Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 357534 times)

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा



                                                   बचपनs  सवाद



                                                  चबोड्या: भीष्म कुकरेती
 

(s=-माने आधी अ )



     बचपनौ कुछ स्वाद इन होंदन जु ज्युन्दिम त नि बिसर्याँदन अर   तबि  बिसर्यांदन जब मनिख वै जमानो चलि जांदु।

  अब सि द्याखो ना सुबेर सुबेर  सुबर बिजिक बगैर मुख धुयां अर बगैर दांत मंजायां बासी चुनै या ग्युंs रुटि गरम गरम चा मा खये जान्दि छे त अहा क्या सवाद आंदो छौ। अमृत त मीन नि चाखो पण मै लगद अमृतौ स्वाद चा मा बासि रुटि जन ही होंदु ह्वालु !

 इख मुम्बैम पेल त घरवळि  बासि रुटि रौण नि दींदि (टुप उथगि  पकवांदि जथगा जर्वत च ), फिर माना एकाद रुटि बासि रै बि जावों त वा खाणि नि दॆन्दि बल लोक क्या ब्वालल बल भिषम जन मैनेजर बासि रुटि। अर हाथ पात जोड़ी वा बासि रुटि खाणों इजाजत दे बि द्यावो त चा छ्वटु कप क्या कपि पर नापि तोलि चा देलि अर वां से पैलि चौकसि कौरि लेलि बल मीन साबणन मुख धुयाल कि ना दांत मंजै ऐन कि ना। पण इ राम दां बासि रुटि अर चा वु स्वाद नि आंदु जु सुबेर सुबेर सुबर बिजिक बगैर मुख धुयां अर बगैर दांत मंजायांम आंदु छौ।


  फिर एक हैंको स्वाद च जु बिसरण चाण से बि नि बिसर्यांद अर वा च झाड़ा जाणो बाद कल्यो (नक्वळ/नास्ता). कल्योमा मीन बचपनम रोज चूनौ रूटळ इ खै होला अर मेरि घरवळिक हिसाबन चुनौ रुटि माने गरीबुं ब्रेकफास्ट त हमर इख चून आंदो इ नि छौ किलैकि मेरि घरवळिs हिसाबं मि मातबर छौं। अब जब डाइटिष्टोंन अमीरों खुण चूनौ  खाणक प्रिस्क्राइब करण शुरु कौरि बि आल त मेरि वाइफ़ चूनो रूटळ ना चूनो  फुलका दगड़ करेला  रस या गाजरौ रस दींदि। अब तुमि बथावो म्यार बचपनौ सवाद वापस मीलि सकुद क्या? अरे कख बचपनम  म्वाटो म्वाटो चूनौ रूटळ अर कख  चूनो फुलका! अर फ़िर चूनौ रूटळ घ्यू या सागम खये जांदो छौ। क्या मेरि उमरौ मनिख चूनो फुलका गाजरो रस या करेला रसौ दगड़ खै सकुद?

                               

 फिर नक्वळ याने ब्रेकफास्टौ बाद मि द्वी घत पाणि लांदो छौ त इथगामा सौब जो बि खायुं ह्वावो वो पचि जांदो छौ अर तैबर तलक ग्विरमिलाक (गोर चराणों लिजाणौ बगत) बि ह्वै जांदो छौ अर तैबर तलक ब्वै (अब वा मेरि ब्वै नि रै गे माँ ह्वे गे) पऴयो या फाणु-बाड़ी या झन्ग्वर-कपिलु तयार करि दींदि छे। जू बि पक्युं होंद छौ वो सवादि होंद छौ। अब जब मि मुम्बै औं अर ब्वै सौरि मेरि माँ बि मुम्बै आयि त ब्वै अर घरवळिs हिसाब से हम सब अब सभ्य याने सिविलाइज्द ह्वे गेवां त फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु आदि सभ्यता क भेंट चढ़ी गे।

परार मि परिवारौ दगड़ नागराजा पुजैम गौं जायुं छौ अर एक बोडिक इख जनि फाणु-बाडि  खाणों बैठि छौ कि ब्वै अर घरवळि द्वी ऐ गेनि अर दुयुंन मि तै असभ्य हूण से बचै दे। अब कुज्याण कबि फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु मिलदो बि च कि ना धौं?

