Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 286455 times)

Bhishma Kukreti

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"मि भि गढ्वळि छौं"

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Garhwali Poem by Payash Pokhra
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मि भि गढ्वळि छौं,
हाँ हाँ मि भि त गढ्वळि छौं,
बुरु नि मन्यां मि भि गढ्वळि छौं !
लड़बड़ि दाळ दगड़ चटपट्टि भुज्जि ह्वाला क्वी,
मि त छन्छ्या, थिचौंणी, कफिळि अर झ्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
सरकरि नौकर चाकर अर पिन्सनेर ह्वाला क्वी,
मि त डिक्चि डिपाटमेन्ट मा चिमचा, पणै-डडुळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
छज्जा जिंगलादार, खम्ब तिबरि-डंडळ्यूं का ह्वाला क्वी,
मि त खन्द्वर्या कूड़ि-धुरपळि की रड़ईं फटळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
चौसर-चौपड़ बिसाता की बिगरैलि कौड़ि ह्वाला क्वी,
मि त गुच्छेरु की गुच्छी की 'पिल' बणी खड्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
गीत-गीतु का गितार सितार नेगी दा ह्वाला क्वी,
जु हुलांस कैळ नि सूणी मि त वो ढौळ-ढ्वळि छौं !

हाँ भा हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
खान्दा-पीन्दा, हैंसदा-ख्यळदा बग्छट ह्वाला क्वी,
मि त नांगा गात अर भूखा प्याट की वो रमछ्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
बुरु नि मन्यां मि भि गढ्वळि छौं !!
हाँ पीवर(pure) क्वद्या गढ्वळि छौं !!!

##

@पयाश पोखड़ा


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Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

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जय भैरव नाथ ठाकुर जी
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Spiritual Garhwali Poem by Krishna Kumar Mamgain
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ ।
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥
.
मेरू आधार तू मेरू दातार तू ।
मेरू संसार तू मेरू परिवार तू ॥
मेरू सत्कार तू मेरू उद्धार तू ।
मेरू सौकार तू मेरू हितकार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
मेरू भरतार तू मींकु अवतार तू ।
मेरू करतार तू मीं लगै पार तू ॥
 मेरू आचार तू मेरू ब्योहार तू ।
दिलमां दीदार तू छै सहोदार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
ध्यान कू कार तू मान कु सार तू ।
मनकु हंकार तू छै परोपकार तू ॥
घर कि पगार तू मेरू दीदार तू ।
मेरू सुखकार तू मेरू दुखहार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
छै सलाकार तू छै मददगार तू ।
छै मेरा घार तू घर का बाहर तू ॥
सोच की सार तू पौंच से पार तू ।
दिल कु दरबार तू मेरू संसार तू ..
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
दिलमां साकार तू छै निरंकार तू ।
मनकि बयार तू भक्ति बौछार तू ॥
कष्ट उद्धार तू मेरि सरकार तू ।
मेरू दरबार तू दर कु दीदार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
छै मनोहार तू हे जगत्कार तू ।
मींकु आकार तू मींकु साकार तू ॥
 मेरू दिलदार तू मेरू भरतार तू ।
जै नमस्कार तू नम कु आकार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
सृष्ठि आकार तू शेष फुँकार तू ।
ओम कू सार तू ब्योम से पार तू ॥
बेदु उच्चार तू पूजौ आधार तू ।
मेरू ओंकार तू मेरू मोंकार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
.
भक्ति कू सार तू मुक्ति दातार तू ।
सुखसंसार तू मन कु विहार तू ॥
मेरि मातार तू लड्लो प्यार तू ।
मुक्ति कू द्वार तू मेरू संसार तू ॥
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
 .
ब्यालि यादगार तू आज की बहार तू ।
भोलै चमत्कार तू सगोर कि सार तू ॥
दिल का आरपार तू मेरू बंधनवार तू ।
मेरू सलाहकार तू छै सिपैसलार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
 .
शंख की टंकार तू गीतकी झंकार तू ।
भजन की पुकार तू कीर्तन की सार तू ॥
धन से छै पार तू छै सदाचार तू ।
मेरू ब्यवहार तू मेरू माफिकार तू ..
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
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संधि की लकार तू भाषा की पुकार तू ।
बेदू की बहार तू पूजा कू आहार तू ॥
मेरू दिलदार तू मेरू अलंकार तू ।
मेरू पालनहार तू जगकु जगत्कार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
 .
दया कु अम्बार तू ब्वै बबू कु प्यार तू ।
दुखम खबरदार तू सुखम बफदार तू ॥
मेरू शिल्पकार तू मेरू संस्कार तू ।
मेरू चौकीदार तू मेरू ठेकादार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
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मेरू ब्यवहार तू मेरी पौ बहार तू ।
छै मेरू दिलदार तू मीकु चमत्कार तू ॥
 छै निर्बिकार तू मेरी मनसार तू ।
जै मेरा भैरौंजी ईष्ट साकार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ।
 .
भक्ति देनहार तू मुक्ती दातार तू ।
धैर्य की दीवार तू कष्ट निवार तू ॥
 पैलु हिस्सादार तू पैलु रिस्तादार तू ।
सारूं कू छै सार तू मेरा भैरौं प्यारु तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ ।
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥
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जय भैरव नाथ ठाकुर जी ।
जय दस जून ॥
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Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }
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Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

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।करयु छो पैली।
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Garhwali Poem by Diwakar Budakoti
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जख चलनी छै मेरी रिश्ता कि बात दगड्या
उंकू झणि कै दगडि करार करयू छो पैली ।

मि गै उंकि दैळिम् द्यबता नौ कु हल्दू मंगणा कु
पण उंकु कै ओरु नौ कु गुलबंद पेरयू छो पैली ।

