Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32253 times)

Bhishma Kukreti

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*******अब हमन कमर कसि यालि******

                     कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

अबि तक
हम
सिर्फ
अंग्वठो
चुसणा रैंदा छा
अब
मुट्ठी बोटी यालि
अंग्वठो
भितर कैरि यालि
अब हमन
कमर कसि यालि.

                डॉ नरेन्द्र गौनियाल.सर्वाधिकार सुरक्षित.narendragauniyal@gmail.com


******सिर्फ गाणि ना हम तै सबि धाणि चैन्द***** 
                           
                         कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

हम तै
दारू ना
अन्न चैन्द

हम तै
चुसण्या ना
खण्या चैन्द

हम तै
हाणि ना
पाणि चैन्द

हम तै
ताणि ना
माणि चैन्द

हम तै
काणि ना
राणि चैन्द

हम तै
कुछ कुछ ना
सब कुछ चैन्द

हम तै
सिर्फ गाणि ना
सबि धाणि चैन्द.

             डॉ नरेन्द्र गौनियाल....सर्वाधिकार सुरक्षित.


********हम तै गुस्सा बि आन्द********

                      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

अन्न-पाणि
लत्ता-कपडा
कूड़ी-बाड़ी
पढ़े -लिखै
नौकरी-रोजगार
सुख-सुविधा
हम तै बि चैन्द

हे सरकार !
हम देशभक्त छाँ
ईमानदार छाँ
सीधा-संत छाँ
पण अब
हम तै
गुस्सा बि आन्द !!!

          डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित.. narendragauniyal@gmail.com           

Bhishma Kukreti

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******कलजुगी कंस को नाश******

                 डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

भोगीसिंह जनि-जनि पैसा-पत्ता वल़ो ह्वै ,उनि वैन अंट-शंट काम करणा शुरू कैरि दीं.धन-सम्पति बढ़दी गे अर दिमाग बि आसमान मा चढ़दू गे.खुद बि छक्वे दारू पीणि अर अपणा रागस गणों तै बि पिलाणी..दारू पिलैकी अपणा सब काम करवै दींदु छौ.इलाका मा सबि भला-बुरा काम अपणा जिम्मा.जख बिटि बि हो,जनि कै बि हो पण रुप्या ऐ जएँ..सबि जोगी मरीं अर मेरो पतड़ो भरीं,इनी मिशाल करि दे..पटवारी-कानूनगो तै दारू पिलाणि,घूस देणी अर लोगोँ की सम्पति हथ्याणि..बस यी काम ह्वैगे छौ वैको.लोगोँ तै छक्वे दारू पिलैकी झूठी गवै दिलाणि अर सीधा-सदा लोगोँ तै परेशान करणू.
         जमीन -जैदाद अर रूप्या-पैसा कु अति लालच मन्खी तै रागस बणे दींद.अच्छो-भलो आदिम तै बि पापी अर महा पापी बणे दींद.भोगीसिंह बि इनु समझंदु छौ की सरि दुन्य की सम्पति मेरि च.अर जु नि छा ऊ कै बि ढंग से ह्वै जा..रागसी समाज मा क्य नि ह्वै सकदु.? भोगीसिंहन बि क्वी कसर नि छोडि.हद त तब ह्वैगे जब वैन अपणी कक्या भैणी अर वींकु नौनु तै बि नि छोडि.उंकी जमीन-जैदाद तै अपणी बतैकी हड़पी दे.दारू पिलैकी झूठी गवै दिलै अर पटवारी-कानूनगो तै घूस देकी,दारू पिलैकी अपणो काम पक्कू करि दे..अपणी भैणि अर भणजा की जैदाद हडपी की वैन बड़ो नाम समझी.ऊंतई ऊ आंख्युं कु खैड़ जनु देख्दु छौ..गौं-गल्य़ा,पास-पड़ोस वल़ा दारू की घूँट मा बिकणा का कारण क्वी कुछ नि बोल्दा छा,बल्कि वैकि हाँ मा हाँ मिलान्दा छा.दारू बाज द्वी-चार लुंड-गुंड वैका दगड दिन रात ही रैंदा छाया.
          द्वापर मा कंस जनो पापी कु नाश त कृष्ण का रूप मा विष्णु भगवान जि कु अवतार से  ह्वैगे..ये कळजुग मा क्वी अवतार त नि ह्वै.पण ह्वै सकद विष्णु भगवानजि मथि बिटि ही सबकुछ देखदा होला.भोगी सिंह तै कुछ साल बाद ही कैंसर ह्वैगे..वैको दगड़ो करण वल़ा बि क्वी त मरि गीं,क्वी बिमार ह्वैगीं,क्वी दिन-रात दारू पेकि हर्बी गदन जुगा हूणा छन.भोगी सिंह बि अपणी मौत की इंतजारी करणू.कज्याणि वैकि कोढ्या ह्वैगे.कुकर्मों मा साथ दीण वल़ा लड़िक-ब्वारी की निंद हर्चि गे.कुछ दिनों बिटि ऊ पगले गीं.भोगी सिंह कु पापों कु भर्युं घड़ो अफ्वी फुटण लगी गे.

          डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित  .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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*********अब क्य होलू हे दिदा ********

                      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

भारत भूमि आज मेरि,कनि किराणी हे दिदा.
ह्वैगे मुश्किल अब त ज्यादा,अब क्य होलू हे दिदा.

जौंमा सौंप्यूं राज-पाट,ह्वैगीं निख्वर्या हे दिदा.
खांदा-पींदा कन भुखारा,ह्वैगीं यूं तै हे दिदा.

लद्वड़ी दणसट कैरिकै बि,ल्यावा-ल्यावा छन बुना.
माटु बि भसगे यालि यूँन,अब क्य होलू हे दिदा.

स्याळ मारो बाघ मारो,यूंकि पुटगी भ्वारा तुम.
रोग भस्मक लगी गे यूँतै,अब क्य होलू हे दिदा.

ननु पदान ठुलू पदान,सबि मिस्याँ छन हे दिदा.
सबसे निंगुरू बुड्या पदान,अब क्य होलू हे दिदा. 

अब इलाज यूँ सब्युं को, कन पडलो हे दिदा.
घोटि कै जमालघोटा, दीण पडलो हे दिदा.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal @gmail.com


Bhishma Kukreti

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*******गढ़वाळी छिटगा *********
                                  कवि - डॉ नरेन्द्र गौनियाल

*******ख़ित्त हैंसि*******

चरि तरफ
भ्रष्ट लोगोँ तै
फलदा-फुलदा
देखि कै 
त्याग,सदाचार
मर्यादा की बात
सूणि कै
ऐ जांद
ख़ित्त हैंसि.


*******शंका******

क्वी भरोसो
नि छा
नौनि कब
ऐ जांद
सौरास बिटि
भाजि कै
खैकि मार
य फिर
चुला पर ही
कुरमुरी ह्वै जांद.

***********कख च कुर्सी....?*********

उंकी जिकुड़ी
जु करणी छै
 सक सक सक
बाच सांस बंद
आंखि भटगा बंद
इकहरो सोर
कैका बुन पर कि
भौत खैरि च औणी
थ्वड़ीसि देर
धैरी द्या
कुर्सी मा       
सूणि कै
उंकी जिकुड़ी
धड़कण लगी गे
धक् धक् धक्
चट्ट खोली आंखि
इना फुना देखि
अर पुछदिन
कख च कुर्सी ..?

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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*******पकड़ पकड़ पकड़ ले गुंठा********

                    कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल

दिदा !
तिन हमतै
भौत ठगै याळी
द्यून्लू  त मि द्यून्लू
क्वी हैंकु नि दे सकदु
जु बि कन
मिन कन
इनु बोलि कै तिन
हम तै भौत लले यालि
पैलिदा कौथिग मा हमन
झुमैलो
तेरा ही दगड़ ल़गै
पण अबरी दा
सोचि-समझी
लगौंला गीत
तू बींगी गे होलू
हमरि धीत
समझी ले
हमारो मन
निथर हैंकिदा
हमन बि
इनी कन
पकड़ पकड़ पकड़ ले गुंठा..   

