धर्मेन्द्र नेगी की गढवाली कविता
बुस्याणान हमुतैं हमारा हि अपणा
झुराणान हमुतैं हमारा हि अपणा
किलै दोष धरणा छां हम गंगा जी पर
डुबाणान हमुतैं हमारा हि अपणा
हमुन सच क खातिर यु जीवन लुटैदे
झुठ्याणान हमुतैं हमारा हि अपणा
हमारि अपणि धौण टकटकि करीं छै
नवाणान हमुतैं हमारा हि अपणा
भरोसो बि अब कै पर कन त कनुकै
ठगाणान हमुतैं हमारा हि अपणा
जिकुड़ि मा छ सेळी प्वड़ीं जळदरौं की
जळाणान हमुतैं हमारा हि अपणा
तमाशो हमारू बणाणा बजारम
नचाणान हमतैं हमारा हि अपणा
जु जणदा नि छन न्युतु हमतैं वु देणा
तिराणान हमतैं हमारा हि अपणा
जत्वड़ौ सि बागी हुयीं गत 'धरम' अब
कच्याणान हमुतैं हमारा हि अपणा
@धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी,रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