Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359886 times)

Bhishma Kukreti

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अमिताब बच्चन की  फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन नेस्ताबूद कार

 
                  भकलौण्या : भीष्म कुकरेती

जी हाँ ! मि धै लगैक बुलणु छौं बल अमिताभ बच्चन की फिल्मों भ्रष्टाचार विरुद्ध अन्ना आन्दोलन नेस्ताबूद कार  I
हाँ हाँ ! मि खुले आम , बीच बजार मा अर इन्टरनेट कु थौळम गर्जिक -बर्सिक बुलणु छौं बल अन्ना आन्दोलन खतम करण मा अमिताब बच्चन फिल्मो  योगदान च I
हाँ भै हाँ ! मि बगैर भंगुल -दारु पेक बथाणु छौं बल भारतम संसाधनों पर लग्युं भ्रष्टाचार  को कीड़ो विरुद्ध बिगुल बजाण वळु  अन्ना आन्दोलन कि मुखर आवाज बंद करणों  वजै अमिताभ बच्चन की फिल्म बि छन I
बोलि याल ना कि मि ढोल घुरैक  , दमौ बजैक कन्टर बजैक,  सबि हिदुस्तान्यूं तैं धाद दीणु छौं बल अन्ना आन्दोलन पर अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन पाणी फ्यार, अन्ना आंदोलन को जजबा अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन खतम कार , अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन क जड़नास कार I अन्ना आन्दोलन जो समाजम एक उथल-पुथल , बदलाव  लाण वळ थौ अमिताभ बच्चन की फ़िल्मोन वै आन्दोलन की भ्रूण हत्या करी दे ! अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन कि कमर तोड़ि I
क्या बुना  छंवां बल  मि बौळे ग्यों ? तुमर विचार से -सुचण से   मि पगलै ग्यों ?
न्है न्है ! ब्याळि  डाक्टरन  पूरो चेक अप कार अर डाक्टरन ब्वाल बल जब आदिम पर बिंडी बीति जान्दि तो वो कारणों जड़ तलक पौंछणो कोशिस करदो I
अब आप ही बथावो कि सहत्तर -अस्सी को दसकम अमिताभ बच्चन की फिलम हिट किलै ह्वेन ? आखिर हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी -नेपाळी -श्री लंकाई किलै अमिताभ बच्चन की फिल्मो दीवाना ह्वैन ?
जब हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी आदि अपण व्यवस्था , अपण शासन , अपण प्रशासन , अपण धर्मुं ठेकेदारुं , समाजौ ठेकेदारों से त्रस्त , भयभीत , पीड़ित , दुखी ह्वे गे छा , डौर गे छा I समाज तैं , व्यक्ति तैं व्यवस्था को प्रताड़ना से मुक्ति को क्वी आस , क्वी  साधन , क्वी माध्यम नि दिख्याणु छौI  व्यक्ति एआरएम समाज मा  आशाहीन मानसिकता ऐ गे छे, समाज अर व्यक्ति किम कर्तव्य को भंवरों बीच फंसी गे छौ तो  अमिताभ बच्चन की विद्रोही आवाजन , अमिताभ की फिल्मों मा विजय नामौ चरित्र का समाज तैं दबाणै  व्यवस्था  का विरुद्ध विद्रोही स्वरों , एकाधिकारी व्यवस्था विरोधी डायलौगूं से हम तैं लग कि हम तैं अभिब्यक्ति मिलि गे  भारतीय उपमाहाद्वीप का जन मानस तैं लग कि अमिताभ बच्चन विजय ही तो  प्रतिछाया च I  अमिताभ को चरित्र याने विजय आम भारतीय उपमहाद्वीप का  लोगुं अभिव्यक्ति को प्रतिनिधि बौण गे I लोगुं तैं लग अब विजय ही कुप्रशासन खतम कारल I जनता तैं लग अब विजय नामक  अकेला व्यक्ति ही हम तैं जगा जगा बैठ्याँ एकाधिकारियों से मुक्ति दिलाणम   काफी च I लोगुन तैं पूर्ण विश्वास ह्वे गे बल विजय नामक केवल एक चरित्र सबि तरां को अनाचार्युं , अत्याचार्युं , व्यभिचार्युं, दुराचार्युं , पतितों   तैं ख़त्म कौर द्याल I भारतीयोंन अमिताभ बच्चन को चरित्र तैं सच समजी याल I
 पण असलियत , हकीकत , वास्तविकता , रियलिटी कुछ हौरि छौ I अमिताभ बच्चन की फिल्म एक अकेला व्यक्तिवाद तैं दिखाणु छौ कि  दमघोटू दुर्व्यवस्था तैं नेस्ताबूद करणों बान  बस समाज मा एक 'विजय' चरित्र काफी च अर समाज केवल दर्शक बण्यु बि रालो तो भी 'विजय' नामौ चरित्र मुक्ति दिलै द्यालो I अमिताभ बच्चन की अधिकतर फिल्मों मा दुराचार , अनाचार , अत्याचार मिटाणो बाण केवल एक ही व्यक्ति 'विजय'  दिखाये गे अर समाज की भूमिका केवल मूक दर्शक की दिखाए गे I
जब कि असलियत मा जरूरत विजय की भी छे जो हमारी अभिव्यक्ति को प्रतिनिधित्व अवश्य कारो अर समाज मूक दर्शक नि रावो बलकणम  समाज अपणो सामाजिक, सामूहिक भागीदारी निभावो I जब एकाधिकारी या अनाचारी व्यवस्था   ह्वावो तो वीं ताकतवर , खतरनाक व्यवस्था तैं बदलणो बान   व्यक्ति तैं सामूहिक रूप से लड़ण जरूरी च I  दक्षिण भारतीय फिल्मों पर नजर डाळो  त उख बि ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत,  आदि की फिल्मोंन  भी वाही भूमिका निभाई जो अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन निभाई याने समाज मूक दर्शक अर एक व्यक्ति दुराचार -अनाचार नाशक !
अन्ना हजारे मा भारतीयों न 'विजय' चरित्र  द्याख अर सरा उप महाद्वीप आशावंत ह्वे ग्याइ कि अब हम तैं 'विजय' चरित्र मीलि ग्याइ अर समाजान अन्ना हजारे या 'विजय' नामक चरित्र तैं  समर्थन , सहयोग दे जन लोगुंन ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत, अमिताभ की फिल्मों तैं समर्थन दे पण जो समाज से अपेक्षित/आशा  छौ वो समाजन नी दे I समाज से अपेक्षित छौ कि अन्ना हजारे दगड़ भागीदारी निभावो पण हम तो अमिताभ बच्चन की फिल्मों का व्यसनी ह्वे गेवां अर एक व्यक्ति का भरोसा बैठि गेवां अर अपणी भागीदारी निभाण बिसरी गेंवाँ I
यदि हम दैंत -दिवतौं इतिहास पर बि नजर मारवां तो हम दिखला कि शिवजी , विष्णु जी या अन्य देवियों -दिबतौं अकेला कारनामा से दैंत -राक्षस खतम नि ह्वेन . शिवजी , विष्णु , देवी का भौं भौं रूप दैन्तों  से रोज लड़णा रैन पण दैंत मूल नाश तब  बि नि ह्वे I दैंत मूल नाश तबि ह्वे जब दिबतौंन सामूहिक भागीदारी निभाई अर वो सामूहिक भागीदारी छे ' समुद्र - मंथन' I  समुद्र मंथन ' सामूहिक भागीदारी को एक अनूठा मिसाल छौ जख मा 'विजय ' चरित्र शिव -विष्णु -ब्रह्मा रूप छा पण  दिबता कट्ठा ह्वेक दैंत संघार को करतब मा शामिल छा I 'समुद्र मंथन ' मा एक एक दिबता को महत्व छौ, एक एक दिबता की अपणी अलग भूमिका छे अर तबि दिबतौंन दैंतों तै हमेशा क बान (सदा के लिए)  कमजोर बणाइ , दैंत खतम करे गेन I
यदि अन्ना हजारे जन आन्दोलन तैं सफल करण तो प्रत्येक जण -बच्चा याने व्यक्ति तैं अपण भागीदारी भि निभाण पोड़ल जन हरेक दिबतान राक्षस मूलक यज्ञ 'समुद्र मंथन ' मा निभाई छे I

Copyright @ Bhishma Kukreti  12/8/2013

Bhishma Kukreti

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 असली डौर


                     चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती


              अचकाल कखिम बि बाँचो भौं भौं किस्मुं डौरूं छ्वीं लगणा रौंदन I भौं भौं मीडिया - माध्यमुं मा बि दुनिया का वास्ता कु कु डौर जादा डरौण्या छन पर विस्तार से छ्वीं लगणा रौंदन I

