Author Topic: Poems,Songs Lyric,Articles by Vinod Jethuri - विनोद जेठुडी जी की कविताये  (Read 16231 times)

Vinod Jethuri

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वापस मुझे मेरी खुशी दे देना


ना रही और लडने की  हिम्मत,
ना रही कुछ पाने की तम्मना...
जो भी पाया उसमे ही खुश था,
जादा खुशी का मुझे क्या है करना ?
दी हुयी चिजो को वापस लेना,
ये कंहा का है दस्तूर तेरा ????
भगवान तेरे दर पे आया हूं,
वापस मुझे मेरी खुशी दे देना...!

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर  2010 @ 11:24 AM

Vinod Jethuri

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               मुक्कदर


पाने को इनाम अपना, कुछ भी कर लेन्गे...
कभी सोचा ना था मैने, येसे भी दिन देखने पडेन्गे.
कि मन्जिल पा चुका था मै अपनी लेकिन....
मुक्कदर हमसे हमारा इनाम, वापस छीन लेन्गे..

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर 2010 @ 10:57 AM

Vinod Jethuri

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        गमो का सागर


गमो के सागर मे गोते खाये जा रहा हूं
दुखो की लहरो से टकराये जा रहा हूं
उफ़्फ़ कितना दर्दभरा है ये सफ़र..
फिर भी मन्जिल पाने की आस मे... 
आघे बढा जा रहा हूं.......॥

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर 2010 @ 10:32 AM

Vinod Jethuri

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              प्रेम दिवस के दोहे


प्रेम दिवस के प्रेम पर्व पर, प्रेम का बस करें गुणगान ।
सच्चे मन से हों समर्पित, सदा सबका करें सम्मान ।।

ईर्श्या क्रोध ना कभी पनपे मनमे, किसी का कभी ना करें अपमान ।
प्रेम का दिलो मे दीप जले जंहा, वंहा बसते है भगवान ।।

परोपकार मे बनो धनी इतना कि, तुम से बडा ना कोइ धनवान ।
दया हर प्राणी से करें और, बढे  सतकर्मो से स्वाभिमान ।।


 सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, २०११
13 फ़रवरी 2011 @ 23:45

Vinod Jethuri

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   दिपावली की हार्दिक सुभकामनायें


सुख  शान्ति और सम्रधी की करता हूं कामना
पुरी हो आपकी सभी मनोकामना..
दीपो के इस पावन पर्व पर आप सभी को..
सपरिवार दिवाली की हार्दिक सुभकामना..
                                 
विनोद जेठुडी, ४  नवम्बर २०१० @ २३:३३ 

Vinod Jethuri

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मै तडप रहा हूँ रो रहा हूँ


वह भी खुश थी....
मै भी खुश था....!
एक दुसरे को पाके.....
जो भी मांगा था रब से..
वह पाया था उसमे....
बडे-बडे सपने देखे थे..
साथ जिन्दगी बिताने के
उड गये सारे सपने...
एक हवा के झोके से..!
हवा का झोँका कुछ यों आया...
कि अन्धविस्वासो की लहर मे,
मेरी सारी खुशीया ले गया....
मै तडप रहा हूँ, रो रहा हूँ...!
किसे अपनी सुनाँऊ... ?
जिसे सुनाना भी चाहुँ पर
उसे निन्द से कैसे उठाऊ ?
अर्धरात्री हो चुकी है...
नीन्द मुझे क्यों न आती ?
उसको भूलना तो चाँहु पर..
उसकी यांदे दिल से ना जाती..
कुछ सोचता हूँ, समझता समझता हूँ..
यो ही अपने दिल को, 
मनाये जा रहा हूँ.....
अगर ओ ना मिली जो तो..!
उसके बिना कैसे जी पाऊ ?

8 सितम्बर 2010 @ 23:38 PM
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

Vinod Jethuri

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     सच्ची प्रेमी

प्रेम पुजारी प्रेम  दिवानी........
प्रेम की एक छोटी सी कहानी...!
इन्तजारी मे, बैठी है किसी की..
पास मे नदी का, बहता पानी....!!

गया था कोइ उसे छोडकर..
फिर न देखा पिछे मुडकर...!
अन्त मिलन कि जगह येही है...
पार गया ओ, सात समुन्दर....!!