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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******नेताण ब्वारी ******(आज का दूषित राजनैतिक माहौल मा रूप्या की भूख अर भ्रष्टाचार पर एक व्यंग्य कथा)   

                    कथाकार-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

घसकटा ब्वारी नेता बणि गे.कमै धमै  खूब. क्य कन ईं कमै कु.घर की लाज का समणि रुपयों कु क्य मोल ? पण जमानो ख़राब.रुपयों का बाना आज लोग कुछ बि करणो तैयार ह्वै जन्दिन.रुपयों की भूख मन्खी तै कुछ बि करणो मजबूर करि दींद.साधारण सि पढीं लिखीं ब्वारी.मुश्किल से बार पास.द्वी दा बीए कु प्राईवेट फौरम बि भरि,फेल ह्वैगे.गौं मा घास-पात,गोठ-गुठ्यार,खेती-पाती,खाणि-पीणी बणाणि,लारा-लत्ता धोणा मा ही लगीं रैंदी छै.वाँ से जादा न त वींकी अकल छै ,न वींकी शकल.
            पंचैत चुनौ मा महिला रिजर्वेसन सीट से चुनौ लड़ी अर भाग से जीति की बीडीसी मेम्बर बणिगे.अब मीटिंग मा जाणु शुरू ह्वैगे.कांधी मा एक किरमिच कु बैग,आंख्युं मा काजल,होंठों मा लिपस्टिक अर प्लास्टिक का सैडल चटगैकी वा हर्बी चबोड़ मा ऐगे.बीडीसी  का बजट मा खूब सपोड़ा-सपोड़ कैरि.वींकु अपणो आदिम बि भौत चालू अर रूप्या कु मैती.जंक-जोड़ मा माहिर.  ऊ बि तीन दा दस अर द्वी दा बारा मा फेल ह्वै छौ.प्राईवेट इम्तहान मा नक़ल मारि की मुश्किल से पास ह्वै. वैका बुबन रूप्या देकी वैकि नौकरी बि लगै दे.नौकरी का दगड़ी ब्वारी का कांधी मा नेतागिरी बि शुरू ह्वैगे.ब्वारी का फर्जी दस्खत करि की वैन कतगे भला-बुरा काम शुरू करि दीं.रूप्या कमाणो वास्त ऊ कुछ बि करणो,करवाणो तैयार.महिला आरक्षण कु गैरफ़ायदा यु बदमाश उठाणा छन.
         एक दिन बल कुछ लोगोँन ब्वारी तै कैका दगड़ वैका कमरा मा कुछ गलत हालत मा देखि दे..द्वी-चार दिन तक लोगोँ मा खुसुर-पुसुर ह्वै. हर्बी लोग बिसरि गीं.पण वैका बाद ब्वारी तै लाखों को काम मिलि गे.कखि मा रस्ता,खडंजा,सी सी मार्ग,पाणि कि टंकी,पंचैत घर,नहर,कूल हौरि बि कतगै काम.लपोड़ा-लपोड़ कैरि लाखों रूप्या कमै दीं.हैंका दा जिला का पंचैती चुनौ मा बि जीती गे.खूब दारू की चखळ-पखळ करि दे.इनु बि सुणे कि एक दारू माफियान तब ब्वारी तै जीताणो बान कतगे पेटी दारू अर लाखों रुपयों कु इंतजाम बि करे. ऊ खुद बि चुनौ लडणू छौ अर वैकि नजर बड़ी कुर्सी पर छै.लोगोँ मा छवीं त इनी बि लगी कि ब्वारी वैका दगड़ गोवा घूमणो बि गै.
           अब त ब्वारी नेताण बणिगे.वींकु आदिम अर वा छक्वे रूप्या खैकी लोगोँ का काम करणा छन.ब्वारी का भ्वार खूब नेतागिरी चलनीं च.कमीशन ले दे कि खूब काम हूणा छन.रुपयों कि छका छोळ.गाडी,बंगला,बैंक बैलेंस,सब चकाचक.काशीपुर,दिल्ली,देरादूण मा प्लौट,फ़्लैट.पौबारा हुयाँ छन.कतगै बड़ा लोगोँ,नेताओं,ठेकेदारों से अपण्यास च.नेता बणि कि भौत कुछ पै यालि,पण निरबै ब्वारी तिन भौत कुछ ख्वै यालि.               
           
