Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359093 times)

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

 

                               आवा खनु खरपट से गढ़वळि  फिलम  बणौला
 
 

 

                                                 चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ )
 
 

 

फिलम बणन्देर ( निर्माता )- ओहो  भीषम जी! नमस्कार, नमस्कार 

भीषम - जी नमस्कार

फिलम बणन्देर- सौरी हाँ ! जरा देर ह्वे गे। आप तै मेरि जग्वाळ करदा परेशानी ह्वे।
 
भीषम - जी जादा ना  तीनेक घंटा से मि इन्तजार ...

 फिलम बणन्देर- वु क्या च फिलम निर्माता चाहे हिंदी को ह्वावो या गढ़वळि  का हो वो अळजाट मा इ रौंद। 

भीषम - जी क्वी बात नी च ...

फिलम बणन्देर-अब आप इखम  आवा तो मतलब आप म्यार दगड़  जुड़ी गेवां तो आप से क्या लुकाण। एक गढ़वळि बिल्डर च अब मातबर ह्वै ग्यायि त वै तै समाजम नाम चयाणु च, त मीन पटै आल अर वो मेरि फिलम माँ पैसा लगाला। अब म्यार बि क्या जाणु च वूं तैं असोसिएट प्रोड्यूसर बणाण मा। फिलम चलि तो नफा मा मेरि भागिदारी निथर नुक्सान असोसिएट प्रोड्यूसरौ।       
 भीषम - जी

फिलम बणन्देर-मीन तुमर बारम मा सूण बल तुम गढवाळीम कथा लिखदा अर तुम सणि गढ़वाळो रीति रिवाजों ज्ञान बि च।       
भीषम - जी थ्वड़ा भौत ..

फिलम बणन्देर-भै मि त  गढ़वळि लोक संस्कृति, गढ़वळि  रीति रिवाजूं  प्रेमी छौं अर मेरि  फिल्मोंमा जन कि 'मोबाइल बांद', 'घुंघरा स्याळी  अर छुमा बौ,  'आ स्याळी  सतपुळी म्याळा आ'  सब्युं माँ लोक गीत अर लोक संगीत च।   
 भीषम -जी में से क्या उम्मीद च।

फिलम बणन्देर-उम्मीद क्या च? एक निर्माता को चाहिए एक धाँसू स्टोरी। सि यि जु बैठ्याँ छन मेरि फिल्मों का अजय  जी गीतकार छन अर विजय जी संगीतकार छन 
भीषम -जी

फिलम बणन्देर-बॉस तुम एक धाँसू कथा लेखि लया। 
 भीषम -कथा को विषय ?

फिलम बणन्देर- वी! जु होंद च। कथा मा सस्पेंसक बान गांमा   द्वीएक हत्या जरूरी छन   
भीषम -औ !त आप सस्पेंस वाळि फिलम बणाण चाणा छन ? 

फिलम बणन्देर-ना ना फिलम त गढ़वळि लोक संस्कृति, गढ़वळि रीति रिवाजूं  पर आधारित हूण चयेंद पण जरा दर्शकों रूचि बि दिखण पोड़द कि ना?   
 भीषम -औ !

फिलम बणन्देर-हां जरा यीं फिलम मा गां का चारेक  खलनायक  जरुर हूण चयेंदन
भीषम -जी ?

फिलम बणन्देर-हाँ एक त कन्हैया लाल जन गौं को शाहूकार जरुरी च जैमा  सरा गां वळु पुंगड़ पटळ गिरवी ह्वावन अर वैकि बुरी नजर हीरोइन अर हीरोइन की विधवा भाभी पर ह्वावो     
 भीषम -जी ?

फिलम बणन्देर-दुसर खलनायक गौं को डाकु ह्वावो ये खलनायकम आठ दस डाकु अर घवाड़ा हूण चयेंदन जो रातमा गां मा  घ्वाड़ों मा बैठिक डाका दाल्दन। यु खलनायक जरा गब्बर सिंग से बडो क्रूर हूण चयेन्द हां?     
भीषम -जी पहाड़ी गां मा घुडैत डाकु ? 
 
फिलम बणन्देर-हाँ दर्शकों मजा  को तो ख्याल रखण  पड़दो कि ना?
भीषम - वो !

फिलम बणन्देर-तिसरो खलनायक मोगेम्बो जन हूण चयेन्द जैको खुफिया अड्डा जो माणा गां को  पैथर  ह्वावो।
भीषम -माणा गां?
 
फिलम बणन्देर-भई गढ़वळि फिलम च तो बद्रीनाथ अर माणा  का सीन आला तो फिलमम गढ़वळि संस्कृति बि आलि कि ना?     
भीषम -अच्छा !

फिलम बणन्देर-हां, चौथो खलनायक जुवाघर अर  कैबरे होटल को मालिक ह्वालो। ये तै अग्निपथ को संजय दत्त जन दिखाण हां   
 भीषम -त यिं फिलम मा हीरो हीरोइन नि ह्वेलि?

फिलम बणन्देर-वाह किलै ना! दबंग याने सलमान खान स्टाइल को हीरो ह्वालु, वैकि ब्वै होलि जैं पर डाकु बलात्कार कारल , बैणि ह्वेलि जैं पर गौं को शाहुकार बलात्कार करदो, विधवा भाभी होलि जैं पर मोगेम्बो का चार गुर्गा चल्दि बस मा सामूहिक बलात्कार करदन  जन कुछ दिन पैलि दिल्लीमा ह्वे छौ         
 भीषम -तीन बलात्कार ?

फिलम बणन्देर-नै नै ! चौथु बि च वो आखरि च हीरोइन  हिसर गाडणि च चरि खलनायक वींक दगड़ बलात्कार करणे कोशिस करदन ,फट्यां चिर्यां झुल्लों मा   हीरोइन भगदि भगदि ग्युं क खेत माँ आन्दि उख गिवड़म  खलनायक वीं का सबि झुल्ला फाड़ी दीन्दन वा दौड़दि  दौड़दि रूपणि कुणि तयार धानो खेत मा आंदी तो लत पथ नंगी  हीरोइन क़ा दगड़ जनि सबि खलनायक बलात्कार करण इ चंदन की दबंग हीरो आंदो अर चर्युं तैं खतम करदो।           
 भीषम -मतलब बलात्कार की कोशिस तीन मैना जेठ से सौण   तक ?

फिलम बणन्देर- अरे भै अचकाल जनता बलात्कार विषय पर बड़ी चर्चा करणी च तो कथा मा सामयिकता बि आण चएंद कि ना? अरे  सामयिकता से याद आयि कि फिलम मा भ्रष्टाचार बि होण चयेंद त तुम इन कारो पंचो खलनायक पटवारी तै बणावो अर वो हीरोइन की बैणि से बलात्कार करदो ज्वा आत्महत्या करी लॆन्दि अर हीरोइन वै पटवारी से बदला लीन्दी।
भीषम - पांच बलात्कारों क बीच मा गढ़वळि  संस्कृति अर रीति रिवाज दिखाणै जगा कखम बचीं च? 

फिलम बणन्देर- भौत जगा च। हीरो हीरोइन का दडुयेट डांस  अर सौंगमा गढ़वळि संस्कृति अर रीति रिवाज का कपड़ा आला, पैथर बैकग्राउंडम पहाड़ ह्वाला, मोगेम्बो बद्रीनाथ को भक्त दिखाए जालो। फिर द्वीएक सामुहिक नाच चौंफळा -थड्या नाच गान का होला. अर ज्वा हीरोइन कि बैणि आत्महत्या करदि , वींक हंत्या आण पर हंत्या को घड्यळ होलु।           
 

भीषम - अब जब कथा आपन तैयार करि इ याल तो मेरि कखम जरूरत च?

फिलम बणन्देर-तुम तै यिं कथा मा कुछ नयापन लाण। द्वी चार लोग बुलणा छा कि तुम नयो किस्मो कथा  लिखदा तो ..   
भीषम -जी एक बात बथौं ?
 
