Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 336471 times)

Bhishma Kukreti

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सरकार अर पलायन
-
पार्वती जोशी[/b]

---------------
हे सरकार
कैर कुछ बिचार
म्यारू मुलक
बाँझ पोड़ि गेनि गौं-गुठ्‌यार
सि इसकोलों मा लगणा ताळा
अर द्वार-मोर फर लगणा जाळा
छन्यों मा घुरणा बाघ
डाँडौं मा लगणी आग
ग्वैर - घसेर्यों तैं रिक्क अटगाणा
अर सगोड्यों मा सुंगर जम्हाणा
धुरपळि मा बैठींच बांदरौं कि डार
हे सरकार
कैर कुछ बिचार
गौं मा प्वड़ींच सुनताळ
उजड़ि गेनि कूड़ि
पोड़ि गेनि पाल
दिल खयेणू च
कि अहा..
कबि कन छै
म्यारा मुलक कि अंद्वार
हे सरकार
कैर कुछ बिचार
मनख्यूं खुण क्य ब्वन्न
पैट्याँ छन
गरपट्ट उंदार
तौंकि बि मजबूरी च
न क्वी उघोग
न क्वी रोजगार
सि पढ्याँ-लिख्याँ छोरा
ठोकर खाणा छन
यीं धार-वीं धार
अर आखिरकार
जब नि होंदु जुगाड़
त बस मा बैठिकि कोटद्वार
अर फिर रेल का धक्कों मा
रड़दा-रड़दा
दिल्ली दरबार
हे सरकार
कैर कुछ बिचार
कैर कुछ उयार...
Copyright parwati joshi


Bhishma Kukreti

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ड़पट ह्यून्द,


@ रमाकान्त ध्यानी"आरके"


चुड़पट ह्यून्द,
चुल भड्यां गींठी,
तौ भुज्यां भट्ट-खाजा,
आगि अगेठी,
तातु दूध,
गूड़ा कटग,
चिलमा सौड़,
लगीं कछिडी,
अर खिकताट,
बितीं बात.....
@@@@
रमाकान्त ध्यानी"आरके"
ग्राम-गोम,नैनीडांडा।

Bhishma Kukreti

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जडडू  कविता

प्रेमलता सजवाण


ड्डु मौसम ह्वा त ह्वा
ल्यो जडमार जरा नि ह्वा।
ऐडा़ढ भैर जनै ह्वा त ह्वा
विचार अढ़गड्यां जरा नि ह्वा।
गात कु जड्डा ल कौंपण ह्वा त ह्वा
दुश्मन ऐथर झरझराट जरा नि ह्वा।
प्रेमलता सजवाण

Bhishma Kukreti

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जडू

सुनीता ध्यानी

सरग गरज बल, गरड़ गरड़ घम
फजल बरख यख, सरग झमक झम
ततर बतर अर, छळबळ खळबळ
हरख फरख अब कनम करण बल
चमचम घमघम
बगत-बगत यख
बदन अकड़ कर लकड़ बणद यख|*
(सुनीता ध्यानी

Bhishma Kukreti

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ह्यूंद

कविता – अंजना कंडवाल
 Garhwali Poetry on Winter/Autumn

ह्यूं पौड़ी ग्ये ह्युन्द दिदों
ह्युन्द बौड़ि ऐ ग्ये
ससर्यान्दी कूर्यो लेकि
ह्युन्द बौड़ि ऐ ग्ये।।
गौं क बाटा घाटा पण
राड़ो पड़ी सबेर
स्कूल्या नौनो कु दीदों,
ह्वे गये अबेर,
उँदारियूं को बाटों
तौं की खुट्टी रौड़ी ग्ये।
ह्युन्द की झड़ी मा दिदों
घास काटि लाण
दूर च जंगल दिदों
यखुली-यखुली जाण
गौं की दीदी भुल्ली सब्बि
उन्द दौड़ी ग्ये।
ह्युन्द की टटकार मा
पाणी कु भी जाण
लत्ती-कपड़ी ध्वे की दिदों
कन क़्वेकि लाण
हथि-खुटियुं उन्द मेरा
झमझ्याट पौड़ी ग्ये।
Copyright @ Anjan Kandwal

Bhishma Kukreti

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--नै फुलार----
   
 रूद्रप्रयाग से बाल कवियों की गढवाली कविताएँ

नै फुलार कन रंचणा, कन लिखणा या बडि बात नी च,
पर मातृभाषा का नजीक छिन औणा अर कलम चलौणा, या भौत बडी बात च।
  या सुखिळि बात च हमारा वास्ता, कि अब भाषा संस्कृति का दिवा जगणा छिन त जरूर उजाळु भी खत्यौलू अर नै पौध खूब फलला-फुलला अर खूब खुशबू फैलौला ईं माटी-थाति की----

