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Garhwali Satire, Articles, Essays by Sunil Thapliyal Ghanjir
Garhwali Satire, essays, articles from Garhwal, Uttarakhand , Himalya, North India , South Asia;
Garhwali Satire, essays, articles
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सुनील थपलियाल घंजीर के लेख , व्यंग्य , निबंध
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मन कु भात....1
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एक दिन अर एक रात बेबपरवा कुट्ज कु साथ ....
हरीश जुयाल कुट्ज जी दगड़ि न मालूम किलै घंजीर का तीन बीसी झकझका खुटौं फर गति ऐ जांद ? सुप्त हृदय हिर हिर कन बै जांद ।
ब्यालि एक जोरदार दावत मा कोरदार इनभिटेशन छौ । घंजीर फर खज्जी छै ।
घंजीर फर एक चटोरी जीभ च् , एक नि भ्वरेंण्या लद्वड़ि च् । द्विया साजिश करदन । घंजीरी इंजन इसटाट करदन । जिकुड़ि वश मा नि रांदि ।
घंजीर फंचि बंणाद । अफु तै लोचदार बंणाद अर कोरदार पौंछ जांद ।
पाड़ बटि हरीश जुयाल कुट्ज जी ताल उतरदन... धन आवेशित कुटज अर ऋण आवेशित घंजीर कु मेल कोरदार कु भ्रमित आकाश सैन नि करदु ... सुख्यां निरसा बादल मुंड फ्वड़ै करदन ... आंखा घुर्यंदन ... दावत मा दुयूं की टिच फुल भ्वरीं पलेट मा अपंणु रासायानिक विघ्नी पांणि छिड़कदन ।
पर कुट्ज जी का ककड़ाट का अगनै बेकूप बादल दल की नि बसांदि । मुक लुकै क् मथि पाड़ भाज जंदन ... अर कुट्ज जी अपंणि चिर परिचित विजयी मुस्कान घंजीर जनै सरकंदीं ।
घंजीर कुटज जी का काला जादु थै नमन करद ... अर दावत पलेट मा विराजमान आखिरी बासमति थै पुटगि का अंध्यरा कूंणा पिचगै की लंबू पावरफुल डकार ल्हींद ।डकार दावत की सफलता का सैन बोर्ड कु काम करद ।
कुट्ज जी की कड़ कड़ कड़ ... तड़ तड़ तड़ फैरिंग पतपता घंजीर फर अनवरत जारी रंदन ...
अर घंजीर की गिच्ची खुली रैंद ।
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सुनील थपल्याल घंजीर
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मन कु भात .....२
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★सुनील घंजीर
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वी जीबन दिंदी
वी ल्ही जंदी ।।
य तुकबंदी मिन गंगा जमुना का संबध मा तुकै । हम NCR तरफा पाड़ीयूं तैं पाड़ जनै मुक कना मा गंगा जमुना पार कन प्वड़दीं । छंछर ऐतवार खुंणि मेरू मुक कुरदर हरद्वार जनै छयो ।
कुरदरा सौं !
जादातर पाड़ि लोखु की जिकुड़ीयूं मा कुरदरै छवि काली च् । इलै हम कुरदरा सौं नि खांदा । खासकर मी जना जात्री मनिख्यूं खुंणि जौं खुंणि कुरदर कु अर्थ च् जेमु बस अड्डा कु भीषण कष्टकारी ,हड़बड़ी,व रकाबकी माहौल ।
कुरदर का अन्य रमणीक स्थलों से हमरू क्वी परिचय नी छ् ... बस बटि उतरदै मि अफु तैं माछु सि मैसूस करदु जैखुंणि रेड़ी पटरी से ल्हेकर लैंटर छत वला दुकनदार तक कांडु लगै क् ताक मा बैठ्यां छन ।
मि जब बि कुरदर जांदु त् वखम बटि चड़म चंपत हूंणै कोशिश करदु । कुरदर से मेरू क्वी लगाव नी छ् । कुरदर कबि बि म्यारा हृदय मा एक गज प्लाट नि काट साकू । यु सदनि परायु लगि मी तैं । इलै मि कुरदर से बात नि करदु । कुरदर बि मी तैं अपुंणु नि मनदु ।
अबै दौ पैली बार मेरी जिंदगी मा मौका ऐ कि मी थै वखि तक जांणु छौ । पैली बार एक शुभकाम मा न्यौता छौ । वख एक चिरपरिचित मिलनसार कुट्ज ममा छौ । कुटज ममा मा मोटरसैकल छै । उं मा कलाकार दगड़्यौं की लिस्ट छै । उंल मी तै गौर सिंह जी से मिलै । गौर सिंह जी का हत रंगु से लप्वड़्यां छया । उंमा पचासौं कूची छै ... अनेकों कैनवास छया । उंकी बंणई जतगा पेंटिगु फर नजर गै उं सबुम गौर सिंह जी को सिद्व कलाकारी व्यक्तित्व झलकुंणु छौ ।
तीन रौंड चाय अर पांच रौंड पांणि का बाद हमरू दिल भाई गौर सिंह जी की कला से संबधित बारीकियों व उंकी संघर्ष गाथा मा खूब रमे गे छयो कि ध्यान ऐ कि गडवलि गजल विद्यासल्ली भैजी जगमोहन सिंह बिष्ट जी बि अपंणी मिठ्ठी आशीर्वादी चाय बंणै क् हमरू जग्वाल कना छन।
भाई गौर सिंह जी से मुलाकात का बाद धुधरटी कुरदर खुंणि मेरा दिल मा एक खिड़की खुल गे छै ....