फिलम बणन्देर-हां ! बथाओ   
भीषम - मोळ का लड्डुओं पर सोना अर चांदी का वर्क लगाण से मोळ का लड्डू मोतीचूर का लड्डू नि ह्वे सकदन?

फिलम बणन्देर- भीषम जी!  आम आदम्युं लैक  फिलम अर चिलम पीणों ढर्रा को अपणों नियम हून्दन वो एकी डगर से चलदन अर इलै हम इन ही फिलम बणौदा। प्रेमचन्द बि बौलीवुड मा ऐ छया क्या ह्वाइ?     
 भीषम - ठीक च जन तुम बोल्दा मि ऊनि कथा लेखि देलु

 फिलम बणन्देर- हाँ अब ठीक च। तो पर्स्युं तलक कथा लेखिक लै  अंयां हां

 

  Copyright @ Bhishma Kukreti 14 /3/2013 

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                            अपराध्युं  संसद मा भाषा चिंतन

                                 

 

                                 चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ )

 

टिक्कु उस्तरा-वो हम सब्युं सभापति ! साले अपण ददि मैस ! जरा देख तो सै बल यि कथगा इ अपराधी भाइ  लोग  अपणि दुधबोलि छोड़िक सभ्य भाषा मा हमारी उच्च संसद मा  बात करणा छन।

पपु चकु - हां ! वो हरामी सभापति ! कुछ दिनों से हम लबाड़ो संसद मा मि  दिखणु छौं बल हमारी प्यारी गंदी भाषा की जगा कुछ लोग भद्र भाषाम बड़बड़ान्दन। एक त हम क्रिमिनल कम्युनिटी का लोक यीं भद्र भाषा तै बिंगदा बि नि छा अर बिंगण-समजण मा आयि बि तो यूं भद्र बोल सुणिक पांच दिन तलक मेरो ल्वैखतरी याने खून खराबा करणों ज्यु इ नि बुल्यांदो। देख बै सभापति ए. के. फोर्टी सेवन अर अपण बैणि मैसु जनरल सेक्रेटरी लौन्चर ! जू तुमन अपराध्युं संसदम गंदी गाऴयुं जगा पंडितो, पादर्युं अर मौलव्युं जन इज्जतदार भाषा तै इज्जत दीण तो मि अर म्यार दगड्या गढ़वाली - कुमाउन्यूं तरां रोज नै नै संस्था बणै द्योला या महत्वाकांक्षी  नेतौं तरां नयो गुंडा संसद   खड़ा कौर दयोला हां।

 शम्मो  द कैट - हाँ उस्ताद। हमारि गुंडों , डाकुं , माफियों संसदम  इज्जतदार भाषा प्रयोग से भैर हमारि इमेज खराब होणि च। पत्रकार लिखणा छन बल माफिया गैंग का सदस्य , गुंडा, लबाड, टेरिरिस्ट  लुटेरा अर डाकु सभ्य हूणा छंवां। हमारि छवि हूण चयेणि छे निर्दयी, असभ्य, क्रूर अर अपराध्युं संसद या संसद से  भैर कुछ सफेद पोश अपराध्युं द्वारा  सभ्य भाषा इस्तेमाल को  कारण हमारी खुन्कार इमेजम  भयंकर कमी आणि च।

 दुर्जन दि छोटा घोड़ा-वो सभापति स्या  शम्मो बदकार सही बुलणि च बल हमारी इज्जतदार जवान बुलण से लोग हम तैं नेतौं या पुलिस ऑफिसरों नौकर समजण मिसे गेन , जो हमारि कौम का वास्ता ठीक नी च। अफार  परसि मि एक बिल्डरम हफ्ता वसूलि कुण जयुं छौ त मेखुण बुलणु बल क्यों बे कुत्ते ! बड़ी हड्डी माग रहा है। ये तो बता किस नेता या पुलिस ऑफिसर का पालतू कुत्ता है? हमारी भाषा का वजै से लोग हम तैं राजनीतिग्युं या पुलिस का आदिम समजणा छन। एक नियम बणाये जावो बल जो भि हमारि संसद या भैर  इज्जतदार जुबान को इस्तेमाल कारल या कारलि वै तै लबाड़ों जमात से बेदखल करे जावो। बुजुर्ग लुटेरा सिंग तू बोल जुबान की क्या अहमियत होन्दि?
 
लुटेरा सिंग बुड्या -अरे अपराध्युं संसदम अब त मेरि हालत बि लाल कृष्ण अडवानी जन ह्वे गे। उख अडवानी की  बात वैकि पार्टी वळा इ नि सुणदन अर इख तुम अधबुडेड़ अर जवान  अपराधी मेरि बात टक्क लगैक नि सुणदा।
 
सभापति ए. के. फोर्टी सेवन - वै सबी गुंडा -लबाड लोग ! तुम तै बिंगण -समजण चयेंद बल हमारि संसद  क्वी इन्डियन पार्लियामेंट नी  च जख प्रजातन्त्री धर्म चलदो। तो सालो ! म्यरो ऑर्डर सूणों! जो बि बुजर्ग लुटेरा सिंह की बात टक्क लगैक नि सूणल वै तै ए. के. फोर्टी सेवन से भूने जालो। बोल बै बुड्या लुटेरा सिंग।

लुटेरा सिंग- अब लगणु च बल हमर संसद अनुशासित अपराध्युं संसद च ना कि राजनैतिक लोगुं बैठक।  हाँ तो हरामियो की औलादों सूणों ! लुक्खो ! अपराध्युं तै भाषा- प्रयोग पर ध्यान दीण जरूरी च। हमारो बुलण बैठण से लोगुं तैं लगण चयेंद कि हम अपराधी छंवां। हमर बदजवान से लोगुं पिशाब चूण चयेंद। हमारि भाषा हमारो चरित्र बथांदो इलै हम तै गंदी गाळी इस्तेमाल करण इ चयांद जां से जनता मा डौर-भौ  पैदा ह्वावो। हम गुंडों की अलग भाषा हूण चयेंद जां से ह्म साफ़ साफ़ पछेणे जंवां। चापलूसी, दिखलौटि,  दिखावटी, क्या बुन्या-क्या कन्या भाषा,दुमुख्या-दुअर्थि , धोखादिंदेरि भाषा नेताओं, अधिकार्युं  अर पुलिस वाळु  पर ही जंचदी ना की हम खुंखार अपराध्युं पर। हम अपराध्युं तैं गाळी -गलौज, गंदी पण सीधि भाषा ही इस्तेमाल करण चयेंद। अर मेरि सलाह च बल जादा अखबार अर टीवी नि द्याखो खासकर नेताओं की दोगली भाषा वळ भाषण कतै नि द्याखो। अबि स्यु   हरामी, बिलंच,  खतराओन का ख़िलाड़ी सट्टा  किंग विदेस ह्वेक आयि जरा विक जिबाड़ो से सूणों बल भाषा का कारण विदेशों मा इन्डियन क्रिमिनल कम्युनिटी कथगा बेज्जती हूणि च। 

जनरल सेक्रेटरी लौन्चर - बोल बै कुत्ता तेरी क्या रिपोर्ट च।

 सट्टा किंग -  सालो ! भड़वो ! तुम तै पता च जुगाड़ से मि  सरकारी डेलिगेसन का सदस्य बौणि विदेस जान्दो उख  विदेसों मा हम अपराध्युं द्वारा सभी भाषा इस्तेमाल की  विदेसी अपराधी मजाक उड़ान्दन अर व्यंग्य कौरिक बुल्दन बल इण्डिया मा अपराधी नेताओं की सकासौरि याने नकल करणा छन।

रांडो दलाल - हरामियो !  या बात सै च पूर्वी यूरोप का रंडीयो दलाल में तै फोन पर चिरड़ान्द छन बल हम भारतीय अपराधी अब नेताओं की सभ्य जुवान बुलण गीजि गेवां।

ड्रग ट्रेडर्स - हाँ अब त विदेशों मा  सभ्य भाषा को  इस्तेमाल से  इन्डियन क्रिमिनलों इमेज भौत खराब  हूणि च।