    आस-विश्वास  कि, बिज्वाड भरीं रौ
   जौ-जस कि जूंदाळ, छक्क खतीं ह्वो
  सुर्ज सी घमझौळ,अर गैणौ जस उजाळो
    नयु साल यन सुख समृद्धि दगड़ि औ।
 ---शुभमंगलमय कामना दगड़ि
                         -@अश्विनी गौड़ अध्यापक पालाकुराली, जखोली ब्लाॅक रुद्रप्रयाग।



1-
  ---'वोट'---
  काम - काज  छोड़ीक,
 वोट द्यौण आवा दौड़ीक।

आरु डाळा पर चार झूला
वोट द्यैण कबि ना भूला।

घास काटण,चारी बीठा,
वोट  द्यैण  झट्ट  हिटा।

'रै' का सौड़ बैठ्या छिन
वोट द्यैण पैट्या छिन।

----@काजल राणा, कक्षा-09 राउमावि पालाकुराली।



  2-
 -मतदान-
काम काज छोडा दूं
वोट द्यौण आवा दूं
वोट द्योण आवा दूं
 बुजुर्ग भी ल्यावा दूं।

वोट द्यौण आवा दूं
लोकतंत्र बचावा दूं
घास पात त रोजै धांण
वोट मतदान आजे जांण।

चौका दांदा मा बैठ्या छिन
वोट द्यौण पैट्या  छिन।

------@राधिका राणा कक्षा-09,  राउमावि पालाकुराली


3-
    -- वोट--
चला टीपा फ्यौली फूल
वोट मनपसंद नेता द्यौण।

डांडि धार पीपल डाळू
हमारू गौं वोट द्यौण जालू।

लोकतंत्र बचौण त,
वोट जरूर द्यौण।

अमीर गरीबों नए भेदभाव
वोट द्योण सबुकू अधिकार।

फूल डाळी है ना तोडा दूं
मतदान कन ना भूला दूं।

कांध्यू मा हाथ धर्या छिन
वोट द्यौणौ बाटा लग्या छिन।

अखोडा पतगा झड़णा छिन
वोट द्योण अड्गणा छिन।

मेरी वोट मेरु अधिकार
ऐसे दौ मेरी सरकार।

वोट हमुन तैई द्यौण 
जैन विकासै छ्वीं लगौण।

काम काज लग्यू रौण
वोट द्योण जरूर औण।

----@अपेक्षा राणा। कक्षा-09
राउमावि पालाकुराली।

4-
        ---वोट--
डांडा-धार पैय्या फूललू
सैरु गौं वोट दी औलू।

चला भैजी अब वोट द्यौण
दारू का सांसा कतै नि रौण।

देखदा, सिखदा, लिखदा-पढ़दि
वोट द्यौणै  दादी जिद कर्दि।

गरीब अमीर सबुकू यक्कु दान
अपडु अधिकार अपडु मतदान।

घूस ल्ये, मुर्गा खै, देखा
दरवाळों का गुणगान कैका?

बांजै डाळी पराळै मुठ्ठ
मतदान कनौ सबि एकमुठ्ठ।

मेरु वोट, मेरु अधिकार
चुनौ भलू कन ऐसू, बार।

----@खुशी राणा, कक्षा 09, राउमावि पालाकुराली जखोली ब्लाॅक रुद्रप्रयाग।



 
5-

---रंगमत----

आज द्यौखा मनखी  कन ह्वैगी
अपणी रीत अपणा गीत छोड़ी
बनि-बनि का, रंगो मा, रंगमत ह्वै,


बनि-बनी डिग्री ल्येक,
सेवा-सोळि भि, पट बिसरी,
अब त सबुन दूर बै ही,
 हैलो -हाई सिख्यालि।


पैली जन लांणु-खांणु भी, छोड़ी
अब द्यौखा दौ, सबि बनि-बनि
चीजौ मा, कन रंगमत ह्वयां।


बिमार्यौन कन घेरी मनखि,
दवे भी अब कै प्रकारें,
पर पैलि जन जड़ि-बूटी की
ताकत कख रै।


ब्यौ-बरात्यूं मा, ढ़ोल- दमौ छोड़ी,
सबि डीजे मा, रंगमत ह्वयां,
रिश्ता-नाता भी सब फर्जी बण्यां।


धारा-पंधेरौ सुनकार,
बिना  बेटी-ब्वारी,
कूटणु-पिसणू छोड़ी
अब त सभी बजारों खरीदण ह्वेगि।


भली तागत वौळु  दूध भी
कखै दिख्यैण,
भैंसा गोरू पळन कैन
दूधे थोल्या सारा लग्या,
 जब गौं का गौं
खाली ह्वैगिन।


आज द्यौखा मनखी  कन ह्वैगी
अपणी रीत अपणा गीत छोड़ी
बनि-बनि का, रंगो मा, रंगमत ह्वै,
,
----कविता कैंतुरा,खलुवा लुठियाग रूद्रप्रयाग। 





6-
       -- घौरे याद--         

भौत टैम बाद ए तुमुतै,
अपरा घौर- कूड़ै याद,
जब  मामारी मा पिथ्येगिन,
तब  याद ए माटी थाति की!

