Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 145252 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

Satire and its Characteristics, Ramayana Stories व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
                     वाल्मीकि अर हौर रामायणो मा हौंस -व्यंग्य

-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग  18      )

                         भीष्म कुकरेती
-
 हाँ उन त वाल्मीकि रामायण एक गम्भीर महाकाव्य च अर सैत  च वैबगत  ऋषि कम ही हास्य -व्यंग्य कृति रचदा रै होला।  पण कथा माँ हौंस -व्यंग्य अफिक बि ऐ जांद।
वाल्मीकि रामयाण रचना काल का हास्य -व्यंग्य संस्कृति अर आजका व्यंग्य संस्कृति मा भौत अंतर च तो हम वाल्मीकि रामयण का भौत सा हास्य अर व्यंग्य तैं समजी नि सकदा।  फिर भी खुजनेरुंन कुछ न कुछ ख्वाज च।
मंथरा -कैकेयी सम्बाद मा मंथरा द्वारा कैकेयी की उलाहना वाल्मीकि रामयण मा व्यंग्यौ  सबसे बडो उदाहरण च। 
जे. के . त्रिखान  ( A Study of Ramayana (1981, Bharti Vidya Bhawan )  वाल्मीकि द्वारा मन्थरा कैकेयी सम्बाद, शूर्पणखा लक्ष्मण संवाद , शूर्पणखा -रावण सम्बाद आदि खण्डों माँ हास्य व्यंग्य का खोजपूर्ण विवरण दे  .
पी ऐस  सुब्रमण्य  शास्त्री न बि A Critical Study of Valmiki Ramayana  माँ हास्य -व्यंग्य बहुत सा उदाहरण देन अर ल्याख बल 'त्वद्विधानां', अपूर्वी , भार्यया शब्दों तै शिल्ष्ट अलंकार प्रयोग से हास्य व्यंग्य पैदा करे गे (पृष्ठ 28 ) 
हौर भाषाओं मा वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामायण ग्रन्थों मा  त हास्य व्यंग्य भौत मिल्दो।  तुलसीकृत रामचरित मानस , आदि रामायणों मा  हास्य -व्यंग्य मिळद च।
Paula Richman की Ramayana Stories in Modern South India (2008 ) मा रामायण कथाओं मा हास्य व्यंग्य का क्षणों वर्णन मिल्दो।
पण्डित राधेश्याम कथावाचक कृत रामलीला हेतु रचीं रामायण मा  तो दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो।
गुणानन्द पथिक की गढ़वाली रामलीला मा  बि दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो।
रामायण विषयी गढ़वाली विडीओओं  मा बि  दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो।
 
23 / 1 /2017  Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire in Ramayana ; definition of Satire; Verbal Aggression Satire in Ramayana ;  Words, forms Irony in Ramayana , Types Satire in Ramayana  ;  Games of Satire in Ramayana  ; Theories of Satire in Ramayana ; Classical Satire in Ramayana ; Censoring Satire  in Ramayana ; Aim of Satire  in Ramayana; Satire and Culture , Rituals in Ramayana
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   



Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Satire and its Characteristics, Upnishad , व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र

               उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य  -1

    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग -19      )

                         भीष्म कुकरेती

                     उपनिषद याने मनोविज्ञान की छ्वीं।  याने धर्मै छ्वीं।  याने बड़ो गम्भीर साहित्य।  उन बि भारत माँ धार्मिक आख्यानों मा हौंस -व्यंग्य कमि मिल्दो।  पण आखिर उपनिषद बि मनिखों की इ रचना छन  तो उपनिषदों मा  बि कथ्या जगा हौंस -व्यंग्य मिल्द च।
छान्दोगेय उपनिषद मा 'जबला पुत्र सत्यकाम ' कथा तो असली व्यंग्य च।  सत्यकाम गुरुकुल जाण चाणों छू तो वैन अपण माँ तै अपण गोत्र पूछ।  ब्वे न बताई बल वा तो युवावस्था म  परिचारिणी थै अर तबी वीं सणि सत्यकाम प्राप्त ह्वे।  अतः जाब्ला तै पता नी छू कि वींको पुत्रो असली गोत्र क्या छौ।  सत्यकाम जब गुरुकुल पौंछ त वैन गुरु तै अपण गोत्र नि बताई अर सीढ़ी सच्ची बात बथै दे तो गुरुन बोली बल इन स्पष्ट भाषण क्वी ब्राह्मण पुत्र नि दे सकुद , गुरुन सत्यकाम तै पढाणो जगा चार सौ कमजोर , मरतणया  गौड़ चराणो  भेजी  दे।  सत्यकामन प्रण ले बल जब तलक १००० गौड़ नि ह्वे जाल वैन बौण ही रौण। जंगळ मा सत्यकाम तै सांड , अग्नि , हंस , मद्गुनन सत्यकाम तै ज्ञान दे।  जब वो गुरु का पास ऐ तो गुरुन वी चार ज्ञान देन , फिर वै तै गुरु की जगा   अग्न्युन ज्ञान दे।
  या कथा वास्तव सामाजिक परिवेश पर बि व्यंग्य च और जात पांत पर व्यंग्य का साथ साथ यो बि बथान्द कि ज्ञान का वास्ता गुरु से अधिक प्रकृति कामयाव गुरु च।  अपरोक्ष रूप से अब्राह्मण शिष्य तै पढाण मा आनाकानी एक व्यंग्य ही च।  (chhandogey Upnishad 4.4 to 4.9

24 / 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire Upnishad; definition of Satire; Verbal Aggression Satire; Upnishad,  Words, forms Irony, Types Satire  Upnishad;  Games of Satire Upnishad ; Theories of Satire  Upnishad ; Classical Satire  Upnishad ; Censoring Satire; Aim of Satire; Satire and Culture , Upnishad  , Rituals ,Upnishad
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

Satire and its Characteristics, Satire and humor in Upnishad व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
                 उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य -2
-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 20   )

