Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32256 times)

Bhishma Kukreti

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एक गढ़वाळी कथा*******हूण खाणे आस****** कथाकार-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

पंडित भोगीराम जि अपण इलाका का जन्याs-,मन्याs ज्योतिषी.अपणा जजमानों कि टिपड़ी-कुंडळी बणांदा,द्यखदा,बंचदा,बुड्या ह्वैगीं,कपाळ फूली गे.दूर-दूर बिटि लोग टिपड़ी मिलाणो आंदा छाया.दूर-दराज मा पंडजी कि खूब हाम छै.
      ऊंकु अपणु अदर्मंजू नौनु ज्वान ह्वैगे छौ.वैका बान कतगे जगों बि बिटि टीप मंगवे दीं.खूब देखि-भाळी कै मिलान बि करे.कखि टीप नि मिली,त कखि नौनि कळसिणि ह्वैगे,कखि नौनि कद मा छवटि त कखि मोटि.कखि नौनि ठीक पण मवासी समझ मा नि ऐ. दिन इनी सरकणा रैं अर पंडजी खांदी-पींदी कुटुमदारी का चक्कर मा रैगीं.आख़िरकार एक नौनि पसंद ऐगे.टीप मिलान करेगे.२४ गुण एकदम फिट मिलि गीं.नौनि द्यखन-दर्शन भलि.मवासी बि ठीक.वींकू बुबा दिल्ली मा सरकारी नौकरी मा छौ.पंडजीन नौनि का बुबा तै खबर भेजि कि टीप मिली गे.एकदम ठीक मिलान हुयूं.घर-गृहस्थी,बाल-बच्चा,सुख-शांति,धन-संपदा सब कुछ ठीक च जोग पर.दुयूं कि जोड़ी एकदम बढ़िया च.
         दिन बार देखिकै पंडजी अपणा बामण दगड़ मा द्वी-चार गौं का भै-बन्दों तै लिजैकि गैनी अर नौनि तै पिठे लगैकी ऐगीं..सपैट देखिकै ब्योकु दिन-बार बि ह्वैगे.तीन मैना बाद खूब धूम-धाम से लगन पर ब्यो बि ह्वैगे.
        द्वी-चार मैना त नै-नै ब्योली ठीक रहे.पण हर्बी वींका पुटगा मा डाऊ शुरू ह्वैगे.वींकू जवैं दिल्ली मा एक प्राईवेट कंपनी मा काम करदु छौ.वा दिल्ली अपण जवैं का दगड़ चलि गे.तीन साल तक वख ही रहे.कबी रूडी मा द्वी-चार दिनों का वास्त ही आंदी छै घार.गौं मा वींकी जिठाण भारी चालाक अर चलपटा छै.अफु त सुद्दी रैंदी छै घुमणी नेतागिरी मा अर वींतै काम-काज मा लगे दीन्दी छै.ये वजह से वा बि तब्यत खराब कु बहाना बणेकि सरपट दिल्ली चलि जांदी छै.
         तीन-चार साल मा बि ऐथर कुछ हूण-खाणे आस नि बणि.सासु-ससुरजी कु रैबार गै कि भादौ मैना भूत पूजण घार ऐजै. भादौ मा द्वीई घार ऐगीं.जवैं एक हफ्ता कि छुट्टी लेकि यूं छौ.हफ्ता बाद द्वी फिर वापिस दिल्ली चलिगीं.एकदा भूत पूजिकी कुछ परचू नि मिली त.फिर चैत का मैना दुबारा सोचि.कबी कै पुछेरा मा गैनी त कबी कैमा.क्वीई कुछ त क्वी ई कुछ,अपणा-अपणा मुखे बात.एकन बोलि कि  नजर लगीं भारी.हैंकु ब्वल्द कि हन्त्या लगीं.क्वी ब्वल्द कि फिटकार च.एक पुछ्यsरन बोलि कि परी अर शैतान द्वीई  हरद्वार दगडी पूजण पड़ल़ा.आखिरकार ऊ बि सब कार. नवरात्र्यों मा नौ दिन कु पाठ बि करेगे.अबरी दा नौनु-ब्वारी द्वीई घर मा ही रैगीं.प्राईवेट नौकरी छुटिगे.पंडजीन बोलि कि बृति-बाड़ी समाळ अर दगड़ मा कुछ हौरि काम-धंधा बि द्यख्ला.
       कुछ मैना बाद बि जब फिर कुछ आस नि  ह्वै त वींका ब्वेन रैबार देकी वींतै  फिर दिल्ली बुलै दे.दिल्ली मा बिन काम-काज कि वा द्वी मैना मा ही खूब मोटी सि ह्वैगे.जब तीसर मैना घार ऐ त गौं कि जनन्यों मा खुसर-फुसर.ऊ न समझी कि अब त जरूर कुछ उम्मीद च. एक दिन पंदेरा मा कुछ ब्यटुलोंन पूछी दे.पण वींन ना बोलि दे.दिन इनी कटिणा रहीं.ब्यो हुयाँ सात साल ह्वैगीं पण मूसू बि नि जलमु.एकदा द्वी मैना कुछ आस ह्वै पण फिर निराश ह्वैगे.लोग अपण-आपस मा छवीं-बत लगें कि पंडजी दुन्यकि टिपड़ी मिलन्दीन अर अपणा नौना कि टीप कनि मिलै.
     ह्यूंद मा एकदा वा फिर दिल्ली चलिगे अपणा ब्वे-बाबु का दगड़.वींकी ब्वेन वींतै एक अस्पताळ मा चेकअप करे.लेडी डॉक्टरन सब जांच का बाद बोलि कि हसबैंड तै बि चेकअप का वास्त बुलाओ.वींन फोन कैरि कै वै तै दिल्ली बुलै दे.द्वीयों कु चेकअप का बाद इलाज शुरू ह्वैगे.तीन मैना तक इलाज का बाद द्वीई घार ऐगीं.गौं का बेटुलों मा अब खुसुर-फुसुर हुईं बल कि ऐथर कुछ हूण-खाणे आस ह्वैगे. 