जै दुसमन ते खुज्याणू रो मि छामा छामि कैकि
वो पटवारि जि कु रिश्बत खेकी, फरार करयु छो पैली।

वै फर आणि रै हर्पणा सैद भूतू कि बार बार
जो डांडा कांठो कि अंचरियों कु हर्प्यू छो पैली ।

जैकु तमासु दिखणा खुण ,खड़ि धौण कना रै तमसगैर
वेकु अफुखुण फिट जंक जोड़ करयु छो पैली।

लोग वै खुण बुना रै फूक फूकि क मारि रे घटाक
जो बिचरु भितर भैर दूधा कु जलयू छो पैली।

उज्याङ् ख़ैगै क्वी औरि, अर फंसिगै बिचरु "खुदेड़"
अब वो कैम बोलु कि मि च्वट्टा ख़ैकि कलयू छो पैली।

सर्वाधिकार सुरक्षित -:

दिवाकर बुडाकोटी
संगलाकोटी , पौड़ी गढ़वाळ


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उदास घिंडुडु
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गढ़वाली कविता - दर्शन सिंह रावत
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ए घिंडुडी, इनै सूणिदी।
क्या स्वचणी छै मी बि बतादी।

जणणू छौं मि, जु मि स्वचणू छौं,
तुबी वी स्वचणी छै,
तबी त म्यारु छोड़ नि द्यखणी छै।

हालत देखिक ए गौं का,
त्यारा आंख्यू मा पाणि भ्वर्यूंच।
इनै देखिदी मेरी प्यारी,
म्यारु सरैल बि उदास हुयूंच।।

अहा, कना छज्जा, कनि उरख्यळी।
वूं डंडळ्यूं मा खूब मनखी।
पिसण कु रैंदु छाई, कुटण कु रैंदु छाई,
वूं थाडौं मा खूब बिसगुणा रैंद छाई।
दगड्यो का दगडि हम बि जांदा छाई,
वूं बिसगुणौं मा, वूं उरख्यळौं मा, खूब ख्यल्दा छाई।

अर हाँ, तु बि क्य, फर फर उडांदि छाई,
ड्वलणौं थै नाचिकि कनि बजांदि छाई।
वू डूंडु घिंडुडु, अब त भाजि ग्याई,
पर त्वैफर वु कनु छडेंदु छाई।
मिल बि एक दिन वु कनु भतगै द्याई,
वैदन बटि वैकि टक टुटि ग्याई।

सुणणी छै न,
म्यारु छोड़ द्यखणी छै न।

एक दिन कनु तु,फर फर भितर चलि गै।
भात कु एक टींडु, टप टीपिक ली ऐ।
वैबत मिल स्वाच, बस तु त गाई,
हाँ पर तुबि तब खूब ज्वान छाई।
जनि सर सर भितर गैई, उनि फर फर तू भैर ऐ गेई।

जब तु फत्यलौं का छोप रैंदि छाई,
मि बि चट चट ग्वाळु ल्यांदु छाई।
सैरि सार्यूं मा खेति हूंदि छाई,
हम जुगा त उरख्यळौं मा ई रैंदु छाई।
खाण पीणकी क्वी कमि नि छाई।

झणि कख अब वू मनखी गैं, झणि किलै गौं छोडिकि गैं।
हमरा दगड्या बी लापता ह्वै गैं,
स्वचणू छौं सबि कख चलि गैं।

मेरि प्यारी,सुणणी छै ई-
स्यूं बुज्यूं हम जाइ नि सकदा,
वूं बांजि कूड्यूं देखि नि सकदा।
हम त मनख्यूं का दगड्या छाई,
मनख्यूं का दगडी रैंदा छाई।

चल अब हम बी चलि जौंला,
मेरी घिंडुडी -
कैकि नि रै या दुन्या सदनी,
इथगि राओल यख अंजल पाणी।

छोड अब जनि खाइ प्याइ पिछनै,
चलि जौंला चल हिट अब अगनै।
वूं मनख्यूं कू सार लग्यां रौंला,
बौडि जाला त हम बि ऐ जौंला।
सर्वाधिकार सुरक्षित @दर्शनसिंह रावत "पडखंडाई "
दिनांक 16/09/2015

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Dhangu, Gangasalan Ka Kukreti

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जबाब कु द्यालु ?
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गढ़वाली कविता - दिनेश कुकरेती
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सरैला कु पाणी भुलू सुखणू किलै ह्वालु,
स्यु निर्भगि कुकर इन भुकणू किलै ह्वालु।

पर्सी बट्ये आंखि फड़कणी हिर्र हूणी गात,
बिना तीसाs भि गाळु सुखणू किलै ह्वालु।

पीठी पिछ्वडि़  अपण्यास दिखांदु छौ वु,
अब मीs देखिs इन लुकणू किलै ह्वालु।

बाब-ददौंsन खैरि खै-खै कि मुंडु रुप्याई,
ऊंकि करीं-कमयीं तैं फुकणू किलै ह्वालु।

जौंका बाना भूका-तीसा सदनी बौलु काई,
व्वी बुनान बुढ्या बोझ बुकणू किलै ह्वालु।

उमर छै त मुंड मा रैs सर्या दुन्या कु बोझ,
अब मुंडु मलासीs भि दुखणू किलै ह्वालु।

दिनेश कुकरेती
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चाच्ची ,बड्यों न बोलि ----------
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Garhwali Poem by Rakesh Mohan Thapliyal
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हे बेटा कखन औंण,
 हमारा मुखड़ों पर अन्वार,
 लैंदु –पाणी अब कखि रई नी ,
 छुड़ी दाळ-रोट्टी,साग-भात खा
भुज्जी की त छुई ही नी ?
हे बेटा,कुछ बांदरुन धपोरी,
 अर कुछ सुंगरुन खाणा,
 डोखरों, छोरा खारु बोंण,
 जब कुछ नी हासिल –पाई ?
Copyright@ Rakesh Mohan Thapliyal

