Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 143859 times)

Bhishma Kukreti

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गौं
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(गढ़वाली भाषा की शब्द सम्पदा से गांव की तस्वीर)
Villages from Garhwali language vocbullary
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By Narendra Kathait
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गौं फकत एक जगौ नौ नी होंदू। धारा-पन्द्यारा, ओडा-भीटा, उखड़ी -सेरा अर मल्ली-तल्ली सारौ नौ बि गौं नी होंदू। गौं सि पैली जंै चीजौ नौ सबसि पैली औंदू, वो क्वी न क्वी एक मवासू होंदू। वो मवासू तैं जगा मा अपड़ि मौ बणौंदू। फेर वीं मौ की द्वी मौ, द्वी का तीन, तीनै छै, छै कि नौ अर इनि कयि मवासूं कु एक गौं ह्वे जांदू। पर कुल मिलैकि सौ कि नौ , जब मौ च त तब गौं । निथ्र बिगर मौ कु न क्वी गौं ह्वे सक्दू अर न बिगर गौं कि क्वी मौ। मौ बढ़दि-बढ़दि जब कै मौ कु तैं वे गौं मा घस्ण-बस्णू तैं जगा नी रै जांदि त वा मौ कैं हैंकि जगा बसागतौ चल जांदि। वीं जगा मा वा मौ बि एका द्वी, द्वी का चार, चारा-आठ अर देख्द-देख्द एक हैंकु नयू गौं बसै देंदि। अर इनि होंद-कर्द अपड़ि मौ बणौणू क्वी बि मवासू एक गौं लांघी हैंका गौं, एक पट्टी बिटि हैंकि पट्टी अर पट्यूं बिटि परगनौं तक सर्कि-सर्की अपड़ि झोळी -तुमड़ी, अपड़ि बोल चाल, अर अपड़ा रिति-रिवाज बि उकरी ली जांदि।
गौं मा मौ नौ छन चा सौ, सबसि पैली यि पूछे जांदू - क्या च गौं कु नौ? यि जरुरी नी कि कै गौं कु नौ, कै मौ का नौ पर ह्वलु! गौं कु नौ किरमोळी, पुरमुसी, भुतनीसि बि ह्वे सक्दू। ‘रैं गौं’ का नजीक जैकि हमुन एका मनखी तैं पूछी- भैजी ये गौं कु नौ ‘रैं गौं’ किलै प्वड़ि? वेन जबाब दे- भुला! हमारु क्वी पुराणू बल, ए गौं मा ऐ छौ, वेकु यख मन लगी अर वू इक्खि रै बस ग्या। इक्खि रै बस ग्या त गौं कु नौ बि ‘रैं गौं’ प्वड़ ग्या।
खैर यिं बात तैं हम बि मणदां कि बिगर बातौ कै बि गौं कु नौ नी प्वड़ि। ब्वेन जोड़ी त गौं कु नौ बैंज्वड़ि, ब्वेन गोड़ी त बैंग्वड़ि, उज्याड़ खयेगि त उज्याड़ि। इन्नि घिंडवड़ा, सुंगुरगदन्या, मरच्वड़ा, कंडी गौं, कुखुड़ गौं, मसण गौं का नौ मा बि कुछ न कुछ जरूर ह्वलू। अलग-बगला कुछ गौं का नौ त भै- भयूं का सि लग्दन। जन्कि कोट-कोटसड़ा, घुन्न्ना-पसीणा, सीकू-भैंस्वड़ा । यूं गौं अर वूंका नौ का बीच खूनौ सि रिस्ता लग्दू। कयि गौं मा त मौ, नौ छन चा सौ, गौं कु नौ हि रख दिंदन- नौ गौं। सैद, इनि क्वी पट्टी-परगना नी जख एक ना एक गौं कु नौ ‘नौ गौं’ नी। पर सब्बि गौं, ‘नौ गौं’ नीन्।
पैली बाटा फुण्ड क्वी बि पूछ देंदू छौ- भुला कै गौं कु? फट जबाब तयार रौंदू छौ- फलाणा गौं कु। ये जबाब देण पर हैंकु जरुरी सि सवाल पूछै जांदू छौ - कैं मौ कु? यु बि मुख जुबानी सि याद रौंदू छौ - फलाणी मौं कु। इथगा ब्वन पर पुछुण वळै आँख्यूं मा वीं मौ अर वे गौं कि सर्रा तस्वीर सि गर्र घूम जांदि छै। फेर त ब्वन बचल्योणौ एक तार सि जुड़ जांदू छौ । चा वू पुछुण वळू कख्यो बि, किलै नी रै हो। जन्कि, अरे! इना सुणा दि वे गौं कु त वू बि त छौ। अजक्याळ वू कख ह्वलू?
गौं मा जु कुछ बि छौ वो सौब कैदा मा बन्ध्यूं छौ। कैदा सि भैर क्वी नी जांदम छौ। गौं कि सीमा मा कानून त कबि-कबार औंदू छौ। एक न एक छुटा नौनै किलकार्यू नौ गौं छौ। गौं मा एक नागरजा, एक नरसिंग, एक देब्यू थान होंदू छौ। एक औजी मौ, एक ल्वार मौ बि जरुर होंदू छौ। सजड़ाऽ उंद भ्वर्यूं तमाखू क्वी भेद-भौ नि कर्दू छौ। द्यब्तौं छोड़ि ‘आदेस’ देणै बि क्वी हिकमत नी कर्दू छौ। क्वी कैकु गाक नी छौ। हर क्वी अपड़ा काम मा सल्ली अर अपड़ि मरज्यू मालिक छौ। बक्त पर मौ मदद अर धै कु नौ बि गौं छौ। गौं का नजीक बजारै जगा झपन्याळू बौण छौ।
गौं मा क्वी खास अपड़ा छौ चा नी छौ पर गौं कु लाटू-कालू बि अपड़ा छौ। गौं मा खेती पाती समाळ्नू तैं बल्दी बल्द नी होंदा छा। घर गिरस्थ्या काम मा हाथ बंटौणू तैं गोर- बखरा बि होंदा छा। गौं मा एक द्वी हळ्या, एक द्वी ग्वेर, एक द्वी गितेर, एक द्वी मरखोड्या सांड, एक द्वी गळया बळद, एक आत बोड़, द्वी चार बाछी, दस-बीस गौड़ी, पन्द्रा-बीस भैंसा, एक द्वी लेंडी कुकुर अर एक आत खदोळा कुकुर त होंदै होंदा छा। पर गौं मा बारा मौ अर कुकुर अठारा कबि नी ह्वेनि। या बि क्वी कम बात नी छै । एक बात हौर, उड्यार अर खन्द्वार बिटि च्यूंण वळा पाण्या धारौ तैं ‘पणधारु’ ब्वल्ये जांद। पर पंद्यारु एक इनि चीज च जु गौं का बीच साफ पाणी छळकौंदू नजर औंदू छौ।
गौं कि किस्मत मा झणी कना गरुड़ रिटनी कि लोगुन मौ बणौणू तैं गौं छोड़ देनी। मौ बण गेनी पर लोग गौं तब बि नी ऐनी। कुछ अज्यूं बि घंघतोळ मा छन कि गौं मा रौं कि नी रौं। पर इन क्वी नी ब्वनू कि चा कुछ बि ह्वे जौ मी गौं छोड़ी नी जौं। पैली बड़ी मौ जाणी फेर वीं मौ का पैथर छुटी मौ। कै बि गौं मा मौ एक छै चा सौ, पर गौं मा क्वी न क्वी त छैं छौ। अब त एक-एक कैकि खाली ह्वे ग्येनि, गौं का गौं।
एक दिन हमारा गौं कि एक मौ कु सबसि दानू मनखी भाभर मा बखरौं चरौंद मिल ग्या। रमारुम्या बादा हमुन पूछी -भैजी! क्य अपड़ा गौं याद नी औणू? वेन जबाब दे- अरे भुला! अपड़ा गौं कै तैं याद नी औलू? एक दौं गौं जाणू पैटी बि छौं पर अधबाटा मा जैकि लौट ग्यों। हमुन पूछी- अधबाटा मा जैकी किलै लौट्यां? वेन बोली- किलै त वूलै लौट्यों अरे! घंघतोळ मा प्वड़ ग्यों कि गौं जौं कि नी जौं? हमुन फेर पूछी- तुम घंघतोळ मा किलै प्वड़यां? दानन् बोली- ब्यटा! एक तिरपां ‘कूंडी’ छौ अर हैंकि तिरपां ‘पाबौ’। घंघतोळ मा प्वड़ ग्यों कि पैली कूंड़ी जौं कि पाबौ? कूंडी मा द्यब्तौ थान अर पाबौ मा रजौ दरबार लग्यूं रौंदू छौ। पैली कूंडी जांदू त रजा नरक्ये जांदू अर पैली पाबौ जांदू त द्यब्तौ असगार खांदू। इलै अधबाटा मा जैकी बि लौट ग्यों।
हमुन् बोली- भैजी! अब न रजा रयूं न द्यब्तौ कि डौर-भौर। चुचैं! अब त ऐ ल्या धौं अपड़ा गौं ।

