Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527849 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासुती

यई चर्चा छू सारा गढ़वाल मा
यई चर्चा छू सारा कुमाऊ मा
यई चर्चा छू सारा पहाड़ मा
हमर लिजी डाक्टर हराण काँ
रोजगार परक खेती हराण काँ
हमर लिजी पाणी हराण काँ
हमर लिजी रोजगार हराण काँ
उन्नत दुधारू पशु हराण काँ
यई चर्चा छू सारा पहाड़ मा ..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर
ओ ईजा वै
घाम पड़ि निमँवै दाँण
नूँण कम खँट्ट मन

ओ ईजा वै
नि लागणौय मन मेरो
बिन तेरो ईजा हो
परदेशु मा का ढूँढु
त्यर छँवि कूँ माय ईजा
त्यर छँवि कूँ माय ईजा
मन जै मेरो खँट्ट हैगो
बिन तेरो हो ईजा वै
बिन तेरो हो ईजा वै

ओ ईजा वै
नौ बाजि बै डुट्टि मेरी
खाँण पकुण भाँण मजुण
टेम बेटम टेम नै
भुखै पेटु डुट्टि जाणु
ओ ईजा वै
अब जै उणि याद वै
त्यर पकाई मडुँव रँव्ट
घ्युँ लगाई माय चपौडि
याद जै उणै भुखै पेट
याद जै उणै भुखै पेट
मन जै मेरो खँट्ट हैगो
बिन तेरो हो ईजा वै
बिन तेरो हो ईजा वै

ओ ईजा वै
घर हुँछिया तूँ डाँटछि
वँल्गी-पँल्गी फैरण मा
दिल्ली लागि डुट्टि मेरी
वँल्गी-पँल्गी जाण कूँ
कौ डाँटल हो ईजा वै
कौ डाँटल हो ईजा वै
आपण नैहतण कूण मा
सब पराय हो ईजा वै
सब पराय हो ईजा वै
मन जै मेरो खँट्ट हैगो
बिन तेरो हो ईजा वै
बिन तेरो हो ईजा वै

ओ ईजा वै
नि मिलण हो माय तेरो
परदेश क भिड़ मा
सुन्दर मुँया गजबजी
दी डबलु क डाँड मा
मन जै दुखि रो मेरो
मन जै दुखि रो मेरो
बिन तेरो हो ईजा वै
बिन तेरो हो ईजा वै

ओ ईजा वै
घाम पड़ि निमँवै दाँण
नूँण कम खँट्ट मन
ओ ईजा वै
दी डबलु क डाँड मा
दी डबलु क डाँड मा
मन जै दुखि रो मेरो!!
मन जै दुखि रो मेरो!!
मन जै दुखि रो मेरो!!
मन जै दुखि रो मेरो!!
बिन तेरो हो ईजा वै!!
बिन तेरो हो ईजा वै!!
बिन तेरो हो ईजा वै!!
बिन तेरो हो ईजा वै!!

http://phadikavitablog.wordpress.com/
लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर

"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

दी डबलु कस हुणि हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो
कसकै कमाई तुमलै हो
आज लागो हो पत हो
आज लागो हो पत हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

ठीक कुछिया बौज्यु हो
पँढले च्याला पँढले हो
"तेरो पँढे काम लागल तेरो हो"
नि मानि हो बौज्यु हो
त्यर कैई बात हो
त्यर कैई बात हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

पैलि तँन्खा मिलगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो
गिणँडु-गिणँडु डबलु हो
खाणोँ-पिणो किराया हो
गिणँडु-गिणँडु डबलु हो
कम जै पड गिण डबलु हो
"काबै भैजि घर कु हो"
दिल जै मेरो दुखगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

तबै कुनु हो दगडियो रे
ईज-बौज्यु क कौईई मानो
पढे लिखे बै ठाँड हैजा
ईज-बौज्यु क सहार दिजा
ईज-बौज्यु क सहार दिजा

