Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527515 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली कविता : पहाड़
मी पहाड़ छोवं
बिल्कुल शान्त
म्यार छजिलू छैल
रंगिलू घाम
और दूर दूर तलक फैलीं
मेरी कुटुंब-दरी
मेरी हैरी डांडी- कांठी
फुलौं की घाटी
गाड - गधेरा
स्यार -सगोडा
और चुग्लेर चखुला
जौं देखिक तुम
बिसिर जन्दो सब धाणी
सोचिक की मी त स्वर्ग म़ा छौंव
और बुज दिन्दो आँखा फिर
पट कैरिक
सैद तबही नी दिखेंदी कैथेय
मेरी खैर
मेरी तीस

म्यारू मुंडरु

म्यारू उक्ताट
और मेरी पीड़ा साखियौं की
जू अब बण ग्याई मी जण
म्यार ही पुटूग
एक ज्वालामुखी सी
जू कबही भी फुट सकद !





रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से


पंकज सिंह महर

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ग्लोबल वार्मिंग-  भुवन बिष्ट

हरदा ठीक ही ठहरा
शहर जाकर तुम भी बदल गये
तुम्हारे बदलते ही बदल गया समयचक्र
समय से पहले पकने लगे हैं काफल और हिसालू
और फसल सूखने के बाद बरसता है आसमान
कुछ होता भी है तो चले आते हैं जंगली जानवर
कहीं खो गयी है फूलदेई और घुघुती
फलों में बौर लगते ही होने लगती है
बेमौसमी बड़े-बड़े ओलों की मार।

मुझे आज भी याद है तुम्हारा पहली बार
गाँव छोड़कर जाना।
देवीथान में करार मांगना, भेट चढ़ाना
डबडबाती आँखों से हमें
लहलहाती फसलों के सपने दिखना
फिर आँसुओं की छोटी-छोटी नदिया निकाल कर
कई बीजों को हमारे दिलों में रोपना
और हमारा, तुम्हारी सलामती के लिये
ईष्टदेव के चरणों में दण्डवत होना।

सालों बाद तुम्हारा घर आना
हमें देखकर अजनबियों की तरह रास्ता बदल लेना
हरदा तुम तो शब्दों के भण्डार हो
हर बात की काट अपने साथ लाये हो
हम बंगरुटियाँ छाप सूखे पेड़ों पर/
खुशबूदार बेलों की तरह
कुछ समय के लिये तुम ऐसे चढ़ जाते हो
जैसे पेड़ सदाबहार हों।

हरदा तुम तो चले गये
पर घूर में लटका तुम्हारा हुड़का
तुमसे ऐंचे-पेंचे का हिसाब जरूर मांगेगा
बूढ़ा जर्जर मोतिया बल्द, खाली बंजर खेत,
बेडू, मडुवे की रोटियाँ, सूखते नौले,
झोड़ा, चाँचरी और कच्ची खुमानियां
तुम्हारे सपनों में आयेगी और पूछेंगी
कब आओगे घर, चिट्टी लिखना

हरदा तुम लिख सकोगे चिट्टी ?
तुम्हें डर है कि कहीं गाँव से कोई
चार तिनड़े हरेले के लेकर
कुछ माँगने न आ जाय
हरदा ठीकी ठैरा
बखत भी तो बदलने वाला ठैरा बल।
अभी परसों चैपाल में तुम
कुछ ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कह रहे थे
हरदा, कहीं ये भी वही तो नहीं है।
[/size]

साभार- नैन्ताल समाचार

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जाग
 
 कर नई चेतना
 आपने मै संचार
 अपने विचारों को
 बना अपना आधार
 
 कलम तान अपनी
 बना दे  नयी क्रांती
 जीवन संघर्ष आज
 शक्ती रस को ढल
 
 उंगलीयुं  के साथ
 इस कोरे कागज पर
 अब साकार कर
 नये विश्व को आज
 
 कदम कदम मीला
 अपनी आशा  बड़ा
 कन्धों से कन्धा जोड़
 आयेगी वो निशं
 
 तिरंगा ले हाथ 
 भारत के  साथ
 जगा उठा जन
 दहल गये मन
 
 अलस कर दुर
 कम है भरपूर
 जाग अब जाग 
 मंजील नहीं  दुर 
 
 कर नई चेतना
 आपने मै संचार
 अपने विचारों को
 बना अपना आधार
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मन  को छापलाट
 
 त्यार मन  को छापलाट
 मी थै देखैणु च आज
 त्यार तन  का हेर
 म्यार अन्खोंया मा देख
 त्यार मन  को छापलाट
 
 क्या छु तेरु मन मा जो
 छुची तै थै ताप्रनु च आज 
 भूकटी कीले तेरी भुन्याँ
 क्या छुपाणी छे  आज 
 त्यार मन  को छापलाट
 