  अब जब फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु खाणों  नि मिलदो त लिंगड़, खुंतड़, मूळाs थिञ्च्वणि, बसिंगू, कंडाळि   की बात इ क्या करण? कुछ सवाद निपांदो ( जो सुलभ ना हो या न मिलने के कारण) भेंट चढ़ अर कुछ सभ्यता भेंट चढ़।


कबि कबि मि गाणा गांदु बल "कोई लौटा  दे रे मेरे बचपन के दिन, कोइ वापस ला दे रे  मेरा बचपन का स्वाद" त मेरि गढ़वळि  घरवळि तून (ताना ) दींदि ," तुम गढ़वाली कभी नही सुधरोगे। मुंबई सरीखी जगह में रहकर भी आदि वासी रहना चाहते हो।"

 

 




 Copyright@ Bhishma Kukreti 8/02/2013

Bhishma Kukreti

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हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                             चलो गैरसैणम भूमाफिया बणे जावो !


                            चबोड़्या-चखन्यौर्या:  भीष्म कुकरेती


(s =आधी अ )   

मीन अखबार बंचद बोलि बल अब लगणु च गैरसैण राजधानी बौणि जालि       

मेरि घरवळि बुलण बिस्यायि," तुम से भलो त वो ठेकेदार इ छौ।"

"ह्यां ! कु ठेकेदार?" मीन पूछ। 
 घरवळिन बथै," जु मि तैं सबसे पैल दिखणो  ऐ छौ।"

मीन गुस्साम बोलि," त कौरि लॆन्दि वै ठेकेदारों दगड़ पलाबंद।"

वींन खुलासा कार," अब म्यार बुबा जी अर पूरो परिवार असल गढ़वळि छन त चाहे क्वी करोड़पति बि किलै नि ह्वावो असल गढ़वळि अपण बेटि ब्यापारी या ब्यापारी नेथिक नौनु तै नि बिवांदो।"

मीन चिरड़ेक ब्वाल," पण यो अचाणचक ठेकदार किलै याद आयि।"

घरवळिन बोलि," दिल के अरमान दिल में ही रह गये। काश ! तुम बि देहरादूनम  गारा-राड़ा उठाणो ठेकेदार हूंदा।"

मीन पूछ," त क्या ह्वे जांदो?"

वींको जबाब छौ," त राजधानी बणणो परांत तुम बि जमीनों दलाल ह्वे जांदा।"

मीन ब्वाल।' अब जमीनों दलालुं कुण प्रोपर्टी डीलर बुले जांद।"

 घरवळिन बोलि,"धीरे धीरे करिक  तुम  जमीनों दलाल से प्रोपर्टी डेवलपर ह्वे जांदा।"

मीन बोलि," चल दिल के अरमान आज भैर निकाळ इ दे।"

वा बुल्दि गे," फिर तुम देहरादुनौ बड़ो भूमाफिया ह्वे जांदा।"

 मीन बोलि," अच्छा?"

 वींक अरमान खतेंद गेन," फिर तुम याने भूमाफिया,सबि पार्ट्यु नेता, अधिकारी लोग देहरादून की जमीन पर जायज अर नाजायज तरीका से कब्जा करी लीन्दा।"

मीन बोलि," ये मेरि ब्वे।"

वा बुल्दि गे," फिर तुम जमीन हड़पणों बाण शाम , दाम, दंड भेद का फॉर्मुला अपणान्दा, इख तलक कि कैकि हत्या करण से नि घबरान्दा।"

मिन घबडैक बोल," ये मेरि ब्वै!"