हफ्ता वसूली सरदार - अरे विदेशों बात क्या करणा छंवां इख इंडिया मा भाषा का कारण ही लोग अब हम तै हिराकत की नजर से दिखदन। कुछ करण चयेंद। हम सणि बिंगण चयेंद कि  गंदी भाषा अर दुष्कर्म को आपस माँ एक रिश्ता होंद।

जनरल सेक्रेटरी लौन्चर -ओ दो बाप की औलाद कुत्र्या  दोगला ! तुझे इस विषय में खोजबीन करने को कहा  था।

कुत्र्या दोगला- ऐ लौन्चर ! मै सरकारी आयोगौ  अध्यक्ष नि छौं कि अपण फैदा बान आयोग को समौ बढ़वाणों बान अपण फ़ाइनल रिपोर्ट देरी से दींदन। मेरि खोज को नतीजा च चूंकि अब इन्डियन क्रिमिनलों मा राजनैतिक नेता, सामाजिक नेता, अधिकारी, सफेदपोश जन लोग  घुसि गेन अर वो लोग हम अपराध्युं  भाषाई संस्कृति बिगाड़ना छन। अर या समस्या इनि बेइलाज च जन उत्तराखंडम पलायन समस्या बेइलाज च।     

 सभापति ए. के. फोर्टी सेवन -चलो बै भाषा भूसा की बात छ्वाड़ो। धंधा की बात शुरू करदां। पैलो ऐजेंडा च उत्तराखंड का पहाड़ोंम अपराध कनकैक फैलाए जावो। दुसर ऐजेंडा च उत्तराखंड मा धार्मिक स्थलोंम माफियागिरी फैलाणों क्या करे जावो।                                   

                                                   

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा



                         फेस बुक का मनिख-मनख्यणि अर ऊंकी आदत


                               मूल चोरी - सुदर्शन रावत

                             अनुवाद याने दुसर चोर -भीष्म कुकरेती



1- फेस बुकौ कुखड़- यूंक काम कुछ नि होंद बस सुबर सुबर गुड मॉर्निंग लेखिक लोगुं तै बिजाऴदन। उन जु फेस बुक्या अबेर से बिज्दन वो दिनम बि गुड मॉर्निंग्यान्दन (गुड मोर्निंग लिख्दन )

2- स्यळो यार - यूं तैं फेसबुक सैलिब्रिटी बि बुल्दन अर जु बि नेट कु बाटम मिल्दन ऊं तै यि दगड़या बणै दींदन।

3- फेस बुकौ साधु - बस यूंम एकी काम च। इना उना बिटेन चुरयाँ भगवानो भजन या फोटो फेस बुकै दिवलि पर चिपकाणा रौंदन।

४ फेस  बुक चोर - यी लोग फट से दूसरों पोस्ट चोरी कैरिक अपण नाम से फेसबुक वाल पर चिपकै दीन्दन।

 ५- फेसबुकाक देवदास - हर बगत दुखि या दर्द वळ गीत कविता पोस्ट कौरिक यी हौरुं बि दुखी करदन।

६- फेस बुकौ खबर्या - इना उना बीतें चोरिक करिक ब्रेकिंग न्यूज देकि यि फेस बुक सदस्यों तै समाचार दीणा रौंदन
७-फेस बुक टीकाकार - यी अफिक कुछ पोस्ट नि करदन बस दूसरों हर पोस्ट पर टीका टिप्पणी करणम उस्ताद हून्दन।

 ७ फेस बुकाक कॉमेडियन- हंसोड्या टिप्पणी या जोक्स पोस्ट करणा रौंदन।

८- फेस बुक लाइकर- बस युंक काम लाइक पर क्लिक करणों हूंद अर गौ बुरी जो यून आज तलक क्वी पोस्ट बाँचि ह्वावो धौं!

९- फेसबुक कमेंटर - बस हरेक पोस्ट पर कमेन्ट दीण यी अपण धरम समजदन।

१ ० - फेस बुक विचारक -बस यूंक काम अच्छा विचारों तैं पोस्ट करणों हूंद।

११- जनम जाती कवि या कवित्र्याण - यूं तैं कविता छोडिक कुछ नि पसंद अर अपण ना तो दूसरों कविता पोस्ट करणा रौंदन।
१२ -टपोरी- यूंक काम छोरि पटाणो हूंद।

१३ - निंदक - बस यि पोस्ट की निंदा ही करणा रौंदन।

१४ - छुंयाळ/गपास्टी -बस फेस बुकम गैप मारणों अलावा यी कुछ नि करदन।

१५ - मंगत्या/भिकमंगा - यि फ्रेंड रिक्वैस्ट हि भिजणा रौंदन।

१६- खिलन्देर - बस फेस बुकम यि गेम्स खिलणा रौंदन।

१७ - फेस बुकौ बांदर- कमेंट्स माँ बस हां हूँ ही लिखदन।

१८ - बैक बेंचर - जन संसद या विधान सभा मा कथगा ही नेता बस संसद आंड छन पण पांच साल तलक कुछ नि बुल्दन ऊनि फेस बुक मा जादातर मेम्बर चुप करिक पोस्ट दिखदन अर कुछ नि करदन।

१९- लिंग बदलण वाळ ; इ दुसर लिंग से फेस बुक मा रौंदन।

१९- सिंवळण  वाळ - यूंक काम गुड नाईट पोस्ट करण हूंद जां से लोग टैम पर से जावन।

कापी राइट @ चोरिक माल च तुम बि डाका डाळिक अपण नाम से पोस्ट करो।

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                         चलो गढ़वाळौ  इतिहास पर  किताब लिखे जावो 

 

                                           चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती

 

(s =आधी अ )

 

घरवळि बुलण बिस्याइ," बल ह्यां ! तुम बि एक किताब छपवावो" 

" किताब छपाण  क्वी मजाक च ?" मीन पूछ ना बथाइ

घरवळिन बोलि " तुम से भलो तो वी ठीक छौ"

"कु ?" मीन पूछ

"जु तुम से  पैल मि पर लाइन मारदो छौ" वींन तून (ताना ) दींद बोलि 

मीन बोलि," ह्यां पण किताब लिखणो बाण क्वी विषय बि त हूण चयेंद कि ना?"

वींन ब्वाल," विषय कुण ले क्या उत्तराखंड को इतिहास पर किताब छापि ल्यावो।"

" पण मि त दर्जा आठम इतिहास माँ फेल ह्वे छौ पण गणितम जादा नम्बर आण से कम्पार्टमेंटमा पास हों।" मीन बथै

" ओहो !पैल  पैल   फेल तो तुम मि तैं पटाण मा, लाइन मारण मा बि ह्वे छा।" घरवळिन चिरड़ाइ

मीन जबाब दे," ह्यां पैल पैल  मि त्वेकुण अपण बुद्धि से  प्रेम पत्र लिखुद छौ  पण पैथर मीन प्रसिद्ध शायरों शेर नकल कौरिक त्वै कुण प्रेम पत्र भेजिन त तू गर्र पटी गे।"

  पत्नी को जबाब थौ,"  त इनि गढ़वाळो  इतिहासौ किताब बि  नकल करिक  छ्पै ल्यावो।"

मीन विरोध करण चाइ," पण ."

"पण उण कुछ ना तुम पंडित हरी कृष्ण रतूड़ी क 'गढवाल का इतिहास' किताब लावो अर  शब्दों हेर फेर करिक 'उत्तराखंड का इतिहास' किताब छपवावो" पत्नीन  राय दे।

मीन बोलि," पण रतूड़ी जीन तो सौ साल पैल या गढ़वाल का इतिहास की किताब लेखि छे तो तब बिटेन गढ़वाळो  कथगा ही नई खोज  ह्वे होलि।"

वींन बोलि," खोज  ह्वे बि होलि त तुम तै क्या? तुम पंडित रतूड़ी की किताब की नकल करिक किताब छपवावो। अचकाल  बगैर खोज से इतिहास पर किताब या लेख छपवाणो रिवाज चलणु च"

मीन बोल," न्है भै इतिहास पर किताब लिखण मतबल नकल करिक मि इतिहासौ दगड़ मजाक नि कौरि सकुद।"

घरवळिन सलाह दे," त तुम इन कारो 'गढ़वाल की लोक संस्कृति' पर किताब छपवावो।"

मीन जबाब मा पूछ ब्वाल," संस्कृतिमा कम से कम चौसठ कला  हूंदन अर पिछ्ला चालीस साल से गढ़वाल नि ग्यों तो गढवाल की संस्कृति पर किताब कन कौरिक लिखलु ?"