भैजी जगमोहन जी का घौर भोल ।
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सुनील थपल्याल घंजीर
मन कु भात .....३
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सधारण भात बंणाणु असान च् पर मन माफिक भात बंणाणु मुश्किल च् ।
खुशी की बात च् हमरा कतगै गडवलि लिख्वार सर्यूल आज बि मन लगै की अपंणि भाषा मा अपंणा लुक्यां ढक्यां शब्दु की झौल मा खुशमन किसरांणि भात पकांण मा जुट्यां छन ।
दिखे जा त् कोरदार एक जोरदार जगा बि च् । भाषा/ संस्कृति का यख अनेक पैरादार मील जाला । कोरदार बटि पाड़ै गदीन्यूं मा नयेंणा कु जांणु बि सौंगु च् । भस्स्स इस्कूटी कु स्यल्फ इसटाट बटन हि त् दबांण ।
गडवलि गज़ल तैं नयी धुरपलि दींण वला जगमोहन बिष्ट जी बि कोरदार मै रैंणा छन । उंकू एक खुटु गौं मा त् हैंकु कोरदार मा रैंद । उंसे यखि मुलाकात ह्वे ।
बल ...
कोरदार की फिजा च् बौलिं बौलिं
न कुछ ब्वनी च् न ब्वन दींणि च् ।
उं से मीलि क् जिकुड़ि मा इन शांति कु ऐसास हूंद जन कि कैं उच्ची धार मा स्थापित मंदिर मा बैठिक मिलद ! भौत शांत स्वभाव का मालिक धीर गंभीर अर कट टु लेंथ बात कन वला जगमोहन जी अफु तैं भौत शालीन तरीका से सैत्याकार बथांणा मा झिझकदा छन । उंकी गजल जिंदगी की हर ऐंगल फर फोकस मरदीं ...अर सीधा जिकुड़ि मा रस्ता बंणदीं ।
उंकी द्वी कितबी "कर्च-कबर्च" व "अपंणा अपंणा रूपकुंड" प्रकाशित ह्वे गेन .. अर तिसरी फर वो जी जान से जुट्यां छन । भगवती नंदा राजजात् फर स्वयं का अनुभौ तै यात्रा वृतांत का रूप मा प्रस्तुत ह्वेली य किताब बल ।
महाकवि कंन्हैयालाल डंडरियाल जी की सुप्रसिद्व यात्रा बिरतांत "चांठों का घ्वीड़" की उ़ंमा द्वी प्रति छै ... वैदानुसार उंल एक किताब मीथै भेंट दे । मि चरण्यां गदल्यलु सि उंकी पिरेम ढंढी मा डुबकी लगै क् गदगुदु मैसूस कन बै ग्यों ।
चा पांणि कोलडिरिंक की औपचारिकता का बाद कुट्ज -घंजीर की अंणमेल जोड़ि तरोताजा ह्वे ग्या ... पर हमुन अपंणा ककड़ाट से उंकू पीसफुल घरेलु वातावरण हीटफुल कैर द्या । वख मा वूं वाक्यों फर बि चरचा ह्वे जौं फर कनै जरोरत नि छै पर जख कुटज को साया हो बल वख आराम से वक्त जाया हो ।
अभि मुलाकात अधा रस्ता मा छै कि तबरि वखम एक उर्जावान शख्शियत की एंट्री ह्वे ..उंल मि दगड़ि उत्साह पूर्वक गलभेंट कैरी ... पता लगि आप गडवलि साहित्य का एक मजबूत स्तंभ श्री जगदंबा प्रसाद कोटनाला जी छन । उंकू कुट्ज-घंजीर सभा मा आंण से वार्तालाप सै दिशा मा अटगंण बै ग्या । उंल् मी थै जतगा भेटेज दे मि उतगा लैक त् नि छयो पर मेरा प्रति उंकी पिरेम उष्मा साफ साफ मैसूस हूंणि छै।
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सुनील थपल्याल घंजीर
मन कु भात ....६
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मि घंजीर छौं ! छ्वटु आदिम छौं । कुछ मीतै आदिम बि नि चितांदा ।