               सबसे जादा बहस का मुद्दा च - ग्लोबल वार्मिंग याने धरती क अंदादुंद रूप से  तचण  या पृथ्वी मा बेहिसाब गर्मी हूण ! इख पर सबि  सहमत छन बल धरती बिंडी तचण मिसे गे I धरती गरम हूण से माहौल खराब हूणु च I लोग डरणा छन बल ग्लोबल वार्मिंग से समोदरो पाणि उंचाई बढी जाली , धरती जादा तचण से रेगिस्तान बढ़ी जाला, आइस ग्लेसियर पिगळ जाला आदि आदि I
         भै ग्लोबल वार्मिंग तैं त रुके सक्यांद अर जरुर हम धरती क तचण  द्योला I पण जब धर्म का नाम पर राजनीतिक -धार्मिक नेता रोज रोज लोगुं खून गरम करणा रौंदन , धार्मिक उन्माद से माहौल गरम करणा रौंदन वो धरती तचण या ग्लोबल वार्मिंग से जादा खतरनाक च I मि तैं ग्लोबल वार्मिंग से उथगा डर नि लगद जथगा भय जातीय अर धार्मिक उनमादी गर्मी से लगद I ग्लोबल वार्मिंग तैं त भौतिक रीतियों से कम या ठीक करे सक्यांद पण धार्मिक अर जातीय गर्मी तो एक दै  लगी तो फिर ठंडी होंदि ही नी च I धार्मिक अर जातीय गरमी त मड़घट जैक बि शांत नि हूंद I
        अब जब ग्लोबल वार्मिंग की बात होलि तो  की तेजाबी बारिश की भी छ्वीं लगल ही I लोग तेजाबी बारिश से डरणा छन  पर मि मनिखों जीब से निकऴयूँ तेजाबी  शब्दों से जादा डर्युं छौं I तेजाबी बरखा को तो इंतजाम ह्वे जालो पण मनुष्यौ मुख से तेज़ाब रूपी शब्दों अर जहरीला बचनो क्या ह्वालु ? अर अजकाल तो नेताओं मा तेज़ाब से बिंडी जहरीला बचन बुलणो प्रतियोगिता चलणि च I यूं  तेजाबी बोल बचन रुकणौ क्या ह्वालु ? ये तेजाबी बचन त तेजाबी बरखा से जादा डर्यौण्या छन I
     बहुत सा पर्यावरणवादी  डरणा छन बल  दुनिया से सैकड़ों जानवर अर पेढ़  पौंधों जाति  (Species ) ही ख़तम हूणा छन अर मि डरणु छौं कि मनख्यात से इमानदारी ही खतम हूणी च क्या ह्वालु ?
   सबि परेहान छन बल हमर प्राकृतिक ऊर्जा  ख़तम हूणा छन मि रूणु छौं कि हमर समाजौ अर राजनीति का ठेकेदार युवाओं की ऊर्जा तैं विध्वंसक कार्यों मा लगाणा छन वांक क्या करे जालु  ?
    चिंतक चिंतित छन बल वातावरण मा गिरावट याने इनवायरेंनमेंट डिग्रेडेसन  शुरू ह्वे गे I अर मि फिकरमंद छौं कि  हमर सामाजिक अर संगठनात्मक दुनिया मा तेजी से ज्वा गिरावट आणि च वीं गिरावट तैं रुकणो क्या करे जावो ?
   अनुभवी लोग अनुभव करणा छन कि रासायनिक अर न्यूक्लियर हथियार मनुष्यता का बान अति हानिकारक छन I अर मि परेशांन  छौं कि जु हमर ख्वाब झुळसणा छन  , हमर उम्मीद जळिक भसम हूणा छन वैको क्या तजबिज होलु ?
   जणगरा हम तैं चितळ करणा छन कि इलिक्ट्रीकल वेस्ट , फैक्ट्री वेस्ट , मल मूत्र वेस्ट , समुद्र मा कूड़ा करकट या अन्य हौरि जगों मा वेस्ट जमा हूणु च वो खतरनाक च अर जणगरा राय दींदन बल वेस्ट मैनेजमेंट पर ध्यान दीणो शक्त आवश्यकता च I मि दुखि छौं कि संसद अर विधान सभाओं मा  जो समय वेस्ट हूणु च वांकु क्या उपाय च ?
सरा दुनिया का चिंतक , बुद्धिजीवी शहरीकरण को ओवर पोपुलेसन से डरयाँ छन अर हरेक (मी बि ) छुट शहर से बड़ो शहर जाणो आस मा छन I

लोग कैंसर , एड्स से डर्यां छन अर मि मि ज़िंदा ह्वेक बि अपण भितर मरीं मनख्यात  से डर्युं छौं I

आपक क्या हाल छन ? आप के से डर्यां छंवाँ ?




Copyright @ Bhishma Kukreti  13/8/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

Bhishma Kukreti

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 गरीब -गुरबों-दलितों  रामायण मा बाल-कांड की जगा भेदभाव काण्ड
            चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
 
 मी सुचणु छौ बल रामायण या महाभारत मा जु बि मुख्य कथा छन वो राजा , राजकुमार या राजकुमार्युं मुतालिक ही छन अर बडो मिजाज , बड़ो हिसाब ही यूँ महाकाव्यों मा च  I
यदि वाल्मीकि कई गरीब पर या हरिजन आधारित कथा पर रामायण लिखदा त क्या हूंद ?
 