वींको बुलण नि रुक," तुम बि क्रूर भूमाफिया तरां लूट पाट, हत्या सब कुछ से जमीन हथियांदा अर दस गुणा दामोंम बेचिक मुनाफा कमान्दा।"

मीन बोलि," काश मि मुनाफाक मतबल समझ सकदु।"

वींको बुलण छौ," फिर विजय बहुगुणा जी गैरसैण राजधानी क बाण विधान सभा भवनों शिल्यानाश धरदा।"

मीन अचकचैक पूछ," इखम गैरसैण कखन ऐ गे?"

  घरवळि बुल्दि गे," गैरसैण को नाम से तुम सरीखा भूमाफियों लाळ  चूण बिसे जान्दि अर  तुमर ध्यान देहरादून से गैरसैणs तरफ चलि जांदो।"

म्यार गिचन आयि," ये मेरि ब्वे!"

वा नि रूक," उख गैरसैणs न्याड़-ध्वारो सबि जगा पर तुमारो कब्जा ह्वे जांदो। जु पुऴयाण म आंदो वै तै तुम रुप्यों से पुऴयांदा। जु नि माणदो वै तै डरै  धमकैक या कैको मुंड फोड़िक गैरसैण की धरती पर तुमारो कब्जा ह्वे जांदो। फिर तुम गैरसैणम   मनचाहे दामो पर जमीन बेचदा अर अरब पति ह्वे जांदा। अर मि अरब पत्याण।"

मीन बोलि," बात त तू सै बुलणि छे सुणन म आयि कि  गैरसैणम  जमीनों भाव सौ  गुणा बढ़ी गेन।"

                           

   

 Copyright@ Bhishma Kukreti 9/2/2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बल ! (भाग दुई )

'बल' तैं अगर इस्कोल्या हिसाब से दिखे जा त यख बि काफी बल बलकणा छन। बस्गाल मा डाला पर पकीं आमू कि दाणी पर जब तक गुरुत्वाकर्षण बल नि लगुदु तब तक वो पत्त भुयां नि प्वडिदि। माछा मरण वला जणदा छन कि घप्प ढंडी डुब्बी मरणा बाद पाणी उब्बु ठेल दिन्द। अगर योग्य डुबेर नि राई त मछेर पाणी कु झोल बणाकि माछ्यों कि गाणी कैर -कैरिकि क्वारा ढुंगला घुटणा रंदन। पाणी का उब्बु ठ्यलण वलु यु बल कितबियों मा उत्पलावन बल ब्वले जान्द।

त देख्याल साब आपल यख सब बलशाली छन। निर्बल थै बि भगवान का खाण-पेण का रस्ता दियां छन। गुजरू करण लैक बल सब्यों मा छ। तबी त ब्वल्दन कि 'निर्बल के 'बल' राम' !

बलों मा आत्मबल सबसे बडू बल छ। जैमा आत्मबल छ वु सबल छ , जैमा आत्मबल नी वु दुर्बल छ।

मि त इथगा हि बोल सकणु छों कि :-

सौब बलों से न्यारू छ अपुणो गढ़वली 'बल'
जिकुड़ी छुयों ल भ्वरीं ह्व़ा गिचि ह्व़ा तलबल

गिचि ह्व़ा तलबल, 'बल' तैं सबल बणाओ
'कुटुज़' आली-जाली मा 'बल' नि लगाओ

अपणी बोळी भाषा 'बल' अपणी गढ़वली पछयाण
'बल' मा छौंका यन लगा कि ऐजा जैमा रस्याण !

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक )
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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व्यंग: ब्वाडा कु एन्जॉय : भाग दुई !
गतांक से अगने

बी . पी . एल . एन्जॉय, अंत्योदय एन्जॉय से महंगू होंद। यु एन्जॉय लगभग पचास परसेंट अपुडू सपोर्ट पर करे जान्द। ये एन्जॉय कु श्रीगणेश 'जासूसी लेणी अर जासूसी देणी' जना पुनीत कार्यों से करे जान्द।

