Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527461 times)

jagmohan singh jayara

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"चिलांगा(गिद्ध)"

भौत ही संवेदनशील,
परोपकारी होन्दा छन,
हमारा गौं मा जब,
क्वी गौरु भैंसु मरदु थौ,
झट्ट पौंछि जान्दा अर,
सफाचट्ट करि देन्दा,
तब दुर्गन्ध सी,
निजात दिलै देन्दा.

पर आज चिलांगा,
विलुप्ति की कगार फर छन,
जू पर्यावरण की दृष्टि सी,
बल कतै  भलु निछ,
वातावरण का खातिर.

जू असली था  उंकी,
या गति छ,
पर आज नकली चिलांगा,
बल भौत ह्वैगिन,
जबकि ऊँकू रूप,
चिलांगा कू निछ,
हरकत चिलांगा की तरौं,
नजर भी भौत तेज छ,
जौंकी संख्या दिनों  दिन,
बढ़दु जाणी छ,
असली चिलागौं कू अस्तित्व,
कायम  रयुं चैन्दु छ.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:१६.९.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ और पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)

jagmohan singh jayara

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"लालटेन-लैम्प युग"

हमारा उत्तराखंड,
कल्पित ऊर्जा प्रदेश,
आज अँधेरे में डूबा है,
क्योंकि, पहाड़ पर पानी,
रौद्र रूप धारण करके,
बरस रहा है बरसात में,
ऊफान पर हैं नदियाँ,
दरक रहे हैं पहाड़,
विनाश का मंजर,
निहार कर पर्वतजन,
हो रहे हैं हताश,
किसी के टूट रहे हैं घर,
पहाड़ का टूट गया है,
सड़क संपर्क,
संचार का साधन,
खामोश हैं मोबाइल यन्त्र,
बिना चार्जिंग  के,
नहीं हो पा रहा है,
प्रवासी उत्तराखंडियौं का,
स्वजनों से संपर्क,
आज पहाड़ पुराने,
"लालटेन-लैम्प युग"  में,
लौट आया है २१वीं सदी में.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:२२.९.२०१०
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)

jagmohan singh jayara

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"उत्तराखंड मा बसगाळ-२०१०"
 
उत्तराखंड मा भादौं का मैना,
गाड, गदनौं अर धौळ्यौंन,
धारण करि ऐंसु विकराल रूप,
अतिवृष्टिन मचाई ऊत्पात,
नाश ह्वैगि कूड़ी, पुंगड़्यौं कू,
जान भि चलिगि मनख्यौं की,
आज पर्वतजन छन हताश,
प्राकृतिक आफत सी,
निबटण कू क्या विकल्प छ?
आज ऊँका पास.
 
संचार, बिजली, सड़क संपर्क,
छिन्न भिन्न ह्वैगी,
अँधियारी सब जगा छैगी,
हरी जी की नगरी,
विश्व प्रसिद्ध हरिद्वार मा,
शिव शंकर जी की,
मानव निर्मित विशाल मूर्ति,
गंगा नदी का बहाव मा,
धराशयी ह्वैक बल,
कुजाणि कख  बगिगी,
यनु लगदु भगवान शिव शंकर,
प्रकृति का कोप का अगनै,
असहाय कनुकै ह्वैगी?
 
यनु लगणु छ आज,
लम्पु-लालटेन कू युग, 
पहाड़ मा बौड़िक ऐगी, 
बसगाळ बर्बादी ल्हेगी, 
सब्ब्यौं  का मन की बात, 
जुमान फर ऐगी, 
हे लठ्यालौं आज, 
पहाड़ की भौत बर्बादी ह्वैगी.
 
 
पहाड़ की ठैरीं जिंदगी, 
ठण्डु मठु जगा फर आली, 
पहाड़ फर आफत की घड़ी, 
बद्रीविशाल  जी की कृपा सी, 
बगत औण फर टळि जाली, 
पर मनख्यौं का मन मा,   
"उत्तराखंड मा बसगाळ-२०१०" की, 
दुखदाई अतिवृष्टि की याद, 
एक आफत का रूप मा बसिं रलि.   
 