              वाल्मीकि या तुलसीदास कृत रामायण मा दशरथ राजा छौ त वैक इख वशिष्ठ , श्रृंगी , विशवामित्र जन बड़ा बड़ा ऋषि आंदा छा पण दलितों रामायण मा गरीब या दलित दाशरथौ इख बड़ा बामण त छवाड़ा मड़घटौ  भैड़ा बामण बि नि आंद किलैकि बामणु बि जजमानी बारा मा अपण स्टैण्डर्ड हूंद . जू बि  दक्षिणा   दीण लैक ह्वावो वो ही बामणु लैक जजमान हूंदो I तो दलित या श्रीहीन दशरथ का तिनि ब्यौ टकों ब्यौ (जख मा बर बरातम नि जांद ) ही हूंदा I
                 दलित दशरथ या तो बड़ा लोगुं गू फेड़दु या कैका पुंगड़ु मा मजदूरी करदो I इनि  कौंसिला (कौशल्या ), कैकेयी अर सुमित्रा बि मजदूरिन हि हूंदा I रामायण मा जब  राम पैदा हूणो  बगत आयि तो कौशल्या बान तरा तरांका  सुख साधन जुटाये गेन I गरीब -दलित चरित्रों आधारित रामायण मा कौशल्या बान बि दशरथ सुख अर साधन जुटांदो I जख कैकियी अर सुमित्रा माय दशरथ का चार बेऴयूँ मादे एकि दै खाणक़ खांदा उख कौंसिला (कौशल्या ) तैं द्वी बगत रूखा सूखा दिये जांदो . अर कौशल्या भगवान से प्रार्थना करदी बल क्या वा हर समय अशाबंद (गर्भवती ) रै सकदी क्या ? गर्भवती रौण मा दिन मा एक बार खाणक़ मिलण तो बड़ी बात ह्वे की ना ? उना कैकेयी अर सुमित्रा निरंकार से प्रार्थना करदी बल वूं तै बि गर्भवती बणाये जावो ! कैकेयी -सुमित्रा बच्चों बान गर्भवती नि बणन चांदा पण चार टैम मा द्वी टैम खाणकौ लोभ मा गर्भवती बणन चांदा I
                 जब वाल्मीकि का रामचंद्र पैदा ह्वेन तो दाई -आयायूं की भीड़ का बीच पैदा ह्वेन I दलितों को रामायण को रामचंद्र बि भीड़ का बीच ही पैदा होंदु पण वीं भीड़ अर वाल्मीकि रामयण की भीड़ मा जमीन असमानों अंतर हूँद I जख वाल्मीकि को रामचंद्र राजमहल मा पैदा होंद त दलितों रामायण को रामचन्द्र तब पैदा हूंद जब कौशल्या कै राजमहल की चिणै बगत मजदूरी करणि होलि I कौशल्या का मुंड मा पथर हूंद अर इनि मा रामचंद्र पैदा हूंद I जख वाल्मीकि रामायण मा रामचंद्र को पैदा हूण मा अयोध्या की जनता जोर जोर से 'बधाई हो ! बधाई हो ! राज्किमार पैदा हुए हैं ' को नारा लगांदी अर सरा अजोध्या मा हल्ला हूंदो त दलित रामयण मा कूड़ो ठेकेदार अर हौर बड़ा कारिंदा हल्ला करदा कि "तैं कौंसिला मजदूरिन को बहार कारा ". ठेकेदार मजदूरों तै डांटदो " क्या बै ! एक कुत्ते का पिल्ला जैसा ही तो पैदा हुआ है फिर तुमने काम बंद क्यों किया ? चलो काम करो I "
दलित रामायण माँ मजदूर रामचन्द्र जन्म पर खुसी नि मनै सकदा बल्कि बेबसी , कुंठा का शिकार ही होंदा कि हम मजदूरों क्या बेबसी च कि मजदूरी करद बच्चा पैदा हूंदन अर चैन से खुसी का इजहार बि नि करी सकदा !
कौंसिला नंगी बच्चा लेकि अपण अधछंयीं झुपडि मा इखुली आंदी I
               दशरथ का परिवार मा बच्चा का आण पर ख़ुशी जरूर होंदी पण दुःख बि उथगा ही जादा होंदु बल कि यु बच्चा रात पैदा होंद त कौन्सिला तै आज की मजदूरी त मिल्दि I सब्युं तैं एकि मलाल हूंद कि आज कौंसिला की मजदूरी मारे गे I दशरथ कौन्सिला तै गाळि बि दींदो " तै नौनु तैं जरा चार पांच घड़ी पैथर जनम नि दे सकदी छे ? साली तैं इथगा बि ज्ञान नी च कि गरीबों तैं दिन मा पैदा नि करण चएंद I "
 दसरथ का घौर बुड्याँद दें नौनु ह्वाइ तो जशन मनाण बि जरूरी छौ अर खुसी -खुसी दशरथन अपण एकमेव गैबण बखरी बेचि दे अर वांसे चषक (शराब ) अर चखना खरीद अर दगड्या  मजदूरों तैं रात जीमण दे I
           ज्य्ख वाल्मीकि -तुलसी रामयणम रामचंद्र  को बचपन राजमहलम बीतद उख दलित आधारित रामायणम रामचन्द्र को बचपन कौन्सिला जख बि मजदूरी करणों जावो तखी रामचंद्र तै बि लिजांदी छे I जख बाल्मीकि -तुलसी रामायण मा रामचन्द्रन पांच  साल तक राजमहल का गद्दों सुख भ्वाग उख दलित रामायण का रामचंद्र का बचपन पुंगडुम, खल्याणम, बौणम , खंद्वारुंम ,  चिण्यान्द कूडो मा माटु -पथरों -कीच , धूल -गंदगी मा बितद I
 जब बाल्मीकी का रामचन्द्र पांच साल को ह्वाइ तो संसार का लोग रामचंद्र तै पकड़णो बान  प्रतियोगिता मा खड़ा रौंदा छा पण दलित रामायण मा बिट्ठ ( स्वर्ण लोग ) ही ना बड़ी जाती का हरिजन बि रामचन्द्र की छाया से दूर रौणै कोशिस करदा I रामचन्द्र तैं दलित हूणों अहसास बचपन से ही ह्वे जांदो अर कबि कबि त बालक रामचंद्र अपण छाया से दूर भाजि जावो कि कखि या छाया सवर्णो नि ह्वावों I पांच साल की अवस्था आंद आंद दलित रामायण मा रामचंद्र पचास दै सवर्णों अर बड़ी जातिक हरिजनों गाळी -मार - उलाहना खैक डमडमो -ढीठ ह्वे जांदो I
               दलित रामायण मा पांच साल को रामचन्द्र तैं खाणको स्वाद तो पता नि चौलल पण दलित हूणो अनुभव पूरो ह्वे जालो I जख बाल्मीकि रामायण मा रामचंद्र तै अक्षर ज्ञान सिखाणो बान महर्षि ,ब्रह्मर्षि ग्यानी ऐन उख दलित आधारित रामायण का रामचन्द्र "अछूत कहींका, दलित की औलाद , तू हरिजन है दूर हट; हम पर नही लग, हम स्वर्ण हैं तू शूद्र है ; हम कुलीन हैं तू नीच है ; हम शिर से पैदा हुए हैं तुम लोग पैर के अंगूठे से पैदा हुए हो " जन ज्ञान पांच सालुं मा बगैर उपाध्याय का ही सीखि लींदु . बल्मीकि का रामचंद्र गुरु वशिष्ठ  से ब्रह्म ज्ञान सिखद त दलित रामयण का रामचन्द्र जाती -व्यवस्था को पूर्ण व्यवहारिक ज्ञान बगैर गुरु का ही सीखी लीन्दो I   
   दलित की रामयण मा बालकांड ना भेद -भाव का काण्ड-खुब्या हूंदा  I
दलित रामयण में रामचंद्र का बल कांड भाग -2 में जारी ….
Copyright@ Bhishma Kukreti 14/8/2013

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

Bhishma Kukreti

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सन 2100 ई . मा सम्पादकीय टिप्पणी


                                             भोळ दिख्वा : भीष्म कुकरेती
  ब्याळि सुपिनम मीन सन 2100 को एक क्षेत्रीय अखबारौ सम्पादकीय पौढ़ -

                       आज गढ़वाळि-कुमाऊंनी  समाज एक संक्रमण काल से गुजरणु च। समाज मा अर संस्कृति मा नई नई कुरीति ऐ गेन अर सरकार अर हमारा बुद्धिजीवी तमाशा दिखणा छन ।
                      क्या सुंदर हमर गढ़वाळि लोक हजारो की तादातम पलायन करदा छा , दीं दुनिया दिखदा छा अर रूप्या कमांदा छा । आर्थिक दृष्टि से हम सम्पनता की तरफां चली गे छया । पण अब बिजोग पड़ी गे कि गढ़वाल से पलायन ही नि होणु च उल्टां प्रवासी अपण अपण गाऊं मा बसणा छन । यो प्रवास्युं अपण गाऊं मा पुनर्वास से हमारी लोक संस्कृति पर बडो धक्का लगणु च । हम सरा दुनिया से संस्कृति उधार लीण गीजि गे छा अब पलायन नि होण अर प्रवास्युं अपण अपण गाऊं मा बसण से हमारी संस्कृति मा बदलाव हूण कम ह्वे ग्यायी जो हमारी लोक संस्कृति बान एक बडो खतरा च । संस्कृति मा यदि तेजी से बदलाव नि होलु तो दुनिया हम तैं कूप-मंडूपी लोक बुलणा छन। हरम संस्कृति उधान लीण बंद करण पर नेता लोग  संवेदनहीन हवे गेन अर हमारा विचारक मूक दर्शक ह्वे  गेन ।
               लोक गीत  हमेशा ही संस्कृति का प्रतीक होंदन अर संस्कृति संवाहक होन्दन । हमारी फुर्की बांद , लालू रुमाल जन श्रंगारिक लोक गीत रच्याण बंद ह्वे गेन अर अब स्वदेश प्रेम , समाज सुधारक विषय का भोंडा गीतुंन  फुर्की बांद , लालू रुमाल जन श्रंगारिक लोक गीतुं जगा लहे आल । देव रूप गजेन्द्र राणा की लगायीं डाळी बनि बनि श्रृंगारिक गीत बजार मा लाणि छे अर अचकाल राक्षसनुमा नरेंद्र सिंह नेगी का समर्थक फिर से स्वदेश प्रेम , समाज सुधारक विषयी गीत गाण बिसे गेन । गजेन्द्र सिंह राणा  का गीत हमारी संस्कृति का परिचायक छा अर अब हम अपणी संस्कृति छोड़ि दुसर संस्कृति नकल करणा छंवाँ । कुज्याण नई संस्कृति को क्या हाल होलु ? नेता सियां छन , बुद्धिजीवी बौंहड़ पड़्याँ छन ।
           परिधान हमारि पछ्याणक हूंदी । क्या सुन्दर हम लोग अपण लोक परिधान जन कि जींस -पैंट  -बरमुदा पैरदा छा अर अब नई साखी , नई जनरेसन धोती -कुर्ता अर मॉडर्न  जनानी -बेटी -ब्वारि साडी -बिलौज पैरण गीजि गेन । परिधान का मामला मा गढ़वाऴयूँ मध्य जो ह्रास ये दशक मा दिखे ग्यायि वो ह्रास आज तलक इतिहास मा नि दिखे ग्यायि । हमर समाज एक ब्लंडर करणम मशगूल च  अर हमार नेता अर विचारक , समाज सुधारक चुपचाप संस्कृति विनाश दिखणा छन ।
   