 पत्नी को जबाब छौ," तुमर दिमाग खराब हुयुं च लोग लोक गीतुं अर नाचुं अलावा हौर बातों तै संस्कृति का प्रतीक नि मानदन ना ही समजदन।"

मीन जाणन चाहि," पण मि तैं लोक गीत अर लोक नृत्यों क्वी ज्ञान नि च तो कन करिक लोक गीत अर लोक नृत्य पर किताब लिखलु?"

वींको उत्तर छौ," बस या तो गोविन्द चातक की किताब की नकल या डा शिवा नन्द नौटियाल की किताब की नकल कारो अर 'उत्तराखंड की लोक संस्कृति' नाम से किताब छपवावो।"

मीन शंस्य की दृष्टि से दिखद ब्वाल," पण इन कनै बगैर ज्ञान को ?"

वींन ब्वाल,"  दुसरो पिस्युं तै ही त दुबर  पिसणों नाम आज खोज च। ह्यां लोग बाग़ बगैर खोज कर्यां चातक जी अर नौटियाल जीक किताबों नकल से पीएचडी ही ना डीलिट पाणा छन तो तुम इन नि करि सकदवां?"

मीन ना नकार करदो बोलि,"  नै नै में से गीतुं पर काम नि ह्वे सकुद।"

घरवळिन हैंकि सलाह दे," तो तुम इन कारो गढ़वाली साहित्य को इतिहास की किताब हिंदी मा छापो।"

मीन ब्वाल," मि तै गढ़वाली साहित्यौ अता पता नी च अर तू बुलणी छे बल  गढ़वाली साहित्य को इतिहास की किताब हिंदी मा छापो।"

घरवळिन बोलि," करण कुछ नी च अबोध बंधू बहुगुणा  कृत  'शैलवाणी' अर 'गाड मटे की गंगा ' की नकल हिंदी मा कौरिक अपण नाम से किताब छपवावो अर गढ़वाली साहित्य का प्रसिद्ध इतिहासकार बणी जावो ."

मीन बोल ," पण यो तो साहित्य अर इतिहास को दगड़ अन्याय च बगैर खोज का साहित्यिक इतिहास लिखण तो गुनाह ही होलु।"

घरवळिन जबाब दे," मौलिक खोज करिक इतिहास लिखण इतिहास की बात ह्वे गे अचकाल तो हूँ बहू नकल कॉरिक लिखणो खुणी इतिहास लिखण बुल्दन।"

अर    सरस्वती समान घरवळि क ठेललम ठेल रूपी कृपा से मेरि  'गढ़वाली भाषा साहित्य का इतिहास' प्रकाशित ह्वे गे अर पर्स्युं मुख्यमंत्री जी क हाथों से  किताबौ विमोचन होलु आप बि समारोह मा आमंत्रित छन       

 

  Copyright @ Bhishma Kukreti 17  /3/2013

       

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 
                            संस्कृति रक्षा 

 

                              चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती

(s = आधी अ )

 

 -हे नागराजा , हे नर्सिंग ! मेरी पहाड़ी संस्कृति तैं बचाओ।हे देवी !

 -हे घंडियाळ! हे ग्विल्ल , मिथाळ! मेरी गढ़वाली सभ्यता तैं समाळ यिं तैं मोरण से बचावो!

- हे दिवताओ ! म्यरा रीति रिवाजों तैं बचाओं।

- हां ! हां !मी ई ग्यों, बोल बोल क्या क्या बचाण ?

- हे मेरि ब्वे! तू कु  छे अर  तू इथगा अट्टाहासी हंसी किलै हंसणु छे?

- मि तेरि पुराणि संस्कृति , सभ्यता अर रीति रिवाजौ चिन्ह छौं , प्रतीक छौं।

-पण हे माराज तू इथगा जोर से किलै हंसणु छे? इख मुंबई मा जोर से हंसण वाळ तैं असभ्य अर अनकल्चर्ड माने जांद अर तेरि हंसी की आवाज कखि पड़ोसीक ड़्यार पौंछि गे तो वो पुलिसम शिकैत करि द्यालो . फिर पुलिस को लफड़ा ...

-ह़ा हा! संस्कृति बचाणों प्रार्थना करणु छे अर निश्छल हंसी से डरणि छे?

-  महाराज ! इथगा जोर अर निश्छल तरां से  तो मि लाफिंग क्लब मा बि नि हौंस सकदो। हंसी पर कंट्रोल ही तो आज सिविलाइज्ड लोगुं निसाणी च।

-अरे माराज मुंबई की बात तो जाणि द्यायो परसि पुण मि अपण गां जसपुर गे छयो अर मि कें पुराणि बात याद करिक जोर जोर से हौंस तो लोगुंन समज बल मि छळे ग्यों अर मीमा रखवळि करणों जागरि बुलाये गे। उख बि जोर से हंसण जंगली लोगुं निसाणि ह्वे गे।

-हा हा ! अपण आंतरिक , स्वाभाविक भावुं तैं त तू प्रकट करण से लाचार छे अर फिर बि सभ्यता बचाणो बात करणु छे?

- हाँ माराज हम बुद्धिजीवी, सामाजिक चिंतक, सोसल एक्टिविस्ट  अपणि सभ्यता -संस्कृति बचाणो बात नि करला तो गढ़वाली संस्कृति भेळ जोग ह्वे जालि! रसातल चलि जालि !

-हे मेरी ब्वे! भट्युड़ टूटि  गेन, हे मेरि ब्वे!

- ओहो ओहो ! स्या  क्वा च, इंक शरीर पर पस्यौ (पसीना ) इ पस्यौ च, सरा सरैल से दुर्गन्ध आणि च   अर इथगा  जोर से किलै रुणि च स्या ?

- अरे मि तेरि कृषि परिश्रम संस्कृति को प्रतीक छौं।

-पैल तों तू इथगा जोर से रूण बंद कौर। इथगा जोर से तो इख क्या गाउं मा बि क्वी जवान नौनु मोरण पर बि नि रोंदु।फिर पड़ोसीक इख त्यार रुणो आवाज ग्यायि ना कि पुलिस कम्पलेंट। 

-  अरे तू स्वाभाविक ढंग से रोइ  नि सकदी अर फिर संस्कृति बचाणों ध्येय करणु छे?

- हे मेरि ब्वे तैंकि सरैल की दुर्गन्ध से मेरी सांस बंद होणि च। ह्यां सया इथगा गंध सौराण वाळ क्वा च?

- हां हां ! स्या  सौ साल पैलाकि तुमारि कृषी मा परिश्रम, परिश्रमी कृषि से बगदो पसीना अर शरीर से पसीना की गंध की बचीं खुचीं निसाणि च। वाह जब तू बुद्धिजीवी!  यीं परिश्रम की गंध तै नि सहन करि सकणु छे तो त्वै तैं  संस्कृति बचाणों बात करदि शरम , ल्याज  नि औन्दि?

-  ह्वी , ह्वी बल क्या बुलणु छे?

-अरे ! अरे इ तीन चार नंगी जनानी मेरि मोरि (खिड़की) मा क्या करणा छन। हे नंगी औरतो ! तुम म्यार ड़्यार बिटेन भागो। तुम म्यार इख इनि रैल्या त न्यूडिटी फैलाणों जुरम मा पुलिस मै तैं जेल भेजि देलि।

-वो बुद्धिजीवी, सोसल ऐक्टिविस्ट सि तेरि पड़ दादा की पड़ दादि। पड़ नानि अर बूढ़ ददी छन।

-  माराज !  पण म्यार पड़  ददा की पड़  दादि , पड़ नानि पूरी की पूरी नंगी किलै? बस यूंक सरैल पर सिरफ गंदो, चिरीं -फटीं  लंगोट ही च?