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" 
(दिनांक:२२.९.२०१०, पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित) 
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल. 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पैरोडी गीत – फिल्म जागृति के मशहूर गाने ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिन्दुस्तान की’ की तर्ज़ पर आधारित उत्तराखंड के सभी 13 जिलाओं की खूबसूरती को अपने अंदर समेटे हुए आप सभी बंधुओं को समर्पित -

Writer : Sushil Joshi (http://p4poetry.com/2010)
……………………………………………………………………………………………………………..

आओ बच्चों देखो झाँकी उत्तराखंड महान की,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * ये देखो अल्मोड़ा यहाँ कितनी सुंदर हरियाली है

सबको है आकर्षित करती धरती ये मतवाली है

दूर दूर तक दृश्य विहंगम बदरा काली काली है

सबसे प्यारी नैना देवी झाँकी यहाँ निराली है

जागेश्वर मंदिर में बजते घंटे सुबह औ शाम जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * बागेश्वर को देखो यहाँ कितना सुंदर विस्तार है

सुंदरता में इसकी महिमा चारों ओर अपार है

धरती से आकाश चूमते बाँज बुराँस का प्यार है

सचमुच में ये पावन धरती स्वर्ग का अवतार है

मन को ठंडक मिलती है जब लेते इसका नाम जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * चमोली को शोभित करता देखो बद्रीनाथ है

गोपेश्वर भी है यहाँ पर हेमकुंड भी साथ है

औली में है बर्फ चमकती सुबह दिन रात है

फूलों की घाटी का सुंदरता में अदभुत् हाथ है

तपकुंड, विष्णु प्रयाग, पंच प्रयाग है जान जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * चंपावत में बालेश्वर मंदिर ये बड़ा ही प्यारा है

मीठा रीठा साहब यहाँ पर सिखों का गुरुद्वारा है

पंचेश्वर और देवीधुरा ने इस धरती को तारा है

नागनाथ के मंदिर का भी यहाँ पे बड़ा सहारा है

वन्य जीवों से भरे हुए हैं यहाँ के हरे मैदान जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * देखो देहरादून यहाँ की ये ही तो रजधानी है

अंग्रेजों की सत्ता की यहाँ पे कई निशानी हैं

घंटा घर आकाश चूमता आई.एम.ए. पहचानी है

लीची के हैं बाग यहाँ पर और मसूरी रानी है

शिक्षा में भी देहरादून रखता है प्रथम स्थान जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * कितना पावन और निराला अपना ये हरिद्वार है

देवलोक से आती सीधी गंगा माँ की धार है

वेदों और पुराणों में भी गाथा बारंबार है

जीवन और मरण का देखो यही आखिरी सार है

इस पावन धरती पर देवों ने भी किया बखान जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * अदभुत् सुंदर कितना प्यारा अपना नैनीताल है

चारों ओर यहाँ पर फैला झीलों का जंजाल है

चाइना पीक यहाँ पर चोटी बहुत ही बेमिसाल है

इस धरती को गर्वित करते तल्ली मल्ली ताल है

मृदुभाषी हैं लोग यहाँ के हँसके करें सलाम जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * पौड़ी जिले की उत्तराखंड में एक अलग पहचान है

नागर्जा का मंदिर इसमें ज्वालपा माँ की शान है

बिंसर महादेव यहाँ है, ताराकुंड भी जान है

सचमुच इसमें रचता बसता उत्तराखंड का प्राण है

लोकगीत संगीत में पौड़ी का है ऊँचा नाम जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * सीमा की है रक्षा करता पिथौरागढ़ महान है

उल्का देवी मंदिर की भी एक नई पहचान है

राय गुफा भी अदभुत् इसमें, भटकोट स्थान है

हनुमान गढ़ी में जुटती रोज़ भीड़ तमाम है

कई बार बचाई इसने हम लोगों की आन जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * अलकनंदा, मंदाकिनी का संगम रुद्र प्रयाग है

