Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 98882 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
November 2
सजनी आयी है दीवाली
बटुवा है महगायी से खालि
शॉपिंग तो करनी है मिया जी त्योहार आता साल मे इक बारी
उधारी भी रामप्यारी कब तक करे लाला से
अरे सौ रूपया किलो प्याज है
कैसे बचाये लाज आदमी हिन्दुस्थान मे
जगमगा रही चाईनीज लड़ी
रो रहा इंडियन का हार्ट है
ऐसे मे स्वीट हार्ट कैसे मनाये दीवाली
हाथ खाली पैसे कि तंगहाली कनिस्तर आटे चावल का बजाकर करे आतिशबाजी

रचना ..............शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
October 31
सजनी आयी है दीवाली
बटुवा है महगायी से खालि
शॉपिंग तो करनी है मिया जी त्योहार आता साल मे इक बारी
उधारी भी रामप्यारी कब तक करे लाला से
अरे सौ रूपया किलो प्याज है
कैसे बचाये लाज आदमी हिन्दुस्थान मे
जगमगा रही चाईनीज लड़ी
रो रहा इंडियन का हार्ट है
ऐसे मे स्वीट हार्ट कैसे मनाये दीवाली
हाथ खाली पैसे कि तंगहाली कनिस्तर आटे चावल का बजाकर करे आतिशबाजी
रचना ..............शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बीच बाजार जाणी छै सुर
 जरा सी तिरछी आख्यूंन मारी  तिन नज़र की पिच्चकारी
 बिझीगे छोरी जिकुड़ी तेरी माया कू रंगिलू पाणीन
 ओहो ना पाल बाबा मन कु सुधि बैम
 मेरा आँखा चुबगी  खौड़
 भैर निकल जौ सुर खौड़ ये बाना आँखा हुयी  छन बैचैन
 खौड़ मी छौ छोरी या क्वी हौर
 तू मेरा आँखा चूब जौ भरी ज्वनि मा ह्वे जौ मोतियाबिंद
 ह्वे जालू  मेरा बाना  मोतियाबिंद काला चश्मा भालु सजलू गोरी मुखुड़ी उंद
 जा जा त्वे जना देख्या छिन छोरा
            पर मिन देखी त्वे जनी छोरी बीच बाज़ार पैली बार
                                                                   रचना ……………शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
November 10
सजीं चा जगा जगा
हडताल की थाल
नेता खाणा गफ्फा
लाटी काली जनता नारा गूंजै की
बची कुची ऊर्जा भी खापाणा
चकड़ैत टाइप मनखी आन्दोलन की आड़ मा
नेता बनी की नौ भी कामांदा
नौकरी भी पांदा
चंदा बटोरी की चापाणी कू खर्चा चलौदा
ये नेता टाइप का मनखी हर दफ्तर ऑफिस गली गुचो
गाड़ गदेरों मा पाया जांदा
यू का ऐथर क्या मनखी
दय्बता भी अपणु ऊचांणु सरधा भक्ति से चढोंदा
सैद कुछ हवे जौ हरताल की थाल मा
रचना .......शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
November 9
ना गैरसैण की बात करो ना उस पर कोई गीत
लोलो जखा भी राज करा पर विकास कि बात करा
मानी तुमरी बात पलायन सही चा ना होलू पलायन पर भी कोई बात न कोई गीत
मिन लेख्वार नि अफू चल जौ भैर और गीत लिखू पलायन मा
लोलो जावा भैर कखी भी करा ठैर पर अपनी रीती रिवाज बोली भासा का साथ
ये नेतागिरी वाली बात चा गैरसैण पलायन
जखा भी चा तुमरू मन वखी रा
पर सोचा पहड़ियों कू त विकास होणु चा पहाड़ कू नि

उत्तराखंड मा क्वी नेता गैरसैण पलायन कि बात वोट माँगणु आउ घौर तुमरा
सीधा करा विथै भैर
किल्हे कि हम तुम सब कैते नि चिंता उत्तराखण्ड कि
सभी का नौना छिन सुख सुविधा का देश भैर
ये कारण ना बात करा पहाड़ कि न गैरसैण कि न पलायन कि
नौ नोवंम्बर द्वि हजार बीटी भौत राजनीती ह्वे उ सब पर
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
November 8 · Edited
जो उतर जाये जिस्म से उसे लिबाज कहते है
जो चढ़ जाये जिस्म मे इक बार उसे जखम कहते है
रंग बेनूर हो जाये जब रंग मिलता है नूरी का खिजाब मे
तू नशा ढूंढ़ता है शराब मे
वो तो है पागल तेरे ह्रदय की उमंग मे
तू पडोसी सी से लड़ के शहर मे दंगा कर
इंटरनेट के मायाजाल मे सोशयल होता है तुझ सा पागल नहीं है ज़माने मे
रचना ……………शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi
 
चड्ढी सजती है बनियान के साथ
उतर जाये तो सियासत के तखत पलट जाते है
टीवी मे विज्ञापित हो तो नारी देह का सारा लेकर ये चड्ढी बनियान बिक पाते है
जब की ये इन्सान की प्राथमिक जरुरत है फिर गैलमर का तड़का देकर बेचे जाते है
चड्ढी पहन के फूल भी खिल खिलाते है
कह गये गीतकार गुलजार जंगल बुक के टाइटल सांग मे
पर महगायी की मार से चड्ढी बनियान उतर ने को आयी है
फूल को चड्डी
महगायी की हड्डी नज़र आती है
पर जब तक तहजीब है मुल्क मे चड्ढी बनियान पहनी जायेगी
पर सरकार की बेशर्मी महगायी को कम कर कब शर्म हया वाली चड्ढी बनियान पहनती नज़र आयेगी
रचना .....शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi
 
तुम खूबसूरती का तराशा हुआ बदन हो
काँटों मे फूलो की चुबन हो
सर्दी की सौंधी धुप मे
आग लगाती मौसम को
ऐसा शोला यौवन हो
तुम अपनी सी खास लगती हो
पर परिचित नहीं परछाई से भी तुम्हारी
किन्तु तुम्हारी अदा आँखे हँसी सब मे हम फ़िदा
रचना .....शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi
 
चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
भक्तो की भीर जी
पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
चला वी कमलेस्वर मा जी
मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी
कविता शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi
 
ये सुरत जानी पहचानी लगती है
ये सीरत जानी पहचानी लगती है
मिले बहुत बरस बाद
पर अंदाज वही जैसे रोज मिलते है
हाथ मिलाया मुस्कुराये
हाल - चाल पूछा फिर चल दिये
कि फिर मिलगे
दोस्त सफ़र ज़िन्दगी मे
रचना। …… शैलेन्द्र जोशी

 

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