 उदास कीले होली
 कै का  विचार मा खोली
 बचा दे जरा आज
 चुप चाप कीले होली
 त्यार मन  को छापलाट
 
 तु मेरा देश की बांदा
 तेरी बेंदी लाल गोला
 तु छे के घोला मा
 अब त म्यार दगडी बोला
 त्यार मन  को छापलाट
 
 हे पहाड़ की नारी
 अपरी विपदा
 अपरी मा राखी
 जंण नक की नथुली सजी
 त्यार मन  को छापलाट
 
 त्यार मन को छापलाट
 मी थै देखैणु च आज
 त्यार तन  का हेर
 म्यार अन्खोंया मा देख
 त्यार मन  को छापलाट
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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जी णी लगदु  म्यरु
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 उन्दारू उकल णी हीटणु 
 खुटी मा छाला येग्याई .
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 
 पहाड़ म्यार परदेश व्हेग्याई
 गवा की णी प्रगती
 अधोगती व्हेग्याई
 फुल कांटा च लगण अब
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 
 रूणी रैंदी बोई सादणी
 जीयु  घरु व्हेग्याई
 कब सुख पाण हम
 देबता म्यार बता दे अब
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 
 दुर डणडीयुं मा छुपा
 खवाब म्यरु मनख्यूं का
 टका की माया दीदा
 मी थै देख हर्षशाणु च
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 
 नेगी दादा को गीत
 मी थै मनाणु च
 ना दुआड़ ना दुआड़
 रै रै की रुलाणु च आज
 
 जी णी लगदु  म्यरु
 अब क्या व्हेग्याई ......(२)
 उन्दारू उकल णी हीटणु 
 खुटी मा छाला येग्याई .
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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चल घुमंण को बॉलीवुड
 
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 बॉलीवुड मा हीरो हीरोइन बनोला
 चल मुबंई घूमी ओला   
 गड्वाली कला को झंडा गाडी ओला   
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 
 गोरेगवां को फिल्मस्तान देखी ओला
 वख जाकी कोको कोला पी आलूँ
 कोको कोला विज्ञापन मा
 अमीर दगडी झूमी ओला
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 
 अमिताभ थै सेवा लगी ओंला
 जाया भाभी थै गड्वाली धुन झूमी ओला
 अभी अभीषैक वाटा आयडव् सर जी बोली ओंला 
 ऐश्वर्या  थै शुभ आशीष देई ओला   
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 
 चल मया दगडी घूमी ओला
 हमरी संस्क्रती वों थै झलक दीखै ओला 
 गढवाला रीत बातै ओला
 आपरी भाष सीखे ओला
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 बॉलीवुड मा हीरो हीरोइन बनोला
 चल मुबंई घूमी ओला   
 गड्वाली कला को झंडा गाडी ओला   
 चल छुरी बॉलीवुड जोओल
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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Devbhoomi,Uttarakhand

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देवभूमि के दर्द बहुत हैं,
किसी गाँव में जाकर देखो,
कैसा सन्नाटा पसरा है,
तुम बिन,
प्यारे उतराखन्ड्यौं,
अब तो तुम, गाँव भी नहीं जाते,
शहर लगते तुमको प्यारे,
जो उत्तराखंड से प्यार करेगा
पूरी दुनिया मैं उसको सम्मान मिलेगा,
अकेला नहीं कहता है "धोनी",
शैल पुत्रों तुमने कर दी अनहोनी,
अन्न वहां का हमने खाया,
विमुख क्योँ हए,
ये हमें समझ नहीं आया,
लौटकर आयेंगे तेरी गोद में,
जब आये थे किया था वादा,
शहर भाए इतने हमको,
प्यारे लगते पहाड़ से ज्यादा,
उस पहाड़ के पुत्र हैं हम,
सीख लेकर कदम बढाया,
सपने भी साकार हए,
जो चाहे था, सब कुछ पाया,
दूरी क्योँ जन्मभूमि से,
ये अब तक समझ न आया,
हस्ती जो बन गए,
देवभूमि का सहारा है,
स्वीकार अगर न भी करे,
उसकी आँखों का तारा है,
उस माँ का सम्मान करना,
देखो कर्तब्य हमारा है,
मत भूलो, रखो रिश्ता,
उत्तराखंड हमारा है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

आलूक थेच्छय़ू प्याजक पुड़पूड़ी
काकड़क रेत मूअक साग
मुंगेकि मुंगोड़ी माशेकि बड़ी
कावपट्ट चुणकाणी लसपस भात
इज खोची खोची खवे दिछि
जिबड़ीक म्यरा बड़ मिजाज
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

