Author Topic: Poems on Pahad By Geetesh Negi Ji -गीतेश नेगी जी की कविताये  (Read 16008 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Mr Geetesh Singh Negi Ji has joined Merapahad Community. Geetesh Ji is very good Poet &  Writer has written many poems on various social, cultural and other issues of Uttarakhand. Negi Ji would also share his poem here apart from his Blog:-

About Geetesh Ji
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संक्षिप्त काव्य परिचय :

पलायन की पीड़ा पर आधारित गढ़वाली और हिंदी खुदेड काव्य रचनाये और गीत :
(१) "त्वे आण प्वाडलू   "  (२) "जग्वाल"  (३) वाडा कु  ढुंगु  (४)खैरी का बिठगा(५) "तू कु छेई "  (६) "आश कु पंछी "  (७)मेरु "उत्तराखंड " (८ ) "उक्ताट"  (९) " ह्यूं की खैर  "  (१०) गढ़वाली गीत :राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ(११ ) गढ़वाली गीत  :सुरुक सुरुक  आंदी तू म्यारा सुप्न्यु... (१२ ) गढ़वाली गीत : क्षेत्रा का डांडा(१३) गढ़वाली गीत  : परदेश मा ( १४) कक्ख जाण:  पहाड़ भोत याद आन्द

उत्तराखंड के अमूल्य और अतुल्य सामाजिक  और सांस्कृतिक  परिवेश के संरक्षण पर सचेत करती गंभीर  और प्रेरक गढ़वाली और हिंदी काव्य रचनायें  
                                                                       तथा
उत्तराखंड  की वर्तमान सामाजिक और राजनितिक खामियों पर चोट करती गंभीर व व्यंगात्मक   गढ़वाली और हिंदी काव्य रचनायें
 
  • आपदा का हिमालय
  • जय हो उत्तराखंड
  • तिम्ला का फूल
  • दस साल
  • "कौन ? "
  • "कब तक मौन रहोगे ? "
  • आओ तिलांजलि दें
  • परिवर्तन
  • कु  कु  छाई
  • चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डाले
  • >प्रथम हिंदी कविता  "स्वर्ग-सत्ता "  हेतु उत्तर प्रदेश  एवं उड़ीसा  के पूर्व  राज्यपाल माननीय श्री बी .सत्य नारायण रेड्डी द्वारा सम्मानित
     
    • >विद्यालय एवं विश्वविधालय  स्तर की विभिन्न काव्य एवं वाद - विवाद प्रतियोगिताओं  में प्रतिभागी ,दल संचालक एवं  संयोजक का निर्वाहन
    • विभिन्न  सामाजिक,शैक्षिक एवं सांस्कृतिक  संस्थाओं के मंचो से काव्य पाठ 
    • संक्षिप्त जीवन   परिचय :
    • :गीतेश सिंह नेगी : (११-०४ -१९८४, )
      अस्थाई निवास:  सिंगापूर / मुंबई /सहारनपुर
       मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                             पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 
       शिक्षा : एम . टेक.   ( व्यावहारिक भू -भौतिकी, कुरुक्षेत्र विश्वविधालय, 2008)
       व्यवसाय : तेल एवं गैस अन्वेषण तथा अनुसन्धान क्षेत्र की अग्रणी बहुराष्ट्रीय  कंपनी में भू-भौतिकविद पद पर कार्यरत
    • रूचि : कविता पाठ ,लेखन,सांस्कृतिक -सामाजिक-शैक्षिक व युवा जागरूकता सम्बन्धी  गतिविधियाँ
    •    अपड़ा उत्तराखंड सम्बन्धी सामाजिक ,सांस्कृतिक और एतिहासिक विषयो पर  आधारित अन्य लेख मी समय समय पर आप तक भेज्णु रौलू  |
       
         मेरी गढ़वाली रचना और गीत का सम्बन्धी  मा आपकी प्रतिक्रिया की जुगाल मा    आखिर मा  " "म्यार पहाड़  " परिवार थेय शुभ-कामनाओं दगडी 
             
           आपकू स्नेही      गीतेश सिंह नेगी      सिंगापूर भट्ये
    • Hope you would appreciate & encourage Negi Ji on his poems

      A warm Welcome to Merapahad Community Negi ji.