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"ढ्वलकी बिचरी"
-
Garhwali Poem by Sunil Bhatt
-
ढ्वलकी बिचरी कीर्तनौं मा,
भजन गांदी, खैरी विपदा सुणादी।
पढै लिखैई बल अब छूटीगे,
एक सुपन्यु छौ मेरू, ऊ बी टूटीगे।
ब्वै बुबा बल म्यरा, दमौ अर ढोल,
अब बुढ्या ह्वैगेनी।
भै भौज डौंर अर थकुली, गरीब रै गेनी।
छ्वटी भुली हुड़की झिरक फिकरौं मा,
चड़क सूखीगे।
हंसदी ख्यल्दी मवासी छै हमारी,
झणी कैकु दाग लगीगे।
ब्वै बाबा, भै भौज भुली मेरी बेचरी
कै बेल्यौं बटैई, भूखा प्वटक्यौं बंधैई
भजन गाणा छन, द्यव्तौं मनाणा छन।
देखी हमरी या दशा,
औफार डीजे वीजे विलैती बाबू ,
गिच्चु चिड़ाणा छन,
ठठा बणाणा छन, दिल दुखाणा छन।
ढ्वलकी बिचरी खैरी लगौंदी, ढ्वलकी बिचरी।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
17/06/17

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  Dr Umesh Chamola : A Multidimensional Garhwali Creative
-
by Sanjay chauhan
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आज हम आपका परिचय करा रहे हैं डॉ. उमेश चमोला से । उमेश चमोला जिन्होंने  बरसों से मौजूद लोककथाओं को (जिन्हें हम लोग अपने बुजुर्गों से सुना करते थे) को संगृहित करके आखरों में आने वाली पीढ़ी के लिए संजो कर रखा, लोक की संस्कृति और परम्पराओं को सरल और सहज बनाकर लोक में लाये, लोक की बोली, भाषा और लोकजीवन से जुड़े छोटे छोटे, लेकिन अनछुये और महत्वपूर्ण प्रसंगो से लोक का परिचय कराया, लोक के प्रति लगाव आपको विरासत में मिला है। आपकी प्रतिभा के हर कोई मुरीद है, खुद की मेहनत से लोक में मुकाम प्राप्त किया, लोक में आखर का ज्ञान देने के साथ साथ ये लोक को परिभाषित करने वाली एक दर्जन से भी ज्यादा पुस्तकों का साक्षात्कार लोगों से करवा चुके हैं ।

डॉ. उमेश चमोला  रुद्रप्रयाग जनपद में मन्दाकिनी घाटी के मैखंडा परगने के कौशलपुर गांव (बसुकेदार) के रहने वाले हैं । मां राजेश्वरी देवी और पिता श्रीधर प्रसाद चमोला के घर १४ जून १९७३ को आपका जन्म हुआ ।  स्नातक, परास्नातक. एम एड, की पढाई आपने गढ़वाल विश्व विद्यालय श्रीनगर से प्राप्त की। यहीं आपने पत्रकारिता में स्नातक भी किया । पत्रकारिता में आपको विश्वविधालय द्वारा  रजत पदक भी दिया गया। १९९८  में आप बतौर शिक्षक राजकीय सेवा में आ गए। साइंस का छात्र और शिक्षक होते हुए भी लोक के प्रति जिज्ञाषा आपको विरासत में पिता श्रीधर प्रसाद चमोला से मिली। आप दर्जनों पुस्तकों का सम्पदान कर चुके हैं। आपके द्वारा लिखित किताब उत्तराखंड की लोक कथाओं में आपने जिस तरह से लोक में मौजूद कहानियों का समावेश किया है ।वह बेजोड़ है। ये कहानियां आज समाज से विदा हो चली हैं । डिजिटल युग में अब बच्चे इनसे दूर हो चले हैं। लेकिन, हमारी कई पीढ़ी इन्हीं कहानियों को सुनकर बड़ी हुई हैं। उस दौर में मोबाइल, टीबी, की जगह दादा-दादियों की यही कहानियां थी, जो न केवल मनोरंजन के साधन थे, अपितु इन कहानियों में समाज का ताना-बाना बुना हुआ होता था।  सामाजिक मूल्यों को प्रगाढ़ करती ये कहानियां बरसों से यहाँ के समाज का हिस्सा रही हैं। ये कहानियाँ अच्छे बुरे को चरितार्थ करती है, साथ ही सोचने के विस्तृत दायरे से रूबरू करवाती हैं।

उत्तराखंड की लोक कथाओं  में बंटवारा, ह्युंद के लिए, जय घोघा माता, तिस्मिली तिस तिस, काफल पाको मी नि चाखो, हल के स्यूं पर मछली सहित कुल ४२ कहानियां हैं। जो बरसों से उत्तराखंड के लोक में लोक कथाओं के रूप में मौजूद हैं। इन्हें दादा-दादी कथा काणी रात ब्याणी कहकर सुनाती थी, लेकिन आज फेसबुक, ट्वीटर, इंस्ट्राग्राम, विचेट, कार्टून के इस दौर में नौनिहालों के लिए ये पुस्तक किसी वरदान से कम नहीं है ।  इसके अलावा आपके द्वारा रास्ट्रदीप्ती, उमाल, आस पास विज्ञान, उत्तराखंड की लोक कथाएं भाग -१ और भाग-२, कचाकि- उपन्यास, फूल, धुरलोक से वापसी, पडवा बल्द नाम की किताब में ३२ गढ़वाली ब्यंग कवितायें, नानतिनो की सजोली –गढ़वाली-कुमाउनी बाल काब्य संग्रह जिसमें आपके और विनीता जोशी जी द्वारा होली, घिनुड़ी, किरमोड, बुरासं, हिंसोल, से लेकर घुघूती, फूल सगरान्द, सहित पहाड़ के हर उस बिंदु को उकेरा है, जो यहाँ के लोकजीवन के अभिन्न अंग हैं।  रचनाओ का १५ से भी अधिक रास्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में संकलन प्रकाशित हो चुका है।