बगुला कु बाघ बनाणु, बड़ी बांठी हत्याणी, परवांण बणना कु प्रयास करणु, हैककु ट्वापला अपुडा मुंड मा धैरिकी बार-बार ऐना मा देखणु , परया घारम मैमान दगड पालखुट्टा मार देणा, पैग लगैकि मुल्ल -मुल्ल हैसणु अर हैंका कु साबुन ले झट से स्नान कैरि देण से बी . पी . एल . एन्जॉय हौरि बि झनकदार बणि जान्द।

ए . पी . एल . एन्जॉय सबसे महंगू होंद। यु एन्जॉय लगभग नाइनटी परसेंट अपुडू सपोर्ट पर करे जान्द। कूल बिसगाणि, दुकान मा दुई-चार मूंगफली उठै कि उपदेश देणा, अपुड़ी तारीफ करनी, बस इत्यादि मा सीट पर कब्ज़ा जमाणु, हैंका कु कीसा जपगाणु, मिसकौल मरणि , फ़ोन से कर्मचारियों की कम्प्लेन करणी, सौरी -सौरी ब्वल्नु, अर हैंका कु पूंछ खैचण से यू एन्जॉय हौरि बि चल्मलु ह्व़े जान्द।

थिच्वाणी थडकणी छे। ब्वाडा ल एक कटवरिंद गरमागरम थिच्वाणी धैरि अर पधान जी तैं देणा खुण चलि गेनि।

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक )
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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व्यंग: ब्वाडा कु एन्जॉय (दुई किश्तों मा )

अति प्रसन्न ब्वाडा ल ट्वेंटी -ट्वेंटी स्टाइल मा पधान जी का मूला च्वारिन अर भितरखंड जैकि 'थिच्वानी प्रोजेक्ट' मा एडजस्ट हवे ग्याई।

मिल अचणचक्क देली मा जैकि ब्वाडा कि स्वयम्भू प्रसन्नता जपगाकी सवाल टांक -'ब्वाडा क्य होणु छ ? ब्वाडा ल मूला का पीस मा अध्यात्मिक तरीका से ल्वाडू बजैकि गिल्लु जवाब दयाई, ब्याटाराम ! एन्जॉय होणु छ। 'म्यारू माइंड मा ब्वाडा कु गिल्लु जवाब एलर्जी कन बैठिगे। मिल पुनः ब्वाडा कु अन्सर अटेरिकी सवाल झाड़ -ब्वाडा यु 'एन्जॉय' क्या चीज़ होंद, जरा यां पर अपुडा बिचारों कु पंखा चलाओ।

'एन्जॉय' पर र ब्वाडा कु दिमाग बिटे जु हवा लीक व्हाई वु कुछ ये प्रकार से छ :-
................................................................................................
....................

लोकल बिद्वानो का अनुसार एन्जॉय की तीन श्रेणी छन। अंत्योदय एन्जॉय, बी पी एल एन्जॉय अर ए पी एल एन्जॉय।

अंत्योदय एन्जॉय हैकाकि बीडी पेकि, हैककु गाज -गफ्फा खैकि अर्थात सौ परसेंट हैककु सपोर्ट पर करे जांद। यु एन्जॉय मन ही मन मा 'कु क्य ब्वनु छ' अर 'कु क्य कनु छ' पर आधारित होंद। गप्पबाज़ी, कन्दोराबाज़ी, जुवाबाज़ी, भुर्त्याबाज़ी अर गुन्दक्याबाज़ी से यु एन्जॉय ओपन करे जान्द। येका अलावा रस्तों मा कांच फ्वाड़नु , रेस्ट हाउसों मा 'आई लव यू' जनि सूक्ति कि अंकना कैरिकि बाणभेदी हार्ट बनाणु, उज्याड खावाणु, डामर लगाणा अर भितरखण्ड भुकण से अंत्योदय एन्जॉय कम्पलीट किये जांद।

शेष भाग दुई मा !

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक )
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुत्ती दा की चिठ्ठी रामप्यारी बौ खुणी !

