Author Topic: Poems by Rajendra Singh Kunwar-युवा कवि राजेन्द्र सिह कुवर 'फरियादी' की कविताएं  (Read 8355 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दोस्तों,

 मेरापहाड़ फोरम में आज हम आपसे परिचित करा रहे है एक बहुत ही प्रतिभाशाली एव युवा कवि राजेन्द्र सिह कुवर 'फरियादी' जी से! राजेन्द्र जी मूल रूप से उत्तराखंड  से है ! राजेन्द्र जी का जन्म दिल्ली में हुआ, शिक्षा उत्तराखंड के टेहरी जनपद के देवप्रयाग तहशील में कीर्ति नगर ब्लाक के सिरसेड ग्राम सभा के अधीन आने वाले एक छोटे से स्कूल में पांचवी तक की शिक्षा, छठवीं के लिए राजकीय इंटर कालेज नागराजाधार (कड़ाकोट) से बारहवीं तक और उसके बाद गढ़वाल विश्व विधायला हेमंती नंदन बहुगुणा से व्यक्तिगत रूप से बी. ए. और एम. ए. (हिंदी) 2000 में किया इसके साथ ही रोजगार की तलाश में 1995 में दिल्ली आ गये और छोटी सी नौकरी से शुरवात और 1998 में राजेन्द्र जीज की  पहली रचना 'ख़बरों के सफ़र' के में प्रकाशित हुई,!


 हंस, आजकल ,वागर्थ, साहित्य अमृत ये मेरी रोज मरा वाली पुस्तकों की शुची में सबसे ऊपर है, अब तक कुछ छुट-पुट रचाएं भी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं ............. इसके साथ ही '' बिखरे हुए अक्षरों का संगठन'' का संचालन!

http://bikhareakshar.blogspot.in/2012/06/blog-post_19.html

 मै पूरे मेरापहाड़ परिवार की और से राजेन्द्र जी स्वागत करता हूँ इस फोरम में! आशा आप लोगो को राजेन्द्र जी की लिखी हुयी कविताये पसंद आयेंगी!

 एम् एस मेहता

Merapahad Team




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Enjoy this poem of Rajendra ji.


 देखा देखा देखा    देखा देखा देखा तुम, [/size]फरका पिछाड़ीयूँ रुपयों की दौड़ मा
कुड़ी छोड्याली
बन्गिन अपणा
इथ्गा पराया
कन बसी तेरी जुकड़ी मा
अभागी या माया
देखा देखा देखा तुम,
फरका पिछाड़ी
यूँ रुपयों की दौड़ मा
कुड़ी छोड्याली
नानि खूटियों का कदम अब
बडगिन अग्वाड़ी
देखा देखा देखा तुम,
फरका पिछाड़ी
यूँ रुपयों की दौड़ मा
[/color][/b]
 [/color][/size]कुड़ी छोड्याली .........गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'[/color][/b]
 
[/size][/color][/b]
 
[/size][/color][/b]
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 यखुली यखुली   
  मन्खियों कु डिमडियाट नि
पोथ्लोउन कु छिबडाट नि
यखुली यखुली तुमारी खुद मा
कन यु विचारू अंगण गुठीयार च
धार खाल्यु मा डांडीयौं का बिच
गाड गदरियों मा पन्देरी नि च
पुंगडी उदास होईं सारियों बिच
कख गै यु मन्खी खबर नि च
दूध की अकाल होईं गौं खालु बजार
दारू देख विक्नू यख बानी बानी की धार
स्कुलु मा मास्टर निन पट्टियों मा पटवारी
शहरु मा घुम्णी छन बौंणु की घस्यारी
बकरोंल्यु भी मगन होऊं च
बखरों छोड़ी ठेका जायुं च
हाथ की लाठी खोय्गी अब
देखा बिचाराकु पवा थामियुं च ...........गीतकार -.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
  [/size] [/b][/size][/color]
 
 [/size] [/color]
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा पहाडू
 
 न टपकौउ तौं आंसूं तै
 निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा
 घंतुलियों मा समाली खुद
 दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा
 लगली खुद तब ऊं तै जब ठोकर खौला
 कपाली खुज्लंदी तब तैमु ओला,
 समुण समाल्यी रखी गाड गदनियों तै
 सव्द्येउ ल्गाणु रही काफू हिलांस तै
 बणु की घस्यरी नि दिखेंदी,
 न ग्वारै छोरों की बांसुरी रै
 न टपकौउ तौं आंसूं तै
 निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा
 घंतुलियों मा समाली खुद
 दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा ........! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हर राह पर पर शिखर हैं

