Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 287625 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
"उत्तराखण्ड" पर लिखी,
मेरी कविता को आपने,
"अज्ञांत" की कविता बना दिया,
दुःख हुआ देखकर,
हे मित्र, ये आपने क्या किया...

जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
२५.२.2009

प्रिय ज्याड़ा जी,
     ये कविता मुझे नेट पर सर्च के दौरान किसी साईट में मिली थी और वहां पर इसके लेखक का नाम नहीं लिखा था, सो मैने वहां से इसे copy कर यहां पर paste किया था, हमारा प्रयास यह रहता है कि उत्तराखण्ड से संबंधित चीजों का संग्रह यहां पर हो।
    आज आपकी पोस्ट से अवगत हुआ कि यह कविता आपकी है, तो मैं भूल सुधार कर रहा हूं। आप यदि इससे आहत हुये हैं तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं। आशा है आप अपनी कविताओं का कवित्व यहां पर उड़ेलते रहेंगे।

सादर,

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
1 Heera Singh Rana Ki Kavita..Pahad Ki Nari Ke Upar....
Mujhe pure bol yaad nahi..

Kya Likhu Pahada sainyo Ka Geetaaa...
Roj re bhaag me thuka bhanjetaa...
Kya Gareebo ki Kya saukaaru saini...
Pahadaa sainiya le ghuguti raini..

Mov ki daali le chaapi muneli..
Madua rwaat loon ki deli...
Ko suno chhaat ki peed pukaar
saini daanyu me to mensh bjaar

Ko lijhaa pahadaa dhaiya me paani
Kasi kaatuna me jethi ugaani
Fir le pahaad ki hosiya cheli
in pahado peri muneyi deli..

Pahada sainya ka tap or tyaag
aafi bdaa jaile aapuno bhaag

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
बागेश्वर के नवीन चन्द्र पाठक की एक कविता

मुझे स्वीकार है

खेत-खलिहानों में मजदूर बनना,
सड़क किनारे भुट्टे भूनना,
बुग्यालों में हांककर भेड़ चराना।


लेकिन मैं नहीं चाहता

बन्धक बनकर, कलम का सिपाही बनना,
घूस देकर पटवारी-सिपाही बनना,
जनता के स्वप्नों को बेचकर, स्वर्ण मुकुट पहनना,
टिहरी की जल समाधि पर शहरी होना।


क्योंकि

मेरा, दो अक्टूबर-उन्नीस सौ चौरानबे का घाव,
अभी भी हरा है,
खटीमा, मसूरी की गोलियों की गर्जना,
आज भी मेरे कानों में गूंजती है।
मेरी डिग्री में लेमीनेशन चढ़ा है, कारगिल का,
मनीआर्डर की वे रसीदें मेरे पास आज भी हैं,
भेजा था जिन्हें पिता ने सीमा की अग्रिम चौकियों से,
मां का दिया वह पांच सौ का नोट,
जिसे घास बेचकर सहेजा था उसने,
आज भी मेरी जेब में है।


लेकिन

मैं पी०सी०एस० का फार्म नहीं खरीदना चाहता,
उसे रंग कर बनाना चाहता हूं-इन्कलाबी परचम॥

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
Re: उत्तराखंड पर कविताये : सुख?
« Reply #113 on: March 25, 2009, 11:29:35 AM »
सुख?

तुम अलापते रहे,
पहाड़ी धुन में,
अपने पहाड़ों के प्रणय गीत,
तुम सुनाते रहे,
इतिहास में कैद,
वीरों की शौर्य गाथायें,
तुम भुलाते रहे,
अपने पहाड़ से दुःखों के दीर्घ प्रसंग।
और वे सब चूसते रहे,
तुम्हारे पहाड़ की,
शिराओं का रक्त, जोंक की तरह।
तुम्हारे ही लोगों के कन्धों पर चढ़कर,
मुखौटा लगाकर,
देते रहे दिलासा,
यह पहाड़ विकसित होगा,
हरियाले उगेगी इन पहाड़ों पर,
खुशहाली लौटेगी इन पहाड़ों की।
परन्तु तुम ठगे जाते रहे हो सदा,
तुम छले जाते हो सदा,
और तुम्हें नहीं मालूम क्या?
इस शोषित, दमित, उपेक्षित पहाड़ से,
अवशेष
पहाड़ सी जिन्दगी है,
पहाड़ सी पीड़ा है,
पहाड़ सा अभाव है,
पहाड़ सा रोग है,
पहाड़ सा बुढापा है,
बस, है नहीं तो,
चुटकी भर सुख..........!

