Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 145061 times)

Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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सरसु  संघार दैंत संघार से बि कठिन काम हूंद
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 युद्ध पुराण व्यास    :::   भीष्म कुकरेती   

 
 दैंत संघार कु गीत , जागर त भौतुंन सूण ह्वलु  पर सरसु  संघार कविता भौत कम कवियोंन सूण ह्वेलि।  सरसु  संघार कविता दुनिया का 207   महान कवियों मादे एक कवि स्व कन्हैयालाल डंडरियाल की प्रसिद्ध कविता च।  यीं कविता पढ़िक मि तैं लग डंडरियाल जीन हमर गाँव मा हमर डिंडळम हुयीं  घटना देखिक या कविता लेखी होली।  फिर वेक बाद मै याद नी कि कै गढ़वळि साहित्यकारन सरसु  संघार पर कलम चलाई ह्वेलि।
                        अथ: मतकण: (सरसु ) संहार अध्याय प्रारम्भ
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                सरसु संघार कौंळ , विद्या , स्किल हरेक भारतीय तै आण जरूरी च इख तक कि मुकेश अम्बानी , अडानी अर असुद्दीन  ओवैसी  तैं बि।  जी हाँ ! यूं बड़ आदिमुं तैं सरकारी ऑफिसक कुर्सी म बैठण पड़दि ह्वाल त सरसु , खटमल या बेडबगुं से पूठाभेंट त करणी पड़द ह्वेलि कि ना ? सरकारी दफ्तरक कुर्सी याने सरसुं दगड़ पूठाभेंट की सर्वोत्तम जगा। 
            हमर युग याने घी युग , याने डीडीटीबिहीन युग याने सरसुं , खटमलुं स्वर्णिम युग। तब हम तै पाटी दिखावो या ना दिखावो पर लिखल संघार , जूं संघार अर सरसु युद्ध अवश्य सिखाये जांद छा अर पारम्परिक  शिक्षक  ना तो नाळी लींद छा, ना सरकार से सब्सिडी लींद छा अर ना इ घमंड करदा छा।  असल मा तब ब्वे बाब अपण बच्चों तै शिक्षा दीणम सरकार से मुवाजवा नि मंगद छा।  तब जूं संघार व सरसु संघार की शिक्षा एक कर्तव्य माने जांद छौ।
     तब सरसु संघार कृत्य आवश्यक छौ.  आज बि रेल यात्रा , बस यात्रा इख तलक कि हवाई जाज यात्रा मा सरसु संघार आवश्यक च। तब यदि तुमर घौर नागराजा -ग्विल की कृपा से सरसु ,  खटमल , बेड बग राज खतम बि ह्वे गे हो तो हौर मौ -थोक मा सरसु अंडा ही काफी हूंद छौ  कुछ दिन मा आतंकबाद फैलाणो कुण।  लकसरे तोयबा या तालाबीनी आतंकबाद से तो क्वी बि लौड़ सकुद किन्तु खटमली आतंकबाद का समिण ट्रम्प का ट्रम्प कार्ड बि फेल हूंद।
    सरसु संघार कु सबसे नायब हथियार हूंद छौ हस्तशस्त्र। हस्तशस्त्र कबि बि , कखिम बि प्रयोग करे जाण वळ शस्त्र हूंद छौ जैकी औपचारिक ट्रेनिंग नि दिए जांद छौ अर छै सालक बच्चा बि हस्तशस्त्र चलाणम पारंगत ह्वे जांद छौ।  मि तैं लगद  सरसुं संघार का वास्ता हस्तशस्त्र चलाणै कौंळ प्रकृति जन्य गुण  होलु।  सरसु दिखदी तर्जनी अंगुळी बगैर कै बि सेनापति की आज्ञा से अफिक चार्ज ह्वे जांद छे अर तब तक चार्ज ही रौंदि छे जब तक मतकुण रुधिर (खटमल खून ) से हस्त प्रक्षालण नि ह्वे जावो।  मतकुण रुधिरौ  हस्त प्रक्षालणसे योद्धा कु जोश वृद्धि ह्वे जांद छौ अर जोधा खटमलुं रुधिर दिखणो वास्ता सहस्त्र मतकण हत्या हेतु त्यार ह्वे जांद छौ।  यदि सरसु कवि हूंदा त ऊंक कवितौं मा पाळी पर लगीं मतकण रुधिर पिठाइ कु करुणामय वर्णन हूंद। जैक पाळ यूं पर जथगा अधिक खटमल रुधिर टीका वो उथगा बड़ो सरसू मार माने जांद छौ।
     कुछ आयुर्वैदिक याने हिंसाहीन या ग्रीन विपन्स बी प्रयोग हूंद था।  जन कि खटला की चौक मा कुटळजड़  से थिंचाई -पिटाई।  यां से सरसु सेना मा भगदड़ मच जांदी छे अर सरसू सेना भ्यूं गिर जांद छा।  कुछ सरसू चरण चक्र से धरासायी करे जांद छा त कुछ हस्तशस्त्र से कचाये जांद छौ।  काळरात्रि जन माहौल चौक मा बण जांद छौ अर पाद रुधिर प्रलाक्षण व हस्त रुधिर प्रलाक्षण की लालिमा दिखण लैक हूंद छौ।  कुछ बीर जांबाज  सरसू छुपाछुपी रणनीति का तहत छुपिक कखि चल जांद छा।
    एक हैंक  ग्रीन बग किलिंग सरमनी, रुधिर हीन  हत्त्या याने  आयुर्वैदिक हत्या ब्यूंत बि सरसू संघार का वास्ता प्रयोग हूंद छौ।  याने खटला कु गरम गरम पाणी से स्नान। या रुधिर बिहीन हत्त्या सर्वाधिक कारगार युद्ध छौ किलैकि गरम पाणी से कूड़ जळो  या नि जळो खटमलुं अर खटमल अंडौं जड़नाश   ह्वे जांद छौ किन्तु न्यार कमजोर ह्वे जांद छौ।
     फिर पर्यावरण विरोधी हथियार आयी जैक नाम छौ मिट्टी तेल याने कैरोसिन ऑइल।  मिट्टी तेल से बि खटलाौं तै नवाणो रिवाज भौत सालुं तक राई।
    फिर आयी एक हैंक पर्यावरण विरोधी अस्त्र।  ये अस्त्र कु नाम छौ -डीडीटी या फ्लिट।  कई दशकों से यु हथियार अबि बि प्रयोग हूंद हाँ अब नया अवतार मा येकुण हिट बुले जांद।
   एक बात मेरी समझ मा अबि तक नि आयी कि चरक , शुश्रुता या भाव प्रकाश सरीखा वैद्याचार्योंन विभिन्न सहस्त्रों आयुर्वैदिक औषधि खोज करिन किन्तु मतकुण , खटमल या सरसु संघारक औषधि किलै अन्वेषित नि कौरी होली ? चलो यी अन्वेषक त क्षमा लैक छन किन्तु पिछ्ला द्वी सहस्त्र वर्षों मा कैन बि हर्बल बग किलिंग औषधि किलै अन्वेषित नि कौर ह्वेलि ? अब बाबा रामदेव या श्री श्री रवि शंकर से अपेक्षा च कि मान तै इन हर्ब या हर्बल मेडिसिन खोजिक द्यावो जु पर्यावरण का वास्ता भी सर्वोचित हो।  उन यचुरी अर राहुल बाबा तैं त यूं  से उम्मीद नी च पर मैं तैं उम्मीद च कि अगला द्वी सालुंम हिट की जगा हर्बल औषधि अवश्य मार्केट मा ऐ जाल।
इति मतकुण: हत्या प्रकरण : अध्याय समाप्त ।

 

 
   


25/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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Bhishma Kukreti

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छांच  छुळण खाणौ काम नी च
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 छांच छुळै , मंथन     :::   भीष्म कुकरेती   