बिखरी पड़ी इन राहों को मैं
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम
इन से ज्ञान लेता हूँ !
पूरव पशिचमी उत्तर दक्षिण हर ओर शिखर है
ये जान लेता हूँ !
सब पर चलना आसन नहीं है
ये मान लेता हूँ !
बिखरी पड़ी इन राहों को मैं
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम
इन से ज्ञान लेता हूँ !
सागर सी गहराई है, पहाड़ सी परछाई है,
जीवन के इस डगर, मिलती हर कठिनाई है
मगर मैं ठान लेता हूँ !
बिखरी पड़ी इन राहों को मैं
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम
इन से ज्ञान लेता हूँ !  ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Friday, May 18, 2012

क्या चैदुं त्वे हे पहाड़

पहाडु तैं विकाश चैदुं
जनता तैं हिसाब चैदुं
इन मरियुं यूँ नेताऊ कु
युं दलालु तैं ताज चैदुं
ठेकादारी युंकी खूब चलदी
रुपयों पर युं तै ब्याज चैदुं
गरीबु तै गास चैदुं
बेरोज्गारू तै आस चैदुं
गोरु बाखरों तै घास चैदुं ........राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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From - Rajendra Singh Fariyadi.

इन्सान तू क्या चाहता है रे
धरती तो लुट ली इंसानियत ने,
अब आसमां लुटने निकले है
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया
घटाओं ने लहराना रोक दिया
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
इन्सान के इस नजराने से
मौत भी अब घबराने लगी है
आज के इस विज्ञानं से
सूरज की उगलती आग को
इसने काबू कर लिया है
चाँद की शीतल छा में
इसने कदम रखलिया है
उड़ते हुए बदल को ये
निगाहों से निचोड़ने लगा है
अपनी खुशियों के खातिर
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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यखुली यखुली

मन्खियों कु डिमडियाट नि
पोथ्लोउन कु छिबडाट नि
यखुली यखुली तुमारी खुद मा
कन यु विचारू अंगण गुठीयार च
धार खाल्यु मा डांडीयौं का बिच
गाड गदरियों मा पन्देरी नि च
पुंगडी उदास होईं सारियों बिच
कख गै यु मन्खी खबर नि च
दूध की अकाल होईं गौं खालु बजार
दारू देख विक्नू यख बानी बानी की धार
स्कुलु मा मास्टर निन पट्टियों मा पटवारी
शहरु मा घुम्णी छन बौंणु की घस्यारी
बकरोंल्यु भी मगन होऊं च
बखरों छोड़ी ठेका जायुं च
हाथ की लाठी खोय्गी अब
देखा बिचाराकु पवा थामियुं च ...........गीतकार -.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
फरियाद करूँ तो किससे....???


मैं फरियाद करूँ तो किससे,
ये घटा तू बता
मैं फरियाद करूँ तो किससे !
अपनों ने जब दर दर भटकाया मुझ को,
तब फरियाद करूँ तो किससे !
मिटटी का बना खिलौना है
मेरा हर सुख दुःख तो यूँ
सब तो मुझको छोड़ चले
अपना किसको मैं कह दूँ ! ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
मेरी आरजू

तेरे रुपहले कुंजों की हंसी,
मैं एक बार देखना चाहता हूँ,
कर लेना नफरत जी भरकर,
मैं राग तुम्हारे ही गता हूँ !
सोचता हूँ तुम्हारी पलकों तले,
आंधियाँ कैंसी छा पायी,
सावन कितना ही हो अँधियारा,
हरियाली उसने ही दिखलायी !
न नज़रों को जकडो यूँ परदे में,
दमन से यादें क्या मिटा पाओगी,
मांगे सदी तुम से कुर्वानी,
नाम मेरा क्या दे पाओगी!
है मंजूर तुम्हें ये सब तो,
ध्यान कुछ इतना भी रख लेना,
जले चिता जब मेरे अरमानो की,
पलकों से आंसू न गिराने देना !........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

 

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