Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527749 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासुती
किसका विकास
खै खै बेर दमू जै हैरो
मोटै बेर लाल पट्ट
खातौड जस चकौव
उकाव नि उकयिन बल
हुलार नि हुलर सकनी कुनो
पै निरभागी कसिक हौल पै
त्यार पकास भाय
उमजी तू तरसीण भै
जा पहाड़ देख के तकलीफ छू वाँ

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुत्ती दा की चिठ्ठी रामप्यारी बौ खुणी !
 
 प्रिय रामप्यारी,
 दिल की बीमारी,
 
 मैं यहाँ राजी ख़ुशी से नहीं हूँ। तुम्हारे पिता जी को भौत दुखी चाहता हूँ। सर्वप्रथम अपने म्वरनया शरीर का ख्याल रखना बाद में अन्य कार्य होंगे।
 
 प्रिय, तुम मेरे दिल की चिबतरी हो! पैली बार तुमको चिट्ठी लिख रहा हूँ साबुत दिल तुम पर फैंक रहा हूँ।
 
 उस दिन कांडे के कौथिग में तुम से मुलाकात हुई थी, तो मेरा दिल काजोल हो गया था जो  की आज तक छाला नहीं हुआ है।
 
 जब तुम्हे देखा तो मेरे दिल में प्यार की आग सिलक रही थी। परन्तु घ्यपुलु ने  जब तुम्हे बुरी नज़र से देखा तो मैं पूरा फुके गया था, इसलिये अचकाल बरनौल घूस रहा हूँ।
 
 मेरी गथयूडी ! अचकाल मेरी भूख - तीस हरच गयी है। चोबीस घंटे तुम आँखों में रीट रही हो। प्रिय इतना मत रीटा करो नहीं तो तुम्हें रिंग आ जाएगी और मेरी आँखें भी ख़राब हो जाएँगी। रात को सो नहीं सकता। तुम्हारी यादों के झीस बिनाते रहते हैं।
 
 रामप्यारी, कन्याक्वांरी ! तुम्हारी दगड्या लक्की तुमसे जलती है उससे बच कर रैना। उस दिन वह मुझे घास डाल रही थी पर मैंने सूंघी तक नहीं क्योंकि मैं पहले से ही छक हो रखा था।
 
 'दारू बोतल से पीता हूँ  ढक्की से नहीं,
 मुहब्बत रामप्यारी से करता हूँ लक्की से नहीं'
 ........................
 .......
 (हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 द्वी हिस्सा व्हेगेन कूड़ी का गुट्यार मा पोड्गी दीवार ।
 ओडा धरेगेन पुंगड़यूंमा आज वली पली सार ।
 कैन या रीत बणायी कैन बणे होलू यूं रिवाज ।
 एक खून छो भैजी, वु बिग्वेणू किले च आज ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 बावा पनमा होन्दू छो जू भै मेरा दुःख मा दुखी ।
 आज में बिगर कनमा रैणू होलू वू सुखी ।
 एक मन छो हमरू, आज वु मेसे अलग किले गाई ।
 क्यांकू ते में देखी की मेरा भैजी आज मुख फरकाई ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 कन रै होलि राम लक्ष्मण भरत की जोड़ी ।
 एक दूजा का बाना जोन राज पाठ भी छोड़ी ।
 पाँच पण्डो कू भी याद करदन लोग किस्सा ।
 कृष्ण बलरामन भी निभाई भैजी कू रिस्ता ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 ये भगवान् यी दुनिया मा कब इनू दिन आलू ।
 बण्यूं सौरू भैजी मेरू कब अपडू व्हे जालू ।
 मिलन देख्नणू कू कू भ्गयान रालू यी धरती मा ।
 वे दिन एक न्यु इतिहास बणोलू यी पृथी मा ।
 
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़ "
 https://www.facebook.com/pardeep.rawat.9

