Author Topic: Poems on Pahad By Geetesh Negi Ji -गीतेश नेगी जी की कविताये  (Read 16006 times)

geetesh singh negi

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"जग्वाल"


धुरपाली कु द्वार सी
बस्गल्या  नयार सी
देखणी छीन बाटू  आँखी
कन्नी  उल्लेरय्या   जग्वाल सी

छौं डबराणू चकोर सी
छौं बोल्याणु सर्ग सी
त्वे देखि मनं तपणु च घाम छूछा
हिवालां का धामं सी

काजोल पाणी मा माछी सी
खुदेड चोली जण फफराणि सी
जिकुड़ी खुदैन्द खुद मा तेरी लाटा
घुर घुर जण घुघूती घुरयान्दी सी

देखणी छीन बाटू  आँखी
कन्नी उल्लेरय्या   "जग्वाल" सी
कन्नी उल्लेरय्या   "जग्वाल"  सी
कन्नी उल्लेरय्या   "जग्वाल" सी


रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
        स्रोत :            म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व  पहाड़ी फोरम मा  पूर्व -प्रकाशित
                   (http://geeteshnegi.blogspot.com)

geetesh singh negi

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" ह्यूं की खैर "

तेरी जिकुड़ी की सदनी त्वे मा राई,
मेरी जिकुड़ी की सदनी मै  मा ,
बाकी रैं इंन्हे फुन्डेय  मूक लुकाण  मा,
और सरकार भी राहि फिर  सदनी  सर्कसी मज्जा ठट्टऔं मा,

" गीत" तू किल्लेय छे खोल्युं सी बगछट मा !
भण्डया नि सोच यक्ख   ,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,

हुणा खूण क्या नि ह्वेय सकदु यक्ख  ,
लेकिन वूंल हम्थेय सदनी फुटुयूं कस्यरा ही किल्लेय थमाई?
सैद कैल कब्भी यक्ख , पैली कोशिश ही नी काई ,
सैद कैल कब्भी  यक्ख , पैली कोशिश ही नी काई  ,

वू रहैं सदनी कच्वरना कुरुन्गुलू सी मीथेय  ,
पर तुमुल भी त कब्भी  इन्ह बीमारि की दवा दारू  नि काई?
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई,
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई

इन्न प्वाड रवाड यूं संभल-धरौं खुणं
जैल भी खैंड   ये  पहाड़ थेय खड्डअल्लू सी
वू आज तलक बस खैंड दै गाई,
वू आज तलक बस खैंड दै गाई,

हिंवाली डांडी  रैं रुन्णी  सदनी कुहलौं मा म्यारा मुल्क की
और वूं निर्भगीयूंल  ब्वाळ,
अजी बल  घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल  घाम से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !



रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " मा पूर्व-प्रकशित
                   ( http://geeteshnegi.blogspot.com )
]


बहुत सुंदर गीतेश भाई...... जी..  लगे रहो ...

geetesh singh negi

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सैन्डविच

कक्ख छाई और अब कक्ख चली ग्यों मी
फर्क बस इत्गा च की अब अणमिल्लू सी व्हेय ग्यों मी
बगत आई जब जब  बोटणा कु अंग्वाल त्वे  पर
फुन्डेय-फुन्डेय उत्गा और व्हेय ग्यों मी
कक्ख छाई और अब कक्ख चली ग्यों मी ?

कब्भी बैठुदू  छाई रोल्युं की ढुंगयुं म़ा
तप्दु  छाई तडतुडू घाम त्यारू , गुयेर बन्णी की
बज़ांदु  छाई बांसोल ,और लगान्दु  छाई गीत
सर -सर आंदी छाई हव्वा डांडीयूँ  की तब वक्ख
बगत बगत मेरी भी भुक्की पिणकु 
अब बैठ्युं छोवं यक्ख , समोदर का तीर यखुली
जक्ख आण वालू पान्णी ,चल जान्द हत्थ लगाण से पहली
खुटोवं थेय डमाकि  ,जन्न भटेय बोल्णु  ह्वालू
अप्डू बाटू किल्लेय बिरिडी ग्यो तुम
" गीत " क्या छाई और बेट्टा क्या व्हेय ग्यो तुम ?