      Regards,

      M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The First Poem I am putting on behalf of Mr Geetesh Singh Negi Ji on 10 yrs of Uttarakhand
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 दस साल    बहौत दिन व्हेय ग्यीं
 उठ्णु चा एक सवाल मनं मा
 सोच्णु छोवं आणि  दयूं उम्बाल थेय बैहर अब
 कैकी कन्ना छोव अब  हम जग्वाल
 
 छेई आश होलू  बिगास
 व्हेय ग्यीं दस साल
 पर नि व्हेय अभी कुछ खास
 कैकी कन्ना छोव अब हम जग्वाल
 
 कन्न लाडा छाई,कन्न जीता छाई
 कन्न कन्न खेला छाई हमल खंड
 एक छाई जब मांगू हमल उत्तराखंड
 याद कारों पौड़ी ,मंसूरी ,खटीमा गोलीकांड
 कैकी कन्ना छोव अब हम जग्वाल
 
 भूली ग्यो सब सौं करार ,रंगत मा छिन्न गौं बज्जार
 ना बिसरा उ आन्दोलन -हड़ताल , उ चक्का जाम
 एकजुट रावा, बोटिकी हत्थ,ख़्वाला आँखा अब 
 कैकी कन्ना छोव अब हम जग्वाल
 
 जाओ घार ,पहाड़ मुल्क अपड़ा सुख दुःख मा
 ना बिसरो कु छोवं हम
 ध्यो करला  देब देब्तौं ,अपड़ा पहाड़ी रीति-रिवाजौं हम 
 कैकी कन्ना छोव अब हम जग्वाल
 
 जक्ख भी रौंला ,मिली-जुली की फली- फुलिकी
 बणा दयावा वक्खी एक प्यारु उत्तराखंड महान
 एक ध्यै,एक लक्ष्य ,एक प्रण, बढ़ोला  उत्तराखंड की शान
 कैकी कन्ना छोव अब हम जग्वाल
 
  (उत्तराखंड राज्य का उन् सपनो थेय समर्पित जू अबही  पूरा नि व्हेय साका )
  रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

geetesh singh negi

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जय हो उत्तराखंड

गलदारौं की 
ठेकादारौं की
जय हो उत्तराखंड त्यारा समल्धरों की !

प्रधनौ की
प्रमुखौं की 
जय हो उत्तराखंड त्यारा "जनं-प्रतिनिधियौं "  की !

भित्तर का बेरोजगारों की
बहेर्रा का रोजगारों  की
जय हो उत्तराखंड उन्का लगन्दरों की !

नय साला का बढ़दा खर्चौं  की
पुराणा पाँछि कर्जौं की
जय हो उत्तराखंड त्यारा लुछधरौं की !

बज्दा घान्डों की
खाली भांडों की
जय हो उत्तराखंड त्यारा बड़ा बड़ा डामों  की !

बिस्गदी गंगा की
बोग्दी कच्ची- दारू का छानियुं की
जय हो उत्तराखंड त्यारा घियु -दुधा का धारौं की !

टूटयाँ हैल-दंदुलोउन की
निकम्मा दाथी थमलोउन की
जय हो उत्तराखंड त्यारा अज्कल्य्या ब्वारी नौनौं की !
जय हो उत्तराखंड त्यारा अज्कल्य्या ब्वारी नौनौं की !



रचनाकार:           गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक २२ -१०-१०)
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
                      मूल निवासी:   ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
          पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
                                                 स्रोत :            म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
                  (http://geeteshnegi.blogspot.com)




geetesh singh negi

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तिम्ला का फूल

ब्वारी कु गुलबंद
नाती की धगुली
नातिनी की झगुली
पतल्या भात
लिंगवड्या साग
चुल्हा  की आग
कस्य्यरा  कु पाणि
होली का गीत
बन्सुल्या गुयेर
दयें  का बल्द
गुठार्या गोर
पुंगड़ों कु मओल
शिकार की   बान्ठी
ब्वाडा की लान्ठी 
भंगुला का बीज
मुंगरी की पत्रोट्टी
गैथा का रौट्टा
घस्यरियौ का ठट्टा
कख गयीं सब
ख्वाजा धौं  !
नि मिलणा सयेद
किल्लेय की व्हेय गिन सब
अब बस " तिम्ला का फूल "
          " तिम्ला का फूल "
          " तिम्ला का फूल "


रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
                अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:   ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                    पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
                                                                   स्रोत :             म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
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geetesh singh negi

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"उक्ताट"


