Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 286310 times)

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0

रोपाई के समय हलिया द्वारा कही जानी वाली कविता

आज कल गो पन लै हेरे रोपाई में जोर|
कसके करू तेरी रोपाई म्यार जंगी ल्हिगो चोर||

खीमसिंह रावत

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 801
  • Karma: +11/-0
 पहाड़
तुम अटल, अचल हो,
वर्षो से जड़ बने हो,
मेरी कई पीढियों ने
चढ़ते उतरते पगदंदियो को
अपने नन्हे कदमो से नापकर
और किया एहसास, कि
तुम्हें छुपा दिया जाय
वृक्षो कि सघनता से
बादलो कि ओट में
उनकी अथक कोशिशों से
वृक्ष लगा लगा कर
हरा भरा बनाया तुम्हें
बादलो का झुंड भी
होता था तुम पर मेहरबान
रिमझिम -२ बरखा लाकर
नित नये नये परिधानों का
उपहार तुम्हें दे देकर
नई नवेली सा सजाता था

hem

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 154
  • Karma: +7/-0
पहाड़
तुम अटल, अचल हो,
वर्षो से जड़ बने हो,
मेरी कई पीढियों ने
चढ़ते उतरते पगदंदियो को
अपने नन्हे कदमो से नापकर
और किया एहसास, कि
तुम्हें छुपा दिया जाय
वृक्षो कि सघनता से
बादलो कि ओट में
उनकी अथक कोशिशों से
वृक्ष लगा लगा कर
हरा भरा बनाया तुम्हें
बादलो का झुंड भी
होता था तुम पर मेहरबान
रिमझिम -२ बरखा लाकर
नित नये नये परिधानों का
उपहार तुम्हें दे देकर
नई नवेली सा सजाता था


Bahut achchhe.  saadhuvad

hem

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 154
  • Karma: +7/-0
यह कविता मैंने सन् ७१ - ७२ में लिखी थी और ७३ में काशीपुर से निकलने वाले एक साप्ताहिक में प्रकाशित भी हुई थी | इसकी अन्तिम कुछ पंक्तियाँ आज भी सामयिक हैं | स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाओं सहित कविता प्रेषित है :


                                स्वतन्त्रता

उषा की गोदी से उठ  कर कुछ इठलाती कुछ बलखाती
तुम कौन आ रही हो री, भारत के जन की प्रिय हो री |
है स्वच्छ बदन है श्वेत वसन,अति शुभ्र मूर्ति,सुंदर तन-मन     
तुम जन जन की अभिलाषा हो री,भारत के जन की प्रिय हो री |
वय किशोर की त्यागी अब,पद अर्पण है यौवन में अब
कुछ आगे की भी सोचो री, भारत के जन की प्रिय हो री |
झन झन घुँघरू की ध्वनि उपजे,किन किन कंकण भी किनक बजे                             
सखियों को भी संग ले लो री, भारत के जन की प्रिय हो री |
उस मधुर गीत का गान करो,सुर,ध्वनि में ऐसी तान भरो
जागें सब सोये लोग परी,भारत के जन की प्रिय हो री |
पर,यौवन में तुम बुझी बुझी, हैं पलकें कैसे झुकी झुकी                                             
 तुम क्या क्या सोच रही हो री,भारत के जन की प्रिय हो री |
हाँ समझ गया अब, कारण क्या? तुमको निज की ही है चिंता
तुम इसी लिए तो कृष हो री,भारत के जन की प्रिय हो री |
ऐ लोगो वह तो है अबला, वह तो पावन है, है सरला                             
वह तो मूरत है नेह भरी, भारत के जन की प्रिय हो री |
वह खतरे में पड़ गयी आज, समझे इसको सारा समाज
तरनी है अब नदिया गहरी,भारत के जन की प्रिय हो री |
यदि उसकी रक्षा हम न करें,इससे अच्छा तो डूब मरें,                                             
या गूँज उठे यह स्वर लहरी, आज़ाद परी आज़ाद परी |
                                         | जय जय चरखा ,जय जय खादी |
                                          || जय आजादी जय आजादी ||   

खीमसिंह रावत

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 801
  • Karma: +11/-0
Dhanbad hem ji

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
अशोक पांडे जी की एक मर्मस्पर्शी कविता


कब आये पहाड़ से?
क्या लाये हमारे लिये?
कैसे कहें कि घर की मरम्मत,
बीमार मां, कमजोर मरणासन्न मवेशी,
बहन की ससुराल
और आवारा भाई,
पहाड़ नहीं होते!