जूंगा म्यारा बड़ा छीं पर बात मि छ्वटि करदु ।
मि भात खांदु । हतुल गमजा गमजा कै खांदु ।
मि डिल्ली रांदु ।
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक टैमौ भात द्वी टैमै रव्टी ,चार झुलड़ि - द्वी रूड़ियूं की अर द्वी जड्डौं की मुल्या सकूं ।
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक सौ यक्यावन रूप्या न्यूतु लिखै सैकू ।
डिल्ली मा दिल नि लगदु मेरू किलै कि मि छ्वटु आदिम छौं ।
चार छै मैनौं मा हि घौर अटगि जांदू । कंई कुमंई रोडभेजु अर उंका अनुबंधित ढाबों का नौ मा कैरि आंदू ।
बड़ा आदिम बव्दीं गौं मा "कुछ" नी छ् धर्यूं ।
मेरी छ्वटि बुद्वि उंका "कुछ" थै नि जांण पै कबि ।
जो कबि गौमा छ्वटा आदिम छया छक्वे घात खींदा छया वो बूंण जैकी बड़ा आदिम हुयां छन । अब वो गालि मंगलि नि दींदा । उंसे बड़ु संस्कारी अब क्वी नी छ् । ब्याला पैदा हुयां नौनौ कु बि आप ब्वलदीं वो ।
उं बड़ा आदिमु थै मुजबानि मैट्रो इसटेशनु का नाम याद छन ।
बस बदलंणा मा सल्लि छन वो ।
बूंण जैकी गंवा छ्वटा लोग देशी फुकी क् बड़ा लोग ह्वे गेन अर अफु फर चिपग्यां गडवलि निशान खुर्ची खुर्ची क् हटांणा छन ।
पर मि ठैरू जड़ मूरख छ्वटू आदिम जै फर गडवलिपनै घात लगीं च् ... जो पाड़ु मा ग्वर्ख्या , मुसलबान, बिहरी , बंगली , सारनपुरी सबु दगड़ गडवलि मा बच्यांण बै जांद इन मानि की कि जु प्राणि गडवाल मा दिखे जा वी गडवलि ।
यु म्यारू छ्वटा आदिम हूंणौ पकू परमांण च्।
अर मिन घात घलंणी बि नि छोड़ि । मेरी अपंणी स्वयं की सबि इच्छौं खुंणि घात घलीं छन ।
मि ये एडभांस जमना दगड़ नि अटग सकदु इलै छ्वटु आदिम हि रैंण चांदू ।
पर मि चांदु आप खूब अटगा अटगा मा मिस्यां रयां अर वूं उच्चा बेकूप पाड़ु से भि भौत बड़ा ह्वे जयां ... भौत बड़ा ।
अर वख पौंछ्यां जख सब कुछ हो ।
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सुनील थपल्याल घंजीर
.... घिलमंडि .....
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इशारा ::
(यू लेख जरा गंभीर किस्मो च कृपया हास्य की उम्मीद ना करें )
)..विक्की ! (हैप्पी बर्थडे मनाने वाला एक गढवाली कान्वेंट स्कूल स्टूडेंट ) ...दलेदर सर ! गढवाली मे "घिलमिंडी" खाना किसे कहते हैं ?
)...हां भै आज लगंणु च कि तू गढवली सिखंणा मा इनटिरेस्टिड छै । इना इना शब्द सिखंण चांणू छै जो गर्वीला पहाड़ीयूंल अर ठेठ गढवली हूंणौ दावा करंण वलोंन भि गुठ्यार धोल यलीं ।
पर तू 'घिलमंडी' किलै सिखंण चांणू छै ? कैल ब्वाल त्वैमा ?
).. दलेदर सर ...! मेरे पापा बार बार कहते रहते हैं कि मैने अपने टाइम मे बहुत "घिलमंडी " खा रखीं हैं ।
)..द रै य बात चा ! अब आई म्यारा गौं । भै ब्यटाराम त्यारू बब्बा बिल्कुल ठिक ब्वलंणू चा । वै भग्यान त इन इन घिलमंडी खंई छन कि तेरी ब्वे भी ऊं हि घिलमंडीयूं कु परिणाम चा ।
)...वाट डू यू मीन दलेदर सर ?
