Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32060 times)

Bhishma Kukreti

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एक गढ़वाळी कविता -*******धाद*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जागि जा
उठि जा
रात पुरेगे
बियण्या ऐगे
उज्यल़ू ह्वैगे
जु उठिगे
वैन पै
जु सियूँ रैगे
वैन ख्वै
सियाँ रैकि
सिर्फ
स्वीणा नि द्याखा 
जागि जा
उठि जा
अपणु हक़ ल्या
हैंका हक़ द्या

बुरा कि ना
भला कि हाँ
अत्याचार कु विरोध
सदाचार कु समर्थन
संगठन कि ताकत
अभ्यास कि योग्यता
लगन कि क्षमता
एकटक ध्यान कि सफलता

लगि जा
काम-धंधा पर
उठि जा
जागि जा
यी च रैबार
यी च फ़रियाद
यी च सौगात
यी च धाद
  डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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***********जै भारत जै उत्तराखंड ********

             कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जै भारत जै उत्तराखंड,
चोरों का राज मा डंड ही डंड.
नौकरी-चाकरी फुंड ही फुंड,
लगी भली बि उतणदंड.

बात विकास की दूर ही दूर,
तुष्टिकरण मा हुयाँ छें चूर.
भ्रष्टाचार मा घुंडा-घुंड,
सत्ता मद मा हुयाँ छें टुन्ड.

हाथी का दांत दिखाणा का,
भितर वल़ा छें खाणा का.
आतंकी घुसेणा झुंडा-झुंड,
लड़दा-भिड़दा फ़्वड़दा मुंड.

घुसपैठी विदेशी आणा छन,
कमजोर देश तै करणा छन.
भितर घुस्यां छन कूणा-कूण,
अपणा धर्याँ छन बूणा-बूण.

कबी जात-पात की बात कना,
कबी सम्प्रदाय की बात कना.
समाज च हूणू डुंडा-डुन्ड,
राष्ट्रवाद ह्वै फुंडा-फुंड. 

कबी देश मा आलो रामराज,
धर्मी मन्खी तै मीललो ताज.
दुश्मन भाजला फुंड ही फुंड,
मारि की खतला मुंड ही मुंड.  जै भारत० 

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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*********जागो !जल्दी जागो!!अभी जागो!!!*******

                    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

मै कौन हूँ
तुम कौन हो
हम कौन हैं
सब बंधे हैं
माया जाल से
फिर भी हर एक का
अपना वजूद

तुम भी जानो
खुद को पहचानो
ढूंढो अपना अस्तित्व
इस बेकाबू भीड़ में
मत भागो
पागलों की तरह
खुद के लिए
बेहतर लक्ष्य
सही मार्ग
तलाश करो

इस रंग-बिरंगी
सुवर्णी
बदरंग
दुनिया में
तुम कहाँ खड़े हो
 किस रंग में
रंग रहे हो
इसकी फ़िक्र करो
हकीकत जानने पर
पागलपन खुद ही
ख़त्म हो जायेगा
मगर तब तक
बहुत देर हो चुकी होगी
जागो !
जल्दी जागो !!
अभी जागो.!!!

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी ननि कथा-******पुछ्यरू ब्वाडा*****

