Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32057 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

Our Senior Member Bhishma Kukreti Ji has collected this information about Dr Narendra Gauniyal.

Review of Garhwali poetry collection ‘Dheet; of Dr Narendra Gauniyal
About Dr Gauniyal
 
Dheet : The poems of Realism and Experiencing  (Review of Garhwali poetry collection ‘Dheet; of Dr Narendra Gauniyal)                        Bhishma Kukreti    Madan Duklan an eminent poet and critic of Garhwali poetry says that the work of Dr Narendra Gauniyal in Garhwali poetry ia equal to the works of Irish poets Spikes Milligan , C S Lewis, Seamus Heaney, Eamon Grennan , Evan Boland, Eileen Carney Hulme, James Joyce for making Irish poetry modern and taking the Irish poetry to the International level.  The works of Dr Narendra Gauniyal is the result of Dhad Poetry Movement in rural Garhwal and love for his motherland Garhwal. Gauniyal praises his motherland, a tender love. When the kind hearted poet experiences wrong happening from various agencies, groups or individuals dr Gauniyal expresses the pain through his modern styled poems.  Dr Narendra Gauniyal is born on 10 th November r 1964 in Jamandhar of Gujud patti of Pauri Garhwal. Narendra is medical practitioner by profession and he sings a kind of beauty that shows the realism of rural Garhwal and his own experiences about changing the human society from the angles of cultural, social, political human values . There is austere grace, simplicity in his poems. There is pathos in his poems when Gauniyal narrates History of earth and says through his poem Itihas that the kings or army men did not create history but the workmen farmers who dig the lands for agriculture and no historian is interested in searching their hardship and eagerness for creating new human civilization . Dheet poem is fantastic piece of poem of reality and philosophy and is about describing the ‘Desire ‘ (Dheet) . Pathran a symbolic poem wherein the poet shows the way normal human being forgets those who helped him the most and the helping hands are always in sacrificing mood. The readers will enjoy many other philosophical simple and easily understandable poems in this volume. The style, simple words used in such poems attract the readers and those poems are not just message providers flat poems but compel the readers for deep thinking on the subject of each poem.  Many poets described ‘the Mother’ but Dr Narendra describes the mother’s love and sacrifice differently and with modern style of verse creation.Many poems of Dr Gauniyal are against the discriminations for female child, women found in the past society and even today, these discriminations persist in the modern society.  Many poems deal directly with life and Gauniyal uses reality as symbols. The poet very much feels the pain of changed environment due to unnecessary disturbances to ecology by human beings ( badlendo mausam ar adhkachi khichadi)  There many small poems in this volume and dr Narendra Gauniyal is perfect in narrating bigger aspect through lowest numbers of words. This quality of explaining big issue in smallest possible words makes Dr Narendra Gauniyal an important signature in Garhwali poetic field . There are eighty poems of Dr Gauniyal in this volume and each poem has different aspect of life and different taste . The wording is very simple and understandable, The poet uses both type of symbols old and new as well. Many of his imagery poems are of class apart.  Most of his poem are of new school that is prose form but are full of tenderness and lyric taste Poets Lalit Keshwan, Kanhayalal Dandriyal, Baulya did put the foundation of realism and experimentation in Garhwali poetry and poets as Dr Narendra Gauniyal are able to expand the same legacy . Dheet (Poetry collection of Dr Narendra Gauniyal )Year of publication: January 2003 Dhad Prakashan, Connaught Place, Dehradun, Uttarakhand , India  Copyright @ Bhishma Kukreti
 
