भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जीक "अंधेर नगरी" गढ़वळि मा अनुदित करनै एक कोसिस। आपै सौ सल्लाक स्वागत छ।
गढवाली अनुवाद – अखिलेश अलखनियां
-------------------------“अंधेर नगरी"--------------------
अंधेर नगरी चौपट्ट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
(पैलू दृश्य)
(सैर से भैर)
(बाबा जी अफरा द्वि चेलो दगड़ि गौन्दू बजौन्दू औन्दन)
राम राम जपल्या रे
राम राम जपल्या रे
जपला जू तुम राम
त निभ जाला सब काम
राम राम जप...
बाबा जी- ब्यटा नारायण दास! भैर बीटी त यू सैर भौत सुंदर लगणू छ! देख दौ कुछ भिक्चा विक्चा मिलू त भगवान तै भोग लगू बक्की क्या चयेणु।
ना. दा.- जी गुरजी! दिखेंण दर्शनों तै य जगा जू होली सू होली पण भिक्छा बी उन्नी बढ़िया मिलू त मजा ई एजौ।
बाबाजी- ब्यटा नारायण दास तू ईंS धार जा अर
ब्यटा गोवर्धन दास तू वीं धार जा। देखा तब जू कुछ बी मिलू त देबतो तै भोग लगू।
गो. दा.- गुरजी तुम चिंता नी करा, यखा लोग भारी मालदार चितेंणा छन। मैं अब्बी झोल्ला भोरी लौंदो।
बाबाजी- रे रे रे चुचा भंडी लोब नी करी, जादा लोब करी कैकी मवसी नी बंणी आजतलक।
लोब करी कैकी मवसी नी बंणी,
पूरा नी होंदा क्वी काम।
लोब छोड़ी राम राम जपल्या,
बंण जौला तेरा सौब काम।
(गौन्दू गौन्दू सौब चल जांदन)
(दूसरू दृश्य)
(बजार मा)
बोड़ा जी- घर्या दाल लेल्या, घर्या दाल लेल्या। सोंटा, गौथ, तोर अर मसूर लेल्या। कुटरी भोर भोरी लीजा। पाड़ मा लीजा चा पाड़ से भैर लीजा। खै पेतै सेत बंणा। ये मैंगा जमना मा टका सेर लेल्या, टका सेर लेल्या।
बोड़ी- गोदडी, कखड़ी, खिर्रा, चचेंडा लेल्या। घर्या भुज्जी मरसू, पलेंगू अर मुंगरी लेल्या। कै जमनो मा होंदा छा अब समलोंणया ह्वे गेन। माटू खंणला त मिनतौ खैल्या, मिनत नी कैल्या त टका सेर मोलौ लेल्या।
नौनू- हिसर, काफल, बेडू अर लिम्बा नारंगी लेल्या। रस्यांणै चीज छन अब बिसरेंणै ह्वे गेन। खटै बंणै तै खा चा बंणा तुम कचमोली। निम्जा भोरी लीजा टका सेर लेल्या।
मिठै वलू- गरम गरम जलेबी, सिंगोरी, बाल लेल्या। लड्डू , बर्फी अर पेड़ा लेल्या। बन बनी मिठै छन बन बन्या लोख्वू तैं। उलारै मिठै छ छोट्टा बाळो तै, रस्यांणै मिठै छ दानो तै, रंगतै मिठै छ ज्वानू तै, घुसै मिठै छ निकज्जो तै अर राजनीति मिठै बी छ दलबदलू तै। मोन्नै मिठै छ बचणै मिठै छ, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
गाजा बाजा वलू- डौंर ल्या थकुलि ल्या, ढ़ोल ल्या दमो ल्या, रंणसिंग ल्या मसकबाजू ल्या, पिपरी तुतरी सब्बि धांणी ल्या। बाजू लगा मंडाण लगा। देबतों नचा, मनखी नचा। मंडाण बी बन बन्या लगा, राजनित्यो मंडाण लगा, धर्मो मंडाण लगा, जात पातौ मंडाण लगा, आरक्षणा जागर लगा, भ्रस्टाचारौ घड्यलू लगा। जैकू चा वेकू जागर लगा पण या अंक्वेक नचण जनतन ई छ। गाजू बाजू चा क्वी बी ल्या मिललू सिरप टका सेर..टका सेर।