रेन्दू छाई  मी भी स्वर्ग म़ा कब्भी 
हिवांली डांडी कांठीयूँ का बीच
बांज ,बुरांस ,फ्योंली ,सकनी,कुलौं
सब दगडिया छाई म्यारा
लगाणु रैंदु छाई फाल डालीयूँ -पुन्गडियूँ म़ा तब
अट्टगुदू   छाई  गुन्णी बान्दर सी बन्णीक
पीन्दु छाई तिस्सलू प्राण  म्यारु भी पांणी
हथ्गुलियुंल धारा-पंधेरौं कु
अब रेन्दू  अज्ज्काला की  बहुमंजिली बिल्डिंग म़ा
द्वार  भिचोलिक,लिणु छोवं स्वांश भी अब वातानुकूलित व्हेकि
और विकलांग सी भी व्हेय ग्युं जरा जरा मी अब
किल्लेय कि  बगत नि मिलदु अब ,भुन्या खुटू धैरिक हिटणा  कु
क्या  छाई और अब क्या  व्हेय  ग्यों मी
फर्क बस इत्गा च की अब अणमिल्लू सी व्हेय ग्यों मी

अ  हाह क्या दिन छाई वू  भी
जब खान्दू छाई  थिचोन्णी अल्लू मूला की मी
सौन्लौं कु साग पिज्वडया , गुन्द्कौं म़ा घीऊ -नौणी का
चुना की रौट्टी खान्दू छाई, रेन्दू  छाई कित्लू बैठ्युं सदनी चुलखांदी म़ा
लपलपान्दू  छाई जब जीभ सरया दिन डांडीयूँ म़ा
बेडू,तिम्ला ,हिन्सोला-किन्गोड़ा और भमोरौं दगडी
फिर चढ़चुडू  घाम म़ा कन्न चुयेंदी छाई गिच्ची
मर्चोण्या कच्बोली का समणी
अब खान्दू मी बर्गर ,डोसा ,पिज्जा और सैन्डविच बस
पिचक ग्या ज़िन्दगी भी अब सैद सैन्डविच सी बन्णी की
और मी देख्णु छोवं  चुपचाप खडू तमशगेर  सी बन्णी की
समोदर का ये पार भटेय सिर्फ देख्णु  और सोच्णु
कन्नू  व्हालू  म्यारु पहाड़ अब
क्या पता से बदल ग्ये होलू  सैद वू भी मेरी ही तरह से ?
क्या पता से  बदल ग्ये होलू  सैद वू  भी मेरी ही तरह से ?


रचनाकार:         गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास:   मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:      ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                    पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
        स्रोत :      म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से "  एवं  " पहाड़ी  फोरम " मा  पूर्व -प्रकाशित ( दिनांक १० .११.२०१०,सर्वाधिकार सुरक्षित  )
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Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Geetesh Bheji Ati.. sunder .. keept it up.!

geetesh singh negi

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गढ़वाली कविता : म्वाला का महादेव


बिराली कन्नी छीं रक्खवली दुधा की
स्याल  बणयाँ छीं यक्ख बाघ
लोकतंत्र कु हुणु च यक्ख
साखियुं भटेय  सदनी  बलात्कार


जक्ख  जनता रैन्द बन्णी  म्वाला कु महादेव
वक्ख नेता -ठेक्कादरू  का रैंदी सदनी धन भाग
बिजली खायी ,पाणि खायी, खायी युंल रोजगार
लग्यां छीं लुटण मा अज्काळ, त्यारू पहाड़ ,म्यारु पहाड़


दिन ग्यें,महिना  ग्यें,बीती ग्यें दस साल
सत्ता बदल ,सरकार बदल ,दगडी बदलीं ठेक्कदार
बदलीं  व्होली दुनिया म्यार भां से चाहे  सरया
पर नि बदला  निर्भगी गौं -पहाड़ , त्यारा  जोग भाग

सुपिन्या बैठियां छीं स्वील ,यक्ख  साखियुं भटेय
उठ जान्द डाव बगत बगत मेरी  भी आश थेय
भटकीं छीं विगास योजना यक्ख
आखिर बक्खा  जान्द भ्रस्टाचार किल्लेय  उन्थेय झट ?