हर दिन ओ यंहा है आती..
कुछ समय अपना बिताती..!
मन का बोझ हल्का होता..
शायद अपने मन को बहलाती..!!

हाय ये कैसी प्रेम मजबुरी ?
फुट-फुट कर कभी ओ रोती..!
प्रेम के रन्ग का पी गयी पानी
जैसे क्रिष्ण के रंग मे राधा दिवानी..!!

प्रेम पुजारी प्रेम दिवानी
प्रेमी कोई ना देखी येसी..!
तडप रही है, झुलस रही है
फिर भी उसको ना भुल पाती..!!

"प्रेम की पुजारी, प्रेम की दिवानी
प्रेम की एक  सच्ची कहानी........
ईन्तजारी मे, बैठी है किसी की..
पास मे नदी का, बहता पानी...."

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

Vinod Jethuri

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काश एक समान हर कोई होता..


काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता....
रोड पे ना कोई भुखा मरता!...
पैसे कि क्या होती किमत ??
क्या जाने ओ.........
जो कोई महलो मे है रहता..
और कोई......!!!!
बिन खाये शाम कि रोटी
खुले आशमान के निचे सोता....
काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता...
सोचो फिर दुनिया कैसे होता ?
एक समान हर कोई होता...

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

Vinod Jethuri

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जिन्दगी का क्या भरोशा ?

शनिवार २२ मई २०१० की सुबह मैन्गलोर मे ईयर ईन्डिया येक्सप्रेश के विमान दुर्घटना मे अपनी जान गवाने वाली यात्रियो के प्रति श्रधान्जली व उनके परिवार के प्रति सवेदना, भगवान उनके परिवार को ईस दुख: को सहने कि शक्ति प्रदान करें ।

परिवार मे खुशी मना रहे थे
तीन साल बाद ओ आ रहे थे
बहन की शादी के कपडे भी
यही से लेके जा रहे थे....!
उपर से खुबसुरत नजारे..
उन्होने जब देखे होन्गे..!
क्या सोचा होगा मन मे...
हम अपने देश जो पहुन्चें...
आते आते मुड गयी राहें...
कहां जाना था कहां जा पहुचें ?
लेने आये थे उनको कोई....!
उनकी राहें देखते रह गये..
धुं-धुं कर जल रहे थे.....
जोर जोर से चिख-चिल्लाते
पर कौन उन्हे बचाने आते
कैसां मंजर रहा होगा ओ..?
जब जल रहे थे उसमे सारे

"क्या पता कब क्या हो जाये...
जिन्दगी का क्या भरोशा ?????
प्यार-प्रेम से हम सब रहें.........
अति लोभ-ईर्श्या करें ना गुस्सा..! "

Vinod Jethuri

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            जिन्दगी एक गाडी


एक दिन औफिस जाते हुये मै रास्ते मे रुक गया और गाडियो को देखने लगा.. देखते ही देखते मेरे मन मे एक ख्याल आया.. और ओ ख्याल कविता के रुप मे आपके सम्मुख प्रस्तुत है:-

तेज दौडती गाडी को देखा...
तो जिन्दगी का ख्याल आया...!
जिन्दगी भी तो एक गाडी है दोस्तो..
जिसे मैने बहुत तेजी से दौडते पाया....

चलती गाडी से पिछे, मुडके जब मैने देखा..
मोह माया की दौड मे, सबको दौडते पाया.....!
क्या पता कब रुक जाय, सफ़र ईस गाडी का..?
क्योकि कब किसपे से हटा दे, ओ मालिक अपनी साया..

पुन्य, दया, धर्म के रास्तो को, सदा खाली पाया....
कोर्ध,ईर्श्या,लोभ,माया के रास्तो पर, बडा जाम पाया..!
खाली रास्तो पर होगा कठिन, भीड मे आसान चलना.
न भर्मित हों हम रास्तो से, सभी को वही है जाना....

दुख: सुख: के पहियों पे, गाडी को है चलना...
कभी सर्दी तो कभी गर्मी, कभी मौसम बेगाना..
क्या लेके थे आये, क्या लेके है जाना....?
दया धर्म का मुल है, यही सबसे बडा खजाना

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

 

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