        कथाकार-डॉ नरेन्द्र गौनियाल   

इनु कु जणद की कब क्य ह्वै जालु ? क्वी बि ना.फिरबि गाँव-गोठ मा पुछेरों की भरमार च.यख तक कि दिल्ली,देरादूण जना शहरों बिटि बि लोग पूछ करणो यख ऐ जन्दिन.कै तै कमर पीड़ हो,मुंडारु हो,पेट पीड़ हो,जैर-बुखार हो,चट पुछेरा मा.नौनु ठीक से नि पढ़दू,नौनि अणमणी रैंद,मर्द दरवल्य़ा ह्वै जांद,गौड़ी-भैंसी दूध ठीक से नि दीन्दी य हैंका पैण नि हून्दी त तब बि पुछेरा मा.नौना का ब्यो का बाद एक-द्वी साल मा ब्वारि हुण्या-खण्या नि हून्दी,बेटी-ब्वारि खांद-पींद बि सुकि-सुकि ऐ जांद,त चट पुछेरा मा.पुछेरू या पुछेरी कुछ ना कुछ बाटु दिखै दींद.अब ऊ रास्ता चै कुछ बि हो.कै पर परी,कै पर शैतान,कै पर अन्छरी लगि जांद त कैका घरभूत,कैको नरसिंह,देवी,कन्त्यूर,पूजा मंग्दीन.कै पर पुरण्या ल़गि जांद,कैकि कूड़ी मा बुजिनो निकळी जांद,..पैलि पूछ फिर पूजा.जनि पूछ,तनि पूजा.
            जड़ाऊखांद मा बि एक पुछ्यरू ब्वाडा रैंदु छौ.उनु त ये मुल्क मा हर गौं,बाजार मा पुछेरा-पुछेरी मिलि जन्दिन.ब्वाडा नौकरी बिटि रिटैर ह्वैकी जड़ाऊखांद ऐ गे छाया.घरवल़ी का दगड़ ठीक से नि पटदी छै.वा अपणा नौना का दगड़ भैर शहर मा रैंदी छै.ब्वाडा किराया का कमरा मा यखुली रैंदा छाया.रोज सुबेर-सुबेर पूछ करण वलोँ कि भीड़ लगि जांदी छै.जादातर ब्यटुलों कि भीड़ रैंदी छै.कै तै काल़ू धागु मंत्री कि दीन्दा,कै तै बभूत,कै तै कुछ.
               ब्वाडा रोज पांच बजी उठी जांद छाया.आज न त द्वार खुला अर न पूजा-पाती ह्वै..सुबेर-सुबेर दगड़ मा घूमणो जाण वल़ा रुपी काका ब्वाडा का कमरा मा गै.द्वर पर भट-भट करि,पण क्वी स्वीं न पटाग.न ब्वाडा उठू अर न द्वार खुला.रुपी काकन सोचि कि आज पुछ्यरू दादा कनि निंद सियूँ.वैन द्वर पर एक छेद बिटि भितर देखि कि ब्वाडा रस्वडा का समणि ट्वटगू हुयूं..रुपी काकन अगल-बगल मा लोगोँ तै बतै.लोग ऐनी.भितर बिटि चटगणि लगीं छै.वै तै तोड़ी कि द्वार खोली कि भितर गैनी त देखि कि ब्वाडा चुड्पट हुयूं.भितर ब्वाडा का प्राण राति जणि कब उडी गीं अर भैर पूछ कराण वलोँ कि भीड़ लगणि शुरू ह्वैगे.ब्वाडा का बारा मा सूणि त सब  हक्चक रैगीं.आज ब्वाडन काफी लोग विशेष पूजा का वास्त बुलयाँ छाया.
 
    डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*********जिया कु काळ यु बसगाळ *******

                 कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जिया कु काळ
यु बसगाळ
बादलोँ कु गडगडाट
पाणि कु तरपराट
जगा-जगा मा चूंदी भितरी
वींकु कडकडाट
कूड़ी का देखि कै हाल
मेरा गैरहाल
जिया कु काळ
यु बसगाळ

सर्र-सर्र औंदी कुयेड़ी
झर-झर झरदो पाणि
टूटीं छतुळी
भीजिगे ट्वपली कु छोर
कुर्ता कु कोर
बाटों मा जमीं सिंवाल
चरि तरफ उजाड़-बिजाड़
कखि गौं उजड़ना
मन्खी ज्यूंदी दबिणा
 हाल बदहाल
जिया कु काळ
यु बसगाळ

  डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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हिंदी कविता-********स्वागत द्वार ********

      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

एक दिन
सड़क से लगे
एक गाँव में
भ्रमण पर आए मंत्री जी
स्वागत द्वार देखकर
हक़-चक रह गए
लोगोँ से पूछा
गेट पर यह
क्या लगा रखा है
यहाँ केला,आम,चीड नहीं मिलता ?
गाँव के सरपंच ने कहा-
मंत्रीजी !
आम,केला तो इधर नहीं हैं
चीड के पेड़ बहुत हैं
लेकिन जंगलात वाले
आजकल बहुत रेंग रहे हैं
चीड के पेड़ तो क्या
एक झुम्पा भी नहीं तोड़ सकते

कुछ सालों से हमारे गाँव में
बेहिसाब रौदेड़ा फ़ैल रहा है
गेट तो आपके लिए
बनाना जरूरी था
हमने सोचा
कुछ तो
रौदेड़ा घट जायेगा
गेट भी बन जायेगा
बिजली के खम्भे के दूसरी ओर
एक पाईप खडा कर
 दोनों पर
रौदेड़ा लपेट दिया है

मंत्रीजी बोले-
यह रौदेड़ा क्या बला है ?
सरपंच ने कहा-
मंत्रीजी ! अगली बार
जब भी कभी
साल दो साल बाद
आ सको तो
जब भी आओगे
इस गेट पर रौदेड़ा को
यूंही हरा-भरा पाओगे

