Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527657 times)

Bhishma Kukreti

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********जितणि च जंग हमन******-एक गढ़वाळी देशभक्ति कविता 

                            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जितणि च जंग हमन
लड़णि च लडै हमन
भौत ह्वैगे
हमन अब नि सैणु
 दुश्मनोंन अब नि रैणु

 रैणु च हमन
मिलि जुली कि
मारि कि भजळला
दुश्मनों तै
चुनि-चुनि कि

अब तक भौत ह्वैगे
भौत ल्वे बोगिगे
अब न कबी इनु होलू
लुक्यां होला जु
कोणा-काणों मा
एक-एक तै
चटगौंला
एक-एक तै 
 भटगौंला   
एक-एक तै
कटगौंला

 
तुमारा सौं
देश का बीरो
तुमारी शहादत
बेकार नि जालि
मौका मिलण पर
देश का बाना
हमरि बि
जिंदगी काम आलि

देश कि आन
देश कि बान
देश कि शान
कम नि हूणि द्यूंला
जब आलि घड़ी
जब होलि जरूरत
देश कि खातिर
हम बि 
कुर्वान ह्वै जौंला                 

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली गीत, गढ़वाली कविता                 


              उत्तराखंड मां
कवि- पूरण पंत पथिक

(गढ़वाली  कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में  आधुनिक कविताओं  में  व्यंग्य कि कविता लेखमाला  ) 

उत्तराखंड मां


भासणौ   अर आंकडों की खेती उत्तराखंड मां
शिलान्यासों -उद्घाटनों की मौज उत्तराखंड मां .

कनु विकास ह्वै पहाडौ ग्वर्ख्या-पूर्ब्या भ्वरें यख
निपल्टो यखौ ह्वै मन्खी भैर का ऐ गैन यख .

कै को बी हो राज भैजी  उस्तादी उत्तराखंड मां
उल्लू ही बणान्दा रैन सदाने उत्तराखंड मां .

उद्योग लगीं कख लागणा कब लागला पहाड़ मां .
यई राज्यौ हिस्सा छ -पहाड़ - उत्तराखंड मां .

शिक्षा क्यांकि ,कनी साक्षरता ,आंकडों की बात छ.
बीस-पन्दरा सूत्र क्या छन फाइलों की बात छ.

बल,रुपया बाँटना ,कै खुने ,क्यों ,उत्तराखंड राज्य छ
खुर्सी-सत्ता-फुन्द्या -गलादार ,मौज उत्तराखंड मां .

भासणौ को भात ,वायदों -दाल उत्तराखंड मां
अपणी मवासी बणै  ,हैन्कै धार,उत्तराखंड मां .

स्वास्थ्य-सुविधौं काची गप्प ,दायजिन बी मिलदी नी
ग्वर्या दाग्टर,पौ चलै,नर्स ,आया ,दाई नी .

कम्पौदर-स्वीपर बन्या दाग्टर ,साब देरादून जी
राजधानी चखल-पखल,घसड़-पसड़ होंड जी .

सब्बी खुश छन हैन्सना अर मस्त उत्तराखंड मां
मिस्स्याँ रुप्प्या बित्वालन पर सब्बी उत्तराखंड मां.
@पूरण पन्त पथिक देरादून ,३ अक्तूबर २०१२
गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य कि कविता लेखमाला  जारी ...

Bhishma Kukreti

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खुज्यांदा रैग्याँ

कवि : पूरण पन्त पथिक देरादून

(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक  गीत में राजनैतिक व्यंग्य ,  गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक  गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  में शिक्षा  पर  व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य,  गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य   लेखमाला ) 