- हा हा ! संस्कृति की बात करण वाळ बुद्धिजीवी! त्वै तैं पता नी च बल वस्त्र अर कपड़ा पैरणो ढंग बि संस्कृति की निसाणि होंदी तो ईं संस्कृति से तू किलै डरणु छे ?

-माराज आज आदि वासी बि लंगोट नि पैरदन। तो फिर ..?

-तो तू इन बि जाणदि कि  सौएक साल पैलि गढ़वाली समाज बि तो आदिवासी जन ही रै होला कि ना?

 - अरे अरे यो को च अर आजीब सि बोली मा, अजीब भौण मा गीत गाणु च। ना ही भाषा समज मा आणि च अर ना ही पता चलणु च कि ये गीतौ भौण कै मुलकौक च?

-हा हा ! यू लोक गीत तीन सौ साल पैलि गढवाल का हरेक गां मा बडो चाव से  गाये जांदो छौ अर यो गिताड़ तुमारो ही जसपुर को लोकगीतकार च अर तीन सौ साल पैल तुमर गां मा यींयिं   भौणम गीत गये जांद छ्या।

-पण ना ही गीत का बोल मेरि समज आणा छन अर ना ही भौण समाज मा आणि च।

-   हां हे बुद्धिजीवी बोल! तू कैं  संस्कृति , कैं सभ्यता  बचाण?

-माराज मि घंघतोळ माँ ऐ ग्यों। मेरि समाज मा इ नि आणु कि संस्कृति अर सभ्यता को क्या रूप  होंद?

 -किलैकि तू संस्कृति या सभ्यता तैं  तालाब को ठेर्युं  पाणि समजदो जब कि संस्कृति या सभ्यता बगदी नदी च।

-  ये टोनी का डैडी जी ये टोनी का डैडी जी ! बीजो . पता च आज तुमन एक समारोह मा 'मरती गढ़वाली संस्कृति कैसी बचाए जाय' पर भाषण दीणो जाण।

-ये मेरी ब्वे ! तो यु एक सुपिन छौ। एक ड्रीम छौ।  डौली  डार्लिंग !  आज इटालियन ब्रेकफास्ट बणा भै !   

       

                           

 

 

Copyright @ Bhishma Kukreti   18 /3/  /2013

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                             खेल कमेंट्री 

 

                                   चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

 

- हां  हां! आवा भीष्म जी ! आवा मि 'बासी-तिबासी खबर चैनेल कु टैलेंट हंटर छौं।

-नमस्कार हंटर जी !

-नमस्कार जी !

-ब्वाला  हंटर जी आपन  मि तै   किलै याद कार।. म्यार क्वी इंटरव्यू लीणाइ?

- अरे भै गढ़वाली साहित्यकारों को इंटरव्यू गढ़वाली पत्रिकाओं मा क्वी नि पढ़दो त टी वी चैनलों मा  क्वी क्या तुमर इंटरव्यू द्याखल। हमर काम  टीआरपी  बढ़ाणो च  भै कम कराणों नी च।

-हंटर जी फिर ब्वालो

-हम तैं अपण चैनलों बान  स्पेसिअयल स्पोर्ट्स कमेंटेटर चयाणु च। जु हमर ऐंकरों दगड कमेंट्री दे साको, खासकर क्रिकेट की छ्वीं लगै साको ।

-  त आप तैं  खिलाड़ी दगड बात करण चयेंद।   

-   हां पण अजकाल जरा दिखणेरूं (दर्शक ) पसंद ही बदल गे अब दिखणेरुं तैं नीरस स्पोर्ट्स टीका -टिपणी ना रौंसदार ,  रस्याण वळ, मसालेदार , स्पोर्ट्स कमेंट्स मा मजा आंद।

-  पर मि तैं इक टंगड्या खेल कु अलावा कै बि खेलौ ज्ञान नी च।

-हाँ हमन पता लगाइ आल कि तुम तै कै बि खेलो क्वी ज्ञान नी च। अरे भै ज्ञान तो हमारा ऐंकरों तैं क्रिकेट का बि नी च पण द्याख च कन  वो लोग अनुभवी खिलाड्युं से बढ़िया खेल की चीर फाड़ करदन।

-पण कुछ तो खेलो ज्ञान ?

-नै नै ! हमर विशेष खेल कमेंटेटर तै खेल ना अलंकारों ज्ञान जरूरी च।

-जी ?

- जी हां! आप  तैं मसालेदार कमेंट्री दीण जां मा उपमा अलंकार की झड़ी लगीं ह्वावो जन कि महेंद्र सिंह धोनी की धकधकाती कैप्टेंसी वळि  आग मा माइकेल क्लार्क धूं धूं कर भष्म ह्वे ग्यायि।

-पण ..

 -जख शिखर धवन का चौका ऑस्ट्रेलियाइ खिलाड्युं  जिकुड़ी पर बरछी का घाव पैदा करणा छया उख मुरली विजय की रनिंग द विकेट रामबांस का कांड जन पुड़णा छया।

-ओहो ..

-  आश्विन एक बाढ़ को नाम च जैन ऑस्ट्रेलियाइ कूड़ इन ध्वस्त कौरिन जन बुल्यां क्वी रागस तुर्क्यडुं मकान खुटन ध्वस्त करणु ह्वावो  ।

- उं उं ..

-विनय कुमार एक उगता लाल सूरज च तो सिड्डल एक अछल्यांद काळो सूरज।

-ह्यां ..

- रवीन्द्र जडेजा कु जबर्दस्त जलवा अर जटासुरी जलजला कु  समणि ऑस्ट्रेलियाइ  टीम जमींदस्त ह्वे गे। ऑस्ट्रेलियाइ खिलाड्युंकुण  जडेजा जंगम रागस को नाम च। ओझा एक दुर्दांत राक्षस की तरह ऑस्ट्रेलियाइ टीम को तहस  नहस कर रहा था। जिस तरह एक खटिक बड़ी क्रूरता से मुर्गी की गर्दन  काटता है उसी तरह इशांत शर्मा विरोधियों की विकेट उखाड़ रहा था

-खेल माँ इन शब्द ?

-भीषम जी आज या ही मांग च। खेल का बारीक पहलू छोड़िक शब्दों को जाल से दर्शकों तै भ्रमित , चकित करणों नाम ही आक स्पोर्ट्स जौर्नालिज्म च।

-पण ..

-ज्वा टीम जीती जावो वीं तैं पांडव बणावो अर ज्वा टीम कार जावो वीं टीम तै कौरव घोषित करिक रसातल तलक पौंचे द्यावो। फिर जन आज शिखर धवनन सैकड़ा लगाइ तो वीरेन्द्र सहवाग तै क्रिकेट से सन्यास लीणो आदेस जन खुंकार भाषा इस्तेमाल कारो। 

-पण आज ज्वा टीम जितणि ह्वावो अर परस्युं हारि जावो तो?

-  तो टीमौ कप्तान तै खेल को खलनायक घोषित करी द्यावो . कप्तान तै अर जौन कुछ नि कार वूं तैं  सन्यास  दिलाणो आदेस जन सलाह भारतीय  क्रिकेट बोर्ड तै द्यावो। हरण वाळ टीम तै चीर हरण  या बलात्कार जन अपराध का दोषी साबित कारो। इन लगण चयांद कि यूँ खिलाडियूं से बड़ो धोखेबाज  क्वी नी च, दगाबाज क्वी नी च। यूं खिलाड्युं पर देशद्रोही की भगार लगावो अर दर्शकों मन मा टीम का हरेक खिलाड़ी प्रति घृणा पैदा करण वाळ माहोल पैदा कारो। युद्ध  की भाषाक  इस्तेमाल ही आज खेल पत्रकारिता की असली पछ्याणक ह्वे ग्याइ।   

-  पण यो अचाणचको बदलाव किलै आयि?