प्रिय रामप्यारी,
दिल की बीमारी,

मैं यहाँ राजी ख़ुशी से नहीं हूँ। तुम्हारे पिता जी को भौत दुखी चाहता हूँ। सर्वप्रथम अपने म्वरनया शरीर का ख्याल रखना बाद में अन्य कार्य होंगे।

प्रिय, तुम मेरे दिल की चिबतरी हो! पैली बार तुमको चिट्ठी लिख रहा हूँ साबुत दिल तुम पर फैंक रहा हूँ।

उस दिन कांडे के कौथिग में तुम से मुलाकात हुई थी, तो मेरा दिल काजोल हो गया था जो की आज तक छाला नहीं हुआ है।

जब तुम्हे देखा तो मेरे दिल में प्यार की आग सिलक रही थी। परन्तु घ्यपुलु ने जब तुम्हे बुरी नज़र से देखा तो मैं पूरा फुके गया था, इसलिये अचकाल बरनौल घूस रहा हूँ।

मेरी गथयूडी ! अचकाल मेरी भूख - तीस हरच गयी है। चोबीस घंटे तुम आँखों में रीट रही हो। प्रिय इतना मत रीटा करो नहीं तो तुम्हें रिंग आ जाएगी और मेरी आँखें भी ख़राब हो जाएँगी। रात को सो नहीं सकता। तुम्हारी यादों के झीस बिनाते रहते हैं।

रामप्यारी, कन्याक्वांरी ! तुम्हारी दगड्या लक्की तुमसे जलती है उससे बच कर रैना। उस दिन वह मुझे घास डाल रही थी पर मैंने सूंघी तक नहीं क्योंकि मैं पहले से ही छक हो रखा था।

'दारू बोतल से पीता हूँ ढक्की से नहीं,
मुहब्बत रामप्यारी से करता हूँ लक्की से नहीं'
........................
.......
(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक )
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रामप्यारी बौ की चिठ्ठी घुत्ती दा खुणी !

प्रिय दिलदार
प्यार के अनगार !
माई हैण्डसम घुत्ती !

तुम्हारा भेजा पत्र पोस्टमैन छन्नी के जल्वट में रख गया था। पत्र हाथ में आते ही पाणी पाणी हो गयी थी पर अब उबा गयी हूँ।

प्रिय :
जलेबी के भाव हो गए हैं सस्ते
पत्र पढने से पहले तुमको मेरी नमस्ते //

मेरे चित्त के चिलगट ! मैं यहाँ कुशल हूँ। मुझे अजकाल खूब नींद आ रही है। त्यारा सौं घचोर घचोर के भी नहीं उठती।

सच कहूँ तो तुम्हारा पत्र पाते ही मन का कल्चुंडा नाच उठा। प्यार की कंपुली फूट पड़ी, खुशियाँ फाल मारने लगी और मुझे पता ही नहीं चला कि मैं छज्जे से लमड गयी हूँ। भयुं सौं, अब लचक लचक के हिट रही हूँ। .........

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'खुबसाट' बटेक

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बोतल विमोचन

"बस भै साब मेरी कैपिसिटी इतगे छ"
छोड़ यार ! तू बि कुछ नि छे'
न भै साब मिथै लगि गयाई'
अबे जादा नखरा नि कैर, ल्या ग्लास इनै धैर '
'मि पींदु नि छो पर आपकि इज्ज़त करनू छो '

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'khubsaat' बटेक )
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Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                           हे गोरिल, गोल्यु , ग्विल  ज्यू! अब तुमारो इ सारो (सहारा )  च
 
 

                             चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
 

(s =आधी अ )

 
 
  हे ग्विल जी  !  उन त हमर देसौ संविधान अर न्याय-निसाब दीणों नियमुंम क्वी इन खामी नी च बल तुम तै तंग करे जावो अर तुम तै धरम संकटमा डाळे  जावो पण माराज ! कुछ लोगुं दुःख नि  दिख्याणु च त मेरि गुजारिश च बल तुम जरा थ्वडा देरो खुणि  उत्तराखंड छोडि  जरा भारत दर्शन बी करि  ल्याओ।


