Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 144775 times)

Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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ढुंगुळ संस्कृति याने साजो चुल्ल
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 सौज सौज मा संस्कृति विरतान्त   :::   भीष्म कुकरेती   

 मीन उत्तराखंडौ  इतिहासौ बारम भौत सी किताब बाँचिन , जॉर्नल पौढ़िन त पायी बल भोज्य पदार्थुं पर साहित्य च पण  कन बणद छौ , केपर बणद छौ पर मि तैं कुछ नि मील।  इतियासकारुं बिंडी गळति नी।  जब ज्योति राय  बहुगुणा या मौलारमन भोजन बणाणो पद्धति पर कुछ नि लेखि , अंग्रेजुंन कुछ नि बताई त आजौ इतियासकार कखन ल्याखल।  श्रीनगर म प्राकृतिक अर राजनैतिक आपदा से कुछ बि रिकॉर्ड नि बचिन।
   ठीक च इतियासुं पोथ्युं म कुछ नि  मिलणु च पर हमर समाजन कुछ त लौस रखीं इ च।  ढुंगुळ बणानो संस्कृति अर बसिंगु उस्याणो संस्कृति हम तै सन 1815 से पैल लिजाणम सक्षम उदारण छन।  जी हाँ साजो ढुंगुळ बणानो संस्कृति अर बसिंगु उस्याणो संस्कृति निर्देशित करदि बल हमर भोजन पद्धति अंधा युग मा क्या छे।
      गरीबी या कमजोरी सहकारिता या साजी  संस्कृति निर्मित करदी अर गरीबी या कमजोरी ही साजी संस्कृति अक्षुण रखदी। जब मनिख कमजोर हूंद त वु दुन्या भर पर निर्भर रौण चांदो अर जनि वैमा पैसा आयी ना वु व्यक्तिगत याट का मालिक बण जांद।  मुकेश अम्बानी मुंबई सरीखा जगा म अकेला रौणौ  कुण बहुमंजिली बिल्डिंग बणांद।  मि राष्ट्र चोर मल्लया की बि बात करणु छौं। अंग्रेजुं आणौ बाद ही गढ़वाळ  मा समृद्धि ऐ अर हम साजा संस्कृति से व्यक्तिवादी संस्कृति तरफ ढळकां।
      जब 1815 से पैल एक गौं मा अधिक से अधिक 8 या 10  मवस रौंद था अर धातु खरीदण त दूर दिखण बि कठण छौ , जब ल्वार -टमटौं से काम लीण अति कट्ठण छौ तो लखड़ कटणौ दाथी - कुलाड़ी अलभ्य हूंद था , लखड़ जमा करण बि सरल बात नि छै।  तवा हरेक घौरम मिलण वास्तव मा सुपिन हूंद छौ त साजो ढुंगुळ संस्कृति ही रै होली।  सबि मौ संध्या काल से पैलि कट्ठा ह्वेका निश्चित जगा मा गुपळ या छुट लखड़ जळांद रै होला  , अर अपण -अपण क्वादु , जौ , ओगळौ उल्युं आटो लखड़ौ या पत्थरौ पयळम लेक आंद रै होला या उखमि लाबुं  मा आटु उल्दा रै होला।  फिर हरेक अपण अपण चपड़ पत्थर मा मोटि ढिंढी धरदा रै होला अर ढुंगुळ पकांदा होला। भुज्जी बि उखमि बणदि होली।  अगर आप सन साठ से पैल गाँवों तैं याद करिल्या त दिखिल्या बल गढ़वाली गाँवों मा स्याम दैं सूखी  भुज्जी को ही रिवाज थौ।  या पुरातन संस्कृति की एक लौस च।  याने 1815  से पैल    रात की भुज्जी भड़यीं भुज्जी को ही प्रचलन रै होलु।   भुज्जी भी तकरीबन जंगळ की ही भुज्जी रै होली। मैणु मसला जंगळ  से  प्राप्त हूंद थौ।  हफ्ता मा द्वी दिन तो शिकार खाये ही जांदी होली।
       ल्वार  शिल्पकार बि अवश्य ही दगड़म भोजन करदा रै होला।  या अलग यु एक प्रश्न च जांक जबाब खुज्याण पोड़ल । म्यार अंक्यांण बुल्दु बल चूँकि आठ मौ मध्य एक शिल्पकार हो त शिल्पकार तैं अलग नि समजे सक्यांद रै होलु।
       
      इकम दिमाग लगाणो जरूरत नी बल तब बि जनानी ढुंगळ पकाणम व्यस्त रौंदा होला अर मर्द गप्पबाजी म व्यस्त रौंदा होला।  एकाद डौंरु बि घुर्कांद होलु।  ह्वे सकद च तब बि अशोक महानौ  काल समळदा होला कि तब हम समृद्ध छा अर गढ़वाल से रोम माल निर्यात हूंद छौ।  मनिख भूतकाल कु रूण नि छुटदु त मि तैं पूरो भरवस च बल हमर बूड -खूड बि पुरातन समृद्धि की याद करदा रै होला अर भविष्य की छ्वीं  कबि नि करदा होला। असल मा भविष्य डरावना जि हूंद। 
 
         


12/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,
    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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Bhishma Kukreti

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पलायन के समर्थन में  दो शब्द
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   
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   अब जन कि ये हफ्ता बि फेसबुक मा सौ मादे साठ गढ़वाली कविता पलायन पर छे ,कविता  पलायन से बांजी कूड्यूं रुण धूण पर केंद्रित छे।  कवि याने समाज का प्रतिनिधि त हमर समाज पलायन याने समाधान से दुखी च।  मेरी समज मा यि नि आंदि बल जब सामयिक संस्कृति अर्बनाइजेशन याने शहरीकरण की च त फिर पलायन तैं गाळी देकि यि कवि कौन  सा धज घौटी ल्याल।  आज तो समय की दरकरार च बल युवाओं तैं प्रोत्साहित  करे जावो कि वु न्यूआर्क मा , ऑस्ट्रेलिया मा ,जापान मा नौकरी लैक बणन अर हमर कवि बुना छन कूड़ि -पुंगड़ी संबाळो। ये कुणि बुल्दन बल पिछ्ल्वाड़ी बाड़ी खाण , पिछ्ल्वाड़ी पाणी पीण , न्यूआर्क की जगा गांव मा नौकरी खुज्याण। 
   फेसबुक की बात ले ल्यावो तो गांवासी गढ़वाली अबि बि बुलणा रौंदन -प्रवासी मुंबई मा रैकी गढ़वाल की बात करणा रौंदन या अब प्रवासी हम तैं सिखाल ? पर यी गढ़ववासी  भूल गेन कि अंग्रेजुं समय से लेकि आज तक अद्धा से सअधिक विकास मा भागीदारी प्रवास्युं की ही च।  सन साठ सहत्तर से पैल गांवुं आर्थिक स्थिति त मन्या ऑडर से ही चल्दी छे।  आज अधिसंख्य गढ़वाली पढ़्यां -लिख्यां छन तो वु प्रवास्युं कारण ही पढ़िन।  जरा अपण गाउँ सँजैत भांडु पर नाम त द्याखौ तो पैल्या कि इ भांड बि प्रवास्युंन ही निड़ै छया।  यो एक कटु सत्य च कि आज बि गांवुं मा मंदिरुं आधुनिकरण हूणु च वु प्रवास्युं बल बूता पर हूणु च अर  फिर बि गढ़वाल वासी प्रवास्युं कुण बुलणा रौंदन बल - तुम प्रवासी हम तैं सिखैल कि गांवक विकास कनै करण ?
    एक कविन अबि द्वी चार दिन पैल ल्याख बल यदि मुंबई वळ प्रवास्युं  तै गढ़वाल की इथगा इ खुद लगणी च त गढ़वाल मा किलै नी बसणा छन।  मि निखालिस प्रवासी छौं त इथगा इ बोल सकुद बल खुद पर त म्यार बस  नि चलद पर मि मुंबई का प्रवास्यूं तै थोड़ा भौत प्रभावित कर सकुद छौं कि वु अपण बच्चों तै इन शिक्षा देन कि भैर देसुं  सरकार हमर युवाओं अपण देस मा स्वागत कारन।  जी मि तैं त खुद लगणी छन किन्तु मेरी नई जनरेसन तै गढ़वाल की खुद नि लगदी जी।  अब तो कवि खुस रालो।
    गढ़वासी भौत सा बगत प्रवास्युं मजाक उड़ांदन।  एक तरफ प्रवास्युं मजाक उड़ांदन अर दुसर तरफ जनरल रावत , डोभाल , धस्माना आद्युं पर गर्व करदन अर अपण रिस्तेदारी बि बथांदन।  भाई यूं तै क्वी बताओ तो सै कि यी अधिकतर प्रवास्यूं संतान छन।  प्रवास अर प्रवास्यूं तै विलियन या खलनायक बणान सर्वथा बंद हूण चयेंद।  या मानसिकता भविष्य दृस्टा मानसिकता नी च  अपितु कूप मंडूकता की मानसिकता च। 
   प्रवास अर प्रवास्युं तै विलियन।  खलनायक बणानो अर्थ च कि यथास्थिति से मुक लुकाण।  पलायन तैं यदि हम समाधान मानिक चलला  तो हम इन युवा पैदा करला जु एक कंम्पीटिटिव युवा ह्वाल।  हम तै त पलायन का वास्ता प्रतियोगी  युवाओं की फ़ौज तयार करणै बात करण चयेंद ना कि पलायन रुकणै बात।  जब हमसे पलायन रुके इ नि सक्याण त किलै हम अपण युवा पीढ़ी तै घंघतोळ मा रखवां ? आज आवश्यकता च गढ़वाल का युवाओं तैं विदेशों मा नौकरी लैक बणानो की।  जी हाँ ! आज छ्वीं लगाओ कि किस तरह ग्रामीण गढ़वाली युवा न्यूआर्क , न्यजीलैंड या जापान में नौकरी पाए। 