 
छांच  छुळण सरा दुनिया म हूंद पर भारत म कुछ जादा ही हूंद तबि त जौन सबसे अधिक संविधानै  धज्जी उड़ैन वी विरोधी पार्टी मोदी की छांच  छुळणौ बान 26 जनवरी कुण संविधान बचाओ रैली करदन।
   भारत मा छांच  छुळण अलग इ संस्कृति च जब कि हौर देसुँ मा  घी ना चीज की अहमियत च त उन्नादेसूं मा छांछ छुळणै बिगळीं संस्कृति च।  भारतीयूं इथगा बड़ी जिकुड़ी च बल भारतीय दिबता त समोदर की बि छांच छोळ दींद छा। दही , दही छुळण बतांद बल भारत एक च।
   गढ़वाळम बि छांच छुळे जांद अर ड्याराडूण , डिल्ली  क्या मुंबई मा बि गढ़वळि अबि बि पारम्परिक रीति से छांच छुळदन याने ऐल्युमिनियम की रै मथनी से दै कर्ड चर्निंग या दही छुळदन।  कुछ इलेक्ट्रिक ब्लेंडर बि अजमांदन पर इन बुल्दन बल इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से घी ठीक से नि बणद।  मि तैं डाउट च , किलैकि चूँकि हम टेक्नॉलोजी विरोधी छंवां त ठीक से मट्ठा नि छोळ सकदा त बिजली पर भगार लगै दींदा जन विरोधी पार्टी जब जितद नी च त ईवीएम मशीन पर दोषारोपण कर दींदन।
     पर कुछ सत्य बि च कि इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से  घी उन नि बणदु जन हाथ छुळै से बणद किलैकि दही मा बैक्टीरिया हूंदन त वु हम मनुष्यों तरां मसीनौ गुलाम थुका छन कि हमर मशीन चलाण पर हमर आज्ञा मानी जावन।
    खैर मुंबई बात जाणि द्यावो गढ़वाल की बात करे जावो।  जख तक छांच छुळणो बात च , गढ़वाळम खस संस्कृति या वां से पैल छांच चमड़ा थैलों मा छुळे जांद छे।  फिर लखड़क पर्या , रै अर नेतण की सहायता से छांच छुळयाण शुरू ह्वे।  किंतु पर्या , रै बणाण कठिन ही छौ तो सैकड़ों साल तक चमड़ा  थैलाऊँ म छांच छुळे  गे होली।  ऋग्वेद मा नेतण लगीं रै अर पर्याक वर्णन च।  कौटिल्य अर्थशास्त्र मा त कॉमर्शियल छांछ छुळै बात बि च।   हम हिंदुस्तान्यूं तैं  गर्व च कि हमन पिछ्ला तीन या चार हजार साल से अपण छांच छुळणो संस्कृति मा क्वी छेड़ छाड़ नि कार।  हम संस्कृति प्रेमी  जि छंवां  त किलै तकनीक बदलला।  फिर कु कार इथगा खटकर्म ?  जब मेनत करणो कुण जनानी छैं छन त किलै तकनीक मा बदलाव की सुचे जाव।
    जी दही जमाण से लेकि , छाच छुळण , घी गळाण सब कुछ हमर इक जनानी करदी छै।  गढ़वाळम जमण जन शब्द नि मिल्दो किलैकि हमर डखुळ  (जख पर दही जमाये जांद ) जब सौ साल तक ठीक से धुये नि जाल त जमण की आवश्यकता पोड़ी नि सक्यांद।  इलै इ झड़ददा से लेकि पड़ नाती तक परिवार मा पळयो या दही कु एकी स्वाद चलदो।  इलै त गाँवुं  मा पळयो चखिक पता चल जांद बल छांच कैं मौकी होली।
   छांच छुळणो बगत अधिकतर रात भोजनो परांत ही हूंद छौ।  सुबेर त कुटण -पिसणो बगत हूंद।  दिन मा त पुंगड़ -पटळ , घास -लखड़ुं बगत जि हूंद।  जै परिवार मा दिन मा छांच छुळे जावो वै परिवार मा गरीबी ही हूंदी छे।
    छांच खते नि जयांदि अपितु बंटे जयांदि अर अर एक हैंकाक छांच खाणम जजमान -बामण , छुट बामण -सर्युळया बामण या दुघर्या -तिघर्या जनानी क भेद नि हूंद। 
   गढ़वाळम मीन नि सूण कि क्वी ब्वाल बल पळयो पकाई या पकावो।  पळयो थड़काये जांद याने पळयो पकाण सरल च।  हां झुळी पकाये जांद ना कि थड़काये जांद।  किलै इ शब्दांतर होलु , पता नी।
    बगैर आलणो पळयो नि सुचे जांद।  हमर मुख्य आलण छा - झंग्वर , चूनु , मुंगरड़ी , जौक आटो।  हूंद त चौंळ , कौणी , ओगळौ आटु , पर कम।  झुळळी पर तो झंग्वरौ एकाधिकार छौ। गढ़वाळम मिठि झुळळी इतिहास शहद से शुरू ह्वे छौ फिर शीरा , गुड़ तक पौंछ अर अब त चिन्नी ही झुळी दगड्याणी च जी। उन अब चूंकि  चून, मुंगेरड़ी , झंग्वर दिबतौं भोजन ह्वे त अब बेशन ही एकमात्र आलण रै गे।
 हां  बिंडी छांच ह्वे जाव तो खट्ट्या बणाणो रिवाज बि भौत छौ।  अब त भौतुं तै पता बि नी खट्ट्या कै मरजौ नाम च।  खट्ट्या मतलब जन दूध तैं खिटैक  खोया बणाए जांद तनि छांच तैं खिटैक खट्ट्या बणाये जांद मसलुं का साथ।
   अब जब पळयो छ्वीं हो अर लूणौ बात नि ह्वावो तो पळयो बेसवादी ही माने जाल ।  दिखे जावो तो पळयो स्वाद अपण आप मा कुछ नी अपितु पळयो असली स्वाद तो लूण निर्धारित करद।  लूण का साथी छा -मिर्च , ल्यासण , धणिया , आदु , हल्दी , भंगुल , जीरु , अजवैण , पोदिणा , भंगजीरु , मुंगण्या , पद्या , पितकुट  (सुकयीं मेथी )टिमरु ,  तिल , राई , दालचीनी , जम्बू , हींग अर पता नी क्या क्या मसल छा पुरण जमन मा.  अर हम तै गर्व च कि हमम गढ़वाल का मसालों इतिहास नी पता।
 बरसातम पळयो -झुळी मा ककड़ी डाळे जांद।
   पळयो रात नि खाये जांद छौ अर अमूनन कल्यो मा  हौळ,  ग्वाठम या यात्रा मा पळयो नि लिजये जांद छौ। मीन कबि नि सूण कै गुठळन ग्वाठम पळयो थड़कै हो।
    एक हैंक खासियत गढ़वाळ की राई कि हमन तीन हजार साल से पळयो की रेसिपी नि बदल। 
 
   


27/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,
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कलजुग मा पाषाणजुग
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 पत्थर दिल इनसान :::   भीष्म कुकरेती   

 ना ना मि करणी सेना , भरणी सेना या आरक्षण का आकांक्षी पाटीदार सेनै छ्वीं नि छौं लगाणु।  ना ही भरपेट पुटुक भर्यां जाट आरक्षण की क्वी बात करणु छौं मि त पुट कलियुग याने सन 60 -70 का करीब पहाड़ुं मा पत्थर उपकरणुं छ्वीं लगाणु छौं जी।  जी कलियुग मा पाषाण युगीन उपकरण।
    कुछ उपकरण नि बदल्दन।  जन कि ल्वाड़।  कलियुग ना 100 % चिप्स युग बि ऐ जावो तो ल्वाड़ुं उपयोग बंद नि ह्वे सकद।
    अब ल्वाड़ कखम प्रयोग नि हूंद अज्युं तक।  रुस्वड़ कु ल्वाड़ -सिल्वटै बात बाद म करलु।  पैल एक साधारण ल्वाड़ै बात करे जावो। ल्वाड़ याने घण उपयोग। जरा याद कारदि।  हर कमरा मा क्या एक या द्वी ल्वाड़ लोड़ी नि धर्यां रौंद था ? जि छुटि हो बड़ी हो लोड़ि -ल्वाड़ बगैर काम आज बि नि चलद।  पुंगड़म , जंगळम , हिटद दैं पता नि कथगा दैं हम तैं ल्वाड़ -लोड़िक जरूरत पड़दि छे धौं।  अर हमन कबि बि ल्वाड़ -लोड़ी की महत्ता नि समज।
  कमरों मा सैकड़ों दैं ल्वाड़ै जरूरत पड़दि किन्तु समाज शास्त्र्यूं न ल्वाड़ -लोड़ि तैं उ स्थान नि दे जु घौण , हथोड़ी या हथोड़ा तैं दे।  अफ़सोस ! हम पल पल का साथी की कदर नि करदा।  अच्छा क्या लोड़ि या घंटी गौर बौड़ाण , गूणी -बांदर भगाणो , चखुल उडाणो काम नि आंद तो फिर हम ये तैं उपकरण किलै नि मणदा ? फल तुड़णो कुण  क्या घंटी -पत्थर काम नि आंद ? आंद छन पर हम यूं तैं उपकरण की संज्ञा नि दींदा।
    यी ल्वाड़ कील घटणम त काम आंदि च त आरोग्य उपचारम बि काम आंद।  कनो गरम ल्वाड़न शरीरौ सेकन नि हूंद ? अर बल्दूुं बधियाकरण केन हूंद छौ भै ? प्रसव का समय बि लोड़ि -ल्वाड़ पास रखे जांद जी।
 अब जब मेडिकल उपचार की बात आयी गे तो वैद जी इथगा दवा पिसणो बान त आज बि पयळ -लोड़ी (खरल ) की ही जरूरत पड़दि जी।
    चपड़ पत्थर याने खपटणा जन पत्थर त चौकम पस्वा क पास अज्युं बि कीच साफ़ करणो धर्युं रौंद।  अर कुल्यांद दैं चपड़ पत्थर कथगा उपयोगी हूंद , हमन ध्यान नि दे। पाषाण युग कु फाळौ उपयोग आज बि उनी हूंद जन पाषाण युग मा हूंद छौ।  ग्वाठम या पुंगड़म र्याड़ फिड़नो काम बि चपड़ पत्थर काम आंद।
     जखम बसूला उपलब्ध नि हो उखम बि चपड़ किंतु पैनो पत्थर ही काम आंद।  अर गुस्सा मा कैक घुंड लछ्याण हो तो इनि पत्थर काम आंद।
     अग्यल   याने लोहा और राड़ा पत्थर।  अब त खैर अग्यलौ प्रयोग नि रै गे किन्तु एक समय छौ हर तमख्या अर गुठळ अग्यल कीसा उन्द धरदु छौ।
  अर पळेंथर बि त पत्थरौ कु  ही हूंद भाई साब।
   एक समय छौ जब पयळ हर घर की शान छे जी शान।  पयळ याने पत्थर की गैरी थाळी।
  अर ढुंगळ संस्कृति म त आटु उलणो बान चपड़ी पटाळ अर तवा की जगा पत्थर ही काम आंद छौ अर आज बि।
   जंदर , सिल-वट , उरख्यळ , घट -घराट तो आज बि पाषाण युग की याद दिलांदन जी।
      खेल मा बि पत्थर उपकरण जरूरी छा जी।  बाग़ बखरी , गार खिलण , गुच्छी खिलण या पत्थरूं ढेर फोड़ू खेल तो पत्थर जनित ही छन कि ना ?
     
