Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 360198 times)

Bhishma Kukreti

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                                    अदबुडेड़ (मध्य  वय ) उमर की पहचान

                                 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )

अदबुडेड़ याने मिडल एज जब आंद त पता इ नि चल्दो बल हम अदबुडेड़ आयु मा छंवां कि बुडे गेवां।  जनता की भारी मांग पर अदबुडेड़ याने मिडल एज की पछ्याणक बताणु छौं !
जब तुम तैं लग बल तुमर सरैल धोकादारी करणु च त समजण चएंद तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब बि तुम तैं लग बल तुम तैं छोड़ि सबि जवान छन तो इक मा सुचणै जरोरात नि रै जांद कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुमर खुचर्याट करण पर बि  टिकेट  कलक्टर रेल मा तुम तै वरिष्ठ नागरिक वळ  डिस्काउंट की सुविधा नि द्यावो  तो अवश्य ही तुम अदबुडेड़ याने मिडल एज मा ही छंवां !
जब छुटि दिन याने रवि वारौ खुणि दिन मा घुमणा  जगा तुम सीण पसंद करदा त मानी लेवा कि अब तुमारि अदबुडेड़वी च।
अदबुडेड़ वा वय  ह्वे जब तुम तैं लगद कि अब दुनिया मा जणणन (ज्ञान ) कुण कुछ नि रयुं च।
अदबुडेड़ आयु मा विरोधी लिंग मा उथगा आकर्षण  नि हूंद  जो आकर्षण  कुछ साल पैल दिखेंदी छे। याने की जब दिल मा "कुछ कुछ होता है " भाव पैदा हूण बंद ह्वे जावन तो मनण चएंद कि तुमर उमर  अदबुडेड़ की च।
अदबुडेड़ मा आखर छुट दिखेण मिसे जांदन।
जब अपण कर्याँ कामु तै तुम भुलि जावो तो समजो कि अब अदबुडेड़ छंवां।
जब मृत्यु से डौर लगण बिसे जावो तो समजो कि तुम मिडल एज का ह्वे गेवां।
जब बि तुम तैं अपण नजरौ चश्मा खुज्याणम दिक्कत हूण बिसे जावो तो समजी ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब बि कै जनानी /मर्द से आकर्षण ह्वावो बि अर तुम तै लगद कि तुमम वै जनन /मर्द से मिलणो  समय नी च त समज लीण चएंद कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुमर बच्चा तुम पर कम ध्यान दीण बिसे जावन तो इखमा द्वी राय नि ह्वे सकदन कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुम तैं बाथरूम को बड़ो आइना माँ अपण छवि झूटी  लगदि  तो मानि ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुम " जवान रहने के सौ नुक्से " जन किताब पढ़ण पसंद करदा तो मानि ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।





Copyright@ Bhishma Kukreti  27/10/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

Bhishma Kukreti

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                      वंशवाद प्रजातंत्रौ  वास्ता खतरनाक खतरा !

                               फक्वा बादी :  भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )


नरेंद्र मोदी सचमुच मा शब्दुं खिलाड्यूं गुरु घंटाल च।   द्याखो ना  मजा मजा मा राहुल गांधी तैं ' शहजादा ' बोलिक बोलिक मोदीन सरा दुन्या मा जोरौ भोंपू बजै दे बल राहुल गांधी परिवार वाद -वंशवाद की निशाणि च।
अफु तैं प्रजातंत्रौ प्रमुख प्रहरी मानण वाळ कॉंग्रेसी नरेंद्र मोदी पर भड़क गेन।  शहजादा का चौकीदार या बौडीगार्ड ब्वालो जनार्दन द्विवेदीन धमकी दे दे  बल हम तैं प्रजातंत्र के नि पोड़ी हूंद त हम देखि लींदा कि कन  नरेंद्र मोदी राहुल तैं शहजादा बोल्दू  धौं ! राहुल गांधी को छवि चौकीदार या इमेज गार्ड जनार्दन द्विवेदी सही बुलणु  च।  ये भै कॉंग्रेस कु  बेताज बादशाह तैं नरेन्द्र मोदी शहजादा बोलिक भट्यालु त कॉंग्रेसी हि ना शिव सेना कु  उद्धव ठाकरे या अकाली दल कु प्रकाश  सिंग बादल  तैं बि बुरु लगल कि ना ? नरेन्द्र मोदी हमेशा से हैंक तैं हीण , तुच्छ , छ्वटु समजद ।  जब राहुल गांधी कौंग्रेस का हिसाब से चक्रवर्ती सम्राट च त नरेंद्र मोदी द्वारा राजकुमार या शहजादा बुलण प्रजातंत्र की महा बेज्जती ह्वे कि ना ?
कॉंग्रेसी सही छन।  कौंग्रेस कु मानण च कि शैजादा त साकेत बहुगुणा वल्द जनाब विजय बहुगुणा , या संदीप दीक्षित पुत्र श्रीमती शीला दीक्षित जन छ्वटा -म्वटा प्रजातन्त्री सामंतों या जागीरदारुं बेटा ह्वे सकदन।  महारानी सोनिया गांधी का पुत्र तैं त चक्रवर्ती सम्राट ही बुलण प्रजातन्त्री मर्यादा माने जाल । मी बि कॉंग्रेस्युं दगड़ छौं बल नरेन्द्र मोदी बार बार प्रजातंत्र की मर्यादा तुड़णु च अर चक्रवर्ती सम्राट तैं सिर्फ शहजादा बुलणु च।
भारत मा गणतन्त्र पर परिवारवाद को अन्यायपूर्ण अतिक्रमण , नॉन जुडिसियल इन्क्रोचमेंट क्वी नई बात नी च।   हजारों साल पैल जब भारत मा श्रम विभाजन छौ याने शरीर अर ज्ञान कु हिसाबन काम बांटे जांद छौ तबि   शुक्राचार्य , वृहस्पति या मनु सरीखा दिग्विजय सिंह या जनार्दन द्विवेदी सरीखा ग्यानी ऐन अर ऊंन भ्रम फैलाई कि ब्राह्मण का बेटा ही ब्राह्मण ह्वालु , क्षत्रिय कु पुत्र ही क्षत्रिय ह्वे सकुद अर शिल्पकार का बच्चा केवल शिल्पकार ही ह्वे सकदन अर यां से गणतन्त्र पर जातिवाद को गरण ही नि लग बल्कणम भारत मा सामन्तवाद, साम्राज्यवाद  को अवतरण बि ह्वे ।   
 अचकाल नरेंद्र मोदी कौंग्रेस पर वंशवाद ब्वालो या मनुस्मृति वाद ब्वालो को लांछन रोज लगाणु च।  गूणी अपण लम्बो पूंच  नि दिखदु पण बांदरो कुण ब्वाद बल तैको पूंच लम्बो च।  यो ही हाल भविष्य को भारत को भाग्य बिधाता नरेन्द्र मोदी कु  हाल बि च।  अकाली दल को  वंशवाद वंशवाद नी च , शिव सेना को वंशवाद वंशवाद नी च , कल्याण सिंह को वंशवाद वंशवाद नी च , महारानी टिहरी को वंशवाद वंशवाद नी च , धुमाल को अनुराग ठाकुर वंशवाद वंशवाद नी च , वसुंधरा राजे सिंदिया को वंशवाद त प्रजातंत्र को महल च पण नरेंद्र मोदी तैं केवल और केवल कौंग्रेस को वंशवाद मा ही प्रजातंत्र मा पैरी पड़ण (भूस्खलन ) दिख्याणु च।
अचकाल त कै बि राजनैतिक दल का चुनावी टिकेट बंटवारा बैठक मा द्याखो त घंटों  गम्भीर चर्चा हूंदि  कि विधायक  या सांसद का राजकुमारुं तैं क्व़ा क्व़ा सेफ सीट दिए जावो कि शहजादा बगैर मेहनत से चुनाव जीती जावन ।  जब राजकुमारुं से कुछ सीट बची जावन त फिर द्वी चार सीट हौरुं तै दिए जांद।  प्रजातंत्र माँ वंशवाद से धीरे धीरे जनता मा राजनैतिक संवेदना ही चौपट ह्वे जालि अर प्रजातंत्र को नाम पर सावंतवाद ही बच्युं रालो।
असल मा सबि पार्टी मनुवाद का रस्ता पर चलणा छन कि थोड़ा दिनु  मा केवल  प्रधान का बेटा ही प्रधान बौणल , सिर्फ सरपंच का बेटा ही सरपंच की कुर्सी हथ्यालु , केवल विधायक का बेटा ही विधयक बणल , सांसदुं बेटों तैं ही संसद चुनाव का टिकेट मीलल।
जब  कौंग्रेस या अन्य पार्टी वाळु से  वंशवाद का बारा मा क्वी पत्रकार प्रश्न पूछो त धूर्तता पूर्वक उत्तर दींदन कि तुम पत्रकार तो  लाखों -करोड़ों लोगुं बेज्जती करणा छंवां जौन हमर राजकुमारों तैं जितवाइ। नव सामंत वाद का समर्थन मा यी चकड़ैत ,धुर्या प्रजातंत्र अर जनता की दुहाई दींदन।  हे भै टिकेट तुम दींदा त जनता मा पर्याय क्या च?  जनताक पास  त पर्याय छन  कि सांपनाथ तै चुनो या नागनाथ तैं चुनो या कोबरानाथ तै इलेक्ट करो !
शुक्राचार्य , मनु,  चाण्यक आदियुन बि गणतन्त्र ख़त्म करणों वास्ता इनि बेवकूफ बणाणो कुतर्क अर कथा भारत मा फ़ैलायि छे अर वंशवादी राजतन्त्र अर वंशवादी जातीय व्यवस्था का वास्ता रस्ता बट्याइ।
प्रजातंत्र मा वंशवाद स्वार्थी सामन्तवादी व्यवस्था को सूचक च अर जनतंत्र  तै ये नव सामन्तवाद से बहुत ही खतरनाक  खतरा च।
आज प्रजातंत्र तै  वंशवाद से  उथगा ही खतरा च जथगा खतरा बाहुबलियों , भ्रष्ट नेताओं , घोर अपराधी, बलात्कारी  नेताओं से च।  बस फरक या च कि प्रजातन्त्री वंशवाद को गू -मोळ पर चांदी का वर्क चढ्यूं च।   