यूं भी निकट भविष्य में
हमारे पहाड़ में रौदेड़ा
संवेदनशील मुद्दा बनने वाला है
अगला चुनाव यहाँ पर
रौदेड़ा के बुज्ज्यूं तथा
उनके अन्दर छिपने वाले
जंगली सूअरों पर केन्द्रित होगा
जिस पार्टी के नेता
रौदेड़ा के विरुद्ध
अभियान चलाएंगे
जंगली सूअर भगायेंगे
हम वोट उन्हें ही देंगे
सिर्फ उन्हें ही जिताएंगे
और जो लाल बत्ती वाली
गाड़ियों में बैठकर
सड़कों में बेमतलब
स्वीं-स्वीं टुयीं-टुयीं
करते रहेंगे
उनके लिए हम
कर भी क्या सकते हैं
सिर्फ रौदेड़ा के बुज्ज्यों का
गेट बना सकते हैं. 

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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********जितणि च जंग हमन******-एक गढ़वाळी देशभक्ति कविता 

                            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जितणि च जंग हमन
लड़णि च लडै हमन
भौत ह्वैगे
हमन अब नि सैणु
 दुश्मनोंन अब नि रैणु

 रैणु च हमन
मिलि जुली कि
मारि कि भजळला
दुश्मनों तै
चुनि-चुनि कि

अब तक भौत ह्वैगे
भौत ल्वे बोगिगे
अब न कबी इनु होलू
लुक्यां होला जु
कोणा-काणों मा
एक-एक तै
चटगौंला
एक-एक तै 
 भटगौंला   
एक-एक तै
कटगौंला

 
तुमारा सौं
देश का बीरो
तुमारी शहादत
बेकार नि जालि
मौका मिलण पर
देश का बाना
हमरि बि
जिंदगी काम आलि

देश कि आन
देश कि बान
देश कि शान
कम नि हूणि द्यूंला
जब आलि घड़ी
जब होलि जरूरत
देश कि खातिर
हम बि 
कुर्वान ह्वै जौंला                 

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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तिन क्य जणण मेरि पीड़ : गढ़वाली  व्यंग्य कविता,

      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला ) 

तिन क्य जणण मेरि पीड़
मी पर पैलि क्य-क्य बीत
तू रिंगणू छै देळी-देळी आज
त्वे चैंद सिर्फ अपणी जीत

मेरि त कूड़ी पुंगड़ी बोगीगे
 ख़तम ह्वैगे सब घर परिवार
तू उड़णू छै सर्र इनै सर्र फुनै
त्यारा त क्य मजा हुयाँ छें

म्यारा खुटों मा त रोज
इनी हूणी रैंद खांदी कटदी
दिन रात काम का बोझ से
थक्युं पल़ेख्युं छौं

तू भागवान खै पेकि
दणसट लग्युं छै जुगार
मि अपण गुजर बसर का
जुगाड़ मा लग्युं छौं

मै तै भौत खैरि खाण पड़द
एक एक बीं टिपण मा
तू इनु खर्च करदी जनु कि
त्यारा खीसा चिर्याँ ह्वीं

कुछ बि पाण त मि तै कन पड़द
अपणी हड्ग्युं कि रसि
 त्यारू त क्या च
फ़ोकट मा काम बणि जांद
 
डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला   जारी )

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली कथा -******तिमला बि खतेनी,नंगी बि दिखेनी ******
 
