Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32114 times)

Bhishma Kukreti

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*******गढ़वाली कविता ******जीति कि चुनौ******

                  कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पैलि त खुटों मा सिवा
कनि लगान्दा छा
हाथ ज्वड़ी-ज्वड़ी कि कनि
छवीं लगान्दा छा
काकी-बोडी,दिदा-भुला
इनी बुलांदा छा
अब क्य ह्वै
जु देखिकी बि
बौगा मारंदा
बौग सारंदा

सुणदा नि छिन
बुलै बुलेकी
द्यखदा नि छन
आन्द जांद
जीति कि चुनौ
किलै
गंडगंडा हुयाँ छन
किलै
करकरा हुयां छन
किलै
गरगरा हुयाँ छन
किलै
चळचल़ा हुयाँ छन
किलै
खळखल़ा हुयाँ छन.

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली कविता ********कुतग्यळी*********

                     कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जौंकी खुटियुं मा बि लगदी कुतग्यळी
उंकी जिकुड़ी का अब क्या हाल छन.
जौंका घुन्डों मा बि आंदी अंसधरी
उंकी आंख्यों का क्या हाल छन.

उन्दारी का बाट जब सक्सक्याट चा
उकाळी मा अब ऊंका क्या हाल छन.
नौणि गुंद्की जनि बांद फरफराट मा
जूनी सि मुखड़ी का क्या हाल छन.

चटगदु घाम मा वा अळसिणी होलि.
जरा सि छैल मा जाणे स्वचणी होलि.
यख होलि वख होलि कख जि होलि
मि स्वच्दु रैग्युं सौंजड्या कख जि होलि.     

         डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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********गढ़वाळी कविता -ब्वल्याँ कु असर********

         कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

ब्वल्याँ कु असर
दुधिया पर हूंद
बोलिकि पाणि
कुछ कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
दुकानदार पर हूंद
बोलिकि कीमत
कुछ कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
इस्क्वल्या पर हूंद
बोलिकि पढे पर
कुछ ध्यान दींद

ब्वल्याँ कु असर
सासु पर हूंद
बोलिकि ब्वारी खुणि
ककड़ाट कुछ
कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
गूणि बंदरों
सुंगरों पर बि हूंद
हो हल्ला कैरिकी
भाजि जन्दिन

ब्वल्याँ कु असर
फसल मा बैठ्याँ
चखुलों पर बि हूंद   
ह्व़ा-ह्व़ा करण पर
फ्वाँ उडी जन्दिन

ब्वल्याँ कु असर
दूध कु भितर जांद
बिराल़ा पर बि हूंद
सिर-सिर बोलिकि
सुर्र भैर चलि जांद

ब्वल्याँ कु असर
देळी का भितर
खुटू धरद
कुकर पर बि हूंद
बोलिकि सर्र
भैर ऐ जांद

ब्वल्याँ कु असर
सिर्फ
नेता पर नि हूंदू
एकदा ना
कतगै दा बोलिकि बि
क्वी ध्यान नि दींदु
कुछ काम नि करदु