 बांजा छै, जु कूड़ी
 तख घसे- लिपै ह्वोणी,
पैलि त, तख देखी भी नी,
 पठाळि छे कबार बै, च्वौंणी।   

 स्वास्थ्य- सुविधा पढ़ै बाना
 जैन भी मुख छो मोड़ी,
आज अपड़ि-अपड़ौ
जान बचोणौ औण पडी यखि बौड़ी।

           कि
 अब बथा कथ्ग्या फर्क च?
 हमारा पहाडौ अर तुमारा शैरु मां!
हमुन धारो, पाणी पीनि,
तुम रैन विकासे लैरो मां।

 यख म्योळि बासदी
घुघुति घुरांदि,
 तुम रौन्दन ट्रैफिक घुंग्याट मा।
 हमुन ल्वौण रोटी खै।
 तुम रैन चौमिन-मोमो फौफ्याट मा। 

 बोली भाषा फुन बिसरी
 अब देसी ब्वन्न बेठ्यां छा,
 देहरादून त यख्खि मू च
 तुम त बल विदेश पैट्या छा।

घौर-कूड़ी खन्द्वार
पुगंड़ि बांजा छिन
पर उंद बड़ा- बड़ा फ्लौट,
आज खन्द्वार कूड़ी चमकी
 पुगंड़ा खैन्दा ह्वेग्या
पर सि प्लौट तखि सून्न रैग्या । 

 अपड़ा आखिर अपड़ै ह्वंदा
पहाड़ त हमारि शान छिन,
पहाड़ी लांण, पहाड़ी खांण
पहाड़ मा अन्न धन कि रस्यांण।
 पहाड़ी लाणु पहाड़ी खाणु
 पहाड़े कि जान छिन………

 ------निधि चमोला  कांदी अगस्तमुनि रूद्रप्रयाग



7-
*चला दगड़यौं अब गौं जोला*
*लिख्वार- अशोक जोशी*

चला दगड्यौं अब गौं जौला-------

वखि गैल मा, रोला खोला
बांजि पुंगड्यूं तै कर्ला-कमोला       
     यखि पाड़ौ मा दै-दूध जमोला
अपणा पाड़ तै अग्वड़ि बढ़ौला
 कि,चला दगड्यौं अब गौं जौला------


कैका सुख मा नाचीऽ जोला
कैका दुःख हम बुथ्यै द्यौला
कैकी कमी तै हम पुर्यौला
कि,चला दगड्यौं अब गौं जौला-----

नयि-नयि फसल तै, हम यख उपजोला 
घौर  किवाड़ तै, खिलपत सजौला
 अफु खुणि रोजगार अफु  खुजौला
  पाड़ौ बटि कुछ नयु बणौला
कि चला दगड्यौं अब गौं जौला------

अपणी तौं डांडी-काठ्यौं तै हम बचौला
बिसर्या पुरांणा त्योहार तै, हम मनौला
खैरी का यूं अंधेरा बाटौं
अब कुछ नयु बाटु खुजौला
सुख का उज्याळा खुणि अग्वाडि बढ़ौला
कि चला दगड्यौं अब गौं जौला------


अशोक जोशी   नारायणबगड चमोली।




-------@धन्यवाद
   संकलनकर्ता   अश्विनी गौड़? दानकोट, राउमावि पालाकुराली रूद्रप
 Garhwali  Poetries of varies topics from Rudraparayag; Multi-Subject Garhwali Poetries from children of Rudraprayag ;

Bhishma Kukreti

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सुनीता ध्यानी की गढवाली कविता

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              सुनीता ध्यानी की कविता

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ठटा-मखौल कि गढ़वलि ग़ज़ल: विजय गौड़

Humorous Garhwali Gazals  by Vijay Gau
r
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त्यरा तींदा लारा सुखालु कु?
मि त तींदु ह्वै ग्यूँ त्यरा बिन तिंदयाँ हि,
यु छूड़ु झूट लगै, तिथैं बखालु कु?
त्यरा तींदा लारा सुखालु कु?
भगी! यीं दुण्या मा सदनि कु ज्वाँन रै,
पर फेर बि तिथैं ऐना दिखालु कु?
त्यरा तींदा लारा ........
तु त बथौं छै बथौं,
त्यार जनु क्वी हैंकु नि,
त्वै बथौं तैं बथौं मा उड़ालु कु
त्यरा तींदा लारा ......
मिथैं गालि दे दे कि,
अब त्येरि गिच्चि नि पटाँदि,
कख हरचु होलु वु बाग
त्यरा त्वारा बुखालु जु ।
त्यरा तींदा लारा......
@विजय गौड़


Bhishma Kukreti

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सुनीता ध्यानी की कविता

 

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