--


M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस पर ----
 
माँ मुझे क्षमा कर दे
मै अब वह नहीं हूँ
जिसे तूने नौ माह तक
अपने पेट में पाला
पैदा होने पर
प्रसव वेदना भूलकर
निहारते,सुखानुभूति करते
दूध से भरे स्तन हलक में निचोड़ देती
मैं अब वह नहीं हूँ
जिसे पालपोसकर बड़ा किया
घुटनों के बल चलना सिखाया
ऊँगली पकड़कर थाई दी
जिसके पैदा होने पर सुख
दूध पीने पर सुख
हुन्ग्रा देने पर सुख
बतियाने पर सुख
अन्न का ग्रास लेने पर सुख
मल-मूत्र विसर्जन पर सुख
सुनिंद सोने पर सुख
जिसके एक छींक आने पर तू
रत्जगी रहती
खुद भूखी-प्यासी रहकर
जिसे तूने अपने हाथ से
एक-एक ग्रास खिलाकर बड़ा किया
उसे अब
खाना खाते समय
तेरे मुंह से चप्प-चप्प
चाय की घूँट पीते हुए
सुडुक-सुडुक की आवाज
बहुत बुरी लगती है
जिसे तूने
बोलना-चलना सिखाया
दुनिया का भला-बुरा मार्ग दिखाया
उसे अब
तेरी भाषा-बोली
अच्छी नहीं लगती
जिसके बालपन में तूने
गू-मूत सबकुछ साफ़ किया
उसे आज
घिन आती है
तेरे खांसी -खंकार से .....

२--उसके कहने पर ***
उसके कहने पर
मैंने अपनी माँ से पूछ लिया
माँ ! तुम खाट पर
क्यों चुपचाप पड़ी रहती हो?
बुढ़ापे में
हाथ- पैर लूले हो जाते हैं
कुछ हिलडुल कर लिया करो
कुछ न सही
उसके घर आने तक
आता गूंद लिया करो
खाए-पिए के बर्तन सिंक में रख दिया करो
सर्फ़ में कपडे भिगोकर
थोडा-बहुत रगड़कर  छाल दिया करो
झाड़ू-पोंछा तो रोज लग सकता है
कभी -कभी
फर्श की धुलाई कर दिया करो
मेरी माँ ने
अन्दर से निकले आंसू
अन्दर ही रोक कर कहा -
बेटा ! इस  बात का सुख है कि
ये शब्द तेरे अपने नहीं हैं
किन्तु दुःख है कि
तेरे मुंह से निकले हैं
मैं तो
बिना कहे
इस से कहीं अधिक  करती हूँ
बुढ़ापा शरीर है
थक जाती हूँ
थोड़ी देर लेट जाती हूँ
इतने पर ही तख़्त पर
कांटे चुभने लगते हैं
जल्दी ही उठकर  बैठ जाती हूँ
बेटा ! तू चिंता मत कर
मैं खुद
अपने शरीर का ख्याल रखूंगी
पड़े- पड़े रहने के बजाय
घर का काम करती रहूंगी .............नरेंद्र गौनियाल
 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
एक रस्ता

 

कवि -- डा. नरेंद्र गौनियाल   

 

एक रस्ता ढुंगलण्या

जख मनखि

ठोकर खैकि

संभळि  जान्द

हैंकु -

चिफळू

जख खस्स रैडि  कै

मनिख खड्ड मा

पडि  जांद

Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal
narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                        बदलाव

कवि -- डा. नरेंद्र गौनियाल



आज से पैलि

घौर का द्वार पर

लिख्युं रैंदु छौ - स्वागतम !

आवा !

बैठा !

अब कूडि बणण से पैलि

सैन बोर्ड लगि जांद -

'कुकूरूं से सावधान '

'भितर आणु मना च '


     धीत - १
 

कवि -- डा. नरेंद्र गौनियाल   

 

 

हजारों साल पैलि

दुनिया अधीति छै

आजै तरौं   

मनिखऔ प्याट

तह पर तह लगीं छन

इच्छौं की

मन इच्छौं कु तहखाना च

एक गेड़  ख्वाला त

हैंकि इच्छा निकळ जांद

हूणा की 

खाणा की
 
पीणा की

जीणा की

आशा-लिप्सा की

जो न कबि भोरेंदी

न भोरेंणी 

हजारों साल पैल्या कि  तरौं

आज बी

कब्बि बी

 

Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal , Jadaaun khand , Pauri Garhwal
narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
     

आ दरख्तों के साये में बैठ जा ***

नरेन्द्र गौनियाल .....




खुद को मीनार न समझ तू ,ये ना समझ
ईमारत को भी जमीदोज होना है एक दिन ..