Copyright@ Narendra Kathait


Bhishma Kukreti

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बीड़ी
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Garhwali Satire by Narendra Kathait
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इन पक्कू नि बतलै सकदाँ कि ‘हुक्का अर् चीलम’ से पैली बीड़ी छै कि नी छै। पर हुक्का अर चिलामिन् बि बीड़्यू क्य बिगाड़ दे? आज बि हुक्का अर चीलाम्या दबदबा बीच बीड़्यू रुतबा कम नी ह्वे। बीड़ी, गरीब-अमीर हर कैकि, करबट मा बैठ जांदि। बीड़ी तैं कामचोर, बग्त कटणू हत्यार बणांैदन्। पर ठुकरयां अर लाचार लोग ब्वल्दन् कि बीड़्या सारा पर लम्बी रात बि कटे जांदि।
सुदामा प्रसाद पे्रमी जी, बीड़ी नौ कि एक कबिता मा लेख्दन ‘जुुगराज रयां तुम मेरी बीड़्यूं, तुमन सैरी रात कटैनी! एक का बाद हैंकि फंूकी, अपणा मन का भाव जगेनी’! पर बीड़्या भरोंसा पर अपड़ा मना भाव हर क्वी नि जगै सक्दु। अपड़ा मना भाव जगौणू तैं बीड़ी तैं समझुणू जरुरी च।
दुन्या मा, द्वी मनखी बि एक जना कख छन? हिन्दुवों देखा त् बडि़ जाति-छुटी जाति, मुसळमनू मा सिया-सुन्नी, सिखू मा मोना-केसधारी, इसायूं मा कैथोलिक अर प्रोटैस्टैंट। बीड़ी मा बि मसालु एक च, रंग-रूप बि एक, पर बीड़्या पैथर खाण-कमोण वळों कि अकड़ैस अलग-अलग छन। जन्कि, छोटा भाई-जेठा भाई, घोड़ा छाप बीड़ी, टेलीफून बीड़ी, पाँच सौ एक, पाँच सौ द्वी बीड़ी। छोटु भै अर बड़ा भै, नौ कि बीड़ी त् हमारि समझ मा ऐगि। किलैकि, छोटु भै अर बड़ा भै बीड़ी सुलगौंद, हमुन् कै द्यख्नि। कै बार इन बि देखी कि ‘जेठा भैन्’ ज्वा बीड़ी प्येकि फुंड चुटै, ‘छुट्टा भैन्’ वी बीड़्यू टुड्डा प्येकि, अपड़ी जिकुड़ी तीस बुझै। हमतैं क्य, कै तैं बि यिं बात पर बिस्वास नि होण कि गणेश जीन् कबि लुकाँ य ढकाँ बि बीड़ी प्ये होवु। पर एक गणेश बीड़ी वूंको नौ लेकि बि खूब धुवाँ उडोणी च।
खादी सूणी तैं, खाद्यू लम्बू कुरता-पैजामु, आँख्यू मा रिटण लग बैठ जांदु। पर खादी नौ की बीड़ी बि च। एक दिन हमुन् एक पनवडि़ पूछी- ‘दीदा! यिं बीड़्यू नौ, ‘खादी बीड़ी’ किलै रखे ग्ये ह्वलु’? वेन उल्टाँ पूछी- ‘खाद्यू मतलब तुम क्या बिंग्यां’? हमुन् जबाब दे-‘खादी यनिकि, सस्ती-मस्ती चीज क्या’। ताँ पर हमतैं सुण्ण प्वडि़- ‘बस्स! इलै हि, यिं बीड्यू नौ खादी च। जथगा सस्ती च, वाँं से जादा वाँ मा मस्ती च’।
क्वी ब्वल्दू ‘टेलीफून बीड़ी’ मा बात हि कुछ हौर च। क्वी ब्वल्दू तौं ‘घोड़ा छाप बीड़ी’ प्येकि मजा नि औंदु। एक आद हमुन् परदेस जाण वळांे कु इन ब्वल्दू बि सुणी ‘यार भुला इना सुणदि! इख या... ‘कामिनी बीड़ी’ नि मिल्दी। अगिल दौं जब घौर ऐली त् एक ‘बुरुस’ कामिनी बीड़्यू लै जै वा... टक्क लग्येकि।
(बक्कि फेर कबि)

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Bhishma Kukreti

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Garhwali Satire, Articles, Essays by Sunil Thapliyal Ghanjir
Garhwali Satire, essays, articles from Garhwal, Uttarakhand , Himalya, North India , South Asia;
Garhwali Satire, essays, articles
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सुनील थपलियाल घंजीर के लेख , व्यंग्य , निबंध
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मन कु भात....1

एक दिन अर एक रात बेबपरवा कुट्ज कु साथ ....
हरीश जुयाल कुट्ज जी दगड़ि न मालूम किलै घंजीर का तीन बीसी झकझका खुटौं फर गति ऐ जांद ? सुप्त हृदय हिर हिर कन बै जांद ।
ब्यालि एक जोरदार दावत मा कोरदार इनभिटेशन छौ । घंजीर फर खज्जी छै ।
घंजीर फर एक चटोरी जीभ च् , एक नि भ्वरेंण्या लद्वड़ि च् । द्विया साजिश करदन । घंजीरी इंजन इसटाट करदन । जिकुड़ि वश मा नि रांदि ।
घंजीर फंचि बंणाद । अफु तै लोचदार बंणाद अर कोरदार पौंछ जांद ।
पाड़ बटि हरीश जुयाल कुट्ज जी ताल उतरदन... धन आवेशित कुटज अर ऋण आवेशित घंजीर कु मेल कोरदार कु भ्रमित आकाश सैन नि करदु ... सुख्यां निरसा बादल मुंड फ्वड़ै करदन ... आंखा घुर्यंदन ... दावत मा दुयूं की टिच फुल भ्वरीं पलेट मा अपंणु रासायानिक विघ्नी पांणि छिड़कदन ।
पर कुट्ज जी का ककड़ाट का अगनै बेकूप बादल दल की नि बसांदि । मुक लुकै क् मथि पाड़ भाज जंदन ... अर कुट्ज जी अपंणि चिर परिचित विजयी मुस्कान घंजीर जनै सरकंदीं ।
घंजीर कुटज जी का काला जादु थै नमन करद ... अर दावत पलेट मा विराजमान आखिरी बासमति थै पुटगि का अंध्यरा कूंणा पिचगै की लंबू पावरफुल डकार ल्हींद ।डकार दावत की सफलता का सैन बोर्ड कु काम करद ।
कुट्ज जी की कड़ कड़ कड़ ... तड़ तड़ तड़ फैरिंग पतपता घंजीर फर अनवरत जारी रंदन ...
अर घंजीर की गिच्ची खुली रैंद ।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर


-2
मन कु भात .....२
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★सुनील घंजीर
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वी जीबन दिंदी
वी ल्ही जंदी ।।
य तुकबंदी मिन गंगा जमुना का संबध मा तुकै । हम NCR तरफा पाड़ीयूं तैं पाड़ जनै मुक कना मा गंगा जमुना पार कन प्वड़दीं । छंछर ऐतवार खुंणि मेरू मुक कुरदर हरद्वार जनै छयो ।
कुरदरा सौं !
जादातर पाड़ि लोखु की जिकुड़ीयूं मा कुरदरै छवि काली च् । इलै हम कुरदरा सौं नि खांदा । खासकर मी जना जात्री मनिख्यूं खुंणि जौं खुंणि कुरदर कु अर्थ च् जेमु बस अड्डा कु भीषण कष्टकारी ,हड़बड़ी,व रकाबकी माहौल ।
कुरदर का अन्य रमणीक स्थलों से हमरू क्वी परिचय नी छ् ... बस बटि उतरदै मि अफु तैं माछु सि मैसूस करदु जैखुंणि रेड़ी पटरी से ल्हेकर लैंटर छत वला दुकनदार तक कांडु लगै क् ताक मा बैठ्यां छन ।
मि जब बि कुरदर जांदु त् वखम बटि चड़म चंपत हूंणै कोशिश करदु । कुरदर से मेरू क्वी लगाव नी छ् । कुरदर कबि बि म्यारा हृदय मा एक गज प्लाट नि काट साकू । यु सदनि परायु लगि मी तैं । इलै मि कुरदर से बात नि करदु । कुरदर बि मी तैं अपुंणु नि मनदु ।
अबै दौ पैली बार मेरी जिंदगी मा मौका ऐ कि मी थै वखि तक जांणु छौ । पैली बार एक शुभकाम मा न्यौता छौ । वख एक चिरपरिचित मिलनसार कुट्ज ममा छौ । कुटज ममा मा मोटरसैकल छै । उं मा कलाकार दगड़्यौं की लिस्ट छै । उंल मी तै गौर सिंह जी से मिलै । गौर सिंह जी का हत रंगु से लप्वड़्यां छया । उंमा पचासौं कूची छै ... अनेकों कैनवास छया । उंकी बंणई जतगा पेंटिगु फर नजर गै उं सबुम गौर सिंह जी को सिद्व कलाकारी व्यक्तित्व झलकुंणु छौ ।
तीन रौंड चाय अर पांच रौंड पांणि का बाद हमरू दिल भाई गौर सिंह जी की कला से संबधित बारीकियों व उंकी संघर्ष गाथा मा खूब रमे गे छयो कि ध्यान ऐ कि गडवलि गजल विद्यासल्ली भैजी जगमोहन सिंह बिष्ट जी बि अपंणी मिठ्ठी आशीर्वादी चाय बंणै क् हमरू जग्वाल कना छन।
भाई गौर सिंह जी से मुलाकात का बाद धुधरटी कुरदर खुंणि मेरा दिल मा एक खिड़की खुल गे छै ....
भैजी जगमोहन जी का घौर भोल ।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर

मन कु भात .....३

सधारण भात बंणाणु असान च् पर मन माफिक भात बंणाणु मुश्किल च् ।
खुशी की बात च् हमरा कतगै गडवलि लिख्वार सर्यूल आज बि मन लगै की अपंणि भाषा मा अपंणा लुक्यां ढक्यां शब्दु की झौल मा खुशमन किसरांणि भात पकांण मा जुट्यां छन ।
दिखे जा त् कोरदार एक जोरदार जगा बि च् । भाषा/ संस्कृति का यख अनेक पैरादार मील जाला । कोरदार बटि पाड़ै गदीन्यूं मा नयेंणा कु जांणु बि सौंगु च् । भस्स्स इस्कूटी कु स्यल्फ इसटाट बटन हि त् दबांण ।
गडवलि गज़ल तैं नयी धुरपलि दींण वला जगमोहन बिष्ट जी बि कोरदार मै रैंणा छन । उंकू एक खुटु गौं मा त् हैंकु कोरदार मा रैंद । उंसे यखि मुलाकात ह्वे ।
बल ...
कोरदार की फिजा च् बौलिं बौलिं
न कुछ ब्वनी च् न ब्वन दींणि च् ।
उं से मीलि क् जिकुड़ि मा इन शांति कु ऐसास हूंद जन कि कैं उच्ची धार मा स्थापित मंदिर मा बैठिक मिलद ! भौत शांत स्वभाव का मालिक धीर गंभीर अर कट टु लेंथ बात कन वला जगमोहन जी अफु तैं भौत शालीन तरीका से सैत्याकार बथांणा मा झिझकदा छन । उंकी गजल जिंदगी की हर ऐंगल फर फोकस मरदीं ...अर सीधा जिकुड़ि मा रस्ता बंणदीं ।
उंकी द्वी कितबी "कर्च-कबर्च" व "अपंणा अपंणा रूपकुंड" प्रकाशित ह्वे गेन .. अर तिसरी फर वो जी जान से जुट्यां छन । भगवती नंदा राजजात् फर स्वयं का अनुभौ तै यात्रा वृतांत का रूप मा प्रस्तुत ह्वेली य किताब बल ।
महाकवि कंन्हैयालाल डंडरियाल जी की सुप्रसिद्व यात्रा बिरतांत "चांठों का घ्वीड़" की उ़ंमा द्वी प्रति छै ... वैदानुसार उंल एक किताब मीथै भेंट दे । मि चरण्यां गदल्यलु सि उंकी पिरेम ढंढी मा डुबकी लगै क् गदगुदु मैसूस कन बै ग्यों ।
चा पांणि कोलडिरिंक की औपचारिकता का बाद कुट्ज -घंजीर की अंणमेल जोड़ि तरोताजा ह्वे ग्या ... पर हमुन अपंणा ककड़ाट से उंकू पीसफुल घरेलु वातावरण हीटफुल कैर द्या । वख मा वूं वाक्यों फर बि चरचा ह्वे जौं फर कनै जरोरत नि छै पर जख कुटज को साया हो बल वख आराम से वक्त जाया हो ।
अभि मुलाकात अधा रस्ता मा छै कि तबरि वखम एक उर्जावान शख्शियत की एंट्री ह्वे ..उंल मि दगड़ि उत्साह पूर्वक गलभेंट कैरी ... पता लगि आप गडवलि साहित्य का एक मजबूत स्तंभ श्री जगदंबा प्रसाद कोटनाला जी छन । उंकू कुट्ज-घंजीर सभा मा आंण से वार्तालाप सै दिशा मा अटगंण बै ग्या । उंल् मी थै जतगा भेटेज दे मि उतगा लैक त् नि छयो पर मेरा प्रति उंकी पिरेम उष्मा साफ साफ मैसूस हूंणि छै।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर

मन कु भात ....६



मि घंजीर छौं ! छ्वटु आदिम छौं । कुछ मीतै आदिम बि नि चितांदा ।
जूंगा म्यारा बड़ा छीं पर बात मि छ्वटि करदु ।

मि भात खांदु । हतुल गमजा गमजा कै खांदु ।

 मि डिल्ली रांदु ।
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक टैमौ भात द्वी टैमै रव्टी ,चार झुलड़ि - द्वी रूड़ियूं की अर द्वी जड्डौं की मुल्या सकूं ।
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक सौ यक्यावन रूप्या न्यूतु लिखै सैकू ।
डिल्ली मा दिल नि लगदु मेरू किलै कि मि छ्वटु आदिम छौं ।
चार छै मैनौं मा हि घौर अटगि जांदू । कंई कुमंई रोडभेजु अर उंका अनुबंधित ढाबों का नौ मा कैरि आंदू ।
बड़ा आदिम बव्दीं गौं मा "कुछ" नी छ् धर्यूं ।
मेरी छ्वटि बुद्वि उंका "कुछ" थै नि जांण पै कबि ।
जो कबि गौमा छ्वटा आदिम छया छक्वे घात  खींदा छया वो बूंण जैकी बड़ा आदिम हुयां छन । अब वो गालि मंगलि नि दींदा । उंसे बड़ु संस्कारी अब क्वी नी छ् । ब्याला पैदा हुयां नौनौ कु बि आप ब्वलदीं वो ।

