Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"
पौढ़ी लेखी की, हौडू- हौडू पोड़ी की,
बड़ू बणगे तू राजी रौ,
विदेश जै की, जौ जगा जोड़ी की,
ठाठ कानी छै तू राजी रौ,
जणदू छौं भुला मी तेरी सरी गाथा,
हाथ जोड्यां त्वेकू मै न सुणों,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बड़ा दिनु बाद घौर अयें तू ,
घौर मु ऐकि जरा थौक ख़याल,
हिसर-काफुल सी मिठ्ठी मीठी छ्वीं,
लगै-सुणि की जी भऱ्याल,
भोल तिन फेर वापस चली जाण
औ जरा धोरा मेरा गौला भिटयों
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
वू मुल्क ही अपणु होंदु
जख बीतादु अपणु बचपन
जख रौंदन बवे- बुबा, भै-बैणा और
जख अपणा जलड़ा होंदन,
यखी बिटीन खाद पाणी मिललू त्वे ,
सेखी मारी मेरु जी न जलौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
मै न पौढ़ी न लेखी सक्यों,
न देखि सकेनी मिन सुपन्या बड़ा
घौर ही मु लमडी- खरसेकी,
बींगी गयों मी वेद सरा,
तेरी आख्यों मा पीड़ा देख णु छौ,
खुश नी छै तू वख़ सच बतौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बढ़ू बणगे तू राजी रौ,
मैलु मा रौणी तू राजी रौ...
हे मेरा भुला जरा चुप रौ..
(अनिल पालीवाल )