-भै उन तो हम बहुत दिनों से खेल भावनाओं ऐसी तैसी करणाइ छया पण अब स्टार क्रिकेट चैनेल  मा  कमेंटेटर नवजोत सिद्धू की अलंकृत भाषा प्रयोग से हम समाचार चैनलों पर दबाब बढ़ी गे कि टीआरपी  बढ़ाणो बान जथगा जोर से ह्वावो उथगा जोर से खेल अर खेल भावना की हत्या करे जावो।

-  वोह तो या बात च?

-जी तो आप कब बिटेन  हमर चैनेल ज्वाइन करणा छंवा?

-जी ब्याळि बिटेन छै टीवी चैनेल का टैलेंट हंटरुं  से मेरि मुलाक़ात ह्वे तो मि सोच समझिक जबाब देलु।

-ओके! आई शेल वेट फॉर युअर पोजिटिव रिप्लाइ ।

         

         

 

Copyright @ Bhishma Kukreti   19  /3/  /2013

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

 

                                कुछ काम  में से नि हूणन 

 
                                   चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

 

आज मी सुचणु छू बल में से क्या क्या काम नि ह्वे सकदन त लग भौत सा काज छन जो में से नि हवे सकदन।

अब जन कि घरवळि ब्यौवक दिन बिटेन स्याणी-गाणि सक बल मि लौ बाणिक मनिख ह्वे जौं पण मै नि लगद इन ह्वालो।

अब जन कि मि कथगा बि  पुठ्या जोर (प्रयत्न ) लगौल  मीन अपण कमरा साफ़ नि रखण अर जब तलक में पर ताकत रालि तब तलक कमरा मा कखि किताब फुळी रालि तो कखि कागज़ पतर इना उना फुऴयां ही राला।

 अब जन कि मि रात कथगा बि सौं घटुल मीन सुबर क्या दिन तलक बि अपुण डिसाण -ढिकाण नि बिटांण होस्टल की आदत च कि सात आठ दिनों मा जब किरम्वळ तड़कावन या धूळ-मट्टी-गार बिनावन तबि डिसाण -ढिकाण झाड़न अर वां से पैल दिखण बि नी च कि गद्दा अर खंतुड़ पर क्या क्या भंगुल जमणु च।

अब जन कि सरकार कथगा बि सिगरेटों दाम बढ़ालि मीन सरकार को फिस्कल डेफिसिट कम  करणों बान  सिगरेट पीणु रौन अर सिगरेट पीण नि छुड़ण।

अब जन कि  म्यार द्वी  नौन अर ब्वारि कथगा बि नाराज होला मीन शराब पीण नि छुड़ण। जब मीन शराब पीण शुरू कौरि छे तो ये सोचिक पीण शुरू करी छे कि यांसे रचनाधर्मिता मा उछाला आलो अर आज तक शराब से  क्वी भलो क्रिएटिव खयाल  नि ऐन पण मीन शराब पीण नि छुड़ण। अजकाल जब पैसों तंगी ह्वे जान्दि तों मि तैं  देसी दारु मा बि मजा आंदो।

ब्वे आज बि सुबेर सुबेर  सुबर फड्यान्दि च बल दांत मजा दांत मजा पण मजाल च मि  कबि नक्वळ (नास्ता ) करण से पैल  दांत मजौं धौं। मैं  नि लगद मि कबि नक्वळ से पैल दांत मंजौल धौं!

मै नि लगुद कि मि स्लेका का कपड़ा पैरूल जब जवानि मा छोरि पटाणो ढंग  का कपड़ा नि पैरिन तो बुढ़ापा मा क्या मि बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम जन सलीकादार कपड़ा पैरुल धौं!

मि तैं नि लगुद कि मि कुत्ता या बिरळ पाळलु , या चखुलों तै पिंजड़ा मा पाळलु या माछों तैं फिश बौक्ष माँ धरिक लेख लिखुल। माछों  जगा गदन , तालाव , नदी या स्मोदर मा इ ठीक च।

 मि तैं नि लगद मि कै पहाड़ी जगाम  रिटायरमेंट जीवन बितौलु। अचकाल पहाड़ों मा जन कि मसूरी , भीमताल ,नैनीताल मा जमीन मंहगी ह्वे ग्यायि अर मीन जब जवानि मा पैसा जमा नि कार तो अब बुड्यांद दें लौटरी मिलण से रै। लौटरी खुलि बि सकद च जब मि लौटरी टिकेट खरीदलो। चाहे कुछ बि ह्वे जालो मीन लौटरी टिकेट नि खरीदण अर सरकारी जुआ तैं परिश्रय नि दीण। मतलब मेरो अग्वाडि की जिन्दगी मुंबई मा कटेली।

मि तै नि मि लगद बल मि गढ़वाळी मा लिखण छुड़ुल हालांकि हिंदी मा लिखण सौंग च अर गढ़वाळी मा लिखण से पैल हिंदी मा सुचण पोड़द अर फिर हिंदी मा सुच्यां को अनुवाद गढ़वाळि मा करण पोड़द।

अब जन कि मैं नि लगद बल मि फेस बुक मा सुबर गुड मॉर्निंग अर स्याम दें गुड नाईट पोस्ट करुल।

मै नि लगुद बल मि फेस बुक मा लोगुं फोटो शेयर करलु।

मै नि लगुद बल मि गूगल सर्च बिटेन कॉपी पेस्ट करिक फेस बुक मा पोस्ट करुल।

हाँ भोळ म्यार मन बदली गे त मि नि बोलि सकुद कि जु मि आज नि कौर सकुद भोळ नि कौर सकुद किलैकि अपण मनै करण मेरो नागरिक अधिकार च जन कि अपण फैदा बान विदेश नीति तैं खपचाण करुणानिधि क मौलिक अधिकार च।             

                                             

 

Copyright @ Bhishma Kukreti   20 /3/2013

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                      सत्ता बजार कु सट्टा बजार 

   

                                    चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

 

 सन द्वी हजार साल नौ बिटेन परसी तलक  करुणानिधि  अर डीएमके का करता धर्तौं तै टू जी ,या अन्य मलायीदार विभागों चिंता सताणी रौंदी छे अर चार साल बाद अचाणचक याद आयि बल श्री लंका मा तमिलों पर घोर अत्याचार ह्वेन। जब बि करुणानिधि तैं  तमिलों  चिंता सतांद वो दिल्ली की सरकार भेळ जोग करी दींदन। तमिल चिंता से ही गुजराल साबै सरकार भ्युं पोड़ि छे अर अब  करुणानिधि की तमिल चिंतान मनमोहन सिंगै  सरकार  तैं  आईसीयू जोग करी दे। डाक्टर बुलणा छन बल अकर्मण्य अर खराब छवि जन क्षय रोग से तो ये सरकार कनि कौरिक बि दिन काटि  लेलि पण जब तलक मुलायम सिंह अर मायावती अपण मुखान कृत्रिम सांस दीणा राला सरकार सांस लींदी रालि।

 

 

                  अचकाल जख जावो तख ये इ छ्वीं लगणा छन बल को राजनीतिक दल कैको दगड़ जोड़ी बणालो। अफार सि पंडित भजराम की बेटी अंसारी दगड़ भाजणै तयार च अर ठाकुर चंदेल सिंह की बेटी जौन एरिक का ड्यार भाजणो तयार च पण पंडित भजराम  अर ठाकुर चंदेल सिंग तै अपण बेट्युं भाजणै चिंता नी च वूं तैं चिंता च बल क्वा राजनेतिक पार्टी कैंक दगड़ पलाबंद बांधलि। हरिया काका की जवान ब्वारी  तिसर दें कै छ्वारा दगड़ फिर भाजि गे हरिया काका तै अर वूंको नों तै  जवान ब्वारी भजणो चिंता नी च जथगा चिंता या च कि कखि नीतेश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड ) भाजापा क ठांगर छोड़ी कखि कॉंग्रेसी बुड्या दगड़ भाजि गे तो भाजापा को कथगा कुहाल होलु?   