13/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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रिंगाळ पाणीम डुंकुर बडा की धर्मशाला अर  ढंग्वाळुं पर प्रश्न चिन्ह
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 ख्वाब इ ख़्वाब मा    :::   भीष्म कुकरेती   

 रिंगाळ पाणी कु नाम इलै पोड़ कि दक्षिण दिशा हूण पर बि इकम खूब रिंगाळ हूंद था।  अब त सरकारी नामपट्टिका मा यीं जगाक  नाम रिंगाल पानी ह्वे गे।  पता नी उत्तर प्रदेश मानसिका का पळयां पुस्यां , हिंदी का पिछलग्गू अधिकारी कनै पाणी रिंगाल धौं।  खैर मि त चाचा नेहरू  जमानो ढंग्वाळ छौं त मे से पाणी नि रिंगाये जांद अर मि क्या ठंठोली का चक्रधर भाई बि यीं जगा तैं रिंगाळ पाणी ही बुल्दन।
     रिंगाळ पाणी याने नौ गढ़ का बिलकुल तौळ याने डेढ़ द्वी  हजार साल पैल बि इखम पाणी छौ तबि त गढ़ी बणाये गे होली।  रिंगाळ पाणी कोटद्वारा -ऋषिकेश मोटर सड़क पर बिलकुल बीच मा च।  सिलोगी से ढाई तीन किलोमीटर पश्चिम मा।  दक्षिण दिशा अर तौळ क्या अगल बगल मा बंजण याने रौंतेली जगा मा पाणी।  रिंगाळ पाणी की महत्ता आजि ना सन 1860 का करीब बि इनि छे।  रिंगाळ पाणी तै टैम क दुगड्डा से पौखाळ डिस्ट्रिक्ट बोर्डक सड़क का किनारा छौ। अर आज मोटर सड़क का किनारा।  ग्वील मल्ला ढांगू की सरहद मा अर बड़ेथ की सरहद पर चिपटीं जगा।  बिचर जसपुर वाळ त स्याणी करदन बल कबि या जगा त हमर छे पर ग्वीलक पधान जीन हममन चालाकी से छीन दे।  खैर द्वी भायुं झगड़ा त महाभारत काल से चलणी च तो इख पर चर्चा बेकार च।  जसपुर कु छौं त गुबार भैर आई जांदन।
 या डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की सड़क मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू अर लंगूर तैं डबरालस्यूं , अजमेर व उदयपुर से जुड़दी।  डिप्टी अब लोग घ्वाड़ों मा यीं सड़क से इ  म्वाइना  करणो आंद छा।
     जी त रिंगाळ पाणी  डिस्ट्रिक्ट बोर्ड सड़क पर च अर कबि सन साठ पैंसठ   तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड सड़क पर रिंगाळ पाणी से  थोड़ा तौळ एक धर्मशाला छै।  यीं धर्मशाला तैं हम छुट बच्चा डुंकुर बडा की धर्मशाला बुल्दा था तो हमर बुजुर्ग डुंकुरु ददा की धर्मशाला बुल्दा छा। मीन या धर्मशाला साबुत दिखीं च शायद तीन कमरा छा अर आगवाड़ी चौक छा। डुंकुर  सिंह नेगी बडा जी जसपुर का छा ।   बटोही , गौड़ी -भैंस्यूं -बखरों गलादारों व सरकारी कारिंदों पनहागार छे या धर्मशाला।
 जसपुर का डुंकुर बडा का दादा जीन या धर्मशाला बणवै छे।  क्या जज्बा रै ह्वाल तब वे बूड ददा जी पर।  कनै बणवै होली या धर्मशाला तब जब तकनीक अर कंळदार की ही ना मनिखों  बि तंगी ही रै होली।  एक सामाजिक हित  को हितैषी का जजबा को परिणाम छौ रिंगाळ पाणी की या धर्मशाला।  चूंकि चैलुसैण से  जाखणी धार तक पाणी की भारी कमी छे तो रिंगाळ पाणीम धर्मशाला बिलकुल सही जगा पर छे।  बटोही धर्मशाला म भोजन बि बणांद छा।
      फिर जब या धर्मशाला टुटण लग त कुछ लोग पठळ , दारु सब लीगेन।  डुंकुर बडा क नौनान पता लगाई तो पायी वै टैमक पधान जीन रजिस्ट्री ही नि कौर छे। खैर अब भौतुं तै पता इ नी कबि इखम धर्मशाला छै।
       अब मि दुसर प्रश्न  उठाणु छौं।  मल्ला ढांगू अर  बिछला ढांगू वळुं तैं रिंगाळ पाणीम एक वेडिंग प्वाइंट ब्वालो या टूरिस्ट हाउस चयाणु च।  टूरिस्ट हाउस एक अहम आवश्यकता ह्वे गे।  वेडिंग प्वाइंट या टूरिस्ट हाउस का वास्ता जगा तो सिलोगी ही सही च किन्तु पाणी नि हूण से सबसे उपयुक्त जगा रिंगाळ पाणी ही च।  सब बात करदन बल इखम या तखम कुछ चयांद किन्तु बात हवा मा ही फुर्र ह्वे जांदन।
     यदि 1860 या 1880 मा डुंकुर बडा जी का ददा जी लोगुं सहकार से धर्मशाला बणै सकदा छा तो क्या मल्ला ढांगू का प्रवासी रिंगाळ पाणीम कोऑपरेटिव टूरिस्ट हाउस नि बणै सकदन ? क्या मल्ला ढांगू का प्रवासी यीं बड़ी आवश्यकता तै पूर नि कौर सकदन ? कौर त सकद छन पर हम अब सब कुछ सरकार से चांदवां तो इन मा डुंकुर बडा का दादा जी पैदा नि ह्वे सकदन।  क्वी हमर बांठक झाड़ा बि हौगी आल की मानसिकता से तो सहकारी टूरिस्ट हाउस नि बणद।  मल्ला ढांगू अर बिछला ढांगू वळुं तैं आज ना भोळ सामूहिक , सहकारी वेडिंग प्वाइंट रिंगाळ पाणीम बणाणि पोड़ल त आजि किलै ना मेल मिळवाक से ये पुण्य अर आवश्यक काम तै करे जावो ?
  अब इन नि बुलेन  बल मुंबई मा रैक मि कुछ बि सलाह दे सकदु।  यदि मेरी सलाह मा रति भर भी कमी हो तो  द्वी  जुत मारी  ल्यावो।  मि एक प्रवासी छौं गलती से द्वी चार सालम इ सै मि जसपुर जै इ लींदो , हम मादे एक भाई हर साल  गाँव जांदो तो मि तै पता चल ही जांद कि हम तै क्या क्या आवश्यकता पड़नी  छन। 

