Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 52984 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रेम पत्र है प्रेम नहीं
 
 गैरसैण विधान सभा सत्र है पर राजधानी नहीं
 
 यार जब सब कुछ ही बन रा है वहा
 
 विधान भवन विधायक आवाश का हो चुका शिलान्याश 
 
 एक पत्थर राजधानी के नाम भी रख देते
 
 हे पत्थर दिलो गैरसैण मे
 
 जनता जैसे  से ही बिसर जाती इन मुददो को
 
 और मान  बैठती है चलो देहरादून ही सही पर विकाश होना चाहिये
 
 जले मे नमक छिडकना कोई सीखे तुम से
 
 तुम को देगे भी नहीं गैरसैण सिर्फ ललचायेगे
 
 राजनीती की रोट्टीया सेखनी है
 
 कोई न कोई तवा चाहिये
 
 सरकार के इरादे लगते है हवा
 
 गैरसैण राजनीती करने का बन गया तवा
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी
 
   
 प्रेम पत्र है प्रेम नहीं
 
 गैरसैण विधान सभा सत्र है पर राजधानी नहीं
 
 यार जब सब कुछ ही बन रा है वहा
 
 विधान भवन विधायक आवाश का हो चुका शिलान्याश 
 
 एक पत्थर राजधानी के नाम भी रख देते
 
 हे पत्थर दिलो गैरसैण मे
 
 जनता जैसे  से ही बिसर जाती इन मुददो को
 
 और मान  बैठती है चलो देहरादून ही सही पर विकाश होना चाहिये
 
 जले मे नमक छिडकना कोई सीखे तुम से
 
 तुम को देगे भी नहीं गैरसैण सिर्फ ललचायेगे
 
 राजनीती की रोट्टीया सेखनी है
 
 कोई न कोई तवा चाहिये
 
 सरकार के इरादे लगते है हवा
 
 गैरसैण राजनीती करने का बन गया तवा
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
 
आखिर कब तक और कब

य़ू ही होता रहेगा

द्रोपदी से लेकर दामिनी तक का चीरहरण होता रहेगा

और मानव का चरित्र हरण भी होता रहेगा

द्रोपदी की लाज बचाली कृष्ण ने

पर आज द्रोपदियो की लाज बचायेगा कौन सोचो जरा

कब तक हम गूंगे बैरे और तामसबीन बन ते राहे गे

मारो लाज के सौदागरो को अब ज़ुल्म हो गया बहुत

कविता शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जब तू चले गोरी बसंत आ जा ये
रे चले गोरी मोसम गर्मियों का आ जा ये
जैसे हिले टैहैनी डाली यो की हवा मे
वैसी हिले तो रि पतली कमरिया
कमरिया हिले तो क़यामत धय जामने मे
जब तू चले गोरी मोसम बरसात का आ जा ये
जब तू चले गोरी मोसम जड़ो का आ जा ये बरफ गिर जा ये पहाड़ो मे
जब तू चले गोरी तो दुनिया रुक जा ये
जब तू चले गोरी तेरी चाल देखे जमाना
चांदनी की यामानी रातो मे गजगामिनी की चाल चले तू
तेरी चाल की सज मे तेरी नित्तबनिया देखे जमाना
अगर तेरी चाल का हो पर्दरसन तो हम रैम बन जा ये
तेरी कदमो कदमोट उस वक़्त इस रैम की धड़कन तेज कर
स्वापिन सुन्दरी पागल हो जा ये जमाना
कविता शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम
का लेज
   मे आइ हो
                         नये   बसंत बुरांश  सि
तुम हो फ्रासेर  स्टुडेंट  फर्स्ट इयरकी
तुम  पे लियर  चड़ी है नय जवानी की
अरे नये नौजवान तो अजमाना चाते है  अपनी किस्मत
तुम से इश्क लड़ाने के ली ये नये नये  फोरुमुले  खोज राय है
  अरे बुढे अदैर   प्रोफसिर लाक्चेरार 
    अपनी  किस्मत को रो  रय है
बीमार कर ने के लिये अशिकको को जब हुसून की ये बीमारी पैदा हुई
अरे उस दउओर   काल  मे ये एक्स्पीरे  डेट हुवे
क्या जूनियर क्या  सीनियर सब
धयेक  रय है  इस  हुसून की जवानी की फिगर   .
                                                                 कविता  शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कै की होली इनी स्वाणी रचना
मेरा सब्द मेरा बोल  मेरा आंखर
         सब ठगे  का ठगाया रै गिन
छोरी तेरा रूप का ऐथर
 निथर मिन कानी कानी बांधो मा रचा छिन
                    गीत भला भला
कै की होली इनी स्वाणी रचना
      छंद आलंकर भी सोचाना
तेरा रूप देखी छंदो ते छंद नि आणू
कलम कंठ का सरोकार एक बार
  देखी देला  तेरा रूप ज्यूत
फूल चाँद सूरज की उपमा
    बिसरी की तेरी ही उपमा देला
 कना कना फोरमेट मा धालिन मिन गीत कविता
    तेरा रूप देखी का ऐथर इ कवी वे गया रीता
                           कविता शैलेन्द्र जोशी