"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"
दिल जै मेरो दुखगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो

http://phadikavitablog.wordpress.com/
लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
पहाड़
लपेटे हुए सफ़ेद, हरी चादर
बुलंद और अडिग दिखता है
पर अन्दर से बिलकुल खाली हो गया है
और भर रहा है बाहर से
करोड़ों साल से पहाड़ खड़ा है अपनी जगह
कभी थका नहीं
लेकिन अब थकने लगा है मनुष्यों के भार की वजह से
अपने ह्रदय में एक टीस लिए इंतजार करता है कि
एक छोटी सी प्लेट उसके भीतर की टूटे
और सरक जाये कुछ आगे
हो सकता है बाँट जाए दो हिस्सों में
कर दे सब कुछ तहस-नहस

पहाड़
कभी ऐसा चाहता नहीं था पर कर दिया है विवस उसे मनुष्यों ने
वह दूर करना चाहता है अपने मन की वेदना
जो दी है मनुष्यों ने उसे
काट के जंगल, काट के पहाड़
छीन के वस्त्र पहाड़ के
पहाड़ जो कभी अदम्य साहस अडिगता की मिसाल था
आज इंतजार कर रहा है अपने अन्दर की
कोई एक प्लेट टूटने का.

(हितेश पाठक " हिमालय बसाओ-हिमालय बचाओ पदयात्रा के दौरान)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
पहाड़ की पठालि सुवा,
पहाड़ की पठालि हे......
ऐजाणु मुल्कव मेरा,
सुण हे लठयालि हे.......
हिंसर पकिं छ सुवा,
हिंसर पकिं छ हे......
काफल की डाली सुवा,
हे झक्क होयिं छ हे.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
22.5.13

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
एक बुढड़ि का मन का ऊमाळ.......

सुण हे बेटा गाणि स्याण्यौं मा,
मन होयुं मजबूर,
नौना ब्वारि दगड़ि देश,
अपणा मुल्क की याद औन्दि,
हे कुल देव्तैां मैंन यनु,
क्या करि होलु कसूर.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
23.5.13

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती

येन कनु घपरोल मचाई

दिल्ली का देवता तैं दान चढ़ाई, उत्तराखंड कू राज हत्याई,
ब्वे पुरब्या, आफु भी पुरब्या गढ़वाली कुमाउंनी समझ नि आई ।

हमारा छोरा नांगा-कांगा, येका खाणा दूध मलाई,
बैण भि यखी, भाई भि यखी, येन कनु घपरोल मचाई ।

गढ़वाल कुमौं मा मारी बाखरी, सिरी-फट्टी दिल्ली भिजाई,
हम त रयां लाटा-काला, हमुन कखि सगून नि पाई ।

लट्टी-पट्टी खूब कनू च, हमारि मवासि येन धार लगाई,
अपणा किस्सा खूब भनू च, हमारि कूड़्यों में भांगलु जमाई ।

सड़क-शिक्षा भिखारि होईं च, ये तैं गहरी नींद च आईं,
भैर का भितर, भितर का भैर, फिर सुलगणी च एक लड़ाई ।

साभार -डा. वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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update by-Prateek Verma

नेतो की सोच देरादूंण तक
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
गैरसैंण मा राजनीती
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ मा खैरी

ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ मा ईस्कूल बिटी मास्टर गोल
ब्याली भी छोऊ आज भी चा भोलभी राला
खाली नौ का अस्पताल
ब्याली भी छोऊ आज भी चा भोलभी राला
बेटी ब्वारी दुख मा
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ ज़िन्दगी आस मा
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पर मन मा आज तलक आणा छिन बिन्सिर का वो भला सुपन्या
एक दिन जरुर होली सुखों की सुबैर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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update by-Rajesh Rana