     चलो मान लींदा बल चिप्स युग मा पत्थर की बिलकुल जरूरत नि पोड़ली किन्तु बहिन जी ! पितर्वड़ धरणो त लोड़ी की ही आवश्यकता पोड़ल कि ना। 

 
   


28/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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ब्वार्युं भजण-भगण याने कुल कलह पुराण
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 कखला बखली पंडित   :::   भीष्म कुकरेती   

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  भजण , भजाण अर बिपदा मा भजन गाण मनुष्यौ  नियति च। कुल कलह याने मुख्यतया सास-ब्वार्युं तनातनी।  पैल जब तीन तलाक जन विषयों पर पंडित , पादरी अर मौलवी कुछ नि बुलण दींद छा त सास की धौंस औंसी दिन बि चल जांद छौ अर ब्वारी औंस क्या भाई खव्वा दिनौ कुण बि मैत अटक जांदी छे।
    मि जब तक गाँव जाणु रौ त क्वी मैना इन नि रै होलु जब अडगैं (क्षेत्र ) मा कैं ब्वारिक भजणो या कै बेटिक भाजिक मैत आणो सूचना नि मिलदी हो धौं।  अब सास भगण चांदन पर बिचारिक ब्वे बाब त रौंद नीन अर भाई लोग बैणी अर्थ रक्छा बंधनौ कुण मनी ट्रांसफर का अलावा कुछ नि जाणदन त इन मा सास जगा की जगा जमीं रौंद।
    हमर जिना एक छे डौळी बौ।  वींक अर वींक सासु बीच  तून खूब लगद छा जन संसद मा कम्युनिष्ट अर भाजपायूं लगदन।  जन भाजपा वळ बोल द्यावो कि इजरायल से सीमा सुरक्षा बान द्रोण खरीदणैन त कम्युनिष्ट बाबल मचै दींदन बल द्रोण खरीदे जाल त चीन की सीमा का क्या ह्वाल।  कम्युनिष्ट चीन की चिंता मा इथगा पागल ह्वे जांदन  कि कॉंग्रेस संसद कुंवां मा ऐ जांदी।  संसद अध्यक्षम एकी विकल्प बचद कि संसदै कार्यवाही ही बर्खास्त करे जाव  . इनि डौळी बौ अर भिरंग्या बोडीम तून इन मा बि लग जांद छा कि डौळी बौ कै डीलु लेकि पंद्यरम /धरड़म जावो।  इनमा डौळी बौम मैत भजणो अलावा विकल्प नि हूंद छौ।
     मंथा दादि अर बिंदरा काकी याने सासू -ब्वारी की कथा  कळकळी ना अपितु  ओज  भरीं च।  दुयुं क मैत  एकि जि छौ।  द्वी सास ब्वार्युं म जब झगड़ा हूंद छौ त गाँव वळुं तै इतिहास की नई नई जानकारी मिलदी छे।  सास ब्वारीक मैत की महा पोल खोलदी छे त ब्वारी सासुक मैत की हुईं या निसुणी सब घटनाओं ब्यौरा देकि सासु तै इथगा शर्मशार करदी छे कि सास बि हीनग्रंथि शिकार ह्वेक सुचण लग जांदी छे कि इन परिवार म जनम लीण से बढ़िया तो जनम नि हूंद त ठीक छौ।  दुयुंमा एक हैंक तैं बगैरकपड़ा उतार्यां  नंगा करणो छौंपा दौड़ हूंद छे। अर जब सास ब्वारिक झड़ददी तैं दुघर्या ना तिघर्या सिद्ध कर दींदी छे त ब्वारिम मैत सटकणो अलावा कुछ विकल्प नि बचद छौ।  फिर एक द्वी दिन बाद ददा या काका अपण ससुरास जांद छा अर बिंदरा काकी तै वापस लांद छा।
    एक दिन त हद ह्वे गे।  सुबेर सुबेर घाम आणो कुछ देर बाद मंथा ददि अर बिंदरा काकी मध्य झगड़ा छज्जा मा ही शुरू ह्वै गे अर छज्जा ही कुरुक्षेत्र बण गे छौ । चौक मा दादा न्यार बटणम व्यस्त त काका निसुड़ लछ्याणम व्यस्त छा।  द्वी महान योगियों तरां ये कलह संसार से बिरक्त छा।  अर   दादिन फिर से सिद्ध कर दे कि बिंदरा काकीक झड़ददि तिघर्या छे।  अब ब्वारी से नि सये गे वींन बि सिद्ध कर दे कि सासु  क पड़ददा कै नजीबाबादी घुड़ैतौ जण्यू छौ।
 
   मंथा दादी  कुलपोल खुलण नि सै साकी अर वा  गुस्सा मा दाथी लेकि कखि अटकी गे।  ब्वारी तै बि गुस्सा आयी अर वा बि थमळि लेकि कखि अटकी गे।  स्याम दैं पता चौल कि मंथा दादी अर बिंदरा काकी मैत भाजी गेन।  सन्यासी बाप बेटान वैदिन अपण चिनख मार अर यीं दुखद घटना तैं  सुखद घटना म बदल दे।  दुसर दिन द्वी सास ब्वारी दगड़ी ड्यार ऐन अर दुयुंन स्वतः  निर्णय ले कि चुल्ल अलग हूण आवश्यक च।  बस तब बिटेन वा काकी कबि बि मैत नि भागी।
    फूंदी बौक मैत नयार किनारा छौ याने माछुं गां।   वींक अर सासु मध्य खूब झगड़ा हूंद छौ।  एक दिन गृह युद्ध विश्व युद्ध म बदल गे।  याने सास -ब्वारी मध्य कहासुनी हाथापाईम बदल गे।  ब्वारी मल्ल्युद्ध मा हारी गे।  तो फूंदीन उठायी एक धोती एक बिलौज  अर बुल्द बुल्द चल गे बल मि मैत जैक कै हैंका कुण बैठ जौलू पर ते रांडक मुक नि दिखण।  ब्वारी मैत भाजी गे।  थोड़ा देर बाद ब्वारी क्या दिखदि कि सास बि नै धोती अर नै अंगुड़  पैरिक ब्वारी क पैथर पैथर आणि छे।  ब्वारिन कुटबाग ब्वाल , " ये रांड ! धौळी मा फाळ मारणै जादि।  क्या छे म्यार पैथर आणि ?"
   अर सासुक बचन सूणी त ब्वारी लक्ष्मण पत्नी उर्मिला ह्वे गे याने सासु भक्त ह्वै गे ।  सासून जबाब दे , " हूं ! तू अपण बूबा की सैणी ! मैत जैली अर अफिक माछ खैली हैं ? मीन बि माछ खाणो त्यार मैत आण।  " द्वी दगड़ी ब्वारिक मैत चली गेन।  खैर इन घटना त सैकड़ों मा एक ही हूंदी छे।
   अच्छा एक बात आपन बि नोट करि ह्वेलि कि ब्वारी मैत तबि तलक भजदी छे जब तक ब्वारी माँ नि बण जा।  माँ बणी ना अर ब्वारी मैत नि भजदी छे।
   अजकाल ब्वारि  मैत नि भगदन , अर यदि भाजी बि गे त पैथर बिटेन तलाक अर बहू प्रताड़न कु नोटिस ऐ जांद।
  अचकाल बेट्यूं भजणो घटना जि बढ़ गेन बल चाहे देस हो या परदेस।
 


