Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 286335 times)

Bhishma Kukreti

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- रुद्रप्रयाग से युवाओं द्वारा गढवाली कविताएँ

-'छोरा'---
आज का जमाना छोरा,
सैरा गौं मा, पिटयू ढिंढोरा,
लंबा बाल रख्या छिन,
लुंड- गुंड, कठ्ठा कर्या छिन,
बेबी कट बाळ, रख्या छिन,
फाटी पैंट पैन्ना छिन,
नौनी जन दिख्याणा छिन,
छौरा कना, काल छिन,
लंबा तौंका बाळ छिन।
फेसियल करैक
 गळोडी  बणीं लाल छिन,
चारपै निस
मकड़जाळ लग्या।
मेंहन्दी रात मा, जांणा छिन,
दारू पीक औंणा छिन,
आंख्यू चश्मा लग्या
अर गैंडू-गैंडू पड्या छिन।
राजपाल राणा कक्षा 10, राउमावि पाला कुराली जखोली रूद्रप्रयाग
2-
 --पैंसा अर भैंसा--
पैलि नि रंदा छा,
 पैंसा,
तब कखै ल्यौंण छा
भैंसा,
अब सबुमा छकी
 पैंसा
पर क्वे नी रखणू
 भैंसा
पैलि जौंका रंदा छा
 भैंसा,
सि ब्यच्दा छा
 घ्यू-दूध,
तब औंदा छा
 पैंसा।
अब त नी रखणां क्वे
 भैंसा?
पर तब भी सबुमा छिन
पैंसा।
कुलदीप राणा कक्षा 10, राउमावि पालाकुराली  जखोली ।


3-
---बसंत---
हमारु पहाड़
ऊंचा निसा डांडा,
यख छिन हरी-भरी
डाळी
बसंत रितु मा,
खिलदा फूल
पहाड़ मा होंदा,
रंगबिरंगा फूल
 पहाड़ मा,
 फ्योली बुंराश
फुलारी रंदन
 तौंका सास
क्वे खट्टी-मिट्ठी
 छ्वीं लगौंणा,
कखि खट्टा-मिट्ठा
 पकवान बंण्णा,
क्वे रंगिला-पिंगला
 त्योहार मनौंणा,
 फ्यूंली बुरांश,
पैंया घर्या,
बनिबन्यां फूल
धर्ती सजौंणा।
दिव्या राणा कक्षा-6  राउमावि पालाकुराली  जखोली रूद्रप्रयाग ---

4-
--विज्ञान ---
विज्ञान सबसे बडु ग्यान
मार्कोनी न रेडियो बणांई
भलि बूरी खबर सुंणाई
एडिसन न बल्ब बणांई
सैरी दुनिया उजाळू दिखाई।
कखि विज्ञान न दवै बणाई
रोग बिमारी दूर भगाई
ग्राहम बेलन टेलीफोन बणाई
रंत-रैबार स्यट्ट पौंछाई।
अपेक्षा राणा  कक्षा 8 पालाकुराली

5-
---जनसंख्या---
दुन्यां मा जनसंख्या बढ़ी
संगती आबादी ह्वे,
चार छोरों तै स्कूल हरची
द्वी छोरों स्कूल जाणौ ह्वे।
परिवार मा आबादी बढ़ी
परिवार मा गरीबी ह्वे
जनसंख्या ज्यादा ह्वोण से
बणौं डाळों चिरान लगी।
यका चार,
 चारों का सौळा ह्वैन,
मकान बणोणो जगै नि ह्वे
तब तौंन बण कटैन।
यौं दिन अब यन आलू
जब सैरि दुन्यां अकाळ पड़लू
येकु जुम्बार सिर्फ़ मनखी
 बढदि जनसंख्या राली।
चार पाँच छोरों तै,खवौण
बडु-भारी जुलम हवैगी,
छोटु जौंकु परिवार
तख छक्कीं खतैंणौं भी
पौदू ह्वेगी।
----खुशी राणा कक्षा 8, राउमावि पालाकुराली जखोली रूद्रप्रयाग