         कथाकार- डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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हम कब तक इनि टुकड़ा-टुकड़ा हूणा रौंला****************

                         कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

हम
कब तक
इनि
टुकड़ा-टुकड़ा
हूणा रौंला
जाति-धर्म
क्षेत्र का नौं पर
कब तक इनि
आपस मा
लड़ना रौंला

चोर-बदमाश
ठग-डकैत
भ्रष्टाचारी
बार-बार
हम पर
इनि
करणा राला
राज

अत्याचार
व्यभिचार
भ्रष्टाचार
गरीबी
बेरोजगारी मा
हम सदनि
इनि
पिसिणा रौंला
अर
कब तक
इनि
कपाळी मा
खज्जी
कन्याणा रौंला.

            डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित  narendragauniyal@gmail.com


Bhishma Kukreti

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************गढ़वाली कविता--त्यलथ्वपा**********

              कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल


कैदिन
जब क्वी मन्खि 
हर्चि जांदू छौ
अर
ढूंढ -खोज का बाद बि
कुछ पता
नि चल्दु छौ
तब
कुटुम्दरी का लोग
त्यलथ्वपा   
 करदा छया
अनुमान
लगान्दा छया
ज्यूंदु होलु कि ना
बौड़लु कि ना
आज
मनख्यात हर्चिगे
खोजि-खोजि कै बि
नि मिलदि   
सांचा मन्खि
सदनि
त्यलथ्वपा कर्दिन
ईं फिकर मा कि
मनख्यात
ज्यूंदी च कि ना
मनख्यात
बौड़लि कि ना..

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ...narendragauniyal@gmail.com


Bhishma Kukreti

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************बल हमन भौत तरक्की कैरि यालि **************

              कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

बल हमन
भौत तरक्की
कैरि यालि
गौंकि कूड़ी छोडिकै
शहर मा
शिफ्ट   
कैरि यालि
सेरी-घेरी
पुंगड़ी सबि बांजि 
छनुड़ी रीति
भैंसि हंडा मा
बल्द -गौड़ी
जंगळ मा
आवारा छोडि यालि

दूध का बदल
सफ़ेद पौडर कु छोळ
घर्या घ्यू का बदल
रिफैंड-डालडा-नकली घ्यू
ताज़ी नौणि का बदल
अमूल बटर
गौं मा नि मिलदी
पीणे छांछ
एक गिलास
दारू कि दुकान
ऊ बि सरकारि
अगल-बगल
दिन भर
चखळ-पखळ

गौं का गरीब
रैगीं गरीब
अर अमीर
बीपीएल बणिगीं
सेठजि कि ब्वारि
आँगनबाड़ी मा
कार्यकर्त्री
अर दगड्या 
सहायिका बणिगी.

रौला-गदेरों कु
गंदल़ू अर बासी पाणि
पीणा छाँ 
पुश्तों बिटि 
अपणो  छैंदो
अपणि धरोहर
धारा-छोया
नवाल़ो कु साफ़ पाणि
छोडि यालि
बल हमन
भौत तरक्की
कैरि यालि.