अब्ब्ही भी बगत चा
आवा हम दगडी चितेई जौला
न्थरी भोल दगडी  फट्टा  सुखोला
पहली कारू छाई एक आन्दोलन घमासान
व्हे  गयीं कत्गा शहीद, खाई   की छाती और कपाल फ़र लट्ठा -गोली
तब हम ही  जीतो  ,किल्लेय की तब  हम एक छाई
भोल  एक और आन्दोलन ना करण प्वाडू कक्खी  फिर हम्थई ?
आन्दोलन अपड़ा आप थेय बचाणा कु
आन्दोलन अप्ड़ी भाषा और रिवाज़ों थेय सम्लाणाकू
आन्दोलन थोल म्य्लों थेय बचाणा कु
आन्दोलन अरसा,स्वआला, मीठू भात  बचाणा खूण
आन्दोलन ढोल दम्मो  ,निसाणं और तुर्री थेय बचाणा खूण
आन्दोलन घार- गौं और गुठ्यारों थेय बचाणा खूण
आन्दोलन  हैल- दंदलू  दाथि और निसुड़ थेय बचाणा खूण
गीत बाजूबंद,थडिया ,चोफ़ुला और मांगलों  थेय बचाणा खूण
बांज ,बुरांस ,हिसोला -बेडू ,तिम्ला और काफल  थेय बचाणा खूण
पर तब भोत मुंडारु व्हे जाण छुच्चो
किल्लेय ?
जरा स्वाचा?
कैमा जाण और कई दगड़ लड़ण वा  लडई ?
कन क्य्ये    जितण, हेर्री की अपणाप से त्भ?
क्या बोलण की  नि के साकू   इंसाफ हमुल अप्ड़ी ही  जन्म भूमि  दगडी  ?
नि सँभाल साका हम अप्ड़ी ही संस्कृति थेय ?
तब नि लग्गणा  तुम से वू जन गीत भी आन्दोलन का
जू लगायी और कन कन के पाला पोसा छायी
उंल  जो आज बन गयीं देबता आगास मा
भेंट गईं हम्थेय एक विरासत
जू नि पचणी चा  आज   हमसे ?
इल्लेइ  ता मी  बुनू छोवं
आवा हम दगडी चितेई जौला
गर  चितेई जौला बगत से
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "


रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )

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Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Wow.

Very impressive poem written by Geetesh Ji. Your poems on 10 yrs of Uttarakhand reallly narrate the situation in Uttarakhand and development works taken place so far.

God bless u ..... Bheji.. continue writing such poem on various issues.

geetesh singh negi

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खैरी का बिठगा

तेरी पीड़ा का बिठगा सदनी तिल्ल ही उठयें
कष्ट,दुःख-दर्द जत्गा भी छाई तिल्ली सहैं
स्यैंती पाली जू करी बड़ा तिल अपडा
भूल गयें स्येद वू भी त्यारा दुखड़ा
त्यारू  चौमस्या प्यार,त्यारू बस्गल्य़ा उल्यार
त्यारा थोल -म्याला ,त्यारा तीज त्यौहार
कन बिसरी टप्प, जाकी प्रदेशो मा पहाड़ पार
छोडिकी हे स्वर्ग त्वे थेय,झणी जैका सहारा फर
सुनसान छी आज त्येरी डांडी- काँठी
उं फर शान ना बाच
रौल्यूं मा एनं पवड्यीं  झमाक
जन्न छलेए सी ग्ये होंला
मिल सुण घुगती भी नि आंदी उं पुंगडौं मा अब
जख नि खप्प साका हैल और निसुड़ा तुम से
ग्विराल भी रैएन्द रुन्णु दिन भर
नि हयेन्स्दा नौंना- बाला वेय दगडी अब  मुल-मुल
चल ग्यीं सब प्रदेशो मा व्हेय के ज्वान
खलियाणं भी अब नि रै  पहली जन्न चुग्ल्यैर
स्यार- पुंगडा भी छी उकताणं लग्याँ
और बल्द भी  छी जलकणा हैल देखि की बल
गदेरा  भी छी बिस्गणा बल  यकुलांस मा सयैद
और पंदेरा भी छी रुणा टूप- टूप यखुली यखुली
एँसू का साल चखुला भी नि बुलणा छी "काफल पाको "
बाटू भी बिरिडी ग्या गौं कु रस्ता,तुम जन्नी अब
डाली - बोटी भी बणी छी जम-ख़म मिल सुण
फूल -पत्तौं फर भी नि रै मौल्यार पैली जन्न 
और घार गौं ,यराँ धौं
व्हेय ग्यीं बोल्या सी बल यकुलांस म़ा तुम बिगैर
लिणा छी आखरि सांस यकुलांस मा
लिणा छी आखरि सांस यकुलांस मा



रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
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geetesh singh negi

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"आश कु पंछी "


मेरु  आश कु  पंछी रीटणु  रेएँद ,झणही   किल्लेय बैचैन  होव्केय ?
झणही  किल्लेय डब-डबानि  रेंदी मेरी  आँखी दिन  रात  इन्ने फुन्डे ?
किल्लेय  देखणी  रेह्न्दी   टक्क लग्गे  की  बाटू पल्या स्यार  कु ?
उक्क्ताणु रेंद मेरु  तिसल्या  प्राण झणही  कैय्येका बाना ?
शयेद   में  आज  भी  आश  कनु  छों  की ,
वू कब्भी  त़ा आला  बोडी की  अपडा घार ?
वू जू  मेरा छीन ,और  मीं सिर्फ  जौं की  छों ,
बस  इंही  आश  मा कटणू  छों आपणा दिन की ,
मतलब  से  ही सही ,पर  वू  आला जरूर  कभी  त़ा ,
क्या पता से वेह्य जाऊ  वों  थे  भी  मेरी  पीड कु अहसास
और  बौडी  आला  सब  मेरा  ध्वार ,अपना  घार,अपणा पहाड़
बस  एही  चा   आज  मेरी  आखरी  आश !
बस एही चा आज मेरी आखरी आश !
बस एही चा आज मेरी आखरी आश !


"जन्म -भूमि उत्तराखंड की साखीयौं  पुराणी पलायन पीड़ा  थेय  सादर समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ एंन्ही आश का साथ की एक
दिन पहाड़ मा पलायन एक समस्या नि  रैली   "


रचनाकार:                  गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक ११-०९-२०१० )
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dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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achchhi kavitayain hain Geetesh Singh ji likhate rahain.

geetesh singh negi

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वाडा कु ढुंगु

ब्याली अचानक लमड्डी गयुं मी  एक जघह मा
अलझि गयौं सडाबड़ी  मा एक ढुंगा से
और व्ये ग्यूं चौफुंड वक्खी  मा 
चोट की पीड़ा  बहुत व्हये
और अचानक मिल ब्वाल
औ ब्वई  मोर  गयुं  मी
झन्णी जैक्कू म्वाड़ म्वार  होलू
कैल धार  होलू  यु  ढुंगु   यम्मा ?
थोड़ी देर मा व्हेय ग्या सब ठीक
पर व्ये ढुंगा की ढसाक से
मी रौं जम्मपत्त झन्णी कत्गा दिनों तक
और स्येद आज भी छोवं
किल्लेय की  ढुंगा की चोट करा ग्या याद बचपन की
और कैर ग्या घाव हरा सम्लौंणं का
याद करा ग्या गौं का बाटा कु वू
वाडा कु ढुंगु
जू अल्झंणु रेहंदु छाई
रोज कै ना कै का खुटोउन  फ़र
पर जेथे कुई रड्डा भी नि सकदु छाई
किल्लेइ  की वू छाई "वाडा कु ढुंगु "
भोत गाली दीन्दा  छाई आन्दा जान्दा लमडदरा  लोग
व्ये ढुंगु थेय
पर झणी किल्लेय,मी अब सम्लाणु छोवं
व्ये  वाडा कु ढुंगु थेय
जोडिकी हत्थ ,अस्धरियुं का साथ
जैल याद दिला देय  मित्थेय
म्यारू बोगयुं और ख़तयूँ
निरपट पान्णी  की खीर सु बचपन
अब जब भी जन्दू मी  वीं  सड़क का ध्वार से
ता  सबसे पहली देखुदु व्ये ही ढुंगु  थेय
और फिर मनं  ही मनं
सेवा लगाई  की  बोल्दु
जुगराज रेए  हे  वाडा का ढुंगा
रए सदनी व्ये ही  बाट  मा
सम्लाणु रहे  इन्ही  हम्थेय
जू बिसिर  ग्यें   अपडा गौं कु बाटू   
जू  बिसिर ग्यें  म्यरा गढ़ -कुमौं कु बाटू 
जू बिसिर ग्यें    म्यरा गढ़ -कुमौं  कु बाटू


रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
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