Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527389 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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            ( ईजै याद और डूबूक भात) 

मकै ऐगै आज ईजै याद,
याद ऐगी आज डूबूक भात।
 
ईजा आज खाण क्ये बनै र,
च्यला भटा डुबूक भात बनै र।

ईजा झोई भात किलै नी बनाय,
च्यला क्ये बतु दै ज नी जमाय।

ईजा मी नी खान ह भटा डुबक भात,
च्याला परदेश जै बे आली तिक यैकी याद।

ईजा मी क दूध, भात दी दे,
काँ बै दियू च्यला आज भैसैलै नि सौय।

ईजा ह भैसै क घूर्यै दै भ्योवन,
हस नीका च्यला भैसैल आज त नी सौय।

मी क्ये नी जाणन ईजा मक दूध भात चै,
आज दूध नी छ च्यला,य डूबूक भात खैलै।
 
खालौ म्यर च्यल,
म्यर च्यल त भौतै भल छ,
खा च्यला खा शाबास।
 
सुन्दर सिंह नेगी 23-12 - 09

धनेश कोठारी

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म्यारा डेरम
म्यारा डेरम
गणेश च चांदरु नि
नारेण च पुजदारु नि

उरख्याळी च कुटदारु नि
जांदरी च पिसदारु नि

डौंर थाळी च बजौंदारु नि
पुंगड़ा छन बुतदारु नि

ओडु च सर्कौंदारु नि
गोरु छन पळ्दारु नि

मन्खि छन बचळ्दारु नि
बाटा छन हिट्दारु नि
डांडा छन चड़्दारु नि
Dhanesh Kothari
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Devbhoomi,Uttarakhand

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इतने सीधे खड़े रहते हैं
कि अब गिरे कि तब
गिरते नहीं बर्फ़ गिरती है उन पर
अंधेरे मे ये बर्फ़ नहीं दिखती
पहाड़ अपने से ऊँचे लगते हैं
डराते हैं अपने पास बुलाते हैं

दिन में ऐसे दिखते हैं
कोई सफ़ेद दाढ़ी वाला बाबा
ध्यान में अचल बैठा है
कभी एक हाथी दिखता है
खड़ा हुआ रास्ता भूला हो जैसे
जोशीमठ में आकर अटक गया है
बर्फ़ के कपड़े पहने
सुंदरी दिखती है पहाड़ों की नोकों पर
सुध-बुध खोकर चित्त लेटी हुई
कहीं गिर गई अगर

लोग कहते हैं
दुनिया का अंत इस तरह होगा कि
नीति और माणा के पहाड़ चिपक जाएंगे
अलकनंदा गुम हो जाएगी बर्फ़ उड़ जाएगी
हड़बड़ा कर उठेगी सुंदरी
साधु का ध्यान टूट जाएगा
हाथी सहसा चल देगा अपने रास्ते

jagmohan singh jayara

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२००९ वर्ष बीत गया,

आ रहा है  २०१०,
चिंतन करना,
बीते वर्ष के पर,
क्या पाया,
क्या खोया बस?

मित्रों मेरे मैंने पाया,
नवजीवन इस साल,
आज हूँ आपके बीच में,
देखो कैसा कमाल.

प्रेम है मित्रों आपसे,
मन में बसे बद्रीविशाल,
करता हूँ कामना प्रभु से,
सुखमय हो सबको,
२०१० का साल.

इच्छा मन में एक रहती है,
बिसरें नहीं,
पहाड़ और गाँव,
जाएँ जन्भूमि की ओर,
थिरकते रहें अपने पावँ.

कवि मित्रों लेखनी से,
पहाड़ प्रेम जगाना,
देना सन्देश सभी को,
नव वर्ष खूब मनाना.


रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा  "ज़िग्यांसु"
३१.१२.२००९
E-mail: j_jayara@yahoo.com


धनेश कोठारी

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अमानुष दीवार

मेरे और उसके वर्ण के बीच
अश्पृश्यता की एक अदृश्य
वर्ग भेद दर्शाती दीवार
किन्तु
दीवार पर कान लगाकर
हम अपनी धड़कनों को
महसूस कर सकते हैं
संबोधन का प्रत्युत्तर
दु:खों का समाधान
सुखों का आदान-प्रदान
अनुभूतियों को तलाश सकते हैं
आज भी
दोनों में पृथकता के बाद भी
दुभाषिये की जरुरत नहीं
अभिव्यक्तियों अभिमतों में अन्तर नहीं

मेरा तय कर्तव्य
भीख देना हो सकता है/ मगर
उसी भीख को ‘शिमान्या’ कहकर
कृतघ्नता से सम्मान देने का
औचित्य समझता है वह
तभी तो
मेरी बेटी को
‘दिशा ध्याणि’ मानता है वह
उसके मंगल विवाह में
सुखद भविष्य की कामनाओं का आह्वान
ढोल दमौ को ध्वनित कर करता है
पैतृक कला के सांचे में ढला उपहार
दाथुड़ी देता है उसे
साहस और शक्ति के प्रतीक में
विदाई के वक्त उसकी नम आंखों में आंसू
मेरी स्थिति के खारेपन को
निशब्द व्यक्त कर देते हैं
आज भी
दिशा से रैबार का रिश्ता बना है उसका

मंगल कामनाओं को स्वीकारता उससे
अब तक
और वह
मेरी आशाओं अभिलाषाओं की परीक्षा
हमेशा उत्तीर्ण करता
तब भी
आज तक हम नहीं मिटा पाये
अपने बीच की ‘अमानुष दीवार’
सदा-सदा के लिए

