सुख?
तुम अलापते रहे,
पहाड़ी धुन में,
अपने पहाड़ों के प्रणय गीत,
तुम सुनाते रहे,
इतिहास में कैद,
वीरों की शौर्य गाथायें,
तुम भुलाते रहे,
अपने पहाड़ से दुःखों के दीर्घ प्रसंग।
और वे सब चूसते रहे,
तुम्हारे पहाड़ की,
शिराओं का रक्त, जोंक की तरह।
तुम्हारे ही लोगों के कन्धों पर चढ़कर,
मुखौटा लगाकर,
देते रहे दिलासा,
यह पहाड़ विकसित होगा,
हरियाले उगेगी इन पहाड़ों पर,
खुशहाली लौटेगी इन पहाड़ों की।
परन्तु तुम ठगे जाते रहे हो सदा,
तुम छले जाते हो सदा,
और तुम्हें नहीं मालूम क्या?
इस शोषित, दमित, उपेक्षित पहाड़ से,
अवशेष
पहाड़ सी जिन्दगी है,
पहाड़ सी पीड़ा है,
पहाड़ सा अभाव है,
पहाड़ सा रोग है,
पहाड़ सा बुढापा है,
बस, है नहीं तो,
चुटकी भर सुख..........!