                 खाणा मामला मा हमारो लोक भोजन जन कि  चाऊ -माऊ , भौं भौं किस्मौ सैंडविच, बर्गर, पिजा, आदि लोक भोजन प्रचलित छौ अर यु खाणा हमर संस्कृति को अभिन्न अंग छौ पण काण्ड लगिन नै जमानो अपर कि हमर लोग अब  चुनै रुट्टी , फाणु -बाड़ी -झंग्वर, कपिलो -कंडाळी जन भोजन पर ढबी गेन । कुनगस त या होणु च कि होटलूंम अब ढुंगळ -उड़दौ दाळ उपलब्ध ह्वे ग्यायि ।  लोग अपण लोक भोजन चाऊ -माऊ , भौं भौं किस्मौ सैंडविच, बर्गर, पिजा, आदिकी बेज्जती से आतंकित छन उख हमारा राजनेता अर जणगरा भोजन संस्कृति मा बदलाव का मामला मा सर्वथा उदासीन छन ।
            पैल हम लोगुंन हिंदी तैं मातृभाषा अर अंग्रेजी तैं पितृभाषा घोषित करी आल छौ। हमन हिंदी अर अंग्रेजी की पूजा करिक   ग्लोबलाइजेसन का हिसाब से  हमन गढ़वाळि -कुमाऊंनी भाषा तैं ख़तम ही करी दे छौ पण कुछ उछद्यूं कुकर्मो से अब हर मैना दस बारा गढ़वाळि किताब छप्याणि छन , गाऊं अर शहरुं  माँ गढ़वाळि -कुमाऊंनी सिखाणौ कोचिंग क्लास खुली गेन अर नै पीढ़ी गढ़वाळि -कुमाऊंनी भाषा सिखणम  अभिमान महसूस करणी च । हमारी मांग च  कि  राष्ट्रीय भाव -विरोधी यूँ गति विध्युं जन कि गढ़वाळि -कुमाऊंनी सिखाणौ कोचिंग क्लासुं  तैं तुरंत बंद करे जावो । अचकाल गढ़वाळि -कुमाऊंनी फिलम अर वीडिओ कसेट धड़ले से बिकणा छन अर इन बुल्याणु च बल गढ़वाळि -कुमाऊंनी फिलम उद्योग भौति लाभ कमाणु च । हमारी मांग च बल गढ़वाळि -कुमाऊंनी फिल्मो पर दस गुना जादा टैक्स लगाए जावो जां से गढ़वाळि -कुमाऊंनी फ़िल्म उद्यम बंद हवे जावो ।
 इंटरनेट पर अब गढ़वाळि -कुमाऊंनी लोग हिंदी अर अंग्रेजी छोड़िक अपणी बोली तैं प्रमोट करणा छन । या भावना हिंदी अर अंग्रेजी प्रसार का वास्ता एक जघन्य अपराध च पण भारत सरकार ये जघन्य अपराध तैं रुकणौ कुछ नी करणी च ।
               
          इनि भौत त सि बात छन जो हमारी संस्कृति तैं खतम करणा छन अर सरकार कु कर्तव्य च कि संस्कृति -विध्वंसक माध्यमों पर तुरंत रोक लगाए  जावो । बुद्धिजीवी -चिंतकों को कर्तव्य च कि संस्कृति -विध्वंसक चिंगारी तैं रुकणो बान आन्दोलन की तैयारी कारन ।





Copyright@ Bhishma Kukreti 16/8/2013

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

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                          तंबाकू ब्यापार्युं हड़ताल

                     चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती


प्रजातंत्र मा सरीफ मनिख जैकि  जमीन जायजाद लुठे जावो वो रावो या नि रावो पण धुर्या मनिख को गलत सलत कामौ अधिकार पर जरा ठेस लगदी तो वो इन तड़कद जन बुल्यां ऐटम बम फुटि गे हो धौं ।
ब्याळि महाराष्ट्र का तमsखु   बिचण व़ाळुन हड़ताल त्यौहार मनायि अर मोर्चा लोक -नृत्य-गीत मा भाग ले । कै दिन मोर्चा लोक -नृत्य-गीत सामजिक अधिकार बचाणो   अर सामाजिक चेतना वास्ता प्रयोग हूंदा छा अब मोर्चा लोक -नृत्य-गीत अपण धौंस दिखाणो, अपण ताकत दिखाणो, हैंको अधिकार लुठणो, हैंको  मौतौ इंतजाम करणों, हम कथगा कमीना छंवां -या म्यरो ये क्षेत्र पर क्या रौब च यु दिखाणो बान प्रयोग करे जांद । वो दिन अब इतिहास का हिस्सा ह्वे गेन जब मोर्चा लोक -नृत्य-गीत एक पूज्य नृत्य -गीत माने जांद छौ अब त मोर्चा लोक -नृत्य-गीत एक स्वार्थ पूरक नृत्य -गीत माने जांद ।
अब बताओ महाराष्ट्र सरकारन तमाखु बिक्री कम ह्वावो को इंतजाम करणों बान खुले आम तमाखु बिचणो बाण कुछ नियम स्वीकृत करेन तो तम्बाकू विक्रेता सरकार से चिरड़े गेन , टोबेको सेलर्स सरकार से नराज ह्वे गेन कि लोगुं तैं कैंसर से मारणो लाइसेंस हम से सरकार  नि लूठि सकदी । तम्बाकू विक्रेता संघन मोर्चा घड्यळ उर्यायि कि स्वास  रोग से लोगुं तैं ज़िंदा लाश बणाणो  हमर संवैधानिक अधिकार नि छिने जावन । मोर्चा दिवता जात्रा, घड्यळम  अर भंडारोम जागरी इन जागर लगाणा छया -
जो तम्बाकु से लोगुं तैं मारणो  हमर मूल भूत अधिकार लूठल वै तै हम विधयाक जोग नि रखला । वीं सरकार तैं हम गिराए द्योला ।
जो तम्बाकू से लोगुं मा कैंसर फैलाणो हमर अधिकार पर ठेस लगालो वैकी गद्दी पर हम ढसका लगौला ।
लोगों को मारने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हमें वापस कारो -वापस कारो ।
क्या ह्वाइ जो तम्बाकू सेवन से राज्य मा लाखों लोग मरणा छन पण तम्बाकू विक्री से राज्य को GDP तो बढ़णि च कि ना ? तो GDP क नाम पर - लोगो की हत्या का अधिकार हम तैं वापस कारो-वापस कारो ।
तम्बाकू विक्री समर्थक जागर्युं दलील छे कि हम हर साल कैंसर अस्पताल अर स्वास रोग चिकत्सालय तैं भीख दींदा हि छंवाँ तो फिर तम्बाकू से जन -हत्या रोकणै क्या जरुरत च ?
  प्रजातंत्र मा अब हम खुले आम हत्या करण तैं बि जन्म सिद्ध अधिकार माणदवाँ ।
प्रजातंत्र मा गैर सामाजिक कार्यों तै बि हम संवैधानिक अधिकार बथाण मा नि शर्मांदा ! उल्टां जो हम तैं गैर सामाजिक काम करण से रुकद वै तैं हर तरां से पिटण -चुटणो तयार रौंदा ।
जम्हूरियत पर एक दाग च कि संख्या का बल पर जबरन जम्हूरियत का जनाजा बि निकाळ सकदवां  ।
प्रजातंत्र की एक परेशानी  या बि च बल व्यक्ति हित का वास्ता प्रजासत्तात्मक रास्ता का बल पर   प्रजाहित , जनहित की हत्या बि कराये जांद ।
यो सबि माणदन बल शराब अर तम्बाकू समाज का वास्ता नुकसानकारी च पण राज्य मालगुजारी , राजस्व का नाम पर हम सब खुलेआम मनुष्य -बूचड़खाना बचाणा रौंदा उल्टां मनिखौं तैं काटणौ  बूचड़खानौ याने शराब अर तम्बाकू की फैक्ट्रियों तैं बनि बनिक इमदाद अर कर लाभ बि दींदा जाँ से तम्बाकू अर शराब की फैक्ट्रियां जादा से जादा सामजिक नुकसान कौर साकन । इथगा भयंकर विरोधाभास जनतंत्र मा इ दिखे सकद ।
पण जै प्रजातन्त्र मा संसद या विधान सभा तैं नि चलण  दीण अपण  मौलिक अधिकार ह्वावो अर संसद या विधान सभा चलाण दुसरौ कर्तव्य माने जांद उख खुलेआम , सब्युं समिण  जनसंघार करणों बान सत्याग्रह, मोर्चा बंदी , घेरा बंदी , हड़ताल तो   होलु ही । जै देस मा संसद मा सांसद द्वारा 'भ्रष्टाचार रोकणो  लोकपाल बिल' फाड़े जालो उख मनुष्य हन्ता, जनहत्यारा  तंबाकू निर्माता -तम्बाकू विक्रेता हड़ताल त कारल ही कि -हे सरकार ! तू हमारो मनुष्य हत्या को मौलिक अधिकार तैं नि छीनि सकदी , हे सरकार प्राणी -हत्या हमारो जन्म सिद्ध अधिकार च अर तू हमारो ये हत्या को अधिकार नि लूठी सकदी ।



Copyright@ Bhishma Kukreti 17/8/2013

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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                                                  तेरा हजार की मौज अर तेरा सौ कु फटका

                                                    चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती

                             सि महेन्दर जब बि गाँ या कखि जात्रा मा जावो त  नि बि ह्वावू त साल भर तक अपण जात्रौ समळौण सब्युं तैं सुणाणु  रौंद । अर अपण जात्रा दगड़  विज्ञापनों जन एक स्लोगन या एक नारा चिपटांद नि बिसरद । जन कि गढ़वाळम   कूड़ि -पुंगड़ी उजड़ी गेन , गूणी -बांदर दिन मा गीत लगांदन अर सुंगर रात हंत्या जागर  सुणांदन या गढ़वाळ जाण ह्वावों तो शिमला -मनाली दिखणि चयेंद जना शब्द ।
         याने महेन्दर जब मुंबई से उत्तरी भारतै  की सैर सपाटा कु जावो तो हम तैं साल भर तलक एक स्लोगन सुणण ही पोड़द  ।
              अबैं दै महेन्दर ड़्यार क्या ग्यायि कि दगड़म एक कनफणि सि आण -पखाण बणैक लायि । अब हमन साल भर तलक यो इ आण -पखाण बार -बार सुणण । अबै दै महेन्दर को बुलण च बल ' तेरा हजार की मौज अर तेरा सौ कु फटका' क्या हूंद मि जाणदु !