29/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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कुछ बरजण , निषेध , मान्यता
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   

 
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  गढ़वाळम तीन तरां की वर्जना (ताबोज ) छन।  सार्वभौमिक , गढ़वाळम प्रसिद्ध अर अति स्थानीय।  हम कुछ वर्जनाऊं तै छुड़दा अर वांसे बिंडी मुंड मा भार बढ़ै दींदा।  भार बढाण हमर आदत बण गे।
    स्थानीय मान्यता बि कम इच्चि हूंदन क्या।  फलण मौक छांच नि खाण , फलण मुंडीत वळ तैं फौड़म भात नि पकाण दीण।
    फबण बि कत्ति मान्यताऊं तैं जनम दींदी।  जन कि फलण गाँव बेटी नि दीण या फलण गाँवन ब्वारी नि लाण।
    कैं दिशाम मुंड करिक सीणम बि कत्ति मान्यता छन।  जन कि हमर गाँव दक्षिण मुखी च त उत्तर दिशा म मुंड कौरिक सीण तैं अच्छु नि माने जांद।  दिखे जाव त या  वैज्ञानिक मान्यता च।  उत्तर दिशा याने कूड़ौ पश्च भाग अर कूड़ौ पैथर दिवाल या पख्यड़ हूंद तो लैंडस्लाइड या भ्यूंचळम कूड़ौ पैथरौ दिवाल गिरणौ ज्यादा अवसर हूंदन।
      फिर कखमक पाणी नि पीण बि स्थानीय वर्जना हूंदन। जुंकळ पाणी , जूंक वळ पाणी , जुकाम वळ , निरोग पाणी नाम दिए जांदन पाण्यूं तैं।
    धार/धरुड़ /पंद्यर मथि झाड़ा पिसाब नि करण अर धार/धरुड़ /पंद्यर मथि पेड़ नि कटण एक वैज्ञानिक मान्यता च।  उनी पाणिम  (कूल ) थुकण -झाड़ा -पिसाब करण वर्ज्य छौ।
  चिड़ियों मुतालिक बि भौत सि मान्यता छन जन कि चखुलुं अंडा पर हाथ नि लगाण।  वास्तव मा इन मा प्राकृतिक चेतना व सुरक्षा कारण से  चखुल घोल छोड़ दींदन।  सवर्णों द्वारा  अंडा फुड़न महापाप किंतु शिल्पकारों पर यु पाप नि लगद मा भूमि मालिक हूण अर भूमिहीन हूणौ रहस्य छुप्युं च।
     करैं कु  बसण बुरु अवश्य माने जांद किन्तु करैं तैं मारे नि जयांद।
     मकान का समिण क्या अगल  बगल पर भांग , पिंडाळू , बेल , फलदार पेड़ बुरु माने जांद।  वास्तव मा या मान्यता अंग्रेजूं देन च।  अंग्रेजी शासनम स्वास्थ्य सुधार हेतु नियम बणये गे छा बल मकान का समिण या अगल बगल म क्या क्या पौधा -पेड़ नि बोये /लगाए जाण चयेंद।  सरकारी कारिंदा पासवान जु नियमूं अवहेलना करदा छा ऊं तैं डंड्यांद छा।  तो भौत सि मान्यता बण गेन। जन कि गौशाला /छनि गाँव से अलग हूण वळि मान्यता बि अंग्रेजी शासन मा स्वास्थ्य सुधार नियमों से बण। 
  मकान कखम लगाणम भौत सी मान्यता अर वैज्ञानिक या  अनुभव जनित मान्यता छे।  जन कि रात पेड़ तौळ नि सीण सही मान्यता  च
        पशु -पक्षी संबंधी , पेड़ -पौधा संबंधी मान्यता बि भौत छन।
      रात बगैर खायुं  सीण बुरु माने जांद छौ।  कखि दुसर गाँव जाण हो तो कबि बि नीन पुटुक नि जाण बि सही मान्यता च।
      कम असल जाति बिटेन ब्वारी लयाण पर बेटी नि दीण मान्यता त गढ़वाळम आज बि चलणु च। यु कम असल शब्द वास्तव मा अंग्रेजूं देन च।  भूमि नाप मा नायब , असल , कम असल शब्द प्रयोग हूंद छा तो हमन जातियुं तैं बि यी विशेषण दे देन।
    क्वी कखि यात्रा पर जाणु हो तो इन पुछण " कख जाणु /जाणी छे ?" गाळी  ही माने जांद छे।  सही वाक्य छौ " दौड़ कना ?".
     शिकारमा  दूध दही वर्ज्य माने जांद छौ इक तक कि शिकार खाणौ बाद बि दूध दही वर्ज्य छे।  इन बुले जांद छौ बल शिकार का दगड़ दूध आधी खावो तो कोढ़ हूणो चांस छौ। रात दही व पळयो बर्जित छौ।  सही छौ।
      क्वी गौड़ फुल्या हूण मिसे जाव त वीं गौड़ी दूध पीण बंद करे जांद छौ।  इनि भैंस लमंड जावो तो वीं भैंसी दूध बि वर्जित ह्वे जांद छौ।
       दूध मुतालिक कति मान्यता छन जन कि दूध तैं सूरज नि दिखाण।  कुछ त तर्क छौ यीं मान्यता मा।
   भैंस पर भूत रौंद अर गौड़ी पूँछ पकड्युं हो त भूत तो छ्वाड़ो ब्रह्म राक्षस बि नि लग सकद।  मान्यता छे बल जनान्युं तै लाल झुल्ला पैरिक बौण नि जाण चयेंद किलैकि भूत या छाया लग जांद।
     एक मान्यता छे कि सवर्ण कुखुड़ नि पाळदा  छा।  वास्तव म मान्यता सवर्ण की नि छे अपितु मान्यता छे बल किसान तैं कुखुड़ नि पळण चयेंद।  सही बि च।  कुखुड़ पाळिल्या त सग्वड़म कुछ ह्वे सकद क्या ?
     मरण पर त कथगा इ मान्यता छन जन कि भुट्यूं नि खाण , साल भर तक पूजा नि करण अर स्वाळ -पक्वड़ नि पकाण।  जै कुटुंब म मौत हो वै कुटुंब वळु दगड़ तेरा दिन तक सिवा -सौंळी नि लगाण।
     मरण पर बात आयी त एक मान्यता छे बल यदि कुत्ता मड्वें दगड़ जावो तो मृतक तै स्वर्ग मिल्द बल। मृतक तैं लंगण महापाप माने जांद।
  तलवार या हथियार नि नपाण चयेंद बि त मान्यता च कि ना ? फिर यदि हथियार नपै इ आल त हथियार तै समिण वळक गात पर छूंण आवश्यक हूंद। 
    पाटी -किताब -कॉपी पर खुट लगाण बर्ज्य च आज बि।
    जनम मैना मा बाळ नि कटण , जनम दिनौ कुण दाड़ी नि बणान जन मान्यता त इतिहास ह्वे गेन।
  आग म थुकण -पिसाब करण आज बि पाप माने जांद।
  आम , खिन्न आदि  डाळुं का झिंकड़ नि लगाए जांद मान्यता त वैज्ञानिक मान्यता च।
  ब्यौ  मा बर नारायण की भेष भूषा - अचकन , रेबदार सुलार , गोळ बौंळ वळ कुर्ता , पगड़ी , झालर असलम मुस्लिम संस्कृति की देन।   इनि नथुलि -बुलाक पैराण , ढोल बजाण मुस्लिम संस्कृति की ही देन च।
      हल्दी हाथ से द्वार बाट तक रोटी, झंग्वर , खीर नि पकाण या बामणु मा हल्दी हाथ से लेकि द्वार बाट तक मटन मच्छी नि खाण वळि मान्यता अब अस्ताचल जोग ह्वे गेन। अस्ताचल पर बात ऐ इ त सूर्यास्त दिखण याने स्वीलाक घाम दिखण बि कख अच्छु माने जांद छौ अब तो लोग सूर्य अस्त दिखणो उत्तरी ध्रुव की यात्रा करणा छन जी।
  जेठ -ब्वारी , मम्या ससुर -भणजौ ब्वारी की छौं क बारा मा आपक क्या ख़याल छन ?
   अर नीली आँख का बारा म भौत सि मान्यता -भ्रान्ति त आज बि छन।
   बाकी आप बतावो कि हौर क्या क्या मान्यता छन ?
       