                         भीष्म कुकरेती
-


                     उपनिषदुं  तै आम लोक धार्मिक ग्रन्थ मन्दन पर  उपनिषद विशुद्ध मनोविज्ञान कु विज्ञानं छन। इनम हौंस -व्यंग्य मुश्किल से मिल्दैन।  किन्तु छान्दोगेय उपनिषद (1 :12 ) मा  व्यंग्य उफरिक आयुं च ( S .C . Sen , The Mystic Philosophy of Upnishads, page 45 ) । ये अध्याय मा शौव उद्गीथ सिद्धांत समझाणो बान रचयिता कुत्तों उदाहरण दीन्दो।  एक ऋषि ग्लावs समिण कुछ कुत्ता ( ऋषि ) आंदन अर एक सफेद कुत्ता से भोजन की अपेक्षा करदन।   सफेद कुत्ता ऊँ कुत्तों से सुबेर आणो बुल्दो।  दुसर दिन वो अलौकिक कुत्ता एक हैंकॉक पूँछ  अपण मुख पूटुक लेकि इनि आंदन जन वैदिक ऋषि जुलुस माँ आंदन।  अर ऊँ सब्युन हिंकार ('हि ' स्तोभ ) शुरू कार अर सब बुलण लगिन , हम भोजन , जलपान का इच्छुक छंवां   ... हम तै अन्न द्यावो , अन्न द्यावो  ... "  ये खण्ड मा वैदिक ऋषियों को लालच पर सचमुच माँ एक व्यंग्य च अर ऋषि कुत्तों की योनि वास्तव माँ ऋषियों द्वारा कुत्ता जन व्यवहार पर व्यंग्य ही च। ये सन्दर्भ मा John Oman  ( Natural and Supernatural पृष्ठ 490 ) छान्दोगेय   उपनिषद का उदाहरण दीन्दो अर बथान्द बल भौत सा  ऋषि बगैर अर्थ समझ्यां वैदिक ऋचा जोर जोर से बखणा रौंदन   अर यो बात उपनिषद  मा व्यंग्य शैली से बुले गे ।
S .C Sen बथान्दन बल बृहद अरणायक उपनिषद  (अश्वपति आख्यान अध्याय ) मा पशु बलि की भर्त्सना वास्तव मा व्यंग्य रूप से करे गे  अर उपनिषदनिक व्यंग्य को सर्वोत्तम उदाहरण च। 
A .B . Keithन ( The Relgion and Philosophy of Veda and Upnishads ) बि वेद अर उपनिषदुं मा व्यंग्य का उदाहरण पेश करिन।


-


26/ 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire; Upnishad definition of Satire; Upnishad Verbal Aggression Satire;  Upnishad  forms Irony, Types Satire;  Upnishad Games of Satire; Theories of Satire; upnishad Classical Satire; Censoring Satire; Aim of Satire; Satire and Culture , Rituals व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   


Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Satire and its Characteristics, Bhagvad  Geeta व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
श्रीमद भगवद  गीता मा व्यंग्य झलक
-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग -21    )

                         भीष्म कुकरेती
-

                   श्रीमद भगवद गीता क्वी धार्मिक पुस्तक नी च अपितु साँख्य योग याने Auto Suggestion की अभ्यास दर्शन च।  इनि अष्टवक्र की महागीता बि स्वयं सम्मोहन  याने  Auto Suggestion दर्शन या अनुभव च।  हिन्दू और मुसलमानों दुयुं तै गलतफहमी च।  हिन्दू -सनातन  धर्म से या कर्मकांडी धर्म से द्वी गीताऊँ कुछ लीण -दीण नी च। 
        साँख्य योग याने Auto Suggestion की अभ्यास दर्शन चजब त गीता मा हौंस -चबोड़ की कम ही गुञ्जैस च।  चूँकि गीता एक मनोविज्ञान की पुटक च तो इखमा मनोविज्ञान का हिसाबन ही वार्तालाप च।
सबसे पैलो अध्याय मा दुर्योधन बुल्दु बल पांडव सेना महावीर भीम से रक्षित च तो यो अफिक ही एक व्यंग्य च।  युद्ध से पािल क्वी बि सिपाही या रणनीतिकार कै सिपाही या सेनापति तै परमवीर चक्र जन पदवी नि दीन्दो।  किन्तु दुर्योधनन भीम तै जताई कि कुरुक्षेत्र युद्ध भीम द्वारा जिते सक्यांद याने भीम हीरो च।  किन्तु असलियत मा क्या ह्वे ? कुरुक्षेत्र का असली हीरो अर्जुन सिद्ध ह्वे ना कि भीम।

कृष्ण अधिकतर अर्जुन तै कै ना कै विश्लेषण युक्त नाम से जन कि पार्थ , कुंतीपुत्र , शेरपुरुष , भरतश्रेष्ठ , पाण्डुपुत्र , कौरववंशी , पांडव , आदि नाम से भट्यांदन अर भौत सी जगा मा अर्जुन तै मानसिक रूप से अळग  चढांदन अर फिर अग्वाड़ीs पंकत्युं मा  अर्जुन का अहम पर चोट करिक अर्जुन का मानमर्दन करदन अर यही तो व्यंग्यकार करदो।
 दुसर अध्यायम एक जगा मा अर्जुन युद्ध नि करणै बात करदो तो कृष्ण अर्जुन पर व्यंग्य करदन बल तेरो शरीर क्षत्रिय को च , तेरो ब्यापार क्षत्रिय को च अर तू पण्डित या बामणु जन छवी लगाणु छै ? या उक्ति व्यंग्य को आछो उदाहरण च। 
स्वामी चिन्मयानन्द जीन बि अपण गीता टीका ( The Bhgvad Geeta अध्याय 4 पृष्ठ 88 -89 ) मा गीता मा व्यंग्य की झलक सिद्ध कार अर ब्वाल कि गीता (चौथा अध्याय श्लोक संख्या 41 आदि ) मा कृष्णन कटु व्यंग्य प्रयोग कारिक अर्जुन तै झपोड़।
इनि ए. पार्थसारथी अपण भगवद गीता ग्रन्थ (44 वां भाग ) मा सिद्ध करदन बल गीता मा महर्षि व्यासनं ऊँ लोगों (ऋषि , पण्डित ) पर व्यंग्य कर जु सिरफ नाम का वास्ता तपः आदि का प्रयोग करदन या जनूनी ढंग से पूजा पाठ  करदन या धोखा दीणो बान पूजा करदन 

-


29 / 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire  Bhagvad  Geeta; definition of Satire; Verbal Aggression Satire   Bhagvad  Geeta;  Words, forms Irony, Types Satire Bhagvad  Geeta ;  Games of Satire  Bhagvad  Geeta; Theories of Satire Bhagvad  Geeta  Bhagvad  Geeta; Classical Satire Bhagvad  Geeta ; Censoring Satire Bhagvad  Geeta ; Aim of Satire Bhagvad  Geeta; Satire and Culture  Bhagvad  Geeta, Rituals
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   




Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

Satire and its Characteristics, Panchtantra, व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
पँचतन्त्र मा हास्य व्यंग्य
-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग -  22  )

                         भीष्म कुकरेती
-

पण्डित विष्णु शर्माs  रच्यूं कथा खौळ (संग्रह ) पँचतन्त्र आज भी उपयोगी च , लाभकारी च अर प्रासंगिक च।  कथा चूँकि शिक्षा दीणो रचे गै थै त इखमा निखालिश व्यंग्य की गुञ्जैस कमी च।
फिर बि पँचतन्त्र मा व्यंग्यक झलक झळकां मिलदी च।  दंभ , मिथ्याभिमान, लोलुपता , नारी दगड़ विश्वासघात आदि जन व्याख्यानों में कम ही सै व्यंग्य तो छैं इ च (सत्यपाल चुग , 1968 , प्रेमचन्दत्तरो उपन्यासों की शिल्पविधि ). 
Leonard Feinberg न अपण ग्रन्थ  'Asian Laughter  (पेज 426 ) मा पँचतन्त्र का कथाओं मा हास्य व्यंग्य ढूंढ।Leonard Feinberg का हिसाब से संसार तै जानवरों आँख से दिखण अपण आप मा व्यंग्य च अर जानवरों चरित्र से मनिखों मनोविज्ञान व्याख्या करण बि एक तरां को व्यंग्य ही च।
पँचतन्त्र माँ सूक्ष्म हास्य या व्यंग्य च अर वो  झळकां ही च (Meena Khorana , 1991 , The Indian subcontinent in literature for children and Young) 
Mathew Johan Hodgart अपणी किताब  Die Satire ( पृष्ठ 127  मा )लिखदन कि पँचतन्त्र या अन्य पुरणी कथाओं मा कथा उद्देश्य अपणा आप मा व्यंग्य च अर  फिर जानवरों द्वारा कथा तै जीवन्त बणये जाण बि त व्यंग्य को एक रूप च।   
सम्मेलन पत्रिका  19 77 माँ बि इनि बोले गे बल पँचतन्त्र मा अपरोक्ष रूप से व्यंग्य मिल्दो जखमा एक पात्र अर्जुन तरां संशय से भर्यूं रौंद अर दुसर चर्तित्र कृष्ण तरां उपदेश दीन्दो वास्तव मा यु सुकराती आइरोनी च।

पँचतन्त्र मा चरित्रों नाम गुण बि बथान्दन अर यो भि व्यंग्य को एक भाग च।  यही शील गढ़वाली नाटक का शिरमौर भवानी दत्त थपलियालनन अपण द्वी नाटकों मा बि अपणाइ।  नाम से हास्य व्यंग्य पैदा करण एक व्यंग्य  शैली च 





-


4/ 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire;Panchtantra,  definition of Satire; Verbal Aggression Satire;Panchtantra,  Words, forms Irony,Panchtantra, Types Satire; Panchtantra, Games of Satire; Panchtantra,Theories of Satire; Panchtantra,Classical Satire; Censoring Satire;Panchtantra, Aim of Satire; Satire and Culture ,Panchtantra, Rituals, Panchtantra,
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   



Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Satire and its Characteristics, Satire and Humor in Kalidas Literature ,  कालिदास साहित्य में हास्य -व्यंग्य,  व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
                कालिदास साहित्य मा हास्य -व्यंग्य
-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 23    )

                         भीष्म कुकरेती
-
महाकवि कालिदास संस्कृत का नाटक शिरमौर छन। ऊंको महाकव्य , गीतों में प्रतीकों से सटीक बिम्ब बणदन, कालिदासन शास्त्रीय शैली अपणाइ।  कालिदास का नाटकुं माँ चरित्र अपण पद अर जाती का हिसाबन व्यवहार करदन तो  कालिदास का नाटकुं माँ     
हास्य -व्यंग्य करणो काम विदूषक  /भांड करदन।  किन्तु विदूषक  का हास्य बि परिष्कृत हास्य व्यंग्य च। बलदेव प्रसाद उपाध्याय (संस्कृत साहित्य का इतिहास , 1965 , शारदा मन्दिर प्रकाशन ) लिखदन बल  कालिदास का कवितौं माँ हास्य व्यंग्य पर्याप्त मात्रा माँ च और उंका नाटकुं मा वीम का सिर बि दर्शकों तैं हंसाण मं कामयाब च , हास्य च तो व्यंग्य बि ऐई जांद।   गोविंदराम शर्मा (संस्कृत साहित्य की प्रमुख प्रवर्तियाँ, 1969  ) लिखदन की कालिदास का हास्य प्रयोजन बि श्रृंगार कारस का अनुकूल च।.
                      जे  . तिलकऋषिन अपण एक लेख ' THE IMAGES OF WIT AND HUOUR IN KALIDAS'S AND SUDRKA'S DRAMAS ' मा  कालिदास अर शूद्रक का नाटकों माँ व्यंग्य की पूरी छानबीन अर व्याख्या कार। कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम का रूपान्तरकार विराजन बि कालिदास कृत ये नाटकम हास्य व्यंग्य का कथगा इ उदाहरण देन।
अनन्तराम मिश्र 'अनन्त ' अपण ग्रन्थ 'कालिदास  साहित्य और रीति काव्य परम्परा (लोकवाणी संस्थान , 2007 , पृष्ठ 297 ) मा लिखदन बल 'हास्य -व्यंग्य क्षेत्र में रीतिकवि कालिदास से अधिक सफल हैं। यद्यपि कालिदास ने नाटकों में विदूषक के माध्यम से हास्य रस उद्भावना के  विभिन्न प्रयास किये हैं तथापि उनमे हास् भाव रीतिकाव्य के जैसे स्फुट और विशद नही हैं ' ।
सुषमा कुलश्रेष्ठ (कालिदास साहित्य एवं संगीत कला, 1988  ) मा बथान्दन बल कालिदास साहित्य मा हास्य भरपूर च (भरत कु नाट्य शास्त्र माँ    हास्य माँ ही व्यंग्य समाहित च ) . 
कालिदास का विदूषक अंक  मा हास्य व्यंग्य पैदा करणो बाण कालिदासन अलंकार , उपमाओं को बढ़िया प्रयोग कर्यूं च। विदूषक की भाषा में अपभ्रंश व प्राकृत शब्दावली प्रयोग हुयुं च।

