बल्ली सिंह चीमा जी एक क्रान्तिकारी कवि के रूप में पूरे भारत में एक जाना पहचाना नाम हैं. वह ऊधमसिंह नगर के बाजपुर कस्बे में रहते हैं. उन्होनें आमजन के सरोकारों से जुङे मुद्दों और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये संगठित होकर संघर्ष करने के लिये जोश भरने वाली कई मशहूर कविताएं लिखी हैं. उनकी कुछ कविताएं आप लोगों के लिये प्रस्तुत हैं.यह गीत उत्तराखण्ड आनदोलन के दौरान प्रमुख गीत बन कर उभरा. वर्तमान समय मे यह गीत भारत के लगभग सभी आन्दोलनों में मार्च गीत के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है.
ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,
कह रही है झोपङी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे, लोग मेरे गांव के,
बिन लङे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लङाई लङ रह हैं , लोग मेरे गांव के,
कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार है
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,
एकता से बल मिला है झोपङी की सांस को
आंधियों से लङ रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेङियां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,
देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के,