  उं बड़ा आदिमु थै मुजबानि मैट्रो इसटेशनु का नाम याद छन  ।
बस बदलंणा मा सल्लि छन वो ।
बूंण जैकी गंवा छ्वटा लोग देशी फुकी क् बड़ा लोग ह्वे गेन अर अफु फर चिपग्यां गडवलि निशान खुर्ची खुर्ची क् हटांणा छन ।
पर मि ठैरू जड़ मूरख छ्वटू आदिम जै फर गडवलिपनै घात लगीं च् ... जो पाड़ु मा ग्वर्ख्या , मुसलबान, बिहरी , बंगली , सारनपुरी सबु दगड़ गडवलि मा बच्यांण बै जांद इन मानि की कि जु प्राणि गडवाल मा दिखे जा वी गडवलि ।
यु म्यारू छ्वटा आदिम हूंणौ पकू परमांण च्।

अर मिन घात घलंणी बि नि छोड़ि । मेरी अपंणी स्वयं की सबि इच्छौं खुंणि घात घलीं छन ।
मि ये एडभांस जमना दगड़ नि अटग सकदु इलै छ्वटु आदिम हि रैंण चांदू ।
पर मि चांदु आप खूब अटगा अटगा मा मिस्यां रयां अर वूं उच्चा बेकूप पाड़ु से भि भौत बड़ा ह्वे जयां ... भौत बड़ा ।
अर वख पौंछ्यां जख सब कुछ हो ।

!!!

सुनील थपल्याल घंजीर
.... घिलमंडि .....

इशारा ::
(यू लेख जरा गंभीर किस्मो च कृपया हास्य की उम्मीद ना करें )
)..विक्की ! (हैप्पी बर्थडे मनाने वाला एक गढवाली कान्वेंट स्कूल स्टूडेंट ) ...दलेदर सर ! गढवाली मे "घिलमिंडी" खाना किसे कहते हैं ?
)...हां भै आज लगंणु च कि तू गढवली सिखंणा मा इनटिरेस्टिड छै । इना इना शब्द सिखंण चांणू छै जो गर्वीला पहाड़ीयूंल अर ठेठ गढवली हूंणौ दावा करंण वलोंन भि गुठ्यार धोल यलीं ।
पर तू 'घिलमंडी' किलै सिखंण चांणू छै ? कैल ब्वाल त्वैमा ?
).. दलेदर सर ...! मेरे पापा बार बार कहते रहते हैं कि मैने अपने टाइम मे बहुत "घिलमंडी " खा रखीं हैं ।
)..द रै य बात चा ! अब आई म्यारा गौं । भै ब्यटाराम त्यारू बब्बा बिल्कुल ठिक ब्वलंणू चा । वै भग्यान त इन इन घिलमंडी खंई छन कि तेरी ब्वे भी ऊं हि घिलमंडीयूं कु परिणाम चा ।
)...वाट डू यू मीन दलेदर सर ?
)...हबै घिलमंडी त बड़ा बड़ा लोगु की भी खंई छन। हल्या टैपा लोखु जनोंल ले 'हाथ' अर 'फूल' दगड़ि मीलि कै खुर्सी हथ्यांई छन ।
)... मींस ? इसमे पापा की घिलमंडी का क्या ?
).. हां हां ! आ जरा अपंणा पापा की घिलमंडी गाथा भी सूंण ले
ब्यो से पैली वो गीत लगांदा छया
"ऐजा हे भनुमती पाबौ बजारा "... अर ब्यो का बाद लगांण बैठ गीं .... " कैमा न ब्वल्यां भैजी सैंणी कु मरयूं छौं" ....
ई ह्वाई घिलमंडी ... मेरा छंछ्या थकुला । कुछ समझी कि ना ?
)... नो सर ! आई अम नॉट कैचिंग यू !
)...देख लौला ... कि त्यारा पापा ल ब्यौ से पैली तेरी माँ भरमै कि त्यारा गौला कु लॉकेट बंणौलो अर गुलबंद पैना कै तेरी ब्वे थै ल्है आया , मतलब ?
) ...मतलब पापा ने घिलमंडी खाई ।
)... हां बिलकुल रैट । अब पता चली त्वे घिलमंडी कु मतलब !
)...नो नो सर ,मेरे पल्ले कुछ नहीं आया । क्या आपने भी घिलमंडी खाई हैं ?
)... ब्यटाराम पूछ ना ...! तिरीस बरसू बटै सिंचैं विभाग म चपरसी छौं । मेरा लैमचूस अगर मी घिलमंडी खांणि आंदि त मि अपंणी जैड़ींयूं मा पांणी नि लगांदू । स्यू त्यारू बब्बा ल्ये हल्या छयो अर घिलमंडी खै खै की मंत्री जी का स्यालौ राइट हैंड हुयूं चा । प्रापर्टी डीलर बंणि क् सर्रा देहरादून बेचणू चा ।
)... सौरी सर मै तो चला । मेरा फेवरिट टी.वी प्रोग्राम हन्नी सिंह द रॉक शो आने वाला है गुडबाय
)... हां ब्यटाराम अभी तेरी उमर नी छ घिलमंडी खांणै । बगत अपंणा आप त्वे घिलमंडी खांणु भी सिखै द्यालू अर यांकु अर्थ भी समझै द्यालू ।तबरी तक तू तै हनी सिंग का गांणौ मा घिलमंडी खा ।
( गर्वीले पहाड़ियों के लिऐ ' घिलमंडी ' का मतलब बताना जरूरी है ... घिलमंडी मतलब गुलाटी मारना )
सार : घिलमंडी खाते रहें प्रगति पथ चढते रहें
" सर्वाधिकार असुरक्षित "
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
व्यंग...

आदिम तबि तलक मनिख च् जबतलक वेमा तंग कनै सोशल इंजीनियरिंग च् । तंग कनौ व्यंग भौत सुलभ साधन च् । पर व्यंग कनौ कुछ विषै त् चयेंद । जंग.. बिना हत्यारै कख छै ?
ब्यालि एक सुंदर कवि सम्मेलन मा पक्वड़ा अर चा पींणौ मौका मील ... आयोजन की सफलता फर हमथैन क्वी डौट नि छयो किलै की काव्य रस छलकेंणा बाद भोजन की ब्यबस्था विद हलवा बि छै ... अब साब लिफफू कीसाउंद ठिक से स्यट कैरिक आश्वस्त हूंणा बाद घार जनै मुंडलि कार त् नप एक फेसबुक मित्र समंणि रस्ता रोकी खड़ा ह्वे गीं कि बल घंजीर साब आशा च् भोल ये आयोजन फर एक टौपदार व्यंग्य पढंणौ मीललो ?
/भैसाब आप थैन पक्वड़ा नि मीला ?
/ बल सबसे भंड्या त् मिलै साफ करीं !
/आप थैन कवींयूं की प्रतिभा समज नि ऐ ?
/बल सबसे जादा तालि त् मिलै पिटीं !
/फिर व्यंग कखम पैदा कन साब ... ?? नंग कन्यांणा काम तबि अंदन जब खज्जी हो ... बिना खज्जी का धज्जी कनै उडये जा ?
/बल अज्जी क्य बात कना छौ ...तुम वी घंजीर छौ न्हा जो तोता मैना की पिरेम कानि फर बि व्यंग कना रंदौ ...यु त इतगा बड़ु आयोजन निमंड़ि ग्या ... ये फर आप थै कखि बि क्वी प्वेंट नि मीलो ...??? आपकी प्रतिष्ठा कु क्य होलु ??
वे निरदयी फेसबुकी फरैंड की कटाक मीथै सैन नि ह्वे ... अर मि अपंणि प्रतिष्ठा बचांणा वास्ता वे साफ सुथरा आयोजन फर व्यंग की संभावनाओं की तलाश कन बैठ ग्यूं... ।
देखा जि आयोजन की सफलतो श्रेय त् आयोजक ल्ही जाला पर एक व्यंगकार हूंणा नाता मि अपंणि प्रतीष्ठा दांव फर कनकै लगा द्यूं ... आयोजन कतगै सफल ह्वे जाउ तब बि एक सिद्व व्यंगकार थैं व्यंग तलाशी क् ल्हांण चैंद ... आज रात भले मी थै निंद मरण प्वाड़ा पर मिन आयोजकु का नीला सुलार कुर्ता किलै पैन्यां छाया यां फर जरूर चुटकी कसंण ... उनि बि खयां पिंया लोखु थै क्य मालूम कि यु व्यंग छयो कि जोक ।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
.. *ममा वंदना* ....

