Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32053 times)

Bhishma Kukreti

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Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal

 

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******यौवन ******


यौवन
अपार ऊर्जा
कुछ कर सकने की ताकत
बहुत कुछ कर सकने की सोच
सबकुछ कर सकने की लालसा
कठिन श्रम
आकाश छूने की महत्वाकांक्षा
तारे तोड़ लेन की सामर्थ्य
सपने देखने का साहस
सपने पूरे करने का उपक्रम
सपने पूरे करने का मनोबल
यौवन
एक ज्वार
एक तूफ़ान
एक दुस्साहस
एक विध्वंस
एक सृजन
एक वर्तमान .....


      डॉ नरेन्द्र गौनियाल .     



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Bhishma Kukreti

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Hindi Verses By Dr. Narendra Gauniyal

 

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*******मेरा क्या है ********   


मेरा
क्या नहीं
सबकुछ है
मेरा क्या है
कुछ भी नहीं
            मै हूँ
            पत्नी,बच्चे
            माता-पिता ,रिश्तेदार
            पड़ोसी ,सम्बन्धी
            मेरा गांव,इलाका
            राज्य,देश
            महाद्वीप,संसार
            सम्पूर्ण मानवजाति
            जल,थल,वायुचर
            प्राणी मात्र
            सब अपने हैं
क्षण भर में
इसके उलट
उलट सोच से
बदल जाता है
सबकुछ
बदल जाता है
संसार
              मेरा अपना
             कुछ भी नहीं
             एक-एक कर
            सब हो जाते हैं
            पराये 
             एक छोटी सी सोच से
             दूर हो जाता है
             सारा अपनापन ..


                डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..

 


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********दर्द ही जीने का सहारा है ******
मुझे
कोई गम
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
 
हजार ग़म
ढाए सितम
क्यों मायूस रहूँ
एक बस फर्ज
कुछ करने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

चाहत नहीं
दुनिया में मुझे
कुछ भी
क्या गर्ज है
जीने की
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

माँ का दूध
अन्न धरती का
अन्य कोई कर्ज
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

जलता रहता
ये दिल
किसी आग में
बस यही एक मर्ज
जीने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है ....
  डॉ नरेन्द्र गौनियाल  ..(दृष्टिकोण -एक समर्पण)
Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal

 

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Hindi Poems by Dr.Narendra Gauniyal

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Anti Dam Hindi Poem By Dr Narendra Gauniyal



************यह झील **********
यह झील
एक छोटा सा समंदर
समा गयी
एक शहर की विरासत
एक संस्कृति
एक इतिहास

घर डूबे
गलियां डूबी
महल डूबे
सबकुछ
डूब चुका
ढूंढें कहाँ
इस जलराशि में
जो सब यहाँ
लील चुका

डूब क्षेत्र के लोग
बेचारे
घर छोड़ा
गांव छोड़ा
जाने क्या-क्या छोड़कर
भागे
बदहवास

ये निर्वासित
कहीं दूर
अनजानी जगहों पर
सर छुपाने
निकल पड़े हैं.

खाट,बिस्तर,संदूकची
भांडे ,बर्तन
गागर,तौली,परात
गिलास,कटोरी
बोरे में समेटे
झील के बढ़ते पानी को देख
भाग चले हैं दूर
अपना अस्तित्व तलाशने

लेकिन
नीचे की ओर
जो बेफ़िक्र हैं
वे कभी भी
आ सकते हैं
इस भयंकर
हाइड्रोबम की चपेट में
धरती की एक छींक
काफी होगी
लाखों लोगों को
डुबोने के लिए .
      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..
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Modern Hindi Poem by Dr Narendra Gauniyal



 
 

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Modern Hindi Poem by Dr Narendra Gauniyal




******कलियुग के कंस ********

कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल




नहीं मालूम था
इस युग में
बचा होगा
तुम्हारा अस्तित्व
समझा था
मिट चुका होगा
तुम्हारा नाम
भूल चुके होंगे लोग
द्वापर में कृष्ण द्वारा
उद्धार करने पर
मुक्ति मिल गयी होगी
छल-कपट,स्वार्थ-क्रूरता
झूठे माया मोह से

ऐसा न हो सका
तुम्हारा दंभ ,फरेब
कुटिलता -मदान्धता
एहसास कराती है
इस युग में भी
तुम्हारी उपस्थिति का

कलियुग के कंस
प्रायश्चित कर लो
अपने दामन पर लगा
दाग धोकर
इतिहास बदल दो
अन्यथा
इतना तुम भी जान लो
दुष्टों का नाश करने
हर युग में
अवतरित होते रहेंगे
कृष्ण .....
Copyright@ डॉ नरेन्द्र गौनियाल



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*******हरियाली और सड़क *******



चौमास का
भरपूर यौवन
बादलों का घिराव
तेज बारिश
मूसलाधार

घने कोहरे के साथ
बादलों के बीच
लुका-छिपी करता
सूरज
एक नन्हा सा शिशु
इंद्र धनुष
सतरंगी
मनमोहक

हल्की-हल्की फुहारें
आल्हादित करती
हरी चादर
प्रकृति की
ढकती
धरती को 
पूरी तरह

हरियाली को
बेरहमी से चीरती
एक सड़क
निर्दयी
जिसकी चौड़ाई को
समेटकर रखा है
हरियाली ने
किन्तु लम्बाई
अनंत
असीमित
बे सिर-पैर..
 Coyritght @   डॉ नरेन्द्र गौनियाल . 