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली कथा- जागर

                कथाकार - डॉ नरेन्द्र गौनियाल

सिपड़ी बोडी कु नाती चमनू सख्त बिमार पड़ीगे.वैते अचणचक डाऊ,उल्टी,चक्कर शुरू ह्वैगे.अबी ऊ कुल पन्दरा साल कु छौ.वै तै डाऊ अर उल्टी,चक्कर का दगड़ बुखार बि ऐगे.खटुली मा पड़ीकी ऊ लटगिणू -फरकिणू छौ.ब्वे कमला पुंगडा मा जईं छै.दाजी हंसवा ब्वाडा गोर-बखरों मा पल्या बूण जयां छाया. बुबा रामसिंह दिल्ली मा एक कंपनी मा काम करदु छौ.
           घौर मा तब सिर्फ ददी सिपड़ी बोडी ही छै.दादीन सोचि कि ह्वै सकद दाग लगी गे होलू.वा एक कागज कु पुड्या पर लूण धैरिकी पदानों ख्वाळ गै.पदान सौरु तै बोलि कि चमनू तै क्याप ह्वैगे.जरा लूण मंत्री  द्या. घुत्ता पदानजिन लूण अपणा हाथ मा पकड़ी तिबारी मा बैठिकी लूण मंत्रनू शुरू करि.ऊंका आंख्युं मा पाणि कु तरपराट ह्वैगे.दगड़ मा जमै बि ह्वैगीं.लूण मंत्रिकी बोलि कि भौत मैरम दाग लग्यूं.चमनू का मुंड मा तीन दा परोखी दियां अर आगि मा धैरिकी वै तै सुंघै कि बौं हैड पडाळी दियां.बिलकुल ठीक ह्वै जालो.
             दादीन चट्ट घौर ऐकि उनि करि जनु ब्वल्यूं छौ.पण क्वी फरक नि पड़ी.वैको डाऊ हौरि जादा ह्वैगे.रात भर ऊ ऐड़ाट करणू रहे.वल्या-पल्या ख्वाळ बिटि सब्यूं कि भीड़ लगी गे.ब्यठुलोँ कु गिल गिलाट.क्वी ब्वल्द छल़े गे होलू,क्वी ब्वल्द गणत करवाओ,पूछ करवाओ.औज्यूं ख्वाळ बिटि सग्रामु ब्वाडा तै बि बुलै.ब्वाडन तीन दा रौखाळी करे,पण बीस कु उन्नीस नि ह्वै.चमनू बिचारा कि सरि रात उठा-पोड हुईं रै. हैंका दिन सुबेर चमनू कु दाजी हंसवा ब्वाडा अपणा दगड़ संतू काका तै लिजैकि पुछेरि मा चलि गे.पतगौं मा एक पर देबी नचद बल.लोग ब्वल्दीन कि वा तात्काळी च.सब ठीक-ठीक बतै दींद.पुछेरीन ज्यून्दाळ कांसी कि थकुली मा धैरिकी  बोलि कि धूप-बत्ती अर सौ रुप्या धैरी द्या.फिर बोलि कि तुमरो क्वी पुरण्या लग्यूं.जागर लगे दियां.द्यब्ता सब कुछ बतै द्यालू क्य कन.अब ऊ वख बिटि ही जागरि का घार चलि गीं.जागरि तै लिजैकि राति जागर कु प्रोग्राम बणि गे.
               हुडकी कु घमघमाट अर कांसी कि थकुली को झंझनाट मा सबि मन्खी मस्त ह्वैगीं.कुछ द्यब्ता बणी गीं.एक द्यब्ता मा जब निवारो ल़गै त वैन बोलि कि म्यारू क्वी दोष नि छा.तुम मि तै हरद्वार नवै दियां.जामा-लामा कैरि दियां.ख़ुशी मन से मेरि सेवा दे दियां.आज बिटि ही परचू मिलि जालो. डनड्याळी मा जागर लगणा छाया अर पल्या कमरा मा चमनू कु ऐड़ाट हुयूं छौ.ईं रात बि वैका गैर हाल हुयाँ रैं.
           सुबेर बि जब वैको डाऊ कम हूणा का बजाय हौरि जादा ह्वैगे त फिर पिनिस मा धैरिकी धुमाकोट सरकारी अस्पताळ मा लिजाण पड़ी.डॉ साबन चेकअप करे अर बोलि की एकी हालत खराब च.तुरंत भैर लिजाण पड़ल़ो.चट्ट रेफर करि की आपातकालीन १०८ सेवा से रामनगर भेजि दे.रामनगर मा संयुक्त चिकित्सालय मा इमरजेंसी मा चेकअप का बाद सर्जनन बोलि की अब्बी औप्रेशन कन पडलो,निथर अपेंडिक्स बर्स्ट ह्वै सकद.आनन-फानन मा ऑपरेशन थियेटर मा लिजैकि ऑपरेशन ह्वैगे.चमनू की जिंदगी बचि गे.ऑपरेशन का बाद डॉ साबन बोलि की मरीज अब ठीक च.जरा सि देर ह्वै जांदी त,एकी जिंदगी खतरा मा पड़ी जांदी.ईं हालत मा देर नि हूण चैंद.याँका वास्त जन जागरण की जरूरत छा.जल्दी से जल्दी मरीज तै अस्पताल ल्य़ाणु भौत जरूरी च.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-******सुंगर बांदर गूणि हकांद,यख हम रै गयां******

            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

चाँद अर मंगळ पर बि,आज मन्खी पहुँचीगे,
बेडु तिमला टिपद टिपद,यख हम रै गयां.