एक हमरा नामचीनी व्यंग्यकार ममा छन नाम च् उंकू 'विशेष छुंयाल कुटुरू' ।व्यंग्य विद्यम कुटरू ममौ क्वी सानी नी छ् । गढवलि का सिद्व साहित्यकारू दगड़ उंको उठंणु बैठणु च् । फिर भि उंकू छिबड़ाट अर तिबड़ाट धूल-माटू उडांण वलों जन च् ।
मिल कतगै दफा टोक लगाई उंफर कि ममाजि तुम इतगा भारी भारी का डिमांडिंग लिख्वार ह्वे ग्यो पर तुमरी गंभीरता अबि तलक ढंडीउंदै प्वड़ीं च् ? जै कै दगड़ि रले- मिले जंदौ ....गोबरमैन से ल्हेकर गीज़रमैन तक सबुकी खुचलिम बैठ जंदो ...., जरा अपंणी रिपुटीशन त् चिताया करो !
भस जी इतगम त् कुटरू ममा अपंणु फेमस कुटुरू ख्वलंण बैठ गीं ... बल लाटा ! तु ठैरू स्यकुंदौ पल्यूं बढ्यूं कबूतर , तु क्य जांणि घुघती हूंणौ मलब, त्वे क्य मालूम कि "मनिख कमांणा" क्यां खुंणि बुलदीं .... ???
तुम ठैरा अपंणी सपंणी वला ... तुमथै क्य पता कि जब गौंमा कैकु बोड़ भ्याल फंस जांद त् हमरू गफ्फा नि घुटेंदू .... तु स्यकुंदै सिकासैरी न कैर यख ... कि पड़ोसीयूं मा भगनलाल थै मगनलाल नि जंणदु अर मगनलाल थै छगनलालो पता नि हूंदू ....अर यख गौंमा जरसि कैका बल्द फर अट्टा पोड़ जावा त् हमरा फट्टा सुक जंदीं ।
बाकी रै म्यारा साहित्यकारू की श्रेणिम आंणै बात त् ... यांमा क्वी खाश उतणेंणै बात नी छ् ... किलैकि जौं साहित्यकारू की गिंवड़्या कुदड़ि सारि बांजि प्वड़ीं छन वी साहित्यकार हुयां छन .. बिना बाछि मलासि भि वो गौड़ि बाछि फर कव्यता कना छन ...दिखे जा त् उंसे बड़ू साहित्यकार त् वो च् जो अपंणी गौड़ि का नाक पुटगा जूंका भैर गडणैं जुगत कनु च् ... बाछी थै मलसणुं च् ... भस फरक इतगै च् कि एक त् कव्यता ल्यखणुं च ता हैंकु कव्यता जींणू च ..।
मि अपंणु सबु दगड़ मेस मांग वलु सुभौ नि छोड़ सकदु .... तु म्यारू भणजु छै पर त्वे चुलै मीथै अपंणु कुंणजु प्रिय च् जो सबुक पूजा पाठ ब्यो काज निमटांणु च् पर वैल अपंणी धरतिम उगंणु नि छोड़ि... न अफ्फू थै वेल बड़ु चितायो ...
ममा म्यारा ऐथर अपंणी कुटरी ख्वलंणु राई अर मीमा उंका समंणि मूंण हिलांणा सिवा हैंकु क्वी लालु चारू नि छायो
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
एक ★ परिचय ....

Bhishma Kukreti

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         बालकृष्ण भट्ट -   मेरे प्रेरणासोत्र , प्रिय व्यंग्यकार , आदरणीय चबोड्या  -3
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                     आत्मकथ्य : भीष्म कुकरेती
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सैत च भारतेन्दु जुगौ हिंदी  लिख्वार  बालकृष्ण भट्ट का लेख मीन या त दर्जा नौ या ग्याराम बाँची होलु।  तै समौ लेख त याद नी पण कखि ऊंको लेख 'दिल बहलाव के जुदे जुदे तरीके ' बाँची थौ।  इन लगद जन भट्ट जीन म्यार आस पड़ोस का लोगुं देखिक लेख लिखी होलु।  कुतघळी लगंदेर , झीस लगांद हंसोड्या -चखन्योर्या लेख।  उन बि बालकृष्ण भट्ट की नूतन ब्रह्मचारी , गुप्त वैरी, पछावती आदि रचना प्रसिद्ध रचना छन।


-
  बकै फिर ..  मेरे प्रेरणासोत्र , प्रिय व्यंग्यकार , आदरणीय चबोड्या -4 मा
Great Satirists, Great Satirists in my opinion, Satirists those influenced me; I admire those Great Satirists, my choice for Great Satirists,  My liking for Satirists

Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

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चांठा ,घ्वीड़ अर इसटार टी.पी मनिख .... (भाग ..१)
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Sunil Thaplyal Ghanjir
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हलो ,हलो ! राति अग्यारा बजंणि छै ... फिर बि मिन फून लगै !
दरसल मि इसटार टी.पी का ये बारामासी जमना मा चांठौ कु एड्रेस खुज्यांणु छौ । अर चांठौं कु एड्रेस छौ भैजी जगमोहन बिष्ट जी का ज्ञानी कीसा मा । इलै बेटैम हि सै पर मिन बिष्ट जी थै कोरदार फून लगै ।
उनै बटि शांत गज़लनुमा स्वर सुंणे ... बल भैसाब इतगा राति ?इनमेसि क् क्या च् ताति ?
एकचुल मा कुछ दिन पैली स्व.कन्हैयालाल डंडरियाल जी की एक जीवंत रचना "चांठौ का घ्वीड़" उंलै मेरा हत मा धैरी छै ! उबरी मि हरीश जुयाल कुट्ज जी का साथ मा उंका घौर चा पांणि मीटिंग मा छयो । यां कारण से चांठा अर घ्वीड़ु कु मायने नि पूछि मिन ... आखिर ममा कुटज का ऐथर भाषाई नासमझि दिखांणि ठिक बात नि छै ... नथर उंल मीफर बि व्यंग्य कव्यता मिसै दींणि छै ।
... भैजी जगमोहन जी कु घंघतोल मिन छंटे । इनै उनै की बात कन चुले सीधा मतलब फर ऐ ग्यूं अर शर्म बि नि ऐ मीतै पुछंणा मा कि भैजी चांठा क्य ह्वाया ? चांठौं कु भेद खोला ! घ्वीड़ कु आकार प्रकार बि बथावा । यु मात्र मेरू हि प्रश्न नि छौ बलकन य कतगै हौरि इसटार टी.पी जमना का गडवलि कव्यता लिखाड़ु की बि अनसुलझीं गुत्थी छै .. वो बि जंणण चांणा छया चांठौं का सांटा बांठा ।
जगमोहन बिष्ट जी मेरा मनो घंघतोल चितै गेन । उंल वीं अधाराति मा बि मेरी खरड़ि मुंडलि चांठौं का तरफ कैर द्या अर घ्वीड़ु की मूंण मेरा हतु मा धैरि द्या ...।
क्रमश ....
!!!
Copyright @Sunil Thalyal Ghanjir, Faridabad
Satire in Garhwali, Garhwali Satirical prose