             अब द्याखो ना अपणि जया ललिता बैणि बिचारि कथगा परेशान च। बिचारि  सणि वीं पर लग्युं भ्रष्टाचार अभियोग छुड़ाणो बान बार बार बंगलौर कोर्टम आण पड़दो। अब तुमि निसाब कारदि बल एक विपक्षी दलै नेत्याणि बिरोध कारलि कि बंगलौर आलि? या जब वा मुख्यमंत्री रौन्दि त विचारि तमिल नाडूम लॉ एंड ऑर्डरs  बान विश्वरूपम जनि फिल्मों तै बैन लगालि या अफु पर लग्याँ भ्रष्टाचारो दाग मिटाणो बान इना उना दौड़लि? चलो आम लोग त न्यायम देरी झेल इ ल्याला पण जया  ललिता सरीखी नेत्याणि कथगा परेशानीम रौन्दि। मेरि प्रार्थना च बल हे न्यायो दिवता  यीं बिचारिक पेंडिंग लीगल केसुं आदरणीय न्यायाधीसों से बोलिक झटपट निर्णय दिलै द्यायो।  बिचारि तैं अनावश्यक तून सुणण पड़दन कि वा एक भ्रष्ट नेत्याणि च अर इन माँ बिचारि तैं लज्जाहीन राजनीतिग्य बणण पोड़द अब हे ! निसाबौ दिबता! हम लोगुं तै कथगा बुरु लगद, जिकुडि जळदि   जब जया ललिता सरिखा नेतौं तै न्यायम देरिs  वजै बेशरम बणन पोड़द। 


अब उत्तराखंड बणणो बाद  तुम त गढ़वाल अर कुमाऊंम भौति व्यस्त ह्वे गेवां। अब बात बि सै च  राज्य बणनो बाद ग्राम सभा से लेकि देहरादून तलक भ्रष्टाचार,अनाचार,  चोरी चपाटी, लुचाखोरि, लूट खसोट बढ़ण से तुमम काम बढ़ी गे अर तुम अति व्यस्त ह्वे गेवां। पण फिर बि तुम जरा एकाध दिनो खुण बिहार ह्वेक ऐइ जावो। जो बिचारो भारत कु प्रधान मंत्री लैक छौ वै मनिख पर फोकटम पिछला सोळा बरसों  से चारा घोटाला केस चलणो ह्वावो त इन मा लालू प्रसाद यादव की छवि खराब नि होन्दि? बिचारा लालू जीक इ हाल छन कि जब नेताओं पर भ्रष्टाचार विरोधी बिल लोकसभा या राज्य सभा मा लये जांदो त ऊं तै अनावश्यक रूपम वै बिलों विरोध करण पोड़द अर फोकटमा लालू जीक  पार्टीs सांसद तै बिल की नकल संसदम खुलेआम फाड़ण पोड़द। अब इखमा लालू प्रसाद जीक क्या गल्थी च? जब सोळा सालम लालू जी तै न्याय नि मीलल त लालू जीन चिरड्याण च अर इनमा वो कै बि बिलों विरोध कारल कि ना/? जै बिचारो तै सोळा बरसों बिटेन न्याय नि मीलल त वै पर क्या बीतलि यो त लालू जी से जादा को जाणल? इन मा लालू जीको न्यायपालिका पर भरवस खतम होलु कि ना?अब त हम तै बि लालू जी से सहानुभूति हूण बिसे गे कि इथगा बड़ो नेता क दगड़ बि समौ से न्याय नि होणु च।  त जरा एकाद दिनों बिहार जैक आदरणीय न्यायाधीसोंम बोलिक लालू प्रसाद यादव जीक केस को फैसला करै द्यावो।


  अब इनि भावी प्रधानमंत्री लैक मुलायम सिंह यादव की यातना, उठा-पौड़ी  बि नि सयाणी च। जब बि बिचारा मुलायम सिंह यादव जी जनता का हित मा तिसरो फ्रंट की बात करदन कि कोर्ट को समन ऐ जांद अर बिचारा अपण सि मुक लेकि तिसरो फ्रंट की बात बिसरि जांदन। में से मुलायम सिंह जीको तरास, टौरचर  नि दिखे जांदो। जरा आयकर विभाग  का अधिकार्युं, सी . बी . आई . का लोगुं  अर आदरणीय न्यायाधीसों से बोलिक मुलायम जीक  केसों निपटारा करी द्यायो। जन कि रॉबर्ट बाड्रा जी पर अभियोग लग त कन हरियाणा का अधिकार्युंन एक घंटाम बाड्रा जीक केसों निपटारा कार अर ऊं तै क्लीन चिट दे द्यायि। भगवन!  इनि फटाफट न्याय निपटारा मुलायम सिंह जी क बि करि द्यायो ना!


