चिट्ठी पतरी के विशेषांकों में समीक्षा
गढवाली साहित्य विकास में चिट्ठी पतरी ' पत्रिका का अपना विशेष स्थान है. चिट्ठी पतरी के कई विशेषांकों में समालोचनात्मक/ समीक्षात्मक / भाषासाहित्य इतिहास/ संस्मरणात्मक लेख /आलेख प्रकाशित हुए हैं.
लोक गीत विशेषांक ( २००३) में डा गोविन्द चातक, डा हरि दत्त भट्ट, चन्द्र सिंह राही, नरेंद्र सिंह नेगी, आशीष सुंदरियाल, प्रीतम अप्छ्याँण व सुरेन्द्र पुंडीर के लेख छपे .
कन्हैया लाल डंडरियाल स्मृति विशेषांक (२००४) में प्रेम लाल भट्ट, गोविन्द चातक, भ. नौटियाल, ज.प्र चतुर्वेदी, ललित केशवान, भीष्म कुकरेती, हिमांशु शर्मा, नथी प्रसाद सुयाल के लेख प्रकाशित हुए
लोक कथा विशेषांक ( २००७) में भ.प्र नौटियाल, डा नन्द किशोर ढौंडिया, ह्मंशु शर्मा, अबोध बंधु बहुगुणा, रोहित गंगा सलाणी , उमा शर्मा, भीष्म कुकरेती, डा राकेश गैरोला, सुरेन्द्र पुंडीर के सारगर्भित लेक छपे.
रंगमंच विशेषांक ( २००९) में भीष्म कुकरेती, उर्मिल कुमार थपलियाल, डा नन्द किशोर ढौंडियाल, कुला नन्द घनसाला , डा राजेश्वर उनियाल के लेख प्रकाशित हुए
अबोध बंधु स्मृति विशेषांक ( २००५ ) में भीष्म कुकरेती, जैपाल सिंह रावत , वीणा पाणी जोशी, बुधि बल्लभ थपलियाल के लेख प्रकाशित हुए
भजन सिंह स्मृति अंक ( २००५) में डा गिरी बाला जुयाल, उमाशंकर थपलियाल, वीणापाणी जोशी, के लेख छपे.
उपरोक्त आलोचनात्मक साहित्य के निरीक्षण से जाना जा सकता है कि 'गढवाली आलोचना के पुनरोथान युग की शुरुवात में अबोध बंधु बहुगुणा , भीष्म कुकरेती, निरंजन सुयाल ने जो बीज बोये थे उनको सही विकास मिला और आज कहा जा सकता है कि गढवाली आलोचना अन्य भाषाओँ की आलोचना साहित्य के साथ टक्कर ल़े सकने में समर्थ है.
पुस्तक भूमिका हो या पत्रिकाओं में पुस्तक समीक्षा हो गढवाली भाषा के आलोचकों ने भरसक प्रयत्न किया कि समीक्षा को गम्भीर विधा माना जाय और केवल रचनाकार को प्रसन्न करने व पाठकों को पुस्तक खरीदने के लिए ही उत्साहित ना किया जाय अपितु गढवाली भाषा समालोचना को सजाया जाय व संवारा जाय.
गढवाली समालोचकों द्वारा काव्य समीक्षा में काव्य संरचना , व्याकरणीय सरंचना में वाक्य, संज्ञा , सर्वनाम, क्रिया, कारक, विश्शेष्ण , काल, समस आदि ; शैल्पिक संरचना में अलंकारों, प्रतीकों, बिम्बों, मिथ, फैन्तासी आदि ;व आतंरिक संरचना में लय, विरोधाभास, व्यंजना, विडम्बना आदि सभी काव्यात्मक लक्षणों की जाँच पड़ताल की गयी है. जंहाँ जंहाँ आवश्यकता हुयी वहां वहां समालोचकों ने अनुकरण सिद्धांत, काव्य सत्य, त्रासदी विवरण, उद्दात सिद्धांत, सत्कव्य, काव्य प्रयोजन, कल्पना की आवश्यकता, कला कला हेतु , छंद, काव्य प्रयोजन, समाज को पर्याप्त स्थान, क्लासिक्वाद, असलियत वाद, समाजवाद या साम्यवाद, काव्य में प्रेरणा स्रोत्र , अभिजात्यवाद, प्रकृति वाद, रूपक/अलंकार संयोजन , अभिव्यंजनावाद, प्रतीकवाद, काव्यानुभूति, कवि के वातावरण का कविताओं पर प्रभाव आदि गम्भीर विषयों पर भी बहस व निरीक्षण की प्रक्रिया भी निभाई . कई समालोचकों ने कविताओं की तुलना अन्य भाषाई कविताओं व कवियों से भी की जो दर्शाता है कि समालोचक अध्ययन को प्राथमिकता देते हैं . गद्य में कथानक, कथ्य, संवाद, रंगमंच प्र घं विचार समीक्षाओं में हुआ है. इसी तरह कथाओं, उपन्यासों व गद्य की अन्य विस्धों में विधान सम्मत समीक्षाए कीं गईं
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Regards
B. C. Kukreti