Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527549 times)

Bhishma Kukreti

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अन्तुरी मा त पहाड़ ही ऐला*******





कवि- नरेंद्र गौनियाल



[पहाड़ो के गीत; पहाड़ो की कविताएँ, गढ़वाल की गीत; गढ़वाली गीत;

गढ़वाली कविताये; उत्तराखंडी  भाषा में गीत, उत्तराखंड की कविताएँ ]


हैरी-भैरी छै पुंगड़ी जु कैइ दिन,
जख्या-दुबलू वख आज जम्युं चा.
जौंकि तिबारी मा लगदी छै कछ्डी,
हिन्सोली-किन्गोड़ी वख आज लगीं चा.

बुढया-बुढड़ी अर छवटा  नौनि-नौना,
इकुला-दुकला ही गौं मा रैगेनी.
बुढया बल्द अर ढांगी गौड़ी,
कूड़ी-छनुड़ी बि रीति ह्वैगेनी.

पुंगड़ी-पटली ह्वैगेनी बांजी,
सेरी-घेरी बि रुखड़ी ह्वैगेनी.
सगोड़ा-पतोड़ों मा जमदो कंडेया,
छूटा-पूटा निकज्जू ह्वैगेनी.

उन्द चली गैनी क्वी द्वार ढेकी
कैन ब्वे-बाब रखीं जग्वाल.
ढुन्गु फर्कैकी क्वी चली गैनी,
छट छोडि कि अपणो पहाड़.

गाड-गद्न्युं कु सुक्की गे पाणि,
डांडी-कांठी बि नांगी ह्वैगेनी.
पाणि मोला कु गौं मा ऐगेनी,
पंदेरा-नवल्यूं अग्यार नि रैनी.

दूध -घ्यू का सुकी गईं जळडा,
दारू गौं-गौं मा मिलण लगीं.
दूधि छोडि की पीणा छन नौना,
मूल़ा की कच्बोळी  का दगड़ी

सड़क-इस्कूल खुली की जगों मा
सभ्यता कु विस्तार ही हूंदा .
इन्नू फूटी गे ख्वारो हमारो
सभ्यता सर्र हरचण लगीं चा.

मेरा प्रवासी भै-बन्दों सूणा,
चाहे छा तुम दुन्या कैबि कूणा.
तुम ख़ुशी से कमावा अर खावा
कब्बि -कब्बि तुम पहाड़ बि आवा.

अपणि ब्वेई त अपणि ही हूंद,
अपणि भूमि बि अपणि ही हूंद.
रिंगदा-रिंगदा कखि-कखी बि जैला
अन्तुरी मा त पहाड़ ही ऐला...
      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित.


पहाड़ो के गीत; पहाड़ो की कविताएँ, गढ़वाल की गीत; गढ़वाली गीत;

गढ़वाली कविताये; उत्तराखंडी भाषा में गीत, उत्तराखंड की कविताएँ जारी ....

Bhishma Kukreti

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डाक्टरों  उवाच

(गढ़वाली कविता )

कवि - डा.नरेंद्र गौनियाल



 
सुणो भाई-बंधो तुम मेरी बता.
लिक्विड-टिंचरी से तोड़ो नाता.

शराब पीकी जु घूमणा रंदीन.
दुनिया की गाळी खाणा रंदीन

ठर्रा कु पाणि अब छोडि दीण.
कच्ची शराब कभी नि पीण.

शराब एक मीठू जहर.
बर्बाद ह्वैगीं गांव-शहर.

नि पीणी भैजी कभी शराब
दशा नि होलि तब खराब.

बर्बाद सब घर शराब काद.
जुत्ता बि कबी शराबी खांद.

आंखि लाल लदोड़ी थुमार.
अकल मा माटु कनु यू प्वाड.

बच्चों की हालत बिगड़ी जांदा.
खाणा कु बिचारा कुछ नि पांदा

खुद त रोज पीणा रंदिन.
नांगा-भूखा नौन्याळ रंदीन.

रात-दिन जु बि  पीणा रंदीन.
अपणि घरवळी थिचणा रंदीन

मदमस्त ह्वैकी बुद्धि कु नाश.
भलु मन्खी क्वी नि आन्दु पास.

थूका-थुकी सब कर्द समाज.
छोडो शराब बचाओ लाज.

नशा करणु नि हूंदू भलु.
मद्यनिषेध कसिकै ह्वालु.
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित.....


Bhishma Kukreti

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*********आक्रोश*********एक गढ़वाली कविता.



कवि -  डॉ नरेन्द्र गौनियाल




पहाड़ अर पहाड़ी
द्वीइ हूणा छन नांगा
डाळी कटे
मन्खी भागा
पहाड़ नांगा

जगा-जगा मा
दारू कि
सरकारी दुकनि
दिन-रात पींदा
लटगिंदा-फर्किन्दा
बबडान्दा
हुयाँ रंदीन जांगा
पहाड़ी नांगा

व्यवस्था !
टक लगे सूण!!
ईं चिमुडतीं गिच्ची
अर अधपेट पुटग्यूंन
क्य कन्न हमन
सि दारू पेकि ?