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*********बेचारा *******

मै टहल रहा था
बस्ती से दूर
खेतों की तरफ
स्वछन्द
एकांत
टहलते-टहलते
बैठ गया एक पत्थर पर
विचारमग्न

कुछ चिड़ियाँ
चहक रही थी
शायद
आपस में पूछ रही थी
कौन ?
क्यों ?आया है !
साथ में क्या लाया है ?

एक चतुर चिड़िया
चह-चहाई
मानो कहती है -
देखते नहीं
थकाहारा है
लाता भी क्या
बेचारा है
दुनिया से दूर
यहाँ आया है
देखो ! कैसी कृशकाया है

बैठा है चुपचाप
कोई हरकत नहीं
मानो जीव नहीं
हो पत्थर के ऊपर
दूसरा पत्थर

चलो देखें
एक प्यारा सा
मधुर गाना गायें
मन बहलायें
जाने क्यों
यहाँ आया है
कुछ सोच में
डूबा सा लगता है
अरे !
यह क्यों उठ गया है

हमारा
गीत-संगीत
इसे भाया नहीं
अब तो
उठकर कहीं जा रहा है
चलो जाने दो
हमें देगा भी क्या
थका हारा है
बेचारा है .......
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल       

Bhishma Kukreti

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*******बसंत आ गया है *******

पतझड़ वाले
आडू-पयाँ के बृक्षों पर
नयी कोंपल
आ गयी हैं
लक-दक फूल
खिल चुके हैं
नव जीवन
नव राग-रंग
नयी उमंग
नयी तरंग
संग लेकर
बसंत आ गया है

तिड़ा हुआ मुंह
फटे हुए पैर
भयभीत करती
शीतलहर
दुःख के बाद
सुख का एहसास
नवजीवन
नव रागरंग
नयी उमंग
नयी तरंग
संग लेकर
बसंत आ गया है ...
    डॉ नरेन्द्र गौनियाल   

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली एवं हिंदी कवि डॉ नरेन्द्र गौनियाल की हिंदी कविता


 

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*******कटु सत्य ******


आदमी रोज
बुनता है जाल
अपने लिए
जुटाता है
धन-सम्पति
ऐश-आराम
सुख -साधन
रिश्ते-नाते
जोड़ -तोड़कर 

पता नहीं
कब चला जाये
सब छोड़कर
जाने के बाद
एक बार
नहीं देख पाता
मुड़कर

अपने लोग
कहने को सबकुछ
नहीं रह पाता
अपना कुछ
अतिप्रिय भी
देखते रह जाते हैं
खड़े-खड़े
चाहकर भी
नहीं कुछ
कर पाते हैं
बड़े-बड़े

कोई एक भी
नहीं हो पाता समर्थ
जो रोक सके
जाने वाले को
थोड़ी देर के लिए सही
कोई नहीं एक भी
जो कुछ दूर तक
साथ चल सके
गाड़ी-बंगला
धन-संपत्ति
कुछ नहीं
पत्नी-पुत्री
पुत्र-मित्र
नौकर-चाकर 
कोई नहीं

साथ में
चलते हैं
कर्म-संस्कार
नश्वर शरीर भी नहीं
जिसकी होती है
रोज हिफाजत
ढोता रहता है जिसे
जीवन भर आदमी
अपना कहकर
हो जाता है स्थिर
वह भी
काठ की तरह

उड़ जाते हैं
प्राण पखेरू
दूर आकाश में
जाने कहाँ
विलीन हो जाती है
आत्मा
परमतत्व में
रल जाता है
भौतिक शरीर
पंचतत्व में ..     
     डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..


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गढ़वाली एवं हिंदी कवि डॉ नरेन्द्र गौनियाल की हिंदी कविता

 

 

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********दिव्य दृष्टि-दिव्य ज्ञान ******

 


शिवालय में
शिवरात्रि के पर्व पर
कहीं बाहर से आए हुए
एक महात्मा
अपने अध्यात्मिक ज्ञान से
भक्तों को
प्रभावित करने का
प्रयास कर रहे थे
प्रभु के ध्यान एवं
कठिन साधना से
स्वयं को
दिव्य दृष्टि प्राप्ति का
बखान कर रहे थे
दिव्य दृष्टि महात्मा के
पवित्र दर्शन लाभ से
भक्तगण
स्वयं को
धन्य समझ रहे थे

अर्द्ध रात्रि तक
प्रवचन चलते रहे
भजन-कीर्तन
अध्यात्मिक उपदेशों से
भक्तगण
आनंदित होते रहे
प्रवचन समाप्ति पर
प्रसाद ग्रहण कर
सब अपने घर
चले गए

अगले दिन सुबह
दिव्य दृष्टि वाले
महात्मा जी के कमरे से
उनका सामान
झोला,रुपये-पैसे
लत्ते-कपड़े
भगोया रंग के जूते
सब गायब थे
चतुर-चोर
जाने कब
माल उड़ाकर
हो गया
अंतर्ध्यान
मुसीबत में
काम न आ सका
महात्मा जी का
दिव्य ज्ञान ...
     डॉ नरेन्द्र गौनियाल   
गढ़वाली एवं हिंदी कवि डॉ नरेन्द्र गौनियाल की हिंदी कविता

 

 

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