जीतू द शोभनु होला गरीबौ बेटा

माता त सुमेरा छई, दादी फ्यूंळी जौसू

ददा जी कुजर छ्या , भूलि शोभना छई ,

जाति को पंवार छयो जीतू अकली गंवार

बगडू जैका ह्व़े गेन बगड्वाळ

राज मान शाही ना दिने कमीण को जामो

गौं मुड़े को सेरो दिने , गौं मथे को घेरो

जीतू रये दादू भातु उदभातु

राणियों को रसिया फूलों को हौसिया

अणब्याई बेटियों को ठाकुरमासों खाए

बांज घटों को वैन भगवाड़ी उगाये

ऊँ बांजी भैसों को पाळी दिने परोठो

जीतू रई गे राजों को मुस्सदी

बगुड़ी ऐगे भैजी उल्या मूल्या मॉस

तब जितेंसिंग राजा धावडी लगौन्द

ओड़ू नेडू औंदु मेरा भुला शोभनु

सोरा सरीक भुला सब सेर सैक लैन

कि मलारी को सेरा हमारो

साणो रैगे त बाणो मेरा दादू

तू जयादी भुला जोशी का पास

गाडिक लऊ सुदिन सवार

पातुड़ी की भेंट धरे सेल़ा चौंळ पाथी

धूल़ेटी की भेंट धरे सोवन को टका

चलीगी शोभनु बरमा को पास

जाइक माथो नवौंदो सेवा लगान्दो

पैलागु पैलागु मेरा बरमा

चिरंजी जजमान मेरा

भैर गाड याले बरमान धूल़ेटि पातुड़ी

देखद देखद बरमा मुंडळी ढगड्योंद

तेरी राशि नि जुड़दो जजमान

तुमारी बतैन्दी बल वा बैण शोभनी

वा बैण मेरी रैंद कठऐतूं का गाऊं

चूला कठुड़ तै बांका बनगढ़

सोचदू सोचदू तब घर ऐगे शोभनु

पौन्चीगे तब जीतू का पास

खरो मानी जौ , मेरा जेठा पाठा भैजी

तेरी राशि नी जुड़े दिदा लुंगला को दिन

जीतू भिभडैक उठे तब गये माता का पास

हे मेरी जिया हमारी राशि नी जुड़े लुंगला को दिन

मै तो जांदू माता, शोभनी बैदोण

तू छयी जीतू बाबरो बेसुवा

भुला शोभनु होलू माता बालो अलबूद

मैं जौंलू माता शोभनी बैदोण

न्यूतीको बुलौंलू पूजीक पठौंलु

नी जाणो जीतू त्वे ह्वेगे असगुन

तिला बाखरी तेरी ठक छ्युंदी

नी ल़ाणी जिया त्वेन इनि छ्वीं

घर बौडी औंलो तिला मारी खौंलो

भैर दे तू मेरी गंगाजली जामी

मोडूंवां मुंड्यासी दे दूँ , आलमी इजार

धावड्या बाँसुली दे दूँ नौसुर मुरली

न जा मेरा जीतू कपडी तेरो झोली ह्वेन मोसी

आरस्यो को पाक तेरो ठनठन टूटे

त्वेक तईं ह्वेगे जीतू यो असगुन

माता को अडैती जीतू एक नी माणदो

लैरेंद पैरेंद तब कांठा मा को सि सूरज

गाड को सि माछो सर्प को सि बच्चा

बांको बीर छयो जीतू नामी भड़

राजो को माण्यों छयो रूप को भर्र

पैटी गे तब जीतू बैणी को गऊँ

रानी पटुड्या तब तैको गाळी दीन्दी

जान्दो ह्वेई मेरा स्वामी , आंदो नि ह्वेई