6-विज्ञान
अगर विज्ञान नि होंदु
नै युग नि ओंदु,
कै धांणि हमुतै पतै नि होंदि
सोचा दुनिया कति पेथर रोंदि।
विज्ञान न गाड़ी बणाई
हमुतै कति सुविधा कर्याई
विज्ञानन जाज बणाई
दुनिया भर मा मिनटों
मा पौछाईं
विज्ञान च त सबि धांणी
विज्ञान नी त कुछ भी नी
पैलि जांदि छे चिठ्ठी पतरि
मैनो टैम लगदू छो
ग्राम बेलन दिमाग लगाई
टेलीफोन यंत्र बणांई।
वन टू थ्री फोर
हमारा वैज्ञानिक फिट फोर
जख देखा तखि विज्ञान
रोज ओणू नयु ज्ञान।
-----साक्षी राणा   कक्षा -9
राउमावि पाला कुराली जखोली ।

--------प्रस्तुति अश्विनी गौड  अध्यापक विज्ञान  राउमावि पाला कुराली जखोली रूद्रप्रयाग ।


Bhishma Kukreti

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वोट स्लोगन

वोटिंग प्रोत्साहन हेतु गढवाली गीत /कविताएँ

संकलन अश्विनी गौड़ रुद्रप्रयाग

1-
चला बौडा-बौडी,
लगा बाटा
झटपट,
वोट की ऐगी बारी,
लोकतंत्र की जीत का खातिर,
वोट द्योला सभी नर-नारी ।
2-
उठा काका-काकी,
भैजी अर बौजी,
पोंलिग बूथ जयौला,
मजबूत लोकतंत्र
बणौणौ,
वोट अपणि
दी औला।
3-
उठा ज्वान दगडयों
भैजी भुलौऊं
क्यै छां!
सुनिंद स्यौणा,
वोट कु अपणु
अधिकार
मिल्यू जु,
ते तै, किलैई
ख्वौणा।
4-
सरकारों पर दोष द्यैण?
समाधान थोड़ी नी!
जब वोट द्योणो
हममु,
टैम एक घडी नी!
5-
खूब फली फूली,
वोट द्यौण ना भूली।
6-
अपडि सरकार
अपडा हाथ,
वोट तेतैं,
जु निभौ
समाज कु साथ।
7-
दोई कम दो
दो दूनी चार
वोट द्यैण
हमरू अधिकार।
8-
मजबूत लोकतंत्रे निशानी
वोट द्यैंदा सबि बैक, बेटी-ब्वारी।
9-
बौडी जौलू
देशकु स्वाभिमान,
जब वोटर वोट द्यौणमा,
समझला शान।
10-
अठ्ठार बरस जु भै बणां हवैग्या
लोकतंत्र को पर्व मनै ल्या
सबी कामों मा सबसे पैलि
अपडू वोट दी क ऐजा।।
11-
उठा दीदी-भूल्यों
चला बटा लगी जा,
अपडा वोट की,
चोट दिखै जा।
12-
लोकतंत्र अगर बचौण
त भैजी!
वोट जरूर द्योण।
13-
वोट द्योण बिसरि ना जांया
पोंलिग बूथ पर जरूर आंया।
14-
देश बणौण अर,
देश सजौण मा,
अपडा वोट की कीमत जांणा
मनपसंद सरकार बणोणौ
अपडि वोटे तागत पछांणा।
15-
उठा दीदी भूल्यों
चला वोट दी ओला
अगल बगल सबुतै
बोला
उठा भैजी भुलौ
वोट दीक ओला
अगले बगल सबुतै
बोला।
अश्विनी गौड दानकोट रूद्रप्रयाग
राउमावि पाला कुराली जखोली ।

Bhishma Kukreti

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कविता (गढ़वाली -दुधबोली )
-
कविता : आभा  पैन्यूली

"एक दुधमुहाँ प्रयास "