आज
हमते चएंद
पुरू अनाज
सि सोमरस
त्वैते ही बिराज

तेरि बराबरी 
हमन क्य कन्न
त्यारा छन 
सि लग्यां ग्यल्का
अर हमारा सुक्सा

तेरि गाड़ी
हमरि नाड़ी
त्यारा हाथ
हमरि गैळी
तेरि जान 
हमारो जंजाळ
तेरि मौत
हमरि मुक्ति
त्यारो भोग
हमारो भाग
हमारो जोग
तेरि जुग्ति

त्वे खुणि
बिजुली-पाणि सब्बि धाणि
हम खुणि सिर्फ
गाणि ही गाणि

हमारा हाथों से लम्बा छन
त्यारा कळदार
तौंकी पकड़ जादा मजबूत च
हमरि मुठ्यों कि पकड़ से

तेरि तिकड़म
कैरि जान्द काम तमाम
अर चूंदा-चूंदा सुकि जांद
हमरि सुकीं हडग्यूं कु
अस्यो-पस्यो

पण देख !
अब हमरि
आंखि खुलि गैनी
अब हम चेति गयां
अब हम
लूछि सक्दन
अपणु गफ्फा
अपणु नफ्फ़ा..


  डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित

Bhishma Kukreti

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************चुप बि कारा,मानि जावा.************(जनसँख्या वृद्धि अर लिंग भेद पर एक रैबार )

 

कवि- डा, नरेंद्र गौनियाल


एक द्वी ही भौत छन,नौनु हो या नौनि दा.
होलि मुश्किल सैंतणा की,निथर तब हे दिदा.
             बिंडी ह्वाला तब क्य खाला,पुट्गी राली खाली दा.
              सबि नंगा-भूखा उन्नी राला,तब क्य होलू हे दिदा.
ल्यखणु-पढणु, झुल्ला-गफ्फा,आलो कख बिटिकी रे.
 फिर एक बन्दा अर सौ धंधा,तब क्य होलू हे दिदा.
               भर्ती हूणू इस्कुलों मा,ह्वैगे मुश्किल यूं दिनों.
                ढेबरा-बखरा ही चराला,नौनि-नौना हे दिदा.
नौनि-नौनु एक ही छा,फरक तुम कुछ नी करा.
एक नौना का ही बाना,थुपड़ी नौन्युंकि ना लगा.
                छैंयी पडीं गलोड्यों मा वींकी,आंखि बैठीं क्वार छन.
                 फिर एक बि हैंकु ह्वै जालु,तब क्य होलू हे दिदा.
मेरि बात सूणि ल्यावा, टक लगैकी ध्यान से.
हाथ ज्वड़दू चुप बि कारा,मानि जावा हे दिदा..
               डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित

Bhishma Kukreti

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वीरेन्द्र पंवार की गंजेळी कविता (गजल)



[गढवाली गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी गजल, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला ]



क्वी हाल नी दिखेणा चुचौं कुछ करा

पौड़ छन  पिछेणा चुचौं कुछ करा



नांगो छौ त नंगी ही रेगी नांग

तिमला छन खत्येणा चुचौं कुछ करा



अज्युं तलक बी मैर कखी त बांग देंद

कखि नि ऐ बियेण्या चुचौं कुछ करा



छाडिकी फटगीक  बीं बुखो इ पै

चौंळ छन बुस्येणा चुचौं कुछ करा



रड़दा  पौड़ टुटदा डांडौ   देख्यकी

ढुंगा छन खुदेणा चुचौं कुछ करा



द्व्वता सब्बि पोड्या छन बौंहड़

झणि कब होला दैणा चुचौं कुछ करा



Copyright@ Virendra Panwar, Paudi, 10/7/2012

गढवाली गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी गजल, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला जारी 

Bhishma Kukreti

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Satirical Poem by Raghuveer Singh ‘Ayal’ alias ‘Guthyar’

                          Bhishma Kukreti

[Notes on ironic Poems; on ironic Garhwali Poems; on ironic Uttarakhandi Poems; on ironic Mid Himalayan Poems; on ironic Himalayan Poems; on ironic North Indian Poems; on ironic Indian Poems; on South Asian ironic Poems; on ironic Asian Poems]
Raghuveer Singh ‘Ayal’ (Village- Ayal, Paidulsyun, Pauri Garhwal, Uttarakhand, 1938) is a prominent signature in Garhwali poetry.
   ‘Ayal’ is more famous for his adding ‘Guthyar’ word (chauk, Courtyard) in the last line of his Garhwali poetry.  Though Ayal is versatile poet, but was famous for his sharp satire and attacking on our social, political or cultural behavior. The poem attacks on policies makers and then taking advantages of those policies through encroaching other’s rights. The use of figures of speech by phrases makes the poem timeless.
 The following poem is an example of his attacking on social behavior and his power of vocabulary
किराण
कवि - रघुवीर सिंह रावत 'अयाळ'