                                                           किस्सा -ए - तेरा हजार की मौज
     
                     यां अब सि बुबाजीक पैलि बरखी  छे त बुबा बोलिक ड्यार जाणि पोड़ । अब इथगा दूर जाण ह्वावो त रिश्तेदारी निभाणि पोड़द  । अब म्यार सबि स्याळ -सडु भाई ड्यारा डूण रौंदन त  गाँ मा द्वी दिन से जादा रौण बेवकूफी अलावा कुछ नी च । त मि ड्याराडूणम छौ त सबि स्याळि अर सडु भायुंन एक दै क्या ब्वाल कि बुबाक बरखी से फारिक हूणै पार्टी हूण चयेंद । उंकी बात बि सै च अब साल भर की बरजात टुटणम झ्सका -फ़स्का -पार्टी -सार्टी हूणि चयेंद।   मीन सब्युं तै पार्टी दे । हम सौब मसूरी गेवां अर उख होटलम खूब मौज मस्ती कार । तेरा हजार मा इथगा मौज मस्ती कार कि मेरि सबि स्याळि बुलणा छा कि इथगा मटन -मच्छी ऊंन कबि नि खायि अर सबि सडु भायुंक बुलण छौ बल इथगा दारु वूंन यीं जिंदगी मा नि पे ।
   
                     पार्टी मा  स्याऴ-स्याऴयूं अर  सडु भाइयुंक मौज मस्ती से गाँ मा लग्युं  तेरा सौ रूप्या फटका तैं बि बिसरि ग्यों । मेरी वाइफ़ त ये तेरा सौ रुपया फटका तैं भुलण इ नि चांदी अर बुलणि रौंद कि - वा अपण बुबा की बेटी नी च जब तलक वा अपण द्यूराण -जिठाण से  तेरा सौ रूप्या नि उगालि । यू तेरा सौ रूप्या हमर जिकुड़ि पर इन करकणु च जन बुल्यां छै इंचौ  खुब्या पुड्युं ह्वावो । 

                                             अफ़साना -ए -तेरा सौ रूप्या फटका
                                   
               अरे साबि जाणदन कि भाइ बांट क्या हूंद । भायुं बीच पाई-पाई अर रति-रति क हिसाब करे जांद पण अबै दै म्यार भयुंन  धोका दे द्यायि ।
  अरे मि तै पता हूंद बल म्यार तेरा सौ रूप्या डूबि जाला त मि कबि कबि कीसा उंद हात नि घऴदू ! ह्वाइ क्या च हम सबि भायुंन बुबाजीक बरखि कुण पैलि हिसाब लगाई आल छौ अर सब्युंन अपण अपण हिस्सा को नौ हजार एक सौ तिरासी रूप्या अर उनतालीस पैसा गां मा रौण वाळ भाइकुण भेजि आल छौ । अर फिर हम तैं बरखि  मा कुछ नि करण छौ बस मेमान जन शामिल हूण छौ । पण ऐन बरखि सूबेर पता चौल कि बामणु अर बैण भणजुं  बान एकै साफा अर एकै गिलास लाण त बिसरि गेंवां । अर ना हि यांक बान पैसा कट्ठा करे गे छौ । अब जगता सगती मा मि तै बजार जाण पोड़ अर ठीक सतरा सौ अड़तालीस रूप्या मा साफा अर गिलास लाण पोड़़ेन अर ये हिसाब से म्यार भायुं तैं मि तैं तेरा सौ रूप्या दीण छौ । बरखि स्याम तलक सही  हिसाबन निपडि गे । फिर रात जब मीन सब्युं से तेरा सौ रूप्या मांगीं तो सबि इना उनाक बात करण बिसे गेन । सबि बुलणा रैन बल सुबेर दे द्योला -सुबेर दे द्योला ।
 सुबेर मी तैं ड्याराड़ूण आण छौ अर म्यार बुलण पर बि कैन बि पैसा नि देन ।
              में से जादा मेरि वाइफ़ तै बुरु लगणु च बल खां -मा -खां तेरा सौ रुपया फटका लगी गे ।

Copyright@ Bhishma Kukreti 20 /8/2013






[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

Bhishma Kukreti

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                                     प्याज ! त्यार कथगा रूप ?

                               चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती


   इतिहास बतांदो बल मनिख  पांच हजार साल पैल प्याज खाण सीखि गे छौ ।  इतियासकार बुल्दन बल सबसे पैल पाकिस्तान अर इरान मा प्याजै खेती पवाण लग ।  चीन मा पांच  हजार साल पैल प्याजौ सग्वड़ हॊन्दा  छा । पुरण जमन मा यूनानी (ग्रीक ) बि प्याज तैं दवा माणदा  छा ।
                     कबि प्याज गरीब -गुरबों खाणो छौ बल  एक जखेली प्याज मा चार रुटि खै ल्यावो ! इजिप्ट /मिश्र मा पिरामिड बणाण वाळ मजदुर कच्चो  प्याज अर मूळी मा रुटि खांद छया । मिश्र मा प्याज तैं पुजद बि छा ।
आज प्याज का भौत सा रूप ह्वे गेन अब प्याज गरीबुं से भौत दूर ह्वे ग्यायि । जु प्रेम भाव कबि छौ, प्याजौ वो प्रेम भाव अब गरीबों पर नि रै गे  ।
अब प्याज अमीरुं जीमणु   पंगत मा दिखेंद या काळो बजार्युं क्वा ठों या गोदानुं मा । प्याज अब एक रत्न ह्वे ग्यायि जै पर अब केवल धनी लोगुं कब्जा च ।
हाँ अब धनी लोग पंचकवल का रूप मा दीन -दुखी -कोढियूँ तैं प्याज दान /भीख दीन्दन ।
आजाद भारत का रानीतिक इतिहास मा प्याजकथा अब  पंचगीत कथाओं मा से एक कथा च - इमरजेंसी , दिल्ली मा जनता राज , एच डी देव गौड़ा प्रधान मंत्री बणण, बोफोर्स कांड अर मैंगु प्याज से भाजापा राज्य सरकारूं  पतन। प्याज वोट मापक यंत्र ह्वे ग्यायि। प्याज की कीमतुं  से पता   चलदो बल लोग कैं पार्टी वोट द्याला ।
              प्याज कमाण वाळ (पैदा करण वाळ ) प्रदेस खासकर महाराष्ट्र का प्याज ब्यापारी प्याज की कीमत उंद -उब कौरिक राज्य सरकारूं निंद खराब करणा रौंदन । प्याज अब एक खेल बि ह्वे गे जैमा गरीब लोग बगैर मौत का ही  मरणा रौंदन ।
              प्याज रुलांद च गरीबों तैं अर जैं पार्टी तैं प्याजौ कारण बोट नि मिल्दन । किसानुं तैं जो दिखदन बल हम तैं त पांच रुपया कीलो ही मिल्दन पण बजार मा साठ रूप्या कीलो प्याज बिकणु च ।
           प्याज हंसांद च केवल काळुबजार वाळु तैं अर बीचवाळ बणियों तैं ।
             हमार उदार आर्थिक नीति का यि कुहाल छन बल पैल हम एक रूप्या लेक थैला भर प्याज लांद छया अब थैला भौरिक रूप्या मा एक दाणि प्याज आंद  ।
            प्याज अब राजनैतिक -आर्थिक तांत्रिक विद्या  मा पंचचक्र च -प्याज राज चक्र, प्याज भंडारीकरण  चक्र , प्याज बिचौलिया चक्र , प्याज निर्यात चक्र , प्याज मंडी चक्र । हरेक चक्र मा कथगा इ चक्रव्यूह छन जै तै आम जनता पार नि करी सकदी । प्याज का भीतर उथगा परत (छुक्यल) नि होंदन जथगा  कृषक से आम जनता तक प्याज पौंछाणो बीच मा परत (बिचौलिया ) होंदन । हरेक छुक्यल इथगा मुनाफ़ा कमांदु कि जनता की टक अर कमर ही टुटि जांद ।
   प्याज अब केवल प्याज नि रै ग्यायी बलकणम प्याज अब संसद अर विधान सभा मा व्यवधान पैदा करण को माहामारी हथियार ह्वे ग्यायि प्याज अब संसद अर विधान सभा की कार्यवाही स्थगित करणों एक विध्वंसक आयुध ह्वे ग्यायि । राजनैतिक पार्ट्यु बान प्याज हुंकार च डुंकरताळ च । प्याजै कीमत आम जनता का बान हुंडन (सुन्न ) होणै  एक जहर च, जहरीला  अनेस्थिया च ।
         प्याज अब सामाजिक रुतबा पाणों एक आभूषण ह्वे ग्यायि जो प्याज खांदो वो ही मातबर माने जांद ।
          प्याज अब गरीबों बान हीण,छ्वाड़ -तीरौ  , दीन, तुच्छ , नाचीज , हूणो निसाणी च। प्याज आम मनिखों बान  कमजोर हूणो  सूचक च ।
               प्याज की बेलगाम बढ़दी  कीमत बथांद बल भारतंम  कुरज्या फ़ैलि गे । प्याज की कीमतों मा असामयिक वृद्धि सिद्ध करदी कि भारतम अधेरगर्दी को राज च । प्याज की अंदादुंद मूल्यवृद्धि बथांदि की हिन्दुस्तान मा काणा -अंधा -बहरा -संज्ञाशून्य  राज करणा  छन  ।
              जु प्याज की कीमतों तैं स्थिर नि कौर सकणा छन वु बेशरम , बेहया लोग खाद्य सुरक्षा की बात कौरिक आम लोगुं बीच बजार मा बेज्जती करणा छन ।
               जु प्याज जन आम खाद्य पदार्थ तैं आम खाद्य पदार्थ नि राख साकल वु क्या भारत तैं खाद्य सुरक्षा द्याल ?