============
सेयुं थौं बल मैं
अर सेयां -सेयां ही
कविता ऐगी दिमाक म -
आयी क्य बल -
घिच्चा बटिं भैर औंण कु तैयार -
रगरगी लग्ण शुरू ह्वैगी -
चड़ाम देसि मैन !
फलांग मारी पलंग बटिं
अर अपणा डेस्क पर
ह्वैग्यौं बिराजमान
खटका सुणि-- ब्वारि आयी-
हे मांजि ! क्य ह्वैग्याई -
तबैत त ठीक छ !
कुछ नि- कुछ नि नौनी -
से जा बाबा -मैं तैं त कविता औंणी -
सेण नि देंणी य भग्यान मैंतै -
लिखण ही पड़लि अब त -
तू से जा लठ्यालि --
जा बाबा जा- तू से जा -
जड्डू भौत होणु -
हाथ अलड्कारेगिन बल- ठण्डा सुन्न -
अच्छा सुण दौ ब्वारी !
जब तु उठि ग्याई
त बुबा दुइ घूंट चा बणैक दि जा बल -
तब तक मैं यिं कविता कु
टिया -पांजा कर दौ
अर सुणदौ --
कालीमिर्च भि गेरि हाँ
फिक्की पेण बल मैन व्हा -
छव्टि सि गुड़ की टुकड़ि दगड़ी
ब्वारि हैसण लगीं
माजी -चाय की चास म बल
कविता ह्वैगि होली उण्डु -फुण्डु -
हाँ ाँ ाँ ाँ ---
हलि -सच्चि लि -
कनु बज्जर पड़ि मेरा दिमाक म -
यादि नि औणी अब कविता -
द भै ! बथेरु ह्वैगि उल्यार
कविता कु --
अब मैं भी ढ़केण ढ़कीकतैं, टुप ! सेण लग्युं
जा बाबा तू भी से जा हाँ।।आभा।।🤣
=========अपणी भाषा- बोली सदा ही लुभाती है --मेरे जैसे बहुत से लोग होते हैं जिनके परिवार जीविकोपार्जन के लिए अपनी मिटटी से दूर ही जीवन बिता देते हैं ----जिसे मैं कहती हूँ पहाड़ ने लात मार के भगा दिया --और उस लात पड़ने के सदमे में हम अपनी भाषा-बोली से भी दूर हो जाते है ---पर ललक तो सदनी रहती है न उस ममता भरी भाषा-बोली के आँचल तले दो घड़ी विश्राम मिले ---मैं भी करती रहती हूँ प्रयास --पर कुछ बोली की अनभिग्यता --माँ-पिताजी के बाद तो किसी से बात भी नहीं होती गढ़वाली में और कुछ इसी अज्ञानता की वजह से उपजी झिझक --कुछ लहजे में अनाड़ीपन --लिखने से झिझकती ही रही। आज एक छोटा सा प्रयास कर रही हूँ --तमाम खामियों के बाद भी मेरी दुधबोली मुझे आशीष देगी यही विश्वास मुझसे ये प्रयास करवा रहा है ---देवी भगवती दैणी होली


Bhishma Kukreti

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                गज़ल

गढवाली गजल (पलायन दुःख  भावनात्मक गजल )

गजलकार – पयास पोखड़ा

*******
अब म्वरणा-बचणा का सवाल कख हुंदिन ।
अब रुंदा-रुंदा भि आंखा लाल कख हुंदिन ।।
लटुल्युं को सुमार उफरदा रै ग्यौं सर्या राति ।
अब गाळुंद भिंटुलौं का ज़िबाळ कख हुंदिन।।
किळै बताण अपणि खबर-सार राजि-खुसि ।
तुमर पुछणल म्यारा भला हाल कख हुंदिन ।।
गदनी थकथ्यांदी नि देखि कभि चौमास मा ।
बौ कट्यां बगैर लोग दुसर छाल कख हुंदिन ।।
न वो ढुंगा दिखेंदी न वो गारु-गबलु अर माटू ।
अब धुरपळिम तक उच्चि दिवाल कख हुंदिन ।।
जमना की दौड़ा-दौड़म सबुथैं अबेर हूणी चा ।
जो छुटिगीं पैथर वो सब जग्वाल कख हुंदिन ।।
कभि कन नि ऐला तुम "पयाश" का घौर जनै ।
त्यारा जग्वाळ मा दिन मैना साल कख हुंदिन ।।
© पयाश पोखड़ा 16032020.

Bhishma Kukreti

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रतन्यालि आँखि

A Garhwali Love based poem
By Premlata Sajwan
श्रृंगार रस की गढवाली कविता
कवित्री –प्रेमलता सजवाण

-
दुन्यां म आँखि त बिजाम द्यखि
पर त्वे जन रतन्यालि नि होलि ।
यूंकि रौंस कलेजि चीरि लि जान्द
कैका बिगरैला सुण्यां द्यखदि होलि।
करलि नजर जिकुडि़ लूछि लि जान्द।
मेरि बिजिं आँखि तिथै द्यखदि होलि।
त्वे देखि मेरि आँख्यु कि निंद भरमै
तू भग्यान त फसोरि कि सींदि होलि ।
त्यारु नौ पता थै नि बतान्दु मि कैमा
"प्रेम" रतन्यालि आँखि मेरि हि होलि ।
प्रेमलता सजवाण..