फोन मोबाईल इंटरनेट से,दुन्य सरि जुड़ी गे,
धै लगान्द अबी तक बि,यख हम रै गयां.

लोगोँ का नौनि नौना,कम्प्यूटरों मा खेलणा,
पाटी ब्वळख्य पकड़ी अबि,नौना हमारा रै गयां.

लोग अपणि गाड़ी मा,स्वां-स्वां जाण लग्यां.
पैदल बाटा उकाळी उंदारी मा,यख हम रै गयां.

फिल्टरों कु साफ़ पाणि,लोग छन पीण लग्यां.
गदेरों कु गंदल़ू पाणि पींदा,यख हम रै गयां.

बिजुली की चमक धमक मा,लोग छन रैण लग्यां.
छिलका जलैकि उज्यल़ू करदा,यख हम रै गयां.     

लोग ह्वैगीं धन्ना सेठ,ठाट बाट छन कनां.
अठन्नी चवन्नी गिंणदा गिंणदा,यख हम रै गयां.

सपोड़णा छन लोग मुर्गा माछी,बासमती राजमा.
कौणि झुंगारो मंडवा खांद,यख हम रै गयां.

देशी विदेशी कुकर लोग,अपणा भितर छन पल्यां.
सुंगर सौला बांदर गूणि हकांद,यख हम रै गयां.

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी ननि कथा-******खाली पव्वा*****

       कथाकार- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

गबर सिंह इस्कूल मा यूं दिनों रोज हिंदी का मास्टरजि की डांट-मार खांदू छौ.हिंदी का मास्टर हरीराम शर्माजि पढे मा खूब ध्यान दीन्दा छाया.हरेक कठिन शब्द कु अर्थ,भावार्थ,सन्दर्भ,व्याख्या,छंद,अलंकार सब एक-एक करि समझांदा अर लिखान्दा छाया. गबर सिंह की हिंदी की कॉपी पूरी ह्वैगे.ऊ नै कॉपी नि ल्हे सको.मास्टरजी रोज ब्वलीं की तू कॉपी किलै नि ल्य़ाणू छै.गबरी रोज जबाब द्या की हाँ गुरूजी ल्हे औंलू.अबी मि रफ मा लेखी द्योंलू.
        गबरी कु बुबा आनंद सिंह नौकरि-चाकरि कुछ नि करदु छौ.वैकि नौकरी कतगे जगों प्राईवेट कम्पन्यों मा लगी पण ऊ बार-बार छोडिकी घार ऐगे.घार मा खेती-पाती का दगड़ मेह्नत मजदूरी से कुटमदरी चलदी छै.गबरी की ब्वे धनमती कबी-कबी जब रोजगार योजना कु काम खुल्दु छौ,तब ध्याड़ी मा जांदी छै.जनि-तनि वा कुटमदरी की गाड़ी तै खैचनीं छै.आनंद तै दारू की लत लगी गे छै.रोज ऊ दिन मा खाणु खैकी जड़ाऊखान्द ऐ जांदू छौ. दिनभर दारू पेकि ताश-जुआ खेलना अर ब्यखुन्या दारू कु पव्वा लेकि घार ऐ जांदू.वैतई न राशन-पाणि की न साग-पात की फिकर.जुआ मा कबी जीत त कबी हार.घार मा ऐकि दारू कु पव्वा खाली करणु अर खाणु खैकी चौभंड ह्वै जाणु.बर्स्वन्या छोरी-छोरा छै ह्वैगीं.चार नौनि अर द्वी नौना.वैतई कैकि क्वी फिकर न.क्य खाला,क्य प्याला,इस्कूल,किताब,कॉपी,बस्ता,कलम,पिनसल कुछ मतलब नीं.
         धनमती की जेब बि अचगाल खाली छै.रोजगार योजना मा काम कर्याँ कु पैसा तीन मैना बिटि नि मिलि.वा बि गबरी तै बीस रूप्या नि दे सकी.गबरी रोज अपणा बुबा की दारू पियाँ का खाली पव्वा जमा करदु छौ.कबाड़ी अट्ठन्नी कु एक का हिसाब से लींदु छौ.ब्याळी तक गिनती करि त चालीस मा सिर्फ एक कम छै.आज पूरी चालीस ह्वैगीं.वैन कबाड़ी मा जैकि खाली पव्वा  बेचिकी दुकानदार से एक २० रूप्या की कॉपी ले ले.सुबेर ऊ इस्कूल मा गै.हिंदी का मास्टरजि तै वैन कॉपी दिखैकी बोलि कि गुरूजी मि आज कॉपी लेकि ऐग्युं.अर फिर वैन वीं कॉपी मा ल्यखणू शुरू करि दे.
             डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित.narendragauniyal@gmail.com