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पहाड़ उठूण इतुक सितूल न्हातिन रे,
पहाड़ उठूण,
कि टयाप्प टिपि बेर पूर वां पुजै द्यैला,
कागज में रिखाड़ मारि फसल पैठाकरि,
बाग-बगीचा खिला द्यैला।
और रब्बड़ घोशि, गरीबी मिटै ल्येहला।
पहाड़ उठूण है पैल्लि,
पहाड़ के अपणूण पड़ल,
जगूण, सिखूण और मनूण पड़ोल।
आं-हां, नंग्यूड़ दबूंण न,
खबरदार..............!
पहाड़ उठूण इतुक सितुल न्हातिन रे...!
पहाड़ उठूण इतुक सितुल न्हातिन रे।

लेखक- बहादुर बोरा, देहरादून।

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
बहादुर सिंह जी की उपरोक्त कविता बहुत पसन्द आयी...

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
उत्तराखण्ड में भी लोकसभा चुनावों की सरगर्मियां शुरु हो गई हैं.राजनैतिक दलों द्वारा चुनावों से पहले की जा रही तैयारियों पर नरेन्द्र सिंह नेगी जी की कविता....

चुनौ ऎगे

ऎगे फिर चुनौ ऎगे, दाईं जसि फेरो,
बख्तर बंद जामा परिल्या रे छोरो!
कैका हात-गौणा तोड़,
कैकू घुण्डू-मुण्ड फोड़,
फोड़-फोड़-फोड़...।
झेंता झेंतड़ि, झेंता तौड़...
झेंता झेंतड़ि, झेंता तौड़।
मंच-मण्डाण सजिनी, धज्जा-निसाण टंगिनी,
मैक-भोंपू लगि गैनी, सयां नौना जगि गैनी,
गौऊं-गौऊ की भीड़ जुट्टी, मोटरु की धूल उड्ड़ी,
काम-धाणी छोड़-छोड़,
नेता पौंछी गैनी, दौड़-दौड़, दौड़-दौड़।
झेंता झेंतड़ि, झेंता तौड़...
झेंता झेंतड़ि, झेंता तौड़।

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
नैनीताल में रह रहे वरिष्ट कुमांऊंनी कवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" किसी भी हलचल पर चुटकी लेने से नही चूकते. फिर भला लोकसभा चुनावों की रेलमपेल कैसे उनकी कलम से छूट जायेगी. कुमांऊनी बोली की तर्ज पर गिर्दा की एक चुनावी कविता

जाने क्या-क्या स्वांग दिखाने वाली है-भल,
फिर चुनाव की ऋतु आने वाली है-भल,
घर-घर में तूफान आने वाली है-भल,
हर दल में मैं-मैं का दलदल गहराया।
यह मैं-मैं ही कोहराम मचाने वाला है भल।
सौ बीमारों को एक अनार दिखला-दिखला,
हो सके जहां तक मतकाने वाली है-भल,
संसद में नोटों का करतब दिखला चुके,
अब रैली में थैली आने वाली है भल,
हां इस ग्लोबल मंदी के नाजुक मौसम में,
कुछ को तो रोजगार देने वाली है-भल,
लगता है अपने बल पर चलने वाली,
कोई सरकार नहीं आने वाली है-भल,
मिली-जुली सरकारों का फिर स्वांग रचा,
कब तक जाने ठग खाने वाली है-भल,
पर सबको ही नाच नचाने वाली है-भल,
जाने क्या-क्या स्वांग दिखाने वाली है-भल,
फिर चुनाव की ऋतु आने वाली है भल॥

Dinesh Bijalwan

  • Moderator
  • Sr. Member
  • *****
  • Posts: 305
  • Karma: +13/-0
Hemji, Cunavai mousam per apne kuch line phir se post kar raha hoon- Girda ki kavita padh kar  man vyakul ho gaya ki rajneeti kis moud tak pauch gai hai
आवा सरकार सरकार बणावा ,
झन्डा त छै छिन,
चन्दा उगै तै - द्वी चार गुन्डा बि दगडी रावा ,
आवा सरकार सरकार बणावा
क्च्ची देलो दारू माफिया , सौकार देलो ट्क्का
जु लडालो जात धर्म पर , वैका भोट पक्का
आवा सरकार सरकार बणावा
जिया रान मेरा झूटा लबारयो,
सौ खै खै नि सचैणो
आज चैदन भोट तूमू सणी,
भोल तूमुन नि देखेणो
आवा सरकार सरकार बणावा
कुर्सी तै सब स्वान्ग तुम्हारा , कुर्सी कि च दौड,
कभी मतक्दा तुम यखुली यखुली,
कभी करदा गठ्जोड
आवा सरकार सरकार बणावा   

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
Ati sundar... Bijalvan ji aap bahut sundar kavitaye likhate hain.... Asha hai aise hi apni kavitao ka Rasasvadan karate rahenge..

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22