Bhishma Kukreti

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      एक छणांक"  

वीरेन्द्र जुयाल की गढवाली व्यंगात्मक कविता

-
(१) रटन्ति विद्या घुटन्ति पाणि
प्रभु की माया कैळ नि जाणि ।
कळजुगी पूतना-डागण बण्यूं कोरोना
मनख्यूं मा हुंईं बचणा खैंचाताणि ।।
(२) कैका आंख्यूं मा ल्वै सरणी छै
नखरि दुश्मनै गाड ब्वगणि छै ।
धर्मधादल् बैर बढ़िगे छौ दिल्ली मा
मनख्याता की मुंड़िळि थिचिणि छै ।।
(३) बल उनि तून उनि तान
बचाण मुश्किल हूणि ज्यान
मोहमाया क्वी काम नि आणी
कोरोना बम कनु मवसि फुकान ।।

(४) ठौ दीण से गफ्फा दीण भलु
कतगा बिमर्युं फरि लगैल्या टल्लु ।
ज्यूरा क ल्हिजाणै कतगै बाना छन
वो जिकुड़ी खिकोड़ि ह्वेजांद हळ्ळु ।।

Bhishma Kukreti

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A Couple of Garhwali Poems by Diwakar Budakoti
दिवाकर बुडाकोटी की दो गढवाली कविताएँ

-
मुख फरै म्वाळू हटाण प्वाड़लो ।
दुन्या दगडि बच्याण प्वाड़लो ।।
हतज्वडै कि नि चलु काम त ।
चुफा पकड़ि रिंगांण प्वाड़लो ।।
खंदि पिंदि गैलैणी च य पौंळ ।
ज्यू धरिकि हिटाण प्वाड़लो ।।
ये कलजुगा का कुंभकरणों तै ।
रतभ्योण मै बिजाण प्वाड़लो ।।
बेरोजगार नोन्याल कब तै जि ।
पोड़ि पोड़ि कि खवाण प्वाड़लो।।
सरकार पैमसि ल्याण वलि च ।
बाँझू पुंगडु बवांण प्वाड़लो ।।
तैरिकि नि तरेंणा रोळा जिंदगी का।
ठपागियूँ मा नगांण प्वाड़लो ।।
जगा जगौं मा चूण लग्यूँ च ।
सर्या ही सर्ग छ्वाण प्वाड़लो ।।
धरै जैली जब मूणी मा खंद ।
बुबा रै बोलिकि लिजाण प्वाड़लो ।।
गिच्चा क त कि जांद "दिवाकर "।
पर कैरिकि बि त दिखाण प्वाड़लो ।।
-दिवाकर बुड़ाकोटी-
-
वो गौं का गौं बसाणै छुवीं कना छन।
बल जांदी टुटदि मौ बणाणै छुवीं कना छन।।
सुळगै की कूड़ी का क्वर्रा बलिंडों फर आग।
अब ठौ-जलोठौ लौ जगाणै छुवीं कना छन।।
पुर्यणौ का क्वाठा भितरौं तै खंडर कैकी ।
तब जड़ि बटि पौ चिणाणै छुवीं कना छन।।
क्वांसि जिकुडियूँ तै ल्वेखाळ कैकी लतपत्त ।
जिकुडियूँ का घौ मौल्याणै छुवीं कना छन।।
कुलद्यबत्ता वाड़ा, चौबट्टा, सिमन्दम् गास्याकि ।
अब पीर मैमन्दौ कि सौं खाणै छुवीं कना छन।।
खा-ख्वैकि बेच-बाचिकि अपुडु दीन-ईमान ।
झणि-कुजणि कनु नौ कमाणै छुवीं कना छन।।
निक्कजि गिजैयाळ यूंन् पहाडै ज्वनी "दिवाकर"।
ये त तचदु - उमलदू ल्वै जमाणै छुवीं कना छन।।
- दिवाकर बुडाकोटी


Bhishma Kukreti

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नै छवाळि अर गढभाषा लेखन देखा----