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com


Bhishma Kukreti

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*********गढ़वाळी कविता--******नेता ******

             कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

गौं,समाज
अर
मुल्क का वास्त
संघर्ष मा
अपणी जिंदगी
लगाण वल़ा
एक छवाड़ पर
बैठ्याँ छन
तिकड़म बाज
भ्रष्ट,चोर
गुंडा बदमाश
आज
नेता बण्या छन.
अपणि लद्वड़ी
भवरणा छन
लोगोँ तै
दारू पिलैकी
चित्त करणा छन
अर   
अपणो उल्लू
सीधो करणा छन.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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*********गढ़वाली गीत-कविता***दुखियारी नारी *******

                       कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

मेरि बात सूणा मि,दुखियारी नारी.
रूणों छौं मि अजकाल,दिनरात भारी.

पति ह्वैगे मेरो आज,जुवारी शराबी.
कसि कैकि होलि अब,दूर या खराबी

रूंदा दिन कटदू,मि निरभगी आज.
कनु ऐ गैनी आज,यु रागस राज.

पतिजिन मेरा रोज,सुबेर चलि जाण.
लटगिंदा-फरकिंदा,पछि घौर आण.

गाळी-ढाळी तौंकी मिन,रोज सुणोंण.
नौनि-नौनों तै बि, रोज भारी डरौण. 

दलकणि मारि-मारि,तौन खाणु खाण.
नौन्यालोंन डैरिकी, भुखी सेई जाण.

छैंदो साग कबी,भुयां मा ठुप्याण.
दाळी की कटोरी,मी उंदा चुटाण.

इस्कोल्या नौनों की,फीस नि दियीन्दा.
टैम पर लैरी-लत्ती,भली नि करिन्दा.

रूणों रैन्द मन मेरो,यी हाल देखिकी.
मनाणु रैन्दू  मि रोज,हाथ जोड़ीकी.

कब मेरा पति तुम,होश मा ऐला.
कब ईं बुराई से,छुटकारा पैला.

         डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com       

Bhishma Kukreti

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********गढ़वाळी कविता---********* ये पहाड़ मा मुश्किल जिंदगी पहाड़ जनि********

                               कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पहाड़
जनि सुणेण मा
तनि दिखेण मा
भोगणा मा 
दुन्य की गैळी
कर्दिन हैरी
यख बिटि
फुटीं 
छोया गदेरी
पण अफु
रैगैनी
निरपट सूखा
बीरान
यु पहाड़
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि.

ऊबड़-खाबड़ धरती
उकाळ-उंदार
पैदल बाटों मा
खुटों मा
बिनांदा कांडा
पिडांदा
गारा-ढुंगा     
सीढ़ी जना
छवटा-छवटा 
डुंडा-बिंगड़ा
रूखा-सूखा पुंगडा मा
घर्या बल्द अर
हल्य़ा ब्वाडा
दगड़ मा डळफ़ोडा   
घुसणा रंदीन
अपणा सुक्याँ हड्गा
बगत कु बगत
बरखण वल़ा बादळ 
कबी कबी
छुमछे जन्दिन पाणि
कखिम कखिम
या रै जन्दिन
तरसणा
चोळी जना
अर कबी
अति बरखा
कैरि जांद
सब कुछ चौपट
घर कूड़ी 
बोगै जांद
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल...सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता*****सपोड़ा सपोड़*****

            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 राज काज 
कनु ह्वैगे आज
ठेकेदार ह्वैगीं नेता
अर
नेता ह्वैगीं ठेकेदार
परसेंटेज की मार
कसि कै होलू
विकास
मथि बिटि ताळ तक
एक ही बात
पैलि द्यो
तब ल्यो
जु द्यालू
ऊ पालू
जु नि द्यालू
ऊ उनि रालू

शर्म न लाज
सबि जगा
कमीशन बाज
बढ़दू मर्ज
कपळी मा पकदु
विश्व बैंक कु कर्ज
काम काज
हो न हो
सपोड़ा सपोड़
द्वीई हथोंन
गबदाणा छन
ठेकेदार
नेता
अधिकारी
अन्ध्यर कूण पर
बैठ्याँ छन
खिसयाँ
बेरोजगार
आन्दोलनकारी.

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार ..narendragauniyal@gmail.com

 

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