15 /1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,


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परम्परिक वस्त्र टी शर्ट -जीन की जगह ब्रा -बिकनी में मंदिर प्रवेश पर बबाल !
देव पूजन में पारम्परिक पीजा काटने की जगह चॉकलेट काटने पर उठे सवाल !
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती
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(स्थान -गढ़वाल कु गढ़पुर गाँव , समय -सन 2050 )
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 गांववासी पैल प्रवास्यूं तैं गाळी दींद छा बल यी प्रवासी अपण गाँव नि  आंदन , अपण कूड़ पुंगड़ नि संबळदन।   गांववासी प्रवास्यूं तै तून दींद छा बल अपण कुलदेवता पुजणो बि नि आंदन।   त कवि -साहित्यकार प्रवास्यूं मजाक उडांद छा बल प्रवासी बड़ा क्रूर , घमंडी ह्वे गेन जु गाँव बिसरि गेन।
   अब गाँव वळ परेशान छन बल क्वी मैना इन खाली नि जांद कि द्वी चार प्रवासी ड्यार नि आवो।  चकबंदी अर ऑर्गेनाइज्ड ओउटसोरिंग ऐग्रिकल्चर मैनेजमेंट एजेंसीज व ऊंक लेबर की सायता से हरेक प्रवासीन अपण पुंगड़ पटळ संबाळी येन।  अब हरेक प्रवासी एजेंसियों मदद से प्रीमियम फसल उगांद अर एक नाळी  जमीन से लाखों कमांद।  हरेक प्रवासी आउटसोर्सिंग एजेस्यूं मदद से बहुउद्येस्य फसल ही नि उगांद अपितु अंडा , मधु , हर्बल मेडिसिन , प्रीमियम क्राफ्ट उद्यम बि दगड़म करणु च। अब भूमि बंजर ना अपितु एक एक इंच भूमि का वास्ता महाभारत हूण मिसे गे।  गाँव वासी  आउटसोर्सिंग एजेंसियूं का धुर विरोधी ह्वे गेन।  हर मैना देहरादूनम  क्वी ना क्वी संगठन आउटसोर्सिंग  ऐग्रो एजेंस्यूं विरोध मा  चक्का जाम करणु रौंद। हवाई यात्रा सुलभ हूण इ मुंबई का प्रवासी बि हर शुक्रवारौ कुण रात गाँव आंद अर सोमवारौ कुण मुंबई औफिस ज्वाइन करणो  चल जांद।  विदेश से बि प्रवासी हर मैना गांव पौंछि जांद।  यां से गांवक सन 1960 से 2045 तक निर्मित सामाजिक विन्यास तहस नहस हूणु च।  गढ़वाल का सामाजिक चिंतक नया सामजिक विन्यास इ भयभीत छन अर यूंक बुलण च बल यु नयो समाज गढ़वाल का वास्ता घातक च।  ग्रामीण पत्रकार संघ बि प्रवास्यूं द्वारा आउटसोर्सिंग माध्यम से कृषि व ततसंबंधी उद्यम से काफी खफा च अर हर रोज विरोध मा रिपोर्ट छापणा रौंदन।  अर उत्तराखंड सरकार पैल्या की तरां सियीं इ रौंदी।  सरकार तब बि सियीं रौंद छे जब गाँव की कृषि भूमि बांज पड़ गे छे अर अब जब प्रवासी अपण बल बूता पर सामाजिक विन्यास तै तुड़णा छन , अर गढ़वाल से अंदा दुंद पैसा कमाणा छन तब बि सरकार सियीं च।
            गढ़वाल का साहित्यकार तो हर रोज फेसबुक मा आउटसोर्सिंग ऐजेस्यूं विरोध मा कविता पोस्ट्याणा इ रौंदन।
    प्रवास्यूं द्वारा बार बार परिवार सहित ड्यार आण अर कुलदेवता पूजा कराण से बि पारम्परिक धार्मिक संस्कृति खतम हूणै कगार पर च।  कुछ दिन पैल लोग क्या सुंदर नागरजा , ग्विल , नरसिंग पुजणो निमित पीजा काटद छा अब प्रवास्यूं का कारण पारम्परिक पीजा नि काटे जांद अपितु पूजा मा लम्बा बड़ा बड़ा चॉकलेट काटे जांदन।  पीजा कटर अब इतिहास की वस्तु ह्वे गे अर चॉकलेट कटर अब हर घर की रौनक ह्वे गे।  नागराजा पूजन मा बेल्जियम कु चॉकलेट काटे जांद , ग्विल्ल क घड्यळ म स्विट्जरलैंड का चॉकलेट ही काटे जांद त नरसिंग जी तैं केवल हॉलैंड का ही  चॉकलेट पसंद च।
     पारम्परिक चाउमीन परसाद की जगा अब अफ्रीकी भोजन उगानी अर फुफु बांटे जांद।
   गढ़वाली संस्कृति पर सबसे बड़ो धक्का तब लग जब स्त्रियोंन पारम्परिक गढ़वाली वस्त्र याने टी शर्ट -जीन्स  की जगा ब्रा अर बिकनी पैरिक मंदिरों मा पूजा करणो रिवाज शुरू कार ।  भौत विरोध ह्वे , कखि कखि तो पारम्परिक पहनावा टी शर्ट -जीन्स की जगह स्त्रियों द्वारा ब्रा -बिकनी पैरण पर हाथापाई बि ह्वे किन्तु अंत मा बिकनी अर ब्रा की ही जीत ह्वे।  सरकार गढ़वाल की  पवित्र संस्कृति नाश पर अबि बि सियीं च।  कुनगस त यु हूणु च की गढ़वास्यूं स्त्री बि ब्रा अर बिकनी मा घड्यळम नाचदन।  सरकार तै कुछ नी पड़ीं च कि गढ़वाली संस्कृति याने टी शर्ट -जीन्स संस्कृति रसातल कु जाणी च।
     जागर्यूंन बि अब कृष्ण -राधा जमुना जल खेल , कृष्ण -रुक्मणि विवाह , अर्जुन द्वारा सुभद्रा भगाणो  जागर मा राधा , रुक्मणि अर सुभद्रा तैं ब्रा बिकनी पैराये आल।  सरकार अबि बि सियीं च अर जागर्युं विरुद्ध कुछ नि करणी च।
    गढ़वाली भाषाई साहित्यकार व पत्रकार पारम्परिक वस्त्र टी शर्ट व जीन्स  संस्कृति बचाणो भरसक प्रयत्न करणा छन किन्तु सरकार की उपेक्षा से लगद नी कि टी शर्ट -जीन्स संस्कृति बचली।
     
     
   


16/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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Bhishma Kukreti

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दिनेश कंडवाळौ ड्यार बसनणम भ्यूंळ -खड़िक मध्य  करुणामय बातचीत  किलै ?
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   