Copyright@ Bhishma Kukreti 22  /8/2013






[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

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सन्  2113 मा ब्यौ छ्वीं कन लगलि !

                                चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती

                सन्  2113 तक आंद आंद विवाह संस्था या मैरिज इंस्टीट्युसन प्रथा इन नि रालि जन आज च । अंतरजातीय ब्यौ ,  जब नि निभो या जब मर्जी आवो तब तलाक दे द्यावो प्रथा से जाति -पांतों भेदभाव ख़तम ह्वे जालो । हाँ नाम मातरो नामौ आखिरम पिटा की जाति लगाणो रिवाज जरुर रालो ।
  तब शहरों मा अधिकाँशत: ब्वे-बाबुं तैं अपण बच्चों बान वर -ब्योलि खुज्याणो जरुरत कमि पोड़लि , पण नई जाति व्यवस्था अवश्य ऐ जालि किलैकि वर्ग , वर्गी करण, जाति व्यवस्था कबि खतम नि ह्वे सकदी।
एक नौनु ऑफिस जांद जांद अपण बुबा जी  मा ब्वालल - डैड मि परस्यूं ब्यौ करणु छौं जऱा कै पंडितौ कुंण बोलि दियां कि अधा घंटा कुण होटल मी लार्ड मा सवा छै बजि ऐ जावो ।
बुबा - ओ त ठीक च पण नौनी खानदान (इंटरनेट कु सोसल मीडिया या फेस बुक को ग्रुप ) क्वा च ?
नौनु -डैड शी बिलौंग्स टु वीमेन लेबर क्लास सोसल ग्रुप ।
बाबु -अरे शरम नि आणि त्वे तैं लेबर क्लास ग्रुप की नौनि से ब्यौ करद ? अरे आखिर म्यार सोसल ग्रुप च -प्रोबेसनरी ऑफिसर ग्रुप , तेरि ब्वेक सोसल ग्रुप च 'खांद पींद घौरौ जनानी ग्रुप ' अर तू बि त 'प्रोमिसिंग ग्रुप' कु छे । फिर क्या जरुरत छे लेबर ग्रुप की नौनि दगड़ ब्यौ करणों ?
नौनु - डैड बेकार होलि त तिसर दिन तलाक दे द्योलु । क्या च ?
बुबा - अबे तलाक दीण क्वी मजाक बात च क्या ? तेरि पैलि मौस्याण ब्वे याने तेरो बड़ो भाइक ब्वे छे । दिख्याणम बांद छे ।  डेटिंग मा त वीन बोलि दे कि वा 'पतिव्रता नारी सोसल ग्रुप' की सदस्य च । अर ब्यौ बाद पता चौल कि असल मा वा 'घुमन्तु आत्मा ' सोसल ग्रुप की सदस्य च । तलाक लीणो बाद मि आज तक   दस लाख रूप्या मैना वींको डांड भरणु छौ अर त्यार  बड़ो भाई तैं पाळ स्यु अलग । डेटिंग कैको बि दगड़ कारो पण ब्यौ करण त नौनिक सोसल ग्रुप थोक बजैक , देखि भाळिक करण । निथर म्यार तरां पछ्तैलि अर सरा जिंदगी तलाको पैसा भरणि रैलि !
नौनु - नो डैड ! मि तैं भरवस च कि वा ठीक रालि । छ्वट सोसल ग्रुप की नौनि बड़ो सोसल ग्रुप का घौर आवो त वा जरा डरीं बि रौन्दि !
ब्वे - पण तीन दिन पैल त तू कैं हैंकि दगड़ डेट पर गै छौ ।
नौनु - हाँ मॉम ! वा 'इलिट वीमेन' सोसल ग्रुप जातिक छे अर  जब वीं तैं पता चौल कि मि 'प्रोविंसियल   क्लरिकल' सोसल ग्रुप कु सदस्य छौ त वींन होटलम डिसाणम ( बिस्तरा मा)  इ   ब्यौ करण से मना करि दे ।
ब्वै - बुबा अंक्वैक हां । इन नि ह्वावो जु लीणो -दीण पोड़ी जावन हाँ !
नौनु - अच्छा डैड -मॉम ! मि अब ऑफिस चलदो, उखि नेट वीडिओ कौनफ्रेंसिंग से हम  बात कौरि ल्योला ! हाँ ब्वे तू अपण तरफांन छै आदिम अर बुबा जी अपण तरफांन तुम सात आदिम ब्यौ मा बुलै देन । म्यार बजेट जादा नी  च । सी यू ऐट  नाईट ।
  तब सोसल ग्रुप से मनिख़ -मनिख्याणि औकात , सक्यात, पछ्याणक , आचार -विचार का   पता चौललि अर ब्यौ करणों आधार इन्टरनेट सोसल ग्रुप ह्वे जालो पण सरकारी कर्मचारी इन्टरनेट सोसल ग्रुपुं से अलग फैदा उठाला । जन कि -
नौनि - डैड -मौम ! मि श्याम दै ब्यौ करणु छौं !
ब्वे - कैक दगड़ ? सुभाशौ दगड़ ? जैक दगड़  नितरसि डेटिंग पर गे छे ? सोसल ग्रुप तो वैक भलो छौ -'हाई क्लास ऑफिसर ग्रुप' ?
नौनि - हाँ सोसल ग्रुप तो वैक  में से बड़ो छौ पण मॉम सरकारी अधिकारी ह्वेक बि वो घूस नि लींद ।  मि तैं जब पता चौल कि वू घूस नि लींद त मीन बेड  मा जाण से पैलि ब्यौव कुण ना बोलि दे।
बुबा - ठीक कार जु ना बोलि दे । अरे ! सरकारी नौकरी मा ह्वेक बि घूस नि ल्यावो तो वै से बेकार मनिख ईं दुन्याम ह्वे इ नि सकदन । रोज यूंक ट्रांसफर हूणु रौंद अर गली का कुत्ता जन जिंदगी कबि  ये शहर या कबि वै शहर डबकणा रौंदन ।
ब्वै -अच्छा ! इन बथादि कि यु नौनु कै सोसल ग्रुपौ च ?
नौनि -  'लेफ्ट विंग राइटर संघ' सोसल ग्रुप को मेम्बर  च ।
ब्वै - ये निर्भागण ! क्या करणि छे तू ? एक त लेखक अर फिर लेफ्ट विंग ! एक त करेला कु दगड्या गींठी अर फिर नीमौ डाळम  । तेरी कमाई खाण वै लेखकन । अबि बि बगत च , ना बोलि दे तै निक्कजो लेखक तैं ।
नौनि - ओ मॉम ! 'लेफ्ट विंग राइटर संघ' सोसल ग्रुप तो सिरफ एक कवर अप सोसल ग्रुप च ।
बुबा -कवर अप सोसल ग्रुप ?
नौनि - हां डैड ! असल मा उ त सेल्स टैक्स विभाग मा क्लर्क च अर वैकि अंडर द टेबल कि बेहंत कमाई च त असलियत  छुपाणो बाण वो 'लेफ्ट विंग राइटर संघ' सोसल ग्रुप को मेम्बर बण्यु च । यीं उम्र मा वैक द्वी फ़ार्म हाउस छन अर कोर्ट मैरिज करदा करदा वो एक फ़ार्म हॉउस म्यार नाम कौरि द्यालो । फिर तलाक ह्वे बि ग्यायि तो क्या ह्वाइ !
बुबा - हाँ फिर ठीक च । उन होशियार त तू अपणि ब्वेक तरां छे हाँ !
नौनि - ओ डैड ! थैंक्स फॉर कंप्लिमेंट्स  । अच्छा आइ  ऐम ग्रेटली सौरि मि तुम तैं ब्यौकुण न्यूत नि दे सकणु छौं । किलैकि ब्यौ मा केवल सेल्स टैक्स क्लर्क अर टैक्स चोर कंपन्यूं मालिक  बुलायां छन । एक फ्रॉड मा फंस्युं व्यापारी शादी स्पोंसर करणु च। रिस्तेदारुं वास्ता अगला हफ्ता फार्म हॉउस मा पार्टी च ।
बुबा - डार्लिंग चिंता नी च । हम तै याही ख़ुशी भौत च कि तीन एक कमाऊ बकरा फंसाइ ! एक बात बथादि तीन यु कमाउ बुगठ्या कनै फ़ंसाइ ?
नौनि - एक्सचेंज मा ।
ब्वै -अदला बदली मा ?
नौनि -हाँ ! वा मरी सहेली नी च गबरेली !
बुबा - जैंमा अपण नाना की करोड़ो की जायजाद च ?
नौनि - हाँ ! वीं तैं सत्यवादी सरकारी अधिकारी चयाणु छौ अर मि तैं कमाउ सरकारी अधिकारी । बस हमन अपण अपण डेटिंग  दोस्त बदली देन । अब हम द्वी खुस छंवां
बुबा -ब्वै - वी आर प्राउड ऑफ़ यू !