           न्याय निसाब की बात च। अब तुमि बथावदी बिचारा बीर  भद्र सिंह हिमाचल का मुख्यमंत्री  बौणि त गेन पण यूं पर लग्याँ भ्रष्टाचार का दाग त ऊनि छन कि ना? विचारि सोनिया जी अर राहुल गांधी तै कथगा बुरु लगदो होलु जब क्वी बि बोल्दो कि कौंग्रेस बात त भ्रष्टाचार मिटाणो करदी पण भर्स्ट नेता तै मुख्यमंत्री बणै दीन्दी। त हे ग्विल जी ! जरा बीर भद्र सिंह पर लग्याँ अरोपुं निपटारा चौड़ करै द्यायो जां से बिचारि सोनिया जी अर बिचारा राहुल जी तै शर्मशार नि होण पोडु! 



   हे न्याय-निसाब को दिब्ता ! भारतम हजारो नेता देरि से न्याय मिलणों कारण परेशान छन, रूणा छन, दुखि छन,  जरा आदरणीय न्यायाधीसों से बोलिक यूं नेताओं पर लग्यां केसों निपटारा त करावो। अब यि नेता लोग न्यायम देरी से  परेशान राला, रूणा राला, दुखि राला   त यूंन जन हित का काम कब करण? 

         


   उन त हरेक राजनीतिग्य चाणो च बल भारतम जुडिसियल रिफ़ॉर्म (न्यायिक सुधार ) आवो पण हरेक राजनीतिग्य जन हितs कामोमा इथगा व्यस्त छन कि न्यायपालिकाम सुधारों बाराम  वूं तै कुछ करणों क्या सुचणों बगत इ नि मिलणु च।त जरा तुम कुछ दिन उत्तराखंड न्याय विभाग से छूटि लेकि भारतम जुडिसियल रिफौर्म (न्यायिक सुधार) कराइ द्यायो भगवान !                                                                       


 

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                     गैरसैण से  भौं भौं डाउ ( विभिन्न प्रकार के दर्द ) 

 

                    चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती


(s =आधी अ )

 

                         गैरसैण  उत्ताराखंडै  स्थाइ राजधानी ना सै रुड्यूं राजधानी त बौणि इ गे। पण कथगौं तैं डाs  बि दीणी च। अब चीमा जन पहाड़ अर पहाड़ी विरोधी नेता चैक बि गैरसैण की  स्थाइ राजधानी या परमानेंट कपिटल ना सै पण  रुड्यूं राजधानी,ग्रीष्म कालीन राजधानी, टेम्पोरेरी कपिटल या समर कैपिटल को ताज/पद नि लूठी सकदन। विजय बहुगुणाs निर्णयन  पहाड़ विरोधी लौबिक  मुख पर इन बुज्यड़ लगाइ बल चैक बि या  धुर पहाड़ विरोधी लौबि ये परमानेंट बुज्या तैं नि निकाळ सकदि। पहाड़ अर पहाड़ी विरोधी लौबि कथगा बि चूं-चां कौरलि अब या पहाड़ -पहाड़ी विरोधी लौबिम  एक बात स्वीकार करणों अलावा क्वी चारा नी च बल उत्तराखंडs आन्दोलन पहाड़ अर पहाड्यूं बान छौ। बिचारि पहाड़-पहाड़ी विरोधी लौबि बान गैरसैणौ कणसि राजधानी बणण छाती पर एक बड़ो गुल च, एक दर्द च। अर बिचारि पहाड़ -पहाड़ी विरोधी लौबि रोइ बि नि सकदि बलकणम यीं धुर पहाड़ विरोधी लौबि तै खुलेआम विजय बहुगुणा को निर्णयों तारीफ़ इ करण पड़नु च। 
 