 

                   भारतम चर्चाओं को बजार मा उछाला च। टीवी चैनलों मा बहसों को बजार गरम च, अखबारों मा भविष्य वाणी  बथाण वाळो बथौं चलणु च, स्टॉक मार्किट तैं उंद -उब-छरक की बीमारी लगीं च, चौराहों अर चौपालों मा चर्चा अर निर्णयहीनता का कुयड़ लग्युं च बल कु  कैको ऊँट कै करवट बैठल? सब राजनैतिक ऊंट  तै दिखणा  छन बल यो ऊंट कना बैठल अर ऊंट च कि खड़ी च। ऊंट करवट तबि  ल्यालो जब वो बैठण मिस्यालु। ऊंट तो खड़ी च।असल मा राजनैतिक ऊंट बि भरम मा च , ऊंट घंघतोळ मा च  कि अबि बैठु या खड़ी रौं! इलाई अफवाओं बजार बि गरम च अर  यांसे सट्टा  बजार मा उछाला आयुं च।

                        सट्टा बजारम एक दिन सुबेर भाजापा का भाव रुपया पर दस रुपया होंदन तो नीतेश कुमार को  जो बिहार तैं विशेष दर्जा द्यालो वै तैं समर्थन मीलल बयान आण से दुफरा मा भाजापा का भाव रुपया पर चवनी ह्वे जांद। सुबेर मुलायम सिंग को बयान कि साम्प्रदायी ताकतों तैं रोकणों बान मनमोहन सरकार तै समर्थन रालो से कौंग्रेस का भाव रुपया पर पांच रुपया मिल्दन तो एक घंटा मा राम गोपाल यादव को बयान कि बेनी प्रसाद बर्मा क्षमा नि मांगल  तो समर्थन वापस लिए जालो से कौंग्रेस का भाव रुपया पर दुवनी ह्वे जांद।

 सुबेर जब शरद यादव ऐनडीए सांसदों बैठकम संयोजक की कुर्सीम बैठद तो  सट्टा बजारम ऐनडीए का भाव रुपया पर बीस रुपया ह्वे जांदन पण दुफरा मा  शरद यादव कौंग्रेस का चाणक्य अहमद पटेल से मिल्दो तो  ऐनडीए का भाव रुपया पर एक आना ह्वे जांद।

उद्धव ठाकरे की छींक सट्टा बजारम करोड़ो का वार पार करदी तो राज ठाकरे को खंकार से सट्टा बजार म अरबों का न्यारा वारा ह्वे जान्दन। जय ललिता की उबासी सट्टा बजारम उंद -उब लान्दि।   

       

 सट्टा बजारम ' लोकसभा चुनाव समौ  पर ह्वाला' पर बि सट्टा लगणो रौंद। जब कपिल सिब्बल का बयान आंदो बल चुनाव समय पर होंगे तो 'चुनाव समय पर होंगे ' का भाव रुपया पर दुअनि ह्वे जांद अर जनि ममता बनर्जी , मुलायम  सिंह यादव का बयान कि चुनाव समय पर ही होंगे आन्दन  तो  'चुनाव समय पर होंगे' का भाव बीस रुपया तक पौंछि जांद। लालू प्रसाद यादव का बयानों से अचक्याल सट्टा बजार पर क्वी फरक नि पड़दो। उनि लाल कृष्ण अडवाणी, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, एंटोनी , चिदम्बरम  का बयानो से  सट्टा बजार पर रति भर  बि प्रभाव नि पड़दो। सट्टा बजार का वास्ता अजकाल राष्ट्रीय पार्ट्यु का नेता अप्रसांगिक , असरहीन, अवोळ (फलहीन) ह्वे गेन।

अचकाल तो ममता बनर्जी, नितीस  कुमार, नवीन पटनायक, मुलायम सिंह यादव, मायावती, उद्धव  ठाकरे, राज ठाकरे, शरद पवार , करूणानिधि, चन्द्रा बाबू नायडू, जय ललिता , प्रकाश सिंह बादल जन क्षेत्रीय नेताओं का बयान अर कथन ही सट्टा बजार तै प्रभावित करदन अर आज  क्षेत्रीय पार्टी ही सत्ता बजार अर सट्टा बजार का वास्ता प्रसांगिक छन .                   

 

 Copyright @ Bhishma Kukreti   21 /3/2013

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                           

                      संजय दत्त का  जघन्य अपराधौ  प्रति सहानुभूति

 

                           चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

 

 

 -प्रिय संजय दत्त !

मि खबेश भट्ट याने नामी बुद्धिजीवी फिल्मकार त्वैखुण ट्वीट करणु छौं बल तू जेल जाण से फिकर नि कौर। हम सौब इख भैर त्यरो अपराध तैं  ग्लैमराइज करला अर तेरो जघन्य अपराध  पर सहानुभूति की लहर पैदा करला जां से त्वे सरीखा हौर अपराधी नि शर्मावन  बल्कण मा सन तिराणबे का यी सभी  अपराधी गर्व महसूस कौरन। हम सरीखा बुद्धिजीवी अपराध्युं पर सहानुभूति पैदा करण मा उस्ताद छंवां  अर किलै ना ? जब हमारि फिल्मों तैं जघन्य -देशद्रोही फिनेंस करदन तो हमारि बि जुमेवारि बणद कि  कराची -दुबई मा बैठ्या अपराध्युं तैं अराध्य देव बणौवां।

देख तू शर्मा ना उख हौलिवुड मा बि त सेलिब्रिटी जेल जांदन त तु लज्जा अनुभव नि कौर।

अब जब सन सहतर मा जेन फोंडान एक पुलिसौ सिपै पर लात मार तो वीं तैं बि थ्वडा देरोकुणि जेल ह्वे छे। अर म्यार मनण च बल  सिपाई पर लात मरण तो तेरो गुनाह से बडो गुनाह छ।

अब टिम एलन की इ बात लेदि तू डेढ़ पौंड चरस गांजा दगड़ पकड़े गे छौ अर द्वी सालै सजा ह्वे छै वे तै। हम सेक्युलर बुद्धिजीवियुं बुलण च बल  चरस गांजा रखण बड़ो गुनाह च अर त्यरो दुबई मा ड्रग स्मगलर्स जन कि दाउद , अनीज, मिर्ची, छोटा राजन अर शेट्टी से मिलण क्वी अपराध नी च। हम फिल्म वाळ दुबई का देशद्रोही अपराध्युं तैं खुस नि करला तो  हमर फिलम कनकैक बणलि।   

त्वै तै दुख नि होण चयेंद कि तीन बगैर लाइसेंस का हथियार अपण ड्यारम रखिन। देख जब सन चौराणबे मा वीडीओ कलाकार फिफ्टी सेंट तै गैर लाइसेंसी हथियार अर चरस गांजा रखणो अपराध मा छै मैना जेल ह्वे छे तो वो बि बेशरम जन छै मैना कुण जेल गे छौ तो तेरि गैरत किलै जगणि च ? अचकाल त्वै सरीखा सेलिब्रिटी अर नेता गैरत हीन इ हुंदन।

सि सन द्वी हजार सात की बात च खिलाड़ी लिल  वाइयन तै बि त बगैर लाइसेंस की गन रखणम जेल ह्वे छौ।

दिन तो कटि जाला जान  रुल बि  त हथियार रखणो जुर्म माँ जेल काटणु च कि ना ? त्यार सौं हम कुछ फिल्म वाळ अर तथा कथित मानववादी जनता मा सहानुभूति पैदा करणों पूरा का पूरा पुठ्या जोर लगाणा (कोशिस) छंवा उखमा  चाहे जाने अनजाने  सन तिराणबे को जघन्य अपराधी दाउद इब्राहिम  से भी जनता की सहानुभूति मीलली तो हम तैं क्वी गम नी च हम तो इ चांदवां कि लोगुं त्वे से सहानुभूति ह्वे जावो बाकी कुछ बि ह्वावो हम तै फिकर  नी च।

   