             कथाकार --डॉ नरेंद्र गौनियाल 

पहाड़ बिटि अंधाधुंध शहरों का तरफ भागाभागी से एक तरफ घर गाँव खाली ह्वैगीं।कूड़ी उजड़ी गीं,पुंगड़ी बांजी पड़ी गीं।दूसरा तरफ शहरों की चकाचौंध अर बढ़दी अपसंस्कृति का नुकसान बि बढ़दा जाणा छन।अपणा कुटुंब,घर,गौं,समाज से दूर रैण मा भौत सावधानी,समझदारी,मजबूती,संयम अर जागरूकता की जरूरत छ।कु कब अपणा जाळ माँ फँसै द्या कुछ पता नी।संयुक्त परिवार का बजाय अलग रैणा कि प्रवृति नुकसान देय साबित हूणी।भौत टैम तक द्वीई झणों का एक-दूसरा से दूर रैणा का खतरा बि समाज मा बरकरार छन।
         मुन्नी की पहाड़ मा नि रैणा कि जिद का कारण वींकु फ़ौजी जवैं महेश वींतै रामनगर लेकी ऐगे। वैन बि सोचि कि बच्चा शहर मा भलि इस्कूल मा पढि-लिखि जाला।गौं मा बुड्या ब्वे-बुबा तै छोडिकी बाल-बच्चों तै भरतपुरी मा किराया का मा रखी ऊँका वास्त गैस,राशन-पाणि,बेड-बिस्तर सब इंतजाम करी दे।नजदीक मा ही तीन लाख मा एक प्लाट बि खरीदी दे। अपणी छुट्टी पूरी हूण से पैलि मकान कि फाउँडेशन डळवै कि तीन कमरा-किचन,लैट्रिन-बाथरूम कु ठेका पाँच लाख मा एक मुसल्य़ा ठेकेदार मुहमद रईस तै दे दे।काम शुरू करवाणा का बाद ऊ अपणी ड्यूटी पर जम्मू-कश्मीर चलीगे।ड्यूटी बिटि बि ऊ फोन करि हालचाल पुछ्दु छौ।जाण से पैलि वैन अपणो अर घरवाली कु ज्वाइंट खाता खोलिकी वैमा दस लाख रुप्या धरी दीं।घरवाली का वास्त जर-जेवर बि खूब लियां छया।बच्चों का वास्त बि क्वी कमी नि छै। 
           मकान बणदा-बणदा लगभग छै मैना लगी गीं।ये बीच दशहरा का टैम पर ऊ एक हफ्ता की छुट्टी लेकी ऐ अर घर बैसू करी दे।छुट्टी पूरी कैरी ऊ वापिस ड्यूटी पर चलीगे। मकान बणणा का टैम पर ठेकेदार रोज ही काम द्यखणो आंदु छौ।रोज ही मुन्नी का दगड़ छ्वीं -बत्त लगाणा अर च्या पीणा का बहाना से बैठि जांदू छौ। दिन मा जब बच्चा इस्कूल चलि जांदा छाया,तब ऊ वींका दगड़ भितर बैठि जांदू छौ।हर्बि वैकी नजर खराब ह्वैगे।वैन मुन्नी तै अपणा जाळ मा फंसाणु शुरू करी दे।वींकु खूबसूरत शरीर अर रूप्या द्वीयों पर वैकि टक लगीं छै।एकदिन बाथरूम का वास्त टाईल्स पसंद कराणा का बहाना से ऊ वींतई बाजार अपणि गाड़ी मा लीगे। फिर दुकान बिटि ऊ वींतई अपणा कमरा मा लीगे।वख वैन एक कूणा मा चुपके से कैमरा लगै दे।कोको-कोला का दगड़ वैन मुन्नी तै दारू मिलैकी पिलै दे।कैमरा चालू करिकी वींतई बिस्तर मा लिजैकि छेड़खानी करण लगी गे।पैलि त वीन ना नुकर करि पण फिर वा मजबूर हवेगे। वैन वींका लता-कपड़ा निकाळी कि अपणा मन की करी दे।फिर वींतै वींका मकान मा छोडिकी ऐगे।यु सिलसिला अब रोज ही चलनु रहे।एकदिन वैन एक लाख रूप्या की मांग करी दे। वींन बोलि कि साढ़े चार लाख हिसाब मा ऐगीं।पचास हजार काम फाईनल हूण पर मिलि जाला। तब वैन अपणा लैपटॉप मा पिक्चर लगै दे।वैका दगड़ अपणी नंगी फोटो गलत हालत मा देखिकी वींकि आंखि चकरे गईं।वीन कबी नि सोची छौ कि यु इनु धोखा बि कैरि सकद।वैन बोलि कि रुपया दे दे। निथर मि पिक्चर सबि लोगों तै दिखै द्योंलू। वीन वैका खुटा पकड़ी दीं अर बोलि कि मि रूप्या द्योंलू।तू कैमा नि बतै।एका बाद ऊ जब चांदु वीं तै हम-बिस्तर करदू अर जब चांदु वींसे रूप्या ले लींदु।
           घर बैस का टैम पर बि वींन अपणा जवैं तै कुछ नि बतै।मकान कि फाईनल पेमेंट ऊ करि गे छौ।फिर बि ठेकेदार मुहमद रईस वींकू शारीरिक अर आर्थिक शोषण करदू रहे।हर मैना खाता मा 20हजार रूप्या आंदा छया।पांच हजार मा घर खर्च चलैकी बाकि सबि  बदमाश ठेकेदार रईस तै दीण पड़दा छया। एकदिन वैन फिर द्वी लाख कि मांग करी दे।वींन बोलि कि मीम जतगा छया मिन दे यलिन।पण ऊ नि मानु। आखिरकार  वींतई अपणा जेवर ब्यचण पडीं।अबतक ऊ लगभग 15 लाख ससोड़ी गे। वा मजबूर छै।वैका चंगुल से भैर नि निकळी सकणी छै।वा शारीरिक,मानसिक अर आर्थिक रूप से लाचार ह्वै गे छै।
           फौजी महेश एक साल बाद फिर छुट्टी मा घार आणू छौ।बाल-बच्चों का वास्त खूब लता-कपड़ा,घरवाळी का वास्त कश्मीरी फिरिन अर गरम शॉल ल्याणों छौ।वै तै घरवाळी अर बच्चों कि खुद लगीं छै।रेलगाड़ी मा एक-एक मिनट भारी लगणों छौ।आखिर गाड़ी रामनगर स्टेशन मा पहुंची गे।थ्री ह्वीलर से ऊ अपणो बक्सा,अटैची अर हौलडौल लेकि घर पर पहुंची गे।घरवाळी की हालत भौत ख़राब छै।वींकि मुखड़ी मुरझईं छै।वैन  वीं तै पूछी कि त्वे क्य ह्वै।वींन शुरू मा कुछ नि बतै।पछि जब वैन बैंक खाता खाली देखीं अर घरवाळी का जेवर बि नि द्याखा त वैकी खुटों ताल़ा कि जमीन जनि कि खसगी गे।आखिरकार मुन्नीन एक-एक बात बतै दे।वा अपणा जवैं पर चिपकी की ह्यळी मारिकी रूण लगिगे।वैन बोलि कि तिन भौत बड़ी गलती करी दे।पैला का दिन ही मी तै बतै दींदी त आज यु हाल नि हूंदा।तिमला बि खते गीं अर नंगी बि दिखे गे।वै बदमाश तै त मि  सबक जरूर सिखौंलु।वैन चट पुलिस स्टेशन जैकि पुलिस अधिकारी से बात करि सारी बात समझै।ठेकेदार का घर रात पुलिस कु छापा पड़ी।वैका कमरा बिटि लैपटॉप,कैमरा,कुछ कागजात,कंडोम अर शक्तिवर्द्धक कैपसूल  बरामद करे गीं।हिरासत मा लेकि शोषण,बलात्कार अर चार सौ बीसी कु मुक़दमा कायम ह्वैगे।अबि ऊ जेल मा च। मुन्नी कि हालत बि ख़राब च।हल्द्वानी का एक बड़ा अस्पताळ मा इलाज चलणू।दिन पर दिन  हालात बिगड़ते जाणी च।                                                                                                                         
                   