इसके अलावा निरबिजू एक गढ़वाली उपन्यास है तो पथ्यला में २९ गीत और १३ कविताएँ है, जिसमे पथ्यला ( सूखे हुये पेड़ो के पतियाँ) को जिस अधभुत ढंग से उकेरा है ,वह वाकई काबिले तारीफ़ है, इसके अलावा आपकी गढ़वाली गीतों की एक एलबम “गों माँ” भी आ चुकी है। आपकी अंग्रेजी भाषा की पत्रिका लविंग सिस्टर में  बाल कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं। आप वर्तमान में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड देहरादून में बतौर शिक्षक-प्रशिक्षक के पद पर कार्यरत हैं । उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के संपादन और लेखन में भी आपकी सहभागिता होती है। वहीँ चन्द्र कुंवर बर्त्वाल, रविन्द्र नाथ टैगोर, महाकवि कालिदास, उत्तराखंड के लोकगीत, सहित अन्य विविध शोधपत्रों का प्रकाशन, लोकसंस्कृति, लोकसाहित्य के लिए दिये गए योगदान हेतु आपको विभिन्न मंचो से भी सम्मानित किया गया है । जिसमे ऋचा रचनाकार परिषद मध्य प्रदेश से भारत गौरव की मानद उपाधि.उत्तराखंड मिलन साहित्य सम्मान, छ्तीशगढ़ में साहित्य महिमा सम्मान, रास्ट्रीय बाल प्रहरी, रास्ट्रीय काब्य श्री एवं बाल प्रहरी सृजन श्री सम्मान, सहित पंजाब, उत्तरप्रदेश एवं दिल्ली की कई साहित्यक संस्थाओं से सम्मान भी मिल चुका है।

उमेश चमोला कहते हैं  कि जीवन में रचनात्मकता बहुत जरुरी है, इसके बिना जीवित मनुष्य भी मृत्यु तुल्य है, आगे कहते हैं की जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ स्वजनों के प्रयासों से आई मृत्यु से साक्षत्कार है, जिसने मेरी जीवन का उद्देश्य ही बदल कर रख दिया, मेरे जीवन में मेरी माता और पिताजी का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है, उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते का ही अनुकरण कर रहा हूँ, वर्तमान युवा पीढ़ी का अपनी मात्रभाषा, लोकसंस्कृति, परम्पराओं, से विमुख होना काफी तकलीफ देय है। यदि हमें अपनी लोकभाषा, लोकसंस्कृति को बचाए रखना है तो युवा पीढ़ी के युवाओं को अधिक से अधिक संख्या में आगे आना होगा।  जैसी आत्मीयता, और बैभवशाली हमारी संस्कृति और बोलियाँ है वैसी अन्यत्र नही, लोक से लगाव ने ही जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी। कोशिस कर रहा हूँ की लोक का कुछ ऋण लौटा सकूँ और आने वाली पीढ़ी को कुछ दे सकूं।  वास्तव में यदि देखा जाय तो डॉ. उमेश चमोला जैसे लोग समाज के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। उन्होंने लोक, लोकभाषा, लोकसंस्कृति को अपनी लेखनी के द्वारा नया आयाम दिया है और लोक को नई पहचान दिलाई है। लोक के लिए समर्पित २५ बरसो से उनकी ये जात्रा आज भी बदस्तूर जारी है…।

 संजय चौहान, बंड पट्टी,पीपलकोटी, चमोली

Thanking You .
Presented by Bhishma  Kukreti

Bhishma Kukreti

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Interview with Garhwali creative Dr Umesh Chamola by Bhishma Kukreti 
 बहुआयामी रचयिता डा उमेश चमोला  भीष्म कुकरेती की बातचीत
(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part – 167 )
 भीष्म कुकरेती;-  आपना अब तक गढवाळी मा क्या क्या लेख अर कथगा कविता लेखी होला, आपक संक्षिप्त
जीवन
परिचय , सन गाँव , पट्टी , जिला , पढाई वर्तमान पता , फोन साहित्यक ब्यौरा आपक
                             साहित्य पर समीक्षकों कि राय.
उमेश चमोला –उमाळ(खंडकाव्य ) 2007,निरबिजू(उपन्यास ) 2012,कचाकी(उपन्यास ) 2014,पथ्यला(गीत–   कविता संगरौ) 2011,नान्तिनो सजोलि(गढ़वाली आर कुमाउनी संयुक्त बाल कविता संग्रह )2014, एक नाटक संग्रह अर उपन्यास प्रेस मा.पड़वा बल्द(व्यंग्य कविता संग्रह ) 2015.

                  गढ़वाली मा अब तक १०० से जादा कविता लेखि होलि.
        संक्षिप्त परिचय –
         जन्मदिवस –१४ जून एतवार,१९७३,
         गाँव –कौशलपुर,जिला रुद्रप्रयाग,उत्तराखण्ड.पट्टी-कालीपार मन्दाकिनी.
       शिक्षा –एम०एस-सी(वनस्पति विज्ञानं ),एम ०एड,पत्रकारिता स्नातक(रजत पदक ),डीफिल.
      u.chamola23@gmail.com
       वर्तमान पता –एस० सी० ई ० आर० टी उत्तराखंड,राजीव गाँधी नवोदय विद्यालय नालापानी देहरादून.
        साहित्यिक ब्यौरा –
       स्थानीय अर राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकों मा हिन्दी,अंगरेजी अर गढ़वाली मा रचनो कु प्रकाशन.
      हिन्दी बाल साहित्य –
    प्रकाशित किताबी-गढ़वाली से इतर -
   1- राष्ट्र्दीप्ति(राष्ट्रभक्ति पूर्ण हिन्दी गीत अर कवितो संग्रह )2-,फूल ( हिन्दी बाल कविता संग्रह ),3-पर्यावरण   
     शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप4-आस-पास विज्ञानं (विज्ञानं आधारित कविता,कहानी अर पहेली संग्रह 
     ,धुरलोक से वापसी (विज्ञानं गल्प )प्रेस मा
      • उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा बटी प्रकाशित कक्षा 3 से 5 तके पर्यावरण पुस्तक ‘हमारे आस =पास का     
        लेखन मा समन्वयन अर लेखन मंडल मा सामिल.

        • उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा बटी प्रकाशित कक्षा 6 से 8 तके हिन्दी पुस्तक मा वित्तीय साक्षरता पर     
          आधारित लिखी कहानी सामिल.

     लोकसाहित्य (हिन्दी ) –उत्तराखण्ड की लोककथाएँ द्वी खण्डों मा.
      शोधपत्र –(हिन्दी मा)
     1-चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य में प्रकृति चित्रण.
    2- चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य में विभिन्न युगीन प्रवृत्तियाँ.
   3-उत्तराखण्ड के लोकगीतों में सम सामयिक परिवेश.
   4-रवीन्द्र नाथ टैगोर के साहित्य के विविध पक्ष.
   5-कालिदास के साहित्य में गढ़वाल हिमालय का वर्णन.
    6-कालिदास के साहित्य में वनस्पति विज्ञान.
   7-उत्तराखण्ड की क्षेत्रीय भाषाओँ में बाल साहित्य.
   8-उत्तराखण्ड के संस्कार गीतों का साहित्यिक सौन्दर्य और इनके विकास में महिलाओं का योगदान.
    अन्य-
   • ‘गौ मा’ ऑडियो कैसेट से गढ़वाली गीतों प्रसारण.
    •  २० से जादा राष्ट्रीय संयुक्त संकलनो मा कवितो कु प्रकाशन.
  साहित्य पर समीक्षकों की राय –
   1-उत्तराखण्ड की लोककथाएँ ---
   डॉ चमोला की यह पुस्तक हालाँकि हिन्दी में ही लिखी गयी है किन्तु बहुत सारी कथाओं में उन्होंने   
   उत्तराखण्ड की स्थानीय बोलियों के शब्दों को भी पिरोया है जिस कारण यह पुस्तक हिन्दी भाषा के 
   शब्दकोष में अवश्य वृद्धि करेगी.
                                                                                 ------नवीन डिमरी ‘बादल’ नवल जनवरी –मार्च २०१४
    2 कचकी-
    • कचकी की भाषा बोलचाल की भाषा की गढ़वाली है.गढ़वाली न जानने वालों के लिए उपन्यास के परिशिष्ट   
     में कठिन शब्दों के हिन्दी अर्थ दिए गए हैं.संवाद पात्रानुकूल और उनकी मनोदशा प्रकट करने में सक्षम
      हैं.लोक में प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों का भी यथा स्थान प्रयोग किया गया है.
                                                                ------हरि मोहन’मोहन’ सम्पादक नवल ,अक्टूबर –दिसम्बर  २०१४
       • डॉ चमोला ने कचकी के संक्षिप्त कलेवर में आंचलिक संस्कृति के विभिन्न चरित्रों को प्रदर्शित करने में   
           गागर में सागर भरने जैसा कार्य किया है.       
                                                             -----डॉ सुरेन्द्र दत्त   सेमाल्टी,रीजनल रिपोर्टर जनवरी २०१५
               • यह गढ़वाली उपन्यास एक अत्यंत पठनीय,साहित्यिक कलाकारी से भरपूर एक उत्कृष्ट रचना है.यह   
                  गढ़वाली साहित्य का एक अमूल्य मोती है.इस रचना के बाद हम कह सकते हैं साहित्यिक प्रतिभा
                   के धनी डॉ उमेश चमोला जैसे साधक तपस्वी रचनाकारों की पीढी ही गढ़वाली भाषा को मानक
                 स्वरूप प्रदान करेगी.
                                                    -----------डॉ नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलामबरम’ उत्तराखण्ड स्वर अगस्त २०१५
         • The novel is interesting and moral oriented. There has been vacuum of novel writing in modern   
         Garhwali literature. Dr Umesh Chamola should be credited to fulfill the vacuum by publishing his second   
          novel in Garhwali.

                   -----Bhishm Kukreti, Bedupako.com
         3 –निरबिजू
        • इस उपन्यास में लेखक द्वारा प्रयुक्त मुहावरे जैसे बिस्या सर्प कि जिकुड़ी मा दया जरमी जौ त क्या   
           बात छ ?,माया कु सूरज उदै होण का दगडी अछ्लैगी छौ.,माया कु बाटू भौत संगुडू होंदु आदि से लेखक   
           पाठकों का ह्रदय जीतने में शत प्रतिशत सफल है.