    Copyright@ Bhishma Kukreti  28/10/2013


Bhishma Kukreti

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                                      पलायन   क्या  च ?

                                 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )
पलयन एक भयंकर घटना होलि तबि त जु सद्यनौ कुण   प्रवासी ह्वे जांदन अर जु प्रवासी बणणो आतुर्दि मा रौंदन वु द्वि चटेलिक  पलायन तैं गाळि  दीणा रौंदन।
पलायन गाळि दींणै चीज च। पलायन तैं गाळि दीणो पाखंड हरेक पहाड़ी करणु रौंद। पलायन  समज से परे च।
पहाड़ों से पलायन इन पंक (कीचड़ ) च जै मा  हरेक पहाड़ी पँचक्रीड़ा करदो  पण दगड़ मा दुसरो कुण बुलद तू पलायन नि कौर !
हरेक पहाड़ी पलायन की पंचकोशी यात्रा वास्ता सदा तत्पर रौंद पण बाद मा सरकार से निवेदन बि करद बल या  पंचकोशी यात्रा बंद हूण चयेंद।
पहाड्यूं  आर्थिक दशा सुधारणो बान पलायन पंचकषाय (पांच वृक्षों का मिश्रित कसैला द्रव्य ) दवा च पण दगड़म जनि दशा ठीक हूंद रोगी यी दवा तै थू थू करण बिसे जांद।
पलायन से पैल प्रवास पंचरंगा सुपिन हूंद पण जनि सुपिन सही ह्वे जांद हम प्रवास तै बेबसी नाम दे दींदा।
हम सब पहाड़ी पलायन का पंथी छंवां फिर बि पलायन तैं अभिशाप बुलदवां।
हम पलायन रुकणो बान पक्षाभास (झूठी अर्जी ) करदां असल मा क्वी नि चांदो कि पलायन पर पक्षाघात रोग लग जावो ।
हम पलायनै  अगली पंक्ति मा खड़ ह्वैक पैथर वाळु  तै अड़ान्दा कि पलायन नि कारो।
पलायन तैं रुकणो बान हरेक माथापच्ची करदो पण व्यवहारिक स्तर पर क्वी बि पलायन  रुकणो पचड़ा मा अफु नि पड़ण चांद।
जब बि क्वी  विरोधी दल मा हूंद त वै तैं पहाड़ो से पलायन रुकणै  फिकर पड़ी रौंद अर जनि वो मंत्री -संतरी बौण जांद पलायन क्वी समस्या ही नि रै जांद।
पलायन रुकणो विषयों पर भाषण अवश्य हूँदन पण सरकारी योजनाउं  मा पलायन रुकणो बान क्वी सटीक पॉलिसी , प्लानिंग , योजना नि होंदन।
कवियों -लेखकों -विचारकों बान पलायन एक विशेष अर लाडलो विषय च अर इलै हरेक कवि -लेखक -विचारक पलायन तै अनुभव करणो बान मैदान मा बंगलो खोज मा रौंद।
पलायन एक अनाथ , कोढ़ी बच्चा च जै पर सब तै केवल दया आंद।
पलायन सब तैं परिमूढ़ करद पण सबि पलायन का कब्जा मा हि रौण चांदन ।
फेस बुक मा उजड़ी कुड़ी , टुटि तिबारी -डिंडळि कि फोटो like करणै चीज च अर वांक समाधान पर जब क्वी कुछ ल्याखो त वै लेख तैं क्वी  नि पढ़दो। 
पलायन की बात करण असल मा मजाक , मसखरी अर मजा लीणो एक माध्यम च। 


Copyright@ Bhishma Kukreti  29 /10/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]