दूध बेचदरु- पिबर दूध ल्या, घ्यू ल्या, नौंण ल्या, दै ल्या, मठ्ठा ल्या। छांछ हमरी छोलेंण तुम सिरप मजा ल्या। मिनत हम यख करला परोठि भोर भोरी तै तुम उंद लीजा। जू बी छ पिबर छ असल छ, जथगा बी ल्या टका सेर ल्या..टका सेर ल्या।
विकास वलू- विकास ल्या, विकास ल्या। अफरु ल्या दूसरोंक ल्या। नयू राजौ विकाश ल्या, हस्पतालों ल्या, स्कूलू ल्या, चारु गुजरू विकाश ल्या। नेतौंक ल्या वूंका चमचोंक विकाश ल्या, विधायकोंक ल्या गौंका पधनूक विकाश ल्या, गल्लेदरुंक ल्या, पल्लेदरुंक ल्या। असल मा ल्या चा कागजूं मा विकाश ल्या टका सेर ल्या...टका सेर ल्या।
शिकार वलू- शिकार ल्या शिकार ल्या। सिरी ल्या, फट्टी ल्या, भुटवा ल्या। तर्रिदार ल्या, सुखू ल्या, चरचरी बरबरी ल्या, कंठ खोलणदार ल्या। कुखडै ल्या, बखरै ल्या, ढ्यबरै ल्या, बोंण सुंगरु ल्या बन बनी रसदार शिकार ल्या। जथगा बी ल्या टका सेर मा ल्या...टका सेर मा ल्या।
खाजा बुखणा वलू- खैजा रे खैजा खाजा बुखणा खैजा। चळमळा कुरमुरा खाजा बुखणा लेल्या। दगड़ा मा छन सबदी रोट अरसा। इबरी मिलणा छन भोळ यूँतै खुदेला। लेल्या रे लेल्या खाजा बुखणा लेल्या, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
राशन वलू- आटू ल्या, चौंळ ल्या, लूंण मर्च ल्या, चिन्नी ल्या, तेल ल्या। टका सेर राशन टका सेर पांणी ल्या।
गो.दा.- उममममम लाला जी यू आटू क्य भौ दे?
राशन वलू- बल टका सेर मा।
गो.दा.- अर चौंळ?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर चिन्नी?
राशन वलू- यूबी टका सेर।
गो.दा.- अर तेल?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर लूंण मर्च?
राशन वलू- अरे बामण माराज सब्बी धांणी टका सेर छन।
गो.दा.- हे रे चुचा चखन्यो नी करी वS बामणै दगड़ी। सब्बी टका सेर कनक्वे?
राशन वलू- चखन्यो करी क्य बामणों अपजस लगाण मिन अफ परै।
गो.दा.- (खाजा बुखणा वला मा जैतै पुछदू) भुला यू खाजा बुखणा, रोट अरसा क्य भौ देन?
खाजा बुखणा वलू- माराज सौब टका सेर मा देन, सौब टका सेर छन।
गो. दा.- ब्वा साब क्य बात छ, यख त सब्बी चीज बस्ती टका सेरा भौ से बिकणी छन। ये मैंगा जमना मा य उल्टी गंगा कनक्वे ह्वेली बगणी। (यन बोली तै गोवर्धन दास मिठै वला मू जैतै पुछदू) हाँ त ब्यटा राम मिठै क्य भौ देन?
मिठै वलू- माराज! लड्डू, बर्फी, पेड़ा, जलेबी, सिंगोरी, बाल सब्बी मिठै खटै टका सेर मा देन।
गो.दा.- ब्वा साब! मजा छ यख त। किलै रे मादा झूठ त नी तू बोलणी मैमा। अछी जी होली सब्बी धांणी टका सेर मा?
मिठै वलू- झूठ बोली क्य मिलण माराज हमतै, ईं जगै चाल ई इन्नी छ यख सब चीज बस्ती टका सेर मा बिकदन।
गो.दा.- ईंS जगा नौ क्य छ ब्यटा राम?
मिठै वलू- माराज अंधेर नगरी।
गो.दा.- अर रज्जा कू भग्यान होलू ब्यटा?