बांदर - तुमन बि सूण बल साइकिलबाड़ी - किमसारौ , उदेपुरौ  दिनेश कंडवाल रिटायरमेंट का बाद अपण गाँव बसणो आणु च।
स्याळ  -कुछ पता नी।  अचकाल त मनिख बुल्द कुछ हौर च अर करदु कुछ हौर च।  अचकाल त यी गढ़वळि फेसबुक्या फोटक बाज ह्वे गेन।
बांदर -नै नै सच्ची ड्यार बसणु च।  मि त चॉकलेट , नमकीन अर पव्वा क खातिर वैक कूड़ जिना  गे छौ मि त दिनेशौ साफ़ कर्युं कूड़ अळग जैक पटाळ खपचैक ऐ ग्यों।  अबि वैन भितर कुछ नि धार।
स्याळ - मतलब सच्ची बसणु  च।  ह्यां बखर बि पाळल कि  ना ? चिनख -चनख ! हैं ?
बांदर -तेरी अर मनिखों नजर चिनखों डौण्यूं पर रौंद।  मि त किमसार जिना जाणु  छौं लंच टैम ह्वे गे।  लोगुन प्रेसर कुकर पर भात पकै ह्वे ह्वाल।  एकादक भितर कुछ त मीलल।
स्याळ -मि त बण्वस जिना जाणु छौं।  धनसिंगौ बखर बियाण वळ छौ।  क्वी चिनख इ हाथ लग जावो।
(द्वी चल जांदन )
खड़िक - मेरा पिया  घर आया , मेरा पिया घर आया।  दिनेश घर आया
भ्यूंळ (भीमल )- ये बुड्या खड़िक ! सोळा सालै बिरहणि तरां क्या छे कुतकणी बल मेरा पिया  घर आया ?
खड़िक - अरे जन दिनेशक दादि मेरी भुकि पींद  छे तनि अब दिनेश मेरी भुकि प्याल।  पचास -साठ  साल ह्वे गेन मनुष्य स्पर्श दिख्यां।  आह जब दिनेशै दादी मि तैं मलासादि छे , मेरी भुकि पींदी छे तो अहा क्या रोमांच आंद छौ , रोमांच , आनंद ही आनंद। उफ़ वो आनंद अब दिनेशौ स्पर्श से प्राप्त होलु।
भ्यूंळ  - झूठ साला खड़िक।  वा तेरी भुकि नि पींदी छे ना ही त्वे तैं मलासदी छे अपितु त्यार ग्वाळ इथगा म्वाट छौ कि चढ़द दैं वींक मुख त्यार ग्वाळ , तेरी फौंट्युं   पर लग जांद छौ।  अर तू समजद छौ कि वा तेरी भुकि पीणी छे या त्वे मलासणि च। 
खड़िक -चुप कर , चुप कर , मि तैं भूतकाल मा जाण दे।  अहा वो आनंद , वो असीम आनंद , वाह वो परमानंद! हौर डाळयूं चेतना दाथी देखिक रूंदी छे कि अकाल मृत्यु आण वळ च किन्तु  मेरी चेतना दिनेशै ददि हथ पर दाथी या थमळि देखिक प्रसन्नता मा हिलोर मारदी छे।  मीन त यु आनंद दिनेशै बूडददि दाथी , थमळि से बि कथगा बार ले छौ।  जनि दिनेशैक बूड ददि या ददि की थमळ दिख्यांद छे कि मेरी जीव चेतना प्रसन्न हूंद छे कि वा अपण घासौ बान मि तैं छिंडारली , काटली अर कटण -छंटण -छिंडारण से मेरी उमर दिन प्रतिदिन बढ़दी जाली।  अहा वो रोमांच अब दिनेश से प्राप्त होलु।
भ्यूंळ (जोर कु किराट )  - नि दिला याद , नि दिला वो आनंद का हिलोर।  मीन दिनेशै बूड ददि क हस्त स्पर्शौ चरमानंद नि ले पर वैक ददि अर कुछ दिन वैक ब्वे क हस्त स्पर्श का आनंद लियुं च।  श !श !श्यू ! अहा वो ऊंक मे पर चिपटण , ऊंक लौंफ्याण अर हर साल मे तैं छिंडारण।  वो वो ! चरमानंद मिल्दो छौ कि मेरी उमर बढ़ली। किंतु जनि दिनेशै ब्वे देस क्या गे क्वी मनिख स्पर्श ना , क्वी भुकि ना अर क्वी छिंडारण ना।  बस एक हस्त स्पर्श की प्रतीक्षा। हाय ! हाय ! यी गाँव वळ परदेस गेन अर हम तै अनाथ , बेबस छोड़ी गेन।
खड़िक - अर अब ! इथगा सालों से लगलों झाड़ तौळ दब्युं छौं।  अब त क्वी हम तै छिंडारो ना सै किन्तु हमर मथि जंगली लगलों जाळ से मुक्त तो कराओ कि जां  से हम अकाल मृत्यु से बच जौवां।
दूर डांड बिटेन बांज की आवाज - अरे हमर बि सी हाल छन।  जंगली लगलों तौळ ज्यूंरा की जग्वाळ।  त्रासदी ही त्रासदी।
भ्यूंळ  - मि बि यूं लगलों बोझ से  अदमर ह्वे ग्यों।  उना यूं गाँव वळुंन खेती बंद कर दे तो हमर जलड़ुं कुण हवा बि बंद ह्वे गे
खड़िक - अहा  हौळ देखिक बि मेरी चेतना प्रसन्न हूंदी छे बल हौळ लगण , निराई गुड़ाई से हमर नजीकै मिट्टी मा हवा इना ऊना होली।  क्या दिन छा  वो।
भ्यूंळ  - अब त पचास साल  ह्वे गेन नई हवा की सुरसराट अनुभव कर्यां।  वू.. फ ..फ   .... वा सरसराट   ....
खड़िक - चलो अब फिर इ मेरी चेतना मा  नई ऊर्जा संचारण हूण लग गे  कि अब दिनेश हमर मथि लगलुं जाळ साफ़ करवाल  ,  हम तै छिडरवाल। . अति आनंद।
भ्यूंळ  -चरमानंद , चरमानंद , चरम ..
तिमलौ डाळ  (अट्टाहास )-  वाह भै वाह  ! आज द्याख बल वनस्पति बि मनिखों तरां कपोलकल्पना म रत हूंद। वनस्पति जु छ याने ऐज इट इज पर विश्वास करद अर तुम कल्पना तै जिंदगी समजण लग गेवां ?
खड़िक - क्या मतलब ? दिनेश हम तैं नि कटवाल ?
भ्यूंळ  - हाँ हम तैं नि छिंडवारल ?
तिमल - पर किलै वु तुमर सुद्द ल्यालु ? वै तैं क्या पड़ीं च कि हम तैं दिनेश छिंडवारल ?
खड़िक - कनो वै दिनेश तैं गौड़ुं कुण हमर घासै जरूरत नि ह्वेली ?
तिमल - हाँ गौड़ ह्वाल तो अवश्य ही हम तिन्युं जरूरत दिनेश तैं पोड़ली।
भ्यूंळ  -तो वो दूधक बान अवश्य ही गौड़ पाळल कि ना ?
खड़िक - हाँ बोल  बोल।  दिनेश गौड़ पाळल कि ना ?
तिमल - ना।  बिलकुल ना आज गौड़ पाळिक दूध पीण मैंगो ह्वे गे।
भ्यूंळ  - तो दिनेश दूध कखन प्यालु ?
खड़िक -हाँ बोल दिनेश दूध कखन प्यालु  ?
तिमल - अब पॉलीथिन बैग या टेट्रापैक पर दूध मिल जांद तो गौड़ कु पाळल ?
भ्यूंळ --खड़िक (भयंकर किराट ) हे भगवान ! तो हमन इनि खुंडेक मोर जाण ?

