आज फिर गई है बिजली,
आज फिर निकली है लालटेन-
अन्धेरे से बाहर , अन्धेरा दूर करने
आज सभी बतिया रहे है,
कोई गून्गा नही है,
सामने टी वी नही है,
दादी सुना रही है अपने जमाने की बाते,
सभी सुन रहे है , जैसे देखते है अपना प्रिय धारावाहिक.
किसी को जल्दी नही है,
दादी सुना रही है, किस तरह दिन भर के बाद,
गुठ्यार मे कट्ठा हो जाता था गाव,
शौक से या भय की आशन्का मे रेवड बनने की स्वाभाविक प्रव्रती से,
समूह की शक्ती ख्त्म कर देती थी आदिम भय/
थड्या चौफ्ला से गूजती थी घाटी ,
थिरक उठता था गुठ्यार,
धीरे धीरे फटती थी पौ ,
और शूरू हो जाती थी जीवन की भाग्म भाग-
लो बिज्ली भी आ गयी ,
ये क्या-
उसकी कल परीक्शा है ,
उन्को सुबह दफतर जाना है,
बड्की का कोलेज है,
कम्ररे मे रह ग्ये दादी और लालटेन
लालटेन रोशनी की उपस्थिती से बैचैन,
दादी अपनो की अनुपस्थिती से,
अच्छा है कभी कभी चली जाये बिज्ली,
कान्प्ते हाथो से बुझाती है लाल्टेन