कहीं पे शीतल धारा है, कहीं उफनती आग है

अगस्त मुनि की बोली है, केदारनाथ का राग है

गुप्तकाशी है, खिर्सू है, देओरिया, सोन प्रयाग है

यहाँ थकावट को मिलता है अदभुत् एक विराम जी,

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * देखो जिला ये टिहरी का श्रीदेव सुमन से वीर पले

कितने उन पर अंग्रेज़ों के बर्छी भाले तीर चले

भूखे रहे वो 26 दिन तक पर ना उनके नीर चले

1944 में दुनिया से बन कर पीर चले

मर कर वो इतिहास बन गए गाथा पूरे ग्राम की

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * उधम सिंह नगर की देखो कितनी सुंदर शाम है

चैती मंदिर, गिरी सरोवर, नानक माता धाम है

इतिहास के पन्नों में भी इसका जिक्रे आम है

जनरल डायर की हत्या में उधम सिंह का नाम है

उत्तम सादा रहन सहन है सादा खान पान जी

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

    * देखो ये उत्तरकाशी कितना सुंदर उजियारा है

गोमुख नाम से गंगा जी का जल स्रोत ये प्यारा है

चारों ओर हिमालय फैला बड़ा ही भव्य नज़ारा है

ऐसा लगता है इसको देवों ने यहाँ उतारा है

अपना पावन उत्तराखंड रहे हर पल यूँ ही जवान जी

इस मिट्टी को झुककर चूमो शत् शत् करो प्रणाम भी।

जय हो उत्तराखंड, जय हो उत्तराखंड।

———————————— लेखक – सुशील जोशी

jagmohan singh jayara

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    "बौड़ि ऐजा "

हे बेटा खुद लगिं छ,
तरस्युं छ पापी पराणी,
क्वांसु होयुं मन हमारू,
नात्यौं फर टक्क जाणी.

सब्बि धाणी निछ पैंसा,
टक्क लगिं छ हमारी,
ऐ जान्दि  तू दूध पी जान्दि,
भैंसि ब्ययिं छ  अबारी.

आम पक्याँ छन बेटा,
लगिं काखड्यौं लबद्यारि,
घौर  "बौड़ि ऐजा" हे बेटा,
टक्क लगिं छ हमारी.

औलाद होन्दि आस बेटा,
खुदेंदु पापी  पराणी,
लाठ्याळा घौर  "बौड़ि ऐजा",
पैंसा नि  सब्बि धाणी.

रैबार  हमारू छ बेटा,
तरस्युं छ पापी पराणी,
ज्युन्दा ज्यु ऐ जान्दि तू,
टक्क त्वे  फर जाणी.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(दिनांक: २२.१० .२०१०, पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, दिल्ली प्रवास से....

jagmohan singh jayara

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  "बग्वाळ"

जै दिन बानी बानी का,
पकवान बणदा छन,
वे दिन कु बोल्दा छन,
रे छोरों आज पड़िगी,
बल तुमारी  "बग्वाळ".

पर साल भर मा,
एक त्यौहार यनु औन्दु छ,
जै दिन की करदा छन,
सब्बि भै बन्ध "जग्वाळ",
हमारा प्यारा मुल्क उत्तराखंड,
कुमाऊँ अर गढ़वाळ.

"बग्वाळ" त्यौहार का दिन,
मनाला खुश ह्वैक,
हमारा मुल्क लोग बग्वाळी,
बणाला दाळ की पकोड़ी,
अर भरीं स्वाळी.

जग्वाळ मा होलि,
कैकी  प्यारी ब्वे बाटु  हेन्नि,
कब आला  नौना, नौनी,
नजिक छ बग्वाळ,
हमारा कुमाऊँ अर गढ़वाळ.

रचना: जगमोहन सिंह  जयाड़ा "जिज्ञासु"
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
 ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल.
दिल्ली प्रवास से...........२८.१०.२०१०

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Daju ye poem Hem Bahuguna ne hee compose ki hai...Ye mere orkut profile par bhi lagi hue hai....