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गढ़वाळी कथा -******नकली गुलोबंद******
   कथाकार-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

सेठ बूबाजि बहुत सीधा-संत आदिम.अपणी शुरुवाती जिंदगी त ऊंन गरीबी बि मा ही काटी पण हर्बी दिन ठीक ऐगीन.चार नौनों मा तीन दिल्ली मा भली नौकरी मा लगी गीं.निकणसु धनेश तै बि कतगे जगों लगे पण ऊ उतगी दा नौकरी छोडिकी घर ऐगे अर घर गौं मा हैळ-तांगळ,मेह्नत-मजदूरी मा ही मस्त ह्वैगे.पलया गौं मा सौकार मास्टरजि  कु हैळ लगाणा का साथ-साथ  ऊंका हौरि काम बि कैरि देन्दु छौ.मास्टर जि बि भौत चंट चालाक,वैतई रोज ब्यखुन्या एक तुराक जरूर दे दींद छाया.रूप्या-पैसा दीं नि दीं,पण दारू जरूर दे दीन्दा छा.
           अब वैतई दारू की लत लगी गे.वैकि लदोड़ इनी तडम लगी कि बिन शराब कु नि रै सकदु छौ.जादा शराब का कारण हर्बी वैकि तब्यत बि ख़राब हूणि शुरू ह्वैगे.दिनभर रोज मेह्नत मजदूरी करणि अर शाम बगत दारू पीकी टल्ली ह्वै जाणु. खांसी-बुखार का दगड वैको जिगर बि ख़राब ह्वैगे छौ.एकदा काशीपुर बि गै चेकअप कराणों.डाक्टरोंन बोलि कि शराब नि पीणी.पण मनदू कु.ऊ दिन पर दिन जादा पीण लगी गे.अब वैसे काम-धाम बि जादा नि ह्वै सकदु छौ.दारू का चक्कर मा वैन कतगे लोगोँ से उधार बि करि दे. ब्यो-बारात मा इना-फुना लोगोँ कि खीसी बि जपगाणे आदत ह्वैगे.
          एक दिन सुबेर जब वैकि घरवाळी भरोसी देवी छनूडा मा जईं छै,वैन वींका सिरोंणा बिटि चाबी निकाळी अर बक्सा खोलीकि पांच सौ रूप्या निकाळी दीं अर बक्सा फिर उनि बंद करि दे.चार-पांच  दिन मा ही सबि रूप्या दारू मा सुट करि दीं. हैंका दिन बि वैन फिर ब्वारी कु बक्सा खोली.रूप्या त कुछ नि मिला पण एक डब्बा पर वींकु सोना कु गुलोबंद छौ.वैन गुलोबंद खसगै दे. दिन कि गाड़ी से रामनगर चलि गे.लगभग तीन तोला कु सोना कु गुलोबंद सुनार मा बेची दे.सुनारन छीजन-मीजन काटीकि तीस हजार दे दीं.अब वैन पैलि त रामनगर मा ही ठेका मा जैकि दारू ले.मुर्गा दारू सपोडिकी  कुछ खरीददारी बि करि.एक  रंगीन टीबी,घरवळी अर बाल-बच्चों का वास्त लारा लत्ता,कुछ राशन-पाणि,बि लेकि राति कि गाड़ी मा घर ऐगे.घरवळीन जब सामान,टीबी ,कपड़ा देखीं त बोलि कि रूप्या कख बिटि ऐं. वैन बोलि कि मिन जुआ मा जीतीं.वीं सोचि कि जुआ से त कैकि मवासी नि बणदी.पण चलो चार दिन कि चांदनी... कर्ज पत्ता देकी बाकी रूप्या कुछ दिन मा ही सुट करि दीं.   