                 डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmailcom

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हिन्दी कविता --*******हम कब सुधरेंगे********

           कवि -डॉ  नरेन्द्र गौनियाल


हम अपने
 माता-पिता 
 वृद्ध जनों को समय पर
 भोजन-पानी देने की
चिंता नहीं करते
एक घडी 
उनके पास बैठकर 
दुःख दर्द समझने की
 कभी कोशिश नहीं करते
 जिन्होंने बालपन से
हमारे बड़े होने तक
जिंदगी भर 
हमारे बोझ को कभी
बोझ नहीं समझा 
उन्हें बोझ समझकर
खुद से अलग कर
दूर रख लेते हैं 
उनके लिए 
कुछ करना तो रहा दूर
उनके किये का
एहसान तक नहीं समझते
जीते जी 
उन्हें नहीं पूछते 
उनकी सेवा नहीं करते
उनके चले जाने पर 
एकाएक 
पुत्र का कर्तव्य बोध
 जागने  लगता है 
 दस दिन तक 
 नियम -संयम से रहकर
कर्मकाण्ड करते हैं
माँ बाप की घड़ी भर
एक भी नहीं सुनने वाले
दिनभर मस्त होकर
गरुड़ पुराण सुनते हैं
वार्षिक श्राद्ध पर 
लाखों खर्चकर 
हफ्ते भर तक 
 श्रीमद्भागवत पाठ कराते हैं
सैकड़ों  का भोजन   
दक्षिणा कराते हैं 
हर साल 
श्राद्ध पक्ष में
मुंडन कर 
तर्पण कराते हैं 
दान दक्षिणा कर
 सुख की अनुभूति करते हैं
काश !
यह कर्तव्य बोध
माता -पिता के जीतेजी
जाग गया होता 
माता-पिता की सेवा का पुण्य
हमें भी मिल गया होता

   डॉ नरेन्द्र गौनियाल  सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

 

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