      Copyright@ Bhishma Kukreti 23  /8/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 



Bhishma Kukreti

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                      सन्  2113 मा हिंवल-गंगा संगम फूल चट्टी मा अग्यौ अर उपद्रव

                                   चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती           

         
              सन्  2114  सालम  भारतम आम चुनाव होला त इंडिया की हरेक स्ट्रीट 2113 में गृह युद्ध मैदान बणि जालो । चूंकि आन्दोलनकारी , आन्दोलन विरोधी अर आम जनता तैं अयोध्या मुद्दा से बिखळाण पोड़ि जाल तो राजनैतिक लोग  धर्म का नाम पर नया नया जगौं पर   धार्मिक विवाद खड़ा करि द्याला अर इनि एक निसुऴजण्या विवाद फूल चट्टी मा पैदा खड़ा कर दिए जालु । उन त बकै समय पर कुत्ता बि फूलचट्टी  तैं पुछणो नि आंदो पण जनि चुनाव नजीक आंदन हरेक रानीतिक दल पूंछ उठैक फूलचट्टी  तैं गृह  युद्ध का मैदान बणै दींदन। अब फूलचट्टी  भारत का राजनैतिक दलों कारण इथगा  प्रसिद्ध   ह्वे ग्यायि कि अमेरिका , अफ्रीका का पाठ्यपुस्तकों मा बि फूलचट्टी  विषय 'फूलचट्टी  एक आधुनिक युद्ध स्थल ' नाम से पढ़ाये जांद अब यूँ देसूं मा कुरुक्षेत्र का बारा मा नि पढ़ाये जांद किलैकि हिन्दुस्तान की साख गिराणो बान फूलचट्टी  जि ऐ गे ।

              अब जन कि सन् 2114 चुनावों साल होलु  त अवश्य ही 2113 उपद्रवों साल होलु । हमेशा की तरह अब फूलचट्टी  मा बि युद्ध का डंका बजि गेन । इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन तैं याद आयि कि अबि बि फूलचट्टी  को विवाद तो सुऴजि नी च तो यीं संस्थान फूलचट्टीम बिखोती समौ पर जो फूलचट्टी  मादेव की परिक्रमा होंदी छे वीं परिक्रमा तैं सरादुं  बगत करणों निर्णय ल्यायि अर राज्य सरकार तैं बतै द्यायि कि हमन सरादुं टैम पर फूलपुर मादेव की परिक्रमा करण अर इन बि बथाइ बल या परिक्रमा हिंवल उद्गम स्थान चैलुसैण से  पौखाल, बगुड्या, गड़बड़ेथ, कटघर ह्वेक फूलचट्टी  पौंछलि  । उत्तराखंड मा समाजवादी पार्टी को राज च त मुख्य मंत्री विनोद बडथ्वाल  इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन की परिक्रमा से बितकि गेन । बडथ्वालन घोषणा कार कि ईं परिक्रमा से उत्तराखंड का त ना पण हौर प्रदेश का मुसलमान भड़की जाल तो सरकार यीं परिक्रमा तै नि होण देलि ।
  सरा दुन्या का हिन्दू परेशान छन  कि फूलचट्टी  मा सरादुं मा क्यांक परिक्रमा ? अर हिन्दुस्तान का मुसलमान परेशान कि कैन ब्वाल कि हिन्दुस्तान का मुसलमान फूलचट्टी  मादेव की परिक्रमा से भड़की जाल ? मुसलमानों नेताओंन बयांन  बि देन कि पौड़ी गढ़वाल की ढांगू -उदयपुर , अजमेर , डबराल स्यूं , लंगूर पट्टीयूं  मा क्वी बि मुसलमान नि रौंद त हिन्दू लोग जु चावन सि कारन । पण समाजवादी पार्टी का विनोद बडथ्वाल तैं धार्मिक विवाद बढ़णो खतरा लग तो ऊंन सबि इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन का नेताओं तैं जेलम बंद करि दे   अर अब वास्तव मा माहौल तनावपूर्ण ह्वे ग्यायि । इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन का नेता त चांदा हि इ छा कि समाजवादी पार्टी की सरकार वूंकी परिक्रमा रोकन अर समाजवादी पार्टी बि चांदी छे कि इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन परिक्रमा अर फूलचट्टी  की बात उठावन जां से समाजवादी पार्टी मुसलमानों खैरख्वाव पार्टी माने जावो । सब तैं पता च अब ऐ साल फूल चट्टी का नाम पर बहुत सा जगा धर्म का नाम पर अग्यौ अर उपद्रव जरूर होला ।
       पण ढांगु -उदयपुर का लोग आहत  छन कि वूंकी ज्वा  समस्या च वा तो पिछला पचास  साल से जख्या -क तखी च ।  असल मा जब बिटेन मोटर सड़क बणिन त  ढांगू -उदयपुर , अजमीर  , डबरालस्यूं , लंगूर पट्टीयूं  लोग अपण मुर्दा जळाणो फूलचट्टी आण बिसे गेन । पण फूलचट्टीम हमेशा से लखडु कमी रौंद त लोगुंन निर्णय ले कि इलेक्ट्रिक चिता दहन कक्ष बणये जावो । यूं पट्टीयूं  लोगुंन अपण गेडिन रूप्या देकि इलेक्ट्रिक चिता दहन कक्ष की पौ (आधार ) खोदि दे । यांकि  खबर इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन अजमीर पट्टी  शाखा प्रभारी ऋषि कंडवाल तैं लग तो ऊँन घोषणा करी दे कि एलेइक्ट्रिक  दहन कक्ष याने हिन्दू धर्म को नाश ! अयोध्या आन्दोलन अब चलदो नि  छौ अर कृष्ण जन्म भूमि या बाबा विश्वनाथ मंदिर आन्दोलन मा कबि बि गर्मी नि आयि तो इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन निराश बैठ्या छा ।  ये ऑर्गेनाइजेशन तैं फूल चट्टी माँ संभावना नजर आयि अर वूंन घोषणा कौरि दे कि वो औंसी रात इलेक्ट्रिक चिता दहन कक्ष की पौ (आधार ) तै ध्वस्त कौरि देला अर वै बगता मुख्य मंत्री सचिदा नन्द बडथ्वाल (विनोद  बडथ्वाल का बुबा जी ) न घोषणा करी दे कि इलेक्ट्रिक चिता दहन कक्ष की पौ (आधार ) तै ध्वस्त करणों अर्थ च कि अल्प संख्यकों की धार्मिक भावना को ठेस ! अर सचिदा नन्द बडथ्वाल की सरकारन इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन का आन्दोलन कार्युं पर गोली चलवाइ दे । बस हिन्दू अर अल्प संख्यक समाज का मध्य तनाव पैदा ह्वे ग्यायि । तनाव न अंतर्राष्ट्रीय रूप ले ल्यायि अर पाकिस्तान का चार हिंदू परिवार पकिस्तान छोड़ि भारत ऐ गेन । अब फूल चट्टी राजनैतिक अर धार्मिक अखाड़ा बौणि गे ।

            जब बि आम चुनाव नजीक आंद इन्टरनशनल हिन्दू ओर्गेनाइजेसन फूल चट्टी मा कुछ ना कुछ आन्दोलन करद अर  विरोध मा इन्टरनशनल अल्प संख्यक ओर्गेनाइजेसन हैदराबाद , अलीगढ आदि जगा सरकारी बस फुकण मिसे जांदन ।
        बाइसवीं सदी मा असंख्य बदलाव ऐ गेन पण स्वार्थी राजनैतिक अर धार्मिक नेताओं को कुचक्र , कुचाल, कागरी (हीन ) रस्ता , कुराही , कुजंत्र , कुचर्या , नि बदल अर जनता यूँका जाळ मा फंसणि रौंद ।

Copyright@ Bhishma Kukreti 24/8/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

Bhishma Kukreti

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साहित्यकारुं कलम की  आग कख झौड़ धौं !