कापीराइट : धनेश कोठारी
kotharidhanesh@gmail.com
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Jagga

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हैप्पी न्यु ईयर-2010
 
पुराणु साल छोडी करला, नयु कू सफ़र
तुम तै म्यारु पहुंची यारॊ, हैप्पी न्यु ईयर - २
हैंसी हैंसी और खुशी खुशी, कटू यु सफ़र
हैपी न्यु ईयर दगडियो, हैप्पी न्यु ईयर
............ ......... ......... ......... ......... ......... ........
दुआ मी करदु यारो, सदा रैया सुखी
औण वाल साल तुमतै, दिया हर खुशी - २
हैंसी- हैंसी............
हैंसी- हैंसी और खुशी-खुशी कटू यु सफ़र
सभी भाई- बहिण्यो तै मेरु हैपी नयु ईयर
हैपी न्यु ईयर दगडियो हैप्पी न्यु ईयर
............ ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .
एक बोतल चलली विस्की.... एक बोतल वियर
मिली-जुली कि रौला सभी, हेल्लो माई डियर - २
मिली-जुली............
मिली-जुली और हंसी खेली तै कटू यु सफ़र
सभी दगडियों तै मेरू..... हैप्पी नयु ईयर
हैपी न्यु ईयर दगडियो हैप्पी न्यु ईयर
............ ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
जिन्दगी कि दौड मा, क्वी छुडू ना पैथर
हाथ पकडी जौला दगडी, भोल क्या खबर - २
जितका जैसी...........
जितका जैसी भलू हवे साकु, छोडा ना कसर
सभी बुढ्या ज्वान दगडियो, हैप्पी न्यु ईयर
हैपी न्यु ईयर दगडियो हैप्पी न्यु ईयर
............ ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
हैपी न्यु ईयर दगडियो हैप्पी न्यु ईयर......
हैपी न्यु ईयर दगडियो हैप्पी न्यु ईयर.......... 

 

हिटो हिटो आगिल बै हिटो , साल याद उने रल .


२००९ में कम हईन, २०१० पास बजट उने रल .


य दैय मास भेटने रया , अपश में मिलने रया


२०१० में आपश में खुश रया , हैप्पी न्यू इयर .


Dinesh Bijalwan

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म्यारा डेरम
म्यारा डेरम
गणेश च चांदरु नि
नारेण च पुजदारु नि

उरख्याळी च कुटदारु नि
जांदरी च पिसदारु नि

डौंर थाळी च बजौंदारु नि
पुंगड़ा छन बुतदारु नि

ओडु च सर्कौंदारु नि
गोरु छन पळ्दारु नि

मन्खि छन बचळ्दारु नि
बाटा छन हिट्दारु नि
डांडा छन चड़्दारु नि
Dhanesh Kothari
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thanks dhanesji, for a nice poem.   keep it up.

Dinesh Bijalwan

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जबारी बल्दु  का सितालो पकडी, बान्द्द्णा रदान मुस्स्का, वबारी चौक मा कुल्कणु  रन्दु गोशी को छौलू
जबारी खैची ब्लदु , गोशी जोड्दो जुआ निस,  वबारी एक गौणु उठै , बुड्दौ भिजौणु रन्दु छौलु,
जेठ का दोफरा मा, द्वारी ह्वै जान्दी  बल्दु की पीठ, भिमल की सेट्गी न,
भिमल का छैल  मजा मा प्ड्यु रन्दु गोशी को छौलु,
घर औन्दान जब बल्द अप्णी थकी काया ल्हीक, पूछ  ठिन्गरे क चल्दु छ गोशी को छौलु-
ज्अन बोले वैन हि  फाडी हो फडीन्कु,

जबारी बूसु बुकै  बल्द  जुगार मा भैर  ढोल्दान अपणी पीडा, गोशी का हात से गाश छ्ट्ग्णु रनु गोशी को छौलु,


हम भी तुम्हारा छौ, आख्योन भरी  धौण लम्योन्दान बल्द,  भ्क्दु छ गोशी को छौलु,
अर  यकीन दिलै देन्दु   कि वु  गोशी सण सिन्ग दिखौणा छ्न/
बल्दु स्ण  सचि सिन्ग दिखौणा ऐ ग्या त?

पंकज सिंह महर

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पहाड़


आदमी स‌े पहले
पेड़ का घर है
पहाड़ों पर हवाएं पसरती हैं
पहाड़ों पर रहती हैं नदियां
कूदती-फांदती हुई
पहाड़
बर्फ, कोहरे और
बादलों के लिए होता है
बर्फ, बादल, कोहरा, पेड़, पानी
और हवाएं
होते हैं हमारे लिए
तुम्हारे लिए
चिड़ियों और मछलियों के लिए
कुछ इस तरह
स‌ारी दुनिया के लिए होते हैं
पहाड़।

रचना- श्री लोकेश नवानी।

Dinesh Bijalwan

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देली मा मेरी कू ढोली गे फूल्कन्डी उदास गीतू की

कैन दिलायी मैकु याद  उलारया रितु की

कुछ हि दिन रै गेन अब जुग जाण मा

ना कैन बग्ड्वाल लाणु,

ना औणी कै याद , भरणा अर जीतू की

कान्ठ्यो बान्सुली , चौक मन्डाण

चैती बहार ,  चोदिसी  रसाण

तरसदी च वू दिनू को आज ,

जुकडी मै अधीतू की


 

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