प्रधान -पटवारी गौं खा ग्यीं
सड़क चक- डाम ठेक्कदार खा ग्यीं
विगास क़ि गंगा सुख ग्या  ऱोय-ऱोय क़ी
डाम भी डसणा छीं  अब बल यक्ख  गूरोव बणिक़ी 

मिंढका  छीं लगाणा अज्काळ  यक्ख  हैल बल
बांजी राजनीति की पुंगडियुं मा
बुतणा छीं  बीज बेरोजगरी कु  चटेली क़ि 
हमरि हिम्वली काँठीयूँ  मा

 
ज्वनि बुगणि चा बल यक्ख उन्दु   मैदानुं मा
गंगा जी  से भी तेज
 गौं -पहाड़ छोड़ क़ी
बस ग्यीं सब परदेश
गौं -पहाड़ छोड़ क़ी , बस ग्यीं सब परदेश
गौं -पहाड़ छोड़ क़ी , बस ग्यीं सब परदेश


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुंदर गीतेश जी. ...

बहुत अच्छा आपने लिखा है.. मै सदा आपके पोस्टो का इन्ज्तेज़ार करता हूँ.

लगे रहो भेजी. आशा है.. हमारे सदस्यों को भी पसंद आ रहे होंगे आपके.. लेख

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Great work Geetesh ji. Keep up the good work of encouraging poetry in our mother tongue.

geetesh singh negi

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गढ़वाली कविता  : लाटू देबता

झूठा सच ,
खत्याँ  बचन ,
बिस्ग्यां अश्धरा ,
खयीं सौं करार ,
और कुछ सौ एक  रुपया उधार ,
बस इत्गा ही छाई वेकु मोल
जै खुण लोग लाटू बोल्दा छाई ,
जै थेय कुई बी घच्का सकदु छाई ,
कुई बी खैड्या सकदु छाई ,
घंट्याई सकदु छाई ,
थपडयाई सकदु छाई ,
अट्गायी और उन्दू लमडाई सकदु छाई ,
निर्भगी स्यार पुंगडौं  मा म्वाल  ध्वल्दा -ध्वल्दा ,
सरया गौं का खाली भांडा भौरदा -भौरदा  ,
लोगों  का ठंगरा -फटला सरदा -सरदा  ,
घास -लखुडौं का बिठ्गा ल्यान्दा -ल्यान्दा ,
और ब्यो -कारिज मा जुठा भांडा  मुज्यान्दा -मुज्यान्दा ,
ब्याली अचाणचक  से सब्युन  थेय छोडिकी चली ग्या,
सदनी खुण ,
बिचरल  ना कब्भि कै की  शिकैत काई,
ना कब्भि  कै खुण बौन्ला बिटायी,
ना कभी कै खुण आँखा घुराई ,
और ना कभी कै की कुई चीज़ लुकाई ,
बस ध्वाला छीं  त सदनी ,
द्वी  बूंदा  अप्डी लाचारी का,
अप्डी मज़बूरी का,
सुरुक सुरुक,
टुप टुप
यखुल्या यखुली,
पिणु राई  नीमा की सी कूला,
सार लग्युं राई उन्ह द्वी मीठा बचनो का,
जू नि व्हेय साका ,
कभी वेका अपणा,
आज सरया गौं का मुख फर चमक्ताल सी प्वड़ी  चा ,
 कुई बुनू  चा  बिचारु जड्डल  म्वार ,
कुई बुनू चा  भूखल ,
सब्हियों खुण  सोच प्व़ाड़याँ छीं  अफ- अफु खुण ,
और बोलंण लग्यां छीं एक दुसर मा
हे राम दा - क्या म्यालु  नौनु छाई
बिचारु लाटू देबता व्हेय ग्याई !
बिचारु लाटू देबता व्हेय ग्याई !
बिचारु लाटू देबता व्हेय ग्याई !

रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित,   )
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Excellent brother.. Keep it up !

God bless u.

 

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