Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

Poems written by Bhagwan Singh Jayara-भगवान सिंह जयड़ा द्वारा रचित गढ़वाली कविता

<< < (8/9) > >>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मेरे ब्लॉग http://pahadidagadyaa.blogspot.ae/पर पूर्व प्रकाशित मेरी एक रचना ,,,
-------------------------------------
----मेरा अस्थित्व मेरा गॉव----
--------------------------------------
मैं ढूंडता रहा अपने अस्थित्व को ,
शहरों की इस बेलगाम भाग दौड़ में ,
गुम सा जाता हूँ कभी कभी क्यों मैं ,
शहरों के इस कोलाहल भरे मोड़ में ,

खाकर दर दर की ठोकरें भटकता हूँ ,
कहीं भी शकुन से बितते नहीं पल ,
हर बक्त उलझन सी रहती मन में ,
एक पहेली कि तरह लगे हर पल ,

मेरा गॉव मेरी पहचान था जो कभी ,
छोड़ कर जिसे आ रहे है आज सभी ,
हमारे बुजुर्गो से ही हमारी पहचान थी,
उन के नाम और काम में जो शान थी,

डगमगाते निकली है नय्या जीवन की,
शहरों में खोजने को एक नयाँ सम्मान
गुम गयी शहरों में आज वह पहिचान ,
शहर निगल गए हमारे वह सब निशान ,

जिन से बजूद था हमारी जिंदगी का ,
सायद वह अस्थित्व हम खो गए है ,
बस सदा के लिए एक अस्थित्व हीन ,
जड़ बिहीन पेड़ की तरह से हो गए है,

खुद को झकझोर कर खुद से पूछता हूँ ,
चल मुड़ चल अपने उस बजूद की तरफ,
जिस में अभी भी तेरा अस्थित्व छुपा है ,
तू ही तो निकला था ,बाकी सब बचा है ,

मैं ढूंडता रहा अपने अस्थित्व को ,
शहरों की इस बेलगाम भाग दौड़ में ,
गुम सा जाता हूँ कभी कभी क्यों मैं ,
शहरों के इस कोलाहल भरे मोड़ में ,
-----------------------------------------
द्वारा रचित>भगवान सिंह जयाड़ा
दिनांक >०७/०२/२०१४
सर्ब अधिकार सुरक्षित @

http://pahadidagadyaa.blogspot.ae/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा
September 22 ·

"चल लौट चलें अब "

-----------------------------------------------

चल लौट चलें अब हम उस माटी की ओर ,

जिस की खुशबु बुलाती रही अपनी ओर ,

जिसकी महक बसी रही दिल में हर दम ,

बस मजबूर जिंदगी सताती रही हर दम ,

बस सकुन की घडी जब जिंदगी में आये ,

जिम्मेदारियां जीवन की कम हो जाएं ,

ख्याल करना तब अपनी जन्म भूमि का ,

जिस में बचपन के वह लहमें बिताये ,

सकुन ,चैन भरी उस माटी को न भूलना ,

उस पवित्र माटी को जरूर फिर से चूमना ,

उस पवित्र माटी की खुशबु ,न कभी भूलें ,

चाहे क्यों न हम कामयाबी की बुलंदी छूलें ,

जन्म भूमि को रखें याद श्याम और भोर ,

जो सदा खींचती रहती हमें अपनी ओर ,

चल लौट चलें अब हम उस माटी की ओर ,

जिस की खुशबु बुलाती रही अपनी ओर ,

-----------------------------------------------

द्वारा रचित >भगवान सिंह जयाड़ा

दिनांक >२१ /०९ '२०१४

सर्व अधिकार सुरक्षित @

http://pahadidagadyaa.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा
November 16 at 12:03am ·

******************************************
बक्त गुजरने के साथ यूँ तो जख्म भर जाते है ,
लेकिन उस दर्द को हम कभी नहीं भूल पाते है ,
अक्सर यादें कुरेदती रहती हैं उन जख्मो को ,
जिन जख्मो को हम दिल से भुलाना चाहते है ,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा
November 14 at 11:28pm ·

मंजिल की सीड़ियों पर इतना भी मत भागो ,
बरना किसी सीड़ी पर फिसल कर गिर जावोगे ,
औन्धे मुहँ गिरे पावोगे अपने को पहली सीड़ी पर ,
फिर मंजिल की तरफ देख कर बहुत पछ्तावोगे ,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा
November 14 at 4:40pm ·

सच्चा बाल दिवस तभी साकार होगा ,जिस दिन भारत का हर बच्चा शिक्षित और होनहार होगा ,,बाल मजदूरी मिटे और बाल मजदूरों के उत्थान के लिए कुछ ठोस कल्याणकारी योजनायें बनें ,ताकि कोई भी बच्चा बाल मजदूरी को बिवस न हो ,,इसी चिंतन पर मेरा कविता रूप में एक प्रयाश ,,
------------------------------------------------
-----बाल दिवस---
-----------------------------------------
कुछ उन की भी सोचो ,आज है बाल दिवस ,
जिनके नन्हें से हाथ ,मजदूरी को है बिवस,

बाल कल्याण का आज भी हो रहा अपमान ,
दो बक्त की रोटी को जहां जूझ रहा नादान ,

खेलने पढ़ने के दिनों में यह कैसी मजबूरी ,
दो बक्त की रोटी को करते दिन भर मजदूरी ,

यूँ तो कई कानून बने ,रोकने बाल मजदूरी ,
लेकिन क्या करे वह ,जो है उसकी मजबूरी ,

भूख उसकी कैसे मिटेगी,यह भी तो है सोचना ,
बनावो iइन के कल्याण को कोइ सही योजना ,

सरकार करे iइन के कल्याण की ऐसी ब्यवस्था ,
सुगम हो सके जिस से इन का जीवन रास्ता ,

सिर्फ बाल श्रम को रोक कर कुछ नहीं होगा ,
बरना यह हर बालक ,हर रात भूखा ही सोगा ,

आवो सब मिल कर कुछ ऐसी अलख जगाएं ,
इन नन्हें हाथों को फिर ,कुछ पढ़ना सिखाये ,

जीवन जीने की inइन को एक नई राह दिखाएं ,
बाल मजदूरी को सदा के लिए हम दूर भगाएं ,

कुछ उन की भी सोचो ,आज है बाल दिवस ,
जिनके नन्हें से हाथ ,मजदूरी को है बिवस,
--------------------
द्वारा रचित >भगवान सिंह जयाड़ा
दिनांक >१४ /११ /२०१४
सर्ब अधिकार सुरक्षि @
http://pahadidagadyaa.blogspot.ae/

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version