Author Topic: Poems on Pahad By Geetesh Negi Ji -गीतेश नेगी जी की कविताये  (Read 16029 times)

geetesh singh negi

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गढ़वाली कविता : ठेक्कदार

सूबदार,
हौल्दार ,
थाणादार ,
डिप्टी - कलक्टर ,
तहसीलदार ,
डॉ ० और प्रिंसिपल साहब
सबही  प्रवासी व्हेय ग्यीं
अब रै ग्यीं त  बस
ठेक्कदार,
और उन्का  डूटयाल   
जू लग्याँ छीं 
दिन रात
सबुल लगांण  मा
अफ्फ अफ्फ खुण
पहाड़ मा
म्यारा कुमौं-गढ़वाल मा  !

 रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार-सुरक्षित )

अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड             
स्रोत :         म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " मा पूर्व-प्रकशित
                   ( http://geeteshnegi.blogspot.com )
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geetesh singh negi

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गढ़वाली  कविता : किरांण   


मिथये अचांणंचक  से ब्याली सोच प्वड़ी गईँ             
किल्लेय कि  कुई  कणाणु   भी छाई
फफराणु  भी छाई
द्वी चार  लोगौं का नाम लेकि
कबही  छाती  भिटवल्णु कबही रुणु भी छाई
बगत बगत फिर उन्थेय  सम्लौंण भी लग्युं छाई 
तबरी झणम्म  से कैल
म्यार बरमंड का द्वार भिचौल द्यीं
सोचिकी मी खौलेय सी ग्युं
कपाल  पकड़ी  कि अफ्फी थेय कोसण बैठी ग्युं
सोच्चण  बैठी ग्युं  कि झणी  कु व्हालू  ?
मी कतैइ  नी  बिंगु
मिल ब्वाल - हैल्लो  हु आर यू ?
मे  आई  हेल्प यू ?
वीन्ल रुंवा सी गिच्चील ब्वाळ
निर्भगी  घुन्डऔं - घुन्डऔं  तक फूकै  ग्यो
पर किरांण  अज्जी तक नी ग्याई ?
मी तुम्हरी लोक भाषा छोवं
मेरी  कदर और  पछ्याँण
तुम थेय अज्जी तक नी व्हाई  ?
सुणि  कि  मेरी संट मोरि ग्या
और मेरी  जिकुड़ी  थरथराण बैठी ग्या
 मी डैर सी ग्युं
और चदर पुटूग मुख लुका कि
स्यै ग्युं चुपचाप से
और या बात मिल अज्जी तक कैमा नी बतै
और बतोवं  भी  त कै गिच्चल बतोवं ?
कन्नू कै बतोवं ?
कि  मी गढ़वली त छोवं ?
पर मिथये गढ़वली नी आँदी ?
पर मिथये गढ़वली नी आँदी ?


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित,   )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड             
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गढ़वाली कविता :द्वी अक्तूबर


गांधी का देश मा
हुणी च आज गाँधी वाद की हत्या
बरसाणा  छीं  शस्त्र- वर्दी धारी
निहत्थौं फर गोली - लट्ठा
सिद्धांत कीसौं मा धैरिक
भ्रस्टाचारी व्हे ग्यीं यक्ख सब सत्ता
जौलं दिखाणु छाई बाटू सच्चई कु
निर्भगी वू अफ्फी बिरडयाँ छीं रस्ता
ईमानदरी मुंड -सिरवणु  धैरिक नेता यक्ख
तपणा छीं घाम बणिक संसदी देबता
दुशाषण  खड़ा छीं बाट -चौबटौं  मा द्रोपदी का
और चुल्लौंह मा  हलैय्णी चा  सीता अज्जी तलक
और गाँधी वाद बणयूँ चा सिर्फ विषय शोध कु
बणी ग्यीं  कत्गे कठोर मुलायम  गाँधी-वादी वक्ता
अब तू ही बता हे बापू !
द्वी अक्टुबर खुन्णी जलम ल्या तिल एक बार
किल्लेय  हुन्द बार बार यक्ख
 द्वी अक्टुबर खुण फिर गांधीवाद  की हंत्या ?
निडर घुमणा छीं हत्यारा 
लिणा छीं सत्ता कु सुख 
न्यौं  सरकारौं कु धरयुं च मौन
और लुकाणा छीं गांधीवादी  मुख
और  किल्लेय  गांधीवाद  यक्ख
न्यौं -अहिंसा का बाटौं मा  लमसट्ट हुयुं च
और मिल त यक्ख तक  सुण की अज्काळ   
गाँधी का देश मा
गांधीवाद थेय  आजीवन कारावास  हुयुं च   ?
गांधीवाद थेय  आजीवन कारावास  हुयुं च   ?
गांधीवाद थेय  आजीवन कारावास  हुयुं च   ?


(उत्तराखंड आन्दोलन के अमर शहीदों को इस आस  के साथ समर्पित  की एक दिन उन्हे इन्साफ जरूर मिलेगा और उनका समग्र विकास का अधूरा स्वप्न एक दिन जरूर पूरा होगा )


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गढ़वाली कविता  : क्या व्हालू  ?

जक्ख रस अलुंण्या राला
और निछैंदी मा व्हाला छंद
कलम होली कणाणि दगडी
वक्ख़ लोक-भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?


जक्ख अलंकार उड्यार लुक्यां राला
और शब्दों फ़र होली शान ना बाच
जक्ख गध्य कु मुख टवटूकु हुयुं रालू
और पद्य की हुईं रैली फुन्डू पछिंडी
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ? 