 घबरा ना हम भावुकता का नाम पर त्यार  अपराध तै एक बच्चा का शौक मा  बदलणा कोशिस बि करणा छंवां। संजू बाबा! तू आत्म ग्लानि से भैर आ। अरे जब जेमी वेलेट तै सन द्वी हजारग्यारा म इंग्लैण्ड दंगोम भाग लीणो   अपराध का वजै से सजा ह्वे अर वै तैं  क्वी आत्म ग्लानि नि ह्वे तो तू किलै आत्म ग्लानि महसूस करणु छे।

   

   तू चिंता नि कौर जनता त्यार कुकर्मो तै हिराकत नजरों से नि द्याखलि किलैकि भौत सा पत्रकार अर टीवी चैनेल त्यार  प्रति जनता मा सहानुभूति पैदा करणा छन। अरे राम जेठमलानी अर मेनन  सरीखा वकील -नेता  तो बुलणा छन बल तू दया का लायक छे। भारतम कुछ बि ह्वे सकद। अपराधी से सहानुभूति पैदा करण इखि ह्वे सकद . तीन ब्याळी टीवी न्यूज चैनेल देखि हि होलु कि  अपराधी तै हीरो की नजर से दिखण खाली फिल्मों मा इ नि होंन्द बल्कणम समाचार टीवी चैनलोंम बि जनता मा अपराध का प्रति सहानुभूति की लहर पैदा करे जान्दि। या च हमर प्रजातंत्र को हाल तो तू किलै आत्म ग्लानि की बात करदी ?

जब तलक हम सरीखा खजि वाळ बुद्धिजीवी ईं  दुनियामा रौला हम अपराध तै बि दया , करुणा मा बदली द्योला।द्याख नी च तीन कन मि हरेक टीवी चैनेलुं मा त्यार बान भकोरिक रूणु छौ!  कनो मि जघन्य अपराध का प्रति सहानुभूति पैदा करणु छौ?     

तेरो शुभ चिन्तक  - बार बार कन्याण वाळ, खजि करण वाळ खबेश भट्ट                   

                 

 

 Copyright @ Bhishma Kukreti   22  /3/2013

 

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य-व्यंग्य

सौज सौजम मजाक-मसखरी 

हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                  नाटा की    जिन्दगी  (बैचलर लाइफ़ )

 

                   चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

 

     ब्यौ से पेल बैक की जिन्दगी बिताणै अभिलाषा हॊन्दि अर ब्यौ परांत अभिलाषा रौंदि एक दिनों ले कुण मि नाटा (बैचलर ) की जिन्दगी बितौं।   
आजि घरवळि  मैत ग्यायि ,  जख हिंदी की  हीरोइन जन स्याळि छन क्वी करीना कपूर जन च तो क्वी सोनाक्षी सिन्हा जन . मेरि घरवळि  घरवळि जन इ च पण म्यार सबि सडडू भाई वीं तैं कटरीना कैफ माणदन। क्या कटरीना कैफ गुसा हुन्दि ह्वेलि जो म्यार सडडू भाई मेरि घरवळि तैं  कतरीना कैफ चितांदन?


   खैर मेरि घरवळि मैत ग्याइ  जख हिंदी फ़िल्मी हीरोइन जन मेरि स्याळि  बि रौंदन।

अब भौत दिनों बाद नाटा जिंदगी बिताणों  अभिलाषा पूरी ह्वाइ।

मीन भौत कुछ सोचि याल कि बैचलर जिन्दगी को दुबर लुफ्त उठाये जावो।

                   अब  चूँकि मुंबई मा कुखुड़ त छ नीन  जो बांग देकि लोगुं तैं बिजाळन। सो इ काम सब्युं  घरवळि करदन अर कुखुड़ो बांग ना कुण कुण करिक अपण अपण घरवळु  तैं बिजाळदन। मनोवैज्ञानिकों  कुणि एक बढ़िया विषय च कि बिजणो खुणि कुखड़ो बांग सुविधा जनक होन्दि कि घरवळि क कुणकुणाट! खैर मीन सोचि आल कि मि अब घाम आण का बाद ही बिजलु अर देर तलक लम्पसारिक सियुं रौलु। पण सुबेर सुबेर दूध वाळन घंटी बजाण इ च। अखबार वाळन घंटी बजाण इ च। चौकीदारन घंटी बजाण इ च कि पाणि कम आलो या पाणि ठीक मात्राम  आलो। अर अब जब ब ऑफिस जाण तो घंटी बज या नि बज समौ पर बिजण इ च। याने कि सुबेर सुबेर बिजणो मामला मा नाटों (बैचलर )  जिंदगी अर बैक (नॉन बैचलर ) जिंदगी मा  क्वी फरक नि पोड़दु।

  फिर मीन सोचि बल जनि मि बिजदु छौं  घरवळि पैथर पोड़ी जांदी बल दांत मजा , दांत मजा। मीन सोचि आल कि मि सुबेर उठिक दांत नि  मंजौल! पण फिर स्वाच कि जब ऑफिस जाण तो दांत तो मंजाण इ पोड़ल इना चाय बणाणो पैन गैस माँ धरण अर उना मै तैं दांत मंजाण ही पोड़ल। याने कि दांत मंजाणो हिसाबन बि बैचलर अर नौन बैचलर जिंदगी मा क्वी अंतर नि पोड़ण।

                                 

 फिर मीन स्वाच कि घरवळि ह्वावो या नि ह्वावो झाड़ा तो समौ पर ही जाण पोड़ल। ऑफिसम मीटिंग छोड़ी झाड़ा थुका जाये जांद। याने कि टटी पिसाब को मामला मा बि नाटा जिंदगी अर बैक (नॉन बैचलर) जिन्दगी म क्वी फरक नि पोड़द।

    अब घरवळि ह्वावो या नि ह्वावो दाढ़ी तो बणान इ च,नयाण बि च अर जरा परफ्यूम बि लगाण जरूरी च तो यूं मामलों मा बि द्वी जिन्दग्युंम क्वी फरक नि पड़न।

 जख तलक नास्ता को सवाल च तो कुछ फरक होलु कि म्यार बणायां टोस्ट अर ऑमलेट जऴयां होला अर खाणम अवश्य ही कड़ुवा होला  पण  जऴयां टोस्ट अर जऴयूं ऑमलेट खाण से बेहतर तो घरवळि चकचक ही ठीक च। इना दांतुं बीच टोस्ट अर उना  घरवळि चकचक अर इनमा कैचअप की जरूरत पड़दि नी च।

 

  ऑफिसम मेरि घरवळि म्यार दगड़ च या नी च से क्वी फरक नि पड़न। म्यार बौसन म्यार काम से खुस नि होण अर डांटण छैंइ च अर मीन अपण तौळ वळु काम से खुश नि होण अर मीन कै ना कै तै  बेवजह डांटण ही च। तो ऑफिस को मामला मा बि बैचलर अर नौन बैचलर जिंदगी  से क्वी फरक नि पड़न।

  जख तलक दारु सारु को हिसाब च तो घरवळि होण पर बि जब दगड्या मील जावन तो हम होटलम दारु पार्टी करदा इ छंवां अर  घरवळि नि होण पर बि होटलम दारु पे सकुद।

जु मि ड़्यारम दारु पीण चांदो तो मि अपण स्टडी रूम मा दारु घरवळि हूंद बि पींदु इ छौं अर घरवळि हमेशा सलाद अर नमकीन दींद दै तून दीण नि बिसरदी। जै दिन सलाद अर नमकीन दीन्द दें घरवळि नि डांटदि तो मि समज जांद कि वा में से नराज च। बस बैचलर जिन्दगी अर नौन बैचलर जिंदगी मा यो फरक ही होलु। जख तलक डिन्नर को सवाल च इखमा बि क्वी जादा फरक  नी च। बिल्डिंग मा  दुसर फ़्लैटम म्यार कणसो भाई रौंद तो डिन्नर उखि खाण पोड़ल अर उल्टां में तै जादा अनुशासन मा डिन्नर करण पोड़ल।

                 

 अब मि घंघतोळ मा छौं बल छौंद घरवळि  जिंदगी अर बैचलर जिंदगी मा क्या फरक च? म्यार हिसाब से  तो घरवळि दगडै जिंदगी जादा भलि च। तुमर क्या बुलण च? 



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