Bhishma Kukreti

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मन कु भात .....३

सधारण भात बंणाणु असान च् पर मन माफिक भात बंणाणु मुश्किल च् ।
खुशी की बात च् हमरा कतगै गडवलि लिख्वार सर्यूल आज बि मन लगै की अपंणि भाषा मा अपंणा लुक्यां ढक्यां शब्दु की झौल मा खुशमन किसरांणि भात पकांण मा जुट्यां छन ।
दिखे जा त् कोरदार एक जोरदार जगा बि च् । भाषा/ संस्कृति का यख अनेक पैरादार मील जाला । कोरदार बटि पाड़ै गदीन्यूं मा नयेंणा कु जांणु बि सौंगु च् । भस्स्स इस्कूटी कु स्यल्फ इसटाट बटन हि त् दबांण ।
गडवलि गज़ल तैं नयी धुरपलि दींण वला जगमोहन बिष्ट जी बि कोरदार मै रैंणा छन । उंकू एक खुटु गौं मा त् हैंकु कोरदार मा रैंद । उंसे यखि मुलाकात ह्वे ।
बल ...
कोरदार की फिजा च् बौलिं बौलिं
न कुछ ब्वनी च् न ब्वन दींणि च् ।
उं से मीलि क् जिकुड़ि मा इन शांति कु ऐसास हूंद जन कि कैं उच्ची धार मा स्थापित मंदिर मा बैठिक मिलद ! भौत शांत स्वभाव का मालिक धीर गंभीर अर कट टु लेंथ बात कन वला जगमोहन जी अफु तैं भौत शालीन तरीका से सैत्याकार बथांणा मा झिझकदा छन । उंकी गजल जिंदगी की हर ऐंगल फर फोकस मरदीं ...अर सीधा जिकुड़ि मा रस्ता बंणदीं ।
उंकी द्वी कितबी "कर्च-कबर्च" व "अपंणा अपंणा रूपकुंड" प्रकाशित ह्वे गेन .. अर तिसरी फर वो जी जान से जुट्यां छन । भगवती नंदा राजजात् फर स्वयं का अनुभौ तै यात्रा वृतांत का रूप मा प्रस्तुत ह्वेली य किताब बल ।
महाकवि कंन्हैयालाल डंडरियाल जी की सुप्रसिद्व यात्रा बिरतांत "चांठों का घ्वीड़" की उ़ंमा द्वी प्रति छै ... वैदानुसार उंल एक किताब मीथै भेंट दे । मि चरण्यां गदल्यलु सि उंकी पिरेम ढंढी मा डुबकी लगै क् गदगुदु मैसूस कन बै ग्यों ।
चा पांणि कोलडिरिंक की औपचारिकता का बाद कुट्ज -घंजीर की अंणमेल जोड़ि तरोताजा ह्वे ग्या ... पर हमुन अपंणा ककड़ाट से उंकू पीसफुल घरेलु वातावरण हीटफुल कैर द्या । वख मा वूं वाक्यों फर बि चरचा ह्वे जौं फर कनै जरोरत नि छै पर जख कुटज को साया हो बल वख आराम से वक्त जाया हो ।
अभि मुलाकात अधा रस्ता मा छै कि तबरि वखम एक उर्जावान शख्शियत की एंट्री ह्वे ..उंल मि दगड़ि उत्साह पूर्वक गलभेंट कैरी ... पता लगि आप गडवलि साहित्य का एक मजबूत स्तंभ श्री जगदंबा प्रसाद कोटनाला जी छन । उंकू कुट्ज-घंजीर सभा मा आंण से वार्तालाप सै दिशा मा अटगंण बै ग्या । उंल् मी थै जतगा भेटेज दे मि उतगा लैक त् नि छयो पर मेरा प्रति उंकी पिरेम उष्मा साफ साफ मैसूस हूंणि छै।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
Copyright@ Sunil Thaplyal Ghanjir, faridabad

Bhishma Kukreti

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द्यशौंळ
Garhwali Satire by Asis Sundriyal
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जूँगा त जामा नी छा अबि तक पर जुल्फी जरूर धौणिंम तक आयीं छै। मुखिड़ि इन सुखीं छै जन रुड़ी का घाम मा पाणी का छोया। द्वीइ ग्लव्डि. आपस मा चप चिपकीं छै जन नमस्ते कन बेर द्वी हाथ रन्दन आपस मा चिपक्यां। शरीर पर मांगस को नौ नी छौ, हाथन जपगै कि हडग्यूं तै गीणी सकदु छौ क्वी बी।आँखा जरूर बड़ा बड़ा छा वेका ढाडु जना, अर वां चुले बड़ा छा वेका स्वीणा। तभी त बारा कैरिक सिरप अठारा सालम ब्वे की खुचलि छोड़ी बिराणा मुलुक ऐगे छौ घुंता।
घुंता पढ़ाई म त वो खूब छौ पर ये जमन मा बारा पास तैं क्य नौकरी मिलिणी छै। पर वेका मन मा त बनि बनि का ख्याल, अणहिटाळ बोड़ों की तरां पूछ अळगै अळगै कि उचड़फाळ मना छा। वो वास्तविकता तै गळदिवा ब्वे बुबा की तरह बिल्कुल देखण नि चाणू छौ। बस वेतैं त उछयदि -अन्याड़ करदा सौजड़या सि अपणा स्वीणा हि स्वाणा लागणा छा। आज भले वेकु पूछ छारम छौ पर फेर बि थ्वतुरुं घ्वाड़म छौ।
घुंता न कब घुंता पीणु छोड़े, कब वेकु लाळू चुणू बंद ह्वे अर कब वेन अपणु नाक फुंजणु सीखे , पता नि चले। इन लगणु च जनो कि ब्याले हि वो सलदराज़ पैनी ब्वे दगड़ डांड जाणे घोर घल्दु छौ अर आज वो सूट बूट पैनी सुपन्यो का पिछ्नै दौड़नु च। खैर, अब द्यखला बल ठकुरुं कि दीबा पूजीं।
अबि घुंता तै दिल्ली म अयाँ द्वी दिन बि नि ह्वे छ कि घनश्याम न- जो की वेका मामा कु नौनु छौ , वो अपणा ऑफिस की कैंटीन म लगे दे। बारा पास अर वो बि हिंदी मीडिअम से , खुणैं ये से बक्की हौरि नौकरी ह्वे बि क्य सकदी छै। घुंता न बि " कर्म ही पूजा है" का सिद्धांत पर काम करे अर कुछ हि दिन मा पूरा स्टाफ म अपणी ख़ास जगा बणै दे। आखिर पहाड़ी मेनत का ममला म त सबसे अगाड़ी हूँदै छन। अर फिर अबि तक त वेकी ब्वे की बणाई रवट्टी खायीं छै, बुबा कि बणयीं रवट्टी को स्वाद त वे अब पता लगणु छौ इलै दूर प्रदेश म वेका समणी कुवि दुसरो बाटु बि नि छौ। बल नचदु नि छौं त खांदू क्य छौं।
तन्खा आण लगे, घुंता खूब खाण लगे - या वेका मुखै च्लक्वार बताणी छै। बयां कि बल बाल अर खयां का गाल। एक दिन पालिका बाजार गे त खूब खरीददारी कैरिकी ऐ- कपड़ा, जुत्ता, चश्मा, टुपला अर झणी क्य- क्या। वेकी कुंगळी गात गठीला शरीर मा बदलेणी छै- दिल्ली की हवा कु असर हूणों स्वाभाविक छौ।
इन हुँदा करदा - कब पांच साल ह्वे गिन, पता नि चले। ये बीच घुंता घौर काम हि जांदु छौ। बिचरा कि प्राइवेट नौकरी ज्वा छै। जै दिन ऑफिस नि जावा वे दिनै ध्याड़ी साफ़।आजकलै मैंगै अर फिर दिल्ली जनो शहर, एक एक रुपया को मोल पता चैल जांद यख द्वी दिन रैण मा। पर जब बि वार - ध्वार को कुवि बी घौर जावा, घुंता अपणा घौर मा कुछ न कुछ जरूर भेजदु छौ। नौना की राजी ख़ुशी मिल जा, ब्वे बुबा तै हौरि क्य चयेंदु। घुंता का ब्वे- बाबू यी सोचिक खुश रैंदा छा।
खांदा कमांदा नौना तै देखीक, ब्वे- बुबा मन मा सिरप एक बात आंद कि अब झट कखि ये को ब्यो ह्वे जा त गंगा नहे ऐ जा हम। घुंता क ब्वे- बाब भी वेका ब्यो कु इन उत्साहित हुयां छा जन नौन्याळ कौथिग जाणू रंदिन। वो त बाद मा पता चलद कि एक आइस-क्रीम खाण बान बि कना खुट्टा घुरसंण प्वड़दिन।
अब घुंता का ब्वे-बाब, अपणु काम धाम छोड़िक, घुंता कु नौनी खुज्याण लगिन। जगा जगा बात करा, जगा जगा बटे टिपड़ी मंगावा, बामण तै पटावा, नाता- रिश्तदारु तै घचकावा- बस फज़ल- ब्य्खुनि यी हि काम ह्वेगे। जो शायद ही गौं का भैर गे होला कबि , वो चौदिशों घूमिक ऐ गेन - अपणा नौना कु नौनी खुजण कु। न नींद न भूख , न बरखा न घाम - कुछ नि देखि वून अपणा ये काम तैं पुरयाण मा। अर आखिर मा वो कामयाब ह्वे हि गेन- घुंता कु ब्वारी खुज्याण मा।
बस ब्वारी ख्वजदै, तुरंत घुंता कु रैबार दिए गे। रैबार पर रैबार देणं क बाद बि, घुंता कै दिन तक घौर नि ऐ। अर जब वो एक दिन घौर ऐ त ब्वे- बुबा को गिच्चो खोल्यूं को खोल्यूं रै ग्ये। घुंता कु आँखों पर कालू चश्मा लगयूं छौ, धौण म नौनियु से लम्बी धौंपली छ्वडी छै। कमीज का अद्धा बटन खुलयाँ छा अर जींस की सि पेंट जगा जगा बटे फटीं छै। ब्वे बुबा की आंख्युं मा त रात तब पड़े जब वेकी काख पर एक मोट्याण खड़ी छै जैथैं लोग इन द्यखणा छा जनु कि आजतक यूंका कुवि मनखी देख्या ही नई ह्वीं अर फिर घड़ेक मा जतना मुख उतना छुवीं...........
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Copyright@ Asis Sundriyal