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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********भकरभांड म्यर पहाड़********

                             
                                       कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पहाड़ मा
रोज
औंस ही औंस
भजणे रौंस
जूनी कि आस
फिर निसास
एका पिछने हैंको
लगी लंगातार
यी सिलसिला
बारम्बार
बांजी पुंगड़ी
उजड़दी कूड़ी
भजदा मन्खी
भकरभांड
म्यर पहाड़.


****पहाड़ नि आन्दु रास****

निर्भगी बस्गाळ
चिमचुन्य पाणि
झुन्गारू न धान
काण्ड न मास
न कुछ हौरि धाणि
खेती कि गाणि
एक थ्वपा बरोबर आस
गूणि बांदर
सुंगर सौला
करणा निरास
पकोड़ी न छकोड़ी
सिर्फ
बास ही बास
पहाड़ का लोगोँ तै ही
पहाड़
नि आन्दु रास .

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

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क गढ़वाली ननि लोक कथा ***पाणि कु पैसा पाणिम******

                डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 एक गूजर दूधिया दूर जंगळ बिटि बड़ी-बड़ी ठेकी दूध कि ल्यांदु अर गौं का नजदीक बाजार मा दूध बेची रोज वापिस चलि जांदू छौ.वैकि रोज कि दिनचर्या यही छै.पैलि-पैलि त ऊ दूध ठीक-ठाक ल्याई पण हर्बी गड़बड़ शुरू करि दे. गूजरों कु दूध खूब गाढु हूंदू छौ.वैन कुछ दिन मा ही दूध मा पाणि मिलाणु शुरू करि दे.पैलि कम अर बाद मा ठीक दुगुणा.अधा दूध अर अधा पाणि..बाजार का नजदीक गौं वल़ा द्यब्ता कि केर का वजह से दूध नि ब्यच्दा छाया..ये वास्त गूजर दूधिया अपणि मनमर्जी करदु छौ..दुकानदार अर हौरि दूध लीण वल़ा कबी कुछ ब्वल्दा बि पण वैपर क्वी फरक नि पड़ी.
            एक दिन दूध बेचिकी ऊ एक गदेरा का किनर दिशा-फरागत चलिगे.वैन फिर नाणि-धूणि बि करणि छै.अपण लारा-लत्ता,दूधकि खाली ठेकी अर रुपयों कि कुटरी एक ढुंगा का किनर पर धैरी दे.रुपयों कि कुटरी वैन अपणा लारों का पुटग लुकै दे. एक यक्वा बंदर डालि का टुख मा बैठ्युं सब द्यखणु छौ.जनि दूधिया फुंड गै ऊ भुयां ऐगे.वैन रूप्यों कि कुटरी निकाळी अर ढुंगा मा बैठि गे.कुटरी खोली कै वैन एक सिक्का ढुंगा मा अर एक गदेरा का पाणि मा खैति दे.बस ऊ इनु करदु गे.एक ढुंगा मा अर एक पाणि मा.सरि कुटरी खाली कैरि दे.इतगा मा दूधिया वापिस ऐगे.बांदर वै देखिकी फिर डाळी मा चलि गे.दूधियान जब देखि त वैकि खोपड़ी चकरे गे.ढुंग मा बैठिकी कपाळ मा हाथ धरि ऊ बाकी बच्यां रूप्या गिणन लगीगे.कई महीनों कि कमै कुटरी पर धरीं छै..गिणी कि वै पता चलि कि ठीक अधा रूप्या बांदर पाणि मा बोगै गे.ऊ बात समझी गे कि दूध का पैसा मैंम ऐगीं अर पाणि का पैसा पाणि मा बोगी गीं...ई संतोष कैरिकी वैन ठेकी पकड़ी अर अपणा बाटा लगी गे. अब हैंका दिन बिटि वैन दूध मा पाणि धरणु बंद करि दे.                           
                    डॉ नरेन्द्र गौनियाल.. सर्वाधिकार सुरक्षित  narendragauniyal@gmail.com

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एक गढ़वाळी ननि लोक कथा.*--***खिरबोज बरोबर आमु***