कैसे कहें,
कि सूटकेस की परतों के बीच,
तहाकर रखे गये,
दो-चार नाशपाती खुबानी के दाने,
नहीं होते पहाड़ की पहचान,
कैसे कहें- गया ही कौन था पहाड़?
कब आये पहाड़ से?
क्या लाये हमारे लिये?

हुक्का बू

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 165
  • Karma: +9/-0
जनकवि गिर्दा की कुछ लाइनें, मुझे बहुत अच्छी और सार्थक लगती हैं-

देश की हालत अट्टा-बट्टा,
रुस अमेरिका का सट्टा,
हम-तुम साला उल्लू पट्ठा,
अपने हिस्से घाटा-वाटा,
और मुनाफा बिडला-टाटा,
लोकतंत्र का देख तमाशा
आओ खेलें कट्टम-कट्टा।


देश में
लोकतंत्र बरकरार है,
आपको
अपना तानाशाह चुनने का
झकमार कर
अधिकार है।

Meena Pandey

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 138
  • Karma: +12/-0
arey vah Hukka bu ati sunder............ori bat kar di theri apne

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
आज नेट पर सर्फिंग के दौरान एक पहाड़ प्रेमी कवि महेन जी से साक्षात्कार हुआ, उनकी कवितायें काफी मर्मस्पर्शी हैं, आप सब भी देखिये और उनके ब्लाग पर जाकर टिप्पणी जरुर लिखें, ताकि उनका उत्साहवर्धन हो और हमें और कवितायें पढ़्ने को मिलें।

एक बानगी

पहाड़, शहर और तुम

एक ओर वह शहर है
जहाँ मैं रहता हूँ
दूसरी ओर वे पहाड़
जहाँ मैं पैदा हुआ
इन दोनों के बीच हो तुम
मैं मानव हूँ
मुझे बेहद प्यार है
तुमसे, अपने शहर से और अपने पहाड़ों से
जबतक ज़िंदा हूँ
भूलेगी नहीं पहाड़ों की दुर्गमता
शहर की कुटिलता भी नहीं बिसरेगी
अपने हर ऐब के साथ वे
मेरे ही रहेंगे
मैं उन्हें उसी तरह प्यार करूँगा
जैसे तुम्हें चूमता हूँ हर बार
पिछली रात की तुम्हारी
असहज चुप्पी तोड़ने के लिये।


साभार- http://meribatiyan.blogspot.com/

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पहाड़
पहाड़ साथ नहीं जाते किसी के
वे वहीं खड़े रहते हैं जैसे टूटा हुआ पिता
झुके कंधे लिये
अपने से बाहर निकलती सड़क को देखता है
जो धकेले जा चुके हैं
उनके पीछे छुटे सामान के साथ
आबाद रही पगडंडियों पर रखे हैं हरे घाव
किसी की स्मृति में नहीं रहते वे
न रखते हैं किसी की याद
अपने पथरीले जिस्म में
वे खड़े रहते हैं
बगैर किसी के लौट सकने की
गुँजाईश के साथ

पहाड़ वहीं खड़े रहते हैं
जैसे टूटा हुआ पिता झुके कंधे लिये
अपने से बाहर निकलती सड़क को देखता है
और पहाड़ वे पिता हैं
जो और उठ उठ जाते हैं
खुद को अकेला पाकर
उनकी जड़ें व्याप्त हैं
उनके अस्तित्व से भी आगे
जितने ऊँचे हैं वे
उससे भी ज़्यादा गहरे हैं

साभार- http://meribatiyan.blogspot.com/

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22