17/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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 म्याळ  चट्वा नातणी चौकीदारी  !
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 बत इ बत मा   :::   भीष्म कुकरेती   

 जी मि अपणी  छ्वीं लगाणु छौं , तुमर छ्वीं नि लगाणु छौं अर ना ही 47 सालौ बालनेता राहुल गांधी की छ्वीं लगाणु छौं।
   जी मेरी नातण डेढ़ सालक च अर पिछ्ला  छै मैना से या वां से पैल बिटेन मळयो , म्याळ या दिवाल चट्वा ह्वे गे। जखम बि कुछ दिख्याउ वा फट से वीं चीज  तै उठैक मुक पुटुक ली जांद।
  अर अब हमर एक प्रमुख काम च नातणि चौकीदारी करण।
 अब वा त बच्चा च त वा हर चीजै छान बीन करण चांदी बल आखिर या चीज छ क्या च।  वींक अन्वेषण प्रवृति हमकुण चौकीदारी काम लै आंद।  जैक घौरम जथगा बड़ अन्वेषी प्रवृति बालिका या बालक  वै घौरम बड़ा बैक उथगा इ बड़ा चौकीदार।  बच्चा हर चीज का बारा म जिह्वा से खोज बीन करण चांद अर हम वरिष्ठुं  काम हूंद बच्चा की खोजबीनै देव दत्त गुण कु जड़ से नाश  करण. एक तरफ हम चांदा बच्चा सब बालसुलभ क्रीड़ा कारो अर ठीक बिपरीत हम बच्चों की आदम अन्वेषण प्रवृति ही खतम करणो सब इंतजाम करणा रौंदा।  बाल सुलभ क्रीड़ा तो बच्चा तब कारल  वै तै अन्वेषण की खुली छूट  दिए जाल।  हम द्वी झण बि अपण नातण से आसा करदां बल वा बाल सुलभ कृत्य -नृत्य दिखावो पर दगड़म हम वीं तै कुछ बि अलखणी -बिलखणी काम नि करण दींदा। हमर परिवार विज्ञान प्रेमी च अर हमर आजि बिटेन इच्छा बण गे कि हमर बेटी या नातण तै विज्ञान मा नोबल पुरुष्कार मीलो किन्तु हम हर घड़ी यी दिखणा रौंदा कि हमारी नातण क्वी बि अन्वेषण नि कार साको । हम बच्चों तै डरांदा छा कि बच्चा कुछ बि छेड़खानी या नई चीज की खोजबीन अपण तरीका से नि कारो  , अपण   प्रकृति हिसाब से खोज कतै नि कारो। पैल हम अपण बच्चों अन्वेषण प्रवृति समाप्त करदां अर फिर गाणी स्याणी बि करदा बच्चा महान खोजी ह्वे जावो।
   प्रकृति या गॉड जी तै त पता नि छौ बल मनुष्य माटौ घौर छोड़ि सीमेंटौ घौर बणाल  तो प्रकृतिन बच्चों तै इन गुण दे कि वु माटु म रतबुळाओ। माटु खावो तो प्रतिरोधक शक्ति प्राप्त ह्वे जावो दगड़म भोत सी धूळ जनित एलर्जी का प्रति प्रतिरोधक शक्ति बि ऐ जावो।  अब हमर पास माटु दिखणो नि मिल्दो तो बच्चा बिचर भौत सा प्रतिरोधक शक्ति पैदा करण से बंचित रै जांदन।
  माटु से बच्चों तैं भौत सा खनिज लवण मिल जांद छौ त अब टाइल्स मा क्या मिनरल मीलल।  खैर अब डॉक्टर कुछ ना कुछ मिनरल दीणा रौंदन तो कमी पूरी ह्वे इ जांद ह्वेलि।
   माटु मा भौत सा फैदामंद बैक्ट्रिया मिल जांद छा अब बच्चा यूं बैक्टीरियाओं से महरूम रौंद।
मी बि सबि  आधुनिक दादा छौं तो मि अपण नातण तैं डर्ट नि खाण दींदु अर बाकी सब कमी बेसी डाक्टनी पर छुड्युं च ज्वा वा ब्वालली सि करला।  पर क्या डॉकटनी सब चीज बतांद ह्वेलि कि यु कारो!  स्यु कारो। कुज्याण भै कुज्याण।
 
   


19 /1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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लोककथ्यों मा स्थान वैशिष्ठ्य याने प्लेस ब्रैंडिंग इन फोक सेइंग्ज
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   

   जब बि क्वी गढ़वळि कॉंग्रेसी या अन्य विरोध दलौ  समर्थक प्रधान मंत्री मोदी जीक काट करणौ बान ब्रैंडिंग , मार्केटिंग पर थमळि चलांद त सच्चि मेरि जिकुड़ी जळ जांद।  अरे भै  गढ़वळि ! राहुल गांधी तो अबि बि अजाण च , लाटु च , कालु  च वै तै मार्केटिंग या ब्रैंडिंग तैं गाळी दीण द्यावो पर तुम त अकलमंद छंवां तुम त नि द्यावो ब्रैंडिंग तैं मुर्ख जन गाळी।
    ब्रैंडिंग क्वी नई चीज नी च , मार्केटिंग क्वी नै  विचारधारा नी च , पहचान की बात करण त मनुष्य धर्म च , एक लक्षण च जी।
  जरा अपण गांवक तरफ द्याखौ त पैल्या बल आपक गाँव मा भौत सा स्थानीय कहावत ह्वेलि जु प्लेस ब्रैंडिंग का अच्छा खासा उदाहरण होलु. जन कि मौल्या कौंक ख्वाळ , उच्चकोट की मुंगरी , बिंदास धारक भूत आदि आदि। यी सब स्थान वैशिष्ठ्य का उदाहरण छन।  वास्तव मा  मार्केटिंग का उदाहरण छन। हमर बूड अंग्रेजी नि छ्या पढ़्यां पर मार्केटिंग तब बि करदा ही छा।
      हमर इलाका का नाम च ढांगू।  अर वास्तव मा ढांगू एकवृहद क्षेत्र छौ जै तैं बाद मा गंगासलाण बुले गे अर यु क्षेत्र दुग्गड से लेकि गूमखाळ , डबराल स्यूं , अजमीर , उदयपुर अर ढांगू ये क्षेत्र म आंद छौ।  अन्य क्षेत्रुं तुलना मा ढंगार क्षेत्र छौ तो हौर  क्षेत्र का लोग बुल्दा छा - जाणा ढांगू , आणा आंगू।  याने ढांगू जावो तो सचेत ह्वेका ट्रैवल कारो।  अर या कहावत आजै नी च , यु कथ्य ब्याळै बि नी च अपितु गुरख्या बि यीं बात पर यकीन करदा छा। प्लेस मार्केटिंग हमर पुरखा बि भली भाँती करदा छा जी।
        हमर पुरण लोगुंन मार्केटिंग की किताब नि पढ़ी किंतु वु जणदा छा बल प्लेस ब्रैंडिंग मा स्थान की विशेषता ही महत्व पूर्ण च।  तबि त हमर इख सैकड़ों ाल से हम सुणणा रौंदा चौंदकोट्या बांद याने स्त्री सुंदरता की बात मा चौंदकोट कु क्वी क्या मुकाबला कारल।  पर चौंदकोट्या कवि गिरीश सुन्द्रियाल का समिण चौंदकोट्या बांद की प्रशंसा करिल्या तो झट से तुमर मुक मारी देल्या , " क्या मतलब हमर इक केवल सुंदरता ही च , ब्यूटी ही च ? हमर इखाक बल्द क्या बांदो  से कम छन क्या ?" बिलकुल सही जी , गिरीश सुन्दरियाल सही बुल्दन जी। गोरखाकाल मा  क्या अंग्रेजों समय पर बि चौंदकोट्या बल्दुं मांग तो भाभर , बिजनौर मा बि खूब छे जी अर एटकिनसन जन इतिहासकारोंन चौंदकोट्या बल्दुं भूरी भूरी प्रशंसा कौर।  अरे साब ! इना नाटककार  गिरीश सुन्दरियाल चौंदकोट का बल्दूं प्रशंसा कारल तो टिहरी का दिनेश बिजल्वाण , जबर  सिंह कैंतुरा अर जयाड़ा बंधु अग्यो कर द्याल।  जी हाँ टिहरी का यी जांबाज किलै नि अग्यौ कारल।  सरा  गढ़वाल का का कु किसाण छौ जु   टिहरी का बल्दुं सुपिन नि दिखुद छौ ।   जी हाँ पुरातन काल से इ गंगावार वळ गंगपुर्या बल्दुं  सुपिन दिखद छा जी।  क्या या प्लेस ब्रैंडिंग नि छे ? अवश्य ही या प्लेस ब्रैंडिंग छे।
   