              डॉ नरेन्द्र गौनियाल

एकदा एक मन्खी अपणा गौं बिटि भौत दूर एक हैंका गौंमा ठुला बल्दों कि खोज मा गै.अषाढ़ का मैना  चड-चड़ो घाम मा हिटदा-हिटदा ऊ लपसे गे.रस्ता मा एक आमु कि डाळी छै.कुछ देर सुस्ताणा का बाना ऊ डाळी का छैल मा बैठि गे.आमु कि डाळी का समणी ही पुंगड़ी का ढीस खिरबोजा कि लगुली खूब फैलीं छै.लगुली पर खूब बड़ा-बड़ा खिरबोज लग्यां छाया.आमु कि डाळी पर बि खूब आमु का झुंटा लग्यां छाया.
           डाळी का छैल मूड़ बैठिकी ऊ स्वचा ण बैठिगे कि भगवान बि क्या च ?खिरबोजा का छवटा सा लगुला पर खूब बड़ा-बड़ा खिरबोज अर आमु कि इतगा बड़ी डाळी पर छ्वटा-छवटा आमु ? इनी स्वच्दा-स्वच्दा वैन डाळी का मूड़ झड्याँ पक्याँ द्वी-चार आमु टीपिकी ऊंतई चूसी अर अपणी भूख-तीस मिटे.आमु चुस्दा-चुस्दा वैन मन ही मन मा सोचि कि ''अहा ! खिरबोज बरोबर आमु हूंदा त कतगा मजा ऐ जांदू.''आमु चूसिकी ऊ डाळी पर अपणी पीठ लगैकी सुस्ताण बैठि गे.डाळी का छैल मा ठंडी-ठंडी हवा मा वै तै आनंद ऐगे अर थ्वड़ी देर मा ही ऊंघ ऐगे.
             अचणचक डाळी का टुख बिटि एक पक्यूं आमु झैड़ी की दडम वैका मुंड मा पड़ी..बरमंड मा जोर कि कटाग लगण से पैलि त ऊ अजक्ये गे.वैन सोचि कि यु क्य ह्वै.?कपाळी मा दम्म गुर्मुलू उपड़ी गे छौ.भुयां देखि त एक आमु कि बीं झडीं छै.वैन मुंड मा उप्ड़युं गुर्मुलू हाथन मलासी अर मन ही मन मा बोलि कि ,''हे भगवान !जुगराज रै.! तिन त भौत समझदारी करि.जु आमु का बियां बड़ा नि कारा.ये छ्वटो सि आमु का बियां से मेरि कपाळी फूटी गे छै.अर जु खिरबोज बरोबर आमु हूंदा त ,तब क्य हून्दो ?''इनि स्वच्दा-स्वच्दा मुंड मलस्दा-मलस्दा ऊ गौं का तरफ चलि गे.

                डॉ नरेद्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

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एक गढ़वाळी ननि कथा -***रैबार ****
           कथाकार-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

सानन्दी दीदी अपणा उर्ख्यळ मा बैठीं धान कुट्याणी छै.ब्यखुन्या कु टैम ,करीब ५ बजीं होलि.मि घुमदा-घुमदा ऊंका घार चलि गयुं.भौत दिनों बाद मि बि अपणा गौं मा गै छौ.बुढड़ी दीदी करीब चार बीसी से कुछ जादा उम्र कि होलि.धान कुट्याण मा पल्या ख्वाल़ा कि सन्ति दीदी मदद करणी छै.मिन दीदी तै सिवा लगे अर वींका ही समणी बैठि गयुं.पूछी कि ,''क्य हाल छन दीदी ?'' दीदीन बोलि ,''क्य हूण भूलू,ठीक छौं.''
         ऊंका नौना-ब्वारी अर नातीण सब दिल्ली मा छन.द्वी नातीणों कु ब्यो ह्वैगे.ऊ त कबी-कबी दादी का दगड़ गौं मा ऐ जांदा छाया,पण द्वी छवटी नतीण ऊ नि आंदा अर ना ही ऊंका ब्वे-बाब.बूडा दीदी तै नाती नि हूणा कु भारी दुःख दिल मा च.पण क्य कन.ना त वा ही दिल्ली जांदी अर ना ही लड़िक-ब्वारी गौं आंदा.बस यकुलो पराण..जनि-तनि दिन कटीणा छन.दीदी का जिकुड़ी मा एक सबसे बड़ो दुःख हौरि छा.वींकू छ्वटु नौनु अजीत अधकाळ मा ही दुन्य छोडि गे.दस साल पैलि सिर्फ २४ साला कि उम्र मा ही कैंसर से वैकि मौत ह्वैगे छै.तब बिटि दीदी कि जिंदगी मा क्वी हर्ष नि रैगे.बस जनु कि ढुंगु होलि..न दुःख न सुख,
           मिन पूछी,''दीदी, भैजी-बौजि तेरि खबर-सार लींदा छन कि न?त्वे द्यखणो किलै नि आंदा ?तू ऊंका दगड़ ही दिल्ली किलै नि जांदी ?बुढापा मा यख यखुली किलै रैंदी ? क्वी रन्त-रैबार ?  सूणिकि दीदी कु हस भरिकै ऐगे.आंख्यु मा पाणि ऐगे.अन्सधरी फून्जिकी दीदीन बोलि,''मि त अब कखि नि जण्या.सरि जिंदगी ये झ्वपडा मा काटी यालि.अब कख जाण.? लड़िक-ब्वारी नि आंदा त मिन क्य कन..जब तक मि छौं,ईं कूड़ी तै जग्व्ल्दी रौंलू.वैका बाद म्यार तरफ बिटि ज्या बि  हूंद. मि चांदु कि म्यार म्वरण पर म्यारू लड़िक गति-मति कैरिकी ठीक-ठाक क्रिया कर्म कैरि द्या.मेरि आत्मा तै शान्ति मिलि जालि.बस मि बाकी कुछ नि चांदु. भूलू हौरि न क्वी रन्त न क्वी रैबार.''