आसमां कि ऊंचाई को तू नापता है तो नाप ले
मगर पैर जमी से उठे तो गया काम   से ...

अपनी औकात को देख यादकर वो दिन
चिथडों और कुट रियून पर बसर हुई जब जिंदगी

ये जिंदगी का खेल जबतक खेलता है खेल ले
कुछ पता नहीं  कब क़यामत आएगी .

आज तूने जी लिया कल कि भी सोच ले 
जल जंगल जमीन जरुरी है जीने के लिए .

मत कर तैयार ये कंक्रीट के ऊंचे-ऊंचे शहर
जल-जले में एक दिन दबकर रह जायेगा ...

लौट चल तू जंगलों में ,आ.. दरख्तों  के साये में बैठजा
पलटकर आना ही होगा तुझे सुकून पाने के लिए .................................

Copyright@ .नरेन्द्र गौनियाल .....



***** दृष्टिकोण *****         
                                                                                           
                                                                                             
                       
                कोई फर्क नहीं पड़ता 
                                                             

  किसी को अच्छा या बुरा कहने भर से
कोई अच्छा-बुरा बन नहीं जाता कहने भर से
कोई चीज अच्छी-बुरी नहीं होती कहने भर से
इसके उलट कहने वाले के मनकी झलक मिलती है
प्रकट होती है कहने वाले कि सोच
प्रतिबिंबित होता है कहने वाले का दृष्टिकोण

मेरे लिए अच्छा
दूसरे के लिए बुरा हो सकता है
मेरे लिए बुरा
दूसरे के लिए अच्छा हो सकता है

मेरे कहने भर से
किसी व्यक्ति या वस्तु की
अच्छाई-बुराई पर
कोई अंतर नहीं पड़ता 
मेरा चाहना न चाहना
किसी को नहीं बदल सकता

जो जैसा है वैसा ही है
फिर किसी को
भला -बुरा कहने वाला 
किसी को बदलने वाला 
मैं कौन हूँ

हम बदलें
हमारी धारणा बदले
हमारा दृष्टिकोण बदले 
तो स्वयं
बदल सकती है
हमारी प्रतिक्रिया 
बदले नजर आ सकते हैं
हमें लोग .........................................


*******धीरे-धीरे *****


नीम का कडुवापन
मधुमेह रोगी को
अच्छा लगने लगता है धीरे-धीरे

अनाड़ी भी
गहरे तालाब में
तैरने लगता है धीरे -धीरे

अबोध बालक
स्वर-व्यंजन
बोलना,लिखना,पढना
सीखने लगता है धीरे-धीरे

सुबह का निस्तेज सूरज
तेजवान हो
तपने लगता है धीरे-धीरे

मिटटी में पड़ा बीज
सोया हुआ सा
उगकर
बढ़ने लगता है धीरे-धीरे

आसमान में तारे
दिन ढलने पर 
अँधेरे की दस्तक के साथ
झिलमिल करने लगते हैं धीरे-धीरे ....................

Copyright@ डा ० नरेन्द्र गौनियाल

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*******पर्धानपति*******

कविता : डॉ नरेन्द्र गौनियाल


बीडीसी बैठक माँ
गौं कि महिला प्रधान
मीटिंग हौल माँ
भितेर चली गे
गौं का वास्त
एक योजना को प्रस्ताव
बनी गे
बीडी ओ  न बोली -
भैन जी   !
ये कागज माँ
मोहर लगे द्या
 प्रधान जी न
अपनों  पर्स  टटोली
अर बोली -
भैजी!
कनि सुन्न पड़ी
आज त  मोहर
ऊंमाँ  ही रैगे........