मिठै वलू- जी बल चौपट राजा।
गो.दा.- ब्वा साब, अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा। (रंगमत ह्वेतै गोवर्धन दास इखरी इखरी मजा मा यन बोलणू रौंदू)
मिठै वलू- अरे माराज कुछ लेंणी देंणी बी कन तुमन की सुद्दी खीचरोडी कन। लेंदा त ल्या निथर फुंड जा।
गो.दा.- ब्यटा राम मांग मुंगी तै भिक्छा मा सात पैसी मिली छै, उख्खी मा सढ़े तीन सेर मिठै देदी तू। इथगा सब्बी गुरु चेलो तै छकण्यां छ प्वटगी भोरणो तै।
(मिठै वलू मिठै तोलदू, अर गोवर्द्धन दास मिठै लेतै अंधेर नगरी चौपट राजा..गीत गांदू गांदू अर मिठै खांदू खांदू मजा से वख बिटी जांदू)
(तिसरू दृश्य)
(बोंण मा)
(एक तरफ बाबाजी अर नारायण दास राम राम जपल्या भजन गौन्दू गौन्दू औन्दन अर हैंकी तरफा बटी गोवर्धनदास अंधेर नगरी चौपट राजा गौन्दू गौन्दू औन्दू)
बाबाजी- ब्यटा गोवर्धनदास बोल क्य भिक्छा लये। निम्जा त तेरु भारी गर्रु लगणू छ चुचा।
गो.दा.- गुरजी! भंडी माल ताल छ मेरा झोल्ला भीतर। निम्जा भोरी मिठै लयी मेरी आंSSS।
बाबाजी- बतौ दौ ब्यटा राम क्य लयूं तेरु (गुरजी अफरा समणी मिठै कू बुजडू खोलदन)। ब्वा ब्यटा राम! शबास मेरा काळा, पंण या इन बतौ इथगा मिठै लये कखन, कै भग्यानन दे त्वे?
गो.दा.- गुरजी! सात पैसी मिली छै भिक्छा मा वक्खी मा सबा तीन सेर मिठै लयो मैं।
बाबाजी- ब्यटा यू नारायण दास बोलणू त छैं छौ यख सब्बी धांणी टका सेर मा मिलणू छ पण मीन बिसास नी करी। ब्यटा य जगा क्वा छ अर यखौ रज्जा कू छ?
गो.दा.- गुरजी! अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
बाबाजी- ई बप्पा! त ब्यटा जख टका सेर मा भुज्जी अर टका सेर मा खाजा मिलदू हो वीं जग रंयू नी चयेणू।
दोहा : सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास ॥
कोकिला बायस एक सम, पंडित मूरख एक।
इन्द्रायन दाड़िम विषय, जहाँ न नेकु विवेकु ॥
बसिए ऐसे देस नहिं, कनक वृष्टि जो होय।
रहिए तो दुख पाइये, प्रान दीजिए रोय ॥
यान चला ब्यटों यखन। जैं अंधेर नगरी मा दूंण पाथों भोरी तै फोकट मा बी मिठै मिलू वीं जगा जरा बी रुकूंण ठीक नी।
गो.दा.- इन त क्वी बी देस ई नी ई मुंथा मा जख द्वि पैसा मा छकण्या पेट भोरी खाणो तै मिलू। मीन त नी जांण यख बिटी। हौर जगों त दिनभर मांगी बी पेट नी भोरेन्दू। बाजी बाजी जगों त भुख्खी बी रौंण पोडदू। मीन त यख्खी रौंण।
बाबाजी- देख ब्यटा पिछनै तीन पछतौ कन। बल दाना बोल्यू अर औंला सबाद पछनै औन्दू याद।
गो.दा.- न गुरजी आपै किरपा राली त कुछ नी होंण। मैं त बोल्दो तुम बी यख्खी रावा।
बाबाजी- मैं त नी रौंण्या यख सप्पा बी, भोळ बोली ना मीन बतै नी छौ। मैं त जंदो यख बिटी पण तू कबरी कै दुख बिपदा मा फँसलि त मैं याद करी।
गो.दा.- जी गुरजी परणाम। मैं तुमतै रोज याद करलू। मैं त अब्बी बी बोल्दो तुम यख्खी रुक जावा।
बाबाजी नारायण दासै दगड़ी जांदन अर गोवर्धन दास बैठी तै मिठै खांदू।
क्रमशः .........(बक्की भोळ)
©®अखिलेश अलखनियाँ