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नेगी दा के गीतो कि आज भी बहार है।
उन्हीँ के गीतो मेँ उत्तराखण्ड कि संस्क्‌ति का सार है।
उन्ही के गीतो मेँ भष्टाचार रुपी करटं कि तार है
वरना चारो तरफ हमारी संस्क्‌ति कि हार है।
पहाड का दर्द और मिट्टटी कि खुशबू आज भी उनके गीतो, कि धार है।
बड़ी विड़वना है कि कूसंस्क्‌ति गीतेरो कि आज बाजारो मेँ भरमार है।
सिर्फ नेगी दा के गीतो मेँ आज भी पहाड़ रचता और भसता है,
नेगी दा को मेरा सदा नमन
उत्तराखण्डी लोकगायक, गढ़रत्न, गढ़गौरव, शिरोमणी, सुरसम्राट जैसे उपाधि सिर्फ श्री नरेन्द्र सिँह नेगी जी के नाम के आगे ही महकता है।
उत्तराखण्ड कि शान
नेगी दा जैसे श्रीमान
Poem by Amit Payal

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vijay Gaur भयात 
 
 कभि जु दगड़ी खेल्दु छौ,
 कभि जु अपणु सि मिल्दु छौ।
 कभि जु म्येरी हैंसी बानो,
 अपणु सुख-दुःख भुल्दु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु घुग्गा बिठांदु छौ,
 कभि मि लम्डू, उठांदु छौ,
 कभि गट्टा -कुंजा खिलांदु छौ,
 कभि फुटयाँ घुन्डों सिलांदु छौ,
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु स्कूल लि जान्दु छौ,
 कभि जु कंचौ खिलांदु छौ,
 कभि दगड़ मा कुकर छुल्यांदु छौ,
 कभि सारयों मा बांदर हकांदु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 हे विधाता! मि त्वै स्ये बुन्नु छौं,
 अपणी हि न, सभि मन्ख्यों कि बात कनु छौं,
 अगर तिन भयात कु अंत यन हि लिख्युं,
 त मि त्येरि बात नि मनणु छौं,
 तु यु कनु इंसाफ कै ग्ये,
 जु बालापन कु अटूट ज़ोड़,
 या लोलि ज्वनि, आन्द-आन्द हि खै ग्ये.
 
 विजय गौड़
 सर्वाधिकार सुरक्षित   
 http://vijaygarhwali.blogspot.in/

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नैनीताल की फितरत पर प्रसिद्ध जन कवि श्री बल्ली सिंह चीमा की रचना ------
 
 अब यहाँ पल में वहां कब किसपे बरसे क्या खबर ,
 बदलियाँ भी हैं फरेबी यार नैनीताल की ,
 मैं तो मेरा मिट गया आकर बनकर रह गया
 तू तलैय्या सी बनी है झील नैनीताल की .
 लोग रोनी सूरतें लेकर यहाँ आते नहीं
 रूठना भी है मना , वादी में नैनीताल की ,
 अर्ध - नग्ने जिस्म हैं या रंग -बिरंगी तितलियाँ
 पूछती है व्यंग से कुछ माल नैनीताल की ,
 ताल तल्ली हो या मल्ली , चहकती है हर जगह
 मुस्कराती औ लजाती शाम नैनीताल की ,
 चमचमाती रोशनी में रात थी नंगे बदन
 गुनगुनाती झिलमिलाती झील नैनीताल की ,
 ख़ूबसूरत जेब हो तो हर जगह सुन्दर लगे
 जेब खाली हो तो ना कर बात नैनीताल की |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।

द्वी हिस्सा व्हेगेन कूड़ी का गुट्यार मा पोड्गी दीवार ।
ओडा धरेगेन पुंगड़यूंमा आज वली पली सार ।
कैन या रीत बणायी कैन बणे होलू यूं रिवाज ।
एक खून छो भैजी, वु बिग्वेणू किले च आज ।
हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।