           कुछ दिन बाद वा अपणा भदैया का चूडाकर्म मा जाणो तैयार ह्वै.वींन अपण बक्सा खोली,त देखि की झुला पर धरयां रूप्या नि छन.बक्सा मा सबि साड़ी-बिलोज एक -एक करि झाड़ी-झूड़ी की देखीं,पण नि मिला.फिर अपनों गुलोबंद देखि वींतै कुछ गड़बड़ लगी.पुराणो गुलोबंद चमाचम चमकणू छौ.वीं मैत जाणु छौ,वे तै ही पैन्निकी चलिगे.सौ रूप्या वा पड़ोस मा मास्टरणी दीदी से कर्ज गाड़ी की ले आई.अर बोलि की मैत बिटि ऐकि दे द्योंलू.
            मैत मा चूडाकर्म मा सबि रिश्तेदार अयाँ छाया.क्वी कुछ लायुं त क्वी कुछ.वा बिचारी क्य ल्यांदी,कख बिटि ल्यांदी.ऐन वक्त का बान ही त रूप्या धरयां छाया.वींन पचास रूप्या भदैया का हाथ मा धैरी दीं.एक दर्जन क्याल़ा बि लीगि छै.सौ रूप्या मा बाकी क्य हूंदू. वींकी बिल्कोट वाळी दीदी दिल्ली बिटि ईं छै.वीं तै भरोसी का घर की हालत मालूम छै.वा अपणि भुली का वास्त साड़ी-बिलोज लईं छै.पांच सौ रूप्या अर साड़ी देकी बोलि की तू फिकर न कैर हम त छौ. अपणा बच्चों तै पाळी ले. एक न एक दिन त्यारा दिन बि आला. वै निर्भगीन त नि सुधरणु.तिन ठीक करि जु आर्टिफिसियल गुलोबंद पैनिकी ले.इना-फुना हर्चणा की बि डैर रैंद.भरोसी कुछ नि बोलि,बस वींका आंसू टपगण शुरू ह्वै गीं.
              हैंका दिन सुबेर मैत बिटि आन्द दा वींतै खूब रूप्या मिलि गीं.पांच सौ रूप्या पिठे लगी,साड़ी-बिलोज,कंडी-बोजी बि दे.सबि दीदी- भुल्यों,रिश्तेदारोंन बि वींतै रुप्या दीं.वीं देखिकी सब्युं तै कळ कळी लगणी छै कि यींकू आदिम दरवल्या ह्वैगे.कमांदु कुछ नीं.घर कि हालत खराब ह्वैगीं.आन्द बगत धुमाकोट मा सुनार का पास गे.गुलोबंद दिखैकी बोलि कि भैजी ये तै तोली द्यो.कतगा कु होलू.सुनारन गुलोबंद देखिकी बोलि कि भैनजि मजाक नि कारा.नकली गुलोबंद कु बि क्वी तोल-मोल हूंद क्या.डेढ़ सौ रूप्या मा लियां नकली गुलोबंद कि क्य कीमत ह्वै सकद.कुछ बि ना.पुराणो ह्वै जालो त कबाड़ मा खैती दियां अर हैंकु ले लियां.वा खिसयीं बिचारी चुप चाप घर ऐगे.
               घर मा पहुचिकी वींन अपणा जवैं धनेश तै पूछि कि तिन म्यारा रुप्या चोरी दीं अर असली गुल़ोबंद बेचिकी नकली बक्सा मा धैरी दे.तिन किलै करि इनु ? वैन पैलि त ना ना बोलि,पण जब वींन बोलि कि आज मिन तीसे जबाब लेकि ही रैण.वैन पैलि त चुप रै चुप रै बोलि पण जब वा नि मानि त वींका कापाळ मा एक जोर कि कटाग लखड़ा कि मारि दे.कपाळी मा गुरमुल़ू उपडीगे.वींकु मुंड चकरे गे. वा कपाळ पकड़ी कि खटुली मा पड़ी गे.वींकी अन्सधरी रुकणी  नि छै.
         डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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हिंदी कविता-******आम आदमी यूंही पिसता रहता है*******