       मि नि जाणदु आप मादे कतकौन या कहावत सुण ह्वेल धौं।  कहावत च बल " कांड कु जालो , जैक डोला फूटलो " . डोला माने माटौ बर्तन अर कांड गाँव असवाल स्यूं  कु प्रसिद्ध गाँव छौ जो एक समय माटक भांड आदि निर्माण मा बड़ो  प्रसिद्ध गाँव छौ।  अब जब हमर पुरखा प्लेस ब्रैंडिंग याने मार्केटिंग पर इथगा ध्यान दींद छा अर हम पढ़्यां-लिख्यां  तौहीन करणा रौंदा।
  दक्षिण गढ़वाल मा  हर मौ  शहद निर्माण करद छे   किन्तु प्लेस ब्रैंडिंग कु ही कमाल छौ कि    टक त चांदपुर - बधाणै शहद पर ही लगीं रौंद छे।  बात छे   कि ना ?
  पैल सबि लोग कंबळ पैरदा  छा अर साब ! ढांगू मा त राठ  कु कमळौ  लवादा घमंड से इनि दिखाए जांद छौ जन कबि लोग अमेरिकी जीन्स घमंड इ दिखांद छा जी।  यी त च प्लेस ब्रैंडिंग।
    आज तो 47  सालौक अबोध बालक राहुल गांधी जी ब्रैंडिंग तैं गाळी दीणा छन किन्तु एक दैं अपण सांसद स्व भक्त दर्शन जी का पुत्र ऐन चुनावक टैम पर बीमार पड़ गेन त भक्त दर्शन जीन पर्ची बांटी छे - कख रै गे नीति कख रै गे माणा  श्याम सिंग  पट्वरिन कख कख जाणा।  प्लेस  ब्रैंडिंग तैं  चुनावी विज्ञापन से जुड़न ह्वावो तो यु  उम्दा उदाहरण च जी।
     अहा प्यार की बात हो अर सतपुळी बात  ना हो तो ब्रिटिश गढ़वाल मा प्यार की बात अधुरु ही माने जाली।  पता नी कथगा प्रेम लोक गीत सतपुळी से जुड्यां छन धौं। बौ सुरेला से लेकि स्याळी तक सब प्रेम का खातिर सतपुळी जांद छा तो यी त प्लेस  ब्रैंडिंग च जी माराज।
      बावन गढ़ों गीत क्या च ,अजी  साब लोगो ! बावन गढुं  लोकगीत या गीत कुछ नी अपितु प्लेस ब्रैंडिंग का सबसे उत्तम उदाहरण च।
       अर जब प्रेमी-प्रेमिका   धार -गदन छोड़ि पाबौ बजार की बात करदन तो वो बि त स्थान वैशिष्ठ्य करण  ही च जी।
  व्यासी का परांठा अर अल्लु क गुटका कुछ ना अपितु प्लेस ब्रैंडिंग ही च।
      इनि हजारों लोक कथ्य स्थान वैशिष्ठ्य की  छ्वीं लगांदन याने लोक कथ्यों द्वारा स्थान  विशेष कु बखान याने स्थान कु मार्केटिंग अर हम मार्केटिंग तै बुरु बुल्दां।  बड़ी नाइंसाफी है जी बड़ी नाइन्साफी।
      हमर जिना एक गीत प्लेस ब्रैंडिंग कु बहुत ही उमदा उदाहरण च।  ये लोकगीत मा तीन गांवुं विशेषता बताये गए।
         ग्वील कौंकि सिक्की बड़ी
        जल्ठ कौंकि धोती बड़ी
          अमाल्डु कौंका रौड्या बड़।
     एक दै  मीन यु  गीत फेसबुक म पोस्ट कार त एक ग्वील वळ   भैजी नाराज बि ह्वेन।  किन्तु या बात सत्य च कि ग्वील भौगोलिक दृष्टि से कृषि सम्पन गाँव च , उखाक लोग अंग्रेजुं  आंदि सरकारी नौकरी पर लग गे छा तो ग्वील वळुंम एक स्वाभाविक गर्व पैदा हूण  ही छौ तो दुसर गाँव वळुंन गर्व तै सिक्की नाम दे दे।  जल्ठ कौंकि धोती बड़ी वास्तव मा धोती से अधिक पंडिताइं की बात च।  अर अमाल्डु का रौड्या बड़ क्वी आलोचना नी च अपितु ऑथेंटिक कथ्य च।  अमाल्डु का उनियाल वास्तव मा शक्ति या शिव पूजक छन और अमाल्डु  का पंडित माथा पर चंदन का बड़ा त्रिपुंड लगांद छा तो ब्रैंडिंग गीत मा नाम रौड्या दे दिए गए।
            या च हमर पुरखों ब्रैंडिंग तै महत्व दीणै बात अर यदि क्वी गढ़वाली - 47 वर्षीय अबोध बालक राहुल गांधी की भकलौणम ऐक ब्रैंडिंग या मार्केटिंग तैं गाळी द्याल तो मि त छवाड़ो श्री वी पी भट्ट  सलाणी तै बि गुस्सा आल कि ना ?
 
       

   


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Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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मक्खी सम्मेलनुं याद
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   