Bhishma Kukreti

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                                                    उर्ख्यळौ  दगड़ छ्वीँ बथा
                                         चबोड़्या -चखन्यौर्या -  भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )
मि उर्ख्यळ से बचिs  कखि जाणु छौ।  पैल हम उर्ख्यळ तैं सम्मान दीणो बान  कि कखि उर्ख्यळ पर खुट नि लग जावन कु कारण से दूर दूर हिटद छा आज इलै फार फार  हिटदा कि कखि उर्ख्यळ हम तैं फ़ोकट मा हमरु भूतकाल , हमर पास्ट नि समळै (याद ) नि द्याओ !
मि  अगनै जाण  इ वाळ थौ  कि बेड़ बिटेन उर्ख्यळन आवाज दे।
उर्ख्यळ- भीषम कख छे  मुक लुकैक जाणु ?
मि -कखि ना।   नजीबाबाद से बस आण वाळ च त दूध लीणो जाणु छौं।
उर्ख्यळ-तुम सब अचकाल अपण पुरण पीढ़ी याने ब्वे -बाब -काका -बाडाउं अर हम उर्ख्यळ या जंदरूं देखि इन भागदां  जन बुल्यां हम क्वी खजि वाळ कुत्ता हुवां धौं !
मि -नै नै इन बात नी  च असल मा तुम लोग हम तै भविष्य से वापस लैक सौ साल पैलाक भूतकाल मा ली जांदां। 
उर्ख्यळ- बकबास करणु छे ?  तुमर पुरण पीढ़ी तुम तैं भूतकाल मा ली जांद ?
मि -अर ना ब्याळि मी लाइटरन चिमनी बळणु  छौ त घना ददा चिरडाण  बिसे गेन बल अहा क्या दिन छा जब हम अग्यल से आग जगांद छा अर द्याखो ईं नई पीढ़ी तैं माचिस अर लाइटर से आग जळान्दन !
उर्ख्यळ-त इखम घना दादान बुरु क्या ब्वाल ?
मि -अरे आज वैज्ञानिक अन्वेषणु से फायदा उठाणो जमानो ही नी च बल्कणम अफिक नया नया अन्वेषण करणो बगत ऐ गए त हमर पुराणि पीढ़ी हम तै हर समय हमारो भूतकाल याद दिलांद अर हम तै नया जमानो दगड़ नि हिटण दींदी।
उर्ख्यळ-ह्यां पण अपण संस्कृतिक याद करण अर कराण बुरु च क्या ?
मि -हां !
उर्ख्यळ-क्या मतबल ? मि तेकुण बुलल कि क्या दिन छा जु तु गरमा गरम चपड़ चूड़ों बान म्यार काखम बैठ्यूं रौंद छौ। जनि तेरि ब्वे चूड़ा कूट ना कि तु खंक्वाळ मरणो तयार !
मि -हां पण अब जब पोहा चौंळ मिलणा छन त उरख्यळम  बैठणो क्या तुक ?
उर्ख्यळ-पण अपण भूतकाल ?
मि -सूण ये उर्ख्यळ ! जब मनुष्य का पास उर्ख्यळ नि छा तो मनुष्य अनाज कनकै कुटद छौ ?
उर्ख्यळ-उफ़ ! हम उर्ख्यळ-गंज्यळु मा लोक कथा च बल तब बिचारा मनिख ल्वाड़न अनाज तै पटाळ मा धौरिक अनाज कुटुद छौ।  बिचारा बड़ी परेशानी मा रौंद छौ।     
मि -अर जु हम मनिख इनी अपण पुराणि संस्कृति का चक्कर मा रौंदा त क्या उर्ख्यळ-गंज्यळु खोज हूंद ?
उर्ख्यळ-ना !
मि -जु हम अनाज कुटणो बान पटाळ -ल्वाड़ पर हि चिपक्यां रौंदा त उर्ख्यळ-गंज्यळु प्रचार -प्रसार हूंद ?
उर्ख्यळ-ना
मि -जु हम ल्वाड़- पटाळ  से अनाज पिसणो ब्यूँत पर चिपक्यां रौंदा त जंदरूं अंवेषण हूंद ?
उर्ख्यळ-ना .
मि -जु हम मनिख पुरण गंज्यळ पर चिपक्या रौंदा त गंज्यळs  तौळ  धातु लगद ?
उर्ख्यळ-ना !
मि -त फिर तू हर बार किलै उलाहना दींदी कि हम उर्ख्यळ-गंज्यळुतै याद कारो , याद कारो ?
उर्ख्यळ-यां पण पुराणि संस्कृति ?
मि -देख संस्कृति एक बगदी नदी च।  आज हम  फ़्लोर मिल मा जांदा , भोळ नया किस्मौ आटा चक्की आली तो हम तै नई चक्की अंगीकार करण पोड़ल।
उर्ख्यळ-त इन मा  हमर क्या होलु ?
मि -देख जब कै बि चीजो व्यवहारिक महत्व ख़तम ह्वे जांद त वा चीज कला मा शामिल ह्वे जांद।  जन कि हाथी मा चलण आज  केवल एक कला च। 
उर्ख्यळ- हमर अब उपयोग नि रै गे त हम अब केवल कला युक्त चीज बस्तर ह्वे गेवां ?
मि -बिलकुल अब सिल्वट , उर्ख्यळ-गंज्यळ , लालटेन कला मा शामिल ह्वे गेन।
उर्ख्यळ-फिर संस्कृति को क्या होलु ?
मि -देख !  संस्कृति क्वी स्थिर चीज नी  च। विज्ञान की  खासियत च कि पुराणि संस्कृति खतम कौरिक नई संस्कृति लाण। नित नया अन्वेषण, प्रयोग  करण ही मनुष्यों असली संस्कृति च।
उर्ख्यळ-त एक काम कौर मै तैं कै विदेसी म्यूजियम मा धौरि दे।
मि -किलै ?
उर्ख्यळ-अरे विदेसी लोग द्याखल त सै बल गढ़वाली संस्कृति क्या छे !


Copyright@ Bhishma Kukreti  30 /10/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; अनाचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य , अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य , गरीबी समस्या पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के गढ़वाली हास्य व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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                            मि तैं पहाड़ विकास का बड़ा बड़ा   सुपिन दिखण द्याओ    !