Bhishma Kukreti

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जब तुम तैं पता चलदो बल तुम बिंडी म्वाट ह्वे गेवां
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  चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   
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  तुम तैं पता चलदो बल तुम बिंडि म्वाट ह्वे गेवां जब तुम तै बड़ो से बड़ो ऐना बि भौत इ छ्वटु लगद।
  जब तुम तै  नड़िया से ऐलर्जी ह्वे जांद अर इलास्टिक से प्रेम ह्वे जांद।
जब तुम तै सीड़ी चढ़न अर गढ़वाल की सबसे ऊँची चोटी नंदा देवी चढ़न इक्सनी हो।
 तुम तैं पता चलदो बल तुम बिंडि म्वाट ह्वे गेवां जब तुम तै टीवी मा कै बि दौड़ देखिक इ तक लग जावो अर तुम तक बिसारणो बान बिस्तर जोग ह्वे जांदवां।
जब तुमन बजार मा सब उपलब्ध डाइट पिल प्रयोग कर दे ह्वावन पर तुमर म्वाटपन कम हूणो जगा बढ़णु इ राव।
जब तुम ट्वाइलेट लगण पर  ऑनलाइन ट्वाइलेट खुज्यान्दवां।
जब मेडिकल इंस्युरेन्स एजेंट तुमर भट्याण पर बि तुमर ड्यार नि आंदन।
 तुम तैं पता चलदो बल तुम बिंडि म्वाट ह्वे गेवां जब तुम कैक ड्यार जावो अर वा फेमिली प्रेसर कूकर मा खाण बणानो जगा तौल पर खाणो बणादन।
जब फौड़ या पार्टी मा लोग तुम तै प्लेट , थाळी छोड़िक परात पर भोजन सौरंदन।
जब तुम कै रेडीमेड ड्रेस की दूकान मा जांदवां अर दुकानदार ड्रेस दिखाणो जगा तुम तै तम्बू क दुकानों ऐड्रेस बथान्द।
जब तुम तै लो कैलोरी , फैटलेस फ़ूड ही न लो या फैटलेस शब्द से ही घीण ह्वे जावो।
जब तुम तै चर्बीविज्ञान का हर पाठ याद ह्वे जावन।
 जब तुम सब तै हिदायत दींदा कि खळबळ झुल्ला पैरण चएंदन।
जब तुम हरेक रेगुलरली मैना अपण झुल्ला चैरिटी मा दीणा रौंदवां।
जब लोग तमम फैटोलॉजी /चर्बीविज्ञान पढ़णो इच्छा जाहिर करदन। 


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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,  4 /6 // 2017
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।