--पैंसा अर भैंसा--

-
कुलदीप राणा कक्षा 10
-

पैलि नि रंदा छा,
पैंसा,
तब कखै ल्यौंण छा
भैंसा,
अब सबुमा छकी
पैंसा
पर क्वे नी रखणू
भैंसा

पैलि जौंका रंदा छा
भैंसा,
सि ब्यच्दा छा
घ्यू-दूध,
तब औंदा छा
पैंसा।

अब त नी रखणां क्वे
भैंसा?
पर तब भी सबुमा छिन
पैंसा।

कुलदीप राणा कक्षा 10 राउमावि पालाकुराली जखोली ।

Bhishma Kukreti

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घिन्डुड़ि दिवस पर आपै सेवा मा अपणि बाल कविता पोथी "चकाचुंदरि" बिटि एक रचना
-
घिन्डुड़ि"
-
घिन्डुड़ि फुर्रs उड़िकि ऐजा ।
ऐकि तु मेरा दगड़ि बैजा ।
त्वेथैं कौंणी झुंगरु खिळौंलू ।
नवाळो ठंडो पाणि पिळौंलू ।
दगड़म घिण्ड्वा दा थै लै जा ।
घिन्डुड़ि फुर्रs उड़िकि ऐजा ।।
त्वेकु भल्लु सि घोल बणौंलू ।
बिगच्यां नौनौं तैं नि बथौंलू ।
यखुलि छौं मी दगड़म ऐजा ।
घिन्डुड़ि फुर्रs उड़िकि ऐजा ।।
गुणमुण-गुणमुण छ्वीं लगौंला ।
हैंसला-ख्यलला दगड़म रौंला ।
मेरा दगड़म ख्यलणकु ऐजा ।
घिन्डुड़ि फुर्रs उड़िकि ऐजा ।।
अपणा फौंकुड़ मैंतैं दे दे ।
मैंतैं दगड़्या उड़णू सिखै दे ।
मेरा सुपिन्या सच तू कैजा ।
घिन्डुड़ि फुर्रऽ उड़िकि ऐजा ।।
सर्वाधिकार सुरक्षित -:
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ

Bhishma Kukreti

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सजग सतर्क रे तै,

प्रेरक गढवाली कविता
कविता: अश्विनी  गौड़

-
सजग सतर्क रे तै,
कोरोना दूर भगावा,
अफु भी बचा-
अर होरु बचैक,
फर्ज अपडु निभावा।
देशी परदेसी
घौर-गौं जु औंणा,
पैलि
जांच अपडि करावा!
अपडि माटी-थाति का
भै-बंधो मा,
बीमारी ना फैलावा।
देश बिटि जब
घौर-गौं एगिन,
सबसे पैलि नयौंण,
खांसी-जुकाम अर बुखार
जूं मनख्यूं
सि डाक्टर मा पौछौंण।
हर यन लक्षण
जैमा दिखैंदा,
कोरोना त नी होलू?
ना,चिंता-फिकर कन
नी सरमाणू !
अस्पताल चलि जांणू।
खांदि-पैंदि ,
उठदि-बैठदि दौ,
सेनिटाइजर लगावा,
जथ्या बगत भी हवै
सकदू त
हाथ सबुका धुलावा।
ब्यौ-बराती,
अर बर्थडै पार्टी,
भीड़ मा ना क्वच्यावा,
आलतू-फालतू, सैर-बजारु,
कुछ दिनों,
आणु-जांणू छोड़ी जावा।
भेंटण भी नी अर,
हाथ नि मिलाणू!
नजीक सुदि,
कैका भी नी जांणू,
जख तख थूकण,
नाक सिक्न्न,
अर
खासदि दौ,रखा ध्यान,
रूमाल अपडि खीसी बै गाडी
गिच्ची पर टप्प लांण।
बीमारी का जाळ मा,
दुनिया फंसी च,
मनखि लग्या,
सुद्दि मन्न पर,
थोड़ा सजग,
सतर्क रैक सबि
लग्या रौला कुछ कन्न पर।
एकमुठ्ठ सोचि ,
बिचारि हमुन अब,
मन मा ठांणी द्यौंण,
साफ सफै करी,
जागरूक रैक
कोरोना हरौंण
---अश्विनी गौड़ ---दानकोट अगस्त्यमुनि ----

 

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