*****वूंकी कूड़ी****

नयो -नयो चार्ज लियूं
पंचैत मंत्री
गौं माँ यैगे
गौं  का गल्या माँ
एक ग्वेर  तै वैन पूछि-
प्रधान जी को घार को छ   ?
ग्वैरन एक झालाक वैतई
मुंड बीटी खुटौ तक देखि
अर बोली -
इनु सम्झिणु
गौं माँ पैली बार अयान
उनु त गौं माँ
क्वीबी  बताई द्यालू
फिरबी मी  यै डिया दे दिंदु
पंचैत घर का नजीक
 जैक पिछ्न्या बिजली कु खम्भा
यैथर पाणी को नल
लैट्रिन -बाथरूम कि छत माँ
डिश एंटीना
अर पिछ्न्या क्वलन पर
खाली अध्या-पव्वों कि
थुपडी लगीं होलि
समझी लियां वी च
वूंकी कुड़ी ...................डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 

 

**********बसंत कि बयार ********

 

कवि -- डा. नरेंद्र गौनियाल   


बसंत कि बयार आज,वार-पार देखिल्या.
नया कुंपला नया फूल,वार-पार देखिल्या.
रंग-बिरंगी धरती या,रंग-बिरंगो आसमां.
रंग-बिरंगा मन्खी आज,वार-पार देखिल्या....बसंत कि बयार ..

डालि-बूटी सबी खिलिगिन ,ऐगे हर्याल भूमि माँ.
सुकिं डाली हैरी ह्वैगिन, नयी पाति ऐगेना .
आडू पयां निम्बू किम्पू ,सबी डाली  फूली गिना.
बसंती रंग माँ रंगी गिन सब्बि,ऋतू बसंत ऐगेना ..बसंत कि बयार ..

नस-नस माँ नयो खून ,नयो जोश ऐगेना .
नयो रंग नै उमंग ,अंग -अंग ऐगेना ..
सुख का बाद दुःख ,दुःख का बाद सुख .
यी रैबार लेकी यो,ऋतू बसंत ऐगेना ......बसंत कि..

बांस -रिन्गाले फूल कंडी,नौनी फूल टिप्दिना.
मोल-माटन लीपि पोती,फूल कंडी सज्दिना.
कमेड़ा कि बिंदी लगै ,नौन्याल फूल ख्यलदिना.
सुख-समृधि को रैबार लेकी,फूल सक्रांद ऐगेना....बसंत कि .

फूलो बुरांश फूलो ग्वीराल ,सीमल डाली फूली गैना.
टेशू का फूलों को रंग,ल्हेकी होलि ऐगेना...
खेलो होलि डालो रंग,भट औंगल डाली कि.
प्यार-प्रेम को रैबार,ल्हेकी होलि ऐगेना..................बसंत कि

 

Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal , Jadaaun khand , Pauri Garhwal
narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
इतिहास ***              (धीत-डा ० नरेन्द्र गौनियाल )     

ईं धरती को इतिहास
न कै रज्जा कु च
न कै ठाकुर कु
बल्कि ऊं बिचरौं कु च
जौन यूं डंडोंमाँ पैली-पैली बसागत कै
जौन खैंडीनि  बड़ा-बड़ा भेल-बंज वाड 
अर पहाड़े धरती अन्न उपजान लैक बनाए
जौन फुल्सक्रान्द की कल्पना करे
रचिनी थड्या-चौफुला
जौन बांस -रिंगाल,कंडी-सुप्पी,डालुनी की कला चलै
जू पहाड़ का लारा सिलदा ,ढोल बजान्दा अर चैत्वली गांदा छ
जौन ''बीरा भैनी अर सात भयों की  कथा " बनैनि
जौन ये पहाड़ ,गौं-गल्या -समाज अर लोक का बान
सरि जिंदगी त्याग करे
अफु भुक्की रेकी भूखों का गिचौं गफा डालीं
तस्गार सैकि बी जन- जन की सेवा करे   
जो न कखी किताब्यों माँ छन  न कथाओं माँ
ईं धरती की हर रचना
पुंगड़ी-पटली-गीत- कथा भाषा
सब ऊंको ही इतिहास च ...