   
   
   
 
   

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झिंकड़ कटणै  , झिंकड़ घटणै  , लगुल चड़ाणै  लगाणै  संस्कृति
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   
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            झिंकड़ बगैर आज बि कृषि सुचे नि सकेंदी।  पाख -पख्यड़ ह्वेन या सफाचट सैण धरती मतलब  मैदान झिंकड़ आवश्यक हूंदन।  हां जन हमन कमीज -पैंट की जगा टी शर्ट अर जीन्स पैरण शुरू कौर दे ऊनि मैदानों मा अब झिंकड़ुं जगा प्लास्टिक का झिंकड़ ऐ गेन।  मैदानों मा हमेशा झिंकुड़ुं कमी रै त उख झिंकड़ुं जगा लगलूं की सहायता लिए जांदी छे . पलातक आण से अब अंगूर , गुदड़ी आदि अब वनस्पतीय झिंकड़म चढ़नम उनि शरमान्दान जन हम भारतीय मर्द धोती -कुर्ता -टुपला पैरणम शर्मांदा।  गढ़वाळम अबि बि सग्वड़बाज वनस्पतीय झिंकड़ पकड़ी बैठ्यां छन।  गढ़वाळम आज बि झिंकड़ उपलब्ध छन उल्टां बांज , तूंग  त रोइ रोइ थकणा छन बल हम तै काटो अर झिंकड़ लीजावो।  समय समय की बात च। झिंकड़ा सपोर्ट गुदड़ी , कखड़ी  अर लमिंडक लगुलुं  कुण आवश्यक हूंद। झिंकड़ माने सामयिक सपोर्ट , टेक , ठंगरु। 
             गुदड़ी, लमिंड , कखड़ी कुण झिंकड़ जरूरी हूंदन।  उन करेला कुण बि झिंकड़ जरूरी हूंदन किन्तु कम खाण त कनि बि काम चल जांद।
         झिंकड़ुं कुण बांज या तूंग ही बढ़िया डाळ माने जांदन।  बुरांस , जमिण जन पेड़ुं झिंकड़ अच्छ नि मने जांद।  बुरांश -जमिणा झिंकड़ ममता बनर्जी जन कच्च हूंदन कबि कबि बि मिली जुली सरकार तैं धोका दे दींद। मंदार या खिन्न जन पेड़ुं झिंकड़ कांटेदार हूंदन जन कम्युनिस्टुं द्वारा यूपीए सरकार  तैं सपोर्ट। कम्युनिष्ट बड़ा बड़ा शिक्षण संस्थाऊं  मा चेयरमैनशिप बि मांग लीन्दन  अर रोज सरकार तैं डंसणा बि रौंदन।
       उन भौत सा झिंकड़ुं मा लगल चढ़दी नीन जन कॉंग्रेस शिव सेना अर अकाली दाल से सपोर्ट नि मंगदी उनी कथगा पेड़ छन जामा गुदड़ी -कखड़ी लगुल नि चढ़दन।
        कुछ पेड़ुं झिंकड़ गुदड़ी -कखड़ी लगलूं तै सपोर्ट करण बर्दास्त नि कौर सकदन। जन भाजपा कम्युनिष्टों सपोर्ट बर्दास्त नि कौर सकद या कम्युनिस्टुं तैं भाजपा का सपोर्ट हजम ह्वे इ नि सकद।  फिर अशोक या कुंळैं झिंकड़ बि ठीक नि हूंदन।  जौंक फौंटा अळग झुकणो जगा तौळ झुक्यां ह्वावन वूं पेड़ुं झिंकड़ बि नि लगाए जांदन।  जन समाजवादी पार्टी अर बसपा का सपोर्ट कॉंग्रेस तैं अळग लिजाणो जगा तौळ लिजान्द उनी अशोक या चीड़ वृक्ष का झिंकड़ बि हूंदन।  झूट बुलणु हों तो भाजपा का उत्तर प्रदेश मा कुहाल इतिहास  बाँची ल्यावो जब जब भाजपा न बसपा याने मायवती बैणि  से सपोर्ट ले भाजपा का सपोर्ट बेस खतम इ ह्वे। अशोक या कुंळै का झिंकड़ अच्छा नि हूंदन।
           जन भाजपा ओवेसी का सपोर्ट तैं पाप समजदी या कॉंग्रेस हिन्दू महासभा का सपोर्ट तैं पाप समजदि उनि सरा भारत मा आम  मान्यता  च बल आमक झिंकड़ से पाप लगद।  पाप ऊप कुछ नी भै झिंकड़ घटदी आमक झिंकड़ पर ऐलिफेंट ईयर फंगस इ ना छुट छुट छतरी फंगस बि लग जांद अर गुदड़ी -कखड़ी का लगल फलहीन हूण पसंद करदन किंतु ऐलिफेंट इयर फंगस या छतरी कुयड़ बर्दास्त नि कौर सकदन। इलै भाजपा ओवेसी कु सपोर्ट नि मंगद , कॉंग्रेसी हिन्दू महासभा क सपोर्ट नि मंगदी अर किसान आमक झिंकड़ नि घटदन।
      खिन्न सरीखा पेड़ का झिंकड़ नि लगाणो पैथर एकी कारण नी कि खिन्न का ग्वाळ अर फौंट्युं पर कांड हूंदन बल्कि एक हौर कारण बि च।  जन भाजपा कु सपोर्ट लीण या भाजपा तैं सपोर्ट दीण राजनैतिक पार्ट्युं  कुण कांटेदार सपोर्ट त छैं इ च मुस्लिम वीं पार्टी तैं बोट नि दींदन ज्वा पार्टी भाजपा से सपोर्ट ल्यावो या भाजपा तैं सपोर्ट द्यावो।  भाजपा पर मुस्लिम विरोधी कांड त छैं इ छन बल्कणम एक हैंक बिजोग बि  पड़्युं च भाजपा का सपोर्ट मा।  भाजपा सपोर्ट कम करदी अपितु अपण जड़ जमांद जमांद सपोर्टिव पार्टी क जड़ खुदण लग जांद।  झूठ बुलणु हूं त ओड़ीसा मा बीजेडी क नवीन पटनायक तैं पूछी ल्यावो।  महाराष्ट्र मा शिव सेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का ऐड़ाट -भुब्याट सूणी ल्यावो अर अब आंध्र प्रदेश मा टीडीपी का चंद्र बाबू का क्वीणाट सूणी ल्यावो।  सब बुलणा छन बल भाजपा कांटेदार झिंकड़ ही ना जड़कट्वा झिंकड़ बि च।  खिन्न बि इनि झिंकड़ च।  लगलों तैं सपोर्ट से अधिक खिन्न अपण जड़ जमै दीन्द इलै खिन्न जन झिंकड़ुं से किसान बि दूर रौंद अर लगल बि दूर रौंदन।
      उन टेम्परेरी झिंकड़ुं जरूरत क्वाद -झंग्वर या मर्सू बूंद दैं बि पड़द जन नरसिम्हा राव तैं झारखंड मुक्ति मोर्चा कु सपोर्ट की जरूरत पड़ी छे अर अबि एक साल पैल महाराष्ट्र मा भाजपा तैं शरद पंवार की आवश्यकता पोड़। क्वाद -झंग्वर या मर्सू बूंद दैं बि झिंकड़ इन हूण  चयेंदन जु कांटेदार बि नि हो , ना ही सूखा , ना ही झड़ण वळ पत्तीदार हो अर ना ही जैक तिनका खेत मा गिरण वळ हो। पत्तीदार झिंकड़ से पत्ती, तिनका  खेत मा गिरिक झंग्वर , क्वाद अर मरसूं बीज दबै दींदन। चरण सिंह , चंद्रशेखर अर देवी गौड़ा की सरकार तैं कॉंग्रेसौ सपोर्ट कुछ ना पत्तीदार झिंकड़ लगाण ही छौ।
      झंग्वर , क्वाद बूँद दैं कांटेदार झिंकड़ नि लगाए जांद।    कांटेदार झिंकड़ त पता नी कथगा सालुं तक पीड़ा दींद धौं , क्वी नि जणदु।  नरसिम्हा राव तै  झारखंड मुक्ति मोर्चा का सपोर्ट लीण भौत मैंगा पोड़ छा।  नरसिम्हा राव पर कोर्टम बि कांड पूड़ी छा। महराष्ट्र मा भाजपा तै शरद पंवारक सपोर्ट लीणो बाद  क्या क्या घाल मेल करण पोड़ धौं यी त नहर घोटालाों  की बंद करीं दसियों फ़ाइल ही बताल। 
    झिंकड़ आवश्यक च किंतु झिंकड़ छंट्यांण, झिंकड़ कटण अर झिंकड़ घटणै कौंळ आण  बि अति आवश्यक च जी। 
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Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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 पलायन रोको , पलायन रोको पर शेर के मूछ के बाल  कौन गिनेगा ?
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 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   
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स्थान -ड्याराडूण, डिल्ली या बम्बै
समय 1989  से 2099  मध्य क्वी बि साल
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गुंदुरु गांवक  रिस्ता मा सबसे कणसु  भाई- भैजी ! क्या जबाब दीण ?
 सुंदुरु  - गांवक रिस्ता से गुंदुरु से ज्याठ - हाँ भैजी सब पुछणा छन बल ...
 गांवक रिस्ता मा सबसे बड़ो भाई बंदरु  सबसे ज्याठ - एक मिनट हां।  जरा मि ' पहाड़ों में बिच्छू घास खेती से पलायन रुकेगा ' भाषण पूर करदु तब बात करुल। पर्स्युं उत्तरी गढ़वाल संघ की मीटिंग मा म्यार भाषण च त तैयारी जरूरी च।
गुंदुरु - भैजी अरे भानु काकाक रोज फोन आणा छन बल हम मादे कु ?
सुंदुरु - मेकुण त फोन इ नि ना  द्वी दैं घौर बि ऐ गे भानु काका।
गुंदुरु - क्या आफत च।  गढ़पुर पट्टी पलायन रोको संघ वाळुंम काम कुछ नी बल बस।  बुलणा छन बल परिवार से  एक भाई रिवर्स माइग्रेसन कारो बल।
सुंदुरु - जान खांई च यूंन मेरी। अरे क्वी प्रोग्राम उरायो अर द्वी चार बादी -बादणी डांस राखो तो बात बि खपद।
गुंदुरु - हां बीच मा यूं पर रबत लग्युं छौ बल अपण बच्चों तैं गढ़वळि सिखाओ , गढ़वळि सिखाओ अर अब रबत लग्युं च बल रिवर्स  माइग्रेसन कारो रिवर्स माइग्रेसन कारो बल जु बि रिटायर ह्वे गेन बल उ गाँव मा बसों बल।
सुंदुरु -अरे कथगा पैथर सि पलायन रोको संघ का भानु काका पड्यां छन म्यार पैथर बल मि रिटायर ह्वे ग्यों त मि तैं अब अपण मातृ भूमि सेवा वास्ता गांव बसण चयेंद।  अरे गांव बसण क्वी खाणो काम च।
गुंदुरु - हां फोन पर भानु काका मि तै समजाणु छौ बल जन  सिंसईं ,  खाटळी का विद्यादत्त पोखरियाल जी लखनऊ बिटेन गांव मा बसि गेन उनि मि तैं बि गांवम बसण चयेंद। पोखरियाल जीन 267 फलदार पेड़ लगाई ऐन बल।
 सुंदुरु - अर ओ झंगोरा से पलायन रोको संघ का उम्मेद जेठू  जी  कम छन क्या।  वी बि लग्यां  छन बल " सुंदुरु ! तू  रिटायर ह्वे गे त गांव म बस  अर झंगोरा खेती कौर अर पलायन रोक।
गुंदुरु - फिर वो 'कुखड़ पाळो गढ़वाल में पलायन रोको समीति ' का घ्याळु जीजा जी बि मि तै   ' गढ़वाल में पलायन रोकने हेतु कुखुड़ कैसे पालें ' किताब दे गेन अर पुछणा रौंदन बल " कब छै रै गाँव जाणि कुखुड़ पळणो कुण ?"
सुंदुरु - अरे इक नाती छन , नतणा छन ऊँ तै छोड़ि मि झंगोरा बुतणो गढ़वाल जौंल हैं ?
गुंदुरु - अर मि इतरी बड़ी जायजाद छोड़ि कुखुड़ पाळणो गाँव जौलु हैं ?
हुस्यारी (बंदरु नातण ) - गछोटे दादा जी ! मंझले दादा जी ! आपने पलायन रोको वालों से पूछना था ना कि वे क्यों नहीं वापस पहाड़ जा रहे हैं ?
गुंदुरु = बेटा पूछी च सब्युं तैं पूछ च।
हुस्यारी -तो उनके आन्सर क्या थे ?
सुंदुरु - एक बुलणु बल वैक नौन नि जाण दीणा छन।  हैंक बुलणु छौ बल वैक मिसेजै तबियत खराब रौंद त गाँव नि बस सकुद।  अर तिसर  बुलणु छौ बल चूंकि वैकि मिसेज पंजाबी च त वु गाँव तो छोडो उत्तराखंड मा कखि बि नि बस सकुद।
गुंदुरु - भानु काकाक बुलण च बल चूंकि वूं माँ इन जमीन नी च कि मॉडर्न हॉउस बणै साकु।  घ्याळ जीजा क संजैत मकान च त सेटल हूण मुश्किल च त  मशरूम से पलायन रोको का अध्यक्ष मंथा ज्योरुन कब का अपण गांवक जमीन बेचिक देहरादून मा सेकिंड होम का वास्ता प्लॉट ले याल छौ तो अब गाँव वापस जावन तो कनै जावन।
सुंदुरु - अर सब हमर पैथर पड्यां छन बल वापस गाँव जावो अर पलायन रोको।
हुस्यारी - तो आप भी दादा जी ने किया वैसे क्यों नहीं करते ? कुछ दिन पहले तक 'पलायन रोको' आंदोलनकारी रोज दादा जी को तंग करते थे कि गाँव में बसो , गांव में बसो, रिवर्स माइग्रेसन कारो।  अब कोई नहीं आता।
द्वी - क्या कौर भाई साबन ?
हुस्यारी - कुछ ना।  एक नई संथा खड़ी कार।  'बिच्छू घास से गढ़वाल में पलायन रोको ' संस्था खोलि दे। अब दादा जी हर जगह भाषण देते रहते हैं बिच्छू घास की खेती करो और पलायन रोको। अब कोई दादा जी के पास नहीं फटकते हैं।
द्वी चड़म से उठिक एक दगड़ी - अच्छा त हम चलणा छा।
हुस्यारी -दादा जी ! चाय तो पी के जाईये।
गुंदरु - नहीं बेटा मुझे अभी जाकर अपण नै संस्था ' खन्नु -खरपट से पलायन रोको समीति'  संस्था का लेटर हेड छापणो आडर दीणो जाण।
सुंदुरु - मीन बि अब्याक अबि ' नारियल की खेती से पलायन रोको संघ ; संस्था का लेटर हेड छपवाणन। 