विक्रमोर्वशीय का तिसरो अंक मा विदूषक का भोजन की कल्पना व्यंग्य को बहुत सुंदर उदाहरण च जब भोजन व चिन्नी  -मीठा प्रेमी प्रिय  विदूषक ' चिन्नी ' की याद  माँ चन्द्रमा की  तुलना  चिन्नी -पिंड से करद (ही ही भो खांडमोदासस्सिरियो उदीदो रा। ... )   ।
'मालविकागणिमित्र' मा बि विदूषक का हाव भाव व वार्तालाप हास्य -व्यंग्य पैदा करद ( तिलकऋषि)
शकुंतलम (दुसर अंक ) मा बि विदूषक का भाव भंगिमा , वार्ता से हास्य व्यंग्य पैदा हूंद। विदूषक का वार्तालाप शब्द अर मच्छीमार का शब्द सामयिक प्रशासन अर समाज पर व्यंग्य  पैदा करदन। 
कालिदास का सभी नाटकों में हास्य व्यंग्य उतपति का वास्ता विदूषक ही मुख्य चरित्र च। कालिदास का नाटकुं मा मुख्यतया   उपमा अलंकार का प्रयोग हास्य -व्यंग्य उत्पन करद।   


-


/ 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire; definition of Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Verbal Aggression Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature,  Words, forms Irony, Satire and Humor in Kalidas Literature, Types Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature,  Games of Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Theories of Satire;Satire and Humor in Kalidas Literature,  Classical Satire; Censoring Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Aim of Satire; Satire and Culture , Rituals, Satire and Humor in Kalidas Literature,
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   
Satire and Humor in Kalidas Literature ,  कालिदास साहित्य में हास्य -व्यंग्य,


Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Satire and its Characteristics, Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,  व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
-
  शूद्रक का विदूषक याने हिंदी फिल्मों  का महमूद , ओम प्रकाश शर्मा का  कैप्टन हमीद
                      (संस्कृत नाटकुं मा हास्य व्यंग्य ) 
-


    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 24   )

                         भीष्म कुकरेती
-

 शूद्रक नामी गिरामी प्राचीन भारतीय नाटकोंकारों  मादे एक प्रमुख  नाटककार माने जान्दन। शूद्रक एक राजा व नाट्यलेखक छ्या (सुकुमार भट्टाचार्यजी  , विश्वनाथ बनर्जी ) । यद्यपि शुकध्रक की जीवनी बाराम भ्रान्ति ही च। 
शूद्रक का रच्यां मृच्छकटिकम , वासवदत्ता  अदि तीन नाटक माने जान्दन।
 शूद्रकन बि अपण नाटकुं  मा कालिदासौ तरां हास्य अर व्यंग्य उत्पति करणो बान विदूषक को सहारा ले।  कालिदास का या अन्य प्राचीन संस्कृत  नाटकुं विदूषक जख मन्द बुद्धि , लालची , खाउ हून्दन तो शूद्रक का मृच्छिकटिकम का विदूषक राजा का सहचर , अनुशासनयुक्त , अफु पर काबु  करण वळ अर चतुर च।  हाँ वाक्पटुता अर अलंकार प्रयोग दुइ प्रकार का विदुषकुं चारित्रिक गुण छन।  शूद्रक की या विदूषक चरित्र की परिपाटी  हिंदी फिल्मुं  मा सन 1970 तक राइ तो  ओम  प्रकाश शर्मा  सरीखा हिंदी जासूसी उपन्यासकारों न बि अपणै।
   
 मृच्छकटिकम कु पंचों  अंक मा वसन्तसेना द्वारा ब्राह्मण  चारुदत्त तै भोजन दीणम उदासीनता का प्रति मैत्रेय नामौ विदूषक कसैली , कांटेदार , कड़क टिप्पणी  उपमा अलंकार या कहावतों से करद -
--------------"बगैर जलड़ो कमल , ठगी  नि करण वळु बणिया , सुनार जु चोरी नि कारो ,  बगैर  घ्याळ -घपरोळ  की ग्रामसभा की बैठक  , अर लोभहीन गणिका मुश्किल से ही ईं मिल्दन। " -----
पंचों अंक मा विदूषक चारुदत्त तै हास्य व्यंग्य रूप मा सलाह दीन्दो -
--------"गणिका जुत्त पुटुक अटक्यूं गारो च जैतै भैर निकाळण  बि मुश्किल ही हूंद "  -----
मृच्छकटिकम नाटक का खलनायक च शकारा अर वैक  दोस्त च विट जैक नौकर च चेत। यी चरित्र अलग अलग बोली -भाषा वळ छन अर  प्राकृत याने स्थानीय भाषा प्रयोग करदन ।  (तिलकऋषि )
शूद्रकन प्राकृत अर संस्कृत का प्रयोग हास्य -व्यंग्य उत्तपन करणो बड़ो बढ़िया प्रयोग कौर।  मृच्छकटिकम मा कल्पना, उपमा  अर मुहावरों मिळवाक्  से तीखा व्यंग्य करे गे।

शूद्रक की शैली अनुसार ही हिंदी मा महमूद , जॉनी वाकर जन हास्य कलाकारुं से काम लिए गे तो जासूसी उपन्यासकार ओम प्रकाश शर्मा का कैप्टन हामिद बरबस शूद्रक रचित मृच्छकटिकम  का मैत्रेय चरित्र की याद  दिलांद।



-
8 / 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire; definition of Satire; Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,Verbal Aggression Satire; Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire, Words, forms Irony, Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,Types Satire;  Games of Satire; Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,Theories of Satire; Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,Classical Satire; Censoring Satire; Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,Aim of Satire; Satire and Culture , Rituals
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; (संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य )  व्यंग्य क्यों।; (संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य )व्यंग्य  प्रकार ; (संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य ) व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , (संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य )व्यंग्य विधा या शैली ,(संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य ) व्यंग्य क्या कला है ? (संस्कृत नाटकों में  हास्य व्यंग्य )   




Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया.