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
मैबी औंदी ख़ित्त हैंसी


डा. नरेंद्र गौनियाल



हाँ किले ना
मैबी औंदी ख़ित्त हैंसी
देखि के
अपन मुल्कौ नेताओं तै
जू कटिना छन
कुक्कर सी 
सिर्फ  पद रुपी हड्गी बान

पैली ता बल हम सब एक छौं 
हाई कमान  की बात
सब्यों तै मंजूर
पण अब
एक हैंका टंगड़ी खींचना छन
बे शर्म ह्वै
अपनी पोल खोलना छन
कै एक तै क्य बुन
सब्बि एक थक्लुई का चट्टा -बट्टा छन
गिरगिट की तरह रंग बदली दिन्दीन
पशु की तरह अफु खवा
छिपोड़ा की तरह सर्र इनें सर्र फुनैं
काणा की सी नजर
गिद्ध सी झपटा-झपटी
गीदड़ जनि स्यल्बुधि 
इनी च या नेता जात 
हैका काम माँ माथि हाथ
कब्बी अलग कबी साथ
कब्बी भूकी कबी लात
कब्बी जीत कबी मात
कब्बी खीर कबी भात
जैको लगी हाथ वैकी
सपोड़ा-सपोड़
झपोड़ा-झपोड़
लपोड़ा -लपोड़

Copyright@ dr. Narendra Gauniyal


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
****सोच****
आदमी
आदमी से डरता है
वह मेरे लिए
बुरा सोचता है
वह मेरा
बुरा करता है
वह न रहे तो
मेरा दुःख भी न रहे

लेकिन वह नहीं तो
कोई और होगा
जिसे हम
अपने लिए
बाधक समझेंगे
यह हमारी सोच है
लेकिन यह नहीं सोचते
इसी तरह
हम भी किसी के
दुःख के कारण होंगे
किसी की प्रगति में
बाधक होंगे

कोई किसी का
बाधक नहीं
सब अपनी गति से
दौड़ रहे है

सबसे तेज गति वाला
सबसे आगे
मंद गति वाला
पीछे
जिसकी और मंद गति
वह और पीछे
जो गतिहीन है
वह जड़ है
जमीन में धंसे
पत्थर की तरह

जिसकी सामर्थ्य बड़ी
उसकी दौड़ लम्बी
जिसकी सामर्थ्य कम
उसकी दौड़ छोटी

कछुए ने
कभी नहीं सोचा
उसकी प्रगति में बाधक है
खरगोश
वह चलता गया
अपने संकल्प के साथ
अपनी सामर्थ्य से
और थक कर सोये
खरगोश से आगे
निकल जाता है
अपने गंतब्य तक ........................डा ०नरेन्द्र गौनियाल


     ****अतीत एक बुझी आग ****

अतीत
एक बुझी आग
राख का ढेर
स्मृतियों का घिम सान
(स्मृतियों की पोटली )
जो बीता
सो बीता
बीता समय
लौटता नहीं

अतीत की यादों में
नष्ट न हो
वर्तमान
आज की बलि
बीते कल के लिए क्यों !!?

जीना होगा
वर्तमान में
सता रही है
अतीत की तस्बीर
उसपर 
वर्तमान के चित्र
उकेरें
सुन्दर
मनभावन
अंतस्थल तक
समाने वाले .....................डा ०नरेंद्र गौनियाल

****सांझ की बेला आ गयी ****

सांझ की बेला
आ गयी
नीरवता का स्वर
सांय-सांय
घनीभूत
निरंतर

सूरज की किरणें
लुप्तप्राय
धैर्य के प्रतीक
ऊँचे-ऊँचे
पर्वत शिखरों पर
छाया काली-काली सी
लील करती जाती
प्रकाश किरणों को
शनै-शनै

सांझ की अंतिम किरण
डूबती सी
पर्वत श्रृंखला के
उस पार
लौट ते लोग सब
घर अपने -अपने
एक बेघर चिड़िया
बैठ डाल पर
भोर की पहली किरण की
प्रतीक्षा में
बसेरा पा गयी
सांझ की बेला आ गयी ......................डा ० नरेन्द्र गौनियाल

****पथरन****

बिना पथरन
रोटी नहीं बन पाती
किन्तु पथरन
तभी तक है जरूरी
जब तक
तोती नहीं पथी जाती
तवे में धरी नहीं जाती
रोटी पथने पर
पथरन
हो जाता है बेकार
झाड़ दिया जाता है
अच्छी तरह