   

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1/2 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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Bhishma Kukreti

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 2019 औ चुनाव कु  जीतल ?

चुगनेर  बक्की, चबोड्या पुछेर  - भीष्म कुकरेती

 अचकाल जखम जावो तखम छ्वीं लगणी छन कु  जीतल ? कु जीतल ? म्यार तिकड़मी उच्छेदी 300  पार कर  जाल ? म्यार नादान , लाटू , मूर्खाधिराज 200  सीट न सै  44 पार कर जालो  ?
गंज्यळौ गांज म बि ध्वनि आंद बल सुपिन दिखण  -दिखाण वळ जीतल  कि सुपिन गब्याण वळि  पेथण जीतल ?
चौबट , दुबट , गुरबटम भि सब्युं क एकी सवाल हूंद बल म्यार भिभरट्या  जीतल या तौंक सिमसट्या मूर्खाधिराज जीतल ?
छ्वीं बत पुंगड़म  ह्वेन या खल्याणम  ह्वेन या डिस्कसन ह्वेन वाइन टेबलम  सब 2019 औ चुनाव की भविष्यवाणी जणन चांदन।
                 मि तैं बि भुंदरा बौ फोन पर पुछणी रौंद बल ब्याळक टीवी डिबेट से क्या लगद अलंकारूं खांडि (खान ) जीतल कि मूर्खाधिराज जीतल ? अब मि भुंदरा बौ तै क्या बतौं बल अचकाल टीवी डिबेट भविष्य बथाणौ नि करे  जांदन बल्कणम  घ्याळ करैक टीआरपी बढाणो बान करये जांदन।
सुंदरा बौ बि 2019 औ  चुनाव प्रति ससंकित च बल जीएसटी जीतल या मूर्खाधिराजौ   गबर सिंग  टैक्स जीतल ? मि तै रोज पुछणी रौंदी तखपण अखबार क्या बुलणा छन कु जीतल तीज तर्रार या गौळ बुकण  वळ गळया ?  अब सुंदरा बौ तै क्या बताऊं बल अचकाल अखबारुं ध्येय पत्रकारिता नी बल्कणम  सोडा वाटर का नाम पर दारु विज्ञापन लीण एकमेव ध्येय ह्वे गे। तबि त अखबारुं भविष्यवाणी सै नि निकळदी जनता की नबज  की जगा दारु विज्ञापन पर ध्यान हो तो अखबारुंन कुबाक ही बुलण।
                   मंथरा बौ तै दशरथ दादान मोबाइल नि दे बल कखि  बौ बिगड़ नि  जावो तो मंथरा बौ लैंड लाइन से ही पुछदी बल सोशल मीडिया म काकी धूम च ? चमकताळ लगाण वळै या झप्पी दीण वळै की ? अब मि मंथरा बौ तै क्या बथौं बल अच्काल सोशल मीडिया तो फॉरेन हैंडो से संचालित हूंद अर इख  बि फॉरेन एजेंसी ही पैसा क बल पर माहौल बणांदन ना कि स्वयं जनता याने धनी पार्टी को ही बोलबाला होलु सोशल मीडिया म।
  मि यी  त नि बथै सकुद कि सुपिन दिखाण वळु जीतल या मांगी देखिक बणयिं खिचड़ी जीतलि किन्तु कुछ तो भविष्य वाणी कौर  ही सकुद अर वीं भविष्यवाणीन सच ही हूण
हर जगा मुस्लिम कार्ड खिले जाल अर हिन्दू कार्ड खिले जाल।
सुपिन दिखाण वळ इन इन नया नया सुपिन लालो बल मूर्खाधिराज तैं मणि शंकर की फिर जरूरत ह्वेलि।
बाम पंथी ना बाम राला ना राइट ही राला बिचाराों की गणत शिखंडी म होली।
गठबंधन का रथी महारथी एक साथ मोदी जी पर एक दगड़ी ही फासिस्ट बाद को अभियोग लगाल। 
क्षेत्रीय दल अवश्य ही इन इन गाळी इजाद कार्ल बल गाळी बि शरमालि।
खाला ममता जी बंगाली तुरूपो पत्ता चलली ही तो मोदी जी ncr तै तुरुपौ पत्ता  बणाला।
झूठौ  पथर्यौ  ह्वालु ।
दारु  बाढ़ आली
भर्स्ट तरीकों की छळाबबळी ह्वेलि ,
 चुनावी आचार संहिता को हत्त्या खुले आम होली।
सब एक दुसर तै नंगा दिखाणो छौंपादौड़ कारल   ही।
फेसबुक म भाई भाई तैं माँ बैणि  गाळी दयाला , ऑफलाइन का दोस्त फेसबुक म अपण दोस्त तै अनफ्रेंड कारल।
  हाँ क्वी बि जीतल केंद्र बिंदु तो मोदी जी ही राला।
चुनाव कु जीतल की भविष्यवाणी गॉड बि नि कौर सकदन त कुतो भीष्म:




14 /8  / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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नै नै  मीन अटल बॉन्ड म  पैसा नि भरण इंदिरा बॉन्ड छन त  बोल !

चबोड़्या, चखन्यौर्या , मरखुड्या   :::   भीष्म कुकरेती

अचकाल हर क्वी राजनैतिक समर्थक ह्वे  गे। तुम बि  जु म्यार 'IAS कनै बणन' लेखम मोदी समर्थन की गंध बॉस खुज्याणा रौंदा , वी बि जु म्यार मेडिकल टूरिज्म की छाण निराळ मोदी समर्थक अम्बानी का चश्मा से करणा रौंदन  अर   मी बि जु मंगलेश डबरालै ब्वे कविता म घोर मोदी विरोध दिखुद। अब कण कण म भगवान न अकन कण म भगवान ना राजनैतिक समर्थक छन। 
  अबि सि ब्याळि प्रधान मंत्रीन पोस्ट मैनूं से  चलदो -फिरदो बैंकिंग सेवाौ  पैत धार ब्वालो या पवाण लगै. अब बैंकिंग तुमर चौकम ना तुमर चुलुम पोंछी जाली।  तुम त घड्याणा ह्वेल्या बल कन पोस्टमैन भुला बैंकिंग संबाळल अर जनसेवा कार्ल त मि उपद्रवी , उछदी सुचणु छौं बल नई बैंकिंग व्यवस्था म राजनैतिक छैल कब्जा कारल बल ।  टिड्वाs  टेढ़ी जर बल।
   अब नवाड़ी बैंकर भुला (पोस्टमैन ) कै तै फिक्स्ड डिपॉजिट स्कीम सिखाल पढ़ाल , खूब जोर से समजाल बल फिक्स्ड डिपॉजिटन (से ) क्या क्या फायदा छन।  फिर सेल्स क्लोजिंग करणो बान ग्राहक बाडा से पैसाौं मांग करदो पूछल , " त बाडा कथगा रुपया भरणा छां फिक्स्ड डिपॉजिट मा ?"
बाडा खूंकार ह्वेक डुंकरताळी मारिक उल्टां  पूछल बल , " क्या मतलब ? मीन रुप्या भरणन ? "
पोस्टमैन कळकळि आवाज म जबाब द्याल , " हाँ तो !"
बाडा कतल्यौ करणो भौण म ब्वालल , " स्कीम म सरकार पैसा दींदी या जनता पैसा भरदी ?"
पोस्टमैनs न बोली बल बाडा फिक्स डिपॉजिट सरकार लुटे तो लुटे राजनैतिक दल तै फैदा इ फैदा वळि स्कीम नी च या त बैंकिंग स्कीम च।  रुप्या भवारो  अर तीन सालम दुगण पावो वळि स्कीम च।
बाडौ गुस्सा तिपुर पौन्छ्यूँ छौ , पोस्टमैन तै हड़कांद बुलण लगेन , " आग लगिन इन स्कीम पर , फंड फूक इन स्कीम तै।  आण दे वै  भाजपौ एजेंट तै भोट लींद दैं त बुलणु छौ बल मोदी  भोट द्यावो अर रोज फोकट की स्कीम खावो अर अब सरकार हम मंगन इ रुप्या घुळणि च। "
कॉंग्रेस समर्थक ग्राहक तो सीधो ब्वालल , " हम तै त पता छौ बणिया मोदी कै तै क्या द्याल उल्टां हम मंगन ही मांगल जी।  यांकुंणी  बुल्दन बल द रांड अब खा बिंडि  ग्युं।  द्यावो मोदी तै दबल भोरि भोरिs भोट । लुटेरा कहींका ! हमर सोनिया बौ कन भग्यान छे।  एक घंटा मनरेगाम काम कारो अर आठ घंटाs पगार पावो।  "
पोस्टमैन पर बैंकरौ ठप्पा लग न बल पोस्टमैन सेल्समैन बण जालो।  संभावित ग्राहकों की खोज करणम पोस्टमैन उस्ताद ह्वे जाल।  जनि नवाड़ी चलते फिरतो बैंकर तै पता चौलल बल फगुण्यान ब्याळि एक हजारौ आदो ब्याच त पोस्टमैन दादा फगुण्याs चौकम पौंछि जाल अर सेल्समैनौ जाळ पसारदो पसारदो ब्वालल , " काका पैसा इनि धर्यां राल तो कबि सिगरेटो अग्यो म जळ जाल , कबि लैमचूसौ स्वाद म गैब ह्वे जाल अर नि ह्वाल त काकीs लिपस्टिक पुटिस्टिक म खतम ह्वे जाल। "
पोस्टमैन जणदु छौ बल फगुण्या तै लिपस्टिक से जनमजाति दुसमनै च।  तीर सीधा ग्राहक का दिल पर लग जावो तो गाहक हताहत ह्वेइ  जांद।  ऊनि ह्वे फगुण्यान पूछ , "त ब्यटा कुछ तरीका त बता ?"
नव बैंकरौ जबाब होलु , " काका  जनतौ पैसा लिपस्टिक म बर्बाद नि हो कुणि PPB (Post Payemnt Bank ) की बड़ी भड़िया स्कीम लयीं च "
फगुण्या," क्या च स्कीम ? क्या च स्कीम ? जरा मै बि बतादि "
पोस्टमैन 'अटल बिहारी कुबेर बॉन्डम हजार रुप्या भ्वारो अर तीन सालम द्वी हजार रुप्या ड्यार लावो "
फगुण्या ह्वाइ मोदी भक्त।   फगुण्यन ज्यादा कुछ नि पूछ बस ब्वाल , " अटल जी नाम च त जरूर  स्कीम फैदामंद ही ह्वेलि।  मी तैं   द्वी हजार रुप्यौं बॉन्ड देदी। "
पोस्टमैन जी कुण भाजपा या कॉंग्रेस महत्वपूर्ण नि होलि अपितु फिक्स डिपॉजिट टारगेट महत्वपूर्ण होली जी।
जनि पोस्टमैन दादा उत्फ नव बैंकर तै पता चौलल बल हुकम दान सुबेर द्वी हजार रुप्याs मर्च बिचेन त बैंकर पौंछि जाल हुकम दाs  डिंडळिम अर ब्वालल , " भेजी अचकाल यी लीचिंग फीचिंग भौत बढ़ गे , ड्यारम रुप्या नि धरण चयेंद।  क्वी लीचर फीचर रुप्या लूठि ल्ही गे त ?"
इखम बि तीर जगा पर इ लगल ।  हुकुम दा  ह्वे पक्को आरएसएस विरोधी तो छटछटाक से ब्वालल , " हाँ साले सुधरेंगे नहीं।  अब तो पता नी कब ये गाँवों में बी पौंच जाएंगे।  पर क्या करूँ ?
पोस्ट मैं दादाs जल्दीबाजी म बोली बैठ , " छ न अटल बिहारी  कुबेर बॉन्ड  स्कीम ! द्वी हजार रुप्या भ्वारो अर तीन सालम चार हजार रुप्या पावो "
अटल बिहारी नाम सूणी इ हुकुम दा पर डौंड्या नर्सिंग चढ़ गे , " चल फंड इख बिटेन , नाम नि ले कबि म्यार समिण यूँ फांदेबाजुं १ चोर साले।  भाजपा वाळ "
पोस्ट मैं जी से जल्दीबाजी म गलती ह्वे गे छे।  हुकुम दा ह्वाइ पक्को इंदिरा गांधी भक्त अर पोस्ट मैनन  अटल बिहारी जी नाम ले दे तो हुकुम दान उछ्यंडाण ही छौ।  पर उ  क्यांक सेल्समैन जु प्रतिकूल परिष्तिथि तैं अनुकूल स्थिति म नि बदलो।
पोस्टमैन जबाब होलु , " जी जी इंदिरा गांधी कुबेर स्कीम बि च ना ?"
इंदिरा जीs  नाम सूणिs हुकुम दाs जिकुड़म सेळ पौड़ी गे बुलण लगल , " बल जरा बथा त सै स्यें भग्यानी स्कीम  !"
पोस्टमैन , " इंदिरा धनलक्ष्मी बॉन्डम हजार रुप्या भवारो चार सालम द्वी हजार रुप्या पावो "
 हुकुम दा  फट भितर जाल अर पांच हजार रुप्या लेकि आला अर ब्वालल , ले वीं भग्यानी नाम पर मेर तरफ से पांच हजार रुप्या बॉन्ड दे दे "
पोस्ट मैनौ क्या जांद जब क्वी राजनैतिक चश्मा लगैक फिक्स डिपॉजिट धारो तो।
इनि कथगा इ बात होली तो तुम बि त कुछ स्वाचो पोस्टल बैंकिंग से क्या क्या ह्वाल ?
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21वीं सदी का पैली द्वी बीसी :  विरोध्युं  द्वारा भारतम निराशाs  सड़याण , चिराण  गुवाण सौराण