स्याळी का खातिर तू पैटी बैणी बैदोण

बिदा लिनी जीतून रस्ता लगे वो

चल्दु रै वो ऊँची तौं धऐडियों

ऊंची धऐड़यों चढ़े जीतू गैरी त पाख्युं

कलबली कूंल़े छई देव्दार स्वाणा

ह्र्याँ डाल़ा छ्या फुलून जन ढक्याँ

पौन्छी गये जीतू रैंथल की थाती

घडाँदी दोफरी छई तडाँदो घाम

तडाँदो घाम मा जीतू सेळ बैठी गे

तमाखू पीयाले तैंन साध्यान लीयाले

हांस्यारी पराण वैको उलारिया गये

हाथ गाडयाले वैन नौसुर मुरली

नौसुर मुरली परे घावड्या बांसुळी

बावरो छयो जीतू उलारीया ज्वान

मुरली को हौंसिया छौ रूप को रौन्सिया

घुराए मुरली वैन डांडी बीजिन कांठी

बौण का मिर्गून चरण छोडि दिने

पंछियोन छोडि दिने मुख को त गाल़ो

कू होलू चुचों स्यो घाबड्या मुरल्या

तैकी मुरली मा क्या मोहनी होली

बिज़ी गैन बिज़ी गैन खेंट की आंछरी

जीतू कि आंख्युं मा जनी शिशो चमल़ाणी

छम छम घुंघरू बजीन, जीतू की आँखी मुन्जीन

क्वी बैणी बैठींन आन्ख्यों का स्वर

क्वी बैणी बैठींन कंदुडों का घर

छालो पिने लोई , आलो खाए मांस पिंड

पन्द्र पचीसी जीतू रैन्थल थाती रैगे

अल्हर जवानी जीतू भुंचण नी पायी

तिन नि माने जीतू माता की अड़ेती

फंसी गे कन आन्छ्र्यों का घेरा

सुमरिण करदो जीतू बगुडी भैरों

कख व्हेली मेरी कुलदेवी भवानी ?

आज मै पर ऐ गे बिपता भारी

बीच बाटा मा कनी होए मेरी मोल की मरास

दैणो ह्व़े गे तब जीतू की बगूड़ी भैरों

नौ बैणी आंछरी तब छूटी गैन

आज मै जान्दो बैणी बैदोण

छै गते आषाढ़ लुंगला को दिन

तै दिन तुम मिली तैं पुंगड़ी ऐन

तब मन ह्व़े गे उदास जीतू

चित्त ह्व़े गे चंचल

तब पौंची गये जीतू बैणी का गौं

मिली गे वै बैणी शोभनी

तब आये स्याळी वरुणा

सेवा मेरी पोंछे वीं स्याळी वरुणा

सेवा मैं खरी लांदु भेना बगड्वाळ

तेरी खातिर छोडि स्याळी बांकी बगूड़ी

बांकी बगूड़ी छोड़े राणयों कि दगूड़ी

छतीस कुटुंब छोड़े बतीस परिवार

घिटूडियों जसो रथ छोड़े चकोरू जस टोली

तेरा बाना छोड़े मैं भेना

दिन को खाणो रात की सेणी

तेरी माया न स्याळी जिकुड़ी लपेटी

कोरी कोरी खांदो तेरी माया को मुंडारो

जिकुड़ी को ल्वे पिलैक अपणी

परोसणो छौं तेरी माया की डाळी

अब त भरीक ही मिटली स्याळी

त्वे भेजे को हेत

यूँ डाळीयूँ मा तेरा फूल फुलला

झपन्याळी होली बुरांस डाळी

ऋतू बोडि औली दाईं जसो फेरो

पर तेरी मेरी भेंट स्याळी

कु जाणी होंदी कि नी होंदी ?