                  डॉ नरेन्द्र गौनियाल ....सर्वाधिकार सुरक्षित. narendragauniyal @gmail.com


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गढ़वाळी कविता ---****सासु अर ब्वारि ******

           कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

सासु अर ब्वारि कु यु कनु लाम च,
लड़णो-झगड्नो,न कुछ काम च.
हर दिन- हर रात ककड़ाट हुयूं रैंदा,
खंडिकी रोटी नि बँटीन्दी यूंतैयी.

सासु लगान्द छवीं अपणा नौना मा,
ब्वारि बैठीं रैंद  दूर तब एक कूण मा.
कनि काळ निरबै मैकू य लगी गया,
पंडजिन कुंडळी किलै इनि य मिसै.

बेटा घर तू जब कबी बि आंदी,
कनि भली तब तू ईंतई पांदी.
तेरि आणे  खबर जब य पांदा.
म्वरीं बीराळी जनि तब ह्वै जांदा.

घाम औण तक पट्ट सियीं रैंदा,
कनि फसोरिकी निंद अईं रैदा.
उठ ब्वारि उठ ये मि बुनू रैंदो,
चुला मा च्या धैरी छनुड़ा जांदू.

मेरो ब्वल्यां कु असर कुछ नि हून्दो,
क्य जि करूँ मि त ब्वे कखजि ज्वौंऊ.
चुलखंदा जब घाम पट पौंछि जांदा.
आंखि मिन्डीकी तब य उठी पांदा.

ग्वीलू कैरि छनुड़ा बिटि मि आन्दु.
सुण बेटा घर मा तब क्या पांदु.
अब त ब्वे मेरि ऐगे गाळ-गाळ.
इनी आफत अब तू अफु ही समाळ.

च्याऊ बणे अफु य सबि पेयी दींद,
च्यापती कितुलुन्द मैकू रैणि दींद.
कन कैकि रैण मिन अब ईं दगड़,
मेरि कुगत किलै य करणी रैंदा.

मिन बेटा किलै रे तू सैंती-पाळी.
अपणो दूध पिलै किलै तू बड़ो करी. 
मिन नि जाणि बेटा कबी यनु बि हूण.
अपणो भाग को मि अब सोचदू.

कैम बोलूँ यख त मेरो क्वी बि नीं च.
अपणो दुःख अब मी कैतेई सुनौऊ.
इनो बचण से त मी कुट मरी जौं,
सोचणू छौं अब मी कैई ढन्डी पड़ूं.

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता ...*****अग्यार ******
 
                    कवि - डॉ नरेन्द्र गौनियाल

गौं का पंदेरा मा
पैलि
रैंदी  छै
चहल-पहल
तुरतुर्या पाणि
कसेरी-गगरी
कठवळी-तम्वळी
लगीं रैंदी छै
एक हारि पर
ननि ननि भुली
खेल्दी छै बट्टा
नना नना भुला
खेलदा छा कंचा
नैं नैं ब्वारि
लगान्दी छै
मीठी-मीठी छवीं           
 झौडी काकी
 एक छ्वाड पर बैठि
लगान्दी छै
उन्का
अब सब कुछ
बदली गे
गौं-गौं मा
भितर-भैर
पाणि का नळ
न कैका बट्टा
न कैका कंचा
न कैकि छवीं
न कैका उन्का
अर न रैगे
अब
कैकि अग्यार..

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित.. narendragauniyal@gmail.com

 

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