                                  चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

म्यार भतिजु ये आधुनिक युग मा बि  सुबेर ब्यणसरिकम बिजि जांद अर अपण सग्वड़म काम करण मिसे जांद।
मीन सुबेर आठ बजि फोन कार त वैन मोबाइल नि उठाइ , नौ बजि बि मोबाईलै घंटी ऊनि बजणि राइ , दस बजि बि नो रिप्लाइ , अग्यारा बजि की फोन कि घंटी निरंतर बजदि गे।  चिंता  ह्वे कि कखि  गांव मा कुछ अणभर्वस त   नि ह्वे गे हो ? मीन लैंडलाइन पर फोन कार त ब्वारिन फोन उठै।  ब्वारिन बतै बल," ऊंक  बुल्युं च बल बारा बजे तक वूं  तैं क्वी नि उठैन किलैकि वूंन  आज भौत बड़ो सुपिन दिखण।"
मि चकरै ग्यों कि अब जवान  लोग सुपिन बि अपण मर्जी से दिखण बिसे गेन !
खैर साढ़े बारा बजि मीन फिर से फोन कार त म्यार भतिजौन फोन उठै।
सिवा सौंळि उपरान्त  मीन पूछ - यि   क्या च भै भौत बड़ो सुपिन ?
भतिजु  -हाँ अब मीन कसम खै याल कि जब सुलारै जरूरत होलि त मीन पूरी  कपड़ा फैक्ट्री मांगण।
मि -हैं ?
भतिजु  -हां अर  मि तैं भूख ह्वेली द्वी रुटि कि त मीन पुरो ग्युं पुंगड़ो सुपिन दिखण।
मि -क्या बुनि छे , कुछ बिंगणम (समजम ) नि आणु च ?
भतिजु  -हमर गां तैं स्कुलो आवश्यकता होलि त हम इन्टरनेसनल यनिवर्सिटी कि मांग करला . अर एक फुट चौड़ गुरबट की जरूरत हो त सिक्स लेन मोटर सड़क का सुपिन दिखण।
मि -त तु आज सरा सुबेर सुपिन दिखणु रै ?
भतिजु  -हां।
मि -क्या क्या सुपिन द्याख ?
भतिजु  -मीन द्याख कि सरा पहाड़ी गाउँ मा बगीचा लग गेन , फूलूं बग्वान लगि गेन।  हरेक गाड  -गदनम छुटा छुटा बाँध बणि गेन अर पहाडुं  हरेक गांका पुंगडुं सिंचाई पाइप से हूणि च। सरा पहाड़ सिंचित पहाड़ ह्वे गे।   पहाड़ खुसहाल ह्वे गेन।
मि -अच्छा ! अर गूणि बांदर -सुंगर ?
भतिजु  -वांकुण इलेक्ट्रॉनिक यंत्र लग गेन जो ख़ास अल्ट्रा साउंड  से गूणि बांदर -सुंगर भगै दीन्दन। उत्तराखंड का  पहाड़ सबसे बड़ा फल अर फूल उत्पादक ह्वे गे। हरेक ब्लॉक मा फ़ूड प्रोसेसिंग फैक्ट्री लगीं छन.
मि -अरे वाह ! सचमुच मा बड़ो कामौ  सुपिन च !
भतिजु  -हाँ अर हरेक गां माँ अंतररास्ट्रीय स्तर का  स्कूल , कॉलेज छन जख मुम्बई , दिल्ली इ  ना न्यूआर्क , लंदन का नौन्याळ पढ़णो आन्दन। उत्तराखंड का सबि पहाडी  गाँ बिगेस्ट एज्युकेशन हब बणी गेन । 
मि -मानण पोड़ल बल सुपिनो मा दम ख़म च कि पहाड़ों मा पारम्परिक उद्यम ना बलकणम  अंतररास्ट्रीय स्तर वळ शिक्षा जना  उद्यम लगण  चयेंदन।
भतिजु  -अर हरेक ब्लॉक मा एक हॉस्पिटेलिटी मैनेजमेंट स्कूल च जख दुनिया भर का विद्यार्थी प्रबंध शास्त्र की शिक्षा लीणम गर्व करदो। 
मि -सचमुच मा त्यार आँख खुलि गेन भै ।
भतिजु  -हरेक गां मा रोप वे से अये -जये जांद अर अर हरेक पट्टी मा हैली पैड बणि गेन। अब हमर गां वॉल मुम्बई नि जान्दन बलकणम मुम्बै -दिल्ली वाळ शिक्षा अर नौकरी बान हमर गां आन्दन !
मि -अच्छा !
भतिजु  -हरेक पहाड़ी अरब पति ह्वे गे।
मि -अरे पण यी सुपिन त पूरा ह्वे इ नि सकदन
भतिजु  -नै नै  राहुल गांधीन बोलि कि तुम खाली सुपिन द्याखो बाकी काम कॉंग्रेस कारलि।
मि - राहुल गांधी त अचकाल अपण दादी अर बुबा जीक शहादत की  बात करद या पकिस्तान कन हमर बच्चा पकिस्तान का भकलौण मा आणा छन की ही  बात करद तो  फिर यो सुपिन ?
भतिजु  -परसि राहुल गांधीन बुंदेलखंड वाळु तैं डांट कि "तुम लोग नीचे देखतो हो।  तुमको समज ही नही है।   तुम्हे बड़े सपने देखने चाहिए।  यदि तुम्हे रेल मार्ग चाहिए तो इंडस्ट्रियल जोन की मांग करो। छोटी मांग मत करो ! "
मि -अरे पण यदि राहुल चांदो कि बुंदेलखंड मा इंडस्ट्रियल जोन हूण चयेंद त केंद्रीय सरकार बुंदेलखंड मा सेंट्रेल इंडस्ट्रियल जोन लगै सकद , रेल मार्ग लै सकद।  इखमा जनता तैं सुपिन दिखणै जरुरत क्या च ?
भतिजु  -नै नै चूँकि उत्तर परदेश मा कॉंग्रेसी सरकार नी  च त राहुल गांधी चैका (चाहते हुए ) भी कुछ नि कौर सकुद। इलै राहुल जी बुंदेलखंड की जनता तै बुलणा छन कि जब तलक उत्तर परदेश मा कॉंग्रेसी सरकार नि आंदि तब तलक केवल सुपिन द्याखो।
मि -ओहो ! बिचारो राहुल गांधी कथगा परेशान होलु कि चूँकि बुंदेलखंड मा कॉंग्रेसी सरकार नी  च त बुंदेलखंड को विकास नी हूणु च।
भतिजु  -हाँ चूंकि केंद्र अर उत्तराखंड मा कॉंग्रेसी सरकार च त मि राहुल गांधी बुल्युं मानिक बड़ा-बड़ा , ऊंचा -ऊंचा सुपिन दिखणु छौं।
मि -बंद कौर यी फोकटिया सुपिन दिखण।  ना त भाइन जनम लीण अर ना ही भाई बांठै भति खयाण। ना नौ मण तेल आयेगा और ना ही राधा नाचेगी।   क्वी माइ को लाल राहुल गांधी तैं पुछण वाळ नी च कि राजस्थान अर केंद्रम त कॉंग्रेसी सरकार छे तो फिर उख पिछ्ला पांच सालुंम कथगा नै नै इंडस्ट्रियल जोन खुलेन ?
भतिजु  -काका ! पण एक बात धौ च सुपिन दिखणम बड़ो अति सुखद आनंद आंद।   !
मि -सन सैंतालीस बिटेन  हम नेताओं बुलण पर सुपिन देखिक ही त दिन काटणा छंवां ! 


    Copyright@ Bhishma Kukreti  31 /10/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

Bhishma Kukreti

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                               चलो सरदार पटेल पर कब्जा करे जावो !