                                           ------ डॉ नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलामबरम’ उत्तराखण्ड स्वर मई २०१३
     • लेखक द्वारा इस उपन्यास में प्राचीन कथा के बहाने आदर्श राज धर्म की व्याख्या करते हुए बताया गया 
     है की राजा के माया मोह में पड़कर राजधर्म से विमुख होने पर प्रजा तो दुखी होती ही है,धरती भी निरबिजू
      (बंजर ) हो जाती है.
                                             हरि मोहन’मोहन’ सम्पादक नवल ,जनवरी –मार्च २०१३
         • The story construction is so tight and cryps that readers would like to read novel many times.The
          dialogues are small and very appropriate as per characters.
                     ------------Bhishm Kukreti March 2013,E magazine.
         • निरबिजू नौ कु यो उपन्यास उपन्यास तत्वों का आधार पर एक सफल उपन्यास छ.यो डॉ उमेश चमोला 
            कु पैलू उपन्यास छ पर कथा गठन अर उपन्यास शैली से इन नि लागुदु की उपन्यासकार एक नवाड़
              उपन्यासकार छ.उपन्यास विधा ते अगर क्वी अगने बढे सकदा त डॉ उमेश चमोला जन   
            युगसाहित्य्कार.
                                        ---डॉ नन्द किशोर ढोंडीयाल ,खबर सार फरवरी २०१३
      3 –नान्तिनों की सजोलि
       • ‘नान्तिनों की सजोलि ‘नामक इस गढ़वाली और कुमाउनी कविताओं के संग्रह को हम इन दोनों भाषाओँ 
           का प्रथम संयुक्त बाल कविता संग्रह कह सकते हैं .इस कविता संग्रह के सहृदय बाल कवि डॉ उमेश
         चमोला और कु विनीता जोशी की यह संयुक्त कृति अपने में अनोखी उत्तरांचल के ग्रामीण अंचलों की 
         भाषाओँ में रची गयी बाल कविताओं का सरस संग्रह है.इस मौलिक कृति में बाल मनोविज्ञान को दृष्टि
            में     रखकर रची गयी कवितायेँ हैं.
                                             -------------- डॉ नन्द किशोर ढोंडीयाल ,पुस्तक की भूमिका में.
     • डॉ उमेश चमोला ने गढ़वाली और विनीता जोशी ने कुमाउनी में अपनी २५ -२५ कविता रुपी पुष्प पुस्तक 
        में पिरोकर एक नया प्रयोग किया है.दोनों रचनाकारों ने स्वयं बालमन में उतरकर उनकी मानसिकता के
        अनुरूप रचनाएँ रची हैं.

                              ------ डॉ सुरेन्द्र दत्त सेमाल्टी,नवल जनवरी –मार्च जनवरी २०१५
             • Credit goes to ‘Nantino ki sajoli’ as first combined children poetry collection in history of Garhwali 
               and Kumauni literature. Garhwali poem in this volume are real sense the poem for children.
----------                                           --Bhishm Kukreti,Bedupako.com E magazine.
      4 – पड़वा बल्द
    • उमेश कि कवितों मा भौं भौं किस्मौ चबोड़ छन अर यी चस्केदार,चखन्यौरि कविता समाज   
      ,प्रशासन,राजनीति,भ्रस्टाचार,कुविचार,व्यभिचार,भल्तो बिगडैल्या, शिष्टाचार जन दोषों पर व्यंग्य रूपि चक्कु
      से चीरा लगान्दन.व्यंग्य कि असली रंगत तबि आंद जब बुले जाव कैकुण अर तीर चलन के हौर पर.जरा
        पडवा बल्द बांचो त आप भी मानी जौल्याबल उमेश कि तकनीक अन्तराष्ट्रीय स्तर की विश्व कवितों
           दगड प्रतियोगिता करणा छन.
                                             -------------भीष्म कुकरेती,पड़वा बल्द की भूमिका मा .
       • पड़वा बल्द में समाज और जीवन में व्याप्त असंगतियों और विसंगतियों को हास्य के साथ अभिव्यक्त   
         कर सुधार की दिशा में प्रेरित करने के लिए व्यंग्य का आश्रय लिया गया है.कवि के प्रत्येक व्यंग्य के
       पीछे व्यथा और आक्रोश और आदमी का आक्रोश छिपा है जो अपने चारों ओर व्यवस्था के नाम पर चल
         रही अव्यवस्था से पीढित व शोषित है और उसे बदलना चाहता है परन्तु उसके हाथ बंधे हुऐ हैं,ऐसे में
       उसका आक्रोश और असहायता व्यंग्य में बदल जाती है.प्रस्तुत संकलन के शीर्षक का चयन कवि की
        मौलिक प्रतिभा का प्रमाण है.आज घर ,परिवार,दफ्तर,समाज सब जगह पडवा बल्दों का ही वर्चस्व है.
 
                                  -------------------कृष्ण चन्द्र मिश्रा,’कपिल’नवल अप्रेल –जून २०१६
    भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन ?
     उमेश चमोला : कविता मीतै अपणा पिताजी से संस्कार मा मिलि. भौत छोटी क्लास बटिन मेरु कविता से
                            लग्यार व्हेगी छौ.शनिवारा दिन बालसभा होन्दी छै त बालसभा मा सुणोंण का वास्ता मी 
                          अप्नी कोर्से किताब से भैरे कविता अर गीत याद करदू छौ.मीते आज भी याद छ जबार मी