 

                   गैरसैणों कणसि राजधानी बणन से भारतीय जनता पार्टी का नेता जन कि अजय भट्ट, वी . सी . खंडूरी, कोशियारी, डा. रमेश निशंक आद्यूं तैं बि नानिन्दिs बीमारि लग गे ह्वेलि बल "इ क्या कौंग्रेसन भलो काम करि दे। अब हम विरोध क्यांक करला? अब हम कौंग्रेस पर भगार क्या लगौला?" आजकाल क्वी बि प्रतिपक्ष नि चांदो कि राजकीय पार्टी जन हितमा क्वी फैसला ल्याउ! विरोधी पार्टी चान्दि बल राजकीय पार्टी जन विरोधी निर्णय ल्याओ अर वूं तैं सरकार तैं गाळी दीणो मौक़ा मीलि जावो। अब बिचारि भाजापा कणाणि च, दुखि च, खिन्न च,उदास च बल यि क्या कनै कौंग्रेसन जन-जजबातों, जन -भावना कदर  वाळो फैसला ली याल! पण समणि खुसिम दांत निपोड़ी हंसणि च। नाटक करणम भाजापा त कौंग्रेस से भौत अगनै च। जु भाजापा गैरसैण तै रूड्यूं राजधानी बणाण से खुसि जतांद त यूं तै पुछण छौ तुम इथगा सालोंम किलै सियां रौवां भै? पण बिचारा भाजापाई दुखि छन, सन्न छन त यूं तैं क्या पुछण बल जब आन्दोलन चलणो छौ त तुमन किलै नि ब्वाल बल पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ोंम ना मैदानम होलि?

 

  गैरसैणो कणसि राजधानी बणन से बनि बनि क  उत्तराखंड क्रांति दल का कथगा इ नेता त बेहोश पड्याँ छन बिचारोंम जनता तै बौगाणो एकि त नारा छौ अर विजय बहुगुणा वो नारा बि लूठिक ली ग्यायि।त यूं कंगाल नेताओंन बेहोश हूणि च।मै नि लगद यूं उत्तराखंड क्रान्ति दलौ नेताओं बेहोशी दूर ह्वेलि। अब यूंको ऑक्सीजन इ 'गैरसैण' छे त ऑक्सीजन को सिलिंडर त अब विजय बहुगुणा क पास च। हां एक बात च उत्तराखंड क्रांति दल का कै बि नेताक घौ, घाव, चोट, व्यथा, पर कैन बि मलम नि लगाण किलैकि अब कैको बि यूं कमजोर बेकार का नेतौं  पर कैको भरवस नि रै गे।

                                                     

   भितरै बात क्वी भैर नि लाणों ह्वालो पण कौंग्रेस का भौत सा नेता बि निरस्यां छन, अब क्वी बि जळतमार कॉंग्रेसी कनकैक सहन कारल कि दुसर कॉंग्रेसीs  बडै ह्वावो, प्रशंसा ह्वावो; त इन मा गैरसैण को उत्ताराखंडै स्थाइ राजधानी ना सै रुड्यूं राजधानी बणन से ज्याठा नेता बि निरास ही छन बल इन कनो  विजय बहुगुणा सरा क्रडिट अफिक ली जावो!  तुम इ सचि बथावदि बल क्या जनता द्वारा विजय बहुगुणा की प्रसशा  से अपणा सतपाल महाराज, हड़क सिंग रावत, गोविन्द सिंह कुंजवाल, हरीश रावत खुस, प्रसन्न ह्वाला  ?         
 
             

 पण गैरसैणो कणसि  राजधानी बणन से   पहाड़ी जनता खुस च कि पूरो नि सै एक बाटो त खुलि गे।


Copyright@ Bhishma Kukreti 10/2/2013

 

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