)...हबै घिलमंडी त बड़ा बड़ा लोगु की भी खंई छन। हल्या टैपा लोखु जनोंल ले 'हाथ' अर 'फूल' दगड़ि मीलि कै खुर्सी हथ्यांई छन ।
)... मींस ? इसमे पापा की घिलमंडी का क्या ?
).. हां हां ! आ जरा अपंणा पापा की घिलमंडी गाथा भी सूंण ले
ब्यो से पैली वो गीत लगांदा छया
"ऐजा हे भनुमती पाबौ बजारा "... अर ब्यो का बाद लगांण बैठ गीं .... " कैमा न ब्वल्यां भैजी सैंणी कु मरयूं छौं" ....
ई ह्वाई घिलमंडी ... मेरा छंछ्या थकुला । कुछ समझी कि ना ?
)... नो सर ! आई अम नॉट कैचिंग यू !
)...देख लौला ... कि त्यारा पापा ल ब्यौ से पैली तेरी माँ भरमै कि त्यारा गौला कु लॉकेट बंणौलो अर गुलबंद पैना कै तेरी ब्वे थै ल्है आया , मतलब ?
) ...मतलब पापा ने घिलमंडी खाई ।
)... हां बिलकुल रैट । अब पता चली त्वे घिलमंडी कु मतलब !
)...नो नो सर ,मेरे पल्ले कुछ नहीं आया । क्या आपने भी घिलमंडी खाई हैं ?
)... ब्यटाराम पूछ ना ...! तिरीस बरसू बटै सिंचैं विभाग म चपरसी छौं । मेरा लैमचूस अगर मी घिलमंडी खांणि आंदि त मि अपंणी जैड़ींयूं मा पांणी नि लगांदू । स्यू त्यारू बब्बा ल्ये हल्या छयो अर घिलमंडी खै खै की मंत्री जी का स्यालौ राइट हैंड हुयूं चा । प्रापर्टी डीलर बंणि क् सर्रा देहरादून बेचणू चा ।
)... सौरी सर मै तो चला । मेरा फेवरिट टी.वी प्रोग्राम हन्नी सिंह द रॉक शो आने वाला है गुडबाय
)... हां ब्यटाराम अभी तेरी उमर नी छ घिलमंडी खांणै । बगत अपंणा आप त्वे घिलमंडी खांणु भी सिखै द्यालू अर यांकु अर्थ भी समझै द्यालू ।तबरी तक तू तै हनी सिंग का गांणौ मा घिलमंडी खा ।
( गर्वीले पहाड़ियों के लिऐ ' घिलमंडी ' का मतलब बताना जरूरी है ... घिलमंडी मतलब गुलाटी मारना )
सार : घिलमंडी खाते रहें प्रगति पथ चढते रहें
" सर्वाधिकार असुरक्षित "
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सुनील थपल्याल घंजीर
व्यंग...
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आदिम तबि तलक मनिख च् जबतलक वेमा तंग कनै सोशल इंजीनियरिंग च् । तंग कनौ व्यंग भौत सुलभ साधन च् । पर व्यंग कनौ कुछ विषै त् चयेंद । जंग.. बिना हत्यारै कख छै ?
ब्यालि एक सुंदर कवि सम्मेलन मा पक्वड़ा अर चा पींणौ मौका मील ... आयोजन की सफलता फर हमथैन क्वी डौट नि छयो किलै की काव्य रस छलकेंणा बाद भोजन की ब्यबस्था विद हलवा बि छै ... अब साब लिफफू कीसाउंद ठिक से स्यट कैरिक आश्वस्त हूंणा बाद घार जनै मुंडलि कार त् नप एक फेसबुक मित्र समंणि रस्ता रोकी खड़ा ह्वे गीं कि बल घंजीर साब आशा च् भोल ये आयोजन फर एक टौपदार व्यंग्य पढंणौ मीललो ?
/भैसाब आप थैन पक्वड़ा नि मीला ?
/ बल सबसे भंड्या त् मिलै साफ करीं !
/आप थैन कवींयूं की प्रतिभा समज नि ऐ ?
/बल सबसे जादा तालि त् मिलै पिटीं !
/फिर व्यंग कखम पैदा कन साब ... ?? नंग कन्यांणा काम तबि अंदन जब खज्जी हो ... बिना खज्जी का धज्जी कनै उडये जा ?
/बल अज्जी क्य बात कना छौ ...तुम वी घंजीर छौ न्हा जो तोता मैना की पिरेम कानि फर बि व्यंग कना रंदौ ...यु त इतगा बड़ु आयोजन निमंड़ि ग्या ... ये फर आप थै कखि बि क्वी प्वेंट नि मीलो ...