                         चारे क्लास मा पढ्धू छौ एक दौ मीन दीदी हिन्दी किताबे कविता याद करि अर बाल सभा मा
                       सुनै दीनि.हमारा गुरुजि भौत खुश व्हेन अर दगडया चक्कर मा पड़ी गेन.एक दिन एक अखबारा
                       पत्तर पर महात्मा गाँधी पर एक कविता छै छ्पी.मीन स्या कविता याद करीक द्वी अक्टूबरा
                         दिन सुने दीनि.या पांचवी क्लास्से छ्वीं छ.नौ की क्लास बटी मीते वाद-विवाद अर भाषनौ
                     चस्का लगी. ग्यारवीं क्लास्से बात होलि या.वादविवाद मा जू कविता मेरि छै छाणी स्या मी से
                      पैली वाला वक्तान बोल दीनि.तै दिन बाटी मीन सोचि कै भी भाषण मा मी अप्नी कविता ही 
                    सुणोलू . भाषण अर वाद विवाद का बीच –बीच मा अप्नी कविता लिखण अर ब्वन कु यो क्रम 
                    डिग्री कोलेजा तका कार्यक्रम मा भी जारी रे.भाषण का बीच –बीच मा ब्वन का वास्ता लिखी
                   कविता सरल अर विचार प्रधान होन्दी छै.कविता का बारा मा सुमित्रानंदन पन्त ज्यू कु विचार
                 ‘वियोगी होगा पहला कवि –तै मी एक अनुभूत सच मानदु.जीवन मा घोर असंदो यन बगत आई
                     जेन मीमु कविता सृजन करवाई. .
भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
उमेश चमोला :  मी मालम नी च कि मेरि कवितों पर कौं कौं कवियुं कु प्रभाव च?ये बारा मा विद्वान समीक्षक
                      ही बते सकला.मी हाई स्कूल का बगत मा जयशंकर प्रसाद की कविता भौत स्वान्दी छै.बाद मा
                    प्रयोगवादी अर नई कवितों से परीचे व्हे.विद्वान समीक्षक मेरि गढ़वाली कवितों अर गीतों पर
                          हिन्दी काव्य अर गीत शैली कु प्रभाव बतोंदन.
भी.कु. : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?
उमेश चमोला :यो मदि पेन अर यकुलांस कु महत्व मी जादा चितांदु.कविता कखी भी मन मा ऐ सकिदी.
भी.कु.: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन
             मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
उमेश चमोला :पैली दौ त कविता पेन से ही लिखुदु अर के भी कागज पर कविता लेख सकुदु.
भी.कु.: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट
             बुक दगड मा रखदां ?
उमेश चमोला : मी छोटू मोटू पैड या कागज सदनी दगड़ा मा लेक चल्दु.
भी.कु.: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी
          नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?
उमेश चमोला :या स्थिति के कवि दगिडी घटि सकिदी.जब अफु मू कबि क्वी कागज नि रैंदु अर मन मा क्वी
          विचार या कविता की पंगति ऐ जांदी त मी तै बिचार या कविता पर इतगा मंथन करि देन्दु कि स्या
          बिसिर्या न जौ.के दौ मी कविता की पंगति या भाव हाथ मा लेख देन्दु.
भी.कु.: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?
उमेश चमोला :पैली दौ त कविता जे रूप मा औन्दी लेख देन्दु.बाद मा कविता तै साज संवार देन्दु.कबि कबि
             कविता की द्वी चार पंगति ऐ जांदी.के दिनों तलक स्या कविता अगने नि बडदि.के दौ अप्नी कविता
            तै दुबारा पढ़ण से हौर पंगति भी ऐ जांदी.यन करी द्वी –तीन दौ कविता रीवाइज व्हे जांदी.
भी.कु. क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को
             प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
उमेश चमोला :हर क्वी कविता नि लेख सकुदु पर कविता का कलापक्ष तै प्रशिक्षण से सजे संवार सकदान.जौ
              नान्तिनो रूचि कविता सृजन मा हो तौन्कु प्रशिक्षण हुन चैंद.जन कवि सम्मेलन,लोकभाषा उत्सव अर
             नाटक जन गतिविध्यों तै हम महत्व देंदा तनि लोकभाषा संस्थो तै कविता गढ़नो प्रशिक्षण करोण
            चैंद.हिन्दी   मा बाल साहित्य पर यन काम भौत च होणु,लोकभाषा मा कवि सम्मेलनों पर ही आयोजकों
             कु ध्यान छ.
मीन कविता गढ़नो बान कवी औपचारिक प्रशिक्ष्ण नि लीनि.
भी.कु.: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?

उमेश चमोला :हिन्दी साहित्य आलोचना कविता अर कवित्व तै नै दिशा देण कु काम करिदी.साहित्य आलोचना
                 से अलग –अलग बगत मा लिखी कवितो की युगीन प्रवृत्यों कु पता चलुदु.कवि तै अप्नी अर होरों
                   कवितो का तुलनात्मक अध्ययन मा सैता मिल्दी.जख तक मेरि कविता अर कवित्व पर हिन्दी
                    साहित्य आलोचनो प्रभाव कि बात छ त भौत पैली मी रस,छंद अर अलंकारों से सजी सवरी
                     कविता तै ही कविता चितोंदु छौ .साहित्य आलोचना अध्ययnaaना बाद मीते नई कविता कु अलग
                      शिल्प विधान अर बिम्ब कु पता चलि.तब अतुकांत शैली मा मी भी कविता रचण बैठ्यूँ.
भी.कु : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सूखो तैं ख़तम करणों
               आपन क्या कौर ? (Here the poet took Sukho as happiness and not DRY days in the life of poet when he can’t create poetry)
उमेश चमोला :जीवन की भौतिक समृधि अर आपाधापी का बगत रचनात्मक सुखो ऐ जांद.तै बगत मा लगुदु
              कि मीन पैली जू लेखि स्वो कनकै लेखि होलू ?पर हमतें स्वाध्याय तै बगत की चोरि करन सीखण
            चैंद.यन भी के दौ व्हे जान्द की कविता का सुखा का बगत मा हौर बौद्धिक काम हम करि सकदा.ये
               बगत मा गद्य मा हम काम करि सकदा.
भी.कु : कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ? एकांत
             जरुर चैंदु किलै की मन का जू तार छन वूँ थैं बाटोलाना जरुरी च तभी कुछ शब्दों कु भंडार खुल्दु .
उमेश चमोला : कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत

                पड़दि.जीवन का हौर काजो का बीच येका वास्ता हमते समय प्रबंधन औंण चयेंद.
भी.कु: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या 
             फ़रक पोडद ? इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद ?
उमेश चमोला : घर गृहस्थी का बगत का बीच हमते बगत की चोरि करन औंण चयेंदु.या बात कार्यालय का
             काम काज पर भी लागु होन्दी.कार्यालयी काम का वास्ता जब यत –तत टूर पर जाण पड्दु त यात्रा कु
             इकुलांस काव्य सृजन कु बाटू खोल्दु.
भी.कु: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि
           करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
उमेश चमोला :इन के दौ होंदु.के दौ द्वी चार पंगति कविते लिखये जांदी.के दिनों तक कविता अगने नि
             बड़दि.मी यों कवितो तै लिखी धरदु अर बीच –बीच मा पढ्दी जांदू.के दौ यी कविता भौत बगत बाद
             अपणा पूरा रूप मा ऐ जांदी .
भी.कु :  जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि
                मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
उमेश चमोला : यन स्थिति मा उठी तै मी तीं कविता तै लेखि देन्दु फ्येर स्वनिंदु व्हे जांदू.
भी.कु: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
उमेश चमोला :मीमू श्री कन्हैया लाल डडरियाल अर बीना बेंजवाल अर अरबिंद पुरोहित कु शब्दकोश
                  छ.शब्दकोष का बारा मा मेरु यो विचार छ कि हमतें कखी बटिन भी क्वी शब्द मिलि जांदू त हमते
              अप्नी डैरि मा नोट कर देण च्येन्द.सुबिरंण को खोजत फिरत कवि ,व्यभिचारी,चोर वालि बात मीते
                 सहि लगिदी.अपण शब्दकोश तै बडोनो तै हमते बगत बगत पर गौ का दाना स्यांनो से बातचित
                 करन च्येंदी.गढ़वाल का अलग –क्षेत्रों मा चलन मा अयाँ शब्दों कु प्रयोग हमते अपणा साहित्य मा
                   करन चयेंद.
भी.कु: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
उमेश चमोला :हाँ,हिन्दी की पत्र-पत्रिकों मा छ्प्यां आलोचनात्मक लेख पढ्नो मिलि जांदा.
भी.कु: गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
उमेश चमोला :हाँ, समालोचना कविता का रूप तै निखार देन्दी.समालोचना से रचनाकार तै यु पता लगुदु की
            तैकि रचना कै स्तरे छन अर अगने क्या कन चयेंद? गढ़वाली मा अभि समालोचना पर काम कने जर्वत 
              छ.
भी.कु: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ?
उमेश चमोला : कबि कबार जबरि गैर हिन्दी भाषों कि क्वी कितबी मिलि जांदी या तौंकी हिन्दी या अंग्रेजी मा
               टीका मिलि जांदी त गैर हिन्दी भाषों का साहित्य का मिजाजो पता चलि जांदू.
भी.कु : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
उमेश चमोला : ये बारा मा मी क्वी खास जतन नि करदू.कबि अंग्रेजी मा लिख्युं क्वी आलेख पढ्नो मिलि
              जांदू त जानकारी भी मिलि जान्दी.
भी.कु: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र
             रौंदवां
उमेश चमोला :भैर देसों ,गैर अंग्रेजी क वर्तमान साहित्य का बारा मा कबि इन्टरनेट से जानकारी ली देन्दु.कबि
             योकि हिदी मा टीका मिली त ये से भी पता चलि जांदू.
भी.कु:      भी.कु -आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
उमेश :   उमेश चमोला -जिज्ञासावश ढोल,दमों अर बीनू बाजु थ्वडा-थ्वडा.



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Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

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 Dr. Umesh Chamola: Multidimensional Creative 
(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part – 167 A)
  By: Bhishma Kukreti
  Dr Umesh Chamola is multidimensional literature creative. Dr. Chamola is Garhwali novelist, lyricist, poet and writes poetry for children. Dr Umesh Chamola also collects and publishes Garhwali folk tales.
  Dr Umesh Chamola was born in 1973, in Kaushalpur village of Rudraprayag district. Dr. Chamola is post graduate and is educationist.
   Dr. Chamola published following Garhwali books till date –
Umal (Long Poetry)
Pathyala (Lyric collection)
Nantino Sajoli (25  Children poems in Garhwali
Padwa Bald (Satirical poetry collection)
Nirbiju (Novel)
Kachaki (Novel)
Buddev ki suno (Garhwali Drama )
Dr. Umesh created literature in Hindi too
 The above books show that Umesh has varied subjects and style in his stock. He writes from environment to children as far as subject is concern. His words, sentences or narration are simple and Chamola uses common Garhwali figures of speeches.
 The following two poems will prove his multidimensional style and subjects in his poetries.
बरखा मा धड़ -धड़ –धड़, धड़खि पहाड़।
 


चुप हुयूँ रे पहाड़,
'विकास का नौ पर मनखी लाटी अक्कल
कबि कबि बुनू भी रे पहाड़
पर कैन सूणी नी
कबरि तलक सरदु ?
भितर तलक हिली पहाड़।
विकास का नौं पर
हथ्वड़ा घौणे की चोट
नि सै सकी पहाड़,
बरखा मा धड़ -धड़ -धड़
धड़खि पहाड़।
धड़कण त बहानो छौ
यन करी मनखी तैं
भौत कुछ बिंगाण चांदू छौ पहाड़

तौंकि बग्वाळ  (
-
 
सि बग्वाळ  मनोन्दन
बिंडी दों ,
कबि महँगे कु बम फोड़ी ,
आम मनखि कि
कमर तोड़ी ,
सि कबि पोट्गों कि
आग तैँ सुलगोंदन ,
कबि जिकुडा तैं
पेट्रोल से जंगोदन ;
सि बीच बीच मा
ज्यू तैँ पिथोन वलि
छ्वीं बातों कि
फुलझड़ि भी छोड़दन ,
मनख्यों का हड्गों का
भैला बणैक भी
खेलदन सि



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