व्यंग्य - नरेंद्र कठैत


गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया.
कट्यां दूबलै धौंणि मा कुर्सी डाळी वून बोली- क्य रख्यूं ये पाड़ मा?
हमुन् पूछी- क्य नी ये पाड़ मा।
वून एक किनारा थूकी जबाब दे- अजि कुछ नै है।
-हमुन् अगनै तौंकी टोन मा बोली- कुछ क्या नै है इस पाड़ में? क्य सांस लेणू को खुली हवा नै है? छोया-मंगरों को ठण्डु पाणि नै है? माटै कि साफ सुथरी गन्ध नै है? गौं-गौळा नजीक है। आस-पड़ोस, आबत-मित्र है। याँ से बक्कि क्य चैये?
-अजि हवा, पाणि, माटा ही सब्बि धणी नै होता । जिन्नगी बढ़ाणे के लिए हौरि धाणि बि चैये। असली चीज है रुजगार। वो तो है ही नै ।
-किसनै बोला रुजगार नै है?
-काँ है तब?
-क्य नैपाळि अर् बिहारि पाड ़मा तमाखू खैणी चबाणै आता है। सि बि त् रुजगार करता है। खाता है, कमाता है, बच्यूं-खुच्यूं नेपाळ, बिहार भिज्ता है।
-सि त् मिनत मजूूर है।
-हम बि त् भैर मिनत मजूर है। होटलू मा भाण्डा मंजाता है। य पहरा पर डण्डा बजाता है। साब लोग त् इणती-गिणती का है। पर ये बोलो कि खाणे-कमाणे को बि सगोर चए।
-अजि सगोर तबि त् हैगा जब कुछ रस्ता रैगा। बिना रस्ता का सगोर को काँ पैटाओगे।
-अच्छा जेे बताओ संकराचार्य जीले बदरीनाथ अर् केदारनाथ जाके कै करा?
-कन कै करा? उन नै धरम को मजबूत करा। धरम का पाड़ा सिखाया।
-पर ये त् नै बोला था कि भगवान के ऐथर जो रुप्यों कि थुपड़ि दे, वे सणी अगनै गाडो। अमीर अलग अर् गरीब अलग लैन में लगावो।
-तब अमीर अर् गरीब की लैन किनै लगाई?
-रूजगार नै। अर् जरा इन बि बताओ, क्य भगवान के नौ पर होटल ढ़ाबा संकराचार्य जीन् खोला?
-तब वो होटल ढ़ाबा किनै खोला?
-रुजगार ने।
-सूणों ज्यां-ज्यां से सड़क बदरीनाथ, केदारनाथ जाते है वां सि लेके भगवान तक करोड़ो को रुजगार होते हंै। अब त् भगवान जी कु परसाद बिदेसूं बि जाते है।
-कन क्वे?
-रुजगार से।
-अजि ये काम सबका बस का नै है?
-किनै का नै है?
-हमारा बस का त् नै है।
-बस जे ही तो बात है कि पाड़ आधा त् करम कना का बाद बि सरम से नै खाता है। अर् आधा करम से नै धरम सि जादा खाते है।
-पर पाड़ में सब्बि धाण्यूं कि सुबिधा नै है।
-जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे तिस दिन बि तुमनें इन्नी बोला था कि पाड़ में सुबिधा नै है। पर सैर मा ऐ के तुमनें क्य फरकाया। सैर मा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया। साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक गौं बिटि मेटि-माटि सैर में लाया। अल्लू तुमनंे गौं मा बि थींचा अर् सैर मा बि थींचता है। गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया। अब तुमी जबाब देवो तुमनें सैर में क्य फरकाया?
-भै नौनो को पढ़ाया लिखाया रुजगार लगाया।
-नौनौ को पढ़ाया! क्य पढ़ाया? ऐ बोलो तोता जन रटाया अर् कबोतर जन उड़ाया। नौना तुमारि भोणी छोड़ी दुन्ये भगलोणी मा ग्याया। तुमुन् तो सर्रा जिन्नगी दौड़ लगाया, हाय तोबा मचाया, अर् आखिरी दां क्य कमाया? खप-खप्प जिकुड़ा पर बलगम का कुटेरा।
-पर भुल्ला !गौं मा अबि बि सब्यता नै है। जंगलीपना है।
-भैजी! जाँ तक सब्यता का बात है तो सब्यता तो तुमनंे बि जम्मा नै सीखा। बोलो कैसे?
-कैसे?
-बुरू तो नै माणेगा।
-नै-न !
- अपड़ि फेमिली का बिलौज बिटाळ के कन्धौं तक लिजाणा सब्यता तो नै है। अर् जाँ तक जंगल को सवाल है। चला माण गये गौं मा जंगली लोग रैता है। पर जंगल छोड़ के सैर मा एके बगीचा त् तुमनें बि नै लगाया। हियाँ स्याम-सुबेर तुम दुबलू छंट्याता है। गौं उजाड़ कै सैर लाया, अब दुयूंकि निखाणी कैके काँ जैंगे।
तौंने बोला- दिल्ली, डेरादूण जैगैं।
झूठ क्यांे कु बुलणा है, सि गये हैं। पर आज बि तख अगर तौं दुन्या के चैबाटे में छौळ लगता है तो पुजाणे घौर आता है। भैजी! सात धारों को पाणि त् हमनंे बि पबित्रर माणा है अर् स्यो हमको खप बि जाता है। पर ताँ से अगनै खरण्यां पाणि पर तो जम्मा बि बरकत नै है। अब अगर सि आता है तो कोई चिन्ता नै है...... तिनके उपर का परोख्या पाणि हमनंे अबि तक समाळी रखा है।
(अड़ोस-पड़ोस -व्यंग्य संग्रह)



Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
अनुज ‘घंजीर’ के ‘व्यंग्य का नंग’ प्रसंग पर ‘नंग’ का रंग ढ़ग
-
Garhwali Satire by Narendra Kathait
-
‘नंग’, सीधु हमारु ‘अंग’ नी, अंगौ ‘अंग’ च।
‘दंत्वी’ हद, खबड़ा तक अर ‘नंग्वी’ अंग्ळ्यूं का ‘पोर्यूं’ तक। ब्वनो मतबल यो च कि दाँत अर नंग, द्वी इन्नी चीज छन, जु हद से जादा बढ़ीं, कुस्वाणि लग्दन्। खबडा नंग्येकि, भैर अयां दाँत, कख छा भला। अंग्ळ्यूं कि पोर्यूं सि ऐथर बढ़्यां नंगै बि इज्जत नि रै जांदि। पर याँ मा खबड़ा अर अंग्ळ्यूं तैं दोष देणु ठीक नी। थुड़ा टोका-टाकि कैकि त् दांत खबड़ा भित्र, टप्प टुपरे जंदन्। पर नंग्वा, नाक मा त् सरम नौ कि क्वी चीज छयीं नी।
नंगू, एक हि रोणू च कि मनखी तौं तैं अंगुळों का ऐथर नि बढ़्ण देंदन्। पर अंगुळौं पर नंगू इन्नौ इल्जाम लगौणु, हम तैं जमि नी। किलैकि हम त् अपड़ि आँख्यूंन् द्यखणा छां कि अंग्ळ्यूंन् त् तौंकु तैं, कै दौं बोल यालि कि जा, जख तक तुमारि मर्जि औणि, बढ़ ल्या। पर कै काम औण तनु बढ़यूं? नंग ऐथर त् बढ़ जंदन् पर बढ़ी तैं न त् तौं पैथरै सुद्ध-बुद्ध रौंदि अर् न् ऐथर तौंकि क्वी पूछ होंदि। क्वी सुद्दि थुड़ि बोलगि कि ‘हद से जादा, क्वी बि चीज कख छै भलि? टंगड़ि उथगि तलक फैलावा, जथगा तलके चदरी मिलीं’। कै गरन्थ मा इन बि पढ़ण मा ऐ- ‘स्थान भ्रष्टा न शोभन्ति-दंता, केशा, नखा’।
बढ़्यां नंग्वी, हरकत देखी, कै बार, अंगुळा गरम ह्वे् जंदन्। गरम होणै बात बि छयिं च। क्य अंगुळौंन्, इन्नै-उन्नै नि फरकुणू? य अंगुळौंन्, काम धंधा नि कन्नू। नंग्वी इन्नी हरकत देखी, एक दिन, एक अंगुळू, अपड़ा बरोबर पर खड़ा, हैंका अंगुळा मा गरम ह्वेकि ब्वनो छौ कि ‘भैजी! यूं बढ़्यां नंगून् त् हमारि नाक मा दम्म कर्यालि। एक दिन, जरा बग्त निकाळा दि! सब्बि मिलि-जुली करा छुट्टि। गंदगी, देखा दि! छिः लोळा निरभागि! आखिर... य दिक्कत, हम मद्दि कै एकै त् छ नी, परेसनी सब्यूं तैं च उठौण प्वड़णि। न क्वी चीज अंक्वे कैकि पकडे़णी न् अंक्वे कैकि खयेंणी। यूंका चक्कर मा अपड़ि बि नहेंणी-धुयेंणी नी होणी। उल्टाँ ऐंच वळों कि टुक्वे हमतैं खाण प्वड़दि’।
इथगा सूणी तैं, हैंका अंगुळौ जबाब छौ कि ‘दिदा! त्यरु ब्वनो बिल्कुल सै च! यूं बढ़्यां नंगून्, हमतैं सदानि टुक्वे खलायि। हमारा बचपना मा बि जब यि हद से ऐथर बढ़्यां रैनी त् हमारि ब्वे भग्यनिन्, सयाणौं कि गाळि खैनी। सब्यूंन् हमारि ब्वे खुण्यूं बोलि कि ‘स्या लापबाह च हमारि परबरिस पर ध्यान नी देणी’।
थुड़ा बड़ा होण पर हम बड़ौं कि टुक्वे खाणा छां कि ‘कैन हमतैं तमीज सिखलायि नी’। यूं बढ़्यां, नंग्वी त्...ऐसी-तैसी’। पर झूठी बात! अपड़ा बढ़्यां नंग्वी, ऐसी-तैसी, क्वी नि कर्दू। बढ़्या नंगू तैं मनखी, देखी भाळि कटदू। कै बार, बड़ा पिरेम भौ से मनखी, अपड़ा दांतून् बि नंगू कुतुर्नु रौंदु। नंगू तैं पता च अपड़ा नंगू दगड़ा जोर-जबरदस्ती क्वी नी कर्दू। हम बि पता च कि ‘नंग’, सीधु हमारु ‘अंग’ नी, अंगौ ‘अंग’ च। नंगै त पिड़ा पचायीं च पर जै अंगौ नंग समाळ्यूं च वे पर त् पिड़ा छैं च।
वुन त् नंगू तैं, हद से अगनै बढ़ी तैं मिलि बि क्या? इन त् छ नी कि अंगुठा वळा नंगै इज्जत, बढ़ी तैं करअंगुळा नंग से जादा ह्वे ग्ये होवु। य बड़ि अंगळ्या मुंड मा, कैन हीरा-मोत्यूं कु मुकुट धार दे होवु। य बढ़ी तैं क्वी नंग, सीधा स्वर्ग चल ग्ये होवु। बढ़्यां नग्वी इज्जत बि तब हि तक च जब तक तौंकि पकड़ अंगळ्यूं का मासा तक च। मासा से ऐथर बढ़्यां नंगू मा, मासौ तैं पिरेम-भौ नि रै जांदु। न तौं मा दया धरम, नौ कि क्वी चीज बचीं रै जांदि। पर नंग इन कबि नि स्वच्दन, कि तौंकि मुखड़ि मा ‘चलकैस’ बि तब हि तलक च जब तलक सि मासा पर चिपक्यां छन। मासू छोड़ी नंगू मा रूखूपन्न ऐ जांदु।
बढ़्यां नंग्वी, सकल बि ‘क्याप’ ह्वे जांदि। वुन् त् सरसुती, कैकि सकल सूरत पर जादा ध्यान नी देंदी। सरसुती त लगन अर् मेनत पर जादा बिस्वास कर्दि। पर बढ़्यां नंगू से त् कलम बि अंक्वे नि पकड़ेंदि। अर् बिगर कलम पकड़्यां त् कुछ होण्यां नी। जब कुछ पढ़्ल्या, कुछ लिखल्या, तबि त् भाषा सिखल्या। यिं बात तैं न् सि समझ्दन्, न् तौंकि समझ मा औंदि। सुद्दि मोळा सि माद्यो! इलै सरसुत्या नजीक रैकि बि नंगून्, ‘बुगदरा’ देणा अलौ, कुछ नि सीखी।
बढ़्यां नंगू तैं कथगा बि समळंनै कोसिस कर ल्या धौं, सि फिर्बि कक्खि न् कक्खि जरुर ‘बिल्क’ जंदन। बिल्कणा बाद य बात पक्की च कि बिलक्यूं नंग, कै न् कैकु नुकसान जरूर करलु य नुकसान न् सै त् अपड़ि मोण तुड़वैकि जरुर लालु।