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Bhishma Kukreti

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कैन ब्वाल बल गाउँ मा छौंपा दौड़ी तनाव , प्रतिष्पर्धा , जळथमारी नी ?
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  चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   
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      मि सुबेर बिटेन स्याम तलक कथगा इ कविता पढ़ुद ,व्यंग्य पढ़दु या  कथा बाँचदु अर हरेक बँचनेरू तैं अड़ान्द बल ये पाठक ! जा तू शहर की सुविधा छोड़ , जा छोड़ यीं शहरी तनाव की जिंदगी अर जा गाँव जा जख ना तो तनाव च ना ही प्रतिष्पर्धा , ना ही जळथमारी अर गांवुं मा त शांत जिंदगी च।  जा उख जा शांत जिंदगी बिता।  हरिश्चंद्र युग से हेमंत -मंगलेश डबराल युग तक हरेक हिंदी साहित्यकार एवं हर्षपुरी से लेकर धर्मेंद्र नेगी, आसीस सुन्द्रियाल जन  गढ़वाली कवी -साहित्यकार हम तै गांवुं मा बसणो हिदायत दींदन।
पर जरा गांवुं मा जावो त सै शहरुं से बिंडी तनाव  तो गांवुं मा च।
 अब द्याखौ ना ! गढ़पुर गाँव मा भग्गु बाडाअ कूड़ उजड़ अर दिल्ली मुंबई मा बस्याँ भग्गु बाडाs नात्यूं तै पडीं नी च कि कूड़ आबाद हो या उजड्यूं  तो सरा गाँव वळु मा मानसिक अर भौतिक तनाव पैदा ह्वे गे।  एक साल बिटेन सरा गाँव तनाव ग्रस्त राइ अर हमर कवि -जगमोहन जयाड़ा , केशव डोबरियाल , सुदेश भट्ट, गीतेश नेगी आद्यूँ  तै पता इ नि चौल कि गढ़गांव तनावग्रस्त च।  इ सब गाँवों बड़ै की कविता रचणा छ्या।  अर इथ्गा तनाव तो पकिस्तान -हिन्दुस्तान बॉर्डर पर बि नि छौ पर मजाल च यूँ कवियोंन ये तनाव पर मोबाइलौ की बोर्ड (पैल कलम हूंदी छै ) पर अंगुली धौर ह्वाऊ धौं।
   भग्गु बाडाअ कूड़ उजड़दि सरा गाँव वळु खाणि  -हगणि हर्चि गे छे।  गाँव दिनचारी जगा निशाचारी ह्वे गे छौ।  साल भर तक सरा गाँव रात बिज्ज्वा ह्वे गे थौ पर कुनस च जु जयाड़ा अर नेगी तै यु रतजग्गा गाँव दिखे हो। हरेक तै भग्गु बाडा कूड़ौ पठळ चयेणा था,  पथरुं जरूरत छै अर सिंगार - बळिन्डूं आवश्यकता छै।  दिन मा तो यु काम नि ह्वे सकुद छौ तो हरेक मौ रात हि भग्गु बाडाअ कूड़ौ सफै मा लगीं राइ।
  अब जब कूड़ौ बेकार मलबा बच्युं च तो मूस -लुखंदरों मा डुण्डि कुर्याणो प्रतियोगिता चलणी रांद।
 फिर प्रवास्यूं भ्यूंळ -खड़िक कु काटल पर गढ़पुर वास्यूं मा जु रोज जुद्ध चलणु रौंद ुख पर केशव डोबरियाल या धर्मेंद्र नेगी कु मोबाइलौ की बोर्ड किलै नि चलदी भै ?
 जब बि गढ़पुर गाँव मा सोलर लाइट की स्कीम आंदि तो हरेक मौ अपण कुलदिबता ठौ मा पौंची जान्दि अर प्रार्थना करदी कि सोलर पोल हमर आस पास लग या नि लग पण हैंक ख्वाळो आस पास नि लगण चयेंद।  पता नि हमर साहित्यकारों तै या जळथमारी किलै नि दिखेंदी ह्वेलि ? जयाड़ा जी ही जबाब देला सैत।
गढ़पुर का गाँव वळ इनि घोर प्रतिश्पर्धी , चिंताग्रस्त , कम्पीटीटिव जिंदगी जीणा छन अर हम साहित्यकार टाइप करणा छंवां बल गाँव मा शांति च।  कख च शांति ? जरा बथावदि जी मै तै , ऊँ तै , सरा दुन्या तैं।

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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India , 6  /6/ 2017
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।


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Bhishma Kukreti

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हैलो ! हैलो ! पौड़ीम गणेश गणि का कुत्तान नरेंद्र कठैत का चौक  मा टट्टि कर दे 
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  चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   
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सम्पादक - हैलो , हैलो , भीषम जी ! अबि तलक तुमर व्यंग्य नि आई भाई , क्या ह्वाई ? किलै देर ह्वाई ?
मि - सॉरी सॉरी जी बस पूर हूण इ वाळ च जी।
सम्पादक -आज क्यां पर लिखणा छाओ ?
मि -मेरी बिरळिन ट्वाइलेट मा टट्टी कर दे। 
सम्पादक -शिट्ट ! शिट्ट! आज बि टट्टि पर कॉलम ?
मि -सच्ची।  आज मेरि बिरळिन ट्वाइलेट मा टट्टी कार जी।
सम्पादक -शिट्ट ! शिट्ट!  अरे बिरळिन ट्वाइलेट मा टट्टी नि करण थौ त कख झाड़ा -पिशाब करण छौ।  शिट !
मि - मि बि गणेश गणि तरां भौत सफै पसंद छौं तो  नियम से मि अपण बिरळि तैं रोड पर लिजान्दु अर रोड मा झाड़ा करांदु।  अपण ड्यारो जगा अपण पेट्सों तै झाड़ा कराणो सार्वजनिक स्थान सही जगा छन।
सम्पादक -ह्यां पर आज क्या आग लग जु तुम फिर से टट्टी पेशाबौ  पैंथर पौड़ी गेवां।
मि -पता नी क्या व्हाई धौं ! बिरळिन सुबेर सुबेर इ स्टैंडिंग ट्वाइलेट मा कमोड का सीट मा इ पितका कर देन।
सम्पादक -ह्यां पर तुमर बिरळिन तुमर ट्वाइलेट मा ट्वाइलेट कार तो तुम पाठकों तै किलै शिट परोसणा छंवां। चार दिन से तुम टट्टी पिशाब से ही अखबार खराब करणा छंवां।
मि -नै नै आजक ट्वाइलेट हौर दिनों का ट्वाइलेट से कुछ अलग च , बिगळी ट्वाइलेट च। 
सम्पादक (गुस्सा मा ) -क्या अलग च।  परसि तुमन ल्याख बल महान गढ़वाली कवि हरीश जुयाल अबि बि पुंगडों मा झाड़ा करणो जांद  जब कि ग्राम पंचैत से जुयालन ठम बारा हजार पैलि ठमकै आलिन।
मि -हाँ पर वे लेख मा ट्वाइलेट से अधिक झाड़ा जांद जांद पेट की मरोड़ , कविता आणै जबरदस्त मरोड़ अर पूठों पर झीस , काण्ड पुडणो व्यथा कथा छै जी।
सम्पादक -शिट्ट ! शिट्ट! शुरवात दस्त से शुरू ह्वे अर अंत बि गुवालोट से।  छी !छी।
मि -पाठकों तै घीण मा बि हास्य -व्यंग्य तो दिखे कि ना कि हजारों ट्वाइलेट बि ऐ जैन खुले मा शौच करणै आदत नि जांदी। 
सम्पादक -अर परसि बि तुमन पाठकों समिण टट्टी ही धार।  बिचारा पाठक !
मि -नै नै परसि तो मदन डुकलाण अर देवेंद्र जोशी का कुत्ता गलती से लोकेश नवानी का गेट का समिण टट्टी करणा जयां छा। टट्टी  से अधिक छ्वीं तो गढ़वाली साहित्यकारों मध्य गुटबंदी से गढ़वाली साहित्य मा प्रतियोगिता से फायदा पर ही जोर छौ। टट्टी का बहाना मीन सिद्ध कार बल साहित्यकारों मध्य  प्रतियोगिता आवश्यक च जां से गढ़वाली साहित्य कम्पीटीटिव ह्वावो।
सम्पादक -शिट्ट ! शिट्ट! नितरसि बि तुमन पौड़ी का सीन दिखै कि  गणेश गणि का कुत्ता बिचर नरेंद्र कठैत का साफ़ चौक मा टट्टी पिशाब करिक चली गे।  नरेंद्र कठैत तै त बुरु नि लग पर श्रीनगर मा शैलेन्द्र जोशी अर देहरादून मा ठुल्ला  साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद नौटियाल जी तै बुरु लग गे।  नौटियाल जीन गणेश गणि कुण विरोध मा पोस्ट कार्ड भेजी दे तो शैलेन्द्र जोशीन व्हाट्सएप मा विरोध मा उधम मचै दे। शिट्ट ! शिट्ट!
मि -शिट्ट ना जी फिट ब्वालो। मीन हौंस इ हौंस मा ट्वाइलेट का बहाना साहित्यकारों तै हिदैत , संदेश दे कि हरेक लेखक का पास  प्रशंसक , Evangelists (देवदूत , प्रचारक ) हूण इ चएंदन। 
सम्पादक -यार गुवाण की जगा सुगंध से बि त सन्देश दिए सक्यांद कि ना ?
मि -यां पर भोळ कुछ सोचुल।  आज तो पाठकों तै बिरळि ट्वायलेट से ही संतोष करण पोड़ल।
सम्पादक -शिट्ट ! शिट्ट!  आज बि शिट्ट से संदेश कि कृपया सार्वजनिक स्थानों में अपने घरेलु पशुओं से ट्वाइलेट न करावें ।

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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,  7/6/ 2017
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।


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Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

 

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