बण गैनी नियम
चल गेन रिवाज
ऐ गेन अगनै
सबी टिप्वा
बुगठया बाज
चौर्याँळु दगडि मिली
कछम्वळि गबंळै
भोरी पेट
अर बचीं खुचीं
बोट्यूँ तैं ली गैनी
अपड़ा हुणत्यळा
छौला कू
हमरा पल्ला पड़ी
सिरप किराण
ऐंस्या रैग्या हम
हमरी घिमसाण
लगी टपराँण
कि बाबा आलो
हडगी ल्वतगी
कुछ ट लालो
पळयाण ह्व्ला दांत
पैनाणा ह्व्ला हत्यार
ये गुठ्यार
Copyright@ Raghuveer Singh Rawat ' Ayal '


Reference- Dhad June, 1990, pp-22)
Copyright@ Bhishma Kukreti, 11/7/2012
Notes on ironic Poems; on ironic Garhwali Poems; on ironic Uttarakhandi Poems; on ironic Mid Himalayan Poems; on ironic Himalayan Poems; on ironic North Indian Poems; on ironic Indian Poems; on South Asian ironic Poems; on ironic Asian Poems

Bhishma Kukreti

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*********हौली रांडा फाट-फाट*********



कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविता

चौमास का दिन
कतगा भला,कतगा सुवान्दा
चरि तरफ फैलीं हर्याळ
पाणि कु तर-पराट
गदेरों कु छल-छलाट
चखुलों कु किल-किलाट

डांडी-कांठ्यों मा
कुयेड़ी लगीं घनघोर
ग्वैर ढूंढ़णा छन
अपणा-अपणा गोर
निर्भगी हौलु
कनु लग्युं च
बींदी गौड़ी कि घांडी
दूर बजणी च

ग्वैरणी लगाणी च धै
ये दगड्या ये हू ! ! !
इथैं कखि
म्यारा गोर बि छन
बार-बार धै लगाण पर बि
कुछ जबाब नि सुणेंदु

आखिर मा य फटकार दींद -
तांबा तौली,पितल़ा पैसी
हौली रांडा फाट-फाट
हमारू छाला कि कुयेड़ी
सरि-सरि छाट-छाट.
        डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित   


Bhishma Kukreti

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Dunya Bachan: Garhwali poem Calling ‘Save the Earth ‘

दुन्या बचाण त...

कवि- मदन डुकलाण

दुन्या बचाण त
बचै का राखा
लासौं मा खून
पांसौं मा दूध
अगास मा सूरज
बादळु मा जून
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
गौं - गुठ्यार
बार त्यौहार
अपनों ऐना
अपनों अन्द्वार (अन्वार )
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
मन मा माया
पित्रु की छाया
रौल्युं मा छ्वाया
चुल्लों मा आग
बणु मा बाग़
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
हिमालय मा ह्यूं
मंदिरों मा द्यूं
माणि मा घ्यू
जिकुड़ी मा ज्यू
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
आंख्युं मा आंसू
मन मा सान्सू
कोखी कि बेटी
ब्व़े कि बोली
सर्वाधिकार , मदन डुकलाण
The earth would be saved
When in body the blood is saved
When in nipple milk is saved
When in sky the sun is saved
When in cloud the moon is saved
The earth would be saved
When in village, courtyard is saved
When in country the festivals are saved
When our own mirror is saved
When our own face is saved
The earth would be saved
When in mind, the love is saved
When in small valleys, the springs are saved
When the fire is saved
When in jungle, tiger is saved
 The earth would be saved
When in Himalaya, the snow is saved
When in temples, earthen lamp is saved
When in pot, ghee is saved
When in eyes, tear is saved
When in uterus, girl child is saved
When in society, mother tongue is saved

 Copyright@ Madan Duklan  13/7/2012

Bhishma Kukreti

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वीरेन्द्र पंवार का कुछ गढ़वळि दोहा


यखुली रैगिन गाणि - स्याणि बूड बुड्या लाचार

गौं से इत्गा इ रिश्ता रै गे छंचर अर ऐतवार

***

मयाळदु ऐ छौ शहर जनै मंख्यात का संग

चार दिनों का मेल मा रंगगे शहर का रंग

**

सिकासौर्यून फौंस्यूंमा उलटा ह्व़ेगेनि काम

भाषा बूड़ी दादी सि कूणा मा ह्यराम

**

गबदू दादा सोचणु च होणु छ तैयार

परधानी को मौक़ा मिलु ह्वेजा नया पार

Copyright@  Virendra Ppanwar , Pauri

Bhishma Kukreti

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वीरेन्द्र पंवार का कुछ गढ़वळि दोहा


यखुली रैगिन गाणि - स्याणि बूड बुड्या लाचार

गौं से इत्गा इ रिश्ता रै गे छंचर अर ऐतवार

***

मयाळदु ऐ छौ शहर जनै मंख्यात का संग

चार दिनों का मेल मा रंगगे शहर का रंग

**

सिकासौर्यून फौंस्यूंमा उलटा ह्व़ेगेनि काम

भाषा बूड़ी दादी सि कूणा मा ह्यराम

**

गबदू दादा सोचणु च होणु छ तैयार

परधानी को मौक़ा मिलु ह्वेजा नया पार

Copyright@  Virendra Ppanwar , Pauri

 

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