Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527388 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
जयाड़ा जी, हमें इस बात का पता ही न था, अब आप कैसे हैं।
मेरा पहाड़ परिवार आपके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान दमन से उपजे जनाक्रोश को जनकवि अतुल सती जी ने कुछ इस तरह उकेरा था, उत्तराखण्ड बनने के बाद जिस तरह से उत्तराखण्ड की फिर से वही स्थिति हो रही है, यह कविता और भी प्रासंगिक हो जाती है-

हमने सोचा, विकास के बारे में,
प्रगति शिक्षा और उन्नति के बारे में,
हमने सोचा जड़ी-बूटियों, बांधों और बिजली के बारे में,
पर्यटन, उद्योग और काम के बारे में,
नशाबंदी और रोजगार के बारे में,
नहरों, सड़कों और पानी के बारे में,
हमने चाय के बागानों और पीली केसर के बारे में सोचा,
दूध और गरम मसालों के बारे में सोचा,
और भी बंद आंखों, कितनी ही बातों के बारे में सोचा।

हमने जुलूस, प्रदर्शन और भूख-हड़तालें पाईं,
बयान नारे और बाद में आश्वासन पाये,
हमने लाशें और बलात्कारी लोग कमाये,
हमारी जमीनों को आंसू दिये गये,
और दुनिया भर के पत्रकार पर्यटन कर रहे हैं।
हमने बहुत कुछ पाया है,
अंधेरा और अंधेरा,
और अंधेरों में अब हम कुछ सोचने लगे हैं,
हम बंदूकों और गोलियों के बारे में सोचने लगे हैं,
हम बारुद और बमों के बारे में सोचने लगे हैं,
हम न जाने क्या-क्या सोच रहे हैं,
और हम सोचेंगे,
हमें सोचने से नहीं रोका जा सकता,
जब तक कि सोचने पर पाबन्दी नहीं है।

jagmohan singh jayara

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 188
  • Karma: +3/-0
महर जी सिमन्या...
मैं अब आप लोगों की दुआ से स्वस्थ हूँ....मेरा पहाड़ परिवार की ओर से मेरे उत्तम स्वास्थ्य कामना के लिए  कोटि कोटि धन्यवाद .
   
जनकवि  अतुल सति जी ने उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर सुन्दर अनुभूति व्यक्त की है.   हमें पहाड़ से प्यार है...मन में कसक उठती है....लिख देते हैं कवि मन की कसक कविता के रूप में.


"जिग्यांसू"   

जयाड़ा जी, हमें इस बात का पता ही न था, अब आप कैसे हैं।
मेरा पहाड़ परिवार आपके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Bhagwaan ka aashirvaad hai ki aap swasth ho kar humare beech main aa gaye. Jaldi se aap 100% fit and fine ho jaaen yahi kaamna hai humari.

"आपकी दुआओं ने"

नहीं होने दिया आपसे दूर,
भले ही वक्ष में उठी वेदना ने,
बेदर्द होकर अपना वार किया,
याद आई, देवभूमि के देवताओं की,
वेदना से त्रस्त होते हुए भी,
बार-बार उनका नाम लिया,
जो जी रहा हूँ आज,
बद्रीविशाल जी ने मुझे,
जीवनदान दिया.

लौटा ही था मैं पहाड़ से,
लाया था कुछ छायाचित्र,
लिखी थी एक कविता आपके लिए,
"पहाड़ पूछ रहे थे"
शायद पढ़ी होगी आपने.

मैं तो यही कहूँगा मित्रों,
मुझे बचाया,
"आपकी दुआओं ने" भी.


जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
ग्राम: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल

१२.१०.२००९ को मेरे दिल में दर्द(हृदयघात) हुआ. वेदना के उन छणों  में  मित्रों मुझे आप लोगों की बहुत याद आई.  आज मैं ठीक होकर आपके बीच लौट आया हूँ. भीष्म कुकरेती जी
 और पराशर गौड़ जी ने  दूरभास पर मेरा  हाल पूछा,  शुभकामनाएं दी...कैसे भूल सकता हूँ.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
POEM BY NAREDRA SINGH NEGI JI ON UTTARAKHAND STATE STRUGGLE
« Reply #214 on: December 08, 2009, 08:10:27 AM »

Famuos Folk Singer of Uttarakhand Shri Narendra Singh Negi Ji's wrote the following poem on Uttarakhand State Struggle
==================

द्वी दिनू की हौरि छ अब खैरि मुट्ट बोटीकि रख
तेरि हिकमत आजमाणू बैरि
मुट्ट बोटीक रख।

घणा डाळों बीच छिर्की आलु ये मुल्क बी
सेक्कि पाळै द्वी घड़ी छि हौरि,
मुट्ट बोटीक रख

सच्चू छै तू सच्चु तेरू ब्रह्म लड़ै सच्ची तेरी
झूठा द्यब्तौकि किलकार्यूंन ना डैरि
मुट्ट बोटीक रख।
हर्चणा छन गौं-मुठ्यार रीत-रिवाज बोलि भासा
यू बचाण ही पछ्याण अब तेरि
मुट्ट बोटीक रख।

सन् इक्यावन बिचि ठगौणा छिन ये त्वे सुपिन्या दिखैकी
ऐंसू भी आला चुनौमा फेरि
मुट्ट बोटीक रख।

गर्जणा बादल चमकणी चाल बर्खा हवेकि राली
ह्वेकि राली डांड़ि-कांठी हैरि
मुट्ट बोटीक रख।


sOURCE : मी उत्तराखंडी छौ!!!!: मुट्ट बोटीकि रख (FACEBOOK COMMUNITY)

Meena Rawat

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 849
  • Karma: +13/-0
bahut hi achi kavita hai.......

jagmohan singh jayara

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 188
  • Karma: +3/-0
"पर्वतीय महिलाएं"

आज भी दम तोड़ती हैं,
घास काटते हुए'
जब फिसल जाता है पैर,
पहाड़ी ढलान पर,
और गिर जाती हैं,
गहरी खाई में.