  मि तबै बात करणु छौ जब लोग सौकार बणणो कुण मक्खी चूसा करदा छा आज 2 G , 3 G या रॉबर्ट बाड्रा जन घपला -घोटाला करण पड़द। तब दिन अच्छा छा जब एक मक्खी चूसो अर धन्ना सेठ बण जावो।  अर अब ? अब त मक्खी चुसण से धन्ना सेठ नि बणे सक्यांद अब त पूरा का पूरा हरियाणा निगळण पड़द।
 त मि तबै छ्वीं लगाणु छौं जब हम छुट छया अर सफाई याने बरख पुजद दैं अर तब शरादक   सफै से दूर का  संबंद नि छौ।  तब मक्खी से प्रेम करे जांद छौ कि मक्खी चूसो अर पैसा बचाओ।  अब त  जमन च बल  मूस मारो अर म्युनिस्पैलिटी से इनाम पाओ।  मि तबौ छ्वीं लगाणु छौं जब लालकृष्ण अडवाणी जन संरक्षक याने बूड ददा भी मक्खी नि मारदा छा। हमर बाळापन मा हम मक्खी पालक छया नै नै मधुमक्खी पालक ना अपितु हाउस फ्लाई पालक।
     तब हम मक्खी चुसण से इथगा प्रेम करदा छा कि किचन कु चुल्ल से लेकि चौक तक हमन कथगा इ मक्खी पालन केंद्र खुल्यां रौंद था।  कुछ मिनी केंद्र , कुछ मिडल किस्मौ अर कुछ मैगा पालन केंद्र।  भितर रुस्वड़म चुल्लम थड़कण से भोजन पदार्थ जु इना उना पड़ जांद छौ , म्याळ  मा गिर्यां भोजन कण या बड़ा टींड अर तौल कु  पींडो मैगा मक्खी पालन केंद्र हूंद छौ।  भैर त नि पूछो।   भैर चौक मा दसियों छुट छुट मक्खी पालन केंद्र छा जन कि सीम्प, थुक्युं थूक, खत्यां अनाज , आदि छुट छुट पालन केंद्र छा तो इना उना ब्रिटेन सुर्युं खौड़ै  ढेर अर बच्चों गूवक चिमनी।  यी पालन केंद्र सूचक छा कि हम पुरातन काल से मक्खी प्रेमी छा। हम माखों से प्रेम करदा छा अर मक्खी हम से दुगण प्रेम करदी छा।  प्रेम आबंटन मा हम मा अर माखुं  मा ओलम्पिकी  छौंपा दौड़ हूणी रौंद छे।  पर तब दुयूं कुण विन विन सिच्युवेसन छौ।
      मक्खी जन्मजाति सम्मेलन प्रेमी हूंदन ।   भैर कुछ देर मक्खी गुवक ढेर मा वृहद सम्मेलन करदा छा , कुछ छूट छुट सम्मेलन मा हि खुस रौंद छा।  फिर कुछ समय बाद यूंक शिफ्ट चेंज हूंद छे।  भैरक माख भितर चल जांद छा अर भितराक माख भैर ताज़ी हवा खाणो भैर ऐ जांद छा।  भैराक मक्खी भितर जैक भैराक गंदगी भेंट मा दींदा छा अर खुला  भोजन आदि मा गंदगी फेंकदा छा।  बिचार्यूुं तै नि छौ पता नि छौ कि ऊंकी प्रेम भेंट मा गंदगी ऐ जांद अर हम बि मक्खी प्रेमाभूत ह्वेक माखुं भिड्यूं सब कुछ चपट कर जांद छा। हम तैं मक्खी चुसणम गर्व महसूस हूंद छौ।   भितर बि मक्खी हर जगा छुट बड़ सम्मेलन करणा रौंद छा। सबसे बड़ो सम्मेलन तौलक किनारों पर हूणु रौंद छौ। हाँ मादा मक्खी बरोबर अंडा दीणो काम बि करणी रौंद छे।
     फिर दिन मा जब बेटी ब्वारि या सास घास लखड़ लेक घौर आंद छा तो वो अपण सुपकन माखों तै भैर भगान्द छा।  इनमा माख फिर से शिफ्ट  एक्सचेंज का लुत्फ़ उठांद छा अर सम्मेलन करदा छा।  एक हैंका कुण रामा रूमी करदा छा अर अपण अपण अनुभव शेयर करदा छा।  यदि घर मालकिन म समय बची गे त वा चौक मा ब्वान फिरै दींदी छे।  यां पर मक्खी कबि बि नराज नि हूंद छा उल्टां खुसी खुसी अपण खुट , अपण मुख पर लगीं , अपण पंखों पर लगीं गंदगी भेंट करणो दुसर मौक चौक -किचन मा चल जांद छा अर स्याम तक हरेक मक्खी गांवक हरेक मौक इक संग्रांद बजैक अपण जीवन समाप्त कर दींदी छे।
   फिर कुछ दिन बाद डीडीटी युग आयी त डीडीटी विज्ञापनों से हमन जाण कि मक्खी प्रेम तो बीमारी जड़ च त हमन धीरे धीरे मक्खी चुसण बंद कर दे।  अब त हिट का जमाना च अर हिट सिखाणु रौंद कि एक मक्खी आदमी को हिजड़ा बना सकती है तो हम अब चिड़ी मार से मक्खी मार ह्वे गेवां।  अर अब त मोदी जी क शौचालय आंदोलन से हम बड़ा बड़ा मक्खीमार बि ह्वे गेवां।
     अब हम स्वछता का महत्व समजण लग गेवां।  एक दैं बंदूक्या जसवंत राणा से इंटरव्यू मा पूछे गे बल राणा जी ! पुरण जमन अर नै जमन मा क्या अंतर च ? त राणा जीक उत्तर छौ - पैल हम गरीब छा अब पैसा ऐ गेन।  मातबरी अच्छी बात च , रिचनेस इज बेटर ।
एक इंटरब्यू मा महेंद्र सिंह धोनी से पूछे गे बल धोनी जी ! पुरण जमन अर नै जमन मा क्या अंतर  च ? त धोनी जीक उत्तर छौ - पैल हम गरीब छा अब पैसा ऐ गेन।  मातबरी अच्छी बात च , रिचनेस इज बेटर ।
  मि तैं बि वीरेंद्र पंवार जीन पूछी छौ बल कुकरेती जी ! पुरण जमन अर नै जमन मा क्या अंतर च त म्यार साफ़ उत्तर छौ - पैल हम गंदा  छा अब कुछ हद तक सफाई पसंद ह्वे गेवां ।  सफाई भौत अच्छी बात च , क्लीननेस इज फार बेटर ।

21/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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मि फालतू समय पर क्या क्या करदु ?
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   

 
 शहरुं मा सबसे बड़ी दिक्क्त या च बल इख ना बाछी हूंदन , ना कलोड़ हून्दन अर ना बल्द हूंदन बल खाली टैम पर यूंक कांद  मलासी ल्यावो।  डिस्कवर उत्तराखंड का सम्पादक दिनेश कंडवाल जी अब देहरादून बिटेन अपण गाँव शिफ्ट ह्वे गेन त अचकाल फेसबुक मा दुसर तिसर दिन गौड़ी कांद मलासणो फोटो  पोस्ट्याणा रौंदन।  मतलब बोर त गाँव मा बि हूणा इ रौंदन।
     खैर अब त इंटरनेट ऐ गे त फेसबुक , व्हट्स अप, ट्यूटर  आदि ऐ गेन त सोशल मीडिया बछरो कांद बण गे।  जब  बोर ह्वे गे तो पिछ्ला हफ्ता फेसबुक मा कथगा Like ऐन ही गौण ल्यावो अर हौर ज्यादा बोरियत ह्वे जावो तो कै कैन Like कार इ जाणी ल्यावो।  किंतु कुछ बि ब्वालो इंटरनेट मा पढ्युं समाचार से जन छपछपी नि पड़दि अर छपछपि वास्ता समाचार पत्र बंचण जरूरी हूंद उनी असली बोरियत हकाणो बान दुनियादारी का '''''बेकार '''''' काम जरूरी हूंदन।
     जब मि ऑफिसम हूंद त साब बोर नि हूण दींद।  तातो तवा मा खड़ ह्वेक क्वी बोर ह्वे सकद क्या ? सैत च ना।  पर फिर बि बोर होइ जयांद।  जन कि एयर पोर्ट म प्लेन लेट ह्वे जावो , ट्रेन मा बोर हूणु हूं त इन मा मि अपण कै बि मातहत मैनेजर तैं फोन करदु अर इन सवाल पुछ्दु जु मीन पिछ्ला पांच सालम कबि नि पूछ ह्वाव या जै सवालक जबाब की आण वळ पीड्युं  तै बि जरूरात नि पोड़।  कुछ मैनेजर झूठि सच्ची लगाण मिसे जांदन त मि तैं  अंदर इ अंदर हौंस आण मिसे जांद अर मेरी बोरियत खतम हूण लग जांद।  चूहेदानी मा फंस्युं मूस देखिक जन मजा आंद तनि यूं मैनेजरों जबाब सूणी मजा आंद अर बोरियत पर बुज्या लग जांद।  पर कुछ मातहत मैनेजर म्यार बि बाब निकळ जांदन।  म्यार एक मातहत छौ बी मोहन।  वु म्यार दगड़ यीं कम्पनी या वीं कम्पनी मा राइ त म्यार अप्रासंगिक इर्रेलिवेंट सववलो जबाब मा उल्टां पूछि लींदो बल "साब ! वो आपकी एक फ्रेंड छे मिस मारिया।  अचकाल कख होलि ?" . मी बि समज जान्दो बी मोहन तै पता चल गे बल मीन बोरियत हकाणो बान फोन कार।
         एक हैंक मातहत छया  प्रकाश पांथरी  वूंन बि म्यार दगड भौत साल काम कार। वै तै म्यार रेलिवेंट क्वेस्चन अर इरेलिवेंट क्वेस्चन का अंतर् मालुम च तो वी बि उल्टां सवाल करण मिसे जांद बल " सर छुमा बौ गीत नरेंद्र सिंह  जीन लेखी कि जीत सिंह जीन ?" इनमा बोरियतन पी टी उषा जन भगण इ च।  चोरी पकड्याणो बाद या कळि लगणो बाद क्वी बोर रै सकुद क्या ?
         म्यार एक हैंक मातहत छया मनमोहन जखमोला।  सन अठोत्तर से दगड़ु च।  जनि मि इन सवाल कौरु ना मनमोहनौ जबाब हूंद बल " भाई साब इन लगणु ch भौत बोर हूणा छा। "
      ऑफिसम बोर ह्वावो त सबसे बढ़िया काम हूंद अपण ड्रावरौ सफाई।  सफाई मतलब इर्रेलिवेंट पेपरों तै भैर फेंको।  ड्रावरै सफाई कु असली उद्देश्य हूंद कि '''बेकार ''' का कागज जळाये जावन।  किंतु जब मि सुचद कि ये पेपर तै फिंके जावो त फिर मन मा आंद 'नै नै  पता नी ये पेपर की कब आवश्यकता पोड़ जा धौं '. अर मि जै पेपर की पिछ्ला पांच सालम जरूरत नि पौड़ वे पेपर का वास्ता प्यून तैं बोलिक नै फ़ाइल खोलिक फ़ाइल कैबिनेट मा लगवै दींद।     अपण ड्रावरौ आफत औफिसौ कैबिनट तै दे द्यावो याने -अपण नाक साफ़ कौरो अर हैंक पर लपोड़ द्यावो।
     जब मि मर्फी मा छौ अर बोर हूंद चौ तो कै बि फीमेल क्लर्क तैं बुले लींद छौ अर कुछ बि काम पर डिस्कसन शुरू कर दींद छौ।  वा बि खुस अर मी बि खुस।  मेरी बोरियत हट जांदि छे अर वींक बि  बगैर कुछ काम कर्यां टैम पास ह्वे जांद छौ।
 ड्यारम बोर ह्वे जावो त क्या करदु ? अगला एपिसोड की जग्वाळ कारो जी।
 