जोश्ज्यूका का काकड़ लझोड़
बिस्टज्यू को आड़ूक बाग
पन्त्ज्यू का पूलम नि छोड़
नेगिज्यूका खेतम पड़य़ू उजाड़
दिन भर म्यरा रोंते में कटी जाछि
भोते भल छि हो म्यरा ठाटबाट
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

भीजी शिसूण हाथम दंड
महेश मास्सेप भोते खतरनाक
चुलगम मेल चिपकाय कुर्सी में
चप से चिपक गयी मास्साप
सब नान्तिनुले दोड़ लगे दे
भूभी कूटिगो घुस्स लात
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

घटेकी घर घर द्यारे कि सर सर
पल भाखेयी कुकुरोक टीटाट
शिटोवे कि चू चू बिरावे कि म्यू म्यू
पार तली गाड़क सरसराट
डरक मारी हगभराछी
ब्याव पड़ी सुण बागक घुरघुराट
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

ओ रुपली शौज्यूकी चेली
दिन रात रिटछ्यू त्यर आसपास
नि के सकियू आपुणे मनेकी
तुगे देख म्यर लकलकाट
खुबे नाँचीयूँ द्वी ढक्कन पिबेर
जब मोहनदा लायीं त्यार घर बरात
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद

कां रेगो गौं कां रेगे गाड़
कां रेगो काफल कां तिमिल्क पात
कां रेगे रुपली कां ऊक फरफराट
कां रेगेंयी दगड़ू कां उनर बोयाट
रात अधरात क्याप जस लागों
गाव् भरी जां, आँख भिज जानि
जब ऊँछी गौंकी परदेश में याद
अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद
भारत लोहनी
By: Bharat Lohani

jagmohan singh jayara

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देवभूमि के दर्द बहुत हैं,
किसी गाँव में जाकर देखो,
कैसा सन्नाटा पसरा है,
तुम बिन,
प्यारे उतराखन्ड्यौं,
अब तो तुम, गाँव भी नहीं जाते,
शहर लगते तुमको प्यारे,
जो उत्तराखंड से प्यार करेगा
पूरी दुनिया मैं उसको सम्मान मिलेगा,
अकेला नहीं कहता है "धोनी",
शैल पुत्रों तुमने कर दी अनहोनी,
अन्न वहां का हमने खाया,
विमुख क्योँ हए,
ये हमें समझ नहीं आया,
लौटकर आयेंगे तेरी गोद में,
जब आये थे किया था वादा,
शहर भाए इतने हमको,
प्यारे लगते पहाड़ से ज्यादा,
उस पहाड़ के पुत्र हैं हम,
सीख लेकर कदम बढाया,
सपने भी साकार हए,
जो चाहे था, सब कुछ पाया,
दूरी क्योँ जन्मभूमि से,
ये अब तक समझ न आया,
हस्ती जो बन गए,
देवभूमि का सहारा है,
स्वीकार अगर न भी करे,
उसकी आँखों का तारा है,
उस माँ का सम्मान करना,
देखो कर्तब्य हमारा है,
मत भूलो, रखो रिश्ता,
उत्तराखंड हमारा है.

नाम क्योँ मिटा दिया मेरा.....अथक प्रयास से लिखी है मैंने....पहाड़ के प्यारे पर्वतजनो के लिए......सन्देश देती मेरी कल्पना कविता के रूप में.....
http://www.pahariforum.net/
www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogpost.com
http://blogs.rediff.com/devbhoomiuttarakhand/2009/09/
E-mail: j_jayara@yahoo.com
Ph:9868795187

jagmohan singh jayara

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"उत्तराखंड दिवस"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ९.१०.११)
जै फर गर्व छ, हरेक उत्तराखंडी तैं,
हो भि किलै न, लड़ी भिड़िक लिनि,
उत्तराखण्ड राज्य,  उत्तराखण्ड वासियौंन,
प्यारा प्रवासियौंन, होणी खाणी का खातिर,
पराणु सी प्यारू, दुनिया मा न्यारू,
हे! उत्तराखण्ड राज्य हमारू.....
संकल्प हो सब्यौं कू,
बोली-भाषा, संस्कृति कू सृंगार,
मन सी सदानि, उत्तराखण्ड सी प्यार,
भला काम करिक समाज कू मान,
विरासत फर होयुं चैन्दु अभिमान,
जौन दिनि बलिदान अपणु,
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण का खातिर,
मन सी करा ऊँकू सम्मान,
देवभूमि छ हमारी जन्मभूमि,
जख विराजमान छन बद्रीविशाल,
कथगा प्यारू रंगीलो कुमाऊँ,
अर छबीलो प्यारू गढ़वाल.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogpost.com
www.pahariforum.net
« Last Edit: November 09, 2011, 05:13:09 PM by जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" »

 

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