बौडिक ऐ गे जीतू तैं बांकी बगूड़ी

ओड़ू नेडू ऐगे लंगुला को दिन

घटु की रिंगाई सामळ कि पिसाई

चौखम्भा तिबारी जीतू होए मगलाचार

गडायूँ गुंडाखु पैटयो , घुंगरियालि होका

पोंछी गे बल्दुं की जोड़ी मलारी का सेरा

तब जोतण लग्या जीतू का धौल़ा त बुल्ला

मलारी का सेरा शुरू ह्व़ेगे रोपण

सेरु सैक ऐगे तैं मोंळ पुंगड़ी

एक फाट उंडो लीगे जीतू एक फुंडो

फीकू ह्व़े गे ज्यू जीतू जी को

तबे वीं मोंळ पुंगडी छूटे घेंटुडी रथ

मलेऊ सि मिड़को

नौ बैणी आंछरी ऐन , बार बैणी भराडी

क्वी बैणी बैठींन कंदुड़यो घर

क्वी बैणी बैठींन आंख्युं का स्वर

छालो पिने लोई , आलो खाये मॉस पिंड

अंगुडी छयो जीतू , पछींडो फरकी

स्यूं बल्दुं जोड़ी जीतू डूबी गयो

मलारी का सेरा जीतू खोए गये

अल्हर जवानी जीतू भुंचण नी पाए

लाख्डू सि ताबु होए पिंडाल़ू सि भाड़

बत्तीसु कुटुंब तेरो तै मलारी रै गे

बावरो नी होंदो जीतू नी होंदो बिणास

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"
May 18
दुरु पर्देशु छौहोंमैं !!! इस सब्द
को सुनकर , हर उस परदेसी का रोम रोम
खड़ा हो जाता है , जिसने इस पापी पेट
के लिए , अपने ,घर बार सब कुछ , अपने
माँ बाप भाई बहिन और गाँव गलियों और
देश को त्याग रखा है ,और कुछ पल ऐसे
होते हैं कि सब कुछ भूल जाने के बाद
भी अपनों और अपने गाँव गलियों ,और
माँ बाप भाई बहिनों कि याद आ
ही जाती है और शादी होने के बाद
भी कुछ ऐसे लोग भी होते हैं
जो अपनी पतनी को शाथ नहीं ले
जा सकते हैं , जानकर सायद कोई
भी नही ले जाते हैं ,
आदमी कि अपनी अपनी परेसानी होती ,जिससे
उसको , उसको अपने बीबी बच्चों को घर
छोड कर परदेश जाना पड़ता है ,क्यूं ये हम
जैसे लोगों के शाथ ही होता है
ये विशेष कर गढ़वाल उत्तराँचल ले
लोगों मैं ज्यादा देखने को मिलता है ,
चलो यही सायद हमारी किस्मत है और ये
पापी पेट भी तो है जो कि इंसान
को सब कुछ त्याग करवाता है , चलो कोई
बात नहीं है हौंसला बुलंद होना कहिये ,
एक दिन खुशियाँ जरूर हमारे कदम
चूमेगी ,
श्री नरेंदर सिंह नेगी जी ने ये
जो गाना गया है सायद हम लोगों के
ऊपर सही लागू होता है , उसी गाने
की ये पंक्तियाँ मैं यहाँ लिखा रहा हूँ
दुरु पर्देसू छूँ , उम्मा तवे तैं मेरा सुऊं , हे
भूली न जेई, चिट्ठी , देणी रई
राजी खुसी छों मैं यख , तू
भी राजी रही तख
गौं गोलू मा चिट्ठी खोली ,
मेरी सेवा सौंली बोली
हे भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ
घाम पाणी मा न रै तू
याखुली डंडियों न जै तू
दुखयारी न हवे जै कखी ,सरिल कु ख्याल
रखी, खानी पैनी खाई
हे भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ
हुंदा जू पांखुर मैं मा , उड्डी औंदु फुर तवे
मा
बीराना देस की बात , क्यच
उम्मा मेरा हात , हे भूली न जेई ,
चिट्टी देणी रैइ
दुरु पर्देसू छुओं , उम्मा तवे तै मेरा सों , हे
भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ ,
चिट्ठी देणी रैइ

 

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