MN Gaur to Shailendra Joshi
February 8 at 12:41pm ·
*-*-*-* ( राग - जोगिया )*-*-*-*
सैंया गये परदेश,
कैसे कटें अब विरह की रतियाँ ||
मधुऋतु आई, तुम नहीं आये,
प्यासी ही बीती उमरिया,
रंग अबीर सों क्या करूँ सजाना,
अँसुवन रंग गई मोरी चुनरिया || कैसे कटें...
(रचयिता- म०न० गौड़ *चन्द्रा* ) फरीदाबाद, हरियाणा |
( प्रिय श्री शैलेन्द्र जोशी को सस्नेह )
नोट- यह मेरी बहुत पुरानी रचना है और कुमाऊँ की होली बैठकों में और अन्यत्र देश के जिन शहरों में भी होली बैठकें होती है,होली गायकों द्वारा खूब गाई जाती हैं | कुमाऊँ में यह *परज* के रूप में जाना जाता है | धन्यवाद |,