                                     चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती


         
                            सबि भारतीय असमंजसम छन , दुविधा मा  भैर -भितर कारण खुजणा  छन , क्वी अफु तैं इ टटोळणा छन,  संदेह मा इना उना हजारों लोगुं तैं पुच्छणा छन ,  संशय मा रौंका धौंकी करणा छन, भौत सा सोची -सोचिक सुन्नताल मा बा काटणा छन -गोता लगाणा छन । फिर बि ये प्रश्नौ जबाब दुरत्यय (निजबाबी) ह्वे ग्यायि बल भारतम साहित्यकारों कलमै आग ठंडी किलै ह्वै, कवियों फ़ौज लाखों मा च पण कैक  बि  कविताम आग नि दिख्याणि च अर जु बुलणा बि छन कि उंकी कविता मा आग च त वा आग नौणि-घ्यू नि जळै  सकणि च वा आग बखरूं तैं क्या भड़्याली ? वीं आगै तैंची -तपन-गरमी  भारतबास्युं बरफन  ढक्यूँ   जिकुड़-ह्रदय  क्या गरम कारलि ? कथगा ही लोगुं मानण च बल बल फलणा लेखनी बरछा , भाला तलवार च , खुंकरीक नोक जन नोकीली च । ठीक च पण ज्वा कलम कांड गाडणम हि खुंडे जावो वा कलम भारतवास्युं तैं क्या घचकालि ? तथगा विचारक  बुल्दन बल तैकि कलम मा न्यूक्लियर बम भर्युं च पण खारु  इन जम्युं च बल ज्वा कलम पटाखा आवाज नि दबै साकलि वा कलम भारतवास्युं  कुम्भकरणी निंद क्या बिजाळली !
 
                  अजकाल भारतं प्रजातंत्र का नाम पर जु बेराजि  हुयुं च , प्रजा तन्त्र का नाम पर भारतीय उद्यम पर बड्रा जन बिचौलियों कब्जा हुयूं च , सी बी आई  प्रजा तन्त्र का नाम पर कोयला खदान आबंटन की काळी -गोरी -लाल-हरी फाइल हरचणि छन । कॉमन  वेल्थ खेलुं नाम पर रिशवतखोरि चौपड़ खिल्याणि छन । कोलेसन सरकार  की मजबूर्युं नाम पर टू जी घोटाला तै सही ठहरै जांद।  विरोध का नाम पर संसद हि नि चलण दिए जांद । रिफार्म  का नाम पर धरती फ़ोकट मा धनियों तैं दिए जांद । रिफौर्म करद दै  भारतीय भूगोल , इतिहास अर संस्कृति को क्वी ख्याल नि रखे जांद कि रिफौर्म से फैदा ह्वावो । इन स्थिति मा  आज भारत तैं एक कलम चयाणि च , एक आवाज चयाणि च ।
            भारत मा समौ समौ पर कलमी आवाज ह्वेन जौन भारत मा भारतीयों को मन ही बदल द्यायि अर सामजिक -सांस्कृतिक क्रान्ति लैन ।
          दूर क्या जाणै जरा गोस्वामी तुलसी दास तैं हि देखि ल्यावो । तुलसीदास की सबि रामचरित मानस का बान याद करदन पण तुलसीदास को क्रांतिकारी साहित्य रामचरित मानस नि छौ. राम चरित्र तो महाभारत का बगत से ही भारतम प्रचलित छौ तो राम चरित मानस क्रांति कारी साहित्य ह्वेइ नि सकेंद । बलकणम तुलसिदासौ क्रांतिकारी साहित्य 'हनुमान चालीसा ' ही छे  (यद्यपि हनुमान का बारा मा माधवा चार्यन बि लेखी छौ ) । आज अवधि मा लिखीं 'हनुमान चालीसा ' ही हरेक भारितीय भाषाओं मा ही पढ़े जांद ।  तमिल -तेलगू की हनुमान चालीसा वास्तव मा अवधी हनुमान चालीसा ही च । तुलसी दासक  हनुमान चालीसा से पैल हनुमान का अकेला  मन्दिर भारत मा तकरीबन नि छ पण 'हनुमान चालीसा '  भारत मा एक सांस्कृतिक क्रांति लायी अर भारतं हनुमान मन्दिरों स्थापना शुरू ह्वाइ । तबि त हनुमान मन्दिरों पर इस्लामी स्थाप्य कला को भरपूर प्रभाव च (एक उदहारण -गोल गुम्बद ) । हनुमान चालीसा अफिक भारत का प्रत्येक हिस्सा मा प्रसिद्ध ह्वाइ ।
                पण अब भारतम भारत लैक कलम जनम नि लीणा छन । जब कि आज भारतम एक क्रांतिकारी कलम की जरूरत च तख पलायनवादी साहित्य , तिकड़मी साहित्य ही जादा रच्याणु च । चाहे सवर्ण  या चाहे दलित साहित्यकारुं साहित्य ह्वावो यदि भ्रष्ट समाज या नीति विरोध को साहित्य लिख्याणु बि च तो वो केवल विरोध तैं उद्येश्य से लिख्याणु च अर जब विरोध उद्येश्य ह्वावो तो विरोध ही पैदा होलु । आज समाज लैक साहित्य गुम  ह्वे ग्यायी तभी तो साहित्यकारों साहित्य क्वी मन्दिर नि बणवै सकणु च जन हनुमान चालिसान भारत मा हनुमान मन्दिर बणाणो शक्ति लायि छौ । आज साहित्यकार अपण विचारूं  बान लड़णु च अर समाज को बान नी लड़णु च । आज का साहित्यकारूं कुण अपण विचार महत्वपूर्ण ह्वे गेन अर समाज गौण तो समाज साहित्य से मनोरंजन जरुर प्राप्त करणु च , मजा जरुर लीणु च पण समाज भारत की तकदीर बदलणों बान खड़ो नि होणु च किलैकि जो साहित्य वो बंचणु च , पढ़णु च वो क्वी ख़ास विचार पढ़णु च जखमा विचार समाज पर भारी पड़णु च, जखमा विचार महत्वपूर्ण च अर समाज पैथर च। इन परिस्थिति मा साहित्यकारों साहित्य से सम्पूर्ण क्रांति -बदलाव की संभावना छैंइ नी च ।
 'समाज सर्वोपरी'च दिखणाइ त हनुमान चालीसा बांचो अर तुम पैल्या कि इखमा समाज को भय दूर करणै बात महत्वपूर्ण च ना की हनुमान तै दिवता बणाणो विचारधारा । जब कि आज का साहित्यकार अपण विचारधरा तैं पैल दिवता बणाण चाणु च अर समाज की भलाई वांक बाद । अरे समाज तैं अग्वाड़ि लैल्या त तुमर विचार अफिक दिवता बणि जाला ।
  साहित्यकारों का बीच लड़ाई यांक नी च कि समाज  मा बदलाव  लाये जावो बलकणम लडै यांक च कि कैका  विचार क्रांतिकारी छन। साहित्यकारों बीच अपण विचारों तैं दिवता बणाणो झगड़ा चलणु च, प्रतियोगिता चलणि च । धार्मिक साहित्यकार त विचारूं गुलाम इन छन कि क्या बुल हिंदु धार्मिक साहित्यकार बद्रीनाथ इलाका का बुगुल-कुणज समोदरा छल पर उगाणो बात करद अर मुसलमान धार्मिक साहित्यकार बद्रीनाथ इलाका मा रोज तुड़णो बान बद्रीनाथ इलाका मा खजूर वृक्षारोपण करणु च । साहित्य मा केवल अपण विचार महत्वपूर्ण ह्वे गै अर समाज धरातल तौळ दबाये जाणु च ।
 अर इनमा अपण विचारों का प्रति लगाव से ही कलम कुंद ह्वे गेन । अपण विचार ही सर्वोपरी की भावना से लेखनी परमाणु बम नि बणना छन । केवल म्यार विचार ही दुन्या बदल सकदी का विचार ही परिवर्तन गामी कलम पैदा नि होण दीणि च ।


Copyright@ Bhishma Kukreti 25/8/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

 

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