Hem bahuguna ne ye poem mere ghar me hee compose ki thi...Waise bhi Vinod ji ne kewal ye hee likha hai ki unke dost se unko prapt hue hai (Na ki unke dost ne likhi hai)....Lekin mujhe lagata hai ki lekhak kaa naam dalana jaruri hona chahiye.......

Vinod Ji.

A bit doubt. Mr Hem Bahuguna has composed this poem even published in a book. I have also enquired about this. Now many people are claiming to have composed this poem.


"तुम मांगते हो उत्तराखंड कहाँ से लाऊं ?"
 
तुम मांगते हो उत्तराखंड कहाँ से लाऊं ?
सूखने लगी गंगा, पिघलने लगा हिमालय !
उत्तरकाशी है जख्मी, पिथोरागढ़ है घायल !!
बागेश्वर को है बैचनी, पौड़ी में है बगावत !
कितना है दिल में दर्द, किस-किस को मैं दिखाऊ !
तुम मांग रहे हो उत्तराखंड कहाँ से लाऊं ?
 
मडुआ, झंगोरे की फसलें भूल,
खेतों में हैं जेरेनियम के  फूल,
गाँव की धार में रेसोर्ट बने ,
गाँव के बीच में स्विमिंग पूल !!
कैसा  विकास ? क्यों घमण्ड ?
तुम मांगते हो उत्तराखंड ?

खड्न्चों से विकास की बातें,
प्यासे दिन, अंधेरी रातें
जातिवाद का जहर यहाँ,
ठकेदारी का कहर यहाँ
घुटन सी होती है,  आखिर कहाँ जाऊँ ?
तुम मांगते हो उत्तराखंड कहाँ से लाऊं ?

वन कानूनों ने छीनी छाह,
वन आवाद और बंजर गाँव ,
खेतों की मेड़े टूट गयी,
बारानाज़ा संस्कृति छूट गयी '
क्या गढ़वाल, क्या कुमाऊ ?
तुम मांग रहे हो उत्तराखंड कहाँ से लाऊं ?

लुप्त हुए स्वावलंबी गाँव ,
कहाँ गयी आफर की छाव?
हथोड़े की ठक-ठक का साज़ ,
धोकनी की गर्मी का राज़,
रिंगाल के डाले और सूप ,
सैम्यो से बनती थी धूप,
कहाँ गया ग्रामीण उद्योग ?
क्यों लगा पलायन का रोग ?
यही था क्या "म्यर उत्तराखंड " भाऊ ?
तुम मांगते हो उत्तराखंड, कहाँ से लाऊं ?

हरेले के डिगारे, मकर संक्रांति के घुगुत खोये ,
घी त्यार का घी खोया ,
सब खोकर बेसुध सोये ,
म्यूजियम में है उत्तराखंड चलो दिखाऊ !
तुम मांगते हो उत्तराखंड, कहाँ से लाऊं ??

 
 
नोट : उत्तराखंड पर यह कविता मेरे एक दोस्त प्रमोद (राजा) द्वारा रचित है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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समाजवादौ भितरखण्ड

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तिड़का

jagmohan singh jayara

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"तड़-तड़ी ऊकाळ"

जनि कटार चोट की,
बगड्वाळधार का नजिक,
त्यूंसा  की,
रौडधार का नजिक,
ज्वान्याँ की,
पौड़ीखाळ का नजिक,
चन्द्रबदनी मंदिर का ओर पोर,
टिहरी गढ़वाळ मा,
जख फुन्ड हिटदा था,
प्यारा मुल्क का मनखी,
गौं-गौळौं, मैत-सैसर,
औन्दि जान्दी बग्त,
लम्बा लैंजा लगैक,
छ्वीं बात्त लगौंदु-लगौंदु,
पता नि लगदु थौ,
कब हिटि होला,
"तड़-तड़ी ऊकाळ",
अपणा मुल्क धमा-धम.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:१.२.११
(सर्वाधिकार सुरक्षित यंग उत्तराखंड, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित"
 

 

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