मैं भी
पथरन
एक अल्पसंख्यक
जब तक काम ना बने
तब तक
बहुत जरूरी
काम बनने पर
गैर जरुरी
और तब
झाड़ दिया जाता हूँ
पथरन की तरह
अच्छी तरह

हर बार
मैं भी मजबूर
समाज रुपी
आटे की गोलियों पर
चिपकने के लिए

चिपक जाऊं
तो ठीक
खप जाता हूँ
किन्तु अस्तित्वहीन
झड़ जाता हूँ
तो
रल जाता हूँ
धूल के कणों के साथ
जमीन में पड़े
पथरन की तरह .....................डा० नरेन्द्र गौनियाल

****बसंत आ गया है ****

पतझड़ वाले
आडू-पयां के बृक्षोंपर
नयी कोंपल
आ गयी हैं
लक-दक फूल
खिल चुके हैं
नव जीवन
नव राग रंग
नयी उमंग
नयी तरंग
संग लेकर
बसंत आ गया है

तिड़ा हुआ मुंह
फटे हुए पैर
भयभीत करती
शीतलहर
दुखों के बाद
सुख का एहसास
नव जीवन
नव राग रंग
नयी उमंग
नयी तरंग
संग लेकर
बसंत आ गया है ..........................डा ० नरेन्द्र गौनियाल

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*******मैन नि जाणी*******

सोची छौ खिलला फूल ,सगोड़ी माँ मेरी
कांडों को बणलो जाल,यो मैन नि जाणी.

खुशियुन भरेली मेरी खुचिली,मेरी जिंदगी
दुर्दिन नि छोडला दगडू ,यो मैन नि जाणी .

लोग मानला सब्बि भलो ,मैतैं अपनों
क्वी घृणा बी कारलो ,मैन नि जाणी

देखा छाया बस अमीर ही दुनिया माँ अबतक
क्वी होलू मीन से बी गरीब, यो मैन नि जाणी ..

बरख्दा बादल सदनी ,सावन -भादौ का मौसम
पडलो  यख  सुखो बी, यो  मैन  नि  जाणी .

पशु चर्दन बस पेट भर्नों,  सिर्फ जीवित रैना को
मन्खी बी होला पशु सामान ,यो मैन नि जाणी .

धरम-करम सब देख याली दुनिया माँ अबतक
पाप की फंची इतना बड़ी, यो मैन नि जाणी .

देखिनी चिता जलदा,मुर्दों की ही अबतक
ज्युंदी जल्द मंख्यात बी,यो मैन नि जाणी .

बैठ्युं छौं प्रभु ये ही सोच माँ ,अब्बी तक
मन्खी बी होलो रागस ,यो मैन नि जाणी ..................डॉ नरेन्द्र गौनियाल


******रूड़******

रूड़ ऐगे सरासर-सरासर
रिटदू मन्खी फराफर-फराफर

सुक्की गैनी सब्बि नवला -छोया
गाद-गडनी  बी  बिस्गी  गैनी
नल्खा-मलखा ,चुका पट्ट
लोग बिचारा तिसला रैनी   
लगुली सूखे डाली फुके
गर्मी पस्यो तरातर

द्यबरा-बखरा बछरू गोर
जीभ चटना ओर-पोर
भैंसी को हुयुं डुंडाट
रीति तौली फून्जी-चाटी
गगरी -बंठा रीता-सूखा
धारू नि रै गरागर

घाम कपलि माँ चट्ग्दु
प्राण छैल खुन भटगदू
सर्ग दीदा पाणी-पाणी
चोली मन की कैन जाणी
आग भभकी डांडी-काठियुं
धुआं रोली धार- धार 

जीवों की ह्वै भात्य भंग   
डालियुं को उडी गे रंग
डांडी-कांठी खरड -पट्ट
प्राण सूखी ग्यायी पट्ट
एक पोली खून बिस्गी
चोली की ह्वै म्वराम्वर

रूड़ यैगे सरासर
मन्खी रिटदू  फराफर ....................डॉ नरेन्द्र गौनियाल       

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22