जक्ख जागर ही साख्युं भटेय सियाँ राला
और ब्यो - कारिज मा  औज्जी
दगडी ढोल-दमो अन्युत्याँ  राला
वक्ख़ लोकगीत तब बुस्याँ -हरच्यां हि त राला 
और बिचरा लोग -बाग तब  दिन -रात
वक्ख़ मंग्लेर ही  खुज्याणा  राला
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?

रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित,   )
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गढ़वाली कविता : छिल्लू  मुझी  ग्या   
   
बैइमनौं  का राज मा -ईमनदरी कु
भ्रस्टाचरी गौं -समाज मा -धरमचरी कु
मैंहंगई का दौर मा - गरीबौं कु
गल्दारौं  का राज मा - वफादरौं कु
ठेकदरौं का राज मा - ध्याड़ी मज्दुरौं कु
प्रधनी की चाह मा - गौं-पंचेतौं कु
अनपढ़ों  का राज मा - शिक्षित बेरोज्गरौं कु
और दरोल्यौं का राज मा - पाणि-पन्देरौं कु
   छिल्लू  मुझी ग्या
       
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गढ़वाली कविता : सम्लौंण

कुछ सुल्झयाँ
कुछ अल्झयाँ
कुछ उक्करयाँ
कुछ खत्याँ
कुछ हरच्यां
कुछ बिसरयाँ
कुछ बिस्ग्याँ
त कुछ उन्दू बौग्याँ
कुछ हल्याँ
कुछ फुक्याँ
कुछ  कत्तर - कत्तर हुयाँ
मेरी इन्ह  जिंदगी का पन्ना
बन बनि का    हिवांला रंगों मा रुझयाँ
चौदिश बथौं मा  उड़णा
हैरी डांडीयूँ - कांठीयूँ  मा
चिफ्फली रौल्यूं की ढून्ग्युं मा
पुंगडौं-स्यारौं -सगौडियों मा
फूल -पातियुं मा
भौरां - प्वत्लौं मा
डाली- बोटीयूँ मा
चौक - शतीरौं    मा
दगड़ ग्वैर-बखरौं मा
हैल - दथडियूँ  मा
भ्याल - घस्यरियौं मा
पाणि -पंदेरौं मा
गुठ्यार- छानियौं  मा
चखुला बणिक
डंडली - डंडली  मा
टिपण लग्याँ
म्यरा द्वी
भुल्याँ - बिसरयाँ खत्याँ
बाला दिन |
                                             
                 
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गढ़वाली  कविता : ख्वीन्डा सच

ख्वीन्डी व्हेय गईं  दथडी थमली
पैना करा अब हत्थ
रडदा ढुंगा मनखी व्हेय गयीं
गौं व्हेय गईं सफाचट्ट
बांझी छीं पुंगडी यक्ख
पन्देरा प्व़ाड़याँ छीं घैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
मारा अब झैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
मारा अब झैल
अँधेरा  मा छीं विगास बाटा
कन्न पवाड चुक्कापट्ट
लुटी खै याल पहाड़
मारा यूँ चप्पट
लुटी खै याल पहाड़
मारा यूँ चप्पट
झुन्गरू , बाड़ी , छंच्या वला मनखी हम
सुद्दी -मुद्दी देहरादूणी कज्जी तक बुखौला
दूसरा का थकुला मा भुल्ला
हम कज्जी तक जी खौला
छोडिक गढ़-कुमौ मुल्क रौंतेलु
परदेशी हवा मा कज्जी तक जी रौला   
अयूं संयु जौला आज  म्यार लाटा
भोल  बौडिक त  ग्वलक मा ही औला   
अयूं संयु  जौला  आज  म्यार लाटा
भोल बौडिक त ग्वलक मा ही औला

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Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Geetesh Bhai ji.. Bahut khoob.

Keep posting sir.


geetesh singh negi

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गढ़वाली कबिता : डिग्री


कैथेय कत्तेय नी  मिली
त कैल अज्जी तलक द्याखी  नि च
कैक्का जोग भाग़  मा लेख्यीं ही  नि छाई
ता कैल अज्जी तलक चाखी ही  नि च
जौंकी राई टिकईं  टोप दिन रात
उन्थेय मिली त च पर
वू भी रैं बस अट्गा -अटग मा
उन्दू जाणा की बिसुध बणया
घार-गौं बौडिक आणा की
सुध उन्थेय फिर कब्भी आई नि च
घार-गौं बौडिक आणा की
सुध उन्थेय फिर कब्भी आई नि च


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार-सुरक्षित )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
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स्रोत :           स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
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गढ़वाली कविता : पहाड़

मी पहाड़ छोवं
बिल्कुल  शान्त
म्यार छजिलू  छैल
रंगिलू घाम
और दूर दूर तलक फैलीं
मेरी कुटुंब-दरी
मेरी हैरी डांडी- कांठी
फुलौं  की घाटी
गाड - गधेरा
स्यार -सगोडा
और चुग्लेर चखुला
जौं देखिक तुम
बिसिर जन्दो सब धाणी
सोचिक की मी त स्वर्ग म़ा छौंव
और बुज दिन्दो  आँखा फिर
पट कैरिक
सैद तबही नी दिखेंदी कैथेय
मेरी खैर
मेरी तीस
म्यारू मुंडरु   
म्यारू उक्ताट
और मेरी पीड़ा साखियौं की
जू अब बण ग्याई मी जण
म्यार ही पुटूग
एक ज्वालामुखी सी
जू कबही भी फुट सकद !

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