हमत भैजी तुम्हारी सांग ब्वक्दा ही रैग्याँ ,
तुम बडादिम,झर्रा-फ़र्रा, दिखदा ही रैग्याँ .
 साढ़े तीन बरस ,लाटा-काला  बण्या रां
तुम्हारी कोठी भूला-भटका दिखदा ही रैग्याँ .
तुम्हारो झंडा -लट्ठा -दरी ,ब्वाक्दा ही रैग्याँ
कूड़ी खंद्वार,हमरी,हम निगुसैं का रैग्याँ .
पित्रकुडी छोडी कना, फुन्द्या तुम बण्या ,
 ब्वे को दूद बिसरी बिंडी बड़ा किले बण्या
लटमुंडळया ढुंगा हमत लमडणा लग्यां
शर्म झिझक अपण्यास  शब्द बिसरिग्यां.
धुर्पळिम  खिरबोज खांसे ,बिसरदा रयां
सिल्ल मां वो मूळा  हैंसी ,सड़दा  ही रयां .
चौड़ा गिच्चा कैरी-कैरि बडादिम बण्या
लीगैन चोर लूटी ,हम जग्वल्दा रयां .
एको-वेको -कैको क्या बल गणत करदा रयां
अपणी कूड़ी आग लगे ,द्यखदा ही रैग्याँ.
कचम्वाली खै,डंकार  लें ,लेन ही लग्यां
सिल्ल  चुल्ला परैं 'पथिक'आग खुज्यान्द रैग्यां.
 
 


@पूरण पन्त पथिक देरादून ४-अक्तूबर२०१२

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Bhishma Kukreti

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तिन क्य जणण मेरि पीड़ : गढ़वाली  व्यंग्य कविता,

      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला ) 

तिन क्य जणण मेरि पीड़
मी पर पैलि क्य-क्य बीत
तू रिंगणू छै देळी-देळी आज
त्वे चैंद सिर्फ अपणी जीत

मेरि त कूड़ी पुंगड़ी बोगीगे
 ख़तम ह्वैगे सब घर परिवार
तू उड़णू छै सर्र इनै सर्र फुनै
त्यारा त क्य मजा हुयाँ छें

म्यारा खुटों मा त रोज
इनी हूणी रैंद खांदी कटदी
दिन रात काम का बोझ से
थक्युं पल़ेख्युं छौं

तू भागवान खै पेकि
दणसट लग्युं छै जुगार
मि अपण गुजर बसर का
जुगाड़ मा लग्युं छौं

मै तै भौत खैरि खाण पड़द
एक एक बीं टिपण मा
तू इनु खर्च करदी जनु कि
त्यारा खीसा चिर्याँ ह्वीं

कुछ बि पाण त मि तै कन पड़द
अपणी हड्ग्युं कि रसि
 त्यारू त क्या च
फ़ोकट मा काम बणि जांद
 
डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला   जारी )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pardeep Rawat
मुझे अपने गाँव शहर में पलायन नहीं इन खेत और घरों में बहार चाहिए।

मुझे मेरी जातियों में आरक्षण नहीं स्कूल और महाबिद्यालय चाहिये।

मुझे मेरे शहर में मदलालय नहीं हर गाँव में औषधलय चाहिये।

मुझे अपने हिमालय में पर्यावरण के अनकूल बिकास चाहिये।

लाखो घरों में अन्धेरा करके नहीं ऐसा बिनाश चाहिये।

मुझे बृद्ध पेन्सन नहीं अपने और अपनों का दुलार चाहिये।

मुझे अपने पर बोझ ना समझे उन्हें ऐसे संस्कार चाहिये।

अपनी भूमि के बिकास के लिये अग्रिम रहे ऐसा युवा और मातृ शाक्ति चाहिये।

हला कामान के कहने पर चले जो नेता, नहीं ऐसे नेताओं की पंक्ति चाहिये।

मुझे भ्रस्टाचारी प्रशासन नहीं अधिकारी ईमानदार चाहिये।

जनता की हितों की रक्षा करे जो ऐसी सरकार चाहिये।

आज से दस वर्ष पहले थे मुझे ऐसे उत्तराखंडी जन चाहिये।

नव अपनाये पर अपनी संस्कृति भाषा ना भूले ऐसा उत्तराखंडी मन चाहिये।

प्रदीप सिंह रावत ''खुदेड़''