कै योगि अजक्याल इना बि छन, जु नंग्वा ‘मुंड’ लड़ौण सिखौणा छन। अपड़ा नंग्वा, आपस मा मुंड लड़ौंदु, एका योगि तैं हमुन् पूछि- ‘योगि जी! नंग्वा बारा मा कुछ बतलावा’? वेन् जबाब दे- ‘तंदुरुस्त रौण चाणा छयां त् खाली बग्त मा अपड़ा नंग रगड़ा’। हमुन् अगनै पूछि- ‘नंग रगड़ि-रगड़ी त् झड़ जाला’। योगिन् बोली- ‘भुला! क्वी बात नी, एक दौं का नंग झड़ जाला त् हैंकि दौं का जम जाला’। ताँ पर हमतैं ब्वन् प्वड़ि- ‘पर आखिर कथगा दौं आला, नंग त् रगड़ि-रगड़ी हरेक दौं झड़दि जाला’। योगि जीन्, बात समाळि- ‘अच्छा इन बता, दांत कथगा ‘भै’ छन’? हमुन् जबाब दे- ‘बत्तीस’।
हमारा ‘बत्तीस’ ब्वन पर योगि जी कु ब्वल्यूं सुण्ण मा ऐ- ‘बत्तीस न भुला! दाँत, कुल-कुलांत, द्वी भै छन’। ‘हे राँ! अब वू जमानू अब कख रयूं, जब सब्बि भै मिली-जुली रौंदा छयां। अब त् भै बिगळेकि सोरा, जख देखा ओडै-ओडा। जब तक एक भै सांस लेणू रौंदु, वेका धोरा-धरम हैकू नि औंदु। दंत्वा मामला मा बि इन्नी च, जब एक टूट जांदु, तब हैंकु औंदु। द्वी दांत अगर, एक हि जगा मा ऐ ग्या त् तौं मद्दि एका तैं तोड़्ण प्वड़दू’। हमुन् पूछि- ‘अर नंग’? वून जबाब दे- ‘भुला! नंग सात भै छन’। हम अगनै पुछूण चाणा छया कि वू सात भयूं मद्दि तुमुन् कथगा द्यख्नी? पर ऐन मौका हमारि बुद्धििन् हमारु हाथ पैथर खैंच दे। हम रुक ग्यां। किलैकि वू बोल सक्दा छया कि एक दौं अपड़ा नंग रगड़ी टुटुण त् द्या।
नंग्वी कमी छुपौणू तैं दुन्या, नंगू पर लाल, गुलाबी पौलिस बि कर्दि। पर पौलिस कैकि, सकल सुधरि ह्वलि, आदत सुधुर्दू त् हमुन् कैकि नि देखी। भ्वर्यां दरबार मा त् कालीदासा जबाब ‘इसारौं’ मा पढ़ै ग्येनि। पर इसारौं का, सारा-भरोंसा पर त् जिंदगी चल्दि नि। क्वी मानुु चा नि मानु य बात बि हमारि, खूब कैकि अजमयीं च कि एक न् एक दिन त् बात खुली ही जांदि। क्य कालीदासौ पता बिद्योतमा तैं बाद मा नि चलि? हम त् साफ अर् सीधी बात जणदाँ कि नंग अंगुठाऽ मुंड मा खड़ो होवु चा करअंगुळ्या चुफ्फा मत्थि, नंग द्यख्येणा छ््वटा-बड़ा ह्वे सक्दन् पर संत-मात्मा तौं मद्दि क्वी नि।
य बात बि क्वी सुद्दि नि बोल ग्ये ह्वलू कि नंगून् बगदौर्यूं घौ, बिस्सै जांदु। घौ पर बग्त पर ध्यान नि द्या त् कीड़ा गिजबिजाण बैठ जंदन्। पर इथगा त् हम बि द्यख्णा छां कि नंगू पर बुद्धि नौ कि बि क्वी चीज नी। भुज्जी, खाण गिच्चन् च पर नंग पैलि पर्वाण बण जंदन्। लौकि, ग्वदड़ि अर भट्टै त् नंग्वा ऐथर सामत हि अयिं रौंदि। लौकि, ग्वदड़ि अर भट्टा, कुंगळा होवुन् चा बुढ़्या, नंगै मर्जि सि जख चावुन् तौं पर गंज, गंजाक मार देंदन।
एक दिन, नंग्वी सतायिं-पितायिं, एक बुढ़्या लौक्यू’ ब्वल्यूं हमुन् इन सूणी ‘भुली! पैलि हम समझ्दा छा कि दाँत हि हमारा सबसि बड़ा दुस्मन छन। पर यूं नंगुन् त् म्वन से पैलि, हमारु जीणू हराम कर्यालि। घौर होवु चा बौण, गंज, गंजाक मार देणान। ये अन्यो द्यख्ण वळु क्वी नी। परमेसुरा बि झणि किलै, आँखा बुज्यां छन’। यीं बात पर ग्वदड़िन्, चक्रबिरधि ब्याजौ सि छौंका ढेाळी बोलि- डंक मन वळौं का दाँत नि हुंदन् दीदी!
लोेग यि बि ब्वल्दन् कि ‘नंग’ अर ‘बाळ’, चैबाटौं मा पुजणा काम अंौंदन्। कुजाणि भै! हमुन् त् यि देखी कि नंग अर बाळ तैं एका-हैका सि क्वी मतबल छयीं नि। म्वर्दू-म्वरदू तक न त् बाळ अपड़ि जगा बिटि जरा बि हिटदु अर न् नंग इन्नै-उन्नै ठस्कुदु। बाळ अर नंग एका-हैकै दुख-तकलीफ मा बि सामिल नि हुंदन्। द्वी खाणा-प्येणा, अफ्वी मा मस्त रौंदन्। जब बच्यां मा दुयूं का यि हाल छन त् मुर्यां मा यि चैबाटा पुजणा काम, कनक्वे ऐ जंदन्’?
बढ़्यां नंग, खून खतरी बि कर्दन। यीं बातौ पता हमतैं, एक दौं, इंत्यान देंद दौं, तब चली जब तै इंत्यान मा हमतैं सवाल पूछै ग्ये छौ कि ‘काळा डांडा रैंदु छौं, लाल पाणि प्येंदु छौं, नंगना सहर मा मरेंदु छौं, बता दौं, कु छौं’? ये सवालो जबाब देण मा हमतैं एक घंटा त् अपड़ो कपाळ खज्योण पर लगी। पर जबाब बि कपाळ खज्यांैद-खज्यांैद तब मिली, जब तख बिटि कैन जबाब दे- ‘अरे! टपरौणु क्य छयि? म्यरु नौ लेख ली दि’। हमुन् सुरक पूछि- ‘तू कु छयि’? वेन जबाब दे- ‘अरे कु त् वु छवूं, किस्मतौ म्वर्यूं, जँू छवूं भयि’! इनै, इंत्यान मा ‘जँू’ लेखी, जनि हमारु एक लम्बर पक्कू ह्वे, नंगून् भैर खैंची, वो जँू कचमोड़ दे।
हे लोळा नंगू....! कब आलि तुम पर सुबुद्धि्?
(नंग- व्यंग्य संग्रह - नाराज नि हुयां)
Copyright@ Narendra Kathait

