Author Topic: Prof S S Bisht Great Writer of Uttarakhand- प्रो० शेरसिंह बिष्ट जी की रचनाये  (Read 8505 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शेर दा एक प्रभावशाली कविता है जो समाज में गरीबी अमीरी और अन्य असमानताओ पर रचित है! निश्चित रूप से सोचने को मजबूर करने वाली यह कविता! प्रोफेस्सर एस एस बिष्ट जी न यह अच्छा काम किया है इन कविताओ एक एक किताब के रूप में शेरदा का प्रस्तुत करके! आशा आपको यह कविता पसंद आयेगी!

तुम और हम  (भाग२)

तुमरि कुड़ी छाजी रै
हमरी कुड़ी बाँजी है रै!

तुमर गाउन घियुंकी तौहाड़
हमर गावन आंसू क तौहाड़!

तुम बेनामिक रुवाट खान्या
हम ईमान क ज्वात खान्या!

तुम पेट फुलूण में लागा!
हम पेट लुकूंण में लागा!

तुम समजाक इज्जतदार!
हम समजाक भेद गवार!

तुम मरी ले जियुनै  भया
हम जियूंन ले मरिये रैया!

तुम मुलुक कै मारण में छा
हम मुलुक पर मरण में छा!

तुमुल मौक सुनुक महल बनै  दी!
हमुल मौक पा गर्दन चडै दी!

लोग कूनी एक्कै माइक च्याल छाँ
तुम और हम
अरे ! हम भारत मैक छा!
और साओ! तुम कैक छा!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रसिद्ध उत्तराखंडी कवी स्वर्गीय शेरदा अन्पड द्वारा रचित यह सुंदर कविता जिसे प्रोफेस्सर शेर सिंह बिष्ट जी ने अपनी बुक शेरदा अनपड़ संचयन में लिखा है! कुछ अंश इस कविता के !

मौत कूनै - मारि हालो
मनखी कूना, कां मरू ?
अनाड़ी!
तू हारै छे, मै हारूं?
मै पुरुष छु रे धरतीक, आग पाणी दगे म्योर मेल छु!
ज्यूंन और मरण क म्योर रात दिनक खेल छो!
मरण देखि जो डरौ उ मन्खियौक मन छो!
मरी मै ले ज्यूंन रौ जो उ अनमोल रतन छू!
तू कुनै हे मारि हालो, अनाड़ी मै काँ मरू ?
तू हारै छे, मै हारूं?


 

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