गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
गंगा जी -जमुना जीक भगवानुंम जाणु
चबोड्या: भीष्म कुकरेती
(s=-माने आधा अ )
जख करोड़ो लोग मक्रैणि कुंभ नयाणों प्रयागराज जयां छन तखि गंगा जी अर जमुना जी इलाहाबादs बजार बिटेन अगरबत्ती , धूपबत्ती , घ्यू खरीदीक भगवान ब्रह्मा ,विष्णु अर शिवजी पंचैतम पौन्छ्याँ छ्याइ . वूं दुयुंन अर्घ चढै तिनि भगवानू पूजा कार .
अर उखम हंसदी सरस्वति देखिक दुयुंन रोष अर रुन्दि भौणम ब्वाल ," ये भुलि सरस्वति हैंसी लेदि हमर दुर्दशा पर . अफु त तू गढ़वाळी प्रवास्युं तरां हम परिवार वाळु तै तै नरक छोड़ी ऐ गे .कुज्याण कै दिनों पाप छौ जु हम भुगणा छंवां!"
सरस्वतिन बोलि ,"ये दीद्युं ! मीन त तबारि बोलि याल थौ बल यीं पृथ्वीम कलजुग आण वळ च चलो इख छोड़ी सोराग बसि जौंला .पण तुम दुयुं पर मानव कल्याणो रागस लग्युं छौ . तुम पृथ्वीमाँ इ रै बसि गेवां .अब भुगतो मानव कल्याणों पुण्य ."
दुयुंन उस्वासी छोडद बोलि ," हम क्या पता छौ मानव कल्याण का ऐवजम हम तै डंड मीलल"
ब्रह्मा जीन पूछ ," हे देव-मानव पाप निवारणियो ! इन क्या बिपदा ऐ ग्यायि जख आज मक्रैणि दिन तुमतै करोड़ो लोगुक श्रधा भक्ति क ऐवजम पुण्य बंटण थौ अर तुम इख रूणो अयाँ छा ? क्या जम्बूद्वीपम क्वी नया राक्षसs राज ह्वे गे ? "
गंगा -जमुनाक समज माँ नि आयि अर ऊंन पूछ ," ब्रह्मा जी ! हम जम्बूद्वीपs बात नि करणा छंवां .हम त इंडियाक बात करणों अयां छंवां ."
सरस्वतिन दुयुं तै बिंगाई ," ओहो ! तुम द्वी त अब जम्बूद्वीप नाम बि बिसरी गेवां। जम्बूद्वीप माने इंडिया ."
गंगा -जमुनान इकदगड़ि ब्वाल," अब बिसरण इ त च . उख जख बिटेन अलकनंदा शुरू होंद उखम बड़ी पाटी पर लिख्युं च दिस इज माणा विलेज द लास्ट इंडियन विलेज , इनि गौमुख अर यममुखम बि बोर्डम लिख्युं रौंद द मोस्ट औस्पेसिअस इंडियन प्लेस . त हमन भूलण इ च कि कबि हमारि जन्म धरती जम्बूद्वीप या भारत छौ"
यांमा ब्रह्मा जीन पूछ 'क्या इंडियाम रागस राज च क्या ?"
गंगा न बथाई ," ब्रह्मा जी अचकाल हमारो उद्गम इ बिटेन लोक कूड़ाकरकट चुलांदन कि हमर आँख इ बंद ह्वे गेन त हम तै पता इ नि चलणु च बल इंडियाम रागस राज च या मनिखों राज च ."
विष्णु जीन पूछ ,'त तुम कन्दूडु से सूणिक बि त जाणि सकदवां बल उख भारतम कैक राज च ?"
जमुना जीन भेद ख्वाल ," जब हमर छालों (किनारों ) पर ध्वनि प्रदूषण इथगा बढ़ त धन्वन्तरी वैद जीन हमारा कन्दुड़ इ सील देन बस ! हम डिवाइन हियरिंग एड का बदौलत दिवतौं बात सुणि सकदवां ! बस !"
शिवजीन पूछ ,"पण तुमारो स्पर्शेंद्रियां त काम करणी होला ? स्पर्शेंद्रियों से पता लग सकुद बल भारतम कैक राज च ?"
जमुना जीन रुन्दि भौंणम ब्वाल ," प्रभो ! चोहड़पुर बाद जु गुवारोळी-मूतारोळी- फैक्टर्युं गंदो पाणि मिलावट मीमा होंदी कि दिल्ली आंद आंद मी बि अपुण पाणि नि पींदु बल्कणम बोतलुं मिनरल वाटर पींदु ..."
गंगा जीन बोलि ,' शिव पूरी बिटेन मेरो पाणिम गू -मूत -भंगार -कूडा करकट फिंके जांद वां से मै पर खौड़ू रोग (छुवा-छूत को स्किन डिजीज ) ह्वे गे अर मेरि अर जमुनाक स्पर्शेंद्रियां काम नि करणा छन ."
ब्रह्मा जीन ब्वाल ,"पण तुम दुयुंम मानयोग की शक्ती च त ..."
सरस्वती जीन खुलासा कार ," भगवन ! विभिन्न साधु संतो संगठनम भयंकर वैमनष्य , अखाड़ो आपसी लड़ाई , आचार्यों भेषम लोभी -लालची , भक्तो भेषम खरदूषण, शंकराचार्यों अर महंतों राजनैतिक अभिलाषा अर अति महत्वाकांक्षा देखिक यि द्वी मनोरोगी ह्वे गेन अर यूंमा जो मनशक्ती छे वा भ्रमित शक्ति ह्वे गे। अर अब यि द्वी मनशक्ति से कुछ बि बथाणम अशक्य ह्वे गेन।'
विष्णु जीन बोल ," यांक मतबल च हम सौब तै कुछ ना कुछ करण पोड़ल ..पण मै लगणु च मि बेहोश हूण वाळ छौं ..अं ...अं ..अं "
शिवजी अर ब्रह्मा जीन बि इकदगडि ब्वाल ,' मै बि लगद बल मि बेहोश हूणु छौं ..अं ...अं ..अं "
सरस्वतीन गंगा जमुना तै पूछ ,' तुम द्वी इ अगरबत्ती -धूपबत्ती -घ्यू कखन लै छया ?"
गंगा -जमुनान ब्वाल ,"प्रयाग राज बिटेन अर कखन ? कनों क्या ह्वाइ ?"
सरस्वतीन जबाब दे ," हूण क्या छौ . अगरबत्ती -धूपबत्ती अर घ्यू नकली छौ अर विषैली गंध से भगवानो भगवान बि बेहोश ह्वे गेन ."
गंगा -जमुनान पूछ ,' अब क्या हमारो होलु /"
सरस्वती जीक जबाब छौ," इन मा भगवान बि कुछ नि कौर सकदन अब त जू बि कौर सकदन वो इन्डियन इ करी सकदन।"
Copyright@ Bhishma Kukreti 14/01/2013