आपकी प्रतिष्ठा कु क्य होलु ??
वे निरदयी फेसबुकी फरैंड की कटाक मीथै सैन नि ह्वे ... अर मि अपंणि प्रतिष्ठा बचांणा वास्ता वे साफ सुथरा आयोजन फर व्यंग की संभावनाओं की तलाश कन बैठ ग्यूं... ।
देखा जि आयोजन की सफलतो श्रेय त् आयोजक ल्ही जाला पर एक व्यंगकार हूंणा नाता मि अपंणि प्रतीष्ठा दांव फर कनकै लगा द्यूं ... आयोजन कतगै सफल ह्वे जाउ तब बि एक सिद्व व्यंगकार थैं व्यंग तलाशी क् ल्हांण चैंद ... आज रात भले मी थै निंद मरण प्वाड़ा पर मिन आयोजकु का नीला सुलार कुर्ता किलै पैन्यां छाया यां फर जरूर चुटकी कसंण ... उनि बि खयां पिंया लोखु थै क्य मालूम कि यु व्यंग छयो कि जोक ।
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सुनील थपल्याल घंजीर
.. *ममा वंदना* ....
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एक हमरा नामचीनी व्यंग्यकार ममा छन नाम च् उंकू 'विशेष छुंयाल कुटुरू' ।व्यंग्य विद्यम कुटरू ममौ क्वी सानी नी छ् । गढवलि का सिद्व साहित्यकारू दगड़ उंको उठंणु बैठणु च् । फिर भि उंकू छिबड़ाट अर तिबड़ाट धूल-माटू उडांण वलों जन च् ।
मिल कतगै दफा टोक लगाई उंफर कि ममाजि तुम इतगा भारी भारी का डिमांडिंग लिख्वार ह्वे ग्यो पर तुमरी गंभीरता अबि तलक ढंडीउंदै प्वड़ीं च् ? जै कै दगड़ि रले- मिले जंदौ ....गोबरमैन से ल्हेकर गीज़रमैन तक सबुकी खुचलिम बैठ जंदो ...., जरा अपंणी रिपुटीशन त् चिताया करो !
भस जी इतगम त् कुटरू ममा अपंणु फेमस कुटुरू ख्वलंण बैठ गीं ... बल लाटा ! तु ठैरू स्यकुंदौ पल्यूं बढ्यूं कबूतर , तु क्य जांणि घुघती हूंणौ मलब, त्वे क्य मालूम कि "मनिख कमांणा" क्यां खुंणि बुलदीं ....
तुम ठैरा अपंणी सपंणी वला ... तुमथै क्य पता कि जब गौंमा कैकु बोड़ भ्याल फंस जांद त् हमरू गफ्फा नि घुटेंदू .... तु स्यकुंदै सिकासैरी न कैर यख ... कि पड़ोसीयूं मा भगनलाल थै मगनलाल नि जंणदु अर मगनलाल थै छगनलालो पता नि हूंदू ....अर यख गौंमा जरसि कैका बल्द फर अट्टा पोड़ जावा त् हमरा फट्टा सुक जंदीं ।
बाकी रै म्यारा साहित्यकारू की श्रेणिम आंणै बात त् ... यांमा क्वी खाश उतणेंणै बात नी छ् ... किलैकि जौं साहित्यकारू की गिंवड़्या कुदड़ि सारि बांजि प्वड़ीं छन वी साहित्यकार हुयां छन .. बिना बाछि मलासि भि वो गौड़ि बाछि फर कव्यता कना छन ...दिखे जा त् उंसे बड़ू साहित्यकार त् वो च् जो अपंणी गौड़ि का नाक पुटगा जूंका भैर गडणैं जुगत कनु च् ... बाछी थै मलसणुं च् ... भस फरक इतगै च् कि एक त् कव्यता ल्यखणुं च ता हैंकु कव्यता जींणू च ..।
मि अपंणु सबु दगड़ मेस मांग वलु सुभौ नि छोड़ सकदु .... तु म्यारू भणजु छै पर त्वे चुलै मीथै अपंणु कुंणजु प्रिय च् जो सबुक पूजा पाठ ब्यो काज निमटांणु च् पर वैल अपंणी धरतिम उगंणु नि छोड़ि... न अफ्फू थै वेल बड़ु चितायो ...
ममा म्यारा ऐथर अपंणी कुटरी ख्वलंणु राई अर मीमा उंका समंणि मूंण हिलांणा सिवा हैंकु क्वी लालु चारू नि छायो
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
एक ★ परिचय ....