                             कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

कभी श्रद्धांजलि में
सियासत
तो कभी
सियासत की
श्रद्धांजलि

भावना का संवेग
दुर्भावना का वेग
सद्भावना का ढोंग
सब चलता है

घटनाएँ
घटती रहती हैं
भावनाएं
प्रकट होती रहती हैं
घोषणाएं
होती रहती हैं
वायदे होते है 
जो पूरे
कभी नहीं होते

समय 
निकलता रहता है
मामले
ठन्डे बसते में
जाते रहते हैं
पीड़ित
दुखते रहते हैं
कोई गुहार नहीं सुनता 
सब बहरे हो जाते हैं 

पक्ष-विपक्ष
सोये रहते हैं
तबतक
जबतक
घटना की वर्षगाँठ
नहीं आ जाती
या फिर कोई
नई घटना
नहीं घट जाती

घटनाएँ
घटती रहती हैं
नई फाईलें
बढती रहती हैं
विपक्ष चिल्लाता है
सत्ता पक्ष झल्लाता है

अपनी-अपनी
नालायकी
छुपाते हैं
एक-दूसरे पर
कीचड उछालते हैं
भावनाएं भड़काते हैं

सियासत में
एक सांपनाथ
एक नागनाथ
बस यही सिलसिला
चलता रहता है
आम आदमी
यूंही पिसता रहता है

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*****अपणि पुट्गी भरिकी विधाता हमारा बण्या छन*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

ऊ रूप्या देकी वोट लीणाs
हम रूप्या लेकि वोट दीणाs
ऊ दारू देकी वोट लीणाs   
हम दारू पेकि वोट दीणाs
जात-पात धर्म- भेद
स्वार्थ देखि वोट दीणाs
लोकतंत्र को यु कनु मजाक ह्वै
जनतंत्र को यु कनु खंद्वार ह्वै

राजनीति कूटनीति
रोजगार ह्वैगे आज
समाज सेवा भूलिकी
स्वार्थ सिद्धि ह्वैगे आज
छल कपटी भ्रष्ट लोग
सफ़ेदपोश बण्या छन 
अपणि पुट्गी भरिकी
विधाता हमारा बण्या छन

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

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गढ़वाळी कविता-*****जुगराज रयाँ भग्यान****

       कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जुगराज रयाँ भग्यान
ऊ सबि, जु अबी बि   
गौं मा रैकि
खेती-पाती कना छन
हैळ लगैकी
पहाडे धरती तै
हैरी-भैरी रखणा छन
 नवल़ा-धारों बिटि
पाणि ल्याणा छन
बणों मा गोर-बखरा चरांद
बंसुली बजाणा छन 
छ्वै लगैकी
लारा धूणा छन
भ्यूंल कु गाळण बणेकि
मुंड धूणा छन
जु दाना-दीवाना
अग्यलु जल़ेकि
आग पळचाणा छन
भैयाँ चिलम बणाणा छन
 कुटणा छन पिसणा छन
गोर-गोठ करणा छन
नौना पिट्ठू-गुलीडंडा ख्यलणा छन
नौनि बट्टा-गिट्टा ख्यलणा छन

जु बैद अबी बि
जड़ी-बूटी,चूरण-काढ़ा दीणा छन
जु औजी अबी बि
लारा सिलणा छन
ढोल बजाणा छन,चैत मंगणा छन
 जु रुडिया अबी बि
बांस-रिंगाळ कि कंडी
सुप्पी-ड्वलणि बणाणा छन
जु कोळी अबी बि
क्वलड़ा मा राडू-लया अटेरणा छन
जु लुहार अबी बि
अणसेल़ा मा कुटल़ा-दथड़ा पल्य़ाणा छन
जु नौनि-नौना
फुल संगरांद का दिन फूल ख्यलणा छन
 जें दादी का कंदुड़ा मा
मुरख्ला-मुंदड़ा छन
जें ब्वे का गौलुन्द हंसूळी
हाथों मा चांदी का धगुला छन
जें तिबारी मा अबी बि
बीरा भैणि अर सात भयों कि कथा लगणी छन
जु अबी बि थड्या-चौफुला लगाणा छन
जु अबी बि कंडाळी कु साग
मंडुवा कु टिक्कड़ खाणा छन 
जु प्रवासी रिटैर हूणा का बाद हर्बि
अपणी मातृभूमि पहाड़ मा आणा छन

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

 

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