राह को कर अनदेखा,
गैरों की राह पर देश को झोकते हैं !

लुट कर अस्मत इस देश की
महल खुद के बनाते हैं,
कुर्सी हर हाल में हो उनकी,
बेटों को भी चुनाव लड़ते हैं !

गिद्ध सा झपटे हैं ये कुर्सी पर,
घोटालों का अम्बर लगते हैं,
ये कैंसी राह है अहिंसा की बापू,
तुम्हारे नाम पर देश को सताते हैं ! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' यखुली यखुली
 
 
 मन्खियों कु डिमडियाट नि
 पोथ्लोउन कु छिबडाट नि
 यखुली यखुली तुमारी खुद मा
 कन यु विचारू अंगण गुठीयार च
 धार खाल्यु मा डांडीयौं का बिच
 गाड गदरियों मा पन्देरी नि च
 पुंगडी उदास होईं सारियों बिच
 कख गै यु मन्खी खबर नि च
 दूध की अकाल होईं गौं खालु बजार
 दारू देख विक्नू यख बानी बानी की धार
 स्कुलु मा मास्टर निन पट्टियों मा पटवारी
 शहरु मा घुम्णी छन बौंणु की घस्यारी
 बकरोंल्यु  भी मगन होऊं च
 बखरों छोड़ी ठेका जायुं च
 हाथ की लाठी खोय्गी अब
 देखा बिचाराकु पवा थामियुं च ...........गीतकार -.राजेन्द्र सिंह कुँवर


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' कनु रूप धारियुं च युन्कू
 
 नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
 अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
 अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
 देखिक यूँ कुड्डीयौ तै !
 
 जौं मंखियों का खातिर,
 गौं मा मोटर आयी,
 बदलिगे मिजाज तौंकू,
 अपणों छोड़ी चली ग्याई !
 यूँ साग सग्वाड़ीयों तै
 कैं जुकड़ी बिट्टी ठुकरैगे,
 क्या उपजी होलू मतिमा तैउंकू,
 की निर्भागी रुसांगे !
 निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !
 निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !
 नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
 अपणी गौं की पुंगडीयौ तै !!
 अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
 देखिक यूँ कुड्डीयौ तै !
 
 गौं भिट्टी उक्ल्यी कु बाटू,
 गौं कु पंधेरों सी नातू
 जाणी कख ख्वैग्यायी,
 आपणों की बणायीं सगोड़ी टपरान्दी रैगे,
 धुर्प्ल्याकु द्वार टूटयूँ उर्ख्याली ख्वैगे !
 नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
 अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
 अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
 देखिक यूँ कुड्डीयौ तै ! - गीत – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
 
 http://bikhareakshar.blogspot.in/

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


पहाड़ मा शैहरी देखिक,
नेअथ बिगड़ जांदी,
अपणो की सुध नि च,
बीराणो तै चांदी ! बीराणो तै चांदी !

हैंसदा खेलदा घरबार,
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पटवाडी,
शैहर मा क्या पौंदा !

माकन किरयाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों मा धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !

जगा जगा की ठोकरियों
किस्मत जग्गैली,
चला पहाड़ू मेरा भाइयों,
मिन बाटु खुज्जाली ! ........गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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माँ

प्रकृति बदल गयी मानव की,
माँ का रूप भी बदल गया !
बेटा वारिस माँ की नजरों में,
बेटी का खुद घोट रही गला !!

माँ की ममता के इस रूप ने
स्वरुप जहाँ का बदल दिया
एक माँ ने माँ का ही हक़ लुटा
स्वयं माँ ने माँ को यूँ प्रस्तुत किया - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’

नोट : पूर्ण रचना पढने के लिए आप का मेरे ब्लॉग पर स्वागत है

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