   


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बन, पाव अर रस से गिच्चाभेंट
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 गिच्चाभेंट  करदार    :::   भीष्म कुकरेती   

 बन अर पाव एकि मुंडीतक द्वी खाद्य पदार्थ छन पर हिसाब किताब अलग अलग जन निशंक अर खंडूरी जी ।  बन्स नार्थ इंडिया की पहचान च त पाव पश्चिम भारत खासकर मुंबई की पहचान च। रस अर
टोस्ट मा नामौ फरक च बाकी क्वी फरक नी जन कोशियारी अर तीरथ सिंह रावत मा नामौ फरक च बकै द्वी कन्फ्यूज्ड चीफ मिनिस्टर की कैटेगरी म ही आंदन।
    जब मि तै गढ़वाळम रस  की याद आंद त सिलोगी बजाराम सुर्रा लाला की याद ऐ जांद।  सुर्रा लाला बड़ा बड़ा पितळौ गिलास पर चाय अर रस का बान पूरा ढांगू मा प्रसिद्ध छा। अहा वो अधा लीटर चा अर कुमरण्या रस को स्वाद मि आज तक नि बिसर।  इंटरवल मा चा मा डुबयां रसकु स्वाद ! अहा ! बतावो सन 67 मा दर्जा आठम, चा मा डुबैक खयां कुमरण्या रसौ कुमराण अबि बि मेरी नाक अर जीबम इन बसीं च कि मि वीं कुमराण पाणो बान जै बि शहरम जांदु उख एक रस जरूर चखुद।  पर हाय रे !  सुर्रा लालाक रस ! अब इथगा डबखण अर इतना रस खाणो बाद बि वा कुमराण कखि नि मील।
  लक्ष्मण विद्यालय , देहरादूनम आण पर रस त छैं इ छा पर एक नयो नास्ता से गिच्चाभेंट ह्वे अर वो खाद्य पदार्थ छौ- बन।  बन याने मिठ।  लक्ष्मण विद्यालय अर गुरुराम राय कॉलेज का मध्य प्रभाती लाला की चाय की दुकान माने बन या रस।  बन से अधिक रस मा मि तैं अधिक रस आंद छौ।
   फिर धरम पुर शिफ्ट हों तो उख उनियाल बंधुओं चा क दुकान छे अर उखम बन बि अर रस द्वी मिलदा छा।  अब उनियाल बंधुऊं बड़ व्यापार ह्वे गे -उनियाल बेकरी का मालिक।  असलम मि तै बन अर रस से अधिक उनियाल भायुं मृदु स्वभाव अधिक याद आंद।  मि तै सोळ अन भर्वस च कि उनियाल भाई इथगा बड़ उद्यमी  बणिन त अपण मृदु स्वभाव का कारण बणीन।
   देहरादून म बन अर रस द्वी खूब चलदा था तब।
मुंबई मा बि रस की रस्याण खूब चलदी।  रस तैं मुंबई मा टोस्ट बुल्दन।  हाँ इक सामान्यतया रस छुट हूंदन।  सिलोगी या देहरादून से चौथाई अर अदा।  बड़ रस बि मिल्दन किंतु कम प्रचलन च।
 फिर जब मि सन 63 मा मुंबई औं त द्वी अन्य किस्मौ बन्स से गिच्चाभेंट ह्वे। एक छौ पाव अर दुसर कड़क पाव।  कड़क पाव अर   सादा पाव मा इनि अंतर हूंद जन मोदी जी अर राहुल जी मा।  एक तपयूं अर हैंक गदगदो मुलायम।
   मुंबई का सादा पाव अर देहरादून का बन मा मुख्य अंतर च बल देहरादून का बन मिठु हूंद अर मुंबई का सादा पाव कु क्वी स्वाद नि हूंद।  देहरादून का पाव की शादी केवल चाय या दूध का साथ ही हूंद त मुंबई का पाँव कैक बि दगड़ खप जांद -रियल सेक्युलर खाद्य पदार्थ।  सादा पाव की शुरुवात पुर्तगाली लोगुंन गोवाम शुरु कार छौ अर पाव संस्कृति सरकिक मुंबई क्या आयी आज तक पाव बगैर मुंबई की कल्पना नि करे सक्यांद।  क्रिश्चियनुं कुण त पाव वळ बुले जांद।  बड़ा पाव त वर्ल्ड फेमस खाद्य पदार्थ ह्वे गे।  पाव मटन रस्सा , चिकन रस्सा , सूखा चिकन , सूखा मटन का अलावा विभिन्न कीमा , ऑमलेट, अंडा भुर्जी मा बि मजे से खाये जांद।  शाकाहार्युं कुण बि पाव वर्ज्य नी च अर पाव विभिन्न पकोड़ी , विभिन्न सब्जी , जाम , चटनी का साथ त खाये ही जांद किन्तु एक एक्सक्लूजिव डिश हूंद जो सबसे अधिक प्रचलित च मुंबई मा अर वा च -पाव -भाजी।  मक्खन लगायां पाव अर  विभिन्न भुज्युं  भुर्ता बणयिं पंद्यरि भुज्जी।  भुज्जी मथि बटर , कट्युं प्याज , लिम्बु आदि का साथ।  बटाटा बड़ा अर पाव -भाजी स्टाल मुंबई की शान छन।
      फिर एक हैंक पाव हूंद जै तैं कड़क पाव बुल्दन।  कड़क पाव याने वास्तव मा कड़क, दरदरा  सादा बन ।  कड़क पाव की विशेषता या च कि बेक हूणो तीन चार घंटा का अंदर घुळण जरूरी च निथर यी मुलायम पड़ जांदन।  हम लोग त कड़क पाव चाय सीमित रखदां किंतु क्रिश्चियन , मुस्लिम कड़क पाव मटन -चिकन शुरुवा मा खूब खांदन।  जब ईरानी होटल संस्कृति बचीं छे तो मीन बि कथगा दैं कड़क पाव अर खीमा खायुं च।  स्वाद ? गुड़ का स्वाद नि एक्सप्लेन करे सक्यांद त उनि मि कड़क पाव अर खीमा कु स्वाद नि बतै सकुद।  सवादी ! सवादी ! खैक बतैन कबि।
 जब तक पाव या रस लकड़ी चुल्लों पर बेक हूंदा छा यूंका स्वाद कुछ हौर हूंद छ तब क्वीलाण (कोयला की सुगंध ) बि आंद छे पर अब इलेक्ट्रिक ओवन म बणन वळ पावों स्वाद बिलकुल अलग हूंद।
   अर एक  खासियत हौर च मुंबई का पाव रस की।  वा च कि पाव , रस या अन्य कॉन्फेक्शनरी घरेलू उद्यम  पर मुस्लिमुं  एकाधिकार च। 

 
   
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27 /1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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