चबोड़्या, चखन्यौर्या , हंसोड्या :::   भीष्म कुकरेती

(S = आधी अ )

   मीन सन साठ बिटेन जरा जरा राजनीति बिंगण शुरू कार।  युवास्थाम भारत डंडखणो , घूमणो , टुरो खूब मौका मील।  बीसवीं सदीs इक्कीसवीं सदीम छिरकण बि द्याख।  इंदिरा , नरसिम्हा राव , अटल जीओंको  सरकारी तंत्र बि अनुभव कार त चरण सिंह  , देवी लाल ताऊ , राजनारायण जी भौत सा विरोधी नेताओं भाषण भीषण बि अनुभव कार . पर सबसे बिंडी निराशाजनक अनुभव सन 2001 बिटेन  विरोध्युं द्वारा भारतीय जन मानस मध्य निराशा सौराण  च।  राजनारायण तबौ राजनीति म एक जोकर माने जांद छा पर मूर्ख नि माने जांद छा वो बि विरोध करदा करदा कबि बि  निराशा नि सौरांद छा।  अब तो एक पुरण परिवार वादी पार्टी को सिरमौर ही मूर्ख को अवतार च किन्तु राजनारायण म अर ये  लाटो म बड़ो भेद या च यु अवतार निराशा घोर निराशा सौराण  म हुस्यार च।
भग्यान चरण सिंह जी नेहरू परिवारौ जन्मजाति निंदक छा पण विरोध म निराशा नि सौरांदा  छा।  2001 का पैंथर जथगा बि पार्टी विरोध म रैन यूंन जनता म विरोधs नाम पर तर्कसंगत विरोध नि कार अपितु जनता म भविष्य का प्रति उत्साह न निराशा म डाळणो काम कार जन बुलया भारत या राज्यम क्वी  बि काम हूणु  नी  च।
   विकल्प बगैर विरोध सद्यनी निराशा इ सौरांद।  चरण सिंग जी या हरयाणौ बाडा देवी लाल आधुनिक उद्यम से इन चिड़दा छा जन गुराs नेवला से पण यि द्वी दगड़म  ग्रामीण उद्यमै छ्वीं लगैक विरोध तैं एक सकारात्मक रूप दे दींद छा अर जनता उत्साहहीन स्थिति से भैर ऐ जांदी छे।
 विरोधै परिकाष्ठा तो टीवी दिखे जब मोदी जीन िना शपथ ले अर ऊना वामपंथी अर कॉंग्रेसौ पळयां पुस्यां विचारक बुलणा /लिखणा छा बल अब भारत म प्रजा तंत्र खतम यूं उत्तराखंड का प्रसिद्ध विचारक शेखर पाठक व मंगलेश डबराल जी बि छा।  क्या विचारकों को एकि कर्तव्य हूंद विरोधौ नाम पर निराशा सौराण ? क्या ुताश सौराण विद्वानुं काम नी च , उत्तरदायित्व नी च ?
   प्रजातंत्र म विरोध इनि  आवश्यक च जन चा म चा पत्ती किन्तु विरोधौ यु मतबल तो नी  बल जनता म घोर निराशा बस जा।
  जनता विरोध म ताळी त बजै  दींदी पण जू बि  विरोध बगैर विकल्प को हो तो बोट  दींद दैं विरोधी तैं लते दींदी।
   मि द्वी उदाहरण दींदु बल जनता विरोध म विकल्प दिखण  चांदी।
    कजीरवाल जी याने आरोप लगाओ भागी जावो।  किन्तु कजीरवालन पवाणी काल म विकल्प बि सुझायन अर जनतान कुछ सीट दिल्ली म दे दिनी।
दुबर जब चुनाव ह्वेन त नरेंद्र मोदी सरीखा घाघ राजनीतिज्ञ बि गच्चा खायी गे।  नरेंद्र मोदी जीन बेवजह चुनावों म कजीरवाळ  की निंदा शुरू कर दे अर दिल्ली की जनता न मोदी जी तै आइना इ दिखै दे बल बेटाराम हम फोकट का विरोध बिलकुल पसंद नि करदा।  बगैर बातो विरोध करणो फल दिल्ली चुनाव म भाजपा तैं दिखणो मील।  एक हौर   बात तब मोदी जी का भाषणों म कजीरवाळ  जी का आश्वासनों का विकल्प कतै नि छा तब
छा।  बगैर विकल्प का कैक विरोध करण से मोदी जी की हार ह्वे ।
 जब कजीरवाळ जी दिल्ली का मुख्य मंत्री बण गेन तो ऊंमा  एकी काम रै गे छौ सुबेर मोदी विरोध म ट्वीट - मि  तै ठीक से झाड़ा नि  ह्वे मोदी तै तुरंत इस्तीफा दीण चयेंद , श्याम दैं कजीरवाळ जीक  ट्वीट हूंद छौ - आज दिन भर मैं तैं मरोड़ उठणी राई मोदी जी तैं इस्तीफा दीण  चयेंद।
कजीरवाळ  जी तैं बगैर बातौ  विरोध का खामियाजा पंजाबौ चुनाव म भुगतण पोड़।  विरोध आवश्यक विटामिन च पर बगैर बातो विटामिन गातौ वास्ता नुक्सान देय बि हूंद।  अच्काल कजीर वाळ समजी गेन त मुख पर म्वाळ  लगायूं च ।
 मोळ माटो परिवार वादी राजकुमार की क्या बात करण ना ही विरोध करण अफिक आंद ना ही सल्लाकारों बैशाखी से नादान  विकल्प सुझाई सकदो।  लोक सभा म भाषण उपरान्त राजकुमार की अकल  दिखे ही ही गे बल सल्लाकार भाषण लिख तो सकदन पण  गुड़ गोबर तो राजकुमार ही कर सकद।
बगैर विकल्प का विरोध से निराशाs गंध फैलाणो  काम केवल आज का विरोधी हि नि करणा  छन अपितु भाजपा बि  इखम साझेदार च।  जख जख भाजपा न विरोध का साथ सकारात्मक विकल्प नि दे उख उख भाजपा न जनता का डंडा खैन।
  मनोविज्ञानौअमर  नियम च बल विरोध तबि हजम हूंद जब विरोध का दगड्या दगड़  विकल्प को लूण  मिर्च , हल्दी बि हो बगैर विकल्प को विरोध निराशा सौरांद अर नुक्सान देय ही हूंद।


Copyright @ Bhishma Kukreti, 27/9/2018
 


 


 

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