बावा पनमा होन्दू छो जू भै मेरा दुःख मा दुखी ।
आज में बिगर कनमा रैणू होलू वू सुखी ।
एक मन छो हमरू, आज वु मेसे अलग किले गाई ।
क्यांकू ते में देखी की मेरा भैजी आज मुख फरकाई ।
हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।

कन रै होलि राम लक्ष्मण भरत की जोड़ी ।
एक दूजा का बाना जोन राज पाठ भी छोड़ी ।
पाँच पण्डो कू भी याद करदन लोग किस्सा ।
कृष्ण बलरामन भी निभाई भैजी कू रिस्ता ।
हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।

ये भगवान् यी दुनिया मा कब इनू दिन आलू ।
बण्यूं सौरू भैजी मेरू कब अपडू व्हे जालू ।
मिलन देख्नणू कू कू भ्गयान रालू यी धरती मा ।
वे दिन एक न्यु इतिहास बणोलू यी पृथी मा ।

हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।

प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़ "
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Lalit Mohan Pant
याद ऊँछि नान छियाँ जब ......

याद ऊँछि नान छियाँ जब
गौं में आँखना कान छियाँ जब
ऊँचा ऊँचा डान ना धुरा
काफव का हाङ्ग छियाँ जब .... याद ऊँछि नान छियाँ जब ...

बड़बाज्यू का आँखना सामुणी
कंपकंपाना पात छियाँ जब
और आमा का काखि में जे
पात में आईं बाछ छियाँ जब .... याद ऊँछि नान छियाँ जब ...

नब्बूका घर ब्याई भैंस
बिगौतै कढ़े चाट छियाँ जब
और क्वे ने अे जो डरी
जिबड़ आफी काटि ल्हि छियाँ जब .....याद ऊँछि नान छियाँ जब ....

भट्टी भात पाउवों साग
पाख में ले सपड़यूँकछियाँ जब
मड़ुवो ऱोट दूध में भीजे
काँ भुलों जिबड़ हपड़ूक छियाँ जब .....याद ऊँछि नान छियाँ जब .....

नौरातिन में कुड़माड़ी खेल
होली में होई स्वांग छियाँ जब
नाच बानरि में लचके कमर
द्वि द्वि डबल माँग छियाँ जब .......याद ऊँछि नान छियाँ जब ...

- डॉ ललित मोहन पन्त
इंदौर -म प्र

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****यु कनु बदलाव *****
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।
हर्ची गैन कखी घर की जांदुरी ।
कख हरिची होली घर बुणी मांदुरी ।।
बांजी पड़ीग्यन गोंऊ की ऊखल्यारी ।
रतब्याण माँ उठदी थई बेटी ब्वारी ।।
हर्ची गैन कखी अब ऊ झुमैलू गीत ।
हर्ची गैई कखी उ मनिख्यों की प्रीत ।।
नि लगदी अब बैखारू की कछड़ी ।
ह्युंद की रातू बैठदा था कभी दगडी ।।
हर्ची गैई कखी कौथग्यारू की टोली ।
खेला मेला होन या दीपावली ,होली ।।
तीज त्योहारु की रौनक भी नि रैगी ।
हर्ची उलार यख देखा कनु बक्त एगी ।।
भली लगादी थई घस्यार्यों की टोली ।
हेंसुणु खेलणु और मुंड मा गडोली ।।
ब्याखुनी कु घर ओंदा गोरू की लैन ।
उ पूराणा दिन नि जाणी कख गैन ।।
मौसम बदल्न्यु छ ,बदलगी यख हवा।
विनती छ मेरी सभी मिली जुली रवा ।।
अपणी संस्क्रती सी बिमुख नि होवा ।
पुराणी सभ्यता अपरी कुछ त बचावा ।।
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।

द्वारा रचित >भगवान सिंह जायाड़ा
दिनांक

 

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