 जंगलों में,
जंगली जानवरों के हमले से,
विषैले सांपों के काटने से,
पेड़ों की टहनी काटते हुए,
पेड़ से गिरने से,
कहीं पेड़ों को छूते,
बिजली के तारों द्वारा,
करंट लगने के कारण,
हो जाती है अकाल मृत्यु,
पर्वतीय महिलाओं की.

प्रसव पीड़ा में,
घायल अवस्था में,
अस्वस्थ होने पर,
उत्तराखंड सरकार की,
१०८ एम्बुलेंस सेवा,
राहत प्रदान करती है,
जो एक सार्थक प्रयास है,
पर्वतीय महिलाओं  और,
सभी  के लिए.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ग्राम: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल
E-mail: j_jayara@ yahoo.com
७.१२.२००९

jagmohan singh jayara

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 188
  • Karma: +3/-0
 "तस्वीर"

मेरी देखकर बनी थी वो,
जीवन भर के लिए साथी,
कागज पर नहीं, साक्षात्,
आज याद है उभर आती.

जीवन चलता रहा,
और तस्वीर बदलती रही,
आईने ने मुझसे कहा,
तुम आज नहीं हो वही.

स्वर्गवासी पिता जी की तस्वीर,
निहारता हूँ जब-जब,
फिर ख्याल आता है मन में,
वे मेरी यादों में बसे हैं अब.

एक दिन ऐसा आएगा,
मेरी तस्वीर, लटकी होगी दिवार पर,
खामोश! कुछ नहीं कहेगी,
देखेंगे परिजन और मित्र जीवन भर.

तस्वीर(शरीर) तो तस्वीर होती है,
एक दिन मिटटी में मिल जाती है,
उसमें बसा इंसान चला जाता है,
उसकी अदाओं की याद आती है.

कवि:जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
१३.१२.०९


jagmohan singh jayara

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 188
  • Karma: +3/-0
"पहाड़ों पर"

पड़  गई है बर्फ,
जिसकी इंतजारी रहती है,
ह्यूंद के मौसम में,
पर्वतवासियों  को.
 
सुन ली है पुकार,
कालिदास जी के मेघदूतों ने,
पर्वतजनों की,
और मेघों का दिल,
पिघल गया.

उत्तराखंडी प्रवासियों,
खबर आई  है पहाड़ से, 
बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री,
यमुनोत्री, हर्षिल, धराली, सुक्कीटॉप,
दयारा, बेलग, हेमकुंड, गौरसौं,
रुद्रनाथ, चोपता, गौरीकुंड,
गरुड़चट्टी, मद्महेश्वर में,
हुई बर्फबारी ने,
पर्वतीय इलाकों को,
अपने आगोश में ले लिया.

पहाड़ पर होने वाली बर्फबारी,
आज भी याद दिलाती है,
पर्वतजनों को,
बीते हुए बचपन  की.

ठिठुरन पैदा हो जाती थी,
जब खेलते थे बर्फ से,
एक दूसरे के साथ,
ठिठोली  करते हुए,
उत्तराखंड के पहाड़ों पर,
अपने प्यारे गाँव में.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ग्राम: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल
E-mail: j_jayara@ yahoo.com
16.१२.२००९

dinesh dhyani

  • Jr. Member
  • **
  • Posts: 85
  • Karma: +4/-0

3
हौर्यों का बान

एक दिन
झणि क्य ह्वै
अचणचक ब्वन बैठ
तुम सदन्नि इन्नि रैग्यो
सदन्नि हौर्यों का चक्कर मा
बर्वाद ह्वैग्यो।
पैलि ब्वै-बाब
अर अब भै-बैंणा
हमुन क्य सदन्नि
इन्नि रैंण।

मिन बोलि
हे निरबै लोळी
इनु नि बोली
म्यर ब्वै-बाब
भै-बैण
पर्या कख्वैकि ह्वीन।
वीं थैं त झणि क्य ह्वै
मेरि बात जर बि निसुणणी छै
यखरि लगीं छै
तुमन जिन्दगी भर
मींथे खैरि खवै
हौर्यों का बान
खपै दे मरि बि ज्यान
पण अब इन्नु नि होणू
मिन अब कुछ नि सैंणु
मेरि त न
पर म्यारों क बार म
तुमथैं सोचण प्वाड़लु
अब ये गड़वाल म
निरयैंदु
औलाद बणाण त हमथैं बि
ड़िल्लि लिजाण प्वाड़लु।
अब समझ आई
यीं थैं अचणचक क्या ह्वाई?
यो माभारत त
दिल्ली जाणखुणि उर्यीं छाई।

मिन बोलि
निरबै कज्यणि
तु सदन्नि सान्यों म क्यों बिंगदि
इतग सि बात
बिना भूमिका कि क्यों नि सुणौंदि।

यां म इतग बत्थ सुणौंणकि
म्यरूखानदान थैं समळौंण कि
क्या बात छै?
मि जणदु छौं
त्वैथै बि दिल्लि कि हवा लगिगे।
चल त ढैक यों द्वार मोर
हंड्य मे दे यी बकर, गोर
अर बैठ गाड़िम
चल दिल्ली सैर मां
तु बि अपणि गांण्यों थै
अपरि स्याणि थैं
साक्षात होंद देख।
पण अब बुरू निबोल
इनु नि सोच
अपरू गिच्चु नि बिगौ
सब्बि कुछ कैरि कारिकि
अब चुल्लि नि खर्यो।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22