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand k Freinds कख गैन उँ दिन,
 जब हम यख खैलेन्दा छा !
 कख गैन उँ बगत,
 जब यख सेरू परिवार रैन्दा छा !
 आज सभी छौड़ी के,
 परदेश छन चलेगा !
 यै घर-कूड़ी तै,
 भली कै बिसरेग्या !!
 धात छन लगाड़ी,
 ये घर की आत्मा !
 बाटु देखड़ि रेन्दी,
 बैठी कै डंड्याली मां !!
 खुद छन लागी,
 उदासी छन मन !
 भैजदू रैबार,
 पर भैजू कैमा !!
 बस आंख भरी गै...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
अभिन्दन

शिखरों पर फैलती प्रकाश
करता भोर का अभिनन्दन
बन-उपबन में भेद तम को
प्राण फूंकती प्रभाती किरण
रात्री का ब्याकुल अकुलाता छण
तब करता शुभ प्रभात का
अभिनन्दन ........................ !

खग के, कल कल करते कलरब
देबाल्यो से आते प्रभाती स्वर
ब्योम पर तैरती सिंदूरी रंग
देती नव सुबहो को आमंत्रण !

सरिता बहती अल्हड नव युवगना सी
मेरु हर्षित होते बाल पुलकित सी
बेग उन्मत होकर करती आलिंगन
उस सृष्ठी की पहली पहर का ...
धरती करती तिलक उस पवित्र पल का !

पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Semwal Prabhat
त्वे सि दूर एकि खुद क्या होंदी
आज मैन जाणी !
अपड़ा मन अप्वे जब समझे निपै
फिर त्वेतें माणी !!

तू मेरी सदानि हि रै पर मै कभि
तेरु ह्व़े नि पाई!
आज जब तेरा ओणा आस नि रै
अपडु भरोषु नि राई !!

मेरी हर बात तें भलू-भलू बताणु
याद आज फिर आणु !
मेरा हर राग तें बार-बार सुनाणु
अभिबी मै भूली नि पाणु !!

मेरा खातिर दुनियां छोड़ी जाणकि
करीं सों अर करार !
आज फिर मैतेनं याद आणु अपडुनि
विंकू सचु स्यु प्यार .!!

प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित
http://prabhat-semwal.blogspot.jp/2012/02/blog-post_7371.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Semwal Prabhat

स्य बोनि थे कि तिन जिन्दगी मा

बहुत कुछ पाई !

सेत वीं तें मेरु पोणु हि दिखै

खोयुं देखिनि पाई !

विन बसंती खिल्यां फूल त दैखि

बसग्याल देखिनि पाई !

विन हैंसदि मेरी अख्यों मा

जग्वाल देखिनि पाई !

प्रभात सेमवाल ( अजाण ) सुरक्षित

http://www.facebook.com/badulimaraibaar 

Bhishma Kukreti

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****** केका बाना फ्वडी हमन घुंडा मुंड *****?


-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

केका बाना फ्वडी हमन घुंडा-मुंड
केका बाना करी छै हमन रैली
केका बाना करी छौ हमन धरना-प्रदर्शन
केका बाना गै छाया दिल्ली
केका बाना खैनी हमन गोळी

गौं खाली
कूड़ी उजडी
पुंगडी बांजी
गौ बिटि
भाजि गैनी लोग
एक हैंका सिकासेरी
एक हैंका देखा देखी

गौ मा रैगेनी
कुछ बीमार
कुछ बेरोजगार
कुछ कूड़ी जग्वल्दा
दाना-दीवना लाचार

पहाड़ों मा
विकास कि बात पर
मांगी छौ अलग राज
न्यार ह्वैकि बि
क्य पै
राज्य लेकी बि
क्य ह्वै

शहरों मा
झर फर
गौं की दशा
जर जर
मैदानों मा
चक्रचाळ
पहाड़ों मा
सुनताळ।

 डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

 

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