jagmohan singh jayara

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युवा कवि जोशी जी आपकी  "मेरा पहाड़" पर उपस्थिति देखकर मेरा
कविमन बहुत खुश हुआ। 

कथ्गा  प्यारू पहाड़ हमारू, मन सी गुणगान करा,
कविवर अपणि कलम सी, जथगा हो बखान करा,

मेरु ज्यू करदु  छ

देवभूमि उत्तराखंड तैं देखौं, उड़िक अनंत आकाश सी,
नदी पर्वतों तैं निहारौं, जैक बिल्कुल पास सी

पुनर्जन्म अगर हो प्रभु, देवभूमि उत्तराखंड में हो,
तन भले ही बदल जाये, लेकिन मेरा कविमन हो

पुनर्जन्म में अगर बाघ बनु , उत्तराखंडियौं को नहीं खाऊँगा,
जाकर पहले देहरादून में, नेताओं को पहाड़ भगाऊँगा,

फिर आबाद होगा पहाड़, पलायन का पाप छूट जाएगा,
लौटेंगे मेरे पहाड़ के लोग, विकास का सैलाब आएगा,

पूछो हर प्रवासी उत्तराखंडी से, क्या अपने घर गाँव से दूर,
ख़ुशी का अहसास करते हो,
या जिन्दा रहते हुए,
जीते हो या मरते हो,
या दुखों को अपने दिल में,
जिंदगी जीने के लिए,
दिन रात दफ़न करते हो?
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु:
"मेरा पहाड़" बहुत दिनों के बाद 25.1.2013
सर्वाधिकार सुरक्षित 
 




 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुझे देख लगता है मुझे य़ू रचना - शैलेन्द्र जोशी
 

तुझे देख लगता है मुझे य़ू

बस देखता ही  रहू य़ू

जीवन मे न होते हुए भी तू ही तू

ओ मेरी रम्या रूह

तुझे देखा मैने जब

औरों को भी देखा जब

तुझे देखकर हुई चाहत कीऊ

बाहरी कपट नहीं आन्तरिक रूह से तेरे लिये प्रेम स्रोत हुआ

मुझ चिताकर्सक  तू लगी

ओ मेरी मधुर हिर्दयी

ओ मेरी स्वप्न सुंदरी

 रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नया साल मे क्या नया
उमग़ ,रंग ,जंग ,ढंग बोलो क्या नया
या सिर्फ कैलेंडर है नया
हवा नयी लहर नयी
शहर की सुबह नयी शहर का सहर नया  क्या है नया
चलो ये सब तो नया  हो जायेगा
पर जनाब नये साल माय नज़र को भी नया किया जाये
जो धुंद लगी है आँखों मे उसे साफ किया जाये
नया साल मे कुछ तो नया किया जाये
कविता शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem by - Shailendra Joshi

चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
भक्तो की भीर जी
पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
 चला वी कमलेस्वर मा जी
मिते फौंदी मुल्य्दी  चूड़ी बिंदी लादी
भली  क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
मिते चर्खी मा बैठे की  घुमा दी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
मिते  सैणा श्रीनगर ले जा दी
                                 कविता शैलेन्द्र जोशी

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कार्तिक की आमवासिया को हुवा था राम का अवध मे आगमन 
अवध वासी थे इस रात को गोरी पूर्णिमा बानाने मे तत्पर
दीप बती की परम्परा से चल आज दिवाली हुवी दामिनी दीपो की बाला
फूलो की माला
रंगीन रंगोली मिठाई की मिठाश
बच्चो के हाथ सजी फूलझड़ी से आग लग तड तड करती लालबती की लड़ी
अनार के बहुछार से
मेल जोल के प्यार सजी दिवाली
कविता शैलेन्द्र joshi

 

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