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

दूधौ पराण
Satire by Narendra Kathait

दूधौ पराण त् वे दिन हि खट्टू ह्वे ग्ये छौ जै दिन ‘दै’ जमौणू रख्येे.’
दूधै हमेसा कुगत ह्वे। ‘दूध’ सांजी ‘दै ’ जमी, दै कि छाँछ छुळे त् ‘नौण’ निकळि। नौण फूकी ‘घ्यू’ बणी। चट्वा लोग्वा बीच घ्यू कु स्वाद फैली त् घ्यू कि कीमत बढ़ी । तैं बढ़ीं कीमतन् दूधौ स्वाद दब्ये दे। पर अज्यूं तलक बि, कै माई का लालन् इन नि बोली, कि तै ‘घ्यू’ पर ‘दूधै’ कीमत बि दौं पर लगीं छ।
भैजी! दूधौ पराण त् वे दिनी खट्टू ह्वे ग्ये छौ जै दिन ‘दै’ जमाणू रख्येे। पर जमीं दै तैं बि मनखी कतोळी झणि क्य खुजाण चाणू छौ। दै पर्या उन्द खणेकि मन्खिन् रौड्यू बोली- ढूंढ ? तंैन उल्टां फरकी पूछी- क्य ढुंढ़ुण? पर बिना बतलयां मनखी रौड़ि तैं बार-बार गुर्त्याणू रै- ‘ढूंढ़! ढूंढ़!’ वा पुछणी राई- ‘क्य ढुढु़ण?’ बिचारि पर्या उन्द मनख्या हथू पर नच्दि रैगी। पर हंैंकै कांधिं मा बन्दूक रखी मनखी तैं क्य मिलुण छौ। आखिर दौं मन्खिन् थकी हारी सुसकरा भरि आवाज निकाळी- ‘छाँछ’ छुळेगी।
पर्या उन्द निरभै खट्टा पाण्या बीच नौ रखणू क्वी चीज निकळी त् मन्खिन नौ रखी ‘नौण’। छाँछ छुळदि दौं मनखी अगर ताकतै जगा दिमाग बि लगान्दु, त् ह्वे सक्दू छौ, नौ रतन न् सै त् द्वी-चार कौड़ी जरुर निकळ्दि। पर सब्यून् बोली नौण बरोबर क्वी चीज नी।
कुछ टैम तलक नौणौ बोलबाला रै। पर नौणै चिफलैस जादा दिन नि चली। जब मनखी तैं नौण सि बिगळछाण ह्वे त् वेन नौण भवसागर मा तपौण सुरु कर दे। हमुन् क्य सब्यून् देखी तपौन्द दौं नौण पर चिफलैसा तिड़का उठणा-दबणा रैनी पर आखिर दौंनौण पिघळि हि छ। पर नौणै चिफलैस प्येकि ज्वा चीज निकळी वा दिखण लैक छै। इनू बहुरुप्या मन्खिन् अज्यूं तलक नि देखी छौ। मौसम देखी तैन सकल बदळ्न सुरू कर दे। गरम देखी पिघळ जावु अर ठण्डा देखी जम जावू। जन्कि गंगा दगड़ा गंगादास अर् जमुना दगड़ा जमुनादास। मनखी यीं चीजो जन-कन नौ नि रखण चाणू छौ। खोळा-खोळौं ‘कमोळी’ पर नचैकि मन्खिन् पुछुण सुरु करी- भयूं! बता धौं क्य नौ रखला? जैन बि तारिफ सूणी वेनी बोली- माण ग्यां ब्यट्टा! येन प्ये ब्वेकु दूध। नौ पड़ी ‘घ्यू’।
अब चर्रि तिरपां घ्यू कि चराचरी छै। जरा-जरा करी सब्यूं पर घ्यू कि संगतौ असर प्वड़ण बैठी। जु पैली एक गफ्फा खाणू छौ वू र्वट्टि चबौण बैठी। जु र्वट्टि खाणू छौ वु कुण्डी चट कन बैठी। कुठार- कुन्नों की बरकत हर्चिगी। जु घुण्या अन्न पौन-पंक्ष्यूं कु छुट्यूं रौन्दु छौ, वे अन्न मनखी उकरी लौण बैठी। मन्खिन् घ्यूकि भगलोणिम् ‘गळा-गळा तक अन्न ठूंसी अन्नै असन्द गाड़ दे’। पर प्वटगि भ्वरेणा बाद बि मनखी ‘धीत’ नि भ्वरे।
जै मनखी पैली दूध प्येकि छाळि बाच छै वु गरगुरू रौण बैठी। कामा थुपड़ों का ऐंच कुम्भकरण सियां दिखेण लग गेनी। राबण अपणा जूँगो पर घ्यू कि मालिस कर्दू दिख्येे। मनखी घ्यू सूँघैकि अपड़ा पित्रू सान्त कन बैठी। मन्खिन् ‘द्यू’ सि लेकी ‘धुपणा’ तक घ्यू घुसै दे।
अब सब्बि कागजू पर घ्यू बैठ्यंू दिख्येन्दु। योजनो मा घ्यू टपकुदू। दै की जलड़यूं उंद मट्ठा डाळी घ्यू ‘नेता’ बण गी। किताब्यूं मा घ्यून् आखर लिखण सुरु कर यालिन। आज जख देखा घ्यू कि चराचरी छ। घ्यू डाॅंगधर, घ्यू इंजीनैर, घ्यू प्रधान, घ्यू सौकार, घ्यू ठिकादार, घ्यू गुरु, घ्यू चेला।
‘लछमी’ घ्यू का कब्जा मा छ अर् ‘दूध’ बिधवा पिन्सन पर गुजारु चलाणी छ। पर हे लोळा करमकोढ़ी घ्यू! दूध नि होन्द त् तू कख बिटि होन्दि।
कोख्यू दुःख दर्द अज्यूं तलक बि कैन नि पछाणि।



Copyright@ Narendra Kathait

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22