                                  चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

ब्याळि  सरा दिन एक घड़ि बि चैन लीणो टैम नि मील।  सरा दिन भर सरदार बल्लभ भाई पटेल पर कब्जा करण वाळु  चकरघिनी मा फंस्युं रौं।
सुबेर सुबेर गां बिटेन बण्वा काकाक फोन आयि।   बण्वा काका तैं वूंकि घरवळि अर  नौनान भावी  ग्राम प्रधान घोसित क्या कार कि काका तैं  देस अर दुनिया चिंता सताण मिसे गे अब वु ओबामा की नीति अर ग्लोबलाइज़ेशन से तौळ बात नि करदन।  झाड़ा पिसाब करद बि बरड़ाणा रौंदन बल येस  ! आई कैन ! येस  ! आई कैन !। जब   क्वी अपण भाई तैं पिटणु ह्वावु त बण्वा काका किरैक बुलण  जांद "येस ! यू कैन ! येस यू कैन"।  जब गां वाळ देर से अयीं मोटर पर पथर्यौ करदन त बण्वा काका जोर जोर से बुल्दु बल "येस ! वी कैन ! येस ! वी कैन ! "
बण्वा काकान फोन पर पूछ -  भीषम ! तख ये सरदार पटेलक मूर्ति क्या भाव चलणा  ह्वाल ?
मीन पूछ - काका ! सरदार पटेलक मूर्ति क्या करणाइ ?
  भावी प्रधान बण्वा काका को जबाब छौ - अरे वू सरदार पटेलै  विरासत पर कब्जा करण छौ। मि चाणु छौं सरदार पटेल की गद्दी  मितै मिल  जावो।
मीन ब्वाल  - सरदार पटेल तैं  मर्यां तिरसठ साल ह्वे गेन अर तुम  अब गद्दी बात करणा छंवां ?
 बण्वा काका ब्वाल - हैं ? सरदार पटेल मोरि गे ? पण कैन बि नि बताइ।  तेरी काकीन बताइ बल सरा क्षेत्र मा भावी पंच -प्रधान लोग सरदार पटेल कि मूर्ति लगैक पटेलौ गद्दी हथ्याणा छन त मीन स्वाच मी जि किलै पैथर रौं ! अच्छा सूण !
मीन ब्वाल -ब्वालो !
काका - त इन कौर तख बिटेन सरदार पटेल की एक   बड़ी फोटो ही भेज दे।  मी फोटो दिखैक गाँव वाळु तैं भरमाई देलु कि सरदार पटेल कु असली वारिस मी छौं।  फोटो भिजण बिसरि ना हाँ।  मी तैं पता च बल " यू कैन "!
मि -ठीक च।
इना बण्वा काकान फोन बंद कार उना ममकोट बिटेन सग्वारि मामीक फोन ऐ गे।  सग्वारि मामी बि अपण  ख्वाळ  वाळुक   भावी ग्राम  प्रधान च.
मामीन पूछ - ये भीषम ! ये सरदार पटेल की पार्टी मा शामिल ह्वेक म्यार पुरण दाग धुये जाल कि ना ? यु दाग मिटाण जरूरी ह्वे गै  जु मै पर त्यार मामा तैं बीस साल पैल पिटण पर लगी छा।
मीन जबाब दे - मामी सरदार पटेल तैं मोर्यां तिरसठ साल ह्वे गेन।  सरदार पटेल कॉंग्रेसी छा।
मामी - हैं ! त फिर सरा क्षेत्र मा   सरदार पटेल की पार्टी मा शामिल हूणै बात किलै हूणि होलि ? अच्छा तु  इन कौरs  सरदार पटेल की एक बड़ी लम्बी फोटो ही भेज दे मि फोटो दिखैक अपण पुरण दाग मिटै द्योलु।
इना मामी फोन कट उना बस्ती जीजाक फोन आयि।  बस्ती जीजा मेरि भूलिs रिस्ता मा द्यूर लगद अर बस्ती जीजाक मुंडीत वाळुन बस्ती जीजा तैं भावी सरपंच घोसित कर्युं च।
बस्ती जीजा -  सरा क्षेत्र मा हल्ला हुयुं च बल   सरदार पटेल की  मूर्ति लगाण से  चुनाव जीते जै सक्यांद।  भीषम ! ये सरदार पटेल की  मूर्ति अपण चौक मा लगाऊं या बीच चौबट मा लगौं ?
मि - पण मूर्ति लोहा कि होलि या पेरिस ऑफ प्लास्टर की ?
बस्ती जीजा - जै हिसाब से गां मा चंदा मीलल वै हिसाब से मूर्ति बणलि।
मि -त पैल चंदा जमा कारो फिर मूर्ति की बात करे जालि।
बस्ती जीजा - अच्छा सूण ! मूर्ति मा सरदार पटेल की  पगड़ीs  रंग बसंती रंग ठीक रालु कि लाल रंग ठीक रालु।  अर सरदार पटेल की दाढ़ी सुफेद छे कि काळि ? अच्छा सूंण !  सरदार  पटेल पंजाबी सलवार पैरदो छौ कि पैंट पैरदो छौ ?
मि -जीजा जी ! सरदार पटेल गुजराती छौ ना कि पंजाबी सरदार।
बस्ती जीजा - हैं ! सरदार पटेल गुजरात  कु  छौ ? मि त समज कि सरदार पटेल क्वी पंजाबी सरदार होलु।  फिर ये पटेल तै सरदार किलै बुलणा छन लोग ?
मि - गांधी जीन बल्ल्भ भाई पटेल तै सरदार की उपाधि दे छे।
बस्ती जीजा - त फिर इन कौर सरदार पटेल की  बड़ी फोटो भेजी दे।  मी बि आज से अफिक  सरदार बस्ती राम बौण जांदो अर सरदार पटेल की विरासत पर कब्जा करणो तिकड़म भिडांदु। 
इनी म्यार क्षेत्र से बीस पचीस भावी पंच -परधानु  फोन ऐन।  सबि सरदार पटेल की विरासत पर कब्जा करण चाणा छन पण कै तैं सरदार बल्ल्भ भाई पटेल का बारा मा कुछ बि पता नि  छौ कि सरदार पटेल कु छौ अर पटेलन क्या कौर छौ। 





  Copyright@ Bhishma Kukreti  1 /11/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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                            कखाकि   दिवळि -बग्वळि पर लेख लेखुं  ?

                                  चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                        मि ब्याळि बड़ु घंघतोळम थौ बल   दिवळि -बग्वळि पर क्या लिखे जावु ?राजनीति पर लिखुद त दिवळि -बग्वळि मिठै पर दुःख को वर्क लग जाण छौ कि हम राजनीतज्ञों से क्या क्या उम्मीद करदां अर राजनीतिज्ञ हमारी उम्मीदों पर  आम रंदा लगै दीन्दन।  पण स्वाच विचार कि यूं नाशपिटों पर लेखिक मिठै स्वाद पर रड्यांण ऐ जाण त  खुशी मौक़ा पर किलै स्वाद कसैला करे जावो ? समाज का बारा मा लिखुद त फ़ोकट मा निराशा फ़ैल जाण।  कख दिवळि -बग्वळि उलार -उत्साह को त्यौहार अर समाज - कार्यकर्ताओं पर लिखुद त पाठक विचारा निरुत्साहित ह्वे जाल।
मेरि ब्वेन पूछ - ये भीषम ! ई क्या छे रे तू  उना -उना रिंगणि।  कुछ तब्यत खराब च ?
मि - ना ना ! मि घंघतोळ मा छौं कि दिवळि -बग्वळि पर क्या लिखे जावु ?
ब्वे - इखमा सुचणै बात क्या च।  तु अपणि ददि -ददों टैमौ  दिवळि -बग्वळि पर लेख।
मि -क्या ?
ब्वे - कि कन लोग वैबरि द्वी द्यू बणवाणो बान दस दैं सुचदा छा अर द्यू ऐ बि गे त , तेलै टरकणि रौंदि छे , फिर स्वाळ पक्वड़ बणाणो कुण एक साल पैल सुचे जांद छौ कि ग्यूँ बुते जावन कि ना।  एक पाथ ग्यूँ जगा दस पाथ जौ ह्वे जांद छौ।  फिर चौंळु हाल बि ग्यूँ जन छौ।  त  वै बगत कैक चौक का दीवाल मा  चार द्यू जळि गे तो समजे जांद छौ कि जरुर यीं मौ की  फसल बिंडी ह्वे। भैर द्वी द्यू जलाण मा इथगा उत्साह हूंद छौ कि पैथरा बरसातौ चार मैनौं थक दिवळि -बग्वळि बगत पर उतरि  जांदि छे।  गरीबी छे पण उलार -उत्साह निडाणो/इकट्ठा करणो बिंडि साधन छा तब।
मेरि घरवळि - नै नै उथगा पैथर जाणै जरुरत नई च।  तुम अपण जवानी टैमौ  पहाड़ों मा दिवळि -बग्वळि पर ल्याखो कि कन प्रवास्युं लयां पैसा से दिवाली मनाणम बदलाव आयि  कि ये बगत पर दिवाली मनाण से जादा  दिवळि -बग्वळि मनाण तै दिखाण याने शो करणै शुरुवात  ह्वे।  दिवाली याने शोबाजी !
म्यार  भुलाs ब्वारि - नै नै ! तुम सब लोग इख मुम्बई मा रैक बि म्यार पहाड़ , म्यार पहाड़ की छ्वीं करणा रौंदा।  अरे कबि त मुम्बई का बारा मा ल्याखो ! आप मुंबई मा दिवळि -बग्वळि सेलिब्रेसन मा क्या क्या चेंजेज ह्वेन वै विषय पर ल्याखो।
ब्वे -ह्यां पण अपण पहाडुं पुरण  संस्कृति त नि बिसरण चयांद कि ना।
भुलाs  ब्वारि -सासू जी ! तुम हम तैं वर्तमान मा नि रौण दींदा।  बस मेरो भूतकाल को पहाड़- मेरो भूतकाल को पहाड़ की  रट लगैक  हम तैं वर्तमानै  ख़ुशी इंज्वाय नि करण दींदा।
म्यार नौनान ब्वाल - आंटी बिलकुल सै बुलणि च हम तैं प्रेजेंट मा रौण चयेंद।  वी शुड लिव इन प्रेजेंट ऐंड नोट इन पास्ट।  डैडी ! आप मुम्बई की दिवाली पर ल्याखो।   मुम्बई मा रौंदा अर पहाड़ों की सोचदा।  यू आर स्प्वाइलिंग पास्ट ऐंड प्रेजेंट ऐज वैल।
म्यार भैजिs नातीन ब्वाल - सभी गलत छन।  ग्रैंड पापा शुड राइट फ्यूचर डीपावली ।  प्रेजेंट इज नथिंग बट प्योरली पास्ट।  लेट अस बि फ्युचरिस्टिक , फ्यूचर ओरिएंटेड
म्यार नौनान पूछ - त डैडी तैं कखक दिवळि -बग्वळि पर लिखण चयेंद ?
म्यार भैजिs नाती- ग्रैंड पापा तै लिखण चयेंद कि भोळ जब भारतीय चाँद -मंगल ग्रह पर वास कारल त उख कै हिसाब से दिवळि -बग्वळि मनाला ? ऑक्सीजन नि हूण अर अलग खाणो ढंग से उख चाँद -मगल मा दिवाली -होली मनाणमा क्या क्या बदलाव आला जन विषय पर ग्रैंड पापा तैं लिखण चयेंद।
सब नातीs बात सूणी इना उना चलि गेन।  नाती अपण अल्ट्रा वीडियो गेम मा व्यस्त ह्वे गे अर मि घंघतोळ/आसमंजस्य  मा छौं कि अपण दादी समौ  की , अपण समौ की , इख मुम्बई की  या फ्यूचर की दिवळि -बग्वळि मादे कखाकि दिवाली पर लेख लिखुं ?
आप को हिसाब से कखाकि अर कब की दीवाली पर लेख जादा सही , सटीक होलु ?



Copyright@ Bhishma Kukreti  2 /11/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]


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                        दिवाली भारतम  अर असली जश्न चीनम

                                 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )


जी हाँ !  जब कि  बग्वाळ - दिवळि-इगास भारत कु  त्यौहार च अर अचकाल चीनी लोग बि दिवळि- बग्वळि जश्न मनांदन।
अब बग्वाळ जनि आणो हूंद त लोगुं तैं याद आंद बल सफै बि क्वी चीज होंद ज्वा बग्वाळ से पैल हूण जरुरी च।   बग्वाळ नि  ह्वावो त हिंन्दुओं तैं पता इ नि चल्दु बल जीवन मा सफै बि आवश्यक च।   फिर लोग बाग़ सरा सरी झाड़ू पुत्या लीणो बजार जांदन अर चीनी झाडु -पुत्या खरीदिक  कूण्या कूण्या  करदन। अब जब सामान्य झाडु  अर मेकैनिकल ब्वान जन कि वैक्यूम क्लीनर , मेकैनिकल माउस क्लीनर उद्यम  पर चीन मा निर्मित झाडुंन झाड़ू लगै याल तो  भारतम दिवळि- बग्वळि बगतै साफ़ सफै से चीनम ख़ुशी का माहौल फैलण लाजमी च ।  भारतम जथगा जादा  सफै ह्वावो उथगा जोर से चीनम जिया (प्रकाश ) फ़ैल जांद अर जाहो जलाल (वैभव ) का माहौल पैदा ह्वे जांद । भारत की एक एक  धूल की कण की सफाइ से हरेक चीनी पुलकित हूंद।  भारतम सफै से चीनक ग्रॉस प्रोफिट मा इजाफा ह्वाल त  चीन्यून   पुऴयाण इ च कि ना  ?
 अब जब सफै पूरी ह्वै जावो त जेबाइश अर जीनत (सजावट ) का सामान बि आणि चयेंद।  अर मुम्बई का लोहार चाल मार्केट , अहमदाबाद का गांधी रोड मार्केट , दिल्ली को खान मार्किट जख  घौरक साजो -सजावट मिल्दो वो अब चीनी मार्किट का नाम से जाणे जान्दन।  इन मा जब हरेक भारतीय की  देळि से लेकि बाथरूम तक  सजावट का हरेक सामान चीनी ह्वावो तो भारतक  जश्ने चरागाँ (दीपावली ) त्योहार से हरेक चीनी नागरिक  उत्सव, जलसा  मनाल कि ना ? भारत माँ दीपावली मनाणो जनि भारतीय  दिवतौं मूर्ति लांदन उनी उना चीनी लोग अपण ड्यारम भाग्य का तीन दिवतौं 'फू , लुक अर साउ' का मूर्ति थरपी दींदन।  जब जम्बूद्वीप का जश्ने चरागाँ (दीपावली ) से चीन्यूं जेब भर्यालि त चीन्यूं द्वारा   भाग्य दिबता '  फू , लुक अर साउ' की मूर्ति थर्पिक जश्न मनाण जायज च कि ना ?
अब जब बग्वाळ - दिवळि-इगास मनाण त मा लक्ष्मी , गणेश आदि दिबतौं मूर्ति पूजाs ठौ मा लगाण जरूरी ह्वैइ जांद , इना जनि  भारतीय दिबतौं मूर्ति भारतीयों ड्यार आंदन  उना चीनी लोग बि भारतीय दिबतौं पूजा शुरू  करी दीन्दन।  अब जब हरेक मेड इन चाइना की  लक्ष्मी मूर्ति से चीन्यूं तैं लाभ प्राप्ति ह्वाल त इन मा  हरेक चीनी लक्ष्मी भक्त  ह्वैइ जाल कि ना ?
अब धनतेरस अर चौदसौ कुण टीवी , फ्रिज , ऑडियो , कंप्यूटर, घरेलू व रसोई उपकरण आदि चीज खरीदि  ड्यार लाण हमकुण  शगुन बात च।  हम यूं उपकररणु तैं घौर लांदा अर उना चीनी लोग खुसी मारा विजां तरां का पटाका फुड़ण  मिसे जांदन , फुलझड़ी जळाण मिसे जांदन , हम से जादा खुस चीनी लोग  हूंदन कि भारत मा टीवी , फ्रिज , ऑडियो , कंप्यूटर, घरेलू व रसोई उपकरणु  की खरीदी बढ़ गे।  अर हरेक चीनी समृद्धि  कु देवता 'लू स्टार' की पूजा मा मगन ह्वे जांद
इना हम बग्वाळ - दिवळि-इगास मनाणोs लाइटिंग करदां अर उना चीनी लोग धन देवता 'चाइ शेन Cai Shen ' की पूजा तयारी मा लग जान्दन।  हिंदुस्तान मा जथगा जादा लाइटिंग उथगा जोरुं से चीनम समृद्धि दिवता की 'चाइ शेन ' की पूजा हूंद ।
अचकाल हमर ड्यार छुट मुट चीज चीन से आण मिसे गेन त चीनी लोगुन हमर खरीदी पर खुस त होणि च।
जु देस जन भारत अपण देसो माटु /माइन्स बिचण तै प्रगति मानो , अपण धरती की विक्री तैं आर्थिक उदारवाद मानल; अंवेषण , निर्माण पर ध्यान नि द्यालु , बिचौलियापन तै इकॉनोमिक रिफॉर्म मानल त वै देसम द्यु -करूड़ी बि आयात करण पोड़ल अर जब चीन से हमारो आयात निर्यात से कई गुणा जादा होलु त चीन्यूनं हमर खरीदी से खुस हूणी च। 
 हिन्दुस्तानन अन्वेषण -निर्माण तैं तिलांजलि देकि बिचौलियापन तैं आर्थिक उन्नति को आधार समजि याल तो हूणि च कि त्यौहार हमारा अर असली जश्न चीन मा।

Copyright@ Bhishma Kukreti  5 /11/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]


Bhishma Kukreti

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                                     गां मा  जीमण /फौड़
                                 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

 कति दोस्त -दगड्या मि तैं पुछदन बल - भीषम यार ! क्या बात ! तु गां नि जांदु ? तिसालि पूजा   होंदि तबि बि नि जांदु ? गां मा ब्यौ कारज  हूंदन तो बि नि जान्दि ?
अब मि क्या बोल कि अब गां गां नि रै गेन।  गांव बि अब मिनि टाउन जन ह्वे गेन। अब जीमण -जामण मा वा मजा कख रै गयाइ।
एक टैम छौ जब गाँव मा क्वी जीमण ह्वावो त  द्वी तीन मैना पैल सरा गां का लोग चिंतित हूण शुरू ह्वे जांद छा कि ये ब्वे क़ुज्याण कैदिन लखड़ फड्याल अर कैदिन लखड़ लाणो जाण पोड़ल धौं।  तब शादी ब्यौ , जै जीमण एक संजैत कारिज  माने जांद छौ।  अब जैक घौरम जीमण हुणि च लखडुं इंतजाम करणै जुमेवारी वैकि हूंद।  अर पैसा ह्वावन तो कोटद्वार -ऋषिकेश से लखड़ मंगाण सरल हूंद बजाय कैकुण ब्वालो कि म्यार लखड़ फाड़ि दे या लखड़ सारि दे।  अब  सहकारी  कार्य को अर्थ च द्वी चार बोतल फुड़ण , चखणा वास्ता मुर्गा मारण  त इथगा मा त कोटद्वार -ऋषिकेश से ही लखङ लाण सरल पड़दन।   
फिर अब पत्तळू झंझट बि खतम ह्वे गेन।  थर्मोकोल का पत्तळ -गिलास ऐ गेन।  सहकारिता तबि तक भलि लगदि जब तक साधन नि ह्वावन।  सहकारिता मजबूरीक  नाम च।  अब लाबुं पत्तळु  जरूरत नी  च त सहकारिता बि जंगळम माळु बुज्या पुटुक बैठि गे।
पैलो जमनम जीमणो बान पाणि लाणो बान बि सहकारिता क दर्शन हूंद छौ त अब पाणि गांव मा ऐगे।.  अब सहकारिता आदिनिवास्युं निसाणी ह्वे गे अर अब क्वी बि आदिवासी नि दिख्याण चांदो  त सहकारिता बि सिंवळ बौणि कै गदन मा इकुलस्या दिन काटणि च।
पैल जीमणो बान खाणौ बणाण एक सामाजिक जुमेवारी छे।  हरेक मनिख अपण अपण हिसाब से जुमेवारी निभै जांदो छौ।  अब हर पट्टी , हर क्षेत्र मा कैटरिंगै   दुकान खुलि गेन त सर्यूळ फर्यूळ ह्वे गेन।  कैटरर आंदो अर सब काम कौरिक चलि जांद।  पैल इना फौड़ मा खाणक  बणनु रौंद छौ अर बगल मा लोग दुनिया भर की छ्वीं लगांदा छा।  अब इना कैटरर खाणा बणाणु रौंद त लोग बाग़ अपण ड्यारम सास भी कभी बहू थी जन सीरियल दिखणम व्यस्त रौंदन, फिर  पीण-पिलाण जन महत्वपूर्ण कार्यक्रम छन।    अर लोग तबि जीमण का पास तबि आंदन जब भोजन परोसणो तैयारी चलणी  ह्वावो। गां मा बि शहरं जन जीमण खाण अब एक औपचारिक कार्यक्रम ह्वे गे। जीमण कु असली मजा इन्वॉल्वमेंट मा छौ , जीमण को जजबा शामिल हूण अर सम्म्लित कार्य करण मा छौ , जीमण को परम आनंद भागीदारी मा छौ अर जब अब हम भागीदारी ही नि निभांदवां  त जीमण को मजा बि दूर ह्वे गे।   सहकारिता गरीबीs  जेवर च अर अब गरीब क्वी नी  च। 
त मि बोल्दु बल जब गां अर शहरूं मा अंतर नि  रै गे त क्या गाँव अर क्या शहर तो फिर गां जैक क्या करण ?





Copyright@ Bhishma Kukreti  7 /11/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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                               मंहगाई ज्वा नर्भगण कम नि हूंद !


                                 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती

     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                       मंहगाई क्या च ? अर्थशास्त्री बुल्दन बल  कीमतुं स्तर वृद्धि  कुण मैंगै बुल्दन।  याने कि आज प्याज सौ रुपया किलो मिलणु  च अर यदि लगातार तीन मैना तलक प्याजौ कीमत सौ रुप्या रावो त समझो कि मंहगाई नि बढ़णी च।
मंहगाई बि  माटु ( धूल ) , माखुं,  मच्छरुं  तरां सबि  जगा हरेकाक  घौरम  मिल्द अर सबि मैंगै से परेशान रौंदन ।  जन कि सरकारी दलौ सांसद जिंदल बि अपण नौकरूं तै मंहगाई भत्ता दींद दै सरकार तैं गाळि दींद।  आईपीएल मा नीता  अंबानी  क्रिकेटरुं  कीमत बढण से जब अपण मुम्बई टीम मा युवराज तै नि  खरीद सकदी  त नीता अंबानी सरकार तैं  सभ्य अर संवैधानिक भाषा मा ब्वे बैणी  गाळि दींदि कि सरकार मंहगाई रुकणम नाकामयाब च।  या जब अनिल अंबानी  तैं 2G घोटाला मा तिहाड़ जेल जयां  अधिकार्युं बान  तिहाड़  जेलम घूस जादा दीण पोड़द त अनिल अंबानी बि बुलद कि मंहगाई भौत बढ़ि ग्याई अस्तु मनमोहन सरकार की छुट्टी  हूण इ चयेंद। 
       मंहगाई की मार से मल्लया बि मरणु च. बिचरु मल्लया  मंहगाई का कारण किंग फिशर एयर लाइन्स का सरकारी बैकुं उधार , सरकारी कर अर अपण नौकरूं तनखा बि नि दे सकणु च।  मंहगाई से मल्लया का हजारों दगड्यौं जिकुड़ि मा डाम पड़ि गेन।  मल्लयान प्रोमिस कौर छौ कि हरेक तैं आर्कटिक सागरम पार्टी द्यालु पण मुर्दा मोरल यीं मंहगाई को कि मल्लया जन शिष्ठ, जबान को पक्को मनिख बि आर्कटिक सागरम पार्टी नि दे सकुणु च अर वै पर बि निरस्यां दगड्यौं दबाब च कि मनमोहन सरकार बदले जावो।  मंहगाई गरीब -अमीर नि देखदि।  वा करमजली सब्युं तैं तंग करदि।  मि तैं पूरो भरवस च कि राबर्ट बाड्रा बि मंहगाई से त्रस्त होलु तबि त अचकाल   बाड्रा द्वारा हरियाणा , उत्तराखंड , हिमाचल, राजस्थानम जमीन खरीदणो  क्वी खबर नी आणि च त साफ़ च बल मंहगाई भौत बढ़ गे।  सैत च बाड्रा बि बुलणु ह्वावो कि मनमोहन सिंह जी मंहगाई रुकणम नाकामयाब छन।
याने कि मंहगाई अमीर -गरीब को भेद नि करदी अर सब्युं तैं एकी आंखन दिखदि। 
मंहगाई बड़ी विचित्र असलियत  च अर या निरदयी मंहगाई अर्थ शास्त्र्युं तैं बि फेल कौर दींदि ।  पैल अर्थ शास्त्री बुल्दा छा कि मंहगाई डिमांड अर सप्लाई (मांग -पूर्ति ) पर निर्भर करदि।   जब भारत मा प्याजौ उत्पादन मा केवल 7 प्रतिशत की कमी आयी पण प्याज का दाम 600 प्रतिशत बढिन त अर्थ शास्त्र्युंन   पुराणि अर्थ शास्त्र की किताब -डिग्री जळै देन अर अब हरेक बड़ु अर्थ शास्त्री दुबर PhD करणो बान कृषि  मंत्री शरद पवार से अनुदान मांगणु  च। कृषि मंत्री बुलणा छन कि कृषि पर PhD कराणै जुमेवारी कृषि मंत्रालय की नी  च बलकणम रक्षा मंत्रालय या विदेश मंत्रालयै  च।
मंहगाई एक इन चीज च ज्वा छैं च पण दिख्यांदि नी च।  मंहगाई महसूस करे जांद।  मंहगाई का चिन्ह हूँदन जन कि पैल खिसाउंद पैसा लेक हम थैला या बुर्या  भौरिक अनाज लेक आंद छा अब थैला भौरिक रुप्या लिजांदा अर कीसा भौरिक अनाज लौंदा।
मंहगाई महसूस जरुर हूंद पण हरेक तैं मंहगाई महसूस नि हूंदि।  जनता तैं अर विरोधी दल तैं मंहगाई महसूस हूंदि पण योजना आयोग अर सरकारी राजनीतिक दल तैं मंहगाई महसूस नि हूंदि। सरकारी राजनीतिक दल बुलद बल विकास वृद्धि की असली निसाणी मंहगाई च।  ऊंक हिसाब से  मंहगाई बढ़ी माने विकासन हद पार करी आल।
मंहगाई एक भरम  च।  जब हम सिक्का मंदिरम चढांदां त सिक्का बड़ो लगुद पण जनि वै सिक्का तैं दुकानिम लिजांदा त वी सिक्का छुट ह्वे जांद।
मंहगाई इन जटिल चीज (?)  च कि मंहगाई संबंधी द्वी धुर विरोधी विचारकों तैं पद्म श्री मील जांद।
मंहगाई सचमुच मा निरदयी च। हमेशा  मंहगाई तनखा तैं दनकांदी," ये नरभागण तनखा ! त्यार दगड्या जन कि पट्रोल की कीमत , मकान की कीमत कथगा बढ़ि गेन पण तू छे कि अबि छ्वटि कि छ्वटि  याने नाटि /ड्वार्फ छे  "
मंहगाई एक ज़िंदा चीज च या चुनगी दीणी रौंद  पण या कैकि बि नि सुणदि ।  द्याखो ना !  प्रधान मंत्री रोज आश्वासन दीन्दन बल मंहगाई पर जल्दी ही काबू करे जाल पण या च कि रोज बेकाबू, बेलगाम , बेशरम घोड़ी तरां अग्वाड़ी ही बढ़णि रौंद।
मंहगाई कम करणो तरीकों पर हरेक देस मा  अर्थशास्र्युं तैं हर साल पद्म बिभूषण जन तगमा   मिल्दन पण आज तक मंहगाई तैं क्वी नि रोक साक। मँहगै पर लिखे जरुर सक्यांद पण मंहगाई से पार नि पाये सक्यांद। 
मंहगाई चालाक च , चतुर च , धोखा दीणम उस्ताद च।  मंहगाई का हरेक कार्य  कठोर , करुड़ , क्रूर  मर्द का छन पण मंहगाई अफु तैं जनानी बतांदी अर हम बि मंहगाई की भकलौण मा ऐक  मंहगाई तैं स्त्री लिंग मा जगा